कोलाइड
आप विलयनों से परिचित हैं। इनकी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। दूध, मक्खन, पनीर, क्रीम, रंगीन रत्न, बूट पॉलिश, रबर, स्याही आदि अनेक पदार्थ हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे भी एक प्रकार के विलयन हैं। उन्हें कोलॉइडी विलयन कहते हैं। 'कोला' का अर्थ है सरेस और 'आइड' का अर्थ समान है अर्थात् कोलाइड का अर्थ है - सरेस के समान।
पानी में शर्करा के विलयन में अथवा पानी में नमक के विलयन में विद्यमान कणों की अपेक्षा कोलॉइडी विलयन में विद्यमान कणों का आमाप बड़ा होता है। इस में आप कोलॉइडी विलयनों को बनाने की विधियाँ, उनके गुणधर्म और अनुप्रयोगों के बारे में पढ़ेंगे।
वास्तविक विलयन, कोलॉइडी विलयन
आप जानते हैं कि पानी में शर्करा का विलयन समांग होता है, पर दूध में नहीं। दूध को ध्यान से देखने पर उसमें तेल की बूंदें तैरती दिखेंगी। इसलिए, यद्यपि वह समांग लगता है पर वास्तव में वह विषमांग होता है। सभी प्रकार के विलयनों का स्वभाव विलेय कणों के आमाप पर निर्भर करता है। यदि आमाप 1 से 100 nm के बीच हो तो कोलॉइडी विलयन बनता है, जब विलेय कणों का आमाप 100 nm से अधिक हो तो वह निलंबन के रूप में पाया जाता है। इस प्रकार कोलॉइडी विलयन वास्तविक विलयन और निलंबन के बीच की अवस्था होती है।
कोलॉइडी विलयन
कोलॉइडी विलयन विषमांग होते हैं और उनमें कम से कम दो प्रावस्थाएँ होती हैं : परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम।
- परिक्षिप्त प्रावस्था : वह पदार्थ जो कम मात्रा में विद्यमान रहता है और इसके कण कोलॉइडी आमाप (1 से 100 nm) के होते हैं।
- परिक्षेपण माध्यम : यह वह माध्यम है जिसमें कोलॉइडी कण परिक्षिप्त रहते हैं। पानी में, गंधक कोलॉइडी विलयन से गंधक कण परिक्षिप्त प्रावस्था बनाते हैं और पानी परिक्षेपण माध्यम होता है। ये दो प्रावस्थाएँ : परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम, ठोस, द्रव अथवा गैस हो सकते हैं। इस प्रकार दो प्रावस्थाओं की भौतिक अवस्था के अनुसार कोलॉइडी विलयन विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं। सारणी में विभिन्न प्रकार के कोलॉइडी विलयन और उनके उदाहरण दिए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि कोलॉइडी विलयन नहीं बना सकते हैं क्योंकि विसरण गुणधर्म के कारण समांगी मिश्रण बना लेते हैं।
ऊपर दिए गए विभिन्न प्रकार के कोलॉइडी विलयनों में विलय (द्रव में ठोस), जैल (ठोस में जल), और पायस (द्रव में द्रव) प्रमुख हैं। उल्लेखनीय है कि यदि परिक्षेपण माध्यम जल हो तो विलेय को जल विलय कहते हैं और यदि परिक्षेपण माध्यम ऐल्कोहॉल हो तो विलेय को ऐल्को विलय कहते हैं।
कोलॉइडों का वर्गीकरण
कोलॉइडी विलयनों का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है-
- (1) प्रावस्थाओं के बीच अन्योन्य क्रिया के आधार पर
- (2) आण्विक आमाप के आधार पर
अन्योन्य क्रिया के आधार पर वर्गीकरण
परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के बीच अन्योन्य क्रिया के आधार पर कोलॉइडी विलयनों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है।
