संसद में विधेयक पारित होने की प्रक्रिया | sansad me vidheyak parit hone ki prakriya

संसद में विधेयक पारित होने की प्रक्रिया

संसद में विधेयक पारित होने की प्रक्रिया का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा किया जा सकता है-
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(क) साधारण विधेयक पारित होने की प्रक्रिया (तरीका या विधि)

संसद का सबसे प्रमुख कार्य कानून बनाना है। साधारण विधेयक संसद द्वारा पारित होने पर भी तब तक कानून का रूप धारण नहीं करते, जब तक उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर नहीं हो जाते। साधारण विधेयक के पारित होने की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों के आधार पर सम्पन्न होती है

विधेयक का प्रस्तुतीकरण तथा प्रथम वाचन- साधारण विधेयक को संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। साधारण विधेयक प्रस्तुत करने का अधिकार संसद के प्रत्येक सदस्य को है, परन्तु इसके लिए उसे सदन के अध्यक्ष को एक माह पूर्व सूचना देनी होती है।
निर्धारित तिथि पर विधेयक के प्रस्तुतकर्ता को सदन की आज्ञा मिल जाती है और वह सदन में विधेयक का शीर्षक तथा उद्देश्य बताता है। यह विधेयक का प्रथम वाचन कहलाता है।

द्वितीय वाचन- प्रथम वाचन के कुछ समय बाद द्वितीय वाचन होता है। द्वितीय वाचन के लिए निर्धारित की गई तिथि को विधेयक-प्रस्तुतकर्ता यह निर्णय करता है कि विधेयक पर शीघ्र विचार किया जाए या उसे प्रवर समिति को सौंप दिया जाए अथवा जनमत जानने के लिए जनता के सम्मुख प्रसारित कर दिया जाए। साधारणतया विधेयक पर शीघ्र विचार नहीं किया जाता। कुछ विशेष विधेयकों पर ही शीघ्र विचार किया जाता है तथा शेष विधेयक प्रवर समिति के पास विचार-विमर्श के लिए भेज दिए जाते हैं। द्वितीय वाचन के अन्तर्गत विधेयक के मूल सिद्धान्तों के सम्बन्ध में ही विचार-विमर्श किया जाता है। इसमें प्रत्येक अनुच्छेद पर विस्तार से विचार नहीं किया जाता है।

प्रवर समिति के सम्मुख विधेयक- प्रवर समिति सदन के कुछ सदस्यों से मिलकर बनती है। इस समिति में विधेयक का गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है और आवश्यक बिन्दुओं पर संशोधन करने का प्रस्ताव भी रखा जाता है। समस्त कार्यवाही पूर्ण करने के पश्चात् प्रवर समिति विधेयक को अपने प्रतिवेदन (विवेचन) के साथ सदन को वापस कर देती है।

प्रतिवेदन अवस्था- समिति द्वारा प्रतिवेदन को सदन में विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुत किया जाता है। इस समय विधेयक की प्रत्येक धारा पर गम्भीरता से विचार किया जाता है। परिणामस्वरूप विधेयक के सम्बन्ध में अनेक संशोधन प्रस्तुत किए जाते हैं। इस प्रकार विधेयक की प्रत्येक धारा पर पूर्ण रूप से विचार-विमर्श हो जाने के बाद द्वितीय वाचन की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।

तृतीय वाचन- विधेयक का तृतीय वाचन; मात्र औपचारिकता के रूप में होता है। इस वाचन में विधेयक की शब्दावली एवं भाषा में संशोधन के अतिरिक्त, कोई अन्य संशोधन नहीं किया जाता। अन्त में इस विधेयक पर मतदान होता है। यदि इस विधेयक को उपस्थित सदस्यों का बहुमत प्राप्त हो जाता है तो विधेयक उस सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है।

द्वितीय सदन में विधेयक- प्रथम सदन द्वारा पारित होने के पश्चात् विधेयक को विचारार्थ द्वितीय सदन में प्रेषित कर दिया जाता है। वहाँ भी प्रथम सदन के समान ही इसके तीन वाचन होते हैं। यदि इस सदन में भी यह पारित हो जाता है, तब इसे स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है। यह भी हो सकता है कि द्वितीय सदन इसे पारित न करे या कोई ऐसा संशोधन करना चाहे, जो पहले सदन को स्वीकार न हो। ऐसी स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में इसे प्रस्तुत किया जाता है। संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है। संयुक्त बैठक में बहुमत के आधार पर यह निर्णय किया जाता है कि इस विधेयक को पारित किया जाए अथवा रद्द कर दिया जाए। राज्यसभा किसी साधारण विधेयक को पारित करने में अधिक-से-अधिक 6 माह की देरी कर सकती है।

राष्ट्रपति की स्वीकृति- दोनों सदनों से विधेयक के पारित हो जाने के पश्चात् यह राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर हेतु भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात् यह विधेयक कानून का रूप ले लेता है और एक निश्चित तिथि को सम्पूर्ण देश में लागू कर दिया जाता है। यह भी सम्भव हो सकता है कि राष्ट्रपति उसमें कुछ दोष अनुभव करे और उसे पुनः विचार के लिए संसद को वापस भेज दे; किन्तु संसद द्वारा पुनः पारित करके भेजने पर राष्ट्रपति को उस पर अनिवार्य रूप से हस्ताक्षर करने ही होते हैं।

धन (वित्त) विधेयक पारित होने की प्रक्रिया

धन सम्बन्धी विधेयक एक विशेष प्रक्रिया के आधार पारित होता है। ये विधेयक केवल लोकसभा में ही मन्त्रियों द्वारा प्रस्तुत किए जा सकते हैं और इन्हें प्रस्तुत करने से पूर्व इनके सम्बन्ध में राष्ट्रपति की पूर्व-स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होता है। लोकसभा में पारित होने के पश्चात् ये विधेयक राज्यसभा में भेजे जाते हैं। राज्यसभा विचार करने के लिए विधेयक को अधिकतम 14 दिन तक अपने पास रोक सकती है, अर्थात् उसे 14 दिन की अवधि में ही इस विधेयक को लोकसभा को लौटा देना आवश्यक होता है। यदि राज्यसभा विधेयक को निश्चित समयावधि में पास कर देती है तो दोनों सदनों से यह विधेयक पारित समझा जाता है। दूसरी विशेष बात यह है कि राज्यसभा के किसी संशोधन को स्वीकार करने के लिए लोकसभा बाध्य नहीं होती। इस सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यदि राज्यसभा इस विधेयक को निश्चित अवधि में नहीं लौटाती है तो यह विधेयक 14 दिन के बाद स्वतः पारित मान लिया जाता है। इस प्रकार राज्यसभा वित्त विधेयक को केवल 14 दिन तक ही रोक सकती है।
दोनों सदनों में पारित हो जाने के बाद, विधेयक को राष्टपति के पास औपचारिक स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति इस विधेयक पर अपनी स्वीकृति देने के लिए बाध्य होता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने पर यह विधेयक कानून बन जाता है।

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