विज्ञापन संस्था | vigyapan sanstha

विज्ञापन संस्था

विज्ञापन आज एक सर्वव्यापी विपणन साधन बन चुका है। दुनिया का कोई कोना नहीं है जहाँ विज्ञापन न पहुँचता हो। घर के बाहर प्रायः सभी जगह विज्ञापन पाए जाते हैं। साथ ही यह हमारे घरों में भी हम तक पहुँचता है। विज्ञापन प्रायतः मनोरंजक होते हैं। कुछ ऐसे विज्ञापन होते हैं जो हमें अच्छे नहीं लगते। विज्ञापनों की खूब आलोचना भी होती है। किन्तु सच्चाई यह है कि विज्ञापन विपणन संचार का प्रमुख साधन है। बाजार में उपलब्ध विभिन्न वस्तु-सेवा आदि के बारे में सूचना देते हुए विज्ञापन उपभोक्ताओं को सूचित क्रय निर्णय लेने में सहायता करते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि विज्ञापन कैसे बनाए जाते हैं? शायद इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि विज्ञापन कौन बनाते हैं? विज्ञापन बनाने का काम विज्ञापन संस्थाएं करती हैं।
vigyapan-sanstha
इस लेख में हम विज्ञापन संस्था के बारे में चर्चा करेंगे। साथ ही विज्ञापन में रचनात्मकता के विविध पहलुओं का अध्ययन करेंगे। विज्ञापन माध्यमों का चयन के बारे में भी चर्चा की जाएगी। विज्ञापन माध्यम के रूप में प्रमुख रूप से समाचार पत्र, पत्रिका, रेडियो व टेलिविजन की चर्चा की जाएगी।
लेख की संरचना इस प्रकार रहेगी-
  • उद्देश्य
  • परिचय
  • विषय वस्तु की प्रस्तुति
  • विज्ञापन संस्था- एक परिचय
  • विज्ञापन में रचनात्मकता
  • विज्ञापन माध्यम चयन
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में समाचार पत्र
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में पत्रिकाएं
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में रेडियो
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में टेलिविजन
  • सारांश
  • सूचक शब्द
  • स्व मूल्यांकन हेतु प्रश्न
  • संदर्भित पुस्तकें

उद्देश्य

आम आदमी के मन में विज्ञापन के सन्दर्भ में बहुत ही आकर्षक, मोहक व ग्लैमरपूर्ण छवियाँ होती हैं। अधिकतर लोगों का यह मानना है कि विज्ञापन का मतलब अच्छे दिखने वाले मॉडल, थोडा व्यंग्य, थोडा नाटक, अच्छा संगीत और खूब सारा पैसा। किन्तु विज्ञापन एक बहुत ही गम्भीर विधा है। इस विधा में कई खिलाडी होते हैं। पहला खिलाडी है विज्ञापक जो निश्चित वस्तु-सेवा आदि का विपणन करना चाहता है। विज्ञापन के क्षेत्र में द्वितीय खिलाड़ी हैं-उपभोक्ता। वस्तु-सेवा आदि के लिए बने विज्ञापनों को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए इस्तेमाल किए गए साधन इस विधा के तृतीय खिलाडी हैं।
विज्ञापन के क्षेत्र में चौथा खिलाडी है-विज्ञापन संस्था। दुनिया भर में बनने वाले लगभग 98 प्रतिशत विज्ञापन बनाने का काम विज्ञापन संस्थाएं ही करती हैं। यह संस्थाएं विज्ञापन के निर्माण के साथ-साथ सम्बन्धित नियोजन व विज्ञापन माध्यम चयन कर विज्ञापनों को उन माध्यमों में प्रकाशित या प्रसारित करने का कार्य भी करती हैं। इस अध्ययाय में हम विज्ञापन संस्थाओं से सम्बन्धित विभिन्न पहलूओं की चर्चा करेंगे। विज्ञापन माध्यमों का चयन के बारे में भी चर्चा की जाएगी।
विज्ञापन माध्यम के रूप में प्रमुख रूप से समाचार पत्र, पत्रिका, रेडियो व टेलिविजन की चर्चा की जाएगी।

लेख के उद्देश्य इस प्रकार हैं:
  • विज्ञापन संस्था से परिचित होना
  • विज्ञापन में रचनात्मकता के बारे में जानना
  • विज्ञापन माध्यम चयन प्रक्रिया से परिचित होना
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में समाचार पत्र को समझना
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में पत्रिकाएं के बारे में जानना
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में रेडियो को समझना
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में टेलिविजन को समझना