- (i) द्रवरागी कोलॉइड : द्रवरागी शब्द का अर्थ है विलायक के प्रति बंधुता। गोंद, जिलेटिन, स्टार्च आदि पदार्थों को जब उचित विलायक के साथ मिलाया जाता है तो वे सीधे कोलॉइडी अवस्था में परिवर्तित होकर कोलॉइडी विलयन बना लेते हैं। इस प्रकार प्राप्त विलयों को द्रवरागी विलय कहते हैं। इन विलयों का एक महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि यदि परिक्षिप्त प्रावस्था को परिक्षेपण माध्यम से पृथक कर दिया जाए तो उसे परिक्षेपण माध्यम पुनः मिलाकर विलय को दुबारा बनाया जा सकता है, यही कारण है कि इन विलयों को उत्क्रमणीय विलय कहते हैं। ये विलय पर्याप्त स्थाई होते हैं।
यदि परिक्षेपण माध्यम पानी हो तो उसे जलरागी कोलॉइड कहते हैं।
- (ii) द्रवविरागी कोलॉइड : द्रव विरागी शब्द का अर्थ है - विलायक के प्रति कम बंधुता। Ag और Au जैसी धातुओं, उनके हाइड्रोक्साइडों अथवा सल्फाइडों आदि को जब परिक्षेपण माध्यम में मिलाया जाता है तो वे सीधे कोलॉइडी अवस्था में परिवर्तित नहीं होते हैं। उन्हें विशेष विधियों द्वारा बनाया जाता है। ये विलय शीघ्र अवक्षेपित हो जाते हैं और इस प्रकार बहुत स्थाई नहीं होते हैं। उन्हें कोलॉइडी रूप में बने रहने के लिए स्थायीकारक की आवश्यकता होती है। ये अनुत्क्रमणीय विलय होते हैं, क्योंकि अवक्षेपित होने पर ये विलायक के साथ मिलकर कोलॉइडी विलयन नहीं बनाते हैं। यदि परिक्षेपण माध्यम पानी हो तो उसे जलविरागी कोलॉइड कहते हैं।
आण्विक आमाप के आधार पर वर्गीकरण
आण्विक आमाप के आधार पर कोलॉइडों का वर्गीकरण इस प्रकार है:
- (i) बृहदाणुक कोलॉइड : इस प्रकार के कोलॉइड में परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों का आमाप कोलॉइड कणों के आमाप के बराबर बड़ा होता है। (यानि 100 nm)
प्रकृतिक बृहदाणुक कोलॉइडों के उदाहरण हैं : स्टार्च, सेल्यूलोस, प्रोटीन आदि।
- (ii) बहु अणुक कोलॉइड : इसमें प्रत्येक परमाणु कोलॉइड के आमाप का नहीं होता पर वे आपस में पुंज बनाकर (जुड़कर) कोलॉइडों के नाप के अणु बनाते हैं।
उदाहरणार्थ :
सल्फर विलय में S8 अणुओं के पुंज कोलॉइडों के नाप के होते हैं।
- (iii) संघटित कोलॉइड : ये पदार्थ कम सांद्रण में सामान्य विद्युत अपघट्यों की तरह कार्य करते हैं, परन्तु अधिक सांद्रण में सहयोजित होकर मिसेल बनाते हैं जो कि कोलॉइड विलयन की तरह कार्य करते हैं। साबुन इसका उदाहरण है। साबुन लम्बी शृंखला वाले वसीय अम्ल RCOONa का सोडियम लवण है। पानी में डालने पर साबुन RCOO- और Na+ देता है। ये RCOO- आयन मैल के कण के चारों ओर संघटित होकर मिसेल बनाते हैं, इसे चित्र में दिखाया गया है।
कोलॉइडी विलयनों का विरचन
जैसा पहले बताया जा चुका है द्रवरागी विलय बनाने के लिए पदार्थो को सीधे परिक्षेपण माध्यम के साथ मिलाया जाता है। उदाहरण के लिए स्टार्च, जिलेटिन, गोंद आदि के कोलॉइडी विलयन बनाने के लिए उन्हें केवल गर्म पानी में घोला जाता है। उसी प्रकार सेलूलोस नाइट्रेट का कोलॉइडी विलय बनाने के लिए उसे ऐल्कोहॉल में घोला जाता है। प्राप्त विलयन को कोलोडियन कहते हैं।
