पदार्थ किसे कहते है? परिभाषा, प्रकार, उदाहरण, अवस्थाएं एवं परिवर्तन | padarth kise kahate hain

पदार्थ की परिभाषा

पदार्थ स्थान घेरता है और उसमें द्रव्यमान होता है। अतः वे सभी वस्तुएँ जो स्थान घेरती है, जिनमें द्रव्यमान होता है और जिनका अनुभव हम ज्ञानेन्द्रियों द्वारा कर सकते हैं पदार्थ कहलाती हैं।

पदार्थ के मूल लक्षण

  • पदार्थ स्थान घेरता है- सभी द्रव्य (ठोस, द्रव अथवा गैस) स्थान घेरते हैं। द्रव्य से बनी कोई वस्तु जितना स्थान घेरती है, उसे वस्तु का आयतन कहते हैं। अतः आयतन द्रव्य का मूल लक्षण है।
  • पदार्थ में जड़त्व होता है- किसी भी प्रकार के पदार्थ (ठोस, द्रव अथवा गैस) से बनी वस्तु पर कोई, बाह्य बल लगाये बिना, वस्तु की विराम अथवा एक-समान गति की अवस्था में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। पदार्थ की इस प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं। इसकी माप द्रव्यमान से की जाती है।
  • गुरूत्वाकर्षण- पदार्थ के किन्हीं भी दो कणों अथवा पिण्डों के बीच पारस्परिक आकर्षण का बल कार्य करता है, जिसे गुरूत्वाकर्षण कहते हैं। पदार्थ के किसी एक खण्ड द्वारा पदार्थ के किसी दूसरे खण्ड पर गुरूत्वाकर्षण बल आरोपित करना द्रव्य का मूल लक्षण है।
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पदार्थ का वर्गीकरण

पदार्थ में उपस्थित अवयवों के आधार पर इन्हें दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
  • पदार्थ का भौतिक वगीकरण
  • पदार्थ का रासायनिक वगीकरण

पदार्थ का भौतिक वर्गीकरण
वर्गीकरण भौतिक अवस्था के आधार पर पदार्थों को तीन वर्गों में बांटा गया है।
ये तीन वर्ग हैं-
  1. ठोस (Solid)
  2. द्रव (Liquid)
  3. गैस (Gas)
दूसरे शब्दों में पदार्थ इन्ही तीन अवस्थाओं में रहते हैं। किसी पदार्थ की अवस्था (ठोस, द्रव या गैस) उसके अन्तराण्विक बल (Intermolecular Force) पर निर्भर करती है।

>> पदार्थ की अवस्थाएँ

ठोस (Solid)

  • ठोस पदार्थ की वह अवस्था है, जिसमे उसके आकार एवं आयतन निश्चित होते हैं। जैसे- कुर्सी, मेज, ईंट, पत्थर की मूर्ति, दवात, कलम, तांबा आदि।
  • जब पदार्थ के अणुओं मे परस्पर आकर्षण बल पृथक्कारी बल से सबल होता है, तो पदार्थ ठोस अवस्था में रहता है। इस प्रकार ठोस पदार्थ के अणुओं मे परस्पर आकर्षण बल सबल होता है। सबल आकर्षण बल के कारण ठोस पदार्थों के अणु घने रूप में संकुलित (एक दूसरे के बिल्कुल समीप) होते हैं तथा उनकी स्थितियाँ निश्चित होती हैं। इन्ही स्थितियों के इर्द-गिर्द ये सिर्फ अपने अन्तराण्विक अंतराल मे कम्पन करते रहते हैं, जब तक कि उन पर बाहर से कोई बल नही लगाया जाता। इसी कारण से ठोस पदार्थों के आकार और आयतन निश्चित होते हैं।
  • ठोसों के कण आपस मे अत्यधिक निकट होते हैं, इस कारण इनमें उच्च घनत्व और असंपीड्यता होती है। ठोसों में कणो की उच्च क्रम मे व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते हैं, जिसके फलस्वरूप क्रिस्टलों की एक नियमित ज्यामितीय आकृति होती है।

