राजभाषा किसे कहते हैं? | rajbhasha kise kahate hain

राजभाषा

राजभाषा का सामान्य अर्थ होता है, राजकाज की भाषा अर्थात वह भाषा जिसमें शासन का संचालन किया जाता है। भारत की केंद्रीय भाषा के संदर्भ में विचार करें तो हम देखते हैं कि प्राचीन काल में यहां की राजभाषा संस्कृत (ईसा पूर्व 500 ई.) थी, तदंतर राजकाज में पाली (500 ई. पूर्व से 1 ई.) एवं प्राकृत (1 ई. पूर्व से 500 ई.) का भी प्रयोग हुआ। इसके पश्चात अपभ्रंश का विकास हुआ और 1000 ई. तक आते-आते हिंदी एवं अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं के अंकुर दिखाई पड़ने लगे। जनभाषा होने के कारण राजकाज एवं साहित्य में इनके प्रयोग भी दिखाई पड़ने लगते हैं। 12वीं शताब्दी में तुर्कों एवं अफगानों के आगमन से मध्य देश की राजभाषा फारसी बन गई, लेकिन कोई भी शासन बिना जनता की जुबान को अपनाए नहीं चल सकता, इसलिए आवश्यकतावश स्वभावतः ही हिंदी सह राजभाषा के रूप में व्यवहृत होने लगी।
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पुरानी हिंदी के रूप में रेखांकित की गई यही हिंदी मुगल शासन में सह राजभाषा का कार्य करने के साथ-साथ राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात में राजकाज का माध्यम बनी और दक्षिण में जाकर दक्खिनी हिंदी के रूप में पहचानी गई। इसी हिंदी को अमीर खुसरो ने 'हिंदवी' के रूप में पहचान दी और यही हिंदी सिद्धों, नाथों, संतो, कवियों, मनीषियों की वाणी के साथ विभिन्न बोलियों-बानियों में ढलकर संपूर्ण भारत के संवाद सूत्र के रूप में विकसित हुई।
अंग्रेजों द्वारा हिंदुस्तान का शासन सूत्र संभाल लिए जाने के बाद फारसी राजभाषा के मुख्य पद से हटी एवं उसका स्थान 1935 में अंग्रेजी ने ग्रहण किया, लेकिन जन भाषा हिंदी को अस्वीकार कर शासन संचालन संभव नहीं था, इसलिए अधिकांश क्षेत्रों में संपर्क भाषा के रूप में कायम हिंदी की ओर ध्यान दिया गया।
फ्रेडरिक पिन्काट (1878) जैसे व्यक्ति ने इसके महत्व को समझते हुए भारत आने वाले सभी अंग्रेजों को हिंदी की परीक्षा पास करने का प्रस्ताव पास कराया। सिविल सेवा में आने वालों को हिंदी पढ़नी पड़ती थी। इसके पूर्व थामसन ने अपनी रिपोर्ट (1843-44) में यह लिखा था कि 'इंग्लिश अफसरों के सिवाय जनता के साथ सभी कामकाज वर्नाक्यूलर भाषा में किया जाए।' इसके साथ ही अंग्रेजों ने हिंदी भाषा, व्याकरण एवं साहित्य पर भी महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किए।
स्वतंत्रता की पहली लड़ाई अर्थात 1857 के साथ-साथ ही सुधार आंदोलनों का दौर प्रारंभ हुआ। आर्य समाज, ब्रह्म समाज जैसे अनेक संगठनों ने सुधार कार्यक्रम चलाए। एक क्षेत्र के मनीषियों का दूसरे क्षेत्र में आना-जाना हुआ। आचार्य दयानंद सरस्वती कोलकाता गए। वह संस्कृत में व्याख्यान देते थे। ब्रह्म समाज के संस्थापक आचार्य केशवचंद्र सेन ने उन्हें सुझाव दिया कि हिंदी में बोले ताकि सामान्य लोग समझ सकें। केशवचंद्र सेन ने अपने पत्र 'सुलभ-समाचार' में 1875 में स्पष्ट शब्दों में भारत की एकता के लिए एक भाषा पर बल दिया और इसके लिए हिंदी को अपनाने को कहा। इस तरह 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिंदी वैचारिक आंदोलनों को जनसामान्य तक पहुंचाने का माध्यम बनी।
स्वतंत्रता आंदोलन की गति तेज होने के साथ ही जन आंदोलनों, जनसभाओं, पत्र-पत्रिकाओं एवं जन साहित्य का अविरल प्रवाह होने लगा। इस प्रवाह की भाषा बनी हिंदी। उत्तर से दक्षिण तक एवं पूर्व से पश्चिम तक संपर्क का माध्यम हिंदी हो गई। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका के आंदोलन के दौरान ही भाषा के महत्व को रेखांकित किया था और 'हिंद स्वराज' में उन्होंने स्पष्ट भाषा नीति घोषित की एवं हिंदुस्तानी को अपनाने का आग्रह किया। अंततः कांग्रेस ने भी 1925 में कानपुर में आयोजित अधिवेशन में महासमिति और कार्यकारिणी का कार्य हिंदी में करने का प्रस्ताव पारित किया। स्वतंत्रता संघर्ष की यात्रा के साथ-साथ चहमुखी लोकप्रियता एवं प्रयोगाधिक्य के चलते हिंदी ने जनमत में 'राष्ट्रभाषा” का दर्जा हासिल कर लिया, जो आज भी इस के साथ लगा हुआ है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात संविधान सभा में भाषा के संबंध में 12, 13 एवं 14 सितंबर, 1949 को चर्चा हुई, जिसमें देश के स्वनाम धन्य विद्वान एवं अनेक भाषाओं से जुड़े लोग शामिल हुए। इसी चर्चा के पश्चात हिंदी को 14 सितंबर, 1949 को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साथ संविधान की अष्टम अनुसूची में स्थान दिया गया। ज्ञातव्य हो कि इस अनुसूची में उस समय 14 भाषाओं को अधिसूचित किया गया था, आज इनकी संख्या बढ़कर बाइस हो गई है।
संविधान लागू होने के साथ ही भाषा संबंधी प्रावधान भी लागू हो गए। इन्हीं प्रावधानों के अनुसार आज हिंदी संसद, अनेक विधानसभाओं एवं संघ की राजभाषा के रूप में केंद्रीय सरकार के कार्यालयों, बैंकों, निगमों, निकायों की भाषा के रूप में निरंतर प्रगति कर रही है।

राजभाषा संबंधी संविधानिक उपबंध

भाग-5
अनुच्छेद 120 : संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
भाग 17 में किसी बात के होते हुए भी, किंतु अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद में कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा-
परंतु, यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को, जो हिंदी में या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, अपनी मातृ-भाषा में सदन को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा।
जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो “या अंग्रेजी में" शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया हो।