किन्तु द्रवविरागी कोलॉइडों को प्रत्यक्ष विधि द्वारा नहीं बनाया जा सकता है। उन्हें बनाने के लिए दो प्रकार की विधियाँ काम में लाई जाती हैं। ये हैं :
- भौतिक विधि
- रासायनिक विधि
(i) भौतिक विधि : ब्रेडिग आर्क विधि इस विधि का इस्तेमाल स्वर्ण, रजत, प्लेटिनम आदि धातुओं के कोलॉइडी विलयनों को बनाने के लिए किया जाता है।
इसमें पानी के पात्र में रखे दो धात्विक इलेक्ट्रोडों के बीच विद्युत आर्क आरम्भ किया जाता है। आर्क की उच्च ऊष्मा धातु को वाष्प में परिवर्तित कर देती है। यह वाष्प ठंडे जल बांध में शीघ्र संघनित हो जाती है। इसके फलस्वरूप कोलॉइडी आमाप के कण बन जाते हैं। इसे स्वर्ण विलय कहा जाता है।
पेप्टाइजीकरण : ताजा बने अवक्षेप में उपयुक्त विद्युत अपघट्य मिला कर उसे कोलॉइड में बदलने के प्रक्रम को पेप्टाइजीकरण कहते है। उदाहरणार्थ, फेरिक हाइड्रोक्साइड के अवक्षेप में फेरिक क्लोरॉइड मिलाने पर फेरिक हाइड्रोक्साइड भूरे लाल रंग के कोलॉइडी विलयन में बदल जाता है। ऐसा अवक्षेप द्वारा विद्युत अपघट्य के धनायन के अधिशोषण के कारण होता है। Fe(OH)3 में FeCI3 डालने पर, Fe(OH)3 के कण FeCI3 के Fe3+ आयनों को अधिशोषित कर लेते हैं। अत: Fe(OH)3 के कण धनावेशित हो जाते हैं और वे एक दूसरे को प्रतिकर्षित करके कोलॉइडी विलयन बनाते हैं।
(ii) रासायनिक विधि : आक्सीकरण द्वारा :
गंधक विलय प्राप्त करने के लिए H2S गैस का HNO3 अथवा Br2 जल आदि आक्सीकारक विलयन में बुदबुदन किया जाता है। अभिक्रिया इस प्रकार होती है :
Br2 + H2S → S + 2 HBr
2 HNO3 + H2S → 2 H2O+ 2 NO2 + S
रासायनिक विधि द्वारा Fe(OH)3 विलय, As2S2 विलय भी बनाए जा सकते हैं।
कोलॉइडी विलयनों का शोधन
जब कोलॉइडी विलयन बनाया जाता है तो बहुधा उसमें विद्युत अपघट्य अपद्रव्य के रूप में मौजूद रहता है, जो उसे अस्थायीकृत कर देता है। अतः कोलॉइडी विलयन के शोधन के लिए निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है :-
- (i) अपोहन
- (ii) विद्युत अपोहन
अपोहन : अपोहन का प्रक्रम इस तथ्य पर आधारित है कि पार्चमेंट पत्र या सेलोफेन झिल्ली में से कोलॉइडी कण नहीं निकल पाते हैं लेकिन विद्युत अपघट्य के आयन निकल सकते हैं। कोलॉइडी विलयन को एक डायलसिस (सेलोफेन) थैली में लेकर स्वच्छ जल से भरे एक पात्र में लटका दिया जाता है। अपद्रव्य धीरे-धीरे बाहर विसरित हो जाता है और थैली में शुद्ध कोलॉइडी विलयन रह जाता है। विसरण द्वारा कोलॉइडी कणों को अपद्रव्यों से उपयुक्त झिल्ली की सहायता से अलग करने के प्रक्रम को अपोहन कहते हैं।
विद्युत अपोहन : अपोहन प्रक्रम में विद्युत के उपयोग से प्रक्रम की दर बढ़ाई जा सकती है। जब इलेक्ट्रोडों में विद्युत प्रवाह की जाती है तो अपद्रव्य के आयन विपरीत आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर तीव्र गति से विसरित होते हैं। विद्युत प्रवाह की उपस्थिति में किए गए अपोहन को विद्युत अपोहन कहते हैं।
अपोहन का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग कृत्रिम वृक्क मशीनों में रुधिर के शोधन के लिए किया जाता है। अपोहन झिल्ली में से आयन आदि छोटे कण निकल जाते हैं किन्तु हिमोग्लोबिन आदि कोलॉइडी आमाप के कण झिल्ली में से नहीं निकल पाते हैं।