द्रव (Liquid)

द्रव पदार्थ की वह अवस्था है, जिसमें उसका आयतन निश्चित होता है, परन्तु आकार अनिश्चित होता है, जैसे- दूध, पानी, तेल, शराब आदि। द्रव पदार्थ की सभी स्थितियों मे ऊपरी सतह हमेशा समतल होती है। द्रव पदार्थ को बहने वाला द्रव (Fluid) भी व हैं। जब पदार्थ मे आकर्षण बल, पृथक्कारी बल से कुछ ही सबल होता है, तो पदार्थ द्रव अवस्था में रहता है। इस तरह द्रव पदार्थ के अणुओं मे परस्पर आकर्षण बल, ठोस अवस्था की अपेक्षा कमजोर होता है। इसी कारण द्रव पदार्थ में अणु कम घने रूप में संकुलित होते है तथा ये गति करने के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं परन्तु ये अणु पदार्थ के अंदर ही इधर-उधर गति कर सकते हैं। द्रव पदार्थ के अणु ठोस पदार्थ की अपेक्षा दूर-दूर रहते हैं। फिर भी, इनमे बीच की दूरी बहुत अधिक नही होती है। अतः द्रव पदार्थ अपना आकार आसानी से बदल सकते हैं, परन्तु उनका आयतन नही बदलता है। इसी कारण द्रव पदार्थ का आयतन निश्चित, परन्तु आकार अनिश्चित होता है। द्रव पदार्थ का घनत्व गैस से अधिक किन्तु ठोस से कम होता है।

गैस (Gas)

  • गैस पदार्थ की वह अवस्था है, जिसमें उसके आकार और आयतन दोनों अनिश्चित होते हैं। जैसे- वायु, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, क्लोरीन आदि।
  • गैस अवस्था मे पदार्थ का न तो कोई आकार होता है और न कोई आयतन। गैसीय पदार्थ को जिस पात्र में रख दिया जाता है, वह उसी का आकार एवं आयतन ग्रहण कर लेती है। गैस का कोई पृष्ठ-तल नही होता है। गैस भी द्रव की भाँति एक बर्तन से दूसरे बर्तन मे डाली जा सकती है। इसी कारण गैस को भी द्रव जैसा, बहने वाला द्रव (Fluid) कहते हैं।
  • जब पदार्थ के अणुओं मे परस्पर आकर्षण बल, पृथक्कारी बल की अपेक्षा काफी कमजोर होता है, तो पदार्थ गैस अवस्था में रहता है। इस तरह गैसीय पदार्थ के अणुओं में परस्पर आकर्षण बल ठोस एवं द्रव पदार्थ दोनों की अपेक्षा कमजोर होता है।
  • अत्यंत कमजोर आकर्षण बल के कारण गैसीय पदार्थ के अणु ठोस एवं द्रव पदार्थ के अणुओं की तुलना में एक-दूसरे से काफी दूर-दूर रहते हैं तथा सभी संभव दिशाओं मे गति करने के लिए स्वतंत्र रहते हैं। इसी कारण गैसीय पदार्थ का न तो कोई निश्चित आकार होता है और न ही निश्चित आयतन।
नोट- पदार्थ की इन तीनों अवस्थाओं के अतिरिक्त प्लाज्मा तथा बोस आइंस्टाइन कंडनसेट भी इसमें शमिल हैं।

पदार्थ की भौतिक अवस्थाओं मे परिवर्तन
पदार्थ तीनों अवस्थाओं में रह सकता है। बर्फ (ठोस), जल (द्रव), और जल-वाष्प (गैस) एक ही द्रव्य की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ हैं। पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन अणुओं की गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा में परितर्वन के कारण होता है।
ठोस पदार्थ को गर्म करने पर उसके अणुओं की गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है। फलतः अणुओं की बंधन ऊर्जा (जो स्थितिज ऊर्जा के कारण होती है) में कमी आ जाती है, जिससे अणु एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए अधिक स्वतंत्र हो जाते है। यह पदार्थ की द्रव अवस्था है। द्रव पदार्थ को गर्म करने पर अणुओं की गतिज ऊर्जा में अत्यधिक वृद्धि होती है, और अणु अनियमित रूप से एक -दूसरे से स्वतंत्र होकर अनियमित गति करने लगते हैं। यह पदार्थ की गैस अवस्था है।

