विज्ञापन किसे कहते हैं? | vigyapan kise kahate hain

विज्ञापन

विज्ञापन के क्षेत्र में कहावत है, 'विज्ञापन के बिना व्यवसाय करना अन्धेरे कमरे में लाठी घुमाने के समान है।' इस कहावत से विज्ञापन की महत्ता सिद्ध होती है। विज्ञापन की महत्ता इस बात से भी सिद्ध होती है कि पूरे विश्व में विज्ञापन न करने वाली बहुत कम संस्थाएं हैं।
विज्ञापन विपणन का विशेषकर विपणनी संचार का एक महत्वपूर्ण साधन है। विज्ञापन द्वारा विज्ञापित वस्तुओं के बारे में इच्छित उपभोक्ताओं तक सूचना पहुंचाई जाती है। विज्ञापन से विज्ञापित वस्तुओं की सकारात्मक छवि बनाई जाती है। इस लेख में हम विज्ञापन के विभिन्न मूलभूत पहलूओं से परिचित होते हैं।
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इस लेख में हम विज्ञापन का परिचय प्राप्त करने के लिए उसके विविध पहलुओं का अध्ययन करेंगे। इस पाठ में विज्ञापन की अवधारणा पर विशेष जोर दिया जाएगा। विज्ञापन की कुछ परिभाषाओं पर भी संक्षेप में चर्चा होगी। अन्त में विज्ञापन के कार्यों के बारे में चर्चा की जाएगी।
इस लेख की संरचना इस प्रकार रहेगी-
  • उद्देश्य
  • परिचय
  • विषय वस्तु की प्रस्तुति
  • विज्ञापन- एक परिचय
  • विज्ञापनः प्रकृति व दायरा
  • विज्ञापन के उद्देश्य
  • विज्ञापन के कार्य
  • विज्ञापन की परिभाषाएं
  • सारांश
  • सूचक शब्द
  • स्व मूल्यांकन हेतु प्रश्न
  • संदर्भित पुस्तकें

उद्देश्य

विज्ञापन एक बहु आयामी विधा है। कुछ विज्ञापन हमें मात्र सूचना ही देते हैं। कुछ विज्ञापन हमें सोचने के लिए मजबूर करते हैं। कभी विज्ञापन हमारा हंसी-मजाक या अन्य तरीके से मनोरंजन करते हैं। कुछ विज्ञापन शिक्षाप्रद भी होते हैं। किन्तु प्रायः विज्ञापन अनुनयन या मनाने, बुझाने या रिझाने का काम करते हैं। यह अलग बात है कि आलोचकों के अनुसार विज्ञापन विज्ञापित वस्तुओं की वकालती करते हुए हमें प्रभावित करते हैं। इस लेख में हम विज्ञापन के विभिन्न आयामों व पहलूओं के बारे में परिचित होंगे।
इस अध्ययाय के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
  • विज्ञापन की अवधारणा को समझना
  • विज्ञापन के प्रकृति व दायरा को समझना
  • विज्ञापन के उद्देश्यों को समझना
  • विज्ञापन के कार्यों को समझना
  • विज्ञापन की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं से परिचित होना

विज्ञापन का परिचय

कहा जाता है कि विज्ञापन व्यापार जितना पूराना है। विज्ञापन की शुरूआत आदान-प्रदान या विनिमय के शुरुआती दौर में ही हो गई थी। उन शुरुआती दिनों से लेकर आजतक विज्ञापन द्वारा विज्ञापित वस्तुओं के प्रति ध्यान आकर्षण व सकारात्मक ग्राह्यता बढाने का काम किया जाता रहा है।
आज विज्ञापन एक स्वयं सम्पूर्ण उद्योग के रूप में उभरा है। आधुनिक विज्ञापन आज जनमाध्यम व कुछ अन्य स्वतन्त्र विज्ञापन माध्यमों द्वारा व्यवसायिक या सामाजिक उद्देश्यों से किसी वस्तु, सेवा, विचारधारा, संस्था, व्यक्ति विशेष या घटना आदि के संवर्धन का कार्य करता है।

विषय वस्तु की प्रस्तुति

आज विज्ञापन व्यवसाय व व्यापार का एक सर्वविद व अति शक्तिशाली साधन बन चुका है। यह आधुनिक समाज का एक अभिन्न अंग भी बन चुका है। आधुनिक व्यापार व व्यवसाय के साथ-साथ समूची जनसंचार व्यवस्था को चलाने व पनपाने में विज्ञापन अहम भूमिका निभाता है। सभी जनमाध्यम अपनी आमदनी का प्रमुख हिस्सा विज्ञापन से ही कमाते हैं।
आधुनिक विज्ञापन आज के व्यवसाय के क्षेत्र के बदलते प्रचलनों के साथ-साथ तकनीकि प्रगति तथा जीवन शैली में आए बदलावों को प्रतिबिम्बित करता है।

