समास Samas
"समास' शब्द मूलतः संस्कृत का शब्द है। उत्पत्ति के आधार पर 'समास' दो शब्दों ‘सम और आस' से मिलकर बना है। इसमें सम का अर्थ होता है-समान रूप से और आस का अर्थ होता है-बैठाना या आसन या पास। इस प्रकार समास का शाब्दिक अर्थ हुआ समान रूप से बैठाना। अब प्रश्न उठता है कि यह बैठाना किसका? उत्तर प्राप्त होता है-विभिन्न पदों का या शब्दों का। इस प्रकार 'समास' का अर्थ हुआ-दो या दो से अधिक पदों (शब्दों) को मिलाकर उन्हें समानतः एक रूप प्रदान करना। दूसरे शब्दों में, दो या दो से अधिक पदों (शब्दों) को मिलाकर जब एक पद (शब्द) बना दिया जाता है, तब उस मेल को ‘समास' कहा जाता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हमने मेल या योग से बने पद या शब्द को 'समास' नहीं कहा, बल्कि मेल या योग को 'समास' कहा जाता है।
उदाहरण के लिए एक शब्द है- 'गृहागत'। इसमें दो पद हैं- 'गृह और आगत', किन्तु इसका अर्थ 'गृह और आगत' नहीं होगा। इसका अर्थ होगा गृह को आगत। यहां 'गृह को आगत' से 'गृहागत' सामासिक पद बना है। अब हम यदि किसी से यह पूछेगे कि बताइए गृहागत' में कौन सा समास है, तो वह सर्वप्रथम 'गृहागत' में मिले हुए पदों को अलग-अलग करेगा, तभी वह सामासिक नियमों के आधार पर यह बता पायेगा कि 'गृहागत' में उक्त समास है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 'गृहागत' और 'गृह को आगत' दोनों का अर्थ एक ही है। अतः स्पष्ट है कि जब दो या दो से अधिक पदों को मिलाया जाता है, तो उन सभी पदों की विभक्ति, प्रत्ययों, परसर्गों या योजक-चिन्हों आदि का लोप हो जाता है। ऊपर के उदाहरण ‘गृहागत' में दोनों पदों के बीच ‘को' नामक परसर्ग का लोप हो गया है।

परीक्षार्थियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि संधि का विच्छेद होता है और समास का विग्रह। सन्धि होने पर किसी एक या दो वर्गों में विकार हो जाता है, परन्तु समास होने पर अनेक शब्द मिलकर एक शब्द बन जाते हैं और बीच की विभक्ति का लोप हो जाता है। विग्रह का अर्थ होता है-अलग-अलग करना। जब किसी सामासिक शब्द को अलगअलग कर स्पष्ट किया जाता है, तो उसे 'समास विग्रह' कहा जाता है। उदाहरण के लिए 'देशभक्ति' सामासिक शब्द है क्योंकि यहाँ दो पदों ‘देश और भक्ति' का मेल या योग है, जब इसका विग्रह किया जाएगा तब होगा-देश के लिए भक्ति, अतः यह 'देशभक्ति' का समास विग्रह है।
हिन्दी में 'समास' की पहचान और उसके स्वरूप विग्रह आदि को समझने के लिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी विभिन्न समासों की परिभाषा को भली-भाँति समझ लें। इसीलिए यहाँ हम प्रत्येक 'समास' को विस्तार पूर्वक समझाने का प्रयास कर रहे हैं।
समास का सरल अर्थ 'संक्षिप्तीकरण' है। जब दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से एक नया एवं सार्थक शब्द बनता है तो उस नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहा जाता है। जैसे: 'रसोई के लिये घर' को हम संक्षिप्त रूप में 'रसोईघर' भी कह सकते हैं। समास का प्रयोग 'संस्कृत' तथा अन्य भारतीय भाषाओं में बहुत अधिक होता है। समास के प्रमुख छः (6) प्रकार या भेद निम्नलिखित हैं
समास के भेद
हिन्दी में समासों की संख्या छ: मानी जाती है, लेकिन अगर संस्कृत शास्त्रीय आधार पर देखा जाये तो समास के भेद सिर्फ चार होते हैं-
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- द्वन्द्व समास
- बहुव्रीहि समास
इसके अतिरिक्त कर्मधारय और द्विगु समासों की चर्चा भी की जाती है, किन्तु वस्तुतः ये दोनों समास तत्पुरुष समास के ही उपभेद हैं। हिन्दी में इन्हें स्वतंत्र माना गया है। अतः हिन्दी में इनकी संख्या छः मानी जाएगी, जो इस प्रकार है
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- द्वन्द्व समास
- बहुव्रीहि समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