भाग-6
अनुच्छेद 210 : विधान-मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा
भाग 17 में किसी बात के होते हुए भी, किंतु अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के विधान-मंडल में कार्य राज्य की राजभाषा या राजभाषाओं में या हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा।
परंतु, यथास्थिति, विधान सभा का अध्यक्ष या विधान परिषद का सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को, जो पूर्वोक्त भाषाओं में से किसी भाषा में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा। (यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होगा)।
जब तक राज्य का विधान-मंडल विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो “या अंग्रेजी में" शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया हो।
परंतु हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा राज्यों के विधान-मंडलों के संबंध में, यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसमें आने वाले "पंद्रह वर्ष" शब्दों के स्थान पर “पच्चीस वर्ष" शब्द रख दिए गए हों
परंतु यह और कि अरूणाचल प्रदेश, गोवा और मिजोरम राज्यों के विधान-मंडलों के संबंध में यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसमें आने वाले "पंद्रह वर्ष" शब्दों के स्थान पर “चालीस वर्ष" शब्द रख दिए गए हों।

भाग-17
अनुच्छेद 343 : संघ की राजभाषा
संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।
परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात, विधि द्वारा
  • अंग्रेजी भाषा का, या
  • अंकों के देवनागरी रूप का,
  • ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी
  • जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं।

अनुच्छेद 344
राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति
राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारंभ से पांच वर्ष की समाप्ति पर और तत्पश्चात ऐसे प्रारंभ से दस वर्ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा, एक आयोग गठित करेगा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जिनको राष्ट्रपति नियुक्त करे और आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिश्चित की जाएगी।

आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को-
  • संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग,
  • संघ के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बधनों,
  • अनुच्छेद 348 में उल्लिखित सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा,
  • संघ के किसी एक या अधिक विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंकों के रूप,
  • संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा और उनके प्रयोग के संबंध में राष्ट्रपति दवारा आयोग को निर्देशित किए गए किसी अन्य विषय, के बारे में सिफारिश करे। 
खंड (2) के अधीन अपनी सिफारिशें करने में, आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के संबंध में अहिंदी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा।
एक समिति गठित की जाएगी जो तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे और दस राज्य सभा के सदस्य होंगे जो क्रमशः लोक सभा के सदस्यों और राज्य सभा के सदस्यों दवारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह खंड (1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों की परीक्षा करे और राष्ट्रपति को उन पर अपनी राय के बारे में प्रतिवेदन दे।
अनुच्छेद 343 में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति खंड (5) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् उस संपूर्ण प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश दे सकेगा।

अनुच्छेद 345
राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं
अनुच्छेद 346 और अनुच्छेद 347 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं के रूप में अंगीकार कर सकेगा
परंतु जब तक राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।

अनुच्छेद 346
एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा
संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा होगी
परंतु यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के बीच पत्रादि की राजभाषा हिंदी भाषा होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।

अनुच्छेद 347
किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध
यदि इस निमित्त मांग किए जाने पर राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।

अनुच्छेद 348
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा
इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हए भी, जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक-
उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होंगी,
संसद के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन में पुरःस्थापित किए जाने वाले सभी विधेयकों या प्रस्तावित किए जाने वाले उनके संशोधनों के,
संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल दवारा पारित सभी अधिनियमों के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल
द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों के, और
इस संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल दवारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के, प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे। 
खंड (1) के उपखंड (क) में किसी बात के होते हए भी, किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है, हिंदी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा
परंतु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश को लागू नहीं होगी। 
खंड (1) के उपखंड (ख) में किसी बात के होते हए भी, जहां किसी राज्य के विधान-मंडल ने,उस विधान-मंडल में पुरःस्थापित विधेयकों या उसके दवारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल दवारा प्रख्यापित अध्यादेशों में अथवा उस उपखंड के पैरा (iii) में निर्दिष्ट किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहां उस राज्य के राजपत्र में उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद इस अनुच्छेद के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।

अनुच्छेद 349
भाषा से संबंधित कुछ विधियां अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया
इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि के दौरान, अनुच्छेद 348 के खंड (1) में उल्लिखित किसी प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए उपबंध करने वाला कोई विधेयक या संशोधन संसद के किसी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पुरःस्थापित या प्रस्तावित नहीं किया जाएगा और राष्ट्रपति किसी ऐसे विधेयक को पुरःस्थापित या किसी ऐसे संशोधन को प्रस्तावित किए जाने की मंजूरी अनुच्छेद 344 के खंड (1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों पर और उस अनुच्छेद के खंड (4) के अधीन गठित समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् ही देगा, अन्यथा नहीं।

अनुच्छेद 350
व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा
प्रत्येक व्यक्ति किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा।

अनुच्छेद 350 क
प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं
प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निदेश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।

अनुच्छेद 350 ख
भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए विशेष अधिकारी
भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए एक विशेष अधिकारी होगा जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेगा।
विशेष अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह इस संविधान के अधीन भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन विषयों के संबंध में ऐसे अंतरालों पर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करे, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और संबंधित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा।

अनुच्छेद 351
हिंदी भाषा के विकास के लिए निदेश
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्थानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।

राजभाषा आयोग, 1955

संविधान में राजभाषा आयोग और उसकी सिफारिशों की जांच करने के लिए राजभाषा समिति गठित करने की व्यवस्था है। तदनुसार राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 344 (1) में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 7 जून 1955
को श्री बालासाहब गंगाधर खेर (बी.जी.खेर) की अध्यक्षता में निम्नाकिंत विषयों पर सिफारिशें करने के लिए राजभाषा आयोग का गठन किया-
  • संघ के सरकारी कामकाज के लिए हिंदी भाषा का क्रमश: अधिक से अधिक से प्रयोग।
  • संघ के सभी या कुछ सरकारी कामों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग की मनाही।
  • संविधान के अनुच्छेद 348 में वर्णित सभी अथवा कुछ कार्यो के लिए किस भाषा का प्रयोग किया जाए।
  • संघ के किसी या किन्ही खास कार्यों के लिए प्रयोग में आने वाले अंकों का रूप
  • एक समग्र अनुसूची तैयार करना जिसमें ये बताया जाए कि कब और किस प्रकार संघ की राजभाषा तथा संघ एवं राज्यों के बीच और एक राज्य और दूसरे राज्यों के बीच संचार की भाषा के रूप में अग्रेजी का स्थान धीरे धीरे हिंदी ले।
अपनी सिफारिशें करते समय आयोग को इस बात का ध्यान रखना था कि उन सिफारिशों से भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रगति में किसी प्रकार की बाधा न पहुंचे और सरकारी नौकरियों के मामले में हिंदीतर क्षेत्रों के लोगों के उचित अधिकार और हित सुरक्षित रहे। आयोग ने अपने विचारार्थ विषय के विभिन्न पहलुओं से आधुनिक भाषा, भारतीय भाषाओं का स्वरूप, पारिभाषिक शब्दावली, संघ की भाषा और शिक्षा पद्धति, सरकारी प्रशासन में भाषा, कानून और न्यायालयों की भाषा, संघ की भाषा, लोक सेवाओं की परीक्षाएं, हिंदी और प्रादेशिक भाषाओं का प्रचार और विकास, राष्ट्रीय भाषा संबधी कार्यक्रम को कार्य रूप देने के लिए संस्थाओं आदि की व्यवस्था आदि के बारे में विस्तार से विवेचन तथा विचार विमर्श करने के पश्चात 31 जुलाई 1956 को अपना प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया।