इस लेख में विषय वस्तु की प्रस्तुति इस प्रकार रहेगी-
  • विज्ञापन- एक परिचय
  • विज्ञापनः प्रकृति व दायरा
  • विज्ञापन के उद्देश्य
  • विज्ञापन के कार्य
  • विज्ञापन की परिभाषाएं

विज्ञापन- एक परिचय

कई लोगों का मानना है कि विज्ञापन बिक्री वृद्धि का साधन है। किन्तु वास्तविकता यह है कि वस्तु आदि की बिक्री में विज्ञापन एक कारक मात्र है। विज्ञापन बिक्री वृद्धि का एक मात्र कारक नहीं है। विज्ञापन हमें सुचित करता है, विज्ञापित वस्तुओं के विषय में जागरूकता फैलाता है तथा हमें सूचित-क्रय-निर्णय लेने में सहायता करता है। यह विपणन संचार का एक शाक्तिशाली साधन है।
कुछ आलोचकों का कहना है कि विज्ञापन हमें प्रभावित करता है तथा अनचाही चीजों को खरीदने के लिए मजबूर करता है। विज्ञापन के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह हमारी आवश्यक्ताओं के साथ खिलवाड करता है तथा झूठी आवश्यक्ताएं पनपाता है। किन्तु सच्चाई यह है कि विज्ञापन ना तो आवश्यक्ता है और न ही आवश्यक्ताओं के साथ खिलवाड कर सकता है। विज्ञापन केवल मात्र हमारी चाहतों के साथ खेलता है। विज्ञापन द्वारा विज्ञापित वस्तुओं, चाहे वो वस्तु, सेवा, विचारधारा, संस्था या व्यक्ति विशेष- के बारे में हमें सूचित करते हैं। विज्ञापित वस्तुओं के बारे में सूचना देने के साथ-साथ विज्ञापन निश्चित, आकर्षक व अनुनयनकारी छवि बनाता है। विज्ञापन द्वारा विज्ञापित वस्तु की उपस्थिति दर्ज की जाती है, उस वस्तु के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है तथा इच्छित उपभोक्ताओं को बार-बार याद दिलाते हुए विज्ञापित वस्तु के लिए गायता बनाने का प्रयास किया जाता है।
विज्ञापन द्वारा निरंतर व सुसंगत तरीके से संचार का कार्य किया जाता है। ऐसे निरंतर व सुनियोजित तरीके से विज्ञापन करना विज्ञापन अभियान कहलाता है।
विज्ञापन बहुत से प्रकार के माध्यमों व साधनों का इस्तेमाल करता है। इसके लिए समाचार पत्रों से लेकर इन्टरनेट तक सभी जनमाध्यमों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा दिवारी लेखन, बैनर, पोस्टर, साइन बोर्ड, बैलून व आकाशी लेखन आदि अनेकों बाहरी विज्ञापन माध्यमों का भी प्रयोग किया जाता है। इसके लिए कई प्रकार के वाहनों को परिवहन विज्ञापन माध्यम के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इसके अलावा विज्ञापन हेतू अनेक मुद्रित प्रचार-प्रसार समग्री- पम्फलेट, लिफलेट, ब्रुशर, कैटलॉग- इस्तेमाल में लाए जाते हैं।
विभिन्न प्रकार की वस्तु सेवा आदि के विज्ञापन हेतू भिन्न-भिन्न प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं। उपभोक्ता वस्तु व सेवा आदि के लिए बहुल मात्रा में विज्ञापन की आवश्यक्ता होती है। औद्योगिक वस्तु व सेवाओं के लिए कम मात्रा में विज्ञापन किया जाता है। अधिकतर औद्योगिक वस्तुओं के लिए सूचना प्रधान विज्ञापन बनाए जाते हैं वहीं उपभोक्ता वस्तुओं के लिए प्रतिकात्मक तरीके से स्वतन्त्र व सकारात्मक छवि निर्माण किया जाता है।
सामाजिक विज्ञापन व व्यवसायिक विज्ञापन के लिए भिन्न-भिन्न प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं। विज्ञापन कभी विज्ञापित वस्तु में निहित शारीरिक या व्यवहारिक तत्वों को रेखांकित करते हुए लोगों को मनाने का प्रयास करता है तो कभी मार्मिक तरीका अपनाते हुए विज्ञापित वस्तुओं के लिए रोचक व मोहक छवि बनाता है। सामाजिक विज्ञापनों के लिए आमतौर पर तार्किक व मार्मिक दोनों प्रणालियों का इस्तेमाल किया जाता है।

