राजभाषा आयोग | rajbhasha aayog

राजभाषा आयोग

संविधान के अनुच्छेद-344 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा के विषय में सलाह देने के लिए एक आयोग और एक संसदीय समिति बनाने का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रपति द्वारा संविधान लागू होने से 5 वर्ष की समाप्ति पर और उसके बाद प्रत्येक 10 वर्ष की समाप्ति पर एक राजभाषा आयोग गठित किया जाएगा। राजभाषा आयोग में एक अध्यक्ष तथा 8वीं अनुसूची में शामिल विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य शामिल होंगे, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। इस प्रकार राजभाषा आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त 22 अन्य सदस्य होते हैं।
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राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा जून, 1955 में बाल गंगाधर खेर (बी. जी. खेर) की अध्यक्षता में प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया गया।

आयोग के ये कर्त्तव्य सुनिश्चित किए गए कि वे निम्न विषयों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को संस्तुति करे-
  • शासकीय प्रयोजनों हेतु हिन्दी का अधिक-से-अधिक प्रयोग
  • शासकीय प्रयोजनों हेतु अंग्रेजी के प्रयोग पर निर्बंधन
  • उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में प्रयोग की जाने वाली भाषा
  • प्रयोग किए जाने वाले अंकों का रूप
  • संघ की राजभाषा तथा संघ एवं किसी राज्य के बीच अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा।
आयोग से यह अपेक्षा की गई कि अपनी सिफारिश करने में उनके द्वारा भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बंध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के लोगों के न्यायसंगत दावों और हितों का समुचित ध्यान रखा जाएगा।

संसदीय समिति

संविधान के अनुच्छेद-344 (4) के अंतर्गत राजभाषा आयोग की अनुशंसाओं पर विचार करने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) का गठन किया जाता है।
इस समिति में 30 सदस्य होते हैं, जिनमें 20 लोकसभा तथा 10 राज्य सभा के सदस्य होते हैं। इनका चयन लोकसभा सदस्यों तथा राज्यसभा सदस्यों द्वारा एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से किया जाता है।
इस समिति के निम्नलिखित कर्त्तव्य निर्धारित किए गए-
  • वह राजभाषा आयोग की संस्तुतियों की परीक्षा करे
  • राष्ट्रपति को उन पर अपनी राय के बारे में प्रतिवेदन दे।
  1. समिति का यह उत्तरदायित्व होता है कि, वह केन्द्र के प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए हिंदी के प्रयोग की दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा करे। इसके बाद वह राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट सौंपे, जिनमें उसकी अनुशंसाएँ हों। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाता है और सभी राज्य सरकारों को भी भेजता है।
  2. राष्ट्रपति, रिपोर्ट पर विचार के उपरांत और इस सम्बंध में राज्य सरकारों के विचार जानने के बाद पूरी रिपोर्ट या उसके कुछ अंशों पर निर्देश जारी कर सकते हैं।
  3. प्रथम राजभाषा संयुक्त समिति वर्ष-1957 में पंडित गोविन्द बल्लभ पंत की अध्यक्षता में गठित की गई थी।
  4. इस समिति ने फरवरी, 1959 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, जिसके अंतर्गत प्रथम राजभाषा आयोग की प्रमुख सिफारिशों को मान लिया गया। इनमें हिन्दी को प्रमुख राजभाषा और अंग्रेजी को केन्द्रीय राजभाषा के रूप में बनाए रखने तथा वैज्ञानिक, प्रशासनिक एवं कानून सम्बंधी हिन्दी शब्दावली के विकास और अंग्रेजी कृतियों का हिन्दी अनुवाद करने की अनुशंसाएँ की गई थीं।
राष्ट्रपति द्वारा उस पर जरूरी निर्देश जारी किया जा सकता है। अनुच्छेद 349 के अनुसार भाषा सम्बन्धी किसी विधेयक या संशोधन की अनुमति तभी दी जाएगी, जब इस समिति की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति विचार कर लिया जाए।