अव्ययीभाव समास
संस्कृत के विद्वानों के अनुसार- जिस समास का पूर्व पद अव्यय होता है, वहाँ 'अव्ययीभाव समास' होता है । 'अव्ययीभाव समास' में 'अव्यय' शब्द आया है, जिसके आधार पर ही इस समास का नामकरण हुआ है। अतः 'अव्ययीभाव समास' को समझने से पहले 'अव्यय' शब्द को समझ लेना आवश्यक है। अव्यय का तात्पर्य होता है, जिसका व्यय न हो अर्थात् जिसको खर्च न किया जा सके अथवा जिसको तोड़ा, मरोड़ा या बदला या परिवर्तित न किया जा सके या जिसमें विकार उत्पन्न न किया जा सके।
रूप विकार के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं- विकारी और अविकारी। विकारी वे होते हैं, जिनमें विकार उत्पन्न किया जा सकता है, अर्थात जो कारक, लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार बदल जाते हैं। उदाहरणार्थगया, गयी, गये। अविकारी शब्द वे कहलाते हैं, जो सदैव एक रूप रहते हैं, अर्थात् कारक, लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार कभी नहीं बदलते जैसेतक, और, किन्तु आदि इन्हें तोड़ा नहीं या खर्च नहीं किया जा सकता, अतः ये 'अव्यय' (जो 'व्यय' न हो) भी कहलाते हैं। जैसा कि ज्ञात है कि संस्कृताचार्यों के अनुसार अव्ययीभाव समास में पूर्व पद अव्यय होता है, अत : अगर किसी सामासिक शब्द में पूर्व पद में भर, हर, प्रति, आ, यथा, यावत्, बे, उप, पर, नि, सम आदि अव्यय शब्द आयें तो वह सम्पूर्ण. सामासिक पद या शब्द अव्ययीभाव समास होगा। उदाहरण- भरपेट, हरपल, प्रतिकार, आजन्म, यथाशक्ति, यथामति, यथानुकूल, यथोचित, यावज्जीवन, बेकार, उपकार, परोक्ष, निधड़क, निर्भय, समक्ष, यथार्थ, प्रत्यंग आदि।
हिन्दी में अव्ययीभाव समास की सीमा थोड़ी बढ़ जाती है, हिन्दी में अव्ययीभाव समास के अंतर्गत पूर्व पद अव्यय हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन सम्पूर्ण सामासिक पद अव्यय अवश्य होता है। दूसरे शब्दों में हिन्दी की अपनी पद्धति में पूर्व पद अव्यय, संज्ञा या विशेषण कोई भी हो सकता है और सामासिक शब्द अव्यय हो जाता है। जैसे - रातोंरात, हाथोंहाथ, दिनानुदिन, एकाएक आदि ।
अव्ययीभाव समास जिस समास का प्रथम पद अव्यय तथा प्रधान होता है वह अव्ययीभाव समास कहलाता है।
जैसे-
- प्रतिदिन (प्रत्येक दिन)
- यथामति (मति के अनुसार)
- भरपेट (पेट भर के)
- यथारुचि (रुचि के अनुसार)
- आजन्म (जन्म से लेकर)
- उपर्युक्त उदाहरणों में 'प्रति', 'यथा', 'भर' ये सभी अव्यय हैं।
नोटः जहाँ एक ही शब्द की बार-बार आवृत्ति हो, वह भी अव्ययीभाव समास कहलाता है। जैसे- दिनोदिन, रातोरात, घर-घर, हाथो-हाथ आदि।
अव्ययीभाव समास के विशिष्ट उदाहरण इस प्रकार हैं-
सामासिक पद |
विग्रह |
मनमाना |
मन के अनुसार |
आपादमस्तक |
पैर से मस्तक तक |
प्रत्युपकार |
उपकार के प्रति |
बेलाग |
बिना लाग का |
प्रत्येक |
एक-एक |
आजीवन |
जीवन भर |
प्रतिवर्ष |
हर वर्ष |
निडर |
डर के बिना |
हाथो-हाथ |
हाथ ही हाथ में |
हररोज़ |
रोज़-रोज़ |
यथासामर्थ्य |
सामर्थ्य के अनुसार |
यथाक्रम |
क्रम के अनुसार |
बेशक |
शक के बिना |
निस्संदेह |
संदेह के बिना |
प्रतिदिन |
प्रत्येक दिन |
यथाविधि |
विधि के अनुसार |
यथाशक्ति |
शक्ति के अनुसार |
नोटः जब किसी पद में समास लग जाता है तो उसका रूप नहीं बदलता तथा पूरा पद अव्यय हो जाता है, साथ ही इसमें विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता जैसे कि बॉक्स में उपर्युक्त उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है।
तत्पुरुष समास
इस समास का उत्तर अर्थात् बाद वाला या दूसरा पद प्रधान होता है और पूर्व पद में कर्ता और सम्बोधन कारक को छोड़कर अन्य किसी भी कारक का विभक्ति चिन्ह या परसर्ग लगा होता है। इन परसर्गों का समासिक पद में लोप हो जाता है एवं विग्रह करने पर वह पुनः सामने आ जाते हैं। उदाहरण के लिए 'अकालपीड़ित'। इसका विग्रह होगा- अकाल से पीड़ित। इसमें से' नामक करण कारक चिन्ह प्रयोग हुआ है, जिसका सामासिक पद में लोप हो गया है।