विज्ञापनः प्रकृति व दायरा

अब तक हम विज्ञापन की अवधारणा के बारे में चर्चा कर रहे थे। आगे बढ़ने से पहले हम विज्ञापन या एडवर्टाइजमेंट व विज्ञापन प्रक्रिया या एडवर्टाईजिंग में अन्तर को समझने का प्रयास करते हैं। विज्ञापन वह वस्तु है जिसके जरिए उपभोक्ताओं को विज्ञापित वस्तु के बारे में सुचना व संदेश आदि पहुंचाए जाते हैं। अपितु समाचार पत्र व पत्रिकाओं में छपने वाले व्यवसायिक व सामाजिक संदेश विज्ञापन कहलाते हैं। समाचार पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित होने अलावा विज्ञापन रेडियो व दूरदर्शन पर भी आते हैं। रेडियो पर प्रसारित संगीत प्रधान विज्ञापनों को जिंगल कहा जाता है। रेडियो पर उद्घोषणा या अनाउंसमेंट श्रेणी के विज्ञापन भी आते हैं। टेलिविजन पर आने वाले अधिकतर विज्ञापन व्यवसायिक किस्म के होते हैं। इनको कमर्शियल विज्ञापन या टेलिविजन कमर्शियल भी कहा जाता है।
दूसरी ओर विज्ञापन प्रक्रिया का अर्थ है कि विज्ञापनों का इस्तेमाल करते हुए विज्ञापित वस्तु का संवर्धन करना। विज्ञापन प्रक्रिया में नियोजन, विभिन्न प्रकार की तैयारियाँ, विज्ञापन का निर्माण तथा प्रकाशन व प्रसारण हेतू विभिन्न माध्यमों में इन विज्ञापनों के लिए स्थान व समय उपलब्ध करवाना आदि उप-प्रक्रियाएं शामिल हैं। इस प्रक्रिया में विज्ञापनों का मूल्यांकन भी शामिल है।
अब विज्ञापन को थोडा और बारिकी से समझते हैं। ज्यादातर लोगों का मानना है कि विज्ञापन से व्यवसाय को लाभ पहुंचता है। कुछ लोग विज्ञापन को लाभकारी प्रक्रिया नहीं मानते। इसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि विज्ञापन अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति हेतू किया जाता है। कभी विज्ञापन केवल सूचना पहुंचाने का कार्य करता है । कभी यह अनुनयन या परसुएशन के जरिए उपभोक्ताओं को मनाने या रिझाने का काम करता है। कभी विज्ञापन के जरिए विज्ञापित वस्तु या संस्था की निश्चित व सकारात्मक छवि बनाई जाती है। अतएव विज्ञापन की भिन्न-भिन्न शैलियाँ हैं।
विज्ञापन कई बार हास्य प्रधान होते हैं। ऐसे विज्ञापनों में हास्य को उपभोक्ताओं के मनोरंजन हेतू इस्तेमाल नहीं किया जाता बल्कि हास्य के जरिए विज्ञापित वस्तु या सेवा के कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं व फायदों को दर्शाया जाता है। कभी-कभी उपभोक्ताओं के ध्यान आकर्षण हेतू भी हास्य का प्रयोग किया जाता है।
कभी-कभी विज्ञापनों में भिन्न-भिन्न भावों का इस्तेमाल किया जाता है। कभी विज्ञापनों में प्रेम, श्रद्धा, अनुराग आदि सकारात्मक भावों का इस्तेमाला किया जाता है तो कभी डर, ईर्ष्या या घृणा जैसे नकारात्मक भावों का भी प्रयोग किया जाता है। जहाँ कुछ विज्ञापन वास्तविकता के बहुत करीब होते हैं वहीं कुद विज्ञापनों में कल्पनाराज्य की सैर कराते हैं। हाँ, कुछ विज्ञापन हमें सुन्दर जगह व वादियों की भी सैर कराते हैं। कभी हमें विज्ञापनों में शौष्ठव शरीर के अधिकारी पुरुष दिखाई देते हैं तो कभी सुन्दर बालाएं व महिलाएं हमें विज्ञापित वस्तु के फायदों के बारे में बताते नजर आती हैं। अक्सर प्यारे-प्यारे बच्चे भी अति रोचक व मोहक तरीके से विज्ञापन के संदेश को हम तक पहुंचाते हैं। इस काम के लिए कई बार अलग-अलग जानवरों को भी विज्ञापनों में शामिल किया जाता है। 'हच' के विज्ञापनों में दिखाया जाने वाला प्यारा-सा कुत्ता इसका अच्छा उदाहरण है।
