कार्यपालिका क्या है? कार्यपालिका के प्रकार | karyapalika kya hai

कार्यपालिका

इस लेख का उद्देश्य विद्यार्थियों को सरकार के तीन अंगों यथा कार्यपालिका (Executive), विधायिका (Legislature) एवं न्यायपालिका (Judiciary) में से सबसे महत्वपूर्ण अंग कार्यपालिका (Executive) के स्वरूप तथा इसके कार्यों से अवगत कराना है।

कार्यपालिका का अर्थ

कार्यपालिका सरकार का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग है। व्यवस्थापिका जिन कानूनों को बनाती है, कार्यपालिका उन कानूनों का पालन कराती है। राज्य के समस्त प्रशासनिक कार्य कार्यपालिका ही करती है। यह इतना महत्त्वपूर्ण अंग है कि प्रायः इसी के लिए 'सरकार' शब्द का प्रयोग कर दिया जाता है, यद्यपि यह गलत प्रयोग है, क्योंकि कार्यपालिका तो सरकार के तीन अंगों में से एक है।
गिलक्राइस्ट ने कार्यपालिका को परिभाषित करते हुए कहा है कि, "कार्यपालिका सरकार का वह अंग है जो 'कानून के रूप में अभिव्यक्त जनता की इच्छा को कार्यरूप में परिणित करता है। यह वह धुरी है जिसके चारों ओर राज्य का वास्तविक प्रशासन तन्त्र घूमता है। "
कोरी ने कार्यपालिका के बारे में कहा है कि, "कार्यपालिका सरकार का सार है। व्यवस्थापिका और न्यायपालिका इसके संवैधानीकरण के यन्त्र हैं।"

कार्यपालिका का विस्तृत एवं संकुचित अर्थ
डा. गार्नर ने कहा है कि, "विस्तृत और सामूहिक अर्थ में कार्यपालिका अंग के अन्तर्गत उन सब संस्थाओं और कार्यकर्ताओं का समूह शामिल है, जो कानून के रूप में निर्मित होकर अभिव्यक्त की गई राज्य की इच्छा को लागू करता है ।" इस अर्थ में राष्ट्रपति से लेकर लोकसेवा में लगे छोटे से छोटे कर्मचारी भी कार्यपालिका में शामिल हैं । लोकसेवा से तात्पर्य स्थायी कार्यपालिका से है जिनकी नियुक्ति प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से होती है जो अपनी निर्धारित उम्र तक अपने पदों पर कार्य करते रहते हैं, भले ही राजनीतिक कार्यपालिका ( मन्त्रिमण्डल) कभी भी आती-जाती रहे । स्थायी कार्यपालिका तटस्थ रहते हुए अपनी योग्यता के कारण मन्त्रियों को परामर्श देने का कार्य भी करती है।

कार्यपालिका का संकुचित अर्थ ही सही है (Narrow Meaning of Executive is Correct ) - वर्तमान समय में जब हम कार्यपालिका का अध्ययन करते हैं तो उससे तात्पर्य राज्याध्यक्ष और मन्त्रियों से ही होता है। इस अर्थ में ब्रिटेन की कार्यपालिका वहाँ की रानी और मन्त्रिमण्डल है, भारत में राष्ट्रपति और मन्त्रिमण्डल तथा अमेरिका में राष्ट्रपति कार्यपालिका है। कार्यपालिका का यह संकुचित अर्थ ही सही है। संक्षेप में, यहाँ पर कार्यपालिका से तात्पर्य राजनीतिक कार्यपालिका से है, स्थायी कार्यपालिका (सिविल सेवक ) से नहीं है।