जिस समास का उत्तरपद (बाद का पद) प्रधान तथा पूर्व पद गौण हो, वह तत्पुरुष समास कहलाता है। ऐसे समास में दोनों पदों के बीच लगने वाला कारक चिह्न भी लुप्त हो जाता है।
जैसे-
- राजकुमार - राजा का कुमार
- तुलसीदासकृत - तुलसीदास द्वारा कृत (रचित)
- रचनाकार - रचना को करने वाला
- धर्मग्रंथ - धर्म का ग्रंथ
तत्पुरुष समास के भेद
हिन्दी में तत्पुरुष समास के छः भेद होते हैं, जो विभिन्न कारकों के आधार पर पहचाने जाते हैं। लेकिन संस्कृत के विद्वानों के अनुसार तत्पुरुष के मूलतः दो भेद होते हैं-
- व्याधिकरण तत्पुरुष
- समानाधिकरण तत्पुरुष
(1) व्याधिकरण तत्पुरुष
यह मूल तत्पुरुष समास होता है, जिसके आधार पर ही हिन्दी में तत्पुरुष समास के (कारकों के आधार पर) छः भेद माने जाते हैं। व्याधिकरण तत्पुरुष वह होता है, जिसमें समस्त पद के विग्रह करने पर प्रथम पद और द्वितीय पद में भिन्न-भिन्न विभक्तियां लगाई जायें। संस्कृत भाषा में इन्हें द्वितीया तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष, चतुर्थी तत्पुरुष आदि नामों से जाना जाता है, किन्तु हिन्दी में इन्हें कारकों के अनुसार जाना जाता है। कारकों के आठ भेद होते हैं, लेकिन कर्ता कारक और सम्बोधन कारक को इस समास में छोड़ दिया जाता है।
अतः कारक चिन्हों के आधार पर व्याधिकरण तत्पुरुष के छः उपभेद होते हैं-
- कर्म तत्पुरुष समास
- करण तत्पुरुष समास
- सम्प्रदान तत्पुरुष समास
- अपादान तत्पुरुष समास
- सम्बन्ध तत्पुरुष समास
- अधिकरण तत्पुरुष समास
यह ध्यान रहे कि व्याधिकरण तत्पुरुष को ही साधारणतया 'तत्पुरुष' समास कहा जाता है।
(अ) कर्म तत्पुरुष समास
इसमें पहला पद कर्म कारक के चिन्ह (परसर्ग) (को) से युक्त होता है, उसमें कर्म तत्पुरुष समास होता है। जैसे- 'काशीगत', इसका विग्रह इस प्रकार होगा- 'काशी को गत'। यहां पूर्व पद 'काशी' कर्म परसर्ग 'को' से युक्त है। अतः 'काशीगत' में कर्म तत्पुरुष समास है। इस प्रकार के समास में कर्म कारक की विभक्ति को लुप्त (विलुप्त) हो जाती है।
सामासिक पद |
विग्रह |
गगनचुंबी |
गगन को चूमने वाला |
यशप्राप्त |
यश को प्राप्त करने वाला |
जेबकतरा |
जेब को कतरने वाला |
रथचालक |
रथ को चलाने वाला |
चिड़ीमार |
चिड़ियों को मारने वाला |
मोक्षप्राप्त |
मोक्ष को प्राप्त |
अन्य उदाहरण : स्वर्गप्राप्तस्वर्ग को प्राप्त, आशातीत-आशा को अतीत, कष्टापन्न-कष्ट को आपन्न (प्राप्त), सुखप्रदसुख को देने वाला, चिड़ीमार-चिड़िया को मारने वाला, पाकिटमार-पाकिट को मारने वाला, गगनचुम्बी-गगन को चूमने वाला आदि।
(ब) करण तत्पुरुष समास
इसमें पहला पद करण कारक के चिन्ह (परसर्ग) (से) से युक्त होता है, उसमें करण तत्पुरुष समास होता है। करण कारक का चिन्ह या परसर्ग 'से' या के द्वारा होता है। जो प्रमुख रूप से अंग्रेजी के 'विथ' का अर्थ देता है, अर्थात् वह जुड़ाव का सूचक होता है, तथा अधिकांशतः क्रिया के साधन का बोध कराता है। उदाहरणार्थ-'हस्तलिखित'। इसका विग्रह होगा- ‘हाथ से लिखा हुआ', इसमें लिखना क्रिया के साधन हाथ का बोध हो रहा है तथा इसका पूर्व पद ‘से' करण परसर्ग से युक्त है, अतः ‘हस्तलिखित' में करण तत्पुरुष है।
इस प्रकार के समास में करण कारक की विभक्ति से तथा द्वारा लुप्त हो जाती हैं।
जैसे
सामासिक पद |
विग्रह |
सूररचित |
सूर द्वारा रचित |
तुलसीकृत |
तुलसी द्वारा कृत |
करुणापूर्ण |
करुणा से पूर्ण |
रसभरा |
रस से भरा हुआ |
शोकग्रस्त |
शोक से ग्रस्त |
रेखांकित |
रेखा से अंकित |
रोगग्रस्त |
रोग से ग्रस्त |
रोगपीड़ित |
रोग से पीड़ित |
अन्य उदाहरण - वज्राहत-वज्र से आहत, प्रकृतिदत्त-प्रकृति से दत्त (दिया), श्रमसाध्य-श्रम से साध्य, वाग्युद्ध-वाक् से युद्ध, नीतियुक्त-नीति से युक्त, आचारकुशलआचारकुशल, ईश्वरदत्त-ईश्वर के द्वारा दिया हुआ, तुलसीकृत-तुलसी के द्वारा कृत, मुँहमाँगा-मुँह से माँगा हुआ, महिमामण्डितमहिमा से मण्डित, मदांध-मद से अंधा आदि।
