अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली क्या है? | adhyakshatmak shasan pranali kya hai

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अर्थ एवं परिभाषा

जहां संसदीय सरकार सत्ता के संयोजन के सिद्धान्त पर आधारित होती है, वहीं अध्यक्षयात्मक/अध्यक्षीय शासन प्रणाली शक्ति विभाजन सिद्धान्त पर आधारित है। अध्यक्षीय शासन प्रणाली का आधार शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त है। इसमें व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी एक दूसरे से पृथक व स्वतन्त्र रहकर अपने कार्य करते हैं। कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में ही निहित होती हैं जिनका प्रयोग वह स्वतन्त्रतापूर्वक करता है। राष्ट्रपति या उसके मंत्री व्यवस्थापिका के न तो सदस्य होते हैं और न उसकी कार्यवाहियों में भाग लेते हैं।
राष्ट्रपति का कार्यकाल भी निश्चित होता है। व्यवस्थापिका उसे अविश्वास प्रस्ताव द्वारा नहीं हटा सकती हैं। इसी प्रकार व्यवस्थापिका भी अपने गठन, कार्य तथा कार्यकाल की दृष्टि से कार्यपालिका से पृथक व स्वतंत्र होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका का अनुकरण करते हुए कई क्षेत्रों में, खासकर, लेटिन अमेरिकी देशों ने अपनी परिस्थितियों के अनुरूप इस शासन प्रणाली को अपनाया है। इनमें ब्राजील, अर्जनटाईना, चिली मैक्सिको तथा एशियाई देश, फिलीपिन्स, दक्षिण कोरिया आदि प्रमुख हैं।
adhyakshatmak shasan pranali kya hai
प्रो. गार्नर ने अध्यक्षीय सरकार की परिभाषा इस प्रकार की है- “यह वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका (मंत्रियों सहित राज्य का प्रधान) संवैधानिक रूप से अपने कार्यकाल के संबंध में और राजनीतिक नीतियों के संबंध में व्यवस्थापिका से स्वतंत्र होती है। इस प्रकार की प्रणाली में राज्य का प्रधान नाममात्र की कार्यपालिका नही होता, वरन् वास्तविक कार्यपालिका होती है और उन शक्तियों का वास्तव में प्रयोग करता है, जो संविधान व कानून के अनुसार उसको प्राप्त होती है।"

अध्यक्षीय शासन प्रणाली की विशेषताएं

अध्यक्षीय शासन प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।

राज्य के अध्यक्ष की स्थिति
राष्ट्रपति सरकार व राज्य दोनों का प्रधान अध्यक्षीय शासन में राष्ट्रपति राज्य व सरकार दोनों का ही प्रधान होता है। वह राष्ट्रीय नीति का निर्माण करता है। सेनाओं के संचालन का ओदश देता है। आपातस्थिति की घोषणा कर सकता है तथा देश में व्यवस्था बनाए रखने हेतु कानूनों के प्रवर्तन के लिए सभी आवश्यक कदम उठाता है। इस प्रकार ऐसे शासन में ससंदीय शासन की तरह दो कार्यपालिकाएं (नाममात्र की व वास्तविक) नहीं होती हैं।
संविधान द्वारा कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति को प्राप्त होती हैं, साथ ही उसकी यह शक्तियाँ वास्तविक भी होती हैं।

राष्ट्रपति का निश्चित कार्यकाल
अध्यक्षीय सरकार में राष्ट्रपति एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित किया जाता है। अमरीका में राष्ट्रपति का कार्यकाल चार वर्ष के लिए निश्चित है, इस अवधि से पहले व्यवस्थापिका उसे महाभियोग के अलावा अन्य किसी तरह से नहीं हटा सकती है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में महाभियोग का कार्य “हाऊस आफ रिप्रेजेंटेटिव“ (प्रतिनिधि सदन) से आरम्भ होता है तथा राष्ट्रपति अपना स्पष्टीकरण देता है। विवाद का निर्णय सीनेट में पूरे सदन के 2/3 बहुमत से होता है। अब तक केवल एक बार अमेरिका में सन् 1867 में राष्ट्रपति जानसन के विरूद्ध महाभियोग लगाया गया लेकिन सीनेट में यह प्रस्ताव एक मत से पास होने से रह गया और राष्ट्रपति को पद से नही हटाया जा सका।

