बक्सर का युद्ध | baksar ka yuddh

बक्सर का युद्ध

प्लासी का युद्ध बंगाल में कंम्पनी-शासन का पहला चरण था। इसका दूसरा चरण बक्सर का युद्ध साबित हुआ। बक्सर के युद्ध के परिणाम पहले के युद्ध की अपेक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। इस युद्ध ने बंगाल में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना पूर्णरूपेण कर दी।
इंग्लैंड से आई ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्लासी की लड़ाई में बंगाल के नवाब को हराकर भारत में अपने राजनैतिक प्रभुत्व की शुरुआत की। नये नवाब मीर जाफर और कंपनी दोनों के संबंध अधिक समय तक नहीं चल पाए तब मीर जाफ़र के जमाता मीर कासिम ने अवसर का फायदा उठाया और अंग्रेजों की वित्तीय कठिनाइयों में सहायता देने के वादे के साथ बंगाल के नवाब की गद्दी प्राप्त कर ली।
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मीर कासिम योग्य शासक था वह अंग्रेजों का कठपुतली शासक बनने को तैयार नहीं हुआ और आंतरिक व्यापार पर लगे करो को लेकर उसका अंग्रेजों से झगड़ा हो गया।
प्लासी के पश्चात् मीर जाफर बंगाल का नवाब बनाया गया जिसने 1757-60 ई. तक बंगाल में शासन किया। इसके समय राजकोष रिक्त हो गया, प्रशासनिक अव्यवस्था फैली थी। दूसरी तरफ मुगल शहजादे अली गौहर का बंगाल पर आक्रमण का अंदेशा था और मीरजाफर अंग्रेजों पर पूरी तरह निर्भर था। कंपनी की किस्तों का भुगतान न कर पाने की स्थिति में नवाब को बर्दवान, नादिया, हुगली के क्षेत्रों का राजस्व कंपनी को सौंपना पड़ा, परन्तु फिर भी अंग्रेजों की आवश्यकता पूरी नहीं हो पा रही थी। अतः अंग्रेज मीरजाफर के स्थान पर किसी अन्य कठपुतली नवाब को बैठाना चाह रहे थे। यह मौका उन्हें 1760 ई. में मिला जब उसके पुत्र मीरन की मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकार का षड्यंत्र होने लगा। अंग्रेजों ने मीरजाफर को गद्दी छोड़ने के लिए बाध्य किया और उसके दामाद मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाया। इसे 1760 ई. की 'रक्तहीन क्रांति' का नाम दिया गया। किन्तु इसे क्रांति कहना उचित नहीं है क्योंकि सर्वप्रथम तो इसमें बंगाल की जनता की कोई भूमिका नहीं थी। दूसरी बात, राजनीतिक क्षेत्र में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ।
एक कठपुतली के बदले दूसरे कठपुतली नवाब की नियुक्ति की गई और बंगाल की वास्तविक शक्ति तो उसी के पास रही जिसके पास पहले थी और वह शक्ति थी अंग्रेज। मीरकासिम ने कंपनी को बर्दवान, मिदनापुर, चटगांव के क्षेत्र दिए साथ ही एक बड़ी धनराशि दी। इस तरह उसने अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति मान ली। वस्तुतः मीरकासिम एक कुशल और महत्त्वाकांक्षी सेनानायक था। उसने बंगाल के आर्थिक और प्रशासनिक सुदृढीकरण का प्रयास किया। सेना को प्रशिक्षित करने के लिए फ्रांसीसियों की नियुक्ति की। अंग्रेजी प्रभाव से मुक्त होने के लिए राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित की। अंग्रेजी संरक्षण प्राप्त अनुशासनहीन जमींदार रामनारायण के विरूद्ध भी कासिम ने दमनात्मक कार्रवाई की। फलतः अंग्रेजों और मीरकासिम के संबंध कटु होते चले गए। अंग्रेज व्यापारी अपने दस्तक का दुरूपयोग करते थे। इससे नवाब को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा था। अन्ततः मीरकासिम ने समस्त आंतरिक व्यापार को करों से मुक्त कर दिया। इस कदम से अंग्रेज अत्यधिक क्रोधित हुए क्योंकि यह उनके विशिष्ट अधिकारों पर कुठाराघात था। अत: मीरकासिम एवं अंग्रेजों के मध्य 1763 में संघर्ष छिड़ गया। नवाब भाग कर अवध पहुंचा, जहाँ अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं मुगल सम्राट शाह आलम II के साथ कंपनी के विरूद्ध गठबंधन किया।