(स) सम्प्रदान तत्पुरुष समास
इसका पूर्व पद सम्प्रदान परसर्ग से युक्त होता है। सम्प्रदान के परसर्ग 'को' या 'के लिए' होते हैं। इसमें किसी के लिए कुछ होने का भाव होता है। उदाहरणार्थ - यज्ञवेदी', इसका विग्रह होगा- 'यज्ञ के लिए वेदी'। 'यज्ञवेदी' सामासिक शब्द में 'के लिए' परसर्ग का लोप हो गया है। अतः जो विग्रह करने पर प्रत्यक्ष होता है, अतः यहाँ सम्प्रदान तत्पुरुष समास है। इस प्रकार के समास में संप्रदान कारक की विभक्ति, के लिये लुप्त हो जाती है।
सामासिक पद |
विग्रह |
विधानसभा |
विधान के लिये सभा |
स्नानघर |
स्नान के लिये घर |
गोशाला |
गो के लिये शाला |
राहखर्च |
राह के लिये खर्च |
हथकड़ी |
हाथ के लिये कड़ी |
देशभक्ति |
देश के लिये भक्ति |
यज्ञवेदी |
यज्ञ के लिये वेदी |
प्रयोगशाला |
प्रयोग के लिये शाला |
अन्य उदाहरण - देशभक्ति-देश के लिए भक्ति, भूतबलि-भूत के लिए बलि, कन्याविद्यालय कन्याओं के लिए विद्यालय, राष्ट्रभक्ति-राष्ट्र के लिए भक्ति, रसोईघररसोई के लिए घर, विद्यालय-विद्या के लिए आलय, गुरुदक्षिणा-गुरु के लिए दक्षिणा, गोशाला-गाय के लिए शाला, रणक्षेत्र-रण के लिए क्षेत्र, राहखर्च-राह के लिए खर्च आदि।
(द) अपादान तत्पुरुष समास
इसमें पूर्व पद के साथ अपादान का परसर्ग रहता है. इसका चिन्ह 'से' होता है । अपादान कारक का परसर्ग 'से' अंग्रेजी के 'फ्रॉम' का अर्थ देता है, अर्थात् यह अलगाव (अलग होने) का बोध कराता है उदाहरणार्थ - 'ऋणमुक्त'। इसका विग्रह इस तरह होगा'ऋण से मुक्त'।
इस प्रकार के समास में अपादान कारक की विभक्ति, से (विभक्त/अलग होने का भाव) लुप्त हो जाती है।
जैसे
सामासिक पद |
विग्रह |
जलहीन |
जल से हीन |
गुणहीन |
गुण से हीन |
पदच्युत |
पद से च्युत |
चिंतामुक्त |
चिंता से मुक्त |
दोषमुक्त |
दोष से मुक्त |
बलहीन |
बल से हीन |
अन्य उदाहरण - जातिच्युत-जाति से च्युत (निकाला हुआ), विद्याहीन-विद्या से हीन, सेवामुक्त-सेवा से मुक्त, देशनिकालादेश से निकाला, धर्मभ्रष्ट - धर्म से भ्रष्ट, पदच्युत-पद से च्युत, वेदविमुख-वेद से विमुख, हतभाग्य-भाग्य से हत (रहित) आदि।
(ई) सम्बन्ध तत्पुरुष समास
इसमें पूर्व पद सम्बन्ध परसर्ग (का, की, के) से युक्त रहता है, तथा जो एक वस्तु, व्यक्ति आदि का दूसरी वस्तु व्यक्ति आदि से सम्बन्ध का बोध कराता है। उदाहरणार्थ'राजकुमार', इसका विग्रह इस प्रकार होगा 'राजा का कुमार'। अर्थात् 'राजा का बेटा'। यहां बेटा किसका राजा का, तो बेटे का सम्बन्ध राजा से हुआ। अतः यहां सम्बन्ध तत्पुरुष समास है। इस प्रकार के समास में संबंध कारक की विभक्ति, का, के, की लुप्त हो जाती हैं
सामासिक पद |
विग्रह |
राजभवन |
राजा का भवन |
सभापति |
सभा का पति |
लोकनायक |
लोक का नायक |
वीरपुत्र |
वीर का पुत्र |
राजदरबार |
राजा का दरबार |
ग्रामवासी |
ग्राम का वासी |
अमृतधारा |
अमृत की धारा |
चंद्रोदय |
चद्र का उदय |
राजाज्ञा |
राजा की आज्ञा |
पराधीन |
दूसरे के अधीन |
गृहस्वामी |
गृह का स्वामी |
सेनापति |
सेना का पति |
विद्यासागर |
विद्या का सागर |
यमुनातट |
यमुना का तट |
अन्य उदाहरण - ग्रामोत्थान-ग्राम का उत्थान, पवनपुत्र-पवन का पुत्र, भूपित-भू का पति, नरेश-नरों में ईश, चंद्रोदय-चंद्र का उदय, रामकहानी-राम की कहानी, गृहपति-गृह का पति, राजसभा-राजा की सभा आदि।
(फ) अधिकरण तत्पुरुष समास
इसका पूर्व पद अधिकरण परसर्ग (में, पर) से युक्त रहता है, तथा क्रिया के स्थान, काल, भावादि का बोध कराता है। उदाहरणार्थ - 'ग्रामवासी', इसका विग्रह इस तरह होगा 'ग्राम में बसने वाला'।
इस प्रकार के समास में अधिकरण कारक की विभक्ति, में तथा पर लुप्त हो जाती हैं।
जैसे
सामासिक पद |