कार्यपालिका व्यवस्था : एक परिचय

राज्य एक अर्मूत भाव है। इसको मूर्त रूप देनेवाली संस्थागत व्यवस्था को सरकार कहा जाता है। सरकार, राज्य इच्छा का निर्माण, अभिव्यक्ति और क्रियान्वयन करने की संस्थात्मक संरचना है। कार्यपालिका सरकार या शासन का महत्वपूर्ण शाखा या अंग है, जो व्यवस्थापिका तथा आम प्रशासन के द्वारा अधिनियमित कानूनों को लागू करने के लिए उत्तरदायी होती है। अर्थात् कार्यपालन संबंधी शक्तियों से संबंधित संरचनात्मक व्यवस्था को कार्यपालिका कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, विधियों को लागू करने के लिए जिस शक्ति का प्रयोग होता है उसे कार्यपालिका शक्ति तथा इस शक्ति का प्रयोग करनेवाली संस्थात्मक संरचना को कार्यपालिका कहा जाता है।
karyapalika kya hai
कार्यपालिका शब्द के सामान्यतया दो अर्थ किये जाते हैं- एक व्यापक अर्थ व दूसरा सीमित अथवा संकीर्ण अर्थ। “एक व्यापक और सामूहिक अर्थ में कार्यपालिका के अन्तर्गत वे सभी कार्य, संस्थाएँ या एजेंसियाँ आती हैं जिनका संबंध राज्य की इच्छा के कार्यान्वयन से है जो कानून के रूप में निर्मित और व्यक्त की गई है। अर्थात् व्यापक अर्थ में कार्यपालिका का तात्पर्य, उन सभी राजकर्मचारियों से होता है जिसका संबंध राज्य के प्रशासन से होता है। इस अर्थ में कार्यपालिका राज्य के सर्वोच्च अध्यक्ष (राष्ट्रपति, सम्राट या राजा) से लेकर दफ्तर के एक चपरासी तक सभी प्रशासन कर्मचारियों को कहा जाता है। इसे जिस अर्थ में समझा जाता है उसमें सिवाए विधायिका, न्यायपालिका और शायद कूटनीतिक वृन्द के सारा शासन तंत्र आ जाता है। इस प्रकार, कर अधिकारी, निरीक्षक, आयुक्त, पुलिस विभाग वाले और शायद सेना एवं नौसेना के अधिकारी आदि कार्यपालिका संगठन के अंग हैं।
यद्यपि कार्यपालिका शब्द को व्यापक और संकीर्ण दोनों अर्थों में ही समझा जाता है। किन्तु राजनीतिक विज्ञान में कार्यपालिका का यह व्यापक अर्थ स्वीकार नहीं किया जाता है। राजनीति के अध्ययन के क्षेत्र में इसका संकीर्ण अर्थ ही लागू किया जाता है। कार्यपालिका अध्यक्ष और उसके प्रमुख सहयोगी शासन तंत्र को चलाते हैं, वे राष्ट्रीय नीति का निर्धारण करते हैं और इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि इसे सावधानीपूर्वक अमली जामा पहनाया जाय। प्रशासकों की एक बहुत बड़ी सेना होती है जिसका यह दायित्व होता है कि प्रमुख प्रशासन प्राधिकारियों द्वारा निर्मित नीति को ईमानदारी से कार्यरूप में परिणत करें।
इस अर्थ में कार्यपालिका केवल उन संस्थागत संरचनाओं को ही कहा जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था के संबंध में नीति के शुरूआत या निर्मित करने से संबंधित रहती है अर्थात् कार्यपालिका में केवल वही राजनीतिक अधिकारीगण होते हैं जिनका नीति निर्माण व उसके क्रियान्वयन से संबंध होता है तथा जो इस प्रकार के कार्य के लिए किसी के प्रति सुस्पष्ट उत्तरदायित्व निभाते हैं। यहां पर विलोवी का अभिमत है कि- "कार्यपालक शक्ति या कार्य सरकार का प्रतिनिधित्व करना और यह देखना है कि इसके विभिन्न भाग सभी कानूनों का उपयुक्त ढंग से पालन करें। प्रशासनिक कार्य यह है कि जिस कानून की घोषणा विधायी अंग और जिसकी व्याख्या सरकार के न्यायपालिका अंग द्वारा की गई है, उसे वास्तव में कार्य रूप में परिणत किया जाए। यह विभेद आवश्यक अर्थ में प्रशासकीय कार्यों का राजनीतिक स्वभाव घोषित करके किया जाता है अर्थात् इसके इस्तेमाल करने में निर्णय के प्रयोग का संबंध है, और प्रशासनिक कार्य वह है जिसका संबंध नीतियों को कार्य रूप में परिणत करना और अन्य अंगों द्वारा दिए या निर्धारित किए गए आदेशों को अमली जामा पहनाना है।"
इसी तरह लास्की ने कहा कि- "राज्य की कार्यपालिका के दो पक्ष हैं- राजनीतिक तथा विभागीय। एक ओर राजनेताओं का एक छोटा निकाय है जो विधानिका की स्वीकृति के लिए अपनी नीति प्रस्तुत करते हैं, तथा उसकी स्वीकृति के उपरान्त इसके क्रियान्वयन के हेतु उत्तरदायी होते हैं, दूसरी ओर, अधिकारियों का काफी बड़ा निकाय होता है जो राजनेताओं के संकल्पों को लागू करते हैं।"
इस प्रकार, लोकतंत्र शासन व्यवस्थाओं में मंत्रिमंडल नीति बनाते हैं और वे इस नीति निर्माण के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं, इसलिए हम इसको कार्यपालिका कह सकते हैं। अतः सीमित अर्थ में कार्यपालिका केवल राज्य के प्रधान तथा उसके मंत्रिमण्डल को ही कहा जाता है।

