वायुमण्डल - वायुमंडल का अर्थ | वायुमंडल के प्रकार | वायुमंडल की संरचना, संघटन (Atmosphere) vayumandal

वायुमण्डल : संघटन और संरचना

वायुमण्डल

पृथ्वी एक अनोखा ग्रह है, क्योंकि इस ग्रह पर ही जीवन पाया जाता है। जीवन के लिए आवश्यक दशाओं में से वायु का विशेष स्थान है। वायु अनेक गैसों का मिश्रण है वायु पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है। वायु के इस घेरे को ही वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल हमारी पृथ्वी का अभिन्न अंग है जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी से जुड़ा हुआ है। यह जीवन के लिए हानिकारक पराबैंगनी किरणों को रोकने तथा जीवन के लिए अनुकूल तापमान बनाए रखने में सहायक है।
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पृथ्वी पर प्राणी के जीवित रहने के लिए वायु का विशेष योगदान है इसके अभाव में किसी प्रकार के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है वायुमण्डल विशाल कवच की तरह है। वायुमण्डल में गैसों के अतिरिक्त जलवाध्य और धूलकण भी पाए जाते हैं। इनके कारण पृथ्वी पर सभी मौसमी घटनाएं घटती है।

वायुमण्डल का संघटन

वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों, जलवाष्प और धूलकणों से बना है। वायुमण्डल का संघटन स्थिर नहीं है। यह समय और स्थान के अनुसार बदलता रहता है।

(क) वायुमण्डल की गैसें
जलवाष्प एवं धूलकण सहित वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है। नाइट्रोजन और ऑक्सीजन वायुमण्डल की दो प्रमुख गैसें हैं। 99% भाग इन्हीं दो गैसों से मिलकर बना है। शेष 1% भाग में आर्गन, कार्बन-डाई-आक्साइड, हाइड्रोजन, नियॉन, हीलियम आदि गैसें पाई जाती हैं।
वायुमण्डल की शुष्क और शुद्ध वायु में गैसों की मात्रा
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ओजोन गैस
वायुमण्डल में ओजोन गैस अल्प मात्रा में पाई जाती है। यह ओजोन क्षेत्र में ही सीमित है; लेकिन इसका विशेष महत्व है। यह सूर्य की पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी पर जीव-जंतुओं की रक्षा करती है यदि ओजोन गैस वायुमण्डल में न होती तो धरातल पर जीव-जन्तु एवं पेड़-पौधों का अस्तित्व नहीं होता।

(ख) जलवाष्प
वायुमण्डल में विद्यमान जल के गैसीय स्वरूप को जलवाष्प कहते हैं वायुमण्डल में जलवाष्प के विद्यमान रहने के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ है जलवाष्प पृथ्वी पर होने वाले सभी प्रकार के वर्षण का स्रोत है वायुमण्डल में इसकी अधिकतम मात्रा 4 प्रतिशत तक हो सकती है। जलवाष्प की सबसे अधिक मात्रा उष्ण-आर्द् क्षेत्रों में पाई जाती है तथा शुष्क क्षेत्रों में यह सबसे कम मिलती है सामान्यतः निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर इसकी मात्रा कम होती जाती है। इसी प्रकार ऊँचाई के बढ़ने के साथ इसकी मात्रा कम होती जाती है वायुमण्डल में जलवाष्प वाष्पीकरण तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा पहुँचता है। वाष्पीकरण समुद्रों, नदियों, तालाबों झीलों और वाष्पोत्सर्जन पेड़ पौधों और जीव जन्तुओं से होता है।

(ग) धूल कण
धूलकण अधिकतर वायुमण्डल के निचले स्तर में मिलते हैं। ये कण धूल, धुआँ, समुद्री लवण आदि के रूप में पाये जाते हैं। धूलकणों का वायुमण्डल में विशेष महत्व है। ये धूलकण जलवाष्प के संघनन में सहायता करते हैं। संघनन के समय जलवाष्प जलकरणों के रूप में इन्हीं धूल कणों के चारों ओर संघनित हो जाती है, जिससे बादल बनते हैं और वर्षण सम्भव हो पाता है।