राष्ट्रपति व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं
अध्यक्षीय शासन में राष्ट्रपति, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है तथा राष्ट्रपति(कार्यपालिका), व्यवस्थापिका को भंग नही कर सकता है। राष्ट्रपति तथा उसके मंत्री व्यवस्थापिका की कार्यवाहियों में भाग नहीं लेते। राष्ट्रपति व्यवस्थापिका में कोई महत्वपूर्ण भाषण देने हेतु जा सकता है अथवा वह अपना संदेश भेज सकता है जिसे व्यवस्थापिका स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। मंत्रीगण भी व्यवस्थापिका के सत्र में उपस्थित हो सकते है परन्तु मतदान का अधिकार नहीं होता। राष्ट्रपति या उसके मंत्री न तो व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं और न उन्हें अपने कार्यों के लिए व्यवस्थापिका के समर्थन पर निर्भर रहना पड़ता है, यानि व्यवस्थापिका भी कार्यपालिका को भंग नही कर सकती।

मंत्रीमण्डल का अभाव
अध्यक्षीय शासन में वैसा मंत्रीमण्डल नहीं होता, जैसा संसदीय शासन में होता है। राष्ट्रपति को सहायता व परामर्श देने के लिए कुछ सचिव होते हैं। इन सचिवों को सामूहिक नाम से 'राष्ट्रपति की कैबिनेट कह दिया जाता है। परन्तु सच्चे अर्थो में यह कैबिनेट नहीं है, न तों यह कैबिनेट एक इकाई के रूप में कार्य करती हैं, न वह विधायिका के प्रति उत्तरदायी है, न उसकी तानाशाही है। व्यवस्थापिका से मंत्रियों को कुछ लेना-देना नहीं है, राष्ट्रपति ही उनका 'स्वामी है।

शक्ति-पृथक्करण सिद्धान्त पर आधारित
अध्यक्षीय सरकार की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त पर आधारित है। सरकार के तीनों अंग एक दूसरे से पृथक व स्वतंत्र होते है। कार्यपालिका के सदस्य न तो व्यवस्थापिका के सदस्य होते है और न वे कानून निर्माण में भाग लेते हैं, इसी प्रकार व्यवस्थापिका केवल कानून बनाती है। वह राष्ट्रपति या उसके मंत्रियों से न तो प्रश्न पूछ सकती है और न अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पदच्युत कर सकती है।

संसदीय शासन में जिस प्रकार प्रधानमंत्री की महत्ता है वैसे ही अध्यक्षीय शासन में राष्ट्रपति की महत्ता होती है।

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के गुण

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

स्थायी एवं दृढ़ शासन
अध्यक्षीय शासन का सबसे महत्वपूर्ण गुण है-शासन में स्थायित्व। निश्चित कार्यकाल के कारण राष्ट्रपति अधिक आत्म-विश्वास के साथ नीतियों का निर्माण व उन पर अमल कर सकता है। इसका कार्यकाल चार वर्ष, दो बार से अधिक नही हो सकता है, यानि कार्यपालिका का भाग्य व्यवस्थापिका के परिवर्तनशील मत पर निर्भर नही होता है। अतः सरकार स्थिर नीति का पालन कर सकती है। उसे अपने कार्यों को पूरा करने के लिए व्यवस्थापिका की ओर ताकने की आवश्यकता नहीं होती है। अमरीका में कॉंग्रेस राष्ट्रपति के कार्यो में बहुत कम हस्तक्षेप कर सकती है।

अधिक कुशल शासन
शक्ति प्रथक्करण पर आधारित होने के कारण यह शासन संसदीय शासन की तुलना में अधिक कुशल होता है। इसका कारण बताते हुए मैरियट ने लिखा है कि “शासन की इस व्यवस्था में प्रशासन में वास्तविक रूप से कुशलता आती है क्योंकि मंत्रियों को हर समय व्यवस्थापिका में उपस्थित रहने में समय लगाना नहीं होता और व्यवस्थापन कार्य भी कुशलता से होता है, क्योंकि व्यवस्थापिका के सदस्यों के मस्तिष्क अपने विशिष्ट कार्य में ही लगे रहते हैं।"