संसदीय राजभाषा समिति

राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा-4 के उपबन्धों के अनुसार संसदीय राजभाषा समिति का गठन किया गया। इस समिति में 20 लोक सभा के और 10 राज्य सभा के सदस्य होते हैं। केन्द्र सरकार के कार्यालयों, बैंको तथा निगमों आदि में हिंदी को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु संसदीय राजभाषा समिति अब तक महामहिम राष्ट्रपति जी को 9 प्रतिवेदन (रिपोर्ट) प्रस्तुत कर चुकी है और राष्ट्रपति जी द्वारा आदेश भी जारी किए जा चुके हैं। समिति संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करती है और उस पर सिफारिश करते हए राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है। राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा अधिनियम,1963 की धारा 4(4) के अनुसार समिति के प्रतिवेदन पर विचार करके निदेश जारी किया जाता है। 04 मार्च 1976 की अपनी बैठक में समिति ने मंत्रालयों,विभागों और उनके कार्यालयों तथा कंपनियों आदि में हिंदी के प्रयोग के पुनरीक्षण के लिए तीन उप समितियां बनाई हैं। संसदीय राजभाषा समिति के दिनांक 25 अप्रैल, 2017 के पत्र सं. 13011/1/2016-समिति4 के अनुसार समिति के अध्यक्ष माननीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह एवं उपाध्यक्ष डॉ. सत्यनारायण जटिया हैं। इन उप समितियों के कार्यक्षेत्र एवं सदस्यों का विवरण नीचे दिया गया है-

पहली उप समिति

(क) कार्यक्षेत्र
रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, मानव संसाधन मंत्रालय, कार्पोरेट कार्य मंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, योजना आयोग, सामाजिक न्याय और अधारिता मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय, अल्पसंख्यक मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय, उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय, विधि और न्याय मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, पोत परिवहन, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, पंचायतीराज मंत्रालय।

(ख) समिति सदस्य
श्री सत्यव्रत चतुर्वेदी, संयोजक
श्री ए. पी. जितेन्द्र रेड्डी, सदस्य
श्री अजय मिश्रा टेनी, सदस्य
श्रीमती संतोष अहलावत, सदस्य
श्री तामध्वज साहू, सदस्य
श्रीमती रंजीत रंजन, सदस्य
श्री श्रीरंग आप्पा बारणे, सदस्य
श्री ए. अनवर राजा, सदस्य
डॉ. सुभाष चन्द्रा, सदस्य
श्री मंघराज जैन, सदस्य

दूसरी उप समिति

(क) कार्यक्षेत्र
रेल मंत्रालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, नागर विमानन मंत्रालय, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, जल संसाधन मंत्रालय, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, विद्युत मंत्रालय, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, अंतरिक्ष विभाग, पर्यटन मंत्रालय

(ख) समिति सदस्य
डॉ. प्रसन्न कुमार पाटसाणी संयोजक
श्री गोकाराजू गंगाराजू, सदस्य
श्री लक्ष्मी नारायण यादव, सदस्य
डॉ. सुनील बलीराम गायकवाड़, सदस्य
श्री राम मोहन नायडु कींजरपू, सदस्य
श्री विवेक गुप्ता, सदस्य
श्री वशिष्ठ नारायण यादव, सदस्य
श्री डी. पी. त्रिपाठी, सदस्य

तीसरी उप समिति

(क) कार्यक्षेत्र
वित्त मंत्रालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारी उद्योग मंत्रालय, इस्पात मंत्रालय, वस्त्र मंत्रालय, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, कोयला मंत्रालय, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, खान एवं खनिज मंत्रालय, संसदीय कार्य मंत्रालय, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का कार्यालय, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय

(ख) समिति सदस्य
श्री हुक्म देव नारायण यादव संयोजक
श्री अश्विनी कुमार, सदस्य
प्रो. चिंतामणी मालवीय, सदस्य
डॉ. ए. संपत, सदस्य
श्री संतोष कुमार, सदस्य
श्री जयप्रकाश नारायण यादव, सदस्य
श्री शादीलाल बत्रा, सदस्य
श्रीमती रजनी पाटिल, सदस्य
प्रो. रामगोपाल यादव, सदस्य

आलेख एवं साक्ष्य उप समिति
डॉ. सत्यनारायण जटिया, अध्यक्ष
श्री सत्यव्रत चतुर्वेदी, सदस्य
डॉ. प्रसन्न कुमार पाटसाणी, सदस्य
श्री हुक्म देव नारायण यादव, सदस्य
श्री श्रीरंग आप्पा बारणे, सदस्य
डॉ. सुनील बलीराम गायकवाड़, सदस्य

राजभाषा अधिनियम, 1963

उन भाषाओं का, जो संघ के राजकीय प्रयोजनों, संसद में कार्य के संव्यवहार, केंद्रीय और राज्य अधिनियमों और उच्च न्यायालयों में कतिपय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जा सकेंगी,उपबन्ध करने के लिए अधिनियम। भारत गणराज्य के चौदहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो-

संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ
  1. यह अधिनियम राजभाषा अधिनियम, 1963 कहा जा सकेगा।
  2. धारा 3, जनवरी, 1965 के 26 वें दिन को प्रवृत होगी और इस अधिनियम के शेष उपबन्ध उस तारीख को प्रवृत्त होंगे जिसे केंद्रीय सरकार,शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी।

परिभाषाएं
इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,
'नियत दिन' से, धारा 3 के सम्बन्ध में, जनवरी, 1965 का 26वां दिन अभिप्रेत है और इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के सम्बन्ध में वह दिन अभिप्रेत है जिस दिन को वह उपबन्ध प्रवृत्त होता है
'हिंदी' से वह हिंदी अभिप्रेत है जिसकी लिपि देवनागरी है।

संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए और संसद में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा का रहना
(1) संविधान के प्रारम्भ से पंद्रह वर्ष की कालावधि की समाप्ति हो जाने पर भी, हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा, नियत दिन से ही,
  • संघ के उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिए जिनके लिए वह उस दिन से ठीक पहले प्रयोग में लाई जाती थी; तथा 
  • संसद में कार्य के संव्यवहार के लिए प्रयोग में लाई जाती रह सकेगी परंतु संघ और किसी ऐसे राज्य के बीच, जिसने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा प्रयोग में लाई जाएगी
परन्तु यह और कि जहां किसी ऐसे राज्य के, जिसने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है और किसी अन्य राज्य के, जिसने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, बीच पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिंदी को प्रयोग में लाया जाता है, वहां हिंदी में ऐसे पत्रादि के साथ-साथ उसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में भेजा जाएगा
परन्तु यह और भी कि इस उपधारा की किसी भी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी ऐसे राज्य को, जिसने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, संघ के साथ या किसी ऐसे राज्य के साथ, जिसने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है, या किसी अन्य राज्य के साथ, उसकी सहमति से, पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिंदी को प्रयोग में लाने से निवारित करती है, और ऐसे किसी मामले में उस राज्य के साथ पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग बाध्यकर न होगा।

(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहां पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिंदी या अंग्रेजी भाषा-
  • कार्यालय के और दूसरे मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के और दूसरे मंत्रालयक या विभाग या कार्यालय के बीच
  • केंद्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के और केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी या उसके किसी कार्यालय के बीच
  • केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी या उसके किसी कार्यालय के और किसी अन्य ऐसे निगम या कम्पनी या कार्यालय के बीच प्रयोग में लाई जाती है वहां उस तारीख तक, जब तक पूर्वोक्त संबंधित मंत्रालय, विभाग, कार्यालय या विभाग या कम्पनी का कर्मचारीवृद हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेता, ऐसे पत्रादि का अनुवाद, यथास्थिति, अंग्रेजी भाषा या हिंदी में भी दिया जाएगा।

(3) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हए भी हिंदी और अंग्रेजी भाषा दोनों ही-
  • संकल्पों, साधारण आदेशों, नियमों, अधिसूचनाओं, प्रशासनिक या अन्य प्रतिवेदनों या प्रेस विज्ञप्तियों के लिए, जो केंद्रीय सरकार द्वारा या उसके किसी मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी द्वारा या ऐसे निगम या कम्पनी के किसी कार्यालय द्वारा निकाले जाते हैं या किए जाते हैं
  • संसद के किसी सदन या सदनों के समक्ष रखे गए प्रशासनिक तथा अन्य प्रतिवेदनों और राजकीय कागज-पत्रों के लिए
  • केंद्रीय सरकार या उसके किसी मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या उसकी ओर से या केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी द्वारा या ऐसे निगम या कम्पनी के किसी कार्यालय द्वारा निष्पादित संविदाओं और करारों के लिए तथा निकाली गई अनुज्ञप्तियों, अनुज्ञापत्रों, सूचनाओं और निविदा-प्ररूपों के लिए, प्रयोग में लाई जाएगी।

(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (3) के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि केंद्रीय सरकार धारा 8 के अधीन बनाए गए नियमों दवारा उस भाषा या उन भाषाओं का उपबन्ध कर सकेगी जिसे या जिन्हें संघ के राजकीय प्रयोजन के लिए, जिसके अन्तर्गत किसी मंत्रालय,विभाग, अनुभाग या कार्यालय का कार्यकरण है, प्रयोग में लाया जाना है और ऐसे नियम बनाने में राजकीय कार्य के शीघ्रता और दक्षता के साथ निपटारे का तथा जन साधारण के हितों का सम्यक ध्यान रखा जाएगा और इस प्रकार बनाए गए नियम विशिष्टतया यह सुनिश्चित करेंगे कि जो व्यक्ति संघ के कार्यकलाप के सम्बन्ध में सेवा कर रहे हैं और जो या तो हिंदी में या अंग्रेजी भाषा में प्रवीण हैं वे प्रभावी रूप से अपना काम कर सकें और यह भी कि केवल इस आधार पर कि वे दोनों ही भाषाओं में प्रवीण नहीं है उनका कोई अहित नहीं होता है।

(5) उपधारा (1) के खंड (क) के उपबन्ध और उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4), के उपबन्ध तब तक प्रवृत्त बने रहेंगे जब तक उनमें वर्णित प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए ऐसे सभी राज्यों के विधान मण्डलों द्वारा, जिन्होंने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, संकल्प पारित नहीं कर दिए जाते और जब तक पूर्वोक्त संकल्पों पर विचार कर लेने के पश्चात् ऐसी समाप्ति के लिए संसद के हर एक सदन द्वारा संकल्प पारित नहीं कर दिया जाता।

राजभाषा के सम्बन्ध में समिति

जिस तारीख को धारा 3 प्रवृत्त होती है उससे दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात, राजभाषा के सम्बन्ध में एक समिति, इस विषय का संकल्प संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी से प्रस्तावित और दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने पर, गठित की जाएगी।
इस समिति में तीस सदस्य होंगे जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे तथा दस राज्य सभा के सदस्य होंगे, जो क्रमशः लोक सभा के सदस्यों तथा राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार
एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
इस समिति का कर्तव्य होगा कि वह संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करें और उस पर सिफारिशें करते हए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करें और राष्ट्रपति उस प्रतिवेदन को संसद् के हर एक सदन के समक्ष रखवाएगा और सभी राज्य सरकारों को भिजवाएगा।
राष्ट्रपति उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर और उस पर राज्य सरकारों ने यदि कोई मत अभिव्यक्त किए हों तो उन पर विचार करने के पश्चात् उस समस्त प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश निकाल सकेगा
(परन्तु इस प्रकार निकाले गए निदेश धारा 3 के उपबन्धों से असंगत नहीं होंगे।]

केंद्रीय अधिनियमों आदि का प्राधिकृत हिंदी अनुवाद

(1) नियत दिन को और उसके पश्चात् शासकीय राजपत्र में राष्ट्रपति के प्राधिकार से प्रकाशित-
  • किसी केंद्रीय अधिनियम का या राष्ट्रपति दवारा प्रख्यापित किसी अध्यादेश का, अथवा
  • संविधान के अधीन या किसी केंद्रीय अधिनियम के अधीन निकाले गए किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि का हिंदी में अनुवाद उसका हिंदी में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
(2) नियत दिन से ही उन सब विधेयकों के, जो संसद के किसी भी सदन में पुरःस्थापित किए जाने हों और उन सब संशोधनों के, जो उनके सम्बन्ध में संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जाने हों, अंग्रेजी भाषा के प्राधिकृत पाठ के साथ-साथ उनका हिंदी में अनुवाद भी होगा जो ऐसी रीति से प्राधिकृत किया जाएगा, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों दवारा विहित की जाए।