विग्रह |
ग्रामवास |
ग्राम में वास |
नरोत्तम |
नर में उत्तम |
कविश्रेष्ठ |
कवियों में श्रेष्ठ |
रणशूर |
रण में शूर |
आपबीती |
आप पर बीती |
नगरवास |
नगर में वास |
कलाप्रवीण |
कला में प्रवीण |
वनवास |
वन में वास |
अन्य उदाहरण - कला प्रवीण-कला में प्रवीण, गृहप्रवेश-गृह में प्रवेश, कानाफूसीकान में फुसफुसाहट, मुनिश्रेष्ठ-मुनियों में श्रेष्ठ, आपबीती-अपने आप पर बीती, नरोत्तम-नरों में उत्तम, देशवासी-देश में वासी (रहने वाले), देशाटन-देश में अदना (भ्रमण), धर्मांध-धर्म में अंधा आदि।
(2) समानाधिकरण तत्पुरुष
तत्पुरुष का यह प्रकार मूल तत्पुरुष के अंतर्गत नहीं आता, बल्कि हिन्दी में स्वतंत्र मान्यता प्राप्त कर्मधारय और द्विगु समास के प्रकार इसके अंतर्गत आते हैं। इसमें पूर्व पद और उत्तर पद दोनों में समान परसर्ग प्रयुक्त किया जाता है, तब समानाधिकरण तत्पुरुष समास होता है। इसके भेद इस प्रकार हैं
कर्मधारय समास
जिस समास में विशेष्य विशेषण का भाव होता है, वहाँ कर्म धारय समास होता है। अर्थात् जिस समास में पूर्व पद विशेषण और उत्तर पद विशेष्य हो या पूर्व पद विशेष्य और उत्तर पद विशेषण हो, या दोनों पद विशेषण हों, या दोनों पदा विशेष्य हों, वहां कर्मधारय समास होता है। (जो विशेषता बताता है वह विशेषण और जिसकी विशेषता बताई जाती है वह विशेष्य होता है, जैसे-'चंद्रमुख' में चंद्र के माध्यम से मुख की विशेषता बताई जा रही है, अतः यहां 'चंद' विशेषण और 'मुख' विशेष्य है। अर्थात् जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद एवं उत्तरपद में उपमान-उपमेय या विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है, वह कर्मधारय समास कहलाता है। इस प्रकार के समास में 'समस्त-पद' का विग्रह करने पर दोनों पदों के मध्य में जो, है, के समान इत्यादि शब्द आते हैं।
सामासिक पद |
विग्रह |
पीतांबर |
पीत है जो अंबर |
महौषधि |
महान है जो औषधि |
नीलकमल |
नीला है जो कमल |
चंद्रमुख |
चंद्र के समान मुख |
परमानंद |
परम है जो आनंद |
कमलनयन |
कमल के समान नयन |
परमेश्वर |
परम है जो ईश्वर |
चरणकमल |
कमल के समान चरण |
महापुरुष |
महान है जो पुरुष |
लालमणि |
लाल है जो मणि |
कर्मधारय समास को समझने के लिए विशेषण की समझ आवश्यक है, अतः इसके लिए परीक्षार्थियों को विशेषण का अध्ययन करना चाहिए।) इस आधार पर कर्मधारय समास के चार उपभेद होते हैं
- विशेषण पूर्व पद कर्मधारय समास
- विशेष्य पूर्व पद कर्मधारय समास
- विशेषणोभय पद कर्मधारय समास
- विशेष्योभय पद कर्मधारय समास
(1) विशेषण पूर्व पद कर्मधारय समास
जिस समास का पूर्व पद विशेषण और उत्तर पद विशेष्य हो जैसे- 'महात्मा' इसका विग्रह इस प्रकार होगा- ‘महान है जो आत्मा'। इस शब्द में आत्मा को महान बताया गया है, अतः महान विशेषण और आत्मा विशेष्य है। इस शब्द का पूर्व पद विशेषण और उत्तर पद विशेष्य होने से, इसमें विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होगा। अन्य उदाहरण-महाराज, दीर्घायु, अंधविश्वास, भलामानस, नीलकमल, नीलगाय, हराधनिया, कालीमिर्च, कृष्णसर्प आदि।
(2) विशेष्य पूर्व पद कर्मधारय समास
जिस समास का पूर्व पद विशेष्य और उत्तर पद विशेषण हो जैसे- 'नराधम', इसका विग्रह इस प्रकार होगा-नरों में है जो अधम' इस शब्द में नर को अधम बताया गया है और विशेष्य (नर) पूर्व पद में आया है और विशेषण (अधम) उत्तर पद में आने के कारण यहां विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास होगा। अन्य उदाहरण मुनिवर, पुरुषोत्तम, देशांतर।
(3) विशेषणोभय पद कर्मधारय समास
जिस समास के दोनों पद विशेषण हों, जैसे- 'मोटा-ताजा' इसमें मोटा और ताजा दोनों विशेषण हैं, अतः यहाँ विशेषणोभयपद कर्मधारय समास होगा। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि कुछ लोगों को यह द्वन्द्व समास के समान लग सकता है, लेकिन द्वन्द्व के दोनों पदों में विपरीतार्थक भाव होता है, चाहे वह लिंगादि किसी भी दृष्टि से हो, लेकिन कर्मधारय के दोनों पदों में विपरीतार्थक भाव नहीं होता, दोनों ही पद विशेषण होते हैं। अन्य उदाहरण-हष्ट-पुष्ट, सीधा-सादा, नीललोहित, हरा-भरा आदि।