दलबन्दी का अभाव
अध्यक्षीय शासन में दलबन्दी का उग्र व दूषित वातावरण वैसा नहीं रहता, जैसा संसदीय शासन में देखा जाता है। इस प्रणाली में कार्यपालिका (राष्ट्रपति) व व्यवस्थापिका के निर्वाचनों के समय ही राजनीतिक दल सक्रिय रहते हैं, हर समय नहीं क्योंकि बीच में राष्ट्रपति को हटाया नही जा सकता है। अनावश्यक विरोध भी नही होता है और न राष्ट्रपति का दल उसका अन्धानुकरण करता है। निर्वाचन की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति यदि चाहे तो अपने राजनीतिक दल से मुक्त होकर स्वतंत्र नीति पर चल सकता है। राजनीतिक दल प्रशासन पर अनुचित प्रभाव डालने में सक्षम नही हो पाते क्योंकि विरोधी दल के सामने ऐसा कोई लालच नहीं होता कि सदन के ज्यादा सदस्य यदि उसकी तरफ आ जाएँ तो वर्तमान सरकार टूट जायेगी और उसके स्थान पर दूसरी सरकार कायम हो सकेगी। यही कारण है कि दलबंदी की भावना जितनी संसदात्मक प्रणाली मे है, उतनी अध्यक्षीय प्रणाली में नही।

संकटकाल के लिए उपयुक्त
यह शासन संकटकाल के लिए सर्वाधिक उपयुक्त शासन है। कारण यह है कि कार्यपालिका शक्तियाँ सैद्धान्तिक व व्यावहारिक दोनों दृष्टियों में राष्ट्रपति में ही निहित होती हैं। अतः किसी संकट के समय में वह अकेला निर्णय लेने में समर्थ है।

राष्ट्रीय एकता की सुदृढ़ता
अध्यक्षीय शासन का एक गुण यह भी है कि राष्ट्रीय एकता सुदृढ़ रहती है। राष्ट्रपति पूरे देश का नेता है, एक दल का नही। इसलिए भी उससे बुद्धिपूर्ण न्यायोचित और राष्ट्रहित की अपेक्षा लोगों को रहती है।

निरंकुशता का अभाव
इस शासन प्रणाली में शक्ति-पृथक्करण होता है। अतः शक्तियाँ एक स्थान पर केन्द्रित न होने के कारण जनता के अधिकारों व स्वतंत्रताओं को संसदीय शासन की अपेक्षा कम खतरा रहता है। अध्यक्षीय शासन में जैसा कि अमरीका में है अवरोध और सन्तुलन की प्रणाली के द्वारा, एक सरकार का अंग दूसरे अंग को नियंत्रित करता रहता है। जैसे राष्ट्रपति द्वारा की गई सभी नियुक्तियाँ व विदेशों के साथ संधियाँ, सीनेट द्वारा पुष्ट की जाती हैं। कांग्रेस द्वारा निमित कानून तथा कार्यपालिका के आदेश न्यायालय द्वारा इस आधार पर रदद् किए जा सकते हैं कि वे संविधान के विरूद्ध हैं। साथ ही राष्ट्रपति को भी इतनी व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं कि व्यवस्थापिका और न्यायपालिका भी तानाशाह बनने का स्वप्न नहीं देख सकते।

योग्य और अनुभवी व्यक्तियों को मंत्री नियुक्त किया जा सकता है
अध्यक्षीय शासन में राष्ट्रपति मंत्रियों को योग्यता व अनुभव के आधार पर नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र है। राष्ट्रपति निकसन तथा जेराल्ड फोर्ड के शासनकाल में हेनरी कीसिंगर विदेश मंत्री बनाये गये जो पहले हारवर्ड विश्व विद्यालय में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रोफेसर थे। परन्तु संसदीय सरकार में प्रधानमंत्री के ऊपर कई प्रकार के बन्धन होते हैं और वह मंत्रियों की नियुक्ति केवल योग्यता व अनुभव के आधार पर ही नही करता है।

बहुदलीय प्रणाली वाले देशों के लिए उपयुक्त
उन देशों के लिए जहाँ बहुदलीय प्रणाली है, अध्यक्षीय शासन अधिक लाभकारी हो सकता है, कारण स्पष्ट है कि राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निश्चित समय के लिए हो जायेगा, संसदीय सरकार की तरह मिले-जुले मंत्रीमण्डलों के बदलने का भय समाप्त हो जायेगा।