कार्यपालिका के प्रकार

आधुनिक राज्य के अन्तर्गत कार्यपालिका की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि आम बोलचाल की भाषा में कार्यपालिका को ही 'सरकार' के रूप में पहचाना जाता है। यद्यपि कार्यपालिका वास्तव में सरकार का केवल एक अंग है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि कार्यपालिका अपनी मर्यादा में रहे। जहां सारी शक्तियां कार्यपालिका की हाथों में आ जाती हैं, वह अधिनायकतंत्र (Dictatorship) की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। यह स्थिति अलोकतंत्रवादी देशों में देखने को मिलती है। लोकतंत्रीय देशों में भी इसकी अधिकार सत्ता जितनी समझी जाती है उससे बहुत अधिक होती है। फाइनर का कहना है कि "सरकार के दो अन्य अंग विधायिका और न्यायपालिका के जितने अधिकार होते हैं, उनके बाद बचे बाकी सभी अधिकार कार्यपालिका के ही हैं। विधायिका द्वारा बनाये गये और अदालतों द्वारा व्याख्या किये कानूनों को लागू करने के अलावा और भी बहुत से दूसरे काम कार्यपालिका करती है।"
विभिन्न शासन प्रणालियों के अन्तर्गत कार्यपालिका भिन्न-भिन्न रूपों में अपनी भूमिका निभाती है। अतः कार्यपालिका के स्वरूप और भूमिका को समझने के लिए इसके भिन्न-भिन्न रूपों की जानकारी आवश्यक है। इसका वर्गीकृत रूप इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है।
karyapalika kya hai

नाममात्र की या औपचारिक कार्यपालिका 
नाममात्र की तथा वास्तविक कार्यपालिका के भेद उस राजनीतिक व्यवस्था से संबंधित है जहां संवैधानिक राजतंत्र अथवा संसदीय शासन प्रणाली हो। राजा अथवा कोई निर्वाचित प्रमुख (जैसे राष्ट्रपति) संवैधानिक रूप से नाममात्र का प्रमुख होता है जिसके पास वास्तविक शक्तियां नहीं होतीं अथवा बहुत कम होती हैं। खासकर संसदीय शासन प्रणाली के देशों में नाममात्र की कार्यपालिका को देश के वास्तविक शासन का काम बहुत कम करना पड़ता है। यद्यपि, उसी के नाम से सम्पूर्ण शासन का संचालन होता है, पर उसके सारे कार्यों पर एक मंत्री की सहमति आवश्यक होती है अर्थात ऐसी व्यवस्था में वास्तविक शक्ति (प्रधानमंत्री) के अधीन मंत्रियों की परिषद को दी जाती है जो विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है। मंत्री ही वास्तविक कार्यपालिका का गठन करते हैं। नाममात्र की कार्यपालिका द्वारा किये जानेवाले अनेक कार्य रस्मी होते हैं, जैसे वह संसद का अधिवेशन बुलाता है, स्थगित करता है और उसे भंग करता है पर यह सब काम तात्कालिक मंत्रिमंडल के निश्चय के अनुसार ही होता है। राजा तो नाममात्र का सम्प्रभु है। वह राज तो करता है पर शासन नहीं करता तथापि कुछ अवसरों पर वह स्वविवेक से काम करता है यथा-जब किसी पार्टी में एक से अधिक स्वीकृत नेता हो और प्रधानमंत्री पद का चयन करना हो या जब निचले सदन में किसी पार्टी का स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो। नाममात्र की कार्यपालिका का सर्वोत्तम उदाहरण ब्रिटेन का राजा (अथवा रानी) है जो एक सुस्थापित कहावत के अनुसार 'कोई गलती नहीं कर सकता।'

नाममात्र की कार्यपालिका दो प्रकार की होती है- पैतृक या आनुवंशिक और निर्वाचित। अर्थात् नरेश आनुवंशिक उत्तराधिकार के कानून के अनुसार अपने पद पर आसीन हो सकता है अथवा उसे किसी प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रक्रिया से निर्वाचित किया जा सकता है।
वस्तुतः नाममात्र, आलंकारिक या सांकेतिक कार्यपालिका संसदीय शासन प्रणाली की देन है। यहां राज्याध्यक्ष के पद पर कोई नृपति (king) या राष्ट्रपति विराजमान होता है। सांकेतिक कार्यकारी की भूमिका गौण होती है। साथ ही नाममात्र या सांकेतिक कार्यकारी राज्य का सांविधानिक प्रमुख या अध्यक्ष होता है। वह दलगत राजनीति से ऊपर होता है। अतः सर्वत्र आदर का पात्र होता है। इस तरह, वह राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन जाता है।

वास्तविक या यथार्थ कार्यपालिका
जब कार्यपालिका का प्रधान नाममात्र का प्रधान न होकर राज्य की समस्त शक्तियों का प्रयोग करता है, तब हम उसे वास्तविक कार्यपालिका कहते हैं। जैसे अमेरिका का राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका का उदाहरण है। संसदीय प्रणाली में शासन की यथार्थ शक्तियाँ मंत्रिमण्डल के हाथों में रहती हैं, जिसे हम यथार्थ (वास्तविक) कार्यपालिका की श्रेणी में रखते हैं। वास्तव में, सबसे अधिक महत्व वास्तविक कार्यपालिका का है।