बक्सर के युद्ध का प्रारंभ और घटनाएं

पटना से भागकर मीरकासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास पहुँचा। उस समय मुगल सम्राट् शाहआलम भी वहीं था। मीरकासिक ने इन दोनों से सहायता की माँग की। मीरकासिक ने बुंदेलखंड के विद्रोहियों को दबाया। उसने नवाब वजीर को सैनिक खर्च देने का भी वादा किया। फलतः, वह मीरकासिम का साथ देने को तैयार हो गया। तीनों की सम्मिलित शक्ति से भयभीत होकर अंग्रेजों ने अवध के नवाब को अपने पक्ष में मिलाने की कोशिश की, लेकिन अपने प्रयास में वे असफल रहे।
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अब तीनों की सम्मिलित सेना बिहार की तरफ बढ़ी। 22/23 अक्टूबर, 1764 को बक्सर के पास युद्ध हुआ। मेजर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेज वीरतापूर्वक लड़े। सम्मिलित सेना की संख्या ज्यादा थी, परंतु वह छोटी-सी अंग्रेजी सेना के सामने टिक नहीं सकी। मुगल सम्राट ने भी इस युद्ध में पूरी दिलचस्पी नहीं दिखाई। फलतः, विजय अंग्रेजों की ही हुई। मीरकासिम युद्धक्षेत्र से भाग खड़ा हुआ। उसकी स्थिति अत्यंत ही दण्यनीय हो गई। घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करते हुये, दिल्ली के निकट 1777 ई0 में उसकी मृत्यु हुई। मुगल सम्राट् नें अंग्रेजों से समझौता कर लिया। नवाब शुजाउद्दौला कुछ दिनों तक अंग्रेजों का विरोध करता रहा, परंतु कारा के युद्ध में पराजित होने के पश्चात (मई, 1765) उसने भी अंग्रेजों के समक्ष घुटने टेक दिए।
22/23 अक्टूबर 1764 को गंगा नदी के तट पर स्थित बक्सर नामक स्थान पर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना और दूसरी तरफ मुगल सम्राट शाह आलम मीर कासिम और अवध के नवाब शुजा उड दौला की संयुक्त सेना आमने सामने थी। दोनों ओर से काफी सैनिक मारे गए। अंत में इस युद्ध में अंग्रेज विजयी हुए। मुगल सम्राट ने अंग्रेजों से समझौता कर लिया तथा मीर कासिम युद्ध क्षेत्र से भाग गया। शुजाउददौला ने कुछ समय तक युद्ध जारी रखा पर अंत में उसने भी आत्मसमर्पण कर दिया। इस तरह बक्सर के युद्ध का अंत हुआ।