परिचय

विज्ञापित वस्तुओं व सेवाओं के लिए ग्राह्यता व निष्ठता बनाना व बरकरार रखना विज्ञापन का प्रमुख लक्ष्य है। यह कार्य केवल विज्ञापित वस्तु-सेवाओं के बारे में सूचना मात्र देने से सम्भव नहीं होता। उपरोक्त लक्ष्यों की पूर्ति हेतू प्रायः विज्ञापनों में वस्तु-सेवा सम्बन्धित सूचनाओं को सकारात्मक अवधारणाओं या मूल्यों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विज्ञापन संचार प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए आमतौर पर वस्तु-सेवा सम्बन्धित सूचनाओं को कहानी के जरिए प्रस्तुत किया जाता है।
विज्ञापन के जरिए वस्तु व सेवाओं हेतू एक सकारात्मक छवि बनाई जाती है। यह कार्य सकारात्मक मूल्यों के जरिए किया जाता है। उदाहरण स्वरूप “फिल्मी सितारों का सौन्दर्य साबुन” नारे के जरिए 'लक्स' साबुन के साथ सकारात्मक मूल्य जोडा गया है।
विज्ञापनों में उपभोक्ताओं के द्वारा समझे जाने वाली व पसंद की जाने वाली भाषा व शैली आदि का प्रयोग किया जाता है। प्रायः विज्ञापन विज्ञापित वस्तु को उसके प्रतिद्वंद्वियों से अलग व कारगर साबित करने का प्रयास किया जाता है।

विषय-वस्तु प्रस्तुतिकरण

इस अध्ययाय में हम विज्ञापन संस्थाओं से सम्बन्धित विभिन्न पहलूओं की चर्चा करेंगे। विज्ञापन माध्यमों का चयन के बारे में भी चर्चा की जाएगी। विज्ञापन माध्यम के रूप में प्रमुख रूप से समाचार पत्र, पत्रिका, रेडियो व टेलिविजन की चर्चा की जाएगी। अध्याय में विषय वस्तु की प्रस्तुति इस प्रकार रहेगी-
  • विज्ञापन संस्था- एक परिचय
  • विज्ञापन में रचनात्मकता
  • विज्ञापन माध्यम चयन
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में समाचार पत्र
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में पत्रिकाएं
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में रेडियो
  • विज्ञापन माध्यम के रूप में टेलिविजन

विज्ञापन संस्था- एक परिचय

प्रायः विज्ञापनों का प्रमुख कार्य लक्षित उपभोक्ता वर्ग को विज्ञापित वस्तु-सेवा सन्दर्भ में सूचित करना तथा उनके मन में एक सकारात्मक व ठोस छवि बनाना होता है। इसके लिए विज्ञापन संस्थाएं विज्ञापन सम्बन्धित नियोजन, निर्माण, विज्ञापन माध्यम चयन व चयनित माध्यमों में विज्ञापनों का प्रकाशन, प्रसारण आदि का कार्य करते हैं।
लेकिन यह सभी कार्य वस्तु निर्माता या सेवा संस्था भी कर सकती हैं। संस्था का प्रबन्धन विभाग विज्ञापन सम्बन्धित नियोजन का कार्य कर सकता है। रचनात्मक कार्य व विज्ञापन निर्माण करने हेतू बाहरी विशेषज्ञ या संस्थाओं की सहायता ली जा सकती है। विज्ञापक खुद ही विभिन्न माध्यमों में स्थान व समय खरीद कर विज्ञापनों को प्रकाशित या प्रसारित करा सकते हैं। इसके बावजूद अधिकतर विज्ञापक विज्ञापन बनाने हेतू विज्ञापन संस्थाओं की मदद लेती हैं।
विज्ञापन संस्थाएं रचनात्मक, प्रबन्धन व अन्य सम्बन्धित क्षेत्रों के विशेषज्ञों की स्वतन्त्र संस्था होती है। विज्ञापन व अन्य प्रचार-प्रसार सामग्रियों का निर्माण इन संस्थाओं का प्रमुख कार्य है। विज्ञापन संस्थाएं विज्ञापक व उपभोक्ताओं के बीच में एक कडी के रूप में कार्य करती हैं।