एकल और बहुल कार्यपालिका
एकल कार्यपालिका
एकल कार्यपालिका वह है जिसका अध्यक्ष एक नेता होता है और जिसकी शक्तियों में इसका कोई भाग नहीं होता अर्थात् जिस कार्यपालिका में सारी कार्यकारणी शक्तियाँ एक ही व्यक्ति के हाथों में रहती हैं, उसे एकल कार्यपालिका कहते हैं। राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री का नेतृत्व इसी कोटि से संबंधित है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय सरकार की सारी कार्यकारी शक्तियाँ राष्ट्रपति के हाथों में रहती हैं जिसे मुख्य कार्यकारी कहा जाता है। राष्ट्रपति के मंत्रिमण्डल के सदस्य उसके 'सेवक' मात्र होते हैं। अतः वहां की कार्यपालिका एकल कार्यपालिका की श्रेणी में आती है।
इधर ब्रिटिश कार्यपालिका जैसी संसदीय कार्यपालिका में सिद्धान्ततः मंत्रिमण्डल में सामूहिक उत्तरदायित्व को मान्यता दी जाती है। परन्तु व्यवहारतः वहां प्रधानमंत्री निर्णायक भूमिका निभाता है। अतः इसे भी एकल कार्यपालिका ही माना जाता है।

बहुल कार्यपालिका
दूसरी ओर, बहुल कार्यपालिका की स्थिति एकल कार्यपालिका से भिन्न है, जहाँ मंत्रियों के समूह को निर्देश देने का अधिकार होता है, अर्थात् बहुल कार्यपालिका ऐसी कार्यपालिका है जिसमें अनेक सदस्य संयुक्त रूप से सारे महत्वपूर्ण निर्णय करते हैं, और मंत्रिमण्डल में उनकी स्थिति सर्वथा समान होती है। किसी सदस्य की स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति या ब्रिटिश प्रधानमंत्री के तुल्य नहीं होती। वस्तुतः इसमें कार्यपालिका शक्ति एक व्यक्ति में सीमित न रहकर व्यक्तियों की एक समिति में निहित होती है। कार्यपालिका का एक विलक्षण, उदाहरण स्विट्जरलैण्ड की संघीय परिषद् (Swiss Federal Council) है। इसमें सात सदस्यों की व्यवस्था है। इसकी कार्यकारी शक्ति किसी एक जगह केंद्रित नहीं है, बल्कि इसके सब सदस्य मिल-जुलकर कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हैं। यह परिषद अपने एक सदस्य को बारी-बारी से एक वर्ष के लिए अपना अध्यक्ष चुनती है। परन्तु वह केवल इसके सामूहिक निर्णय को अभिव्यक्ति प्रदान करता है।

राजनैतिक (अस्थायी) तथा गैर-राजनैतिक (स्थायी) कार्यपालिका
(क) राजनैतिक का अस्थायी कार्यपालिका
लोकतंत्रीय प्रणाली के अन्तर्गत राजनीतिक निर्णय तथा सर्वोच्च प्रशासनिक निर्णय मुख्य कार्यकारी (Chief Executive) अथवा मंत्रिमण्डल के हाथ में रहते हैं। इन्हें हम राजनीतिक कार्यपालिका के श्रेणी में रखते हैं, क्योंकि ये आवधिक चुनाव में विजय प्राप्त करके इस पद पर पहुंचते हैं, और इन्हें अपने पद पर बने रहने के लिए बार-बार मतदाताओं या उनके प्रतिनिधियों का समर्थन और विश्वास प्राप्त करना होता है। जनमत में परिवर्तन होने पर पूरानी राजनीतिक कार्यपालिका की जगह नई कार्यपालिका सत्तारूढ़ होती है। अतः राजनीतिक कार्यपालिका स्वभावतः अस्थायी होती है। इसमें मंत्री, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या चांसलर के अधीन होते हैं जो कुछ समय तक अपने पदों पर रहते हैं तथा जिनका किसी राजनीतिक दल अथवा दलों से संबंध होता है।

(ख) गैर राजनीतिक या स्थाई कार्यपालिका
दूसरी ओर, इसमें अनेक असैनिक अधिकारियों को शामिल किया जाता है। प्रशासन के अधिकारियों की नियुक्ति योग्यता और कार्य-कुशलता (प्रशिक्षण) के आधार पर की जाती है जो अपने पद पर बने रहने के लिए राजनीतिक समर्थन पर आश्रित नहीं होते, ये सेवा निवृत्ति की निश्चित आयु तक अपने पद पर बने रहते हैं। साथ ही वे किसी विशेष राजनीतिक दल के साथ प्रतिबद्ध नहीं होते हैं। इनका काम राजनीतिक कार्यपालिका के निर्णयों को कार्यान्वित करना है। राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन होने से इनके अस्तित्व पर कोई आँच नहीं आती। यही कारण है कि इन अधिकारियों के समुच्चय या नौकरशाही (अधिकारीतंत्र) को स्थायी कार्यपालिका कहते हैं। उदाहरण के लिए राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन होने पर मंत्रिमण्डल के मंत्री या उपमंत्री को अपने पद से हट जाना पड़ता है, परन्तु सचिवालय का सचिव या उप-सचिव फिर भी अपने पद पर बना रहता है और नई नीति को कार्यान्वित करने की भूमिका संभाल लेता है।