विज्ञापनों में कभी विज्ञापित वस्तु के संतुष्ट उपभोक्ताओं को भी दिखाया जाता है। कभी कुछ विज्ञापित वस्तु संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों को विज्ञापन में शामिल करके संदेश की विश्वसनीयता बढाने का प्रयास किया जाता है। अनेक विज्ञापनों में स्थापित हस्तियों को शामिल करके लोगों को विज्ञापित वस्तु की ओर आकर्षित करने की कोशिश की जाती है।
कुछ विज्ञापन बडे ही प्रत्यक्ष शैली में उपभोक्ताओं तक संदेश पहुंचाते हैं व कुछ सुक्ष्म व अप्रत्यक्ष शैली का इस्तेमाल करते हैं। कभी ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञापन के जरिए खूब शोर मचाते हुए हम तक पहुंचाया जाता है। किन्तु ज्यादातर विज्ञापन धीरे-धीरे उपभोक्ताओं के मन में खुद के लिए व विज्ञापित वस्तु के लिए स्थान बनाने का प्रयत्न करते हैं।
अधिकतर विज्ञापन केवल विज्ञापित वस्तु के बारे में बात करते हैं। किन्तु कुछ विज्ञापन तुलनात्मक शैली का इस्तेमाल करते हुए अपने प्रतिद्वंदियों से अपनी श्रेष्ठता को दर्शाते हैं।
विज्ञापन के संदर्भ में कई विज्ञापकों के मन में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सभी विज्ञापक चाहते हैं कि विज्ञापन से विज्ञापित वस्तु को निश्चित, सकारात्मक व परिमेय परिणाम मिले। यह बात तो जाहिर है कि विज्ञापन से विज्ञापित वस्तु को काफी लाभ होते हैं। किन्तु विज्ञापन से होने फायदों को नापना एक कठिन कार्य है। कभी-कभी यह कार्य असम्भव भी लगता है। विज्ञापक हर समय बिक्रि की तराजू में विज्ञापन के परिणाम को तोलने का प्रयास करते हैं। किन्तु विज्ञापन बिक्रि वृद्धि में एक कारक मात्र है। बिक्रि वृद्धि में वस्तु की गुणवत्ता, संस्था की छवि, वस्तु की उपलबधता व लोगों की आवश्यक्ताएं आदि कारक प्रमुख भूमिका अदा करते हैं।
इसका अर्थ यह नहीं है कि विज्ञापन के परिणाम को मापा ही नहीं जा सकता। मूल रूप से विज्ञापन संचार है। यह व्यवसायिक व सामाजिक संदेशों का सुनियोजित व सुव्यवस्थित संचार प्रक्रिया है। इसी कारण विज्ञापन के परिणामों को संचार के मापदण्डों से मापने की आवश्यक्ता है। सभी विज्ञापन अभियानों के निश्चित उद्देश्य होते हैं और इन अभियानों के परिणामों को उन्हीं उद्देश्यों के अनुसार मापना चाहिए। उदाहरण के तौर पर कभी विज्ञापन के जरिए हम वस्तु की छवि बनाने या बरकरार रखने का प्रयास करते हैं। कभी किसी संस्था की छवि सुदृढ करने का कार्य भी विज्ञापन के जरिए किया जाता है। दोनों ही स्थितियों में अन्तिम परिणाम वस्तु बिक्रि ही होती है। यह एक अप्रत्यक्ष लाभ है।
गलाकाट स्पर्धा के आज के इस माहौल में अधिक से अधिक विज्ञापन करना विज्ञापकों की एक मजबूरी बन गई है। वस्तु और सेवाओं की विविधता, विज्ञापन माध्यमों की बहुलता व अधिक संवर्धनी संचार या मार्केटिंग कम्युनिकेशन की आवश्यक्ता के आज के दौर में विज्ञापनों की बहुलता एक वास्तविकता है। विज्ञापनों की बहुलता व सर्वविदता के कारण अक्सर विज्ञापनों की आलोचना की जाती है। आलोचक मानते हैं कि विज्ञापन सर्वव्यापी होने के साथ-साथ अति शक्तिमान भी है। इसी कारण विज्ञापन व विज्ञापकों की नीयत को लेकर शंका जाहिर की जाती है। विशेष रूप से विज्ञापनों की आलोचना कुछ बिन्दुओं के संदर्भ में की जाती है। इनमें प्रमुख है-
  • उपभोक्तावाद फैलाना,
  • अनिच्छित वस्तुओं के लिए लालसा पैदा करना,
  • झूठी आवश्यक्ताएं जागृत कराना,
  • विज्ञापित वस्तुओं के बारे में अतिशयोक्ति करना या झूठे वायदे करना,
  • बच्चों प्रभावित करना,
  • विवादास्पद वस्तु सेवाओं का पक्ष लेना,
  • नग्नता व अश्लीलता फैलाना आदि।

