शब्द और पद में अंतर - शब्द और पद में क्या अंतर है? | shabd aur pad mein antar

शब्द तथा पद

शब्द भाषा की अपने आप में स्वतंत्र सार्थक इकाई होते हैं। वाक्य में प्रयुक्त शब्द स्वतंत्र नहीं होते बल्कि परस्पर संबद्ध होकर अर्थ की रचना करते हैं। ऐसे शब्द पद कहलाते हैं। उदाहरण के लिए कमरा अपने आप में एक स्वतंत्र शब्द है और घर के एक कक्ष का अर्थ देता है, किंतु 'राम कमरे में है' जैसे वाक्य में प्रयुक्त कमरा पद है क्योंकि वह अपना निजस्व अर्थ देने के साथ ही अन्य पदों के साथ अपने संबंध का द्योतन भी करता है। वह कर्ता 'राम' और क्रिया 'होना' के साथ अधिकरण के रूप में संबद्ध है।
संबंध के द्योतन के लिए शब्द किसी प्रत्यय के योग से एक रूप धारण करता है। वह प्रत्यय कहीं अलक्षित रहता है - जैसे उपर्युक्त वाक्य में 'राम' में और कहीं प्रत्यक्ष होता है जैसे 'कमरा' के साथ अधिकरण सूचक में' है।

शब्द और पद में अंतर

शब्द पद
शब्द वर्गों की स्वतंत्र एवं सार्थक इकाई है। वाक्य में प्रयुक्त शब्द 'पद' कहलाता है।
शब्द का मात्र अर्थ परिचय होता है। पद् का व्याकरणिक परिचय होता है।
शब्द स्वतन्त्र होते हैं। पद वाक्य में विभिन्न् व्याकरणिक कोटियों में बँध जाता है।
जैसे लड़का' एक शब्द है। 'लड़का खेल रहा है' यहाँ वाक्य में प्रयुक्त होने के कारण 'लड़का' शब्द न रहकर 'पद' बन गया है
शब्द का मात्रा अर्थ परिचय के बारे में होता है। पद का मात्रा व्यवहारिक परिचय के बारे में होता है
लिंग, वचन, क्रिया और कारक से शब्द का किसी भी प्रकार का संबंध नहीं होता। लिंग ,वचन ,कारक और क्रिया से पद का संबंध होता है
सार्थक और निरर्थक दोनों में शब्द होता है। वाक्य के अर्थ को संकेत देने के लिए पद का उपयोग होता है
वर्णों की स्वतंत्रा और सार्थक को शब्द कहते हैं। वाक्य में प्रयुक्त शब्द को पद कहते हैं।
शब्द कोई शाब्दिक इकाई हो सकता है, जैसे- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, अव्यय आदि। पद वाक्य में रहने के कारण किसी एक शाब्दिक इकाई का काम करता है। उदाहरण- फल पका है- इसमें फल एक पद है।
वर्णों से शब्द बनते हैं। शब्दों के पद बनते हैं।
शब्द का मूल स्वरूप कायम रहता है। एक शब्द में प्रत्यय जोड़कर अनेक शब्द बनाए जा सकते हैं। जैसे- खा, खाना, खाया, खाकर, खाए आदि।
शब्द के साथ व्याकरण के नियम नहीं जुड़ते। पद के साथ व्याकरण के अनेक नियम जुड़ जाते हैं जैसे वाक्य में बच्चे-संज्ञा, जातिवाचक बहुवचन आदि।
शब्द का मूल अर्थ एक होता है। वाक्य में प्रसंगानुसार एक ही शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं। जैसे- कर, मत, जल आदि।
शब्द का व्याकरण लिंग, वचन, क्रिया, विशेषण से कोई संबंध नहीं होता है। पद व्याकरण का परिचय देता है।

परिभाषा : एक या अधिक अक्षरों से बनी हुई स्ततत्रं, सार्थक ध्वनि को शब्द कहते है, जैसे-राम, स्कूल, आत्मा आदि।