पदार्थ की अवस्था परिवर्तन सम्बन्धी भौतिक गुण
  • गलनांक (Melting Point) - वायुमण्डल के मानक दाब पर कोई पदार्थ, जिस निश्चित ताप पर ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित होता है, उसे पदार्थ का गलनांक कहते हैं।
  • हिमांक (Freezing Point) - वायमुण्डल के मानक दाब पर कोई पदार्थ, जिस निश्चित ताप पर द्रव अवस्था से ठोस अवस्था में परिवर्तित होता है। उसे पदार्थ का हिमांक कहते हैं।
  • क्वथनांक (Boiling Point) - वायुमण्डल के मानक दाब पर कोई पदार्थ जिस निश्चित ताप पर द्रव अवस्था से वाष्प अवस्था में परिवर्तित होता है, उसे पदार्थ का क्वथनांक कहते हैं।
  • द्रवणांक (Liquefaction Point)- वायुमण्डल के मानक दाब पर, कोई पदार्थ जिस निश्चित ताप पर वाष्प अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित होता है, उसे पदार्थ का द्रवणांक कहते हैं।
  • वाष्पन (Evaporation) - यदि किसी बर्तन में कोई द्रव (जैसे जल) रखा हो तो उसके ऊपरी पृष्ठ से द्रव के अणु मुक्त होकर वायुमण्डल में जाते रहते हैं। यह क्रिया जो प्रत्येक ताप पर होती रहती है वाष्पन कहलाती है तथा इस प्रकार मुक्त हुए अणु पदार्थ को वाष्प कहते हैं।
  • संघनन (Condensation)- किसी पदार्थ की वाष्प के द्रव अवस्था में परिवर्तित होने की क्रिया को संघनन कहते हैं। किसी वाष्प को पर्याप्त रूप से ठंडा करने (ताप घटाने) अथवा बिना ठंडा किये ही वाष्प का दाब बढ़ाने से, उसे संघनित किया जा सकता है।
  • उदाहरणः जाड़े के मौसम में रात को वायुमण्डल का ताप कम हो जाने पर, वायु में उपस्थित जलवाष्प, द्रव जल की बूंदों के रूप में वस्तुओं पर संघनित हो जाता है, जिसे ओस कहते हैं। अथवा किसी गिलास में बर्फ रखने पर, आस-पास की वायु में उपस्थित जल-वाष्प, गिलास की बाहरी सतह पर ठंडी होकर, जल की बूंदों के रूप में संघनित हो जाती है। इसी प्रकार ऊपरी वायुमण्डल में जलवाष्प के ठंडे होकर संघनित होने से बादल एवं धरातल के निकट संघनित होने से कोहरा बनता है।
  • ऊर्ध्वपातन (Sublimation) - कुछ पदार्थ जैसे आयोडीन , कपूर, अमोनियम क्लोराइड या नौसादर आदि साधारण ताप पर ही ठोस अवस्था से (बिना द्रव बने) सीधे वाष्प अवस्था में परिवर्तित हो जाते है। इस क्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते है।

पदार्थ का रासायनिक वगीकरण
  1. शुद्ध पदार्थ
  2. अशुद्ध पदार्थ
रासायनिक अवस्था के आधार पर पदार्थ को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है:- शुद्ध पदार्थ, मिश्रण या अशुद्ध पदार्थ।

शुद्ध पदार्थ (Pure Substances)

ऐसे पदार्थ जिनमें एक ही प्रकार के घटक या अवयव होते हैं उन्हें शुद्ध पदार्थ कहते हैं। जैसे:- लोहा, सोना, जल, ऑक्सीजन आदि। शुद्ध पदार्थ दो प्रकार के होते है:- तत्त्व एवं यौगिक