कोलॉइडों के गुणधर्म
कोलॉइडों के गुणधर्मों की नीचे चर्चा की गई है :
(i) विषमांग लक्षण : कोलॉइडी कण अपने ही सीमा पृष्ठों में रहते हैं जो उन्हें परिक्षेपण माध्यम से पृथक करते हैं। इस प्रकार कोलॉइडी तंत्र दो प्रावस्थाओं का विषमांग मिश्रण होता है।
ये दो प्रावस्थाएँ हैं:
- (क) परिक्षिप्त प्रावस्था
- (ख) परिक्षेपण माध्यम
(ii) ब्राउनी गति : ब्राउनी गति नाम इसके आविष्कारक रॉबर्ट ब्राउन (वनस्पतिज्ञ) के कारण पड़ा। कोलॉइड कणों की संतत और अनियमित टेढ़ी-मेढ़ी गति को ब्राउनी गति कहते हैं। विलायक के अणुओं की कोलॉइडी कणों के साथ टक्कर से ब्राउनी गति उत्पन्न होती है। विभिन्न दिशाओं से लगने वाले बल असमान होते हैं इसलिए कणों की गति टेढ़ी मेढ़ी होती है।
(iii) टिन्डल प्रभाव : 1869 में टिन्डल ने प्रेक्षण किया कि यदि कोलॉइडी विलयन में प्रकाश की तीव्र किरण पुंज प्रविष्ट की जाए तो प्रकाश-पथ प्रदीप्त हो जाता है। इस परिघटना को टिन्डल प्रभाव कहते हैं। यह परिघटना कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से होती है। जब सूर्य की किरणें किसी रेखाछिद्र से अंधेरे कमरे में प्रवेश करती हैं तो यही प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। यह हवा के धूल के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से होता है।
(iv) वैद्युत गुणधर्म : कोलॉइडी विलयन के कण विद्युत आवेशित होते हैं। सभी कणों में धन अथवा ऋण एकसमान आवेश होता है। परिक्षेपण माध्यम का समान और विपरीत आवेश होता है, इसीलिए कोलॉइडी कण एक दूसरे का प्रतिकर्षण करते हैं और एकत्र होकर नीचे नहीं बैठते हैं। उदाहरण के लिए आर्सेनियस सल्फाइड विलय, स्वर्ण विलय, रजत विलय आदि में ऋण आवेशित कोलॉइडी कण होते हैं जबकि फेरिक हाइड्राक्साइड, ऐल्युमिनियम हाइड्राक्साइड आदि में धन आवेशित कोलॉइडी कण होते हैं। कोलाइडी कणों के आवेशित होने के अनेक कारण हैं।
- (i) कोलॉइडी कणों द्वारा धनायनों अथवा ऋणायनों का अधिशोषण
- (ii) मिसेल आवेशित होते हैं
- (ii) कोलॉइडों के विरचन के दौरान, मुख्यता ब्रेडिग आर्क विधि में कोलॉइड कण इलेक्ट्रानों को ग्रहण कर आवेशित हो जाते हैं।
कोलॉइड कणों पर आवेश की उपस्थिति को वैद्युत कण संचलन प्रक्रम द्वारा दिखाया जा सकता है। वैद्युत कण संचलन प्रक्रम में कोलॉइडी कण विद्युत प्रवाह के प्रभाव से कैथोड अथवा एनोड की तरफ गतिशील होते हैं। प्रयोग में आनेवाला उपकरण में दिखाया गया है।
स्कंदन या अवक्षेपण
द्रवविरागी सॉल का स्थायित्व कोलॉइडी कणों पर आवेश के कारण होता है। यदि किसी प्रकार आवेश हटा दिया जाये तो कण एक-दूसरे के समीप आकर पुंजित (यास्कंदित) हो जायेंगे एवं गुरूत्व बल के कारण नीचे बैठ जाएंगे। कोलॉइडी कणों के नीचे बैठ जाने की प्रक्रिया सॉल का स्कंदन या अवक्षेपण कहलाता है।
द्रवस्नेही सॉल का स्कंदन निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है-