लोकतांत्रिक, सर्वाधिकारवादी और उपनिवेशवादी राज्यों की कार्यपालिका
लोकतांत्रिक कार्यपालिका
जब इसके सदस्यों का चुनाव लोगों द्वारा किया जाता है तो यह लोकतांत्रिक होती है। यह अपने निर्वाचकों के प्रति उत्तरदायी होती है। इसमें मंत्रियों के आचरण की आलोचना करने और उनकी निन्दा करने की आजादी होती है जिसका परिणाम होता है कि उनके विरुद्ध अविश्वास अथवा महाभियोग का प्रस्ताव पास हो जाने की स्थिति में वास्तविक कार्यपालिका को पद से मुक्त होना पड़ता है। ब्रिटिश मंत्रिमण्डल को हाउस आफ कामन्स में प्रतिकूल मत के परिणाम स्वरूप हटाया जा सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया से हटाया जा सकता है। ये राजनीतिक कार्यपालिकाओं के ऐसे उदाहरण हैं जिनका संबंध लोकतांत्रिक वर्ग से है।

सर्वाधिकारवादी पद्धति का रूप (कार्यपालिका)
सर्वाधिकारवादी पद्धति में वास्तविक कार्यपालिका को लोगों या उनके चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा नहीं हटाया जा सकता क्योंकि वहां सरकार के व्यवहार की आलोचना अथवा निन्दा करने की स्वतंत्रता नहीं होती। किसी विशेष राजनीतिक दल के उच्चतम नेता या किसी सैनिक मंडली के बड़े-बड़े अधिकारी शासन का संचालन इस प्रकार करते हैं कि विरोध का अर्थ विनाश या अंगभंग होता है। जिस देश में फासिस्ट शासन प्रणाली हो, या सैनिक मंडली का शासन हो, या जो मार्क्सवादी लेनिनवादी विचारधारा से सम्बद्ध हो, इसी वर्ग में शामिल किये जा सकते हैं।

उपनिवेशवादी कार्यपालिका
उपनिवेशवादी कार्यपालिका वह है जो एक उपनिवेशवादी शासन के पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के अधीन कार्य करती है। इसे 'नामित कार्यपालिका' भी कहा जा सकता है, क्योंकि एक आश्रित देश के वास्तविक शासकों को उपनिवेशी शक्ति के द्वारा नामित किया जाता है। उदाहरण के लिए- भारत में स्वतंत्रता से पूर्व इसी प्रकार की कार्यपालिका का अस्तित्व था।

संसदीय, अध्यक्षीय (राष्ट्रपतीय) तथा अर्द्ध-राष्ट्रपतीय कार्यपालिका
संसदीय (मंत्रिमण्डल) कार्यपालिका
संसदीय शासन प्रणाली वह है जिसका संचालन एक मंत्रिमण्डल या मंत्रिपरिषद (प्रधानमंत्री की अध्यक्षता) द्वारा किया जाता है और जो सामूहिक रूप में विधायिका के प्रति उत्तरदायी है। यह शक्तियों के संकेन्द्रण के सिद्धान्त के आधार पर कार्य करता है क्योंकि मंत्रिमण्डल उस कड़ी की भाँति है जो विधायी और कार्यपालक विभागों को आपस में जोड़ती है।
संसदीय कार्यपालिका या मंत्रिमण्डल के सदस्य संसद अर्थात विधानमण्डल के सदस्यों से चुने जाते हैं, और वे अपने अस्तित्व के लिए विधानमण्डल के निरन्तर विश्वास और समर्थन पर आश्रित होते हैं। इस पद्धति के अन्तर्गत सांकेतिक कार्यकारी अर्थात सम्राट या राष्ट्रपति को न तो कोई यर्थात् शक्तियां प्राप्त होती हैं, न उसका कोई उत्तरदायित्व होता है। इंगलैण्ड तथा भारत में इसी प्रकार की कार्यपालिका है।