तत्त्व (Element)
तत्त्व वह मौलिक पदार्थ है, जिसे किसी भी भौतिक या रासायनिक विधि द्वारा न तो दो या दो से अधिक सर्वथा भिन्न गुणों वाले पदार्थों में विभाजित किया जा सकता है, और न ही दो या दो से अधिक पदार्थों के बीच संयोग कराकर संश्लेषित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, वह पदार्थ जो एक ही प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना होता है, तत्त्व कहलाता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक संरचना के अनुसार तत्त्व वह पदार्थ है, जिसके प्रत्येक परमाणु का नाभिकीय आवेश समान होता है। हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सोडियम, लोहा, तांबा, सोना, चांदी, प्लेटिनम आदि तत्त्वों के प्रमुख उदाहरण हैं। तत्त्व दो प्रकार के होते हैं- धातु (Metal) और अधातु (Non-Metal)।
  • धातु तत्त्व-धातु तत्त्व विद्युत और ऊष्मा के सुचालक होते है तथा ये ठोस अवस्था में आघातवर्द्धनीय (Melleable) और तन्य (Ductile) होते हैं। लोहा, ताँबा, एल्युमीनियम, चाँदी, सोना, प्लेटिनम आदि धातु तत्व है। अधातु तत्त्व-अधातु तत्त्व विद्युत और ऊष्मा के कुचालक होते है। साथ ही अधातु तत्त्व भुरभुरे (Brittle) होते है और प्रहार करने पर चूर-चूर हो जाते हैं। गंधक, फॉस्फोरस, ऑक्सीजन, ब्रोमीन इत्यादि अधातु तत्त्व है।
  • भौतिक अवस्था के आधार पर तत्त्वों को ठोस तत्त्व, द्रव तत्व तथा गैस तत्त्व में विभाजित किया गया है। अधिकांश तत्त्व ठोस रूप में ही पाये जाते हैं। (जैसे- लोहा, सोना, तांबा, कार्बन, गंधक आदि) कुछ तत्त्वे द्रव के रूप में पाये जाते है। जैसे- पारा, ब्रोमीन आदि), जबकि कछ तत्त्व गैसीय अवस्था में पाये जाते हैं। (जैसे- हाइड्रोजन, ऑक्सीजन नाइट्रोजन, क्लोरीन आदि)। वर्तमान समय में 118 तत्वों की खोज की जा चुकी है। इनमें से 92 तत्व प्रकृति मे पाये जाते है, जबकि शेष अन्य तत्व वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशालाओं में कृत्रिम तरीकों से संश्लोषित किए गए हैं।

यौगिक (Compound)
यौगिक वह शुद्ध पदार्थ है, जो दो या दो से अधिक तत्त्वों के निश्चित अनुपात मे रासायनिक संयोग से बनता है और जिसे उचित रासायनिक विधियों द्वारा दो या दो से अधिक सर्वथा गुणों वाले अवयवों (या अवयव तत्त्वों) मे विभक्त किया जा सकता है। उदाहरण:- जल एक यौगिक है।
  • जल का प्रत्येक अणु हाइड्रोजन के दो परमाणुओं तथा ऑक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर बना होता है। किसी भी स्रोत से प्राप्त शुद्ध जल या किसी भी विधि से निर्मित जल के प्रत्येक अणु मे हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के परमाणुओं का अनुपात सदैव 2:1 होता है। भार के विचार से यह अनुपात 18 होता है। जल के भौतिक और रासायनिक गुण इसके अवयवी तत्वों-हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के गुणों से सर्वथा भिन्न होते हैं।
  • शर्करा एक यौगिक है। इसका एक अणु कार्बन के 12 परमाणुओं, हाइड्रोजन के 22 परमाणुओं और ऑक्सीजन के 11 परमाणुओं के परस्पर रासायनिक संयोग से बनता है। इसका सूत्र C13H22O11
  • यौगिक दो प्रकार के होते है:- कार्बनिक यौगिक और अकार्बनिक यौगिक
  • कार्बनिक यौगिक (Organic Compound)- कार्बन, हाइड्रोजन के व्युपन्न इस श्रेणी में आते हैं।
  • अकार्बनिक यौगिक (Inorganic Compound)- हाइड्रोकार्बन को छोड़कर शेष सभी यौगिक इसके अन्तर्गत आते हैं।