बक्सर के युद्ध के कारण और महत्व

प्लासी के युद्ध के पश्चात क्लाईव ने बंगाल की गद्दी पर मीरजाफर को आसीन करवाया। वह नाममात्र का शासक था। वास्तविक शक्ति तो क्लाइव के हाथों में चली गई। मीरजाफर एक कमजोर और अयोग्य व्यक्ति था। उसने कंपनी के साथ किए गए वायदों को पूरा किया। उसने कंपनी को बहुत अधिक धन भी दिया, परंतु कंपनी की तरफ से धन की माँग लगातार बढ़ती ही गई जिसे पूरा करने में वह अपने-आपको असमर्थ पा रहा था। इसके साथ-साथ प्रशासनिक व्यवस्था भी नष्ट होने लगी। पटना, पूर्णिया, मिदनापुर, ढाका इत्यादि जगहों में विद्रोह होने प्रारम्भ हो गए। इन विद्रोहों पर अंग्रेजो की सहायता से उसने नियंत्रण किया, परंतु कंपनी की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने में वह समर्थ नहीं हो सका। एक अनुमान के अनुसार मीरजाफर पर 1760 ई0 तक कंपनी का करीब 25 लाख रूपया बकाया हो गया।
इसी समय बंगाल में डचों का भी उपद्रव बढ़ गया था। शाहजादा अलीगौहर ने भी 1759 ई0 में बंगाल पर आक्रमण कर दिया। परिस्थिति अब नियंत्रण के बाहर होती जा रही थी। जब तक क्लाइव भारत में रहा उसने मीरजाफर को सहायता एवं संरक्षण प्रदान किया, परंतु 1760 ई0 के प्रारंभ में क्लाइव के वापस लौट जाने से मीरजाफर बिल्कुल असहाय हो गया।
क्लाइव की जगह पर क्रमशः हॉलवेल और पैन्सिर्टाट गवर्नर होकर बंगाल पहुँचे। इन लोगों ने भी नवाब पर रूपये के लिए दबाव डालना प्रारंभ किया। मीरजाफर असहाय था। फलतः अंग्रेजो ने षड्यंत्र कर उसे गद्दी से हटाने की योजना बना ली। उस पर डचों एवं अलीगौहर के साथ मिलकर अंग्रेजो के विरूद्ध षड़यंत्र करने का आरोप लगाया गया। अंग्रेजों ने उसके दामाद मीरकासिम से एक गुप्त समझौता कर लिया। उसने कंपनी को नई सुविधाएँ देने एवं उसकी धन की माँग को पूरा करने का वचन दिया। 14 अक्टूबर, 1760 की रात्रि में राजधानी में मीरजाफर को घेर लिया गया। उसे बाध्य होकर गद्दी छोड़नी पड़ी। उसे 15,000 रूपए मासिक पेंशन दिया जाने लगा और वह मुर्शिदाबाद छोड़कर कलकत्ता चला गया। अब मीरकासिम नया नवाब बना।
  • नवाब मीरकासिम वास्तविक नवाब बनना चाहता था, जो अंग्रेजों को मंजूर नहीं था।
  • अंग्रेजों की बढ़ती मांगें नवाब द्वारा पूरी नहीं की गई।
  • अंग्रेजों द्वारा दस्तक का दुरूपयोग और नवाब द्वारा आंतरिक कर की समाप्ति।
दस्तक का प्रश्न बक्सर के युदध का एक महत्वपूर्ण कारण था इस पत्र के माध्यम से कंपनी के अधिकारियों को करों में छूट मिलती थी पर वे इसका दुरुपयोग करते थे। जिसके कारण नवाब के राजकोष में धन की कमी होने लगी नवाब ने एक कठोर कदम उठाया और सभी आंतरिक करो को समाप्त कर दिया। अब भारतीय और अंग्रेजी व्यापारी करो के मामले में समान हो गए जिससे कंपनी और मीर कासिम के संबंध बहुत खराब हो गए।
अंग्रेजों ने मीर कासिम को नवाब के पद से हटा दिया। तब नवाब अंग्रेजों का कट्टर शत्रु हो गया और उसने युद्ध करने का निश्चय किया। अंग्रेज सेनापति मेजर ऐडम्स ने कई स्थानों पर मीर कासिम को परास्त किया तब अपनी जान की रक्षा के लिए वह पटना भाग गया। और उसने वहां बहुत से अंग्रेज समर्थक व्यक्तियों की हत्या कर दी। जिससे अंग्रेज उत्तेजित हो गए अब तो युदध अवश्यंभावी था।
पटना से भागकर मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दोला की शरण में पहुंचा। शुजाउददौला भी बंगाल में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था अतः वह मीर कासिम की सहायता के लिए तैयार हो गया। मुगल सम्राट शाह आलम भी भाग कर अवध आया हआ था वह भी अंग्रेजों से नाराज था अतः शाह आलम भी मीर कासिम के साथ गठबंधन में शामिल हो गया।