राष्ट्रपतीय या अध्यक्षात्मक कार्यपालिका
संसदीय कार्यपालिका से भिन्न राष्ट्रपतीय या अध्यक्षात्मक कार्यपालिका है। इसमें राष्ट्रपति वास्तविक शक्तियों का उपभोग करता है अर्थात् यह राष्ट्रपति के नेतृत्व के अधीन कार्य करती है जो (और उसके मंत्री भी) विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होते, यद्यपि विधायिका उसे महाभियोग की प्रक्रिया से हटा सकती है। इस प्रकार की कार्यपालिका शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धान्त के आधार पर कार्य करती है। अध्यक्षीय कार्यपालिका सांविधानिक दृष्टि से विधानमण्डल से स्वतंत्र होती है अर्थात् न तो उसका कार्यकाल विधानमण्डल के समर्थन पर आश्रित होता है, न वह अपने कार्यों के लिए विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होती है।

अर्द्ध राष्ट्रपतीय अथवा अर्द्ध संसदीय (संसदीयवत या राष्ट्रपतीयवत)
संसदीय एवं राष्ट्रपतीय के बीच में फ्रांस व श्रीलंकाई कार्यपालिका का प्रतिमान है जिसे इस तथ्य के कारण संसदीयवत पर राष्ट्रपतीयवत कहा जा सकता है कि इसमें राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका है जबकि मंत्रिमण्डल (प्रधानमंत्री के साथ) उसके नियंत्रण में है, लेकिन साथ ही वह संसद के प्रति उत्तरदायी भी है।

कार्यपालिका के कार्य

विभिन्न प्रकार के शासन प्रणालियों के अन्तर्गत कार्यपालिका के कार्य पृथक्-पृथक् होते हैं। उदाहरण के लिए अधिनायक तन्त्र शासन में कार्यपालिका के कार्यों की सीमा ही नहीं है। संसदीय शासन में कार्यपालिका के कार्य अध्यक्षीय कार्यपालिका से कुछ भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिकन अध्यक्षीय शासन में राष्ट्रपति को विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों में वसन्धियों में सीनेट की स्वीकृति लेनी होती है, परन्तु संसदीय शासन में कार्यपालिका नियुक्तियों में स्वतन्त्र है। यहाँ पर हम आधुनिक प्रजातन्त्र शासन में कार्यपालिका के प्रमुख कार्यों का अध्ययन कर रहे हैं-

(1) प्रशासन सम्बन्धी कार्य
कार्यपालिका का पहला कार्य प्रशासन से सम्बन्धित है, चाहे वह कैसी भी शासन प्रणाली हो । कार्यपालिका ही व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गये कानूनों को लागू करती है और देश में शान्ति व व्यवस्था रखती है। इन कार्यों को पूरा करने के लिए वह नागरिक व सैनिक प्रशासनिक संगठन की स्थापना करती है । शान्ति और व्यवस्था के कार्य को पूरा करने के लिए कार्यपालिका 'गृह विभाग' की स्थापना करती है। इस विभाग के कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति आदि के लिए तरीके व सेवा शर्तें निश्चित करती है।
लूथर गुलिक ने कार्यपालिका के कार्यों को एक शब्द 'पोस्डकार्ब' (POSDCORE) में पिरोया है। इस सूत्र में प्रत्येक पहले शब्द का अर्थ इस प्रकार है—
  • P (Planning)— योजना बनाना ।
  • O (Organising) — संगठन बनाना ।
  • S (Staffing ) – कार्मिक प्रबन्ध अर्थात् कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति, सेवा शर्तें, आदि ।
  • D (Directing ) — निर्देशन करना ( कर्मचारियों का पथ-प्रदर्शन) ।
  • Co (Co-ordinating ) – समन्वय करना ( प्रशासन के विभिन्न अंगों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करना) ।
  • R (Reporting ) — रिपोर्ट या प्रतिवेदन तैयार करना ।
  • B (Budgeting) — बजट तैयार करना ।

(2) राजनैतिक या कूटनीतिक कार्य
यह कार्य मुख्यतया वैदेशिक सम्बन्धों के संचालन से सम्बन्धित है। इस कार्य के अन्तर्गत वैदेशिक सम्बन्ध, अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि व दूसरी व्यापारिक सन्धियाँ, युद्ध की घोषणा, विदेशी कूटनीतिज्ञों, राजदूतों आदि का स्वागत आदि कार्य आते हैं। अमेरिका में कार्यपालिका ( राष्ट्रपति) को अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियाँ करने से पहले व्यवस्थापिका के उच्च सदन की स्वीकृति लेनी होती है, परन्तु ब्रिटेन, भारत आदि देशों में ऐसा संवैधानिक कानून नहीं है।

