शेयर बाजार क्या है? (Stock Market)

Stock Market: शेयर बाजार क्या है?
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कैसे काम करता है शेयर बाज़ार?

शेयर बाज़ार किसी लिस्टेड कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने व बेचने की जगह है।
शेयर बाज़ार की तीन कड़ियां हैं : स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर और निवेशक।
निवेशक सीधे शेयर खरीद या बेच नहीं सकते। उन्हें यह ब्रोकर के जरिए करना पड़ता है।
ब्रोकर, स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य होते हैं और केवल वे ही उस स्टॉक एक्सचेंज में आपकी तरफ से किसी कंपनी के शेयर खरीद या बेच सकते हैं।
भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं जहां किसी लिस्टेड कंपनी के शेयर ब्रोकर के माध्यम से खरीदे-बेचे जाते हैं। इस बाजार में किसी कंपनी को एंट्री तब मिलती है, जब वह आईपीओ लाती है। इसके जरिए कोई भी कंपनी अपनी हिस्सेदारी आम लोगों, वित्तीय संस्थाओं और म्यूचुअल फंड को बेचती है।
आईपीओ की लिस्टिंग के दिन कंपनियां आवेदन करने वाले लोगों व संस्थाओं को तय रेट पर शेयर आवंटित करती हैं। जब इन शेयर्स की स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग शुरू होती है, इसके भाव मांग-आपूर्ति के आधार पर बदलते रहते हैं। बदलते भाव की वजह से ही लोगों को फायदा या नुकसान होता है।

शेयर बाज़ार से जुड़ी ये बातें भी जानें-
बाज़ार का रेगुलेशन
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) शेयर बाजार में होने वाली हर गतिविधि पर नज़र रखता है। निवेशकों के हितों की रक्षा करना सेबी का मुख्य मकसद और कार्य है। शेयर बाजार में किसी भी कंपनी के शेयर की गलत तरीके से खरीद या बिक्री पर रोक लगाना भी सेबी के कार्यों में शामिल है।

सेंसेक्स
यह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का बेंचमार्क संवेदी सूचकांक है जो बीएसई में लिस्टेड टॉप 30 कंपनियों के मार्केट कैपिटलाइजेशन (कंपनियों के कुल मार्केट वैल्यू) को प्रदर्शित करता है। अगर सेंसेक्स बढ़ता है तो इसका मतलब होता है कि बीएसई में लिस्टेड टॉप 30 कंपनियों ने अच्छा प्रदर्शन किया हैं। अगर सेंसेक्स गिरता है तो इसका मतलब है कि टॉप 30 कंपनियों में से अधिकांश कंपनियों का प्रदर्शन ख़राब रहा है।

निफ्टी
यह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का बेंचमार्क संवेदी सूचकांक है जो एनएसई में लिस्टेड टॉप 50 कंपनियों के मार्केट कैपिटलाइजेशन को प्रदर्शित करता है। अगर निफ्टी बढ़ता है तो इसका मतलब है कि लिस्टेड टॉप 50 कंपनियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। निफ्टी के गिरने का मतलब है टॉप 50 कंपनियों में से अधिकांश का प्रदर्शन ख़राब रहा है।

वे 5 बड़ी वजहें जो साबित करती हैं कि शेयर बाजार के गिरने से हम सभी को चिंतित क्यों होना चाहिए।

वजह 1
ईपीएफ : क्योंकि हर नौकरीपेशा व्यक्ति इससे जुड़ा है


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प्रत्येक नौकरीपेशा व्यक्ति (चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी), ईपीएफ यानी कर्मचारी भविष्य निधि में योगदान देता है। नियमों के मुताबिक जिस कंपनी में 20 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, उसका पंजीकरण कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में होना अनिवार्य है। इस फंड को मैनेज करने वाला संगठन ईपीएफओ अपने एनुअल कॉर्पस/एक्यूमुलेशन का 15 फीसदी हिस्सा इक्विटी (शेयर बाजार) में एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ईटीएफ के जरिए निवेश करता है। इसलिए अगर शेयर बाजार गिरता है तो इसका असर ईपीएफओ के कॉर्पस (फंड) पर भी पड़ता है। जाहिर सी बात है अगर ईपीएफओ के पास ज्यादा कॉर्पस होगा तो वह अपने सदस्यों को ज्यादा सुविधाएं दे सकेगा।
कॉर्पस कम होने का सबसे ज्यादा असर ब्याज पर पड़ता है। ईपीएफओ ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए ब्याज दर को 8.65 फीसदी से घटाकर 8.50 फीसदी कर दिया है, जो पिछले सात सालों (2011-12 के बाद) में सबसे कम है।
देश में फिलहाल 6 करोड़ से ज्यादा एक्टिव ईपीएफ खाताधारक हैं। यानी शेयर बाज़ार से इतने परिवार सीधे प्रभावित होते हैं।