कतिपय दशाओं में राज्य अधिनियमों का प्राधिकृत हिंदी अनुवाद
जहां किसी राज्य के विधानमण्डल ने उस राज्य के विधानमण्डल द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में प्रयोग के लिए हिंदी से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहां, संविधान के अनुच्छेद 348 के खण्ड (3) द्वारा अपेक्षित अंग्रेजी भाषा में उसके अनुवाद के अतिरिक्त, उसका हिंदी में अनुवाद उस राज्य के शासकीय राजपत्र में, उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से, नियत दिन को या उसके पश्चात् प्रकाशित किया जा सकेगा और ऐसी दशा में ऐसे किसी अधिनियम या अध्यादेश का हिंदी में अनुवाद हिंदी भाषा में उसका प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।

उच्च न्यायालयों के निर्णयों आदि में हिंदी या अन्य राजभाषा का वैकल्पिक प्रयोग-
नियत दिन से ही या तत्पश्चात् किसी भी दिन से किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और जहां कोई निर्णय, डिक्री या आदेश (अंग्रेजी भाषा से भिन्न) ऐसी किसी भाषा में पारित किया या दिया जाता है वहां उसके साथ-साथ उच्च न्यायालय के प्राधिकार से निकाला गया अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी होगा।

नियम बनाने की शक्ति
केंद्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी।
इस धारा के अधीन बनाया गया हर नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद के हर एक दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। वह अवधि एक सत्र में, अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रुप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात यह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

कतिपय उपबन्धों का जम्मू-कश्मीर को लागू न होना-
धारा 6 और धारा 7 के उपबन्ध जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू न होंगे।

राजभाषा संकल्प, 1968

संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित निम्नलिखित सरकारी संकल्प आम जानकारी के लिए प्रकाशित किया जाता है-
"जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है :
यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के प्रसार एंव विकास की गति बढ़ाने के हेत् तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए उत्तरोतर इसके प्रयोग हेतु भारत सरकार द्वारा एक अधिक गहन एवं व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा और किए जाने वाले उपायों एवं की जाने वाली प्रगति की विस्तृत वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद की दोनों सभाओं के पटल पर रखी जाएगी और सब राज्य सरकारों को भेजी जाएगी।
जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 14 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है, और देश की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किए जाने चाहिए : यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के साथ-साथ इन सब भाषाओं के समन्वित विकास हेतु भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से एक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा ताकि वे शीघ्र समृद्ध हो और आधुनिक ज्ञान के संचार का प्रभावी माध्यम बनें।
जबकि एकता की भावना के संवर्धन तथा देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में पूर्णत कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी किया जाना चाहिए :यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा के, दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक को तरजीह देते हुए, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन के लिए उस सूत्र के अनुसार प्रबन्ध किया जाना चाहिए।
और जबकि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाएयह सभा संकल्प करती है कि-
उन विशेष सेवाओं अथवा पदों को छोड़कर जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन हेत् केवल अंग्रेजी अथवा केवल हिंदी अथवा दोनों जैसी कि स्थिति हो, का उच्च स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों के लिए भर्ती करने हेतु उम्मीदवारों के चयन के समय हिंदी अथवा अंग्रेजी में से किसी एक का ज्ञान अनिवार्यत होगा; और
कि परीक्षाओं की भावी योजना, प्रक्रिया संबंधी पहलुओं एवं समय के विषय में संघ लोक सेवा आयोग के विचार जानने के पश्चात अखिल भारतीय एवं उच्चतर केंद्रीय सेवाओं संबंधी परीक्षाओं के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की अनुमति होगी।”

राजभाषा नियम 1976

सा.का.नि.1052 राजभाषा अधिनियम,1963 (1963 का 19) की धारा 3 की उपधारा (4) के साथ पठित धारा 8 द्वारा प्रदत शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्रीय सरकार निम्नलिखित नियम बनाती हैं, अर्थात

संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ
इन नियमों का संक्षिप्त नाम राजभाषा (संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग) नियम, 1976 है।
इनका विस्तार तमिलनाडु राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर हैं।
ये राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को प्रवृत्त होंगे।

परिभाषाएं
इन नियमों में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो
(क) 'अधिनियम' से राजभाषा अधिनियम, 1963 (1963 का 19) अभिप्रेत है।

(ख) केंद्रीय सरकार के कार्यालय' के अंतर्गत निम्नलिखित भी है, अर्थात्
  • केंद्रीय सरकार का कोई मंत्रालय, विभाग या कार्यालय
  • केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किसी आयोग, समिति, या अधिकरण का कोई कार्यालय और
  • केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में या नियंत्रण के अधीन किसी निगम या कंपनी का कोई कार्यालय

(ग) 'कर्मचारी' से केंद्रीय सरकार के कार्यालय में नियोजित कोई व्यक्ति अभिप्रेत है ।

(घ) 'अधिसूचित कार्यालय' से नियम 10 के उप नियम (4) के अधीन अधिसूचित कार्यालय अभिप्रेत है।

(ड) 'हिंदी में प्रवीणता ' से नियम 9 में वर्णित प्रवीणता अभिप्रेत है।

(च) 'क्षेत्र 'क' से उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड राज्य तथा दिल्ली एवं अंडमान और निकोबार द्वीप संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत है।

(छ) 'क्षेत्र 'ख' से गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब तथा चंडीगढ़, संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत है।

(ज) 'क्षेत्र 'ग' से खंड (च) और (छ) में निर्दिष्ट राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से भिन्न राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत है। 

(झ) 'हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान' से नियम 10 में वर्णित कार्यसाधक ज्ञान अभिप्रेत है।

राज्यों आदि और केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से भिन्न कार्यालयों के साथ पत्रादि
1. केंद्रीय सरकार के कार्यालय से क्षेत्र 'क' में किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को या ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में किसी कार्यालय (जो केद्रीय सरकार का कार्यालय न हो ) या व्यक्ति को पत्रादि, असाधारण दशाओं को छोडकर हिंदी में होंगे और यदि उनमें से किसी को कोई पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाते हैं तो उनके साथ उनका हिंदी अनुवाद भी भेजा जाएगा।