(4) विशेष्योभय पद कर्मधारय समास
जिस समास के दोनों पद विशेष्य हों, जैसे-भवसागर, स्त्रीरत्न, पुरुषसिंह आदि। उपरोक्त उदाहरणों में प्रत्येक शब्द के दोनों पद विशेष्य हैं, अतः यहां विशेष्योभयपद कर्मधारय समास होगा।
द्विगु समास
इसका पूर्व पद संख्या वाचक होता है। और समग्र पद से समूह या समाहार का बोध होता है जैसे - सप्तर्षि-सात ऋषियों का मण्डल (समूह)। जिस समास का पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु समास कहलाता है। इस प्रकार के समास में समूह या समाहार का ज्ञान (बोध) होता है।
सामासिक पद |
विग्रह |
तिरंगा |
तीन रंगों का समूह |
अठन्नी |
आठ आनों का समूह |
दोपहर |
दो पहरों का समूह |
सप्ताह |
सात दिनों का समूह |
चौमासा |
चार मासों (महीनों) का समूह |
चौराहा |
चार रास्तों का समूह |
त्रिलोक |
तीनों लोकों का समाहार |
नवरात्र |
नौ रात्रियों का समूह |
नवग्रह |
नौ ग्रहों का समूह |
सप्तर्षि |
सात ऋषियों का समूह |
पंचवटी |
पाँच वटों का समूह |
चवन्नी |
चार आनों का समूह |
अन्य उदाहरण - शतक-सौ (छंदों) का समूह, त्रिभुवन-तीन भवनों का समाहार, तिराहा-तीन राहों का मिलन, पंचपात्र-पंच पात्रों का समूह, पंचवटी-पांच वट वृक्षों का समूह, त्रिवेणी-तीन नदियों (गंगा, यमुना, सरस्वती) का सामाहार, त्रिफला-तीन फलों। (हर्र, बहेड़ा, आंवला) का समाहार, सतसई सात सौ संतों का समूह।
द्वंद्व समास
जिस समास के दोनों पदों में लिंग, वचनादि के आधार पर विरोधी भाव हो वहाँ द्वंद्व समास होगा। इसके तीन भेद होत हैं- इतरेतर द्वंद्व, समाहार द्वंद्व और वैकल्पिक द्वंद्व।
(1) इतरेतर द्वंद्व
इतरेतर का अर्थ होता है, पृथक या स्वतंत्र। यह वह द्वंद्व समास है जिसमें 'और' से सभी पद जुड़े रहते हैं। और अपना पृथक अस्तित्व रखते हैं, लेकिन योजक चिन्ह के कारण दो पदों के बीच आने वाले 'और' का लोप रहता है, जो कि विग्रह करने पर वह सामने आता है। जैसे- 'राम-कृष्ण', इस शब्द का विग्रह होगा-'राम और कृष्ण'।
अन्य उदाहरण - राधाकृष्ण-राधा और कृष्ण, गाय-बैल-गाय और बैल, माँ-बापमाँ और बाप, सीताराम- सीता और राम, भाई-बहन-भाई और बहन।
(2) समाहार द्वंद्व
इस समास में ऐसे युग्म शब्द बनते हैं, जिनसे दो पदों के अर्थ के अतिरिक्त कुछ और भी अर्थ निकलता है, जैसे- दाल-रोटी'। इसे वाक्य में प्रयोग कर कहा जाता है कि 'दालरोटी चल रही है।' इस वाक्य के अनुसार यह केवल दाल और रोटी नहीं, बल्कि इसका तात्पर्य घर के सामान से या सामान्य जीवन यापन से भी माना जा सकता है।
अन्य उदाहरण - अन्न-जल, हाथपाँव, नोन-तेल, साँप-बिच्छू, घर-द्वार, खाना-पीना आदि।
(3) वैकल्पिक द्वंद्व
ऐसे समास या/ अथवा के लोप से बनते हैं। जैसे- थोड़ाबहुत-थोड़ा या बहुत, सुख-दुःख-सुख या दुःख, पाप-पुण्य-पाप अथवा पुण्य, जीवनमरण-जीवन या मरण, थोड़ा बहुत-थोड़ा या बहुत, राग-द्वेष-राग या द्वेष।
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं एवं दोनों पदों के बीच में योजक चिह्न (-) का प्रयोग होता है एवं विग्रह करने पर दोनों पदों के मध्य (बीच) में निम्नलिखित पद और, अथवा, एवं, या लगाते हैं तो ऐसा समास द्वंद्व समास कहलाता है।
जैसे
सामासिक पद |
विग्रह |
राधा-कृष्ण |
राधा और कृष्ण |
अन्न-जल |
अन्न और जल |
खरा-खोटा |
खरा या खोटा |
नदी-नाले |
नदी और नाले |
ऊँच-नीच |
ऊँच या नीच |
अपना-पराया |
अपना और पराया |
नर-नारी |
नर और नारी |
राजा-प्रजा |
राजा और प्रजा |
ठंडा-गरम |
ठंडा या गरम |
देश-विदेश |
देश और विदेश |
बहुव्रीहि समास