वायुमण्डल का महत्व

  • ऑक्सीजन प्राणी जगत के लिए अति महत्वपूर्ण है
  • कार्बन डाई-आक्साइड गैस पेड़-पौधों के लिए अधिक उपयोगी है।
  • वायुमण्डल में विद्यमान धूलकण वर्षण के लिए अनुकूल दशाएं पैदा करते हैं
  • वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है और प्रत्यक्ष रूप से पादप और जीव जगत को प्रभावित करती है
  • ओजोन सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से सभी प्रकार के जीवन की रक्षा करती है।

वायुमण्डल की संरचना

वायुमण्डल पृथ्वी का अभिन्न अंग है। यह पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है सामान्यतः यह धरातल से लगभग 1600 कि.मी. की ऊँचाई तक फैला है । वायुमण्डल के कुल भार की मात्रा का 97 प्रतिशत भाग लगभग 30 कि.मी. की ऊँचाई तक सीमित है ।
तापमान और घनत्व की विविधता के आधार पर वायुमण्डल को निम्नलिखित 5 परतों में बाटा गया है:
  1. क्षोभमण्डल (Troposphere)
  2. समतापमण्डल (Stratosphere)
  3. मध्यमण्डल (Mesosphere)
  4. आयनमण्डल (Thermosphere)
  5. बहिर्मण्डल (Exosphere)
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क्षोभमण्डल (Troposphere)

  1. यह वायुमण्डल की सबसे निचली परत है।
  2. इस परत की ऊँचाई विषुवत वृत्त पर लगभग 18 कि.मी. और ध्रुवों पर इसकी ऊँचाई केवल 8 कि.मी. है। ऊँचाई की विभिन्नता का मुख्य कारण विषुवत वृत्त पर तेज संवहनीय धाराओं का चलना है, जो धरातल की ऊष्मा को अधिक ऊँचाई तक ले जाती हैं।
  3. वायुमण्डल की यह सबसे महत्वपूर्ण परत है, क्योंकि इसी परत में सभी प्रकार के मौसमी परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों के कारण पृथ्वी पर जीव-जगत की उत्पत्ति एवं विकास होता है। इस भाग में वायु कभी शान्त नहीं रहती। इसीलिए इस मण्डल को परिवर्तन मण्डल या क्षोभमण्डल भी कहते हैं।
  4. इस मण्डल की ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में कमी होती जाती है तथा प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर औसत ।" सेल्सियस तापमान घटता जाता है । इसे ही 'सामान्य ताप हास दर कहा जाता है। 
  5. क्षोममण्डल की ऊपरी सीमा से लगे क्षेत्र को क्षोभसीमा कहते हैं। यह एक संक्रमण क्षेत्र है। जिसमें क्षोभमण्डल और समतापमण्डल की मिली जुली विशेषताएँ पाई जाती है।

समतापमण्डल (Stratosphere)

  1. यह क्षोभमण्डल के ऊपर की परत है। 
  2. इसकी धरातल से ऊँचाई लगभग 50 कि.मी. है इसकी औसतन मोटाई लगभग 40 कि.मी. है।
  3. इस परत के निचले भाग में 20 कि.मी. तक की ऊँचाई तक तापमान लगभग समान रहता है। इसके बाद ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। इस परत के ऊपरी भाग में ओजोन के होने के कारण ही तापमान बढ़ता है।
  4. इस मण्डल में किसी प्रकार की मौसम की घटनाएं नहीं घटती है। यहाँ पर वायु क्षैतिजीय चलती है। इसी कारण यह परत वायुयानों की उड़ानों के लिए आदर्श मानी जाती है।

मध्यमण्डल (Mesosphere)

