आदेश की एकता - अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, आवश्यकता, लाभ | aadesh ki ekta

अर्थ एवं परिभाषा

आदेश की एकता का शाब्दिक अर्थ है कि एक आदेश का होना अर्थात् एक व्यक्ति-एक स्वामी । जैसा कि साइमन ने कहा है कि आदेश की एकता दो प्राधिकारी आदेशों के परस्पर टकराव की स्थिति में एक निश्चित व्यक्ति का निर्धारण करना है जिसकी कि अधीनस्थ आज्ञा मानें।
aadesh-ki-ekta
संगठन में यदि किसी कर्मचारी को दो परस्पर विरोधी आदेश प्राप्त होंगे तो उसके सम्मुख भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी जो अन्ततः कार्यों में अकुशलता को उत्पन्न करेगी।
आदेशों का स्रोत एक होने के कारण इसे आदेश की एकता का सिद्धान्त कहते हैं।
  • हेनरी फेयोल "यह वह सिद्धान्त है जो यह मानता है कि किसी कर्मचारी को केवल एक उच्चाधिकारी द्वारा ही आदेश दिये जाने चाहिए।'
  • फिफनर और प्रेस्थस "आदेश की एकता की अवधारणा का तात्पर्य यह है कि किसी संगठन के प्रत्येक सदस्य को एक और केवल एक नेता के प्रति ही उत्तरदायी होना चाहिये।
इन परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्टतः कहा जा सकता है कि आदेश की एकता का सिद्धान्त निर्धारण करता है, कि संगठन के प्रत्येक स्तर पर किसी भी कर्मचारी को आदेश केवल एक ही अधिकारी से प्राप्त होने चाहिए और उसी के प्रति कर्मचारी उत्तरदायी होना चाहिए।

विशेषताएँ

  • यह सिद्धान्त पदसोपान व्यवस्था से निकट रूप से जुड़ा हुआ है।
  • दो परस्पर विरोधाभासी आदेश की स्थिति में केवल एक निर्धारित व्यक्ति के आदेश की अनुपालना पर जोर देता है।
  • यह सिद्धान्त प्रत्येक कर्मचारी की अपने उच्चाधिकारी के प्रति जवाबदेयता का निर्धारण करता है।
  • उच्च-अधीनस्थ सम्बन्धों की प्रणाली में प्रभावपूर्ण नियंत्रण स्थापित करता है।

आदेश की एकता की आवश्यकता एवं लाभ

जैसा कि हेनरी फेयोल ने इस सिद्धान्त की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि दो सिर वाला जीव मानव एवं पशु जगत में अशुभ माना जाता है तथा वह जीवन जीने में कठिनाई महसूस करता है। ठीक उसी तरह आदेश की एकता के सिद्धान्त के उल्लंघन से सत्ता निर्बल हो जाती है, अनुशासन संकट में पड़ जाता है और संगठन के स्थायित्व को खतरा उत्पन्न हो जाता है। इस सिद्धान्त से संगठन को अनेक लाभ होते हैं।
जो इस प्रकार हैं-
  • यह सिद्धान्त प्रत्येक संगठन में सत्ता के सूत्रों का स्पष्टीकरण करता है अर्थात् आदेश कौन देगा, अनुपालना कौन करेगा तथा कौन कर्मचारी किसके प्रति जवाबदेय होगा आदि प्रश्नों का निर्धारण करता है।
  • यह सिद्धान्त, एक व्यक्ति-एक स्वामी के सिद्धान्त को संगठन में प्रभावी बनाता है जिससे संगठन में अनुशासन एवं नियंत्रण की व्यवस्थित पद्धति स्थापित होती है।
  • यह संगठन में परस्पर उत्पन्न होने वाले अन्तर्विरोधों को कम कर सकता है।
  • संगठन के उद्देश्य में एकरूपता की प्राप्ति आदेश की एकता से ही सम्भव है।
  • यह सिद्धान्त, संगठन में कार्यकुशलता, मितव्ययता तथा दक्षता लाता है।
  • यह सिद्धान्त, इस ब्रिटिश कहावत का समर्थन करता है कि दो अच्छे सेनापतियों के बजाय एक बुरा सेनापति अच्छा होता है, जिससे संगठन में कर्मचारियों को उलझन, भ्रम, आशंका तथा अस्पष्टता से मुक्ति मिलती है।
  • यह सिद्धान्त, संगठन में समन्वय के कार्य को सुविधाजनक बनाता है तथा संगठन की एकजुटता में सहायक है।

कमियाँ एवं आलोचना

  • आदेश की एकता का सिद्धान्त विशिष्टीकरण का विरोधी है, जैसा कि साइमन ने स्पष्ट किया है कि आदेश की एकता और विशिष्टीकरण दो भिन्न दशाएँ हैं।
  • यह सिद्धान्त, संगठन में सैनिक संगठन की चौधराहट पैदा करता है, जिससे उच्चाधिकारी अधीनस्थों पर बिना सोचे समझे आदेश चलाते हैं।
  • आदेश की एकता का सिद्धान्त व्यावहारिक नहीं है तथा सार्वभौमिक रूप से सभी जगह समान रूप से लागू भी नहीं होता है।
  • सहायक अभिकरणों के विकास ने इस सिद्धान्त की खोखली उपयोगिता को समाप्त कर दिया है।
  • यह सिद्धान्त आदेश के कठोर अनुपालन पर जोर देता है जिससे संगठन में कठोरता आती है।
  • यह सिद्धान्त, संगठन के कार्मिकों में पहलपन की भावनाओं का विकास नहीं करता तथा संगठन को लकीर का फकीर और रूढ़िवादी बनाता है।
  • आदेश की एकता में व्याप्त कमियों को उजागर करते हुए सैकलर-हड़सन कहते हैं, “एक व्यक्ति एक अधिकारी की पुरानी अवधारणा वर्तमान जटिल शासकीय परिस्थितियों में सत्य नहीं है। आदेश की सरल सीधी रेखा के बाहर अनेक अन्तर् सम्बन्ध विद्यमान हैं।"

आदेश की एकता को प्रभावित करने वाले तत्त्व

20 वीं शताब्दी के मध्य तक आदेश की एकता का सिद्धान्त एक पवित्र सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया जाता था, किन्तु इस सदी के उत्तरार्द्ध में विकसित अनेक तत्वों ने इस सिद्धान्त को क्रान्तिकारी रूप से प्रभावित किया है।
ये तत्व निम्नलिखित हैं-
  • सहायक अभिकरणों का विकास एवं उसके बढ़ते प्रचलन ने इस सिद्धान्त की उपयोगिता समाप्त कर दी है।
  • विशेषज्ञ अभिकरणों की बढ़ती आवश्यकता एवं कार्यों की पनपती अनवरत् तकनीकी प्रवृत्ति ने आदेश की एकता के स्थान पर विशिष्टीकरण को बढ़ावा दिया है।
  • संगठनों के पर्यावरणीय सरोकारों एवं बाह्य सम्बन्धों के बढ़ते प्रभाव ने आदेश की एकता को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित किया है।
  • संगठनों में बहुल कार्यपालिका के विकसित होते अनेक स्वरूपों ने इसकी प्रासंगिकता समाप्त कर दी है। 
  • विकास प्रशासन की अवधारणा ने इसकी अनुपयुक्तता को सिद्ध किया है क्योंकि विकास एक बहुआयामी अवधारणा है जो अनेक स्रोतों से आदेश स्वीकार करने पर जोर देता है।

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