जिस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता और जिसका पदगत अर्थ न होकर कोई अन्य अर्थ ही निकलता हो, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है, अर्थात् इसमें - सभी पदों के योग से कोई भिन्न अर्थ ही निकलता है, उदाहरणार्थ - ‘पीताम्बर'। इसका पदगत अर्थ है पीला वस्त्र, किन्तु पीताम्बर से अन्य अर्थ ही ध्वनित होता है- श्रीकृष्ण। पीताम्बर का विग्रह इस -तरह होगा- पीला है अम्बर जिसका वह (अर्थात् श्री कृष्ण) अतः पीताम्बर में बहुव्रीहि समास है।जिस समास के समस्त पदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं होता तथा दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं तो ऐसा समास बहुव्रीहि समास कहलाता है।
जैसे
सामासिक पद |
विग्रह |
मृत्युंजय |
मृत्यु को जीतने वाला (शंकर) |
दशानन |
दस हैं आनन (मुख) जिसके (रावण) |
घनश्याम |
घन के समान है जो (कृष्ण) |
लंबोदर |
लंबा है उदर जिसका (गणेश) |
महावीर |
महान वीर है जो (हनुमान) |
विषधर |
विष को धारण करने वाला (सर्प) |
नीलकंठ |
नीला है कंठ जिसका (शिव) |
चतुर्भुज |
चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु) |
निशाचर |
निशा (रात, रात्रि) में विचरण करने वाला (राक्षस) |
अन्य उदाहरण : चक्रपाणि-चक्र है हाथ में जिसके अर्थात् विष्णु, दसमुख-दस हैं मुख जिसके अर्थात् रावण, अनंग-बिना अंगों वाला है, जो वह अर्थात् कामदेव, बहुबाहु-बहूत हैं भुजायें, जिसकी वह अर्थात् रावण, पद्मासना-पद्म के आसन पर है जो विराजमान वह अर्थात् सरस्वती, चन्द्रशेखरचन्द्रमा है शिखर (ललाट) पर जिसके वह अर्थात् शंकरजी, एकदन्त-एक है दाँत जिसके वह अर्थात् श्री गणेश, चतुर्भुजचार भुजायें हैं, जिसकी अर्थात् विष्णु, षडानन- छः आनन हैं, जिसके अर्थात् कार्तिकेय आदि।
कर्मधारय एवं बहुव्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय एवं बहुव्रीहि समास में प्रमुख अंतर यह है कि कर्मधारय समास में एक पद 'विशेषण' अथवा 'उपमान' होता है एवं दूसरा पद विशेष्य अथवा उपमेय होता है।
जैसे - 'नीलकंठ', इसमें 'नील' विशेषण है एवं 'कंठ' विशेष्य है। इसी प्रकार 'चरणकमल' में 'चरण' उपमेय है एवं 'कमल' उपमान है। अतः ये उदाहरण कर्मधारय समास के हैं।
जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करते हैं।
जैसे
- 'नीलकंठ' - नीला है कंठ जिसका (शिव)
- 'चक्रधर' - चक्र को धारण करता है जो (कृष्ण)
उदाहरण
नीलकंठ
- कर्मधारय समास- नीला है जो कंठ
- बहुव्रीहि समास- नीला है कंठ जिसका (शिव)
लंबोदर
- कर्मधारय समास- लंबा उदर
- बहुव्रीहि समास- लंबा है उदर जिसका (गणेश)
द्विगु एवं बहुव्रीहि समास में अंतर
द्विगु समास में प्रथम पद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा दूसरा पद विशेष्य होता है, लेकिन बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण के रूप में कार्य करता है।
जैसे
दशानन
- द्विगु समास- दस आननों (मुखों) का समूह
- बहुव्रीहि समास- दस आनन (मुख) हैं जिसके (रावण)
चतुर्भुज
- द्विगु समास- चार भुजाओं का समूह
- बहुव्रीहि समास- चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु)
द्विगु एवं कर्मधारय समास में अंतर
द्विगु समास में प्रथम पद सदैव संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है, लेकिन कर्मधारय समास का एक पद विशेषण होने पर भी यह कभी संख्यावाचक नहीं होता है।
द्विगु समास का पहला पद ही विशेषण बनकर प्रयोग में आता है, परंतु कर्मधारय समास में कोई भी पद दूसरे का विशेषण हो सकता है।
जैसे-
- नवरत्न - नौ रत्नों का समूह (द्विगु समास)
- पुरुषोत्तम – पुरुषों में जो है उत्तम (कर्मधारय समास)
- चतुर्वर्ण - चार वर्णों का समूह (द्विगु समास)
- रक्तोत्पल - रक्त है जो उत्पल (कर्मधारय समास)
संधि एवं समास में अंतर