- (i) वैद्युत कण संचलन द्वारा : कोलॉइडी कण विपरीत आवेशित इलैक्ट्रोड की ओरगति करते हैं एवं इलैक्ट्रोड पर आवेश विसर्जित करके अवक्षेपित हो जाते हैं।
- (ii) दो विपरीत आवेशित सॉल को मिश्रित करने से : जब दो विपरीत आवेशित सॉल लगभग समान अनुपात में मिश्रित किए जाते हैं, तो वे एक-दूसरे के आवेश को उदासीन करके आंशिक या पूर्णतया अवक्षेपित हो जाते हैं। जलयोजित फेरिकऑक्साइड (धन-आवेशित सॉल) एवं आर्सेनियस सल्फाइड (ऋण-आवेशित सॉल) को मिश्रित करने पर ये अवक्षेपित हो जाते हैं। इस प्रकार का स्कंदन पारस्परिक स्कंदनकहलाता है।
- (iii) क्वथन द्वारा : जब एक सॉल को उबाला जाता है तो परिक्षेपण माध्यम के अणुओंके साथ संघट्ट बढ़ने से अधिशोषित परत विक्षुब्ध हो जाती है। इससे कणों पर उपस्थित आवेश कम हो जाता है और अंततः इसके कारण वे अवक्षेप के रूप में नीचे बैठे जाते हैं।
- (iv) वैद्युत अपघट्य को मिलाकर : जब एक वैद्युतअपघट्य प्रचुर मात्रा में मिलाया जाता है तो कोलॉइडी कण अवक्षेपित हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि कोलॉइडी कण अपने से विपरीत आवेश वाले आयनों से अन्योन्यक्रिया करते हैं। इससे उदासीनीकरण होता है जिससे स्कंदन हो जाता है। कणों पर आवेश के उदासीनीकरण के लिए उत्तरदायी आयन स्कंदक आयन कहलाते हैं। एक ऋण आयन धनात्मक आवेशितसॉल का स्कंदन करता है और इसके विलोमतः भी होता है। यह देखा गया है कि साधारणतः ऊर्णी कर्मक आयन की संयोजकता जितनी अधिक होती है उतनी ही अधिक उसकी अवक्षेपण की क्षमता होती है। इसे हार्डी-शुल्ज नियम कहते हैं। ऋणसॉल के स्कंदन में ऊर्णन क्षमता का क्रम Al3> Ba2+>Na+ होता है।
इसी प्रकार धन सॉल के स्कंदन में ऊर्णन क्षमता का क्रम
किसी विद्युत अपघट्य की मिली मोल प्रति लीटर में न्यूनतम सांद्रता जो किसी सॉलको दो घंटों में स्कंदित करने के लिए आवश्यक हो, स्कंदन मान कहलाती है। जितनी कम मात्रा की आवश्यकता होगी उतनी ही अधिक उस आयन की स्कंदन शक्ति होगी।
द्रवरागी सॉल का स्कंदन
द्रवरागी सॉल के स्थायित्व के लिए दो कारक उत्तरदायी होते हैं। ये दो कारक हैं, कोलॉइडी कणों पर आवेश एवं उनका विलायकयोजन। जब ये दोनों कारक हटा दिए जाते हैं, तो द्रवरागीसॉल को स्कंदित किया जा सकता है। यह (i) वैद्युतअपघट्य मिलाकर एवं (ii) उपयुक्त विलायक मिलाकर किया जा सकता है।
जब द्रवरागी सॉल में एल्कोहॉल एवं ऐसीटोन जैसे विलायक मिलाए जाते हैं तो परिक्षिप्तप्रावस्था का निर्जलीकरण हो जाता है। इस परिस्थिति में वैद्युत अपघट्य की कम मात्रा से भी स्कंदन हो सकता है।
कोलॉइडों का रक्षण
द्रवरागी सॉल, द्रवविरागी सॉल की तुलना में अधिक स्थायी होते हैं। इसका कारण यह है किद्रवरागी कोलॉइड व्यापक रूप से विलायकयोजित होते हैं अर्थात् कोलॉइड कण जिस द्रव मेंपरिक्षिप्त होते हैं, उससे आच्छादित हो जाते हैं।
द्रवरागी कोलॉइडों में द्रवविरागी कोलॉइडों के रक्षण का अद्वितीय गुण होता है। जबद्रवरागी सॉल को द्रवविरागी सॉल में मिलाया जाता है तो द्रवरागी कण, द्रवविरागी कणों केचारों ओर एक परत बना लेते हैं एवं इस प्रकार वे उसकी वैद्युत अपघट्य से रक्षा करते हैं।इस उद्देश्य के लिए प्रयुक्त द्रवरागी कोलॉइड रक्षी कोलॉइड कहलाते हैं।