विशाल राष्ट्रों के लिए उपयुक्त
विशाल और विभिन्नतापूर्ण राष्ट्रों के लिए अध्यक्षीय शासन अच्छा है। जिस देश में भाषा, जाति व संस्कृति की विभिन्नता हैं, उसमें संसदीय शासन की तुलना में अध्यक्षीय शासन अधिक सफल हो सकता है।

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के दोष

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के दोष निम्नलिखित हैं।

अनुत्तरदायी एवं निरंकुश शासन
अध्यक्षीय शासन का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित होने के कारण उसके निरंकुश होने का खतरा बना रहता है। इसीलिए आलोचक इस प्रणाली को “निरंकुश, गैर जिम्मेदार एवं खतरनाक' कहते हैं। उसे महाभियोग की अत्यधिक कठिन प्रक्रिया होने के कारण आसानी से नहीं हटाया जा सकता। अतः वह एक अधिनायक की तरह शासन कर सकता है। बेजहॉट ने कहा है कि “आपने अपनी सरकार (अध्यक्षीय) के संबंध में अग्रिम निर्णय कर दिया है, भले ही वह आपको पसन्द है अथवा नहीं, वह आपकी इच्छा की है या नहीं, आपको कानूनन उसे रखना ही होगा।"

सहयोग का अभाव
अध्यक्षीय शासन में शक्ति पृथक्करण के कारण सरकार के विभिन्न अंगो में सहयोग नहीं रह पाता है, प्रत्येक अंग एक दूसरे से ईर्ष्या रखता है व संघर्ष के लिए तैयार रहता है। राष्ट्रपति न तो व्यवस्थापिका की समस्या को समझ पाता है और न व्यवस्थापिका राष्ट्रपति की समस्या को। कभी-कभी इन कारणों से शासन में मतभेद व गतिरोध पैदा हो जाता है। विशेष रूप से उस समय जबकि राष्ट्रपति के दल का व्यवस्थापिका में बहुमत न हो। वास्तव में राष्ट्रपति की शक्तियाँ चाहे जितनी व्यापक हो, परन्तु कांग्रेस यदि वित्तीय मांगों का अनुमोदन न करें तो कार्यपालिका विषम हो जाती है। ऐसा कई बार हुआ है।

कठोर शासन प्रणाली
अध्यक्षीय शासन में लचीलेपन का गुण नहीं होता है जोकि संसदीय शासन में होता है। इसके तीन कारण हैं, प्रथम, शासन संबंधी सभी बाते संविधान में निश्चित होती हैं। दूसरे, जब कोई संवैधानिक विवाद पैदा होता है तो न्यायालय की शरण ली जाती है, जिसका रवैया कठोर ही रहता है। तीसरे, संविधान कठोर होता है, अतः आवश्यकतानुसार संशोधन नही किये जा सकते हैं। यह सब बातें अमेरिका में पायी जाती हैं।

उत्तरदायित्व के निर्धारण की समस्या
अध्यक्षीय शासन में जब कोई गलत कार्य होता है, तो कार्यपालिका व व्यवस्थापिका इसका उत्तरदायित्व एक दूसरे पर थोपने का प्रयास करते है। संसदीय शासन की तरह यह उत्तरदायित्व कार्यपालिका के पास निश्चित नहीं होता है। चूंकि राजसत्ता बॅट जाती है। अतः यह पता नही चलता कि शासन की बुराई के लिए कार्यपालिका दोषी है अथवा विधानमंडल। राष्ट्रपति को शिकायत रहती है कि जिन कानूनों को वह जरूरी समझता है, उन्हे कांग्रेस या विधानमंडल पारित नहीं कर रहा है। दूसरी ओर विधानमंडल के नेता, यह कहते है कि कानूनों को ईमानदारी के साथ लागू नहीं किया जा रहा है।

वैदेशिक नीति की दुर्बलता
अमरीकन अध्यक्षीय शासन के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति स्वतंत्र व सुदृढ़ वैदेशिक नीति पर नहीं चल सकता, क्योंकि व्यवस्थापिका उसके कार्यो में बांधा डालती है। 1919 में राष्ट्रपति विलसन द्वारा की गई ‘वार्साय की संधि को अमरीकन सीनेट ने ठुकरा दिया था।