विज्ञापन के उद्देश्य

विज्ञापन हर समय किसी निश्चित लक्ष्य के लिए किया जाता है। हम इस बारे में चर्चा कर चुके हैं कि विज्ञापन एक बहुआयामी विधा है और भिन्न-भिन्न समय व स्थिति में भिन्न-भिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति हेतू विज्ञापन किया जाता है। विज्ञापन के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
  • विज्ञापित वस्तु व सेवा के संदर्भ में अधिक जानकारी देना
  • विज्ञापित वस्तु व सेवा के संदर्भ में अधिक जानकारी लेने हेतू उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करना। उदाहरण के तौर पर कई विज्ञापनों में प्रतिउत्तरी लिफाफे या रिप्लाई एनवलप शामिल किए जाते हैं। अधिकतर विज्ञापनों में विज्ञापक संस्था का पता या ई-मेल आई.डी. दिया जाता है ताकि उपभोक्ता यदि चाहे तो अधिक जानकारी ले सके।
  • विज्ञापित वस्तु या सेवा के विभिन्न तत्व या फायदों के बारे में जागरूकता फैलाना।
  • उपभोक्ताओं को विज्ञापित वस्तु या सेवा की गुणवत्ता के बारे में याद दिलाना या आश्वासन देना।
  • नए या दोबारा बाजार मे उतारे गए वस्तु आदि को पहली बार अपनाने के लिए प्रेरित करना। इस संदर्भ में प्रारम्भिक मूल्य या इन्टरोडक्टरी प्राइस, टायल ऑफर, मनी बैक ऑफर आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
  • विज्ञापित वस्तु या विज्ञापक के लिए नई छवि बनाना।
  • विज्ञापित वस्तु या विज्ञापक की छवि बरकरार रखना।
  • तात्कालिक बिक्रि वृद्धि हेतू प्रयत्न करना।

विज्ञापन के कार्य

अब प्रश्न यह उठता है कि विज्ञापन किस प्रकार से व क्या काम करता है? सबसे पहले विज्ञापन हमारे पास पहुंचता है। विज्ञापन हमारे पास बार-बार पहुंचते हुए संदेश व विज्ञापित वस्तु के बारे में हमें याद दिलाता रहता है। इसी तरीके से विज्ञापन विज्ञापित वस्तु हेतू उपभोक्ताओं के मन में सुदृढ छवि व स्थान बनाता है। अंग्रेजी में इसको रिचिंग, रिमाईडिंग व रेनफोर्शमेंट कहा जाता है।
दूसरे तरीके से समझा जाए तो विज्ञापन सबसे पहले हमारा ध्यान आकर्षित करता है। उसके पश्चात् विज्ञापित वस्तु के प्रति हमारे मन में रूचि पैदा करता हैं। तीसरे चरण पर विज्ञापन हमारे मन में विज्ञापित वस्तु हेतू इच्छा जागृत कराता है। अन्त में विज्ञापन हमें विज्ञापित वस्तु को अपनाने की दिशा में यथासम्भव प्रयास करता है। संक्षेप में कहा जाए तो विज्ञापन चार प्रमुख कार्य करता है-
  • ध्यान आकर्षित करना या अटैन्सन।
  • रूचि पैदा करना या इन्टरैस्ट।
  • इच्छा जागृत करना या डिजायर।
  • अपनाने के लिए प्रेरित करना या ऐक्शन।
अंग्रेजी में इसको अटैन्सन, इन्टरैस्ट, डिजायर, ऐक्शन यानि ए. आई. डी. ए. फॉमूला कहा जाता है। कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस श्रृंखला में विश्वसनीयता या करेडिबिलिटी के रूप में एक और कडी की आवश्यक्ता है। इस प्रकार से ए. आई. डी. ए. फॉमूला अब ए. आई. डी. सी. ए. फॉमूला के नाम से जाना जाने लगा है।