(3) सैनिक कार्य
कार्यपालिका का एक महत्त्वपूर्ण कार्य देश की अखण्डता की रक्षा और विदेशी आक्रमण की स्थिति में देश की सुरक्षा करना है। कार्यपालिका का जो विभाग इस कार्य को करता है, उसे 'सुरक्षा विभाग' कहते हैं। यह विभाग देश की सुरक्षा के लिए सशस्त्र सेनाओं का संगठन करता है, जनरलों व कमाण्डरों की नियुक्ति करता है ।
ब्रिटेन, भारत आदि देशों में कार्यपालिका के सैनिक कार्य में युद्ध की घोषणा करने का अधिकार शामिल है। फ्रांस में संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति से ही युद्ध की घोषणा की जा सकती है। अमेरिका में युद्ध की घोषणा केवल काँग्रेस ( व्यवस्थापिका) ही कर सकती है। हाँ, राष्ट्रपति वैदेशिक मामलों का संचालन करते हुए ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर सकता है कि युद्ध की घोषणा अनिवार्य हो जाय।

(4) व्यवस्थापिका सम्बन्धी कार्य
कार्यपालिका का व्यवस्थापिका या कानून निर्माण सम्बन्धी कार्य किसी राज्य की कार्यपालिका के स्वरूप पर निर्भर करता है । संसदीय कार्यपालिका में तो सही अर्थों में कानून निर्माण मन्त्रिमण्डल द्वारा ही होता है । मन्त्रिगण संसद के ही सदस्य होते हैं, अतः वे विधि निर्माण में संसद का नेतृत्व करते हैं। मन्त्रिमण्डल ही संसद के अधिवेशन बुलाता है, उनका सत्रावसान करता है, निचले सदन को भंग कराता है। संसद में मन्त्रियों द्वारा रखे गये विधेयक ही प्रायः पास होते हैं। संसद के अधिवेशन न होने की स्थिति में कार्यपालिका अध्यादेश (Ordinance) भी जारी करती है। कार्यपालिका प्रदत्त व्यवस्थापन (delegate legislation) के अधिकार का भी उपयोग करती है।
अमेरिकन अध्यक्षीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति सीमित रूप से विधि निर्माण में भाग लेता है। राष्ट्रपति - (i) काँग्रेस के विशेष अधिवेशन बुला सकता है, (ii) काँग्रेस को सन्देश भेज सकता है, (iii) काँग्रेस द्वारा पारित कानूनों पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं, इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति को 'सीमित वीटो शक्ति' प्राप्त है। वह एक बार काँग्रेस ( केन्द्रीय विधानमण्डल) को पुनर्विचार के लिए विधेयकों को लौटा सकता है। परन्तु वह काँग्रेस को भंग नहीं कर सकता और दूसरी बार काँग्रेस द्वारा पारित विधेयक पर उसे अपनी स्वीकृति देनी होती है।

(5) वित्तीय कार्य
राष्ट्र का बजट व्यवस्थापिका द्वारा स्वीकृत होता है । संसदीय कार्यपालिका में बजट निर्माण में कार्यपालिका का प्रत्यक्ष और मुख्य भाग रहता है। यह कार्य 'वित्त विभाग' द्वारा पूरा होता है। बजट के रूप में यह विभाग प्रतिवर्ष आय और व्यय के मदों का निर्धारण करता है। अमेरिकन अध्यक्षीय कार्यपालिका में यद्यपि राष्ट्रपति के निर्देशन में बजट तैयार होता है, फिर भी इस बजट पर राष्ट्रपति का वह नियन्त्रण नहीं रहता जो संसदीय कार्यपालिका में मन्त्रिमण्डल का होता है।

(6) न्यायिक कार्य
प्रत्येक देश में कार्यपालिका कुछ न्यायिक कार्य भी करती है। कार्यपालिका के प्रधान को अपराधियों को क्षमादान करने, विशेष अवसरों पर 'सर्वक्षमा' (General amnesty ) करने का अधिकार होता है। भारत, अमेरिका आदि देशों में कार्यपालिका प्रधान को ऐसी शक्तियाँ प्राप्त हैं। कार्यपालिका न्यायाधीशों की नियुक्ति भी करती है।

(7) कार्यपालिका के अन्य कार्य
कार्यपालिका के अन्य कार्य निम्नलिखित हैं-
  • कार्यपालिका अपने नागरिकों को विशिष्ट सेवाओं के लिए सम्मान, अलंकार या उपाधि प्रदान करती है। आर्थिक सहायता व पेन्शन भी देती है।
  • कार्यपालिका शिक्षा, कृषि, व्यापार, यातायात आदि सम्बन्धी अनेक कार्य करती है।
  • ब्रिटेन का सम्राट् 'कॉमन वैल्थ' के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करता है ।
  • भारत के राष्ट्रपति को आपातकालीन शक्तियाँ प्राप्त हैं।