अर्थ के दृष्टिकोण से देखा जाए तो दोनों (संधि एवं समास) समान होते हैं, फिर भी इन दोनों में कुछ भिन्नताएँ भी होती हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- संधि तोड़ने को 'संधि-विच्छेद' कहा जाता है, जबकि समास के पदों को अलग करने को 'समास-विग्रह' कहा जाता है।
- संधि में वर्गों के योग से वर्ण परिवर्तन होता है, जबकि समास में ऐसा नहीं होता है।
- संधि वर्णों का मेल है, जबकि समास शब्दों का मेल है।
परीक्षोपयोगी कुछ महत्त्वपूर्ण 'समास-विग्रह' |
समास | सामासिक पद | विग्रह |
अव्ययीभाव समास | आजन्म आसमुद्र | जन्म से लेकर समुद्रपर्यंत |
कर्मधारय समास | कापुरुष कपोतग्रीवा कुसुमकोमल | कायर है जो पुरुष कपोत के समान ग्रीवा कुसुम के समान कोमल |
द्विगु समास | अठन्नी चौपाया चौराहा | आठ आनों का समाहार चार पाँव वाला चार राहों का मिलन स्थल |
द्वंद्व समास | कपड़ा-लत्ता गाड़ी-घोड़ा गौरी-शंकर | कपड़ा और लत्ता गाड़ी और घोड़ा गौरी और शंकर |
बहुव्रीहि समास | जलज वज्रायुध मुरलीधर नीलांबर जलद गिरिधर गोपाल चंद्रभाल | जल में उत्पन्न होता है जो (कमल) वज्र है आयुध जिसका (इंद्र) मुरली को धारण किये हुए है जो (श्रीकृष्ण) नीला है अंबर जिसका (बलराम) जल देता है जो (बादल) गिरि को धारण करे जो (श्रीकृष्ण) गो का पालन करे जो (श्रीकृष्ण) भाल पर चंद्रमा है जिसके (शिव) |
परीक्षोपयोगी तत्पुरुष समास के भेद/प्रकारों से संबंधित उदाहरण |
समास | सामासिक पद | विग्रह |
कर्म तत्पुरुष समास | गिरहकट विरोधजनक आदर्शोन्मुख मरणातुर | गिरह को काटने वाला विरोध को जन्म देने वाला आदर्श को उन्मुख मरने को आतुर |
करण तत्पुरुष समास | दोषपूर्ण मनगढंत महिमामंडित भावाभिभूत | दोष से पूर्ण मन से गढ़ा हुआ महिमा से मंडित भाव से अभिभूत |
संप्रदान तत्पुरुष समास | सभाभवन मालगोदाम प्रौढ़ शिक्षा घुड़साल | सभा के लिये भवन माल के लिये गोदाम प्रौढ़ों के लिये शिक्षा घोड़ों को बांधने का स्थान (अस्तबल) |
अपादान तत्पुरुष समास | ऋणमुक्त पदच्युत पापमुक्त कर्म भिन्न | ऋण से मुक्त पद से च्युत पाप से मुक्त कर्म से भिन्न |
संबंध तत्पुरुष समास | लखपति प्रेमोपहार नगरसेठ श्रमदान | लाख (२) का पति (स्वामी) प्रेम का उपहार नगर का सेठ श्रम का दान |
अधिकरण तत्पुरुष समास | सिरदर्द देवाश्रित ऋषिराज | सिर में दर्द देवों पर आश्रित ऋषियों में राजा |
विशेष - प्रत्येक विद्यार्थी को समासों का विग्रह करते समय अत्यंत सावधानी रखनी चाहिए, क्योंकि जरा सी असावधानी से आपका समास बदल सकता है। उदाहरण के लिए 'दशानन' शब्द को लें। इसका पूर्व पद संख्यावाचक है, अतः यह द्विगु समास जैसा लग रहा है, लेकिन चूंकि ‘दशानन' कहने से किसी तीसरे अर्थ अर्थात् रावण का बोध हो रहा है। यह शब्द किसी अन्य अर्थ के लिए रूढ़ हो गया है, अतः यहां द्विगु समास न होकर बहुव्रीहि समास होगा। पीताम्बर में विशेषण-विशेष्य (पीला-विशेषण, अम्बर (वस्त्र)-विशेष्य) होने से कई विद्यार्थियों को यह कर्मधारय समास जैसा लग सकता है, लेकिन पीताम्बर', कृष्ण के लिए रूढ़ हो गया है, अतः यहां भी बहुव्रीहि समास होगा न कि कर्मधारय।
FAQ :-
समास के कितने भेद होते हैं?
हिन्दी में समास की संख्या छः मानी जाती हैं.
तत्पुरुष समास के कितने भेद होते हैं?
समास तत्पुरुष के मूलतः दो भेद होते हैं- 1. व्याधिकरण तत्पुरुष, 2. समानाधिकरण तत्पुरुष.
द्वंद समास के कितने भेद होते हैं?
द्वंद समास के तीन भेद होत हैं- 1. इतरेतर द्वंद्व 2. समाहार द्वंद्व और 3. वैकल्पिक द्वंद्व.
कर्मधारय समास के कितने उपभेद होते हैं?
कर्मधारय समास के चार उपभेद होते हैं.
व्यधिकरण तत्पुरुष के कितने उपभेद होते हैं?
व्याधिकरण तत्पुरुष के छः उपभेद होते हैं- 1. कर्म तत्पुरुष समास, 2. करण तत्पुरुष समास, 3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास, 4. अपादान तत्पुरुष समास ,5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास, 6. अधिकरण तत्पुरुष समास.