उपरोक्त चर्चा से यह बात उभर के आती है कि विज्ञापन के जरिए विज्ञापित वस्तु को उपभोक्ताओं के मन में सर्वप्रथम दर्जा दिलाने का प्रयास किया जाता है। क्योंकि आज की गलाकाट स्पर्धा के माहौल में हर विज्ञापक चाहता है कि उसकी वस्तु या सेवा उपभोक्ता के जहन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करे। तभी खरीददारी करते समय उपभोक्ता उसी वस्तु का नाम सबसे पहले लेगा और उसी को खरीदने पर जोर देगा। अंग्रेजी में इसको टॉप ऑफ द माईड रिकॉल कहा जाता है।
विज्ञापन बनाते समय यह प्रयत्न किया जाता है कि विज्ञापन उपभोक्ताओं को याद रहे व विज्ञापित वस्तु को उपभोक्ता के जहन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो। किन्तु यह विज्ञापन बनाने वालों का एकमात्र उद्देश्य नहीं होता। सबसे पहले विज्ञापन व उपभोक्ताओं के बीच मे एक गहरा नाता बनाने का प्रयास किया जाता है। इसके फलस्वरूप विज्ञापित वस्तुओं व उपभोक्ताओं के बीच में भी नाता बन जाता है। सभी विज्ञापक विज्ञापन के जरिए उपभोक्ताओं के साथ अटूट नाता बनाने का प्रयास करते हैं। यह नाता ऐसा हो कि जो बने और बना रहे। इस प्रयास में विज्ञापन बनाने वाले संबंधित रचनात्मक व व्यवसायिक पहलूओं में तारतम्य बनाए रखने का प्रयत्न करते हैं।
इसी संदर्भ में पी. ए. पी. ए. फॉर्मूला भी विज्ञापन की कार्यप्रणाली को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि विज्ञापन सबसे पहले विज्ञापित के फायदों के बारे में कोई वायदा या प्रोमिस करता है। इसके बाद इस वायदे का खुलासा या एम्पलीफिकेशन किया जाता है। इसके उपरान्त इस वायदे से संबंधित प्रमाण या प्रफ दिया जाता है। इसके पश्चात् उपभोक्ता विज्ञापित वस्तु को अपनाने या एक्शन की दिशा में अग्रसर होता है।
1960 में रस्सल कोली ने विज्ञापन और विशेषकर विज्ञापन के प्रभाव की परिमेयता के संदर्भ में एक नई अवधारणा दी। यह अवधारणा उन्होंने अपनी पुस्तक 'डिफाईनिंग एडवर्टाईजिंग गोल्स फॉर मेजर्ड एडवर्टाइजिंग रिजल्ट्स' में दी। रस्सल कोली द्वारा दी गई अवधारणा का नाम इस पुस्तक के नाम से डी. ए. जी. एम. ए. आर. के रूप में लिया गया है। इस पुस्तक में रस्सल कोली ने विज्ञापन को कुछ इस तरीके से परिभाषित किया है
'विज्ञापन एक भुगतान किया गया जनसंचार है। इसके जरिए सूचना देने का, निश्चित दृष्टिकोण बनाने का तथा विज्ञापक के लिए लाभकारी क्रियान्वयन को प्रोत्साहित किया जाता है। यह क्रियान्वयन आमतौर पर विज्ञापित वस्तु की बिक्रि या ग्राह्यता बढाने हेतू किया जाता है।
अपनी पुस्तक में रस्सल कोली ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण निष्कर्ष दिए हैं। विज्ञापन द्वारा किए गए सभी व्यवसायिक संचार को विज्ञापित वस्तु या सेवा की ग्राह्यता बढाने से पहले उपभोक्ताओं की समझ के चार चरणों से गुजरना होता है। सर्वप्रथम व्यक्ति सूचित होने के साथ विज्ञापित वस्तु या सेवा के बारे में जागरुक होता है। इसके उपरान्त विज्ञापन वस्तु सेवा के सभी पहलूओं को अच्छे से समझता है। अगले चरण में वह उस संचार की विश्वसनीयता को भरोसा प्राप्त करने के बाद विज्ञापित वस्तु सेवा को अपनाने का निर्णय लेता है और इसके बाद वह क्रियान्वयन की दिशा में अग्रसर होता है। रस्सल कोली द्वारा दी गई यह अवधारणा विज्ञापन के उद्देश्यों और विज्ञापन के परिणामों में अन्तरसंबंध दर्शाती है।