कोलॉइडी विलयन के अनप्रयोग
कोलॉइडों की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। उनके कुछ अनुप्रयोगों की यहाँ चर्चा की गई है।
- (i) मल व्यवस्था : धूल, हवा आदि के कोलॉइडी कणों में विद्युत आवेश होता है। जब मल को उच्च विभव पर रखी धातु की प्लेटों के बीच प्रवाहित किया जाता है तो कोलॉइडी कण विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर जाते हैं और वहाँ अवक्षेपित हो जाते हैं। इससे मल-जल का शोधन हो जाता है।
- (ii) कुओं के पानी का शोधन : जब पंकिल जल में फिटकरी मिलाई जाती है तो कोलॉइड के ऋण आवेशित कण फिटकरी के Al3+ आयनों द्वारा उदासीन हो जाते हैं। इस प्रकार पंक कण नीचे बैठ जाते हैं और पानी को छान कर इस्तेमाल किया जा सकता है।
- (iii) धूम्र अवक्षेपण : धूम्र कण वास्तव में, हवा में कार्बन के विद्युत आवेशित कोलॉइडी कण होते हैं। इस कार्बन का अवक्षेपण कॉट्रेल अवक्षेपण द्वारा किया जाता है। चिमनी से निकलने वाले धुएँ को एक कक्ष में प्रविष्ट कराया जाता है। कक्ष में अनेक धातु-प्लेटें एक धातु के तार से जुड़ी रहती हैं। यह तार उच्च विभव स्रोत से जुड़ा रहता है जैसाकि चित्र में दिखाया गया है। धुएँ के आवेशित कण विपरीत आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर आकृष्ट होकर अवक्षेपित हो जाते हैं और गरम स्वच्छ वायु बाहर निकल जाती है।
दैनिक जीवन में अन्य अनुप्रयोग इस प्रकार हैं :
- (i) फोटोग्राफी : जिलेटिन में सिल्वर ब्रोमाइड के कोलॉइडी विलयन को काँच की प्लेटों अथवा सेलुलाइड फिल्मों पर प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार फोटोग्राफी में प्रयोग होनेवाली सुग्राही फिल्में प्राप्त होती हैं।
- (ii) रुधिर आतंचन : रुधिर, कोलॉइडी विलयन है जो ऋण आवेशित होता है। FeCl3 विलयन प्रयुक्त करने पर रुधिर का बहना बंद हो जाता है और रुधिर आतंचन हो जाता है। इसका कारण यह है कि Fe3+ आयन रुधिर के कोलॉइडी कणों के आवेश को उदासीन कर देते हैं जिससे आतंचन हो जाता है।
- (iii) रबर पट्टन : लेटेक्स, ऋण आवेशित रबर कणों का कोलॉइडी विलयन होता है। जिस वस्तु को रबर पट्टित करना हो उसे रबर पट्टन बाथ में एनोड बनाया जाता है। ऋण आवेशित रबर कण एनोड की ओर जाते हैं और उस पर निक्षेपित हो जाते हैं।
- (iv) आकाश का नीला रंग : क्या आपने कभी सोचा कि आकाश का रंग नीला क्यों होता है। इसका कारण यह है कि आकाश में तैरने वाले कोलॉइडी धूल कण नीले प्रकाश का प्रकीर्णन करते हैं जिससे आकाश का रंग नीला दिखाई देता है। यदि आकाश में कोलॉइड कण न होते तो पूरा आकाश अंधकारपूर्ण लगता।
पायस और जैल
पायस वे कोलॉइडी विलयन होते हैं जिनमें परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम दोनों ही द्रव होते हैं। दोनों द्रव एक दूसरे में अमिश्रणीय होते हैं, क्योंकि मिश्रणीय होने पर वे वास्तविक विलयन बना देंगे।
पायस दो प्रकार के होते हैं :-
- (i) पानी में तेल का पायस : यहाँ परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम पानी होता है। इसका उदाहरण दूध है क्योंकि दूध में द्रव वसा पानी में परिक्षिप्त होती है। इसका दूसरा उदाहरण चेहरे पर लगाने वाली क्रीम है।