तत्त्व और यौगिक में अंतर
तत्त्व यौगिक
तत्त्व तत्त्व वह शुद्ध पदार्थ है जो समान परमाणु-क्रमांक वाले एक ही प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना होता है। उदा. कार्बन (C), हाइड्रोजन (H), ऑक्सीजन (O), आयरन (Fe), कॉपर (Cu) आदि सभी तत्त्व हैं। यौगिक वह शुद्ध पदार्थ है जो दो या दो से अधिक तत्त्वों के दो या अधिक प्रकार के परमाणुओं के द्रव्यमान के एक निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोग से बने होते है। उदा. जल अमोनिया, कार्बन-डाइऑक्साइड, आदि यौगिक हैं।
तत्त्व को भौतिक व रासायनिक विधियों द्वारा नये सरल पदार्थों में विघटित नहीं किया जा सकता है। केवल नाभिकीय क्रियाओं द्वारा एक तत्त्व को दूसरे तत्त्व में परिवर्तित किया जा सकता है यौगिक को वैद्युत अपघटन अथवा अन्य रासायनिक विधियों द्वारा अवयवी सरल पदार्थों (तत्त्वों) में विघटित किया जा सकता है। भौतिक विधियों द्वारा यौगिक को अवयवी तत्त्वों में विघटित नहीं किया जा सकता है।
कुछ तत्त्व परमाणुओं के रूप में (कॉपर, सिल्वर, गोल्ड, सोडियम, पोटैशियम आदि) जबकि कुछ अणुओं के रूप में हाइड्रोजन (H2), ऑक्सीजन (O2), नाइट्रोजन (N2) आदि पाये जाते हैं। यौगिक अणुओं के रूप में पाये जाते है। जैसे-जल, साधारण नमक।
तत्त्व के गुणधर्म उसके सूक्ष्मतम कण-परमाणु के कारण होते हैं। यौगिक के गुणधर्म उसके सूक्ष्मतम कण, अणु के कारण होते हैं और अवयवी तत्वों के गुणों से भिन्न होते हैं।

अशद्ध पदार्थ (Impure Substances)

ऐसे द्रव्य जिनमें एक से अधिक प्रकार के घटक या अवयव होते हैं, उन्हें अशुद्ध पदार्थ कहते हैं। जैसे:- शीतल पेय, मिट्टी, वायु आदि मिश्रण अशुद्ध पदार्थ हैं।

मिश्रण (Mixture)
मिश्रण वह अशुद्ध पदार्थ है, जो दो या दो से अधिक शुद्ध पदार्थों (तत्त्व या यौगिक या दोनों) के किसी भी अनुपात मे बिना रासायनिक संयोग के मिलने से बनता है तथा जिसके अवयवी पदार्थों को सरल, यांत्रिक या भौतिक विधियों द्वारा पृथक् किया जा सकता है।

उदाहरण
  • वायु अनेक गैसों एवं धूलकणों का मिश्रण है। वायु के अवयवी कण गैस मे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइ-ऑक्साइड न और जलवाष्प प्रमुख हैं।
  • समुद्री जल कई लवणों का जल में मिश्रण है, जिसमें सोडियम क्लोराइड प्रमुख लवण है।
  • पीतल, तांबा और जस्ता का मिश्रण होता है।

मिश्रण के प्रकार
मिश्रण के अवयवी पदार्थों की प्रकृति तथा बने मिश्रण के गुण एवं संघटन के आधार पर मिश्रण को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है-

1. समांगी मिश्रण (Homogeneous Mixture )- बह मिश्रण, जिसके प्रत्येक भाग में उसके अवयवी पदार्थों का संघटन एवं गुण समान होता है, समांगी मिश्रण कहलाता है।
चीनी का जल मे विलयन, नमक का जल में विलयन, गंधक का कार्बन डाईसल्फॉइड में विलयन, अमोनिया गैस का हवा में विलयन आदि समांगी मिश्रण के उदाहरण हैं।