विज्ञापन के प्रमुख उद्देश्य

  • विज्ञापित ब्रांड का नाम दर्ज कराना।
  • विज्ञापित ब्रांड के नाम को बार-बार याद दिलाना।
  • विज्ञापित ब्रांड के नाम को उपभोक्ताओं के जहन में बसाना।
  • विज्ञापित ब्रांड को उसके प्रतिद्वदियों से अलग दर्शाना।
  • विज्ञापित ब्रांड की तुलनात्मक श्रेष्ठता दिखाना।
  • विज्ञापित ब्रांड को पसंदीदा बनाना या ब्रांड प्रेफरेन्श बनाना।
  • विज्ञापित ब्रांड की छवि बनाना।
  • विज्ञापित ब्रांड की छवि बदलना।
  • विज्ञापित ब्रांड की छवि बरकरार रखना।
  • विज्ञापक संस्था की छवि बनाना।
  • विज्ञापक संस्था की छवि बदलना।
  • विज्ञापक संस्था की छवि बरकरार रखना।

विज्ञापन की परिभाषाएं

विज्ञापन मूल रूप से संचार है। यह प्रायः व्यवसायिक संचार होता है। अमूमन विज्ञापन हेतू जनमाध्यमों का इस्तेमाल किया जाता है। प्रोफेसर जेम्स ई. लिटिलफिल्ड व प्रोफेसर सी. ए. क्रिकपैटिक ने अपनी पुस्तक एडवटीजिंग "मास कम्युनिकेशन इन मार्किटिंग" में विज्ञापन को कुछ इस तरीके से परिभाषित किया है।
विज्ञापन भुगतान किया हुआ व्यवसायिक संचार है। व्यवसायिक संचार का प्रमुख कार्य विज्ञापित वस्तु के प्रति उपभोक्ताओं का दृष्टिकोण व क्रियान्वयन को बदलना है।
व्यवसायिक जनसंचार के रूप में विज्ञापन का प्रमुख कार्य विज्ञापित वस्तु की ग्राह्यता बढ़ाने से है। विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ताओं की ग्राह्यता बढाने हेतू सकारात्मक छवि निर्माण करने की आवश्क्ता हाती है। इसी संदर्भ में बात करते हुए वेन्स अकार्ड ने विज्ञापन को हिडन परसुएडर या छुपा हुआ अनुनयनकर्ता माना है। 1920 के दशक में अल्बर्ट लस्कर ने कहा था कि विज्ञापन मुद्रित माध्यमों के जरिए बेचने की कला है। अल्बर्ट लस्कर ने जब यह बात कही थी उस समय मुद्रित माध्यमों के अलावा बाकि माध्यम प्रचलन में नहीं थे।
विज्ञापन के संदर्भ में सर्वाधिक प्रचलित व सर्वमान्य परिभाषा अमेरिकी प्रबन्धन संघ या अमेरिकन मार्केटिंग एसोशिएशन ने 1948 में दी थी। ए. एम. ए. के अनुसारः विज्ञापन किसी वस्तु, सेवा या विचार के संवर्धन हेतू किसी परिचित प्रायोजक द्वारा भुगतान के साथ किया गया गैर व्यक्तिगत प्रस्तुतिकरण है। सर्वमान्य होने के बावजूद भी इस परिभाषा में कुछ कमियाँ हैं। 1988 में डोरोथी कोहेन ने अपनी पुस्तक विज्ञापन में इस परिभाषा की कमियाँ बताई हैं। उनके अनुसार ए. एम. ए. के द्वारा दी गई परिभाषा में विज्ञापन की अनुनयनकारी प्रवृति के बारे में कुछ नहीं बताया गया। साथ ही विज्ञापन का रचनात्मक पहलूओं के बारे में यह परिभाषा मौन है। डोरोथी कोहेन के अनुसार इस परिभाषा में विज्ञापन हेतू प्रयोग में लाए जाने वाले बेशुमार माध्यमों के विषय में भी यह मौन है। उन्होंने इन पहलूओं को शामिल करते हुए एक नई परिभाषा दी है।

रचनात्मक पहलूओं का इस्तेमाल करते हुए जनमाध्यमों के जरिए वस्तु, सेवा व विचारों के संवर्धन हेतू विज्ञापक के उद्देश्यों के अनुरूप किया गया अनुनयनकारी संचार है। इसमें उपभोक्ताओं की संतुष्टि का भरपूर ध्यान रखा जाता है।
ब्रितानी उद्योग की प्रमुख संस्था पेशेवर विज्ञापन संस्थान या इन्स्टीट्युट ऑफ प्रेक्टिशनर्स इन एडवर्टाईजिंग ने 1998 में विज्ञापन की निम्नलिखित परिभाषा दी थी।
विज्ञापन व्यवसाय व कला का एक अपूर्व संगम है। इस प्रक्रिया में नियोजक, लेखक, कलाकार, निर्माणविशेषज्ञ, प्रबन्धन, समन्वयक आदि सामूहिक रूप से विज्ञापक की आवश्यकता अनुसार संचार रूपी समाधान को निर्माण करते हैं।
प्रसिद्ध भारतीय प्रबन्धन गुरू सुब्रतो सेनगुप्ता ने अपनी पुस्तक ब्रांड पोजिशनिंगः स्टैटेजिज फॉर कम्पीटीटिव एडवेंटेज में विज्ञापन को निम्नलिखित तरीके से परिभाषित किया-
किसी निश्चित ब्रांड के बारे में अनुनयनकारी अन्तर व श्रेष्ठता का अनुसंधान कर भावी उपभोक्ताओं के साथ संचार करना।

भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली के प्रोफेसर जयश्री जेठवानी के अनुसार-
अनुनयनकारी संचार व उपभोक्ताओं के जहन में सही स्थान निरूपण के माध्यम से विज्ञापित ब्रांड की ग्राहयता बढाने की प्रक्रिया को विज्ञापन कहते हैं। यह कला और विज्ञान का एक सांझा स्वरूप है।