वजह 2
एनपीएस : क्योंकि करोड़ों लोगों की पेंशन इससे संबंधित है


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नेशनल पेंशन सिस्टम यानी एनपीएस एक मार्केट लिंक्ड पेंशन कम इन्वेस्टमेंट स्कीम है, जिसे केन्द्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 को लॉन्च किया था। इस तारीख को या इसके बाद जॉइन करने वाले सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस योजना में निवेश करना अनिवार्य है।
1 मई 2009 से यह योजना स्वैच्छिक आधार पर निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों सहित देश के सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध है। सितंबर 2019 तक इसके कुल एक करोड़ 28 लाख खाताधारक थे। इस योजना के तहत रिटायरमेंट के बाद खाताधारक अपने टोटल कॉर्पस का 60 फीसदी हिस्सा निकाल सकते हैं। बाकी रकम से रिटायरमेंट के बाद उन्हें पेंशन मिलती है।
चूंकि यह स्कीम शेयर बाजार से जुड़ी है, इसलिए खाताधारक के कॉर्पस का एक बड़ा हिस्सा शेयर बाजार में निवेश किया जाता है। सरकारी कर्मचारी अपने कॉर्पस का अधिकतम 50 फीसदी, जबकि निजी क्षेत्र के कर्मचारी 75 फीसदी हिस्सा शेयर बाजार में निवेश कर सकते हैं। इसलिए शेयर बाजार जितना ऊपर जाएगा, खाताधारकों के कॉर्पस पर रिटर्न उतना ज्यादा मिलेगा और रिटायरमेंट के बाद मैच्योरिटी अमाउंट भी ज्यादा होगा।

वजह 3
क्योंकि कारोबार के विस्तार से इसका सीधा संबंध है


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शेयर बाज़ार से तकरीबन 7,500 कंपनियां जुड़ी हुई हैं। ये कंपनियां शेयर बाज़ार के जरिए फंड की उगाही करती हैं और उसी फंड से अपने कारोबार में विस्तार करती हैं। इन कंपनियों को शेयर बाज़ार में तेजी से जितना लाभ मिलता है, उनके लिए अपने कारोबार का विस्तार करने में उतनी आसानी होती है।
कारोबार के विस्तार करने का मतलब है अपना प्रोडक्शन बढ़ाना या अगर कोई सर्विस सेक्टर की कंपनी है तो वह अपनी सर्विस का एरिया बढ़ाती है। इससे कंपनी को काम के लिए नए लोगों की जरूरत पड़ती है और रोजगार बढ़ता है।
जब एक कंपनी अपना कारोबार बढ़ाती है तो उससे संबंधित दसियों अन्य क्षेत्रों के लिए भी रोजगार सृजित होते हैं। जब कंपनियां लाभ में होती हैं तो वे नई भर्तियां करने के साथ-साथ अपने मौजूदा कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में भी बेहतर वृद्धि करती हैं। वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी से लोगों की परचेसिंग पॉवर बढ़ती है। वे ज्यादा खरीदी करते हैं, ज्यादा यात्रा करते हैं, रेस्तरां या मनोरंजन में ज्यादा खर्च करते हैं। जाहिर है, इसका पूरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। शेयर बाज़ार के गिरने पर अर्थव्यवस्था पर उल्टा असर पड़ता है।

वजह 4
क्योंकि इससे रुपए की कीमत पर भी फर्क पड़ता है


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शेयर बाज़ार में गिरावट से रुपए का मूल्य भी गिरता है। इससे आयातित सामान की कीमतें बढ़ जाती हैं। हम महंगे आयातित सामान (जैसे स्मार्टफोन) को अवॉइड कर सकते हैं, लेकिन भारत में बनने वाले कई जरूरी सामान के लिए भी कच्चा माल व कलपुर्जे विदेशों से आते हैं। इनकी कीमत बढ़ने से हमारे यहां उत्पादित सामान जैसे दवाइयां, उर्वरक आदि के दाम बढ़ जाते हैं, जिससे आम लोगों से लेकर किसान तक सभी प्रभावित होते हैं।

वजह 5
क्योंकि डायरेक्ट रेवेन्यू भी मिलता है


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जब बाजार अच्छा प्रदर्शन करता है तो उसमें निवेश करने वाले लोगों की संख्या और निवेश की मात्रा दोनों बढ़ती है। निवेश पर सरकार को सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी), कैपिटल गेन टैक्स वगैरह से भारी राजस्व मिलता है और सरकार इस राजस्व का इस्तेमाल तमाम लोककल्याणकारी कार्यों और बुनियादी ढांचे के निर्माण में करती है।

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