  1. समतापमण्डल के ऊपर वायुमण्डल की तीसरी परत का विस्तार है। इसे मध्यमण्डल कहते हैं
  2. इस परत की ऊँचाई धरातल से 80 कि.मी. तक है इसकी मोटाई 30 किलोमीटर है।
  3. इस मण्डल में तापमान पुनः कम होने लगता है। 80 कि.मी. की ऊँचाई पर तापमान 0° सेल्सियस से - 100° सेल्सियस तक नीचे चला जाता है।

आयनमण्डल (Thermosphere)

  1. यह वायुमण्डल की चौथी परत है। यह मध्यमण्डल के ऊपर स्थित है। 
  2. इस परत की ऊँचाई धरातल से 400 कि.मी. तक है। इस मण्डल की मोटाई लगभग 300 कि.मी. है।
  3. इस मण्डल में तापमान ऊँचाई के साथ पुनः बढ़ता जाता है।
  4. इस मण्डल में वायु में विद्युत आवेशित तरंगें प्रवाहित होती हैं और रेडियो तरंगें इसी मण्डल से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर लौट आती हैं जिससे रेडियो प्रसारण संभव होता है।

बहिर्मण्डल (Exosphere)

  1. आयनमण्डल के ऊपर स्थित परत वायुमण्डल की अन्तिम परत है।
  2. इस मण्डल में गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव की कमी के कारण गैसें अति विरल हैं। अतएव यहाँ वायु का घनत्व बहुत कम है ।
  3. क्षोभमण्डल में ही मौसम की सभी घटनाएं घटती हैं ।
  4. समतापमण्डल में किसी प्रकार की मौसम की घटनाएं नहीं घटित होती हैं । यह वायुयानों की उड़ानों के लिए आदर्श परत है ।
  5. आयनमण्डल में आयन की प्रधानता है। आयन रेडियो तरंगों को पृथ्वी पर परावर्तित करके संचार व्यवस्था को संभव बनाते हैं।
  6. बहिर्मण्डल में वायु का घनत्व सबसे कम पाया जाता है

वायुमण्डलीय गैसों की चक्रीय प्रक्रिया
वायुमण्डल में पाई जाने वाली प्रमुख गैसों का चक्रण नीचे दिया गया है -
  • (क) कार्बनचक्र
  • (ख) ऑक्सीजन चक्र
  • (ग) कार्बन-डाई-आक्साईड चक्र

(क) कार्बन चक्र
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  1. वायुमण्डल में कार्बन तत्व कार्बन-डाई-आक्साईड गैस के रूप में विद्यमान है । समस्त जीवों के कार्बन का स्रोत वायुमण्डल है।
  2. हरे पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन-डाई -आक्साईड प्राप्त करते हैं । जिसका उपयोग सूर्य प्रकाश के माध्यम से भोजन निर्माण हेतु करते हैं । जिसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। इस क्रिया द्वारा पेड़ -पौधे 'कार्बोहाइड्रेट' भोजन के रूप में तैयार करते हैं। इनके द्वारा निर्मित कार्बोहाइड्रेट का उपयोग जीव जन्तु अपने भोजन के लिए करते हैं।
  3. पृथ्वी पर कार्बन-डाई-आक्साईड गैस जल-भण्डारों में घुल जाती है और चूने के जमाव के रूप में इकट्ठी हो जाती है। चूने के पत्थर के अपघटन के बाद कार्बन-डाई-आक्साईड वायुमण्डल में पुनः पहुँच जाती है। इस प्रक्रिया को कार्बनीकरण कहते हैं। इस प्रकार वायुमण्डल और पृथ्वी के जलभण्डारों के बीच कार्बन-डाई-आक्साईड का आदान-प्रदान होता रहता है।
  4. पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तुओं के श्वसन के द्वारा, पौधों और जीव- जन्तुओं के अपघटकों द्वारा, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न कार्बन-डाई-आक्साईड गैस वायुमण्डल में वापस चली जाती है।
इस प्रकार वायुमण्डल से कार्बन-डाई-आक्साईड का आना और धरातल से पुनः वायुमण्डल में वापस जाने की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है और इससे कार्बन एवं जैव मण्डल के बीच सन्तुलन बना रहता है।