राजनैतिक कार्यपालिका

क्या आपको उस सरकारी आदेश की कहानी याद है जिससे हमने इस अध्याय का प्रारम्भ किया था ? हमने पाया कि जिस व्यक्ति ने इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे उसने यह फैसला नहीं किया था। वह केवल एक नीतिगत निर्णय को लागू कर रहा था जिसे किसी और ने पारित किया था। हमने यह फैसला करने में प्रधानमंत्री की भूमिका देखी थी। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि यदि उन्हें लोकसभा का समर्थन नहीं प्राप्त होता तो वे यह फैसला नहीं कर सकते थे। इस अर्थ में वे मात्र संसद की मर्जी को लागू कर रहे थे।
इसी प्रकार किसी भी सरकार के विभिन्न स्तरों पर हमें ऐसे अधिकारी मिलते हैं जो प्रतिदिन फैसले करते हैं लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि वे जनता के द्वारा दिए गए सबसे बड़े अधिकारों का इस रूप में प्रयोग कर रहे हैं। इन सभी अधिकारियों को सामूहिक रूप से कार्यपालिका के रूप में जाना जाता है। सरकार की नीतियों को 'कार्यरूप' देने के कारण इन्हें कार्यपालिका कहते हैं। इस प्रकार जब हम 'सरकार' के सम्बन्ध में बात करते हैं तो हमारा आशय आम तौर पर कार्यपालिका से ही होता है।

राजनैतिक और स्थायी कार्यपालिका
किसी लोकतांत्रिक देश में कार्यपालिका के दो भाग होते हैं। जनता द्वारा विशेष अवधि तक के लिए निर्वाचित लोगों को राजनैतिक कार्यपालिका कहते हैं। ये राजनैतिक व्यक्ति होते हैं जो बड़े निर्णय करते हैं। दूसरी ओर जिन्हें लंबे समय के लिए नियुक्त किया जाता है उन्हें स्थायी कार्यपालिका या प्रशासनिक सेवक कहा जाता है। लोक सेवाओं में काम करने वाले लोगों को सिविल सर्वेंट या नौकरशाह कहते हैं। वे सत्ताधारी पार्टी के बदलने पर भी अपने पदों पर बने रहते हैं। ये अधिकारी राजनैतिक कार्यपालिका के अन्तर्गत कार्य करते हैं और रोजमर्रा के प्रशासन में उनकी मदद करते हैं। क्या आप कार्यालय ज्ञापन के मामले में राजनैतिक तथा गैर-राजनैतिक कार्यपालिका की भूमिका बता सकते हैं?
आप पूछ सकते हैं कि राजनैतिक कार्यपालक को गैर-राजनैतिक कार्यपालक से ज्यादा अधिकार क्यों प्राप्त होते हैं? मंत्री किसी नौकरशाह से ज्यादा प्रभावशाली क्यों होता है? नौकरशाह प्रायः अधिक शिक्षित होता है तथा उसे विषय की अधिक जानकारी होती है। वित्त मंत्रालय में काम करने वाले सलाहकारों को अर्थशास्त्र की जानकारी वित्त मंत्री से अधिक हो सकती है। कभी-कभी मंत्रियों को अपने मंत्रालय के अधीनस्थ मामलों की तकनीकी जानकारी बहुत कम हो सकती है। रक्षा, उद्योग, स्वास्थ्य विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, खान आदि मंत्रालयों में ऐसा होना सामान्य बात है। फिर इन मामलों में अंतिम निर्णय करने का अधिकार मंत्रियों को क्यों हो?
इसकी वजह बहुत सीधी है। किसी भी लोकतंत्र में लोगों की इच्छा सर्वोपरि मानी जाती है। मंत्री लोगों द्वारा चुना गया होता है तथा इस प्रकार उसे जनता की ओर से उनकी इच्छाओं को लागू करने का अधिकार प्राप्त होता है। वह अपने फैसले के नतीजे के लिए लोगों के प्रति उत्तरदायी होता है। इसी वजह से मंत्री ही सारे फैसले करता है। मंत्री ही उस ढाँचे तथा उद्देश्यों को निर्धारित करता है जिसमें नीतिगत फैसले किए जाते हैं। किसी मंत्री से अपने मंत्रालय के मामलों का विशेषज्ञ होने की बिल्कुल उम्मीद नहीं की जाती। सभी तकनीकी मामलों पर मंत्री विशेषज्ञों की सलाह लेता है परन्तु विशेषज्ञ प्राय: अलग राय रखते हैं या फिर वे एक से अधिक विकल्प मंत्री के सामने प्रस्तुत करते हैं। मंत्री अपने उद्देश्यों के अनुसार ही निर्णय लेता है।
वस्तुतः, ऐसा प्रत्येक बड़े संगठन में होता है। जो पूर्ण मामले को भली-भाँति समझते हैं, वे ही सबसे महत्त्वपूर्ण फैसले करते हैं, विशेषज्ञ नहीं करते । विशेषज्ञ रास्ता बता सकते हैं परन्तु व्यापक नजरिया रखने वाला व्यक्ति ही मंजिल के सम्बन्ध में फैसला करता है। लोकतंत्र में निर्वाचित मंत्री इसी व्यापक नजरिए वाले व्यक्ति की भूमिका निभाते हैं।

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