विज्ञापन के बारे में उपलब्ध इन परिभाषाओं की बहुतायता इस बात को सिद्ध करती है कि विज्ञापन एक बहुआयामी विधा है। साथ ही यह इस बात की ओर भी इंगित करता है कि यह बहुउद्देशिय विधा है। परिभाषाओं व परिभाषकों की बहुलता से यह बात भी सामने आती है कि एक विधा के रूप में विज्ञापन का विकास हेतू अन्य कई विधा व विषयों से काफी कुछ अनुग्रहण किया गया है। विज्ञापन को पुष्ट बनाने की दिशा में हेतू मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानवतत्वविज्ञान, अर्थशास्त्र, कला व साहित्य आदि विधाओं से विषय वस्तु को अनुग्रहीत किया गया है। बहुआयामी व बहुउद्देशीय होने के साथ-साथ अनेक विधाओं से प्रेरित होने के कारण विज्ञापन की अनेक परिभाषाएं मिलती हैं।

सारांश

प्राय: विज्ञापन अनुनयन या मनाने, बुझाने या रिझाने का काम करते हैं। यह अलग बात है कि आलोचकों के अनुसार विज्ञापन विज्ञापित वस्तुओं की वकालती करते हुए हमें प्रभावित करते हैं। विज्ञापन हमें सुचित करता है, विज्ञापित वस्तुओं के विषय में जागरूकता फैलाता है तथा हमें सूचित-क्रय-निर्णय लेने में सहायता करता है। यह विपणन संचार का एक शाक्तिशाली साधन है।
विज्ञापन बहुत से प्रकार के माध्यमों व साधनों का इस्तेमाल करता है। इसके लिए समाचार पत्रों से लेकर इन्टरनेट तक सभी जनमाध्यमों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा दिवारी लेखन, बैनर, पोस्टर, साइन बोर्ड, बैलून व आकाशी लेखन आदि अनेकों बाहरी विज्ञापन माध्यमों का भी प्रयोग किया जाता है। इसके लिए कई प्रकार के वाहनों को परिवहन विज्ञापन माध्यम के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इसके अलावा विज्ञापन हेतू अनेक मुद्रित प्रचार-प्रसार समग्री- पम्फलेट, लिफलेट, ब्रुशर, कैटलॉग- इस्तेमाल में लाए जाते हैं।

सूचक शब्द

विज्ञापन
विज्ञापन एक बहु आयामी विधा है। विज्ञापन हमें मात्र सूचना ही देते हैं। प्रायः विज्ञापन अनुनयन या मनाने, बुझाने या रिझाने का काम करते हैं। यह अलग बात है कि आलोचकों के अनुसार विज्ञापन विज्ञापित वस्तुओं की वकालती करते हुए हमें प्रभावित करते हैं। विज्ञापन हमें सुचित करता है, विज्ञापित वस्तुओं के विषय में जागरूकता फैलाता है तथा हमें सूचित-क्रय-निर्णय लेने में सहायता करता है। यह विपणन संचार का एक शाक्तिशाली साधन है। विज्ञापन द्वारा विज्ञापित वस्तुओं, चाहे वो वस्तु, सेवा, विचारधारा, संस्था या व्यक्ति विशेष- के बारे में हमें सूचित करते हैं। विज्ञापित वस्तुओं के बारे में सूचना देने के साथ-साथ विज्ञापन निश्चित, आकर्षक व अनुनयनकारी छवि बनाता है। विज्ञापन द्वारा विज्ञापित वस्तु की उपस्थिति दर्ज की जाती है, उस वस्तु के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है।

विज्ञापन संचार
विज्ञापन वास्तव में एक व्यवसायिक व सामाजिक संदेशों की सुनियोजित व सुव्यवस्थित संचार प्रक्रिया है। इसी कारण विज्ञापन के परिणामों को संचार के मापदण्डों से मापने की आवश्यक्ता है। सभी विज्ञापन अभियानों के निश्चित उद्देश्य होते हैं और इन अभियानों के परिणामों को उन्हीं उद्देश्यों के अनुसार मापा जाता है।

रेनफोर्शमेंट
विज्ञापन हमारे पास बार-बार पहुंचते हुए संदेश व विज्ञापित वस्तु के बारे में हमें याद दिलाता रहता है। इसी तरीके से विज्ञापन विज्ञापित वस्तु हेतू उपभोक्ताओं के मन में सुदृढ छवि व स्थान बनाता है। अंग्रेजी में इसे रिचिंग, रिमाईडिंग व रेनफोर्शमेंट कहा जाता है।

टॉप ऑफ द माईड रिकॉल
विज्ञापन के जरिए विज्ञापित वस्तु को उपभोक्ताओं के मन में सर्वप्रथम दर्जा दिलाने का प्रयास किया जाता है। क्योंकि आज की गलाकाट स्पर्धा के माहौल में हर विज्ञापक चाहता है कि उसकी वस्तु या सेवा उपभोक्ता के जहन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करे। तभी खरीददारी करते समय उपभोक्ता उसी वस्तु का नाम सबसे पहले लेगा और उसी को खरीदने पर जोर देगा। इसी को टॉप ऑफ द माईड रिकॉल कहा जाता है।

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