प्रथम राजभाषा आयोग

प्रथम राजभाषा आयोग का गठन सन् 1955 में बी. जी. खेर की अध्यक्षता में किया गया, जिसने 1956 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट पर संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की समिति द्वारा विचार किया गया एवं उसकी राय राष्ट्रपति के पास भेजी गई।
27 अप्रैल, 1960 को राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि वैज्ञानिक, प्रशासनिक एवं कानूनी साहित्य सम्बन्धी शब्दावली तैयार करने हेतु तथा अंग्रेजी कृतियों का हिन्दी में अनुवाद करने के लिए एक स्थायी आयोग का गठन किया जाए। इस आदेश के अनुसार दो आयोगों का गठन किया गया
  • (i) एक आयोग का गठन तत्कालीन शिक्षा मन्त्रालय के अधीन हिन्दी पर्याय तैयार करने हेतु एवं
  • (ii) दूसरे का गठन विधि मन्त्रालय के अधीन किया गया।
इस आदेश में यह व्यवस्था की गई कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के माध्यम के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग चलता रहे तथा बाद में वैकल्पिक माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रचलन शुरू किया जाए। संसदीय विधान कार्य अंग्रेजी में किया जाता रहेगा, परन्तु उसके अधिकृत हिन्दी अनुवाद की व्यवस्था की जाएगी।
प्रथम राजभाषा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तथा अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत संसद द्वारा राजभाषा अधिनियम, 1963 बनाया गया। इस अधिनियम के अनुसार 15 वर्षों की अवधि के उपरान्त भी अंग्रेजी का प्रयोग हिन्दी के साथ-साथ संघ के सभी प्रयोजनों तथा संसद के कार्य-निष्पादन हेतु किया जा सकता है।

प्रथम राजभाषा आयोग से निम्नलिखित विषयों पर अनुशंसाएँ माँगी गई थीं
  • संघ के राजकीय कार्यों के लिए हिन्दी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग करने के लिए सुझाव देना।
  • राजकीय कार्यों में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को कम करने अथवा उस पर कुछ निर्बंधन के लिए आवश्यक सुझाव देना।
  • उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में प्रयोग की जाने वाली भाषा के विषय में सुझाव देना।
  • संघ सरकार के एक अथवा अधिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंकों के स्वरूप के विषय में सुझाव देना।
  • संघ और किसी राज्य अथवा एक राज्य तथा दूसरे राज्य के बीच पत्राचार की भाषा तथा उसके प्रयोग के विषय में सुझाव देना।
  • राजभाषा से सम्बंधित अन्य विषयों पर सुझाव देना, जो राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा आयोग को सौंपे जाएँ।
  • राजभाषा आयोग से यह अपेक्षा की गई थी कि वह अपनी अनुसंशाएँ राष्ट्रपति को देते समय भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रगति तथा गैर हिन्दी-भाषी क्षेत्रों के लोगों के न्याय संगत दावों और हितों का पूरा ध्यान रखेगा प्रथम राजभाषा आयोग ने वर्ष 1956 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी थी।

स्थायी राजभाषा आयोग का गठन

प्रथम राजभाषा आयोग की सिफारिश एवं राजभाषा संयुक्त संसदीय समिति के प्रतिवेदन के आधार पर वर्ष 1961 में स्थायी राजभाषा आयोग का गठन किया गया। विधि शब्दावली के विकास केन्द्रीय अधिनियमों के हिन्दी और अन्य भाषाओं में प्रकाशन के लिए राजभाषा (विधायी) आयोग का गठन किया गया था, जिसे वर्ष 1976 में समाप्त कर दिया गया। इसके कार्यों को भारत सरकार के विधायी विभाग को सौंप दिया गया। हिन्दी शब्दावली के विकास के लिए शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन किया गया। यह आयोग वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन कार्य कर रहा है।

विधानमण्डलों की भाषा
संविधान के अनुच्छेद 120 में संसद की अधिकृत भाषा सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार संसद का कार्य हिन्दी अथवा अंग्रेजी में किया जाएगा, परन्तु सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा किसी सदस्य को, जो अंग्रेजी अथवा हिन्दी में पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुज्ञा दे सकता है। इस प्रयोजन हेतु संसद के दोनों सदनों में प्रमुख प्रादेशिक भाषाओं में किए गए भाषाणों का साथ-साथ भाषान्तरण हिन्दी अथवा अंग्रेजी में किए जाने का प्रावधान किया गया हैं।
अनुच्छेद 210 के अन्तर्गत राज्य विधानमण्डलों के लिए भाषा सम्बन्धी समान प्रावधान किए गए हैं।