शब्द की परिभाषा : वर्णो का एक ऐसा समूह जिससे कोई भाव प्रकट हो, वह शब्द कहलाता है, जैसे-क+म+ल वर्णो का समूह कमल शब्द का निमार्ण करते है जिसका अर्थ एक विशेष पुष्प से होता है।
शब्द जब तक वाक्य में प्रयुक्त नहीं किए जाते तब तक स्वतंत्र होत है, लेकिन वाक्य में प्रयुक्त इन शब्दों का अस्तित्व स्वतत्रं न रहकर वाक्य के लिंग, वचन, कारक और क्रिया के नियमों से अनुशासित हो जाता है। व्याकरण के नियमों में लिखने से ये शब्द, शब्द न रहकर पद बन जाते है।
  • उदाहरण - वाक्य में प्रयुक्त शब्द ही 'पद' कहलाते हैं।
इस प्रकार प्रचलित भाषा में शब्द को ही पद कहा जाता है, लेकिन दोनों में स्पष्ट अंतर पाया जाता है। वाक्य से परे .... 'शब्द' होता है और वाक्य में प्रयुक्त शब्द 'पद'। 'शब्द' शब्दकोष में पाए जाते है, लेकिन वाक्य और भाषा पद और वाक्य पदों से मिलकर बनता है शब्दों से नही। वाक्य में प्रयुक्त शब्द की आकृति और रूप में परिवर्तन किया जाता है इस परिवर्तन के सहायक शब्दांश को व्याकरण की 'विभक्ति' कहते है। विभक्ति वाक्य के प्रत्येक पद में गुप्त अथवा ..... रूप से विद्यमान रहती है: जैसे-'राम गोविंद को देखता है। इस वाक्य में राम निर्विभक्ति पद है और दिखता है किया का कर्ता है। कर्तृत्व प्रकट करने के कारण यह पद है, यद्यपि कोई विभक्ति साथ नहीं है। इस अध्याय में हम शब्दों पर विचार करेंगे।

शब्द विज्ञान

भाषा विज्ञान के अन्तर्गत शब्द का विशेष महत्व होता है। भाषा के अन्तर्गत शब्दों का प्रयोग दो रूपों में होता है एक तो सामान्य शब्द जो बोलचाल की भाषा में कम आते हैं और दूसरे परिष्कृत शब्द जो साहित्यिक भाषा में प्रयोग किये जाते हैं। इन सभी शब्दों का वैज्ञानिक अध्ययन भाषाविज्ञान के अन्तर्ग किया जाता है। भाषा वैज्ञानिक अध्ययन यद्यपि आधुनिक युग की देन है तथापि शब्दों का अध्ययन अत्यन्त प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। उदाहरण के लिए यास्क ने शब्द के चार भेद बताए हैं-(1) नाम (2) आख्यात (3) उपसर्ग और (4) निपात। आचार्य पाणिनि ने शब्दों पर विचार करते समय शब्द के चार भेद बताये हैं(1) प्रातिपदिक (2) धातु (3) उपसर्ग तथा (4) निपात। इस प्रकार व्याकरण के दृष्टिकोण से शब्द का व्यापक अध्ययन अत्यन्त प्राचीनकाल से होता आ रहा है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शब्द का व्यापक अध्ययन और अनुशलन आधुनिक देन है। यह अध्ययन शब्द विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है जो रूप विज्ञान की ही एक शाखा है। इसके अन्दर शब्द-निर्माण की प्रक्रिया, शब्द के विविध भेद, शब्दों में होने वाले विविध परिवर्तनों का अध्ययन होता है। किसी भी विकसित भाषा का अपना एक शब्द समूह होता है। इसमें विविध प्रकार के शब्द होते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा के शब्द समूह में तत्सम्, तद्भव, देशज शब्दों के साथ-साथ विदेशी शब्दों का भी प्रयोग होता है। अतः शब्द-विज्ञान के अन्तर्गत हिन्दी भाषा के शब्द समूह का अध्ययन करते समय शब्दों की रूप-रचना के साथ-साथ उनमें होने वाले परिवर्तनों का भी अध्ययन होता है तथा परिवर्तनों का ही नहीं उनके कारणों का भी अध्ययन होता है। इस प्रकार शब्द-विज्ञान, भाषा-विज्ञान की महत्वपूर्ण उप-शाखा है।