2. असमांगी मिश्रण (Heterogeneous Mixture)- वह मिश्रण, जिसके विभिन्न भागों में उसके अवयवी पदार्थों का संघटन एवं गुण एक समान नही होते है, असमांगी मिश्रण कहलाता है।
लोहा एवं गंधक का मिश्रण, बालू एवं नमक का मिश्रण, खडिया का जल में मिश्रण, धूलकण का हवा में मिश्रण आदि असमांगी मिश्रण के उदाहरण हैं।
सामान्यतः एक असमांगी मिश्रण के अवयवी पदार्थों को एक दूसरे से अलग करना एक समांगी मिश्रण की तुलना मे अधिक आसान होता है।

तत्त्व और यौगिक में अंतर
मिश्रण यौगिक
मिश्रण से इसके अवयवी पदार्थों को भौतिक विधियों जैसे-छानना, वाष्पन, ऊर्ध्वपातन, इत्यादि द्वारा पृथक् किया जा सकता है। यौगिक यौगिक से इसके अवयवों को भौतिक विधियों द्वारा पृथक् नहीं किया जा सकता है।
मिश्रण में इसके अवयवी पदार्थों के सभी गुणधर्म पाये जाते है। यौगिक के गुणधर्म इसके अवयवी पदार्थों से भिन्न होते है।
मिश्रण के बनतें समय ऊर्जा (ऊष्मा, प्रकाश, इत्यादि के रूप में) न तो शोषित होती है और न मुक्त होती है। यौगिक के बनते समय प्रायः ऊर्जा (ऊष्मा,प्रकाश इत्यादि के रूप में) या तो शोषित होती है। या मुक्त होती है।
मिश्रण का संघटन अनिश्चित होता है। इसके अवयव द्रव्यमान के किसी भी अनुपात में हो सकते हैं। यौगिक का संघटन निश्चित होता है। यौगिक में इसके अवयव द्रव्यमान के एक निश्चित अनुपात में होते हैं।
मिश्रण का गलनांक, क्वथनांक, घनत्व इत्यादि निश्चित नहीं होता है। यौगिक का गलनांक, क्वथनांक, एवं घनत्व निश्चित होता है।
विलयन जो कि समांग होता है, को छोड़कर मिश्रण प्रायः विषमांग होते हैं। यौगिक समांग होते है।
मिश्रण में दो या दो से अधिक प्रकार के अणु हो सकते है। यौगिक में एक ही प्रकार के अणु होते हैं।

मिश्रण का पृथक्करण या शद्वीकरण की विधियाँ
मिश्रण मे उपस्थित घटकों को विभिन्न विधियों द्वारा अलग-अलग किया जाता है। मिश्रणों के पृथक्करण की कुछ सामान्य विधियाँ निम्नलिखित है-

1. निस्यंदन (Filtration)- एक विषमांगी मिश्रण में से द्रव व ठोस को अलग करने की विधि निस्यंदन कहलाती है। निस्यंदन में ठोस पदार्थ फिल्टर पेपर पर एक अवशेष के रूप में एकत्र किया जाता है और द्रव निस्यंद के रूप में प्राप्त होता है। उदाहरण-रेतीले जल से जल को पृथक् करना।

2. क्रिस्टलन (Crystallisation)- क्रिस्टलन विधि के द्वारा अकार्बनिक ठोसों मे उपस्थित घटकों का पृथक्करण एवं
शुद्धीकरण किया जाता है। इसमें उपस्थित अशुद्ध ठोस या मिश्रण को उचित विलायक के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है तथा गर्म अवस्था में ही इस विलयन को फनल (Funnel) द्वारा छाना जाता है। छानने के पश्चात् विलय किया जाता है।
ठंडा होने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टल के रूप में विलयन से पृथक हो जाता है और इसमें उपस्थित अशुद्धियाँ मातृ द्रव में घुली रह जाती हैं। इन क्रिस्टलों को छानकर अलग कर सुखा लिया जाता है। जैसे:- चासनी में से शक्कर
पृथक् करना, मिश्री बनाना तथा पानी व नमक के विलयन से नमक के क्रिस्टल प्राप्त करना आदि।