- (ii) तेल में पानी : इसमें परिक्षिप्त प्रावस्था पानी और परिक्षेपण माध्यम तेल होता है। मक्खन, कॉड लिवर तेल, कोल्ड क्रीम आदि इसके उदाहरण हैं।
रखने पर अमिश्रणीय होने के कारण पायस के दोनों द्रव यानि तेल और पानी अलग हो जाते हैं। इसलिए पायस को स्थाई बनाने के लिए इनमें पायसीकारक मिलाए जाते हैं। साबुन एक उपयोगी पायसीकारक है। पायसीकारक की उपस्थिति में पायस बनाने के प्रक्रम को पायसीकरण कहते हैं।
पायसीकारक कैसे कार्य करता है? पायसीकारक तेल और पानी के अंतरापृष्ठ पर सांद्रित होकर उन्हें बांध देता है।
पायस के अनुप्रयोग : पायस हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ अनुप्रयोग नीचे दिए जा रहे हैं :-
- कपड़ों और शरीर पर से मैल धोने की साबुन और संश्लेषित अपमार्जक की प्रक्रिया, तेल और पानी के पायस बनने पर ही आधारित है।
- दूध, पानी और वसा का पायस है। मक्खन और क्रीम भी पायस हैं।
- विभिन्न प्रकार की चेहरे की क्रीम और लोशन भी पायस हैं।
- कॉड लिवर तेल जैसी तलीय औषधि जल्दी और बेहतर अवशोषण के लिए पायस के रूप में दी जाती है। कुछ मरहम भी पायस के रूप में होते हैं।
- आंतों में वसा का पाचन भी पायसीकरण द्वारा होता है।
- सल्फाइड अयस्क के शोधन के लिए प्रयुक्त फेन प्लवन प्रक्रम में उसका तेल का पायस के साथ उपचार किया जाता है। मिश्रण को संपीडित वायु से प्रक्षेपित करने पर अयस्क कण पृष्ठ पर आ जाते हैं, तब उन्हें अलग कर लिया जाता है।
जैल - जिन कोलॉइडों में परिक्षिप्त प्रावस्था द्रव और परिक्षेपण माध्यम ठोस होता है उन्हें जैल कहते हैं। पनीर, जैली, बूट पॉलिश, जैल के उदाहरण हैं। अधिकतर उपयोग होनेवाले जैल जलरागी कोलॉइडी विलयन होते हैं, जिनका तनु विलयन उचित परिस्थितियों में लचीले अर्धठोस पदार्थ में बदल जाता है। उदाहरण के लिए जिलेटिन का पानी में 5% जलीय विलयन ठंडा करने पर जैली का ब्लाक बन जाता है।
रखने पर जैल उसमें उपस्थित कुछ द्रव खो देते हैं और सिकुड़ जाते हैं। इसे संकोच पार्थक्य या रखने पर जमना कहते हैं।
जैल दो प्रकार के होते हैं - लचीले जैल और अलचीले जैल। लचीले जैल उत्क्रमणीय होते हैं। पानी खोने पर जैसे वे जमते हैं, पानी मिलाने पर वे वापिस मूल अवस्था में आ जाते हैं। अलचीले जैल अनुत्क्रमणीय होते हैं। जैल कई प्रकार से उपयोग में आते हैं। सिलिका, पनीर, जैली, बूट पॉलिश, दही, काफी उपयोग होनेवाले जैल हैं। ठोस एल्कोल ईंधन, ऐल्कोहल का कैल्सियम एसिटेट में जैल है।
नेनो पदार्थ
कुछ समय से नेनो पदार्थों ने बहुत अधिक आकर्षित किया है क्योंकि इनका उपयोग जैसे कि औषधि, इलेक्ट्रोनिक्स और विभिन्न उद्योगों में होता है। ये धातुएं, सिरेमिक्स, बहुलक पदार्थ या मिश्र पदार्थ हो सकते हैं।
जिन पदार्थों के कणों के आकार के परिमाप का विस्तार 1 nm- 100 nm होता है वे नेनो पदार्थ कहलाते हैं। एक नेनोमीटर 10-9m होता है जो कि आकार में बहुत छोटा होता है। इसका लगभग तीन से पाँच परमाणुओं के आकार के लगभग एक पंक्ति में पंक्तिवद्धता करने जैसा होता है।