पद विज्ञान

'ध्वनि' भाषा की लघुतम इकाई है। ध्वनियों के समूह से 'शब्द' का निर्माण होता है तथा शब्दों के समूह से वाक्य का और सार्थक वाक्यों के समुच्चय का नाम भाषा है। परन्तु शब्द तथा वाक्य के मध्य रचना प्रक्रिया की दृष्टि से एक और सीढ़ी है जिसका नाम 'पद' है। _ 'पद' शब्द का सीधा अर्थ है पैर। पैर का काम है चलना। एक प्रकार से हम कह सकते हैं कि जब मूल शब्द वाक्य में चलने लगता है अर्थात् एक निश्चित अर्थ देने लगता है तब पद बना जाता है। इस प्रकार वाक्य केवल शब्दों का समूह मात्र ही नहीं होता है अपितु उन शब्दों में एक निश्चित अर्थ के बोध के लिए, परस्पर सम्बन्ध भी स्थापित होना चाहिए। इसके लिए 'शब्दों' में प्रत्यय, विभक्तियाँ आदि जोड़ते हैं। जब मूल शब्द (ध्वनियों के समूह से बना शब्द, जो अधिकारी होता है) में प्रत्यय, विभक्ति आदि के योग से विकार उत्पन्न हो जाता है तब वे 'पद' कहलाते है, उदाहरण के लिए 'राम', 'मोहन', 'आम' 'देना' इन चार शब्दों को ले सकते हैं। इन शब्दों का अपना एक निश्चित अर्थ है, जो मूलार्थ है। बिना कोई परिवर्तन लाये ही, इन शब्दों से हम वाक्य बनाना, चाहें तो असफल रहेंगे और यह स्पष्ट करने में भी कुछ 'विकार' (परिवर्तन) लाकर इस तरह लिखें 'मोहन ने राम को आम दिया।' तो यह एक पूर्ण वाक्य होगा, जिसके अन्दर प्रयुक्त शब्दों का पारस्परिक सम्बन्ध भी स्पष्ट है और अर्थ भी। उपर्युक्त वाक्य में, 'को', विभक्ति-चिह्न (परसर्ग) है तथा 'अ' भूतकालिक प्रत्यय है जिसने 'देना' क्रिया में जुड़कर उसका रूप 'दिया' कर दिया। 'राम', 'मोहन', 'आम', 'देना' जैसे मूल शबद अर्थतत्व कहलाते हैं तथा 'ने' 'को', जैसे विभक्ति चिह्न तथा 'आ' जैसे प्रत्यय 'सम्बन्ध तत्व' कहलाते हैं। इस प्रकार अर्थ तत्व तथा सम्बन्ध तत्व के योग से बना शब्द 'पद' कहलाता है।
'पद-विज्ञान' के अन्तर्गत उन विविध 'सम्बन्ध तत्वों' का अध्ययन होता है जो पद-निर्माण में सहायक होते हैं, विविध सम्बन्ध तत्व, उनके विभिन्न कार्य, उनका परस्पर संबन्ध आदि का विशद तथा वैज्ञानिक अध्ययन पद विज्ञान के अन्तर्गत होता है।
shabd aur pad mein antar
शब्द
एक या अधिक अक्षरों या वर्गों से बनी स्वतंत्र, सार्थक ध्वनि
उदाहरण-
  • राम
  • स्कूल
  • बुद्धिमान

शब्द के भेद

अविकारी
  • क्रिया विशेषण
  • स्मुच्चयबोधक
  • संबंधबोधक
  • विस्मयादिबोधक

विकारी
  • संज्ञा
  • सर्वनाम
  • क्रिया
  • विशेषण

पद
जब शब्द वाक्य में प्रयुक्त होते हैं, तब ये स्वतंत्र शब्द न रह कर लिंग, वचन, क्रिया, विशेषण, कारक आदि के नियमों से अनुशासित हो जाते हैं अर्थात व्याकरणिक नियमों से बंध जाते हैं-
उदाहरण
  • राम वनवास को गए।
  • आज स्कूल की छुट्टी है।
  • बुद्दिमान होने के साथ-साथ विवेक भी होना चाहिए।

पद के भेद
संज्ञा
सर्वनाम क्रिया
विशेषण
अव्यय (क्रिया विशेषण)

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