महत्त्व

जहां प्लासी की विजय क्लाइव के षड्यंत्रों का परिणाम थी वहीं बक्सर की विजय अंग्रेजी सैनिक शक्ति की स्पष्ट विजय थी।
बक्सर का युद्ध निर्णायक साबित हुआ। प्लासी ने बंगाल में अंग्रेजों का प्रभाव स्थापित किया था, किन्तु इसका निर्णय नहीं हो सका था कि बंगाल का वास्तविक शासक कौन है? बक्सर ने इसका निर्णय कर दिया। बक्सर ने अंतिम रूप से बंगाल में अंग्रेजी राज्य की कड़ियों में रिबट (कीलें) लगा दी।
तत्कालीन भारत की महत्त्वपूर्ण शक्तियां अंग्रेजों के अधीन हो गई। मुगल बादशाह शाहआलम अंग्रेजों पर निर्भर हो गया। अवध व बंगाल, कंपनी के नियंत्रण में आ गए। इस तरह कंपनी के लिए भारत विजय के द्वार खुल गए।
प्लासी ने बंगाल के नवाब के अधिकारों को समाप्त नहीं किया था। बक्सर ने उनके अधिकारों को पूर्णतः समाप्त कर दिया।
प्लासी ने अंग्रेजों को वैध शासक नहीं बनाया था, किन्तु बक्सर ने उन्हें वैध शासक बना दिया, क्योंकि उसके बाद
'इलाहाबाद की संधि' से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी उन्हें मुगल सम्राट की तरफ से प्राप्त हुई।
प्लासी के बाद जिस लूट का आरंभ हुआ बक्सर ने उस लूट के वेग को तेज कर दिया और उसे वैधानिक रूप प्रदान किया। इस तरह बक्सर युद्ध ने प्लासी द्वारा प्रारंभ की गई प्रक्रिया को पूरा किया। बक्सर ने अंग्रेजों की सर्वोच्चता को असंदिग्ध रूप से सिद्ध कर दिया।
बंगाल पर नियंत्रण के पश्चात् कंपनी ने द्वैध शासन प्रणाली की स्थापना की। भू-राजस्व व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था की स्थापना की। यह इस बात का प्रमाण है कि बंगाल पर अंग्रेजी नियंत्रण भारत पर ब्रिटिश नियंत्रण की प्रस्तावना थी।
बक्सर के युद्ध में प्लासी के निर्णयों पर मोहर लगा दी। अब अंग्रेजों का बंगाल पर वास्तविक अधिकार हो गया।
उत्तर भारत में अब अंग्रेजों को चुनौती देने वाला कोई नहीं था। अवध का नवाब उनका आभारी था। मुगल सम्राट उनका पेंशनर था।
अब अंग्रेज समस्त भारत पर अपना दावा करने लगे थे। मराठों और मैसूर ने उन्हें कुछ चुनौती देने का प्रयास किया पर वे असफल रहे।
बक्सर का युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ। इसके बाद अंग्रेजों ने पूरे भारत में अपना विस्तार किया।

मीरकासिम का अंग्रेजों से संबंध
मीरजाफर की ही तरह मीरकासिम भी छल प्रपंच से नवाब बना था, परन्तु वह मीरजाफर से ज्यादा योग्य और कुशल था। उसके पास प्रशासनिक अनुभव भी था। उसने इस बात को अच्छी तरह समझ लिया कि बंगाल की स्थिति सुधारने के लिए उसे अंग्रेजो के चंगुल से अपने-आपको मुक्त करना होगा। इसके लिए सेना एवं धन की आवश्यकता थी। उसने विद्रोही जमींदारों को दबाया, भ्रष्ट कर्मचारियों से राजकीय धन वसूल किया, अतिरिक्त कर लगाए, सेना को यूरोपीय ढंग पर प्रशिक्षित किया एवं अंग्रेजो के हस्तक्षेप से बचने के लिए राजधानी हटाकर मुंगेर ले गया। मुंगेर की सुरक्षा की व्यवस्था की गई तथा वहाँ बंदूक और तोप बनाने का कारखाना खोला गया।

संघर्ष का प्रारंभ

मीरकासिम के इन कार्यों से कंपनी आशंकित हो उठी। अंग्रेज बंगाल की गददी पर अयोग्य और कमजोर शासक चाहते थे जो उनके हाथों की कठपुतली बनकर रह सके, लेकिन मीरकासिम उनकी आशा के ठीक उल्टा निकला। अतः, अंग्रेज मीरकासिम को गद्दी से हटाने के लिये पुनः षड़यंत्र रचने लगे। मीरकासिम भी अपनी आर्थिक क्षति, अपने पदाधिकारियों की उपेक्षा तथा अंग्रेजो द्वारा बंगाल की प्रजा के लूट-खसोट से ऊब चुका था। उसने देशी व्यापारियों को भी निःशुल्क व्यापार करने का अधिकार प्रदान कर दिया। फलतः, अंग्रेज और भारतीय व्यापारी अब एक ही पलड़े पर आ गये। यद्यपि, मीरकासिम का यह कदम पूर्णतया न्यायोचित था, परंतु इससे अंग्रेजों को ‘दस्तक' का दुरूपयोग कर धन कमाने का मौका हाथ से जाता रहा। क्रोधित होकर अंग्रेजों ने सैनिक कार्रवाई आरंभ करने की योजना बनाई। 25 मई, 1763 को कंपनी की तरफ से ऐमायट तथा हे मुंगेर पहुँचे और नवाब के सामने ग्यारह-सूत्री माँगें प्रस्तुत की, जिन्हें नवाब ने ठुकरा दिया। इसी बीच पटना के अंग्रेज एजेंट एलिस को कलकत्ता कौंसिल ने नगर पर आक्रमण करने का आदेश दिया। एलिस ने आसानी से पटना पर अधिकार कर लिया। यह घटना 24 जून, 1763 की है। मीरकासिम को जब इस घटना का पता चला तो उसने पटना पर आक्रमण कर उस पर अपना अधिकार कर लिया। अनेक अंग्रेज इस युद्ध में मारे गए।