नेनो पदार्थ उत्पन्न किये गये और सौ सालों से उपयोग में लाया गया है। कुछ प्रकार के ग्लासों को सुन्दर बनाने में रूवी लाल रंग इसमें उपस्थित स्वर्ण के नेनो कणों के कारण होता है। कुछ पुराने सिरेयिक्स उद्योग की वस्तुओं पर सजावटी चमक इसके ग्लेज में उपस्थित धातुओं के नेनो कणों के कारण होती है।
नेनो पदार्थों का दो भागों में वर्गीकरण किया जा सकता है।
- फुलेरीन
- अकार्बनिक नेनो पदार्थ
(i) फुलेरीन
फुलेरीन कार्बन के अपरूप होते हैं जो कि खोखले कार्बन गोलक होते हैं जिनमें बहुत अधिक कार्बन परमाणु रासायनिक रूप में आंवछित होते हैं जैसे C60
(ii) अकार्बनिक
नेनो कण अकार्बनिक नेनो कण धातुओं अर्धचालकों या आक्साइडों से बनते हैं। जिनके विशेष प्रकार वैद्युत, यांत्रिक प्रकाशिक और रासायनिक गुणधर्म होते हैं।
गुणधर्म
नेनो पदार्थ बहुत से प्रकार में मिलते हैं और इनके गुणधर्मों और सम्भव उपयोगों का विस्तार बहुत अधिक होता है।
- (i) इनका उपयोग लघु वैटरीज, अति अधिशोषक बहुत छोटी इलेक्ट्रोनिक्स युक्ति आटोमोबाइल के पार्टो और पैकेजिग फिल्मों के बनाने में होता है।
- (ii) नेनो केप्सुल्स और नेनोयुक्तियां औषध देने जीन उपचार और चिकित्सा निदान सूचक के लिए नई सम्भभावनाएं तलाशती है।
- (iii) नेनोमिश्रित कणें कम मात्रा में नेनो पदार्थों को बहुलकों में मिश्रित प्राप्त किये जाते हैं। उदाहरण के लिए पोलीएमाइड रेजिन में 2% आयतन के रूप में सिलिकेट नेनोकण मिलाने पर पोलीएमाइड की शक्ति में 100% वृद्धि हो जाती है। नेनोकणों के मिलाने पर केवल यांत्रिकी गुणों में ही सुधार नहीं होता है ये तापीय स्थायीत्व में सुध पर कर देते हैं।
- (iv) सामान्यतः नेनोकणों उच्च प्लैस्टिकता होती है।
- (v) अधिक पृष्ठ के कारण नेनोकण सक्रमण धातुओं के आक्साइडों में उत्प्रेरक गुणधर्म उत्पन्न कर देते हैं।
- (vi) चुम्बकीय नेनोकण अति अनुचुम्बकत्व दर्शाते हैं और नये स्थाई चुम्बकीय पदार्थों की खोज में योगदान देते हैं।
- कोलॉइडी अवस्था में कणों का आमाप, निलंबन के और वास्तविक विलयन के कणों के आमाप का मध्यवर्ती होता है।
- कोलॉइडी तंत्र आठ प्रकार के होते हैं।
- विलयों का वर्गीकरण (i) परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के बीच अन्योन्य क्रिया (ii) परिक्षिप्त प्रावस्था के अणुक आमाप के आधार पर होता है।
- कोलॉइडी विलयन भौतिक और रासायनिक, दोनों विधियों द्वारा बनाए जाते हैं।
- कोलॉइडी कणों की टेढ़ी मेढ़ी गति को ब्राउनी गति कहते हैं।
- कोलॉइडी आमाप के कण प्रकाश का प्रकीर्णन करते हैं और धूल कणों के कारण अर्ध प्रकाशित कमरे में प्रकाश पथ दिखाई देता है।
- कोलॉइडी कणों में विद्युत आवेश होता है।
- एक द्रव का दूसरे द्रव में कोलॉइडी परिक्षेपण को पायस कहते हैं।
- यदि ठोस माध्यम में कोई द्रव परिक्षिप्त हो तो प्राप्त कोलॉइडी विलयन को जैल कहते हैं।
- कोलॉइडों का दैनिक जीवन और उद्योगों में बहुत उपयोग होता है।
- नैनो पदार्थों के कणों का आकार 1-100nm होता है। इनके कुछ खास गुणों के कारण इनका अत्यधिक उपयोग होता है।