3. आसवन (Distillation)- आसवन विधि द्वारा मुख्यतः द्रवों के मिश्रण को पृथक किया जाता है। जब दो द्रवों के क्वथनांकों में अंतर अधिक होता है तो उनके मिश्रण को इस विधि से पृथक किया जाता है। आसवन विधि मे द्रव को वाष्प में परिवर्तित कर किसी दूसरे स्थान पर भेजा जाता है, जहाँ उसे ठंडा कर पुनः द्रव अवस्था में परिवर्तित कर दिया जाता है। आसवन विधि में पहला प्रक्रम वाष्पन तथा दूसरा प्रक्रम संघनन कहलाता है। उदा. जल का आसवन।

4. उर्ध्वपातन (Sublimation)- सामान्यतः ठोस पदार्थों को गर्म करने पर वे द्रव अवस्था में परिवर्तित होते हैं और उसके पश्चात गैसीय अवस्था में, लेकिन कुछ ठोस पदार्थ ऐसे होते हैं, जिन्हें गर्म किये जाने पर वे द्रव अवस्था में आने के बदले सीधे वाष्प में परिवर्तित हो जाते हैं और वाष्प को ठंडा किये जाने पर पुनः ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं ऐसे पदार्थों को उर्ध्वपातज (Sublimate) कहा जाता है व इस प्रकार की क्रिया उर्ध्वपातन (Sublimation) कहलाती है।
इस विधि के द्वारा दो ऐसे ठोसों के मिश्रण मे से उसको पथक करते हैं. जिसमें एक ठोस उर्ध्वपातज होता है दसरा नही। ऐसे ठोसों के मिश्रण को गर्म करने पर उर्ध्वपातज ठोस सीधे वाष्प अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। इस वाष्प को अलग ठंडा कर लिया जाता है। इस प्रकार दोनों ठोस पदार्थ पृथक हो जाते है। इस विधि के द्वारा कपूर, नेपथलीन अमोनियम क्लोराइड, एन्थ्रासीन, बेन्जोइक अम्ल पदार्थ शुद्ध किये जाते हैं।

5. प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation )- प्रभाजी आसवन विधि के द्वारा उन मिश्रित द्रवों का पृथक्करण किया जाता है, जिनके क्वथनांकों मे बहुत कम अंतर होता है दूसरे शब्दों में द्रवों के क्वथनांक एक-दूसरे के समीप होते हैं। भूगर्भ से निकाले गये खनिज तेल से शुद्ध पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल आदि इसी विधि द्वारा पृथक किये जाते हैं। जलीय वायु (Liquid Air) से विभिन्न गैसें भी इसी विधि द्वारा पृथक की जाती हैं।

6. वर्णलेखन (Chromatography)- वर्णलेखन विधि इस तथ्य पर आधारित है, कि किसी मिश्रण के विभिन्न घटकों की अधिशोषण क्षमता भिन्न-भिन्न होती है तथा वे किसी अधिशोषक पदार्थ मे विभिन्न दूरियों पर अधिशोषित होते हैं और इस प्रकार पृथक कर लिए जाते हैं।

7. भाप आसवन (Steam Distillation)- भाप आसवन विधि के द्वारा ऐसे कार्बनिक पदार्थो का शुद्धीकरण किया जाता है, जो जल में अघुलनशील, परन्तु वाष्प के साथ वाष्पशील होते हैं। इस विधि के द्वारा विशेष रूप से उन पदार्थों का शुद्धीकरण किया जाता है, जो अपने क्वथनांक पर अपघटित हो जाते हैं, कार्बनिक पदार्थो जैसे एसीटोन, मेथिल ऐल्कोहॉल, एसीटैल्डिहाइड आदि का शुद्धीकरण भाप आसवन विधि द्वारा ही किया जाता है।

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