2. केंद्रीय सरकार के कार्यालय से -
  • (क) क्षेत्र 'ख' में किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को या ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में किसी कार्यालय (जो केंद्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्रादि सामान्यतया हिंदी में होंगे और यदि कोई पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाते हैं तो उनके साथ उनका हिंदी अनुवाद भी भेजा जाएगा। परंतु यदि कोई ऐसा राज्य या संघ राज्यक्षेत्र यह चाहता है कि किसी विशिष्ट वर्ग के पत्रादि या उसके किसी कार्यालय के पत्रादि संबद्ध राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि तक अंग्रेजी या हिंदी में भेजे जाएं और उसके साथ दूसरी भाषा में उसका अनुवाद भी भेजा जाए तो ऐसे पत्रादि उसी रीति से भेजे जाएंगे।
  • (ख) क्षेत्र 'ख' के किसी राज्य या संघ में किसी व्यक्ति को पत्रादि हिंदी या अंग्रेजी में भेजे जा सकते हैं।

3. केंद्रीय सरकार के कार्यालय से क्षेत्र 'ग' में किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र को या ऐसे राज्य में किसी कार्यालय (जो केंद्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्रादि अंग्रेजी में होंगे।

4. उपनियम (1) और (2) में किसी बात के होते हुए भी क्षेत्र 'ग' में केंद्रीय सरकार के कार्यालय से क्षेत्र 'क' या 'ख' में किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र को या ऐसे राज्य में किसी कार्यालय (जो केंद्रीय सरकार का कार्यालय न हो ) या व्यक्ति को पत्रादि हिंदी या अंग्रेजी में हो सकते हैं।
परंतु हिंदी में पत्रादि ऐसे अनुपात में होंगे जो केंद्रीय सरकार ऐसे कार्यालयों में हिंदी को कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों की संख्या हिंदी में पत्रादि भेजने की सुविधाओं और उससे आनुषंगिक बातों को ध्यान में रखते हुए समय समय पर अवधारित करें।

केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के बीच पत्रादि
  • केंद्रीय सरकार के किसी एक मंत्रालय या विभाग या और किसी दूसरे मंत्रालय या विभाग के बीच पत्रादि हिंदी या अंग्रेजी में हो सकते हैं।
  • केंद्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग और क्षेत्र 'क' में स्थित संलग्न या अधीनस्थ कार्यालयों के बीच पत्रादि हिंदी में होंगे और ऐसे अनुपात में होंगे जो केंद्रीय सरकार, ऐसे कार्यालयों में हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों की संख्या, हिंदी में पत्रादि भेजने की सुविधाओं और उससे संबंधित आनुषंगिक बातों को ध्यान में रखते हुए
  • समय-समय पर अवधारित करें।
  • क्षेत्र 'क' में स्थित केंद्रीय कार्यालय के ऐसे कार्यालयों के बीच जो खंड (क) या खंड (ख ) में विनिर्दिष्ट कार्यालयों से भिन्न हैं, पत्रादि हिंदी में हों।
  • क्षेत्र 'क' स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों और क्षेत्र 'ख' या 'ग' में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के बीच पत्रादि हिंदी या अंग्रेजी में हो सकते हैं।
  • परंतु ये पत्रादि हिंदी में ऐसे अनुपात में होंगे जो केंद्रीय सरकार ऐसे कार्यालयों में हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों की संख्या, हिंदी में पत्रादि भेजने की सुविधाओं और उससे अनुषंगिक बातों को ध्यान में
  • रखते हुए समय-समय पर अवधारित करें।
  • क्षेत्र 'ख' या 'ग' में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के बीच पत्रादि हिंदी या अंग्रेजी में हो सकते हैं। परंतु ये पत्रादि हिंदी में ऐसे अनुपात में होंगे जो केंद्रीय सरकार ऐसे कार्यालयों में हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान रखनेवाले व्यक्तियों की संख्या हिंदी में पत्रादि भेजने की सुविधाओं और उससे आनुषंगिक बातों को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर अवधारित करें।
परंतु जहां ऐसे पत्रादि -
  1. क्षेत्र 'क' या क्षेत्र 'ख' के किसी कार्यालय को संबोधित है वहां यदि आवश्यक हो तो, उनका दूसरी भाषा में अनुवाद पत्रादि प्राप्त करने के स्थान पर किया जाएगा।
  2. क्षेत्र 'ग' में किसी कार्यालय को संबोधित है, वहां उनका दूसरी भाषा में अनुवाद उनके साथ भेजा जाएगा। परंतु यह और कि यदि कोई पत्रादि किसी अधिसूचित कार्यालय को संबोधित है तो दूसरी भाषा में ऐसा अन्ताद उपलब्ध कराने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।

हिंदी में प्राप्त पत्रादि के उत्तर
नियम 3 और नियम 4 में किसी बात के होते हुए भी, हिंदी में प्राप्त पत्रादि के उत्तर केंद्रीय सरकार के कार्यालय से हिंदी में दिए जाएंगे।

हिंदी और अंग्रेजी दोनों का प्रयोग
अधिनियम-1963 की धारा-3 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट सभी दस्तावेजों के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनो का प्रयोग किया जाएगा और ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करनेवाले व्यक्तियों का यह उत्तरदायित्व होगा कि वे यह सुनिश्चित कर लें कि ऐसे दस्तावेज हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही में तैयार किए जाते हैं, निष्पादित किए जाते हैं और जारी किए जाते हैं।

आवेदन,अभ्यावेदन आदि
  • कोई कर्मचारी आवेदन, अपील या अभ्यावेदन हिंदी या अंग्रेजी में कर सकता है।,
  • जब उपनियम (1) में विनिर्दिष्ट कोई आवेदन, अपील या अभ्यावेदन हिंदी में किया गया हो या उस पर हिंदी में हस्ताक्षर किए गए हों तब उसका उत्तर हिंदी में दिया जाएगा।
  • यदि कोई कर्मचारी यह चाहता है कि सेवा संबंधी विषयों (जिनके अंतर्गत अनुशासनिक कार्यवाहियां भी हैं ) से संबंधित कोई आदेश या सूचना, जिनका कर्मचारी पर तामील किया जाना अपेक्षित है, यथास्थिति, हिंदी या अंग्रेजी में होनी चाहिए तो वह उसे असम्यक विलंब के बिना उसी भाषा में दी जाएगी।

केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में टिप्पणियों का लिखा जाना
कोई कर्मचारी किसी फाइल पर टिप्पण या कार्यवृत हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकता है और उससे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह उसका अनुवाद दूसरी भाषा में प्रस्तुत करें।
केंद्रीय सरकार का कोई भी कर्मचारी, जो हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान रखता हो, हिंदी में किसी दस्तावेज के अंग्रेजी अनुवाद की मांग तभी कर सकता है, जब वह दस्तावेज विधिक या तकनीकी प्रकृति का है, अन्यथा नहीं।
यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विशिष्ट दस्तावेज विधिक या तकनीकी प्रकृति का है या नहीं तो विभाग या कार्यालय का प्रधान उसका विनिश्चय करेगा।
उपनियम (1) में किसी बात के होते हए भी केंद्रीय सरकार, आदेश द्वारा ऐसे अधिसूचित कार्यालयों को विनिर्दिष्ट कर सकती है जहां ऐसे कर्मचारियों द्वारा, जिन्हें हिंदी में प्रवीणता प्राप्त है, टिप्पणी, प्रारुपण और ऐसे अन्य शासकीय प्रयोजनों के लिए, जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, केवल हिंदी का प्रयोग किया जाएगा।

हिंदी में प्रवीणता प्राप्त
यदि किसी कर्मचारी ने-
  • मैट्रिक परीक्षा या उसकी समतुल्य या उससे उच्चतर कोई परीक्षा हिंदी के माध्यम से उत्तीर्ण कर ली है; या 
  • स्नातक परीक्षा में या स्नातक परीक्षा की समतुल्य या उसके उच्चतर किसी अन्य परीक्षा में हिंदी को एक वैकल्पिक विषय के रूप में लिया था; या
  • यदि वह इन नियमों में उपाबद्ध प्ररूप में यह घोषणा करता है कि उसे हिंदी में प्रवीणता प्राप्त है; तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने हिंदी में प्रवीणता प्राप्त कर ली है।

हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान
यदि किसी कर्मचारी ने-
मैट्रिक परीक्षा या उसकी समतुल्य या उससे उच्चतर परीक्षा हिंदी विषय के साथ उत्तीर्ण कर ली है; या
केंद्रीय सरकार की हिंदी शिक्षण योजना के अंतर्गत आयोजित प्राज्ञ परीक्षा या, यदि उस सरकार द्वारा किसी विशिष्ट प्रवर्ग के पदों के संबंध में उस योजना के अंतर्गत कोई निम्नतर परीक्षा विनिर्दिष्ट है, वह परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है; या
केंद्रीय सरकार द्वारा उस निमित्त विनिर्दिष्ट कोई अन्य परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है; या
यदि वह इन नियमों में उपाबद्ध प्ररूप में यह घोषणा करता है कि उसने ऐसा ज्ञान प्राप्त कर लिया है; तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने हिंदी का कार्यसाधक प्राप्त कर लिया है।
यदि केंद्रीय सरकार के किसी कार्यालय में कार्य करने वाले कर्मचारियों में से अस्सी प्रतिशत ने हिन्दी का ऐसा ज्ञान प्राप्त कर लिया है तो उस कार्यालय के कर्मचारियों के बारे में सामान्यतया यह समझा जाएगा कि उन्होंने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
केंद्रीय सरकार या केंद्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट कोई अधिकारी यह अवधारित कर सकता है कि केंद्रीय सरकार के किसी कार्यालय के कर्मचारियों ने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया है या नहीं।
केंद्रीय सरकार के जिन कार्यालयों में कर्मचारियों ने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया है उन कार्यालयों के नाम राजपत्र में अधिसूचित किए जाएंगे,
परन्तु यदि केंद्रीय सरकार की राय है कि किसी अधिसूचित कार्यालय में काम करने वाले और हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले कर्मचारियों का प्रतिशत किसी तारीख में से उपनियम  (2) में विनिर्दिष्ट प्रतिशत से कम हो गया है, तो वह राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित कर सकती है कि उक्त कार्यालय उस तारीख से अधिसूचित
कार्यालय नहीं रह जाएगा।

मैनुअल, संहिताएं, प्रक्रिया संबंधी अन्य साहित्य, लेखन सामग्री आदि
केंद्रीय सरकार के कार्यालयों से संबंधित सभी मैनुअल, संहिताएं और प्रक्रिया संबंधी अन्य साहित्य हिंदी और अंग्रेजी में द्विभाषिक रुप में यथास्थिति, मुद्रित या साइक्लोस्टाइल किया जाएगा और प्रकाशित किया जाएगा।
केंद्रीय सरकार के किसी कार्यालय में प्रयोग किए जानेवाले रजिस्टरों के प्रारुप और शीर्षक हिंदी और अंग्रेजी में
होंगे ।
केंद्रीय सरकार के किसी कार्यालय में प्रयोग के लिए सभी नामपट्ट, सूचना पट्ट, पत्र शीर्ष और लिफाफों पर उत्कीर्ण लेख तथा लेखन सामग्री की अन्य मदें हिंदी और अंग्रेजी में लिखी जाएंगी, मुद्रित या उत्कीर्ण होंगी।
परंतु यदि केंद्रीय सरकार ऐसा करना आवश्यक समझती है तो वह, साधारण या विशेष आदेश द्वारा केंद्रीय सरकार के किसी कार्यालय को इस नियम के सभी या किन्ही उपबंधों से छूट दे सकती है।

अनुपालन का उत्तरदायित्व
केंद्रीय सरकार के प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह-
यह सुनिश्चित करें कि अधिनियम और इन नियमों के उपबंधों और उप नियम (2) के अधीन जारी किए गए निदेशों का समुचित रुप से अनुपालन हो रहा है और
इस प्रयोजन के लिए उपयुक्त और प्रभावकारी जांच के लिए उपाय करें।
केंद्रीय सरकार अधिनियम और इन नियमों के उपबंधों के सम्यक अनुपालन के लिए अपने कर्मचारियों और कार्यालयों को समयसमय पर आवश्यक निदेश जारी कर सकती है।

राजभाषा कार्यान्वयन समिति

भारत सरकार के सभी ना कार्यालयों,उपक्रमों, बैंकों आदि में राजभाषा कार्यान्वयन को सुचारू, सुनियोजित और प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर राजभाषा समितियों का गठन किया गया है।

केन्द्रीय हिंदी समिति
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित इस समिति में कुल 41 सदस्य हैं, जिनमें छह मंत्रालयों-विदेश मंत्रालय, मानव संसाधन मंत्रालय, संचार और सूचना प्रौद्योगिक मंत्रालय, रेलवे मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन विभाग के मंत्री शामिल हैं। स्थापित व्यवस्था के अनुसार इस समिति में राज्यों का प्रतिनिधित्व छह राज्यों जैसे देश के तीन भाषीय क्षेत्रों नामत: क, ख, ग, एवं प्रति क्षेत्र से दो मुख्य मंत्रियों द्वारा किया जाता है। वर्तमान में छह राज्यों असम, बिहार, केरल, ओडिशा, पंजाब और राजस्थान के मुख्यमंत्री शामिल हैं। संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष और इसकी तीनों उप-समितियों के संयोजक कुल मिलाकर चार व्यक्ति इस समिति के पदेन सदस्य हैं। इनके अतिरिक्त देश भर से 21 प्रख्यात विद्यवान और साहित्यकार, और केन्द्रीय गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के सचिव भी इसके सदस्य हैं।