शक्ति-पृथक्करण की अव्यावहारिकता
अध्यक्षीय शासन शक्ति-पृथक्करण के सिद्धान्त पर आधारित है, परन्तु यह सिद्धान्त अव्यावहारिक है। शासन के कार्यों का पूर्ण पृथक्करण न तो सम्भव है और न वॉछनीय ही समस्त शासन मनुष्य के शरीर के समान है जिसके कई अंग कर देने से वह बेकार हो जाता है। शक्ति पृथक्करण के कारण कभी-कभी सरकार के अंगों में अनावश्यक मतभेद व गतिरोध होता है, जिससे प्रशासन निष्क्रिय हो जाता है।

एक व्यक्ति पर उत्तरदायित्व
अध्यक्षीय शासन का एक दोष यह भी है कि शासन का पूरा भार एक ही व्यक्ति राष्ट्रपति पर होता है। अतः शासन की सफलता या विफलता उसी के गुणों व अवगुणों पर निर्भर रहती है।

अत्यधिक खर्चीली
इस व्यवस्था में चुनाव बहुत खर्चीला होता है तथा आम-चुनावों के समय राजनीतिक दल पूर्ण रूप से सक्रिय होते हैं। वहीं सामान्य काल में महत्वहीन रहते हैं और राजनीतिक चेतना को प्रदीप्त करने का महत्वपूर्ण कार्य नही कर पाते।

संसदात्मक व अध्यक्षात्मक सरकारों में अंतर

  1. संसदीय सरकार का आधार शक्तियों का संयोजन है, जबकि अध्यक्षीय सरकार का आधार है- शक्ति पृथक्करण।
  2. संसदीय सरकार में राज्य का प्रधान (राजा या राष्ट्रपति) नाममात्र का होता है। प्रधानमंत्री सहित मंत्रीपरिषद् वास्तविक कार्यपालिका होती है , अध्यक्षीय शासन में राष्ट्रपति ही राज्य व सरकार दोनों का प्रधान होता है। अतः एक ही कार्यपालिका होती है।
  3. संसदीय सरकार में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका से स्वतंत्र नही रहती, अध्यक्षीय शासन में वह व्यवस्थापिका से स्वतंत्र रहती है। अध्यक्षीय शासन में व्यवस्थापिका व कार्यपालिका दोनों के कार्यक्षेत्र अलग-अलग रहते हैं।
  4. संसदीय शासन में कार्यपालिका तभी तक अपने पद पर है जब तक कि उसे संसद (प्रायः निचले) मे बहुमत का समर्थन प्राप्त है, परन्तु अध्यक्षीय शासन में कार्यपालिका (राष्ट्रपति) का कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित होता है। इससे पहले केवल महाभियोग की कार्यवाही से ही उसे पदच्चुत किया जा सकता है।
  5. संसदीय शासन में मंत्रिगण व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी रहते हैं, परन्तु अध्यक्षीय शासन में केवल राष्ट्रपति के प्रति।
  6. संसदीय शासन में मंत्रिगण आवश्यक रूप से व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं और उनकी कार्यवाहियों में भाग लेते हैं। इतना ही नही वे व्यवस्थापिका का मार्ग-निर्देशन व नेतृत्व भी करते हैं। अध्यक्षीय शासन में मंत्री राष्ट्रपति के अधीनस्थ होते हैं।
  7. संसदीय सरकार में प्रधानमंत्री और अध्यक्षीय शासन में राष्ट्रपति देश का नेतृत्व करता है।

सारांश

संसदीय और अध्यक्षीय शासन व्यवस्थाएं अपनी विशेषताओं के साथ-साथ अपने सबल तथा दुर्बल पक्षों को भी रखती हैं। इनमें से किसी शासन की सफलता किसी देश की जनता के स्वभाव व उसकी राजनीतिक परिस्थितियों पर निर्भर करती है। अमेरिका में जहाँ अध्यक्षीय शासन प्रणाली सफल है, वहीं ब्रिटेन में संसदीय शासन प्रणाली बहुत सफल है।
आज भारत के संदर्भ में कहा जा रहा है कि उसे अध्यक्षात्मक प्रणाली स्वीकार कर लेनी चाहिए। वस्तुतः तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो संसदीय शासन अधिक ठीक है। इसके कई कारण है- यह उत्तरदायी शासन है, सरकार के विभिन्न अंगो के बीच संघर्ष की सम्भावना नहीं रहती है। संसदीय शासन प्रणाली प्रजातंत्र के भी अधिक निकट है।

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