पटना हत्याकांड
दूसरी तरफ, मेजर एडमस के नेतृत्व में एक सेना मुर्शिदाबाद की तरफ बढ़ी। मीरकासिम भी मुंगेर से चला। मार्ग में अनेक स्थानों पर अंग्रेजों ने जैसे- कटवा, गिरिया तथा सुती में नवाब की सेना को पराजित कर दिया। सबसे महत्वपूर्ण युद्ध उदयनाला के पास हुआ जिसमें मीरकासिम बुरी तरह पराजित हुआ। वहाँ से वह मुंगेर होता हुआ पटना पहूँचा। पराजय की कोध में उसने पटना में गिरफ्तार करीब 148 कैदियों जिसमें एलिस भी था, की हत्या करवा दी। यह घटना “पटना हत्याकांड' के नाम से विख्यात है। इधर अंग्रेजों ने जुलाई, 1763 में मीरकासिम को अपदस्थ कर फिर से मीरजाफर को नवाब नवाब बना दिया तथा मीरकासिम का पीछा करना जारी रखा। मीरकासिम के अधिकारियों की गद्दारी की वजह से मुंगेर और पटना उसके हाथ से निकल गए। उसे अपना राज्य छोड़कर अवध में शरण लेनी पड़ी।

बक्सर के युद्ध के परिणाम

इस युद्ध के परिणाम अत्यंत ही महत्वपूर्ण तथा स्थायी सिद्ध हुए। 'बक्सर के युद्ध ने प्लासी के निर्णयों पर पक्की मुहर लगा दी। बंगाल में अंग्रेजों सत्ता की स्थापना का कार्य इस युद्ध ने पूरा कर दिया। बंगाल की गद्दी पर ऐसा नवाब आया जो अंग्रेजों की कठपुतली ही था। साथ-ही-साथ अवध के नवाब और मुगल सम्राट् की पराजय ने अंग्रेजों को उत्तरी भारत की सर्वश्रेष्ठ शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। अब उनकी सत्ता को चुनौती देने वाली कोई भी शक्ति नहीं बची। इलाहाबाद की संधि (1765 ई0) के अनुसार शुजाउद्दौला ने शाहआलम को इलाहाबाद तथा कारा के जिले दिए तथा हर्जाना के रूप में 50 लाख रूपए कंपनी को देना स्वीकार किया। साथ ही, अंग्रेजी सेना का खर्च देने को भी तैयार हुआ। शाहआजलम ने इन जिलों के बदले बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी कंपनी को सौंप दी। वह अब कंपनी का पेंशनभोक्ता बनकर रह गया। इस प्रकार बंगाल और अवध के नवाब तथा मुगल सम्राट शाहआलम भी अंग्रेजों की दया के पात्र बन गए।
बक्सर के युद्ध ने 'अंत में कंपनी के शासन की बेड़ियों को बंगाल पर जकड़ दिया। इसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए अल्फ्रेड लायल ने लिखा है-“बक्सर के युद्ध के दीर्घकालिक तथा गौण परिणाम बहुत महत्वपूर्ण थे। अंग्रेजों की विजय के कारण मुगल सम्राट अंग्रेजों से मिल गया, वजीर भयभीत हो गया तथा कंपनी की सेनाएँ गंगा पार बनारस तथा इलाहाबाद तक पहुंच गई। इसके कारण बंगाल के उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों से जो उनका संबंध हुआ उससे पहली बार एक नवीन उन्नत तथापि प्रभुत्वमय संबंध वे स्थापित कर सके।" मैलिसन तो यहाँ तक कहते हैं कि “विजय से न केवल बंगाल ही मिला, न केवल इसने अंग्रेजी सीमाएँ इलाहाबाद तक पहुँचा दीं, अपितु इससे अवध के शासक विजयी शक्ति से कृतज्ञतापूर्ण निर्भरता, विश्वास के बंधनों से बँध गए जिसने आने वाले 94 वर्श तक उनको मित्रों का मित्र तथा शत्रुओं का शत्रु बनाए रखा।” यह कंपनी की बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
  • इतिहासकार ताराचंद के अनुसार - प्लासी ने सत्ता का हस्तांतरण किया, परंतु 1764 ई0 में बक्सर के युद्ध ने अधिकारों का सृजन किया। कंपनी के इतिहास में वैधानिक आर्थिक व्यापार का युग समाप्त हो गया तथा राजनीतिक सत्ता के अंतर्गत राजकीय राजस्व के साथ व्यापार का युग आरंभ हुआ।

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