(ख) ऑक्सीजन चक्र
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  1. ऑक्सीजन गैस वायुमण्डल में लगभग 21% है और समस्त जीव-जन्तु वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं।
  2. ईधन के रूप में लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम, गैस आदि के जलने के लिए ऑक्सीजन आवश्यक है और इसके जलने के बाद कार्बन-डाई-आक्साइड गैस उत्पन्न होती है।
  3. वायुमण्डल में ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत पेड़-पौधे हैं। जितने अधिक पेड़ पौधे होंगे उतनी ही अधिक ऑक्सीजन मिलेगी।
  4. हरे पेड़-पौधे में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा उत्पन्न ऑक्सीजन वायुमण्डल में वापस चली जाती है। इस प्रकार ऑक्सीजन चक्र की प्रक्रिया चलती रहती है।

(ग) नाइट्रोजन चक्र
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नाइट्रोजन प्रत्येक जीवन का एक आवश्यक तत्व है। वायुमण्डल में 78% नाइट्रोजन गैस पाई जाती है। नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मृदा में उपस्थित नाइट्रेट होते हैं। वायुमण्डल से नाइट्रोजन, वायुमण्डलीय तथा औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा जैव घटकों में प्रवेश करती है। पौधों में से ये नाइट्रोजन यौगिक (खाद्य श्रृंखला) आहार द्वारा जन्तुओं में स्थानांतरित हो जाते हैं। वायुमण्डल की नाइट्रोजन गैस को नाइट्रोजन के गिक में परावर्तित करने की प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं। पेड़-पौधों के सूखने और जीव-जन्तुओं के मरने पर जीवाणुओं द्वारा अपघटन होता है । इससे नाइट्रोजन गैस बनती है जो फिर से वायुमण्डल में वापस चली जाती है। इस तरह नाइट्रोजन गैस की चक्रीय प्रक्रिया पूरी होती है।
  • कार्बन का मुख्य स्रोत वायुमण्डल में पाई जाने वाली कार्बन डाई-आक्साइड है।
  • वायुमण्डल में ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत पेड़ - पौधे हैं।
  • ऑक्सीजन का प्रयोग सांस लेने और ईधन जलाने में होता है
  • नाइट्रोजन पृथ्वी पर जीवन के लिए अति आवश्यक है। पौधों में नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत मृदा में उपस्थित नाइट्रेट होते हैं।

आपने क्या सीखा
  • वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों से बना है। ये गैसें पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए हैं। दो प्रमुख गैसें नाइट्रोजन और ऑक्सीजन मिलकर वायुमण्डल के 99% भाग पर पायी जाती हैं। वायुमण्डल की संरचना क्षोभमण्डल समतापमण्डल मध्यमण्डल, आयनमण्डल और बहिर्मण्डल से मिलकर हुई है। क्षोभमण्डल में सभी प्रकार की मौसम सम्बंधी घटनाएं घटित होती हैं, जबकि समतापमण्डल वायुयानों की उड़ानों के लिए आदर्श माना जाता है। आयनमण्डल से रेडियो तरंगे परावर्तित होकर पृथ्वी पर वापस आती है। इसके द्वारा रेडियो प्रसारण संभव होता है।
  • वायुमण्डल में कार्बन तत्व कार्बन-डाई-आक्साईड गैस के रूप में विद्यमान है कार्बन का मुख्य स्रोत पेट्रोलियम, लकड़ी, कोयला और गैसे हैं। वायुमण्डल में ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत पेड़-पौधे हैं। श्वसन और ईधन के जलने हेतु ऑक्सीजन अति महत्वपूर्ण है। पौधों के नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मृदा में उपस्थित नाइट्रेट है। पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के अपघटन से नाइट्रोजन गैस बनती है और पुनः वायुमण्डल चली जाती है।

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