केन्द्रीय राजभाषा कार्यान्वयन समिति
केन्द्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों में संविधान के प्रावधानों, राजभाषा अधिनियम, 1963, राजभाषा संकल्प, 1968 और राजभाषा नियम 1976 के उपबंधों तथा संसदीय राजभाषा समिति की संस्तुतियों के आलोक में महामहिम राष्ट्रपति के आदेशों के अनुसार सरकारी प्रयोजनों के लिए हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग, केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के प्रशिक्षण तथा राजभाषा विभाग द्वारा समय-समय पर जारी किए गए अन्देशों के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए सचिव, राजभाषा विभाग की अध्यक्षता में केन्द्रीय राजभाषा कार्यान्वयन समिति गठित है । मंत्रालयों/विभागों में राजभाषा हिंदी का कार्य देख रहे प्रभारी अधिकारी (संयुक्त सचिव स्तर) समिति के पदेन सदस्य होते हैं । इस समिति की बैठक का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है।

हिंदी सलाहकार समिति
सभी मंत्रालयों में भारत सरकार का राजभाषा नीति के कार्यान्वयन को सुचारू रूप से लागू कराने एवं उस पर निगरानी रखने के लिए संबंधित मंत्रालय के केबिनेट/राज्य मंत्री की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति गठित है, जिनकी वर्ष में कम से कम दो बैठकें होनी आवश्यक है।

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
केन्द्र सरकार के देश भर में फैले कार्यालयों/ उपक्रमों/बैंकों आदि में राजभाषा के प्रयोग को बढ़ावा देने और भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्वयन में आ रही कठिनाइयों को दूर करने के लिए केन्द्र सरकार के 10 या 10 से अधिक कार्यालयों वाले नगर विशेष में स्थित केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों/उपक्रमों/बैंको आदि के वरिष्ठतम अधिकारियों में से एक अधिकारी की अध्यक्षता में गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के सचिव के अनुमोदन से नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति गठित की जाती है। वर्तमान में पूरे देश में 385 नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित हैं। इस समिति की वर्ष में 2 बैठकें आयोजित करना आवश्यक है। इन बैठकों में सभी सदस्य कार्यालयों/उपक्रमों/बैंको आदि में राजभाषा कार्यान्वयन की समीक्षा की जाती है । समिति द्वारा सदस्य कार्यालयों में कार्यरत अधिकारियों । कर्मचारियों के लिए समय-समय पर हिंदी प्रशिक्षण, प्रतियोगिताएं तथा हिंदी कार्यशालाओं आदि की व्यवस्था की जाती है। समिति द्वारा सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए सभी सदस्य कार्यालयों को राजभाषा विभाग द्वारा जारी वार्षिक कार्यक्रम तथा समय-समय पर जारी विभिन्न आदेशों एवं दिशा निर्देशों के बारे में व्यापक जानकारी दी जाती हैं।

रेलवे पर गठित राजभाषा कार्यान्वयन समितियां
उल्लेखनीय है कि रेल मंत्री जी की अध्यक्षता में रेलवे हिंदी सलाहकार समिति का गठन किया जाता है जिसकी वर्ष में दो बैठकें अपेक्षित है। इसके अलावा निम्नलिखित स्तर पर समितियां कार्यशील है

रेलवे बोर्ड राजभाषा कार्यान्वयन समिति
रेल मंत्रालय, रेलवे बोर्ड में राजभाषा हिंदी के प्रयोग-प्रसार की समीक्षा करने के लिए अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड की अध्यक्षता में रेलवे बोर्ड राजभाषा कार्यान्वयन समिति गठित है। इस समिति का प्रमुख उद्देश्य रेलवे बोर्ड कार्यालय में राजभाषा से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) का अनुपालन, हिंदी में पत्राचार, हिंदी में प्राप्त पत्रों के उत्तर हिंदी में देने, फाइल पर हिंदी में टिप्पणी, वैबसाइट, जांचस्थल की सक्रियता आदि के संबंध में विचार-विमर्श करना है। इस समिति की हर तिमाही में एक अर्थात वर्ष में चार बैठकें आयोजित की जाती है।

क्षेत्रीय रेलवे राजभाषा कार्यान्वयन समिति
क्षेत्रीय रेलों में राजभाषा हिंदी के प्रयोग-प्रसार की समीक्षा करने के लिए महाप्रबंधक की अध्यक्षता में क्षेत्रीय रेलवे राजभाषा कार्यान्वयन समिति गठित है। इस समिति सदस्यों में सभी प्रमुख विभागाध्यक्ष, मंडलों के अपर मंडल रेल प्रबंधक, मुख्य कारखाना प्रबंधक, संबंधित क्षेत्र में आने वाले रेलवे भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष, रेल दावा अधिकरण के अपर निबंधक शामिल हैं। यह समिति अपनी रेलवे में राजभाषा से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों के संबंध में विचार-विमर्श करती है। इस समिति की हर तिमाही में एक अर्थात वर्ष में चार बैठकें आयोजित की जाती है।

मंडल राजभाषा कार्यान्वयन समिति
क्षेत्रीय रेलों के सभी मंडलों में संबंधित मंडल रेल प्रबंधक की अध्यक्षता में मंडल राजभाषा कार्यान्वयन समिति गठित है। मंडल के सभी शाखा अधिकारी इस समिति के सदस्य हैं। इस समिति की हर तिमाही में एक अर्थात वर्ष में चार बैठकें आयोजित की जाती है।

कारखाना राजभाषा कार्यान्वयन समिति
कारखानों या उत्पादन इकाइयों या अन्य इकाइयों संबंधित सर्वोच्च अधिकारी की अध्यक्षता में राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित है। इन समितियों की भी हर तिमाही में एक अर्थात वर्ष में चार बैठकें आयोजित की जाती है। 

स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति
बड़े रेलवे स्टेशनों पर संबंधित स्टेशन अधीक्षक की अध्यक्षता में स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित हैं। इन समितियों में स्टेशन परिसर में स्थित सभी कार्यालयों के शाखा अधिकारी या पर्यवेक्षक इनके सदस्य हैं। इन समितियों की भी हर तिमाही में एक अर्थात वर्ष में चार बैठकें आयोजित की जाती है।

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