प्रादेशिक भाषाएँ एवं सम्पर्क भाषा
अनुच्छेद 345 के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य के लिए राजभाषा का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार किसी राज्य विधानमण्डल द्वारा, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार किया जा सकता है। अनुच्छेद 346 के अनुसार एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच अथवा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा, संघ की राजभाषा के रूप में प्रयोग के लिए प्राधिकृत भाषा होगी।
राजभाषा अधिनियम, 1963 के तहत् यह प्रावधान किया गया कि संघ तथा अहिन्दी भाषी राज्यों के मध्य पत्रादि के प्रयोजनों हेतु अंग्रेजी का ही प्रयोग किया जाएगा तथा यदि हिन्दी अथवा अहिन्दी भाषी राज्यों के मध्य पत्रादि के लिए हिन्दी का प्रयोग किया जाए तो ऐसे पत्रादि के साथ उसका अंग्रेजी अनुवाद भी किया जाएगा।
अनुच्छेद 347 के तहत् किसी राज्य की जनसंख्या के पर्याप्त भाग द्वारा माँग किए जाने पर तथा राष्ट्रपति का समाधान हो जाने पर उसके द्वारा आदेश दिया जा सकता है कि उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को भी उस राज्य मे सर्वत्र अथवा किसी भाग में सरकारी मान्यता प्रदान की जाए।

न्यायालय की भाषा
संविधान के अनुच्छेद 348 के द्वारा उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में एवं अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करें, तब तक उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होगी तथा, संघ एवं राज्यों के सभी विधेयकों, संशोधनों, अधिनियमों, अध्यादेशों, आदेशों, नियमों, विनियमों तथा उपनियमों के प्राधिकृत पाठ भी केवल अंग्रेजी में ही होंगे। परन्तु किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालयों की कार्यवाहियों में हिन्दी भाषा के प्रयोग को प्राधिकृत किया जा सकता है, लेकिन निर्णय, डिक्रियाँ तथा आदेश अनिवार्य रूप से अंग्रेजी में ही दिए जाते रहेंगे।
राजभाषा अधिनियम, 1963 में प्रावधान है कि राष्ट्रपति के प्राधिकार के अधीन प्रकाशित अधिनियमों का हिन्दी अनुवाद अनिवार्य रूप से किय जाएगा।

लोक शिकायतों की भाषा
अनुच्छेद 350 के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी शिकायत दूर कराने के उद्देश्य से संघ अथवा राज्य के किसी प्राधिकारी के समक्ष, संघ अथवा राज्य में प्रयुक्त होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन कर सकता है, तथा कोई भी सरकारी विभाग, एजेन्सी अथवा अधिकारी अभ्यावेदन को लेने से इस आधार पर इनकार नहीं कर सकता कि वह राजभाषा में नहीं है।

हिन्दी भाषा का विकास
संविधान के अनुच्छेद 351 के अधीन संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाष का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और 8वीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक अथवा वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भण्डार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि करे।

राजभाषा विभाग

राजभाषा से सम्बंधित विधिक एवं संवैधानिक उपबंधों के क्रियान्वयन हेतु गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1975 में राजभाषा विभाग (Department of Official Language) का गठन किया गया था।

महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद
  • अनुच्छेद 343-संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी होगी।
  • अनुच्छेद 344-राजभाषा के सम्बन्ध में आयोग एवं संसदीय समिति का गठन।
  • अनुच्छेद 345-राज्य की राजभाषा अथवा राजभाषाओं के सम्बन्ध में।
  • अनुच्छेद 348-न्यायालय की भाषा के सम्बन्ध में।
  • अनुच्छेद 351-हिन्दी भाषा का विकास संघ का कर्त्तव्य है।

राजभाषा से संबंधित तथ्य

  • संविधान के भाग- 17 के अनुच्छेद (343-351) में राजभाषा से संबंधित प्रावधान हैं।
  • अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।
  • हिन्दी भाषा भारत की कुल जनसंख्या के 46% भाग का प्रतिनिधित्व करती है।
  • संविधान के मूल भाग में केवल 14 भाषाओं को ही राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • 92 वां संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा 8 वीं अनुसूची में 4 और भाषाओं को (मैथली, संथाली, बोडो और डोगरी) जोड़ दिया गया जिससे भाषाओं की संख्या 22 हो गई।
  • 22 राजभाषाओं को बोलने वाले लोगों की संख्या भारत की कुल जनसंख्या का 91% है।
  • अंग्रेजी भारत की सहायक राजभाषा है।
  • मिजोरम, नागालैंड तथा मेद्यालय की राजभाषा अंग्रेजी है।
  • राजभाषा आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति के आदेश द्वारा होती है।
  • प्रथम राजभाषा आयोग का गठन 1955 में श्री बी.जी. खेर की अध्यक्षता में किया गया।

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