विज्ञापन संस्थाओं की उपयोगिता

विज्ञापन एक बहुत ही गम्भीर व जटिल विधा है। इसलिए विज्ञापन बनाने हेतू स्वतन्त्र व सक्षम संस्थाओं की मदद ली जाती है। विज्ञापन संस्थाओं की प्रमुख उपयोगिता है:-
विशेषज्ञता व अनुभवः किसी भी विज्ञापन संस्था में विज्ञापन क्षेत्र से सम्बन्धित सभी प्रकार की विशेषज्ञता वाले व्यक्ति होते हैं। प्रति लेखक या कॉपी राइटर, विजुअलाइजर, शोधकर्ता, फोटोग्राफर, निर्देशक, संगीत निर्देशक, प्रबन्धक, नियोजक आदि सभी प्रकार के विशेषज्ञ विज्ञापन संस्थाओं में होते हैं। इन कार्यकर्ताओं के पास अपने क्षेत्र से सम्बन्धित विशेषज्ञता के साथ-साथ लम्ब अनुभव भी होता है। विज्ञापन संस्थाओं को तथा उनमें कार्यरत विशेषज्ञों को भिन्न-भिन्न वस्तु, सेवा क्षेत्र तथा भिन्न-भिन्न क्लाइन्टों के साथ काम करने का अनुभव भी होता है।
एक विज्ञापन संस्था इन विभिन्न विशेषज्ञों के दल को रचनात्मक व प्रबन्धन कार्य करने के लिए एक बढिया माहौल उपलब्ध करवाती है। जाहिर है व्यवसायिक माहौल में व्यवसायिक विशेषज्ञों द्वारा व्यवसायिक कार्य ही सम्पन्न होते हैं। अर्थात् विज्ञापन संस्थाओं में प्रभावी काम समय रहते सम्पन्न किया जाता है।

वस्तुनिष्ठता व व्यवसायिक मानसिकता
विज्ञापन संस्थाएं मध्यस्थ के रूप में काम करती हैं। विज्ञापन संस्थाएं बाकी सभी प्रकार की संस्थाओं के लिए विज्ञापन बनाती हैं। किन्तु प्रायः विज्ञापन संस्थाएं अपना खुद का विज्ञापन नहीं बनाती। विज्ञापन संस्थाओं को उनके काम और सफलता के आधार पर बनी प्रतिष्ठा के कारण ही आगे काम मिलता है। जाहिर है कि विज्ञापन संस्थाएं वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता तथा व्यवसायिक मानसिकता के साथ काम करती हैं। और वस्तुनिष्ठता व व्यवसायिक मानसिकता के कारण ही उनकी प्रतिष्ठा बनती है। बिचौलिया संस्था होने के कारण विज्ञापन संस्थाएं अपने ग्राहकों को स्वतन्त्र तथा तटस्थ मत व सुझाव देती हैं।

कम खर्चीला
अगर कोई विज्ञापक विज्ञापन बनाने हेतू सम्बन्धित विशेषज्ञों को नियुक्त करता है तो वह उन विशेषज्ञों को पूरा साल काम नहीं दे सकता। विज्ञापन के क्षेत्र में कार्यरत अधिकतर विशेषज्ञ फ्री लांसर के रूप में काम करते हैं। निर्देशक, संगीत निर्देशक, फोटोग्राफर, विडियोग्राफर, मॉडल्स आदि प्रायतः स्वतन्त्र रूप से काम करते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ प्रतिलेखक, विजुअलाइजर आदि भी फ्री लांसर के रूप में करते हैं। इन सभी स्वतन्त्र तथा बाहरी विशेषज्ञ काफी ज्यादा मुआवजा माँगते हैं। किन्तु अधिकतर विज्ञापन संस्थाओं का ऐसे बाहरी विशेषज्ञों के साथ पूर्व करार होते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर ये विशेषज्ञ विज्ञापन संस्थाओं के लिए कार्य करते हैं।
किसी भी संस्था के लिए विज्ञापन सम्बन्धित आवश्यक सभी प्रकार के विशषज्ञों को नियुक्त कर उनको एक सुव्यवस्थित माहौल उपलब्ध करवाना तथा उनसे सुचारू रूप से काम ले पाना सहज कार्य नहीं है।
दुनिया के लगभग 98 प्रतिशत विज्ञापक विज्ञापन बनाने के काम इन संस्थाओं को देते हैं। यह साबित करता है कि विज्ञापन संस्थाएं कम खर्चीले होती हैं। कम खर्चीले होने के अतिरिक्त विज्ञापन संस्थाएं विविध विशेषज्ञता, अनुभव, वस्तुनिष्ठता के साथ सफल, संगत व सशक्त विज्ञापन बना कर विज्ञापक का काम आसान कर देती हैं।

विज्ञापन संस्थाओं के प्रकार

अधिकतर विज्ञापन संस्थाएं विज्ञापन विधा सम्बन्धित सभी प्रमुख सेवाएं उपलब्ध करवाती हैं। कुछ विज्ञापन संस्थाएं विधा सम्बन्धित निश्चित सेवाएं ही उपलब्ध करवाती हैं। ऐसे भी कुछ विज्ञापन संस्थाएं हैं जो किसी ग्राहक संस्था की उपसंस्था होती है तथा केवल उसी संस्था के लिए विज्ञापन बनाती है। अतः बाजार में तीन प्रकार की विज्ञापन संस्थाएं पाई जाती हैं। यह हैं-
  • पूर्ण सेवा विज्ञापन संस्था
  • निश्चित सेवा विज्ञापन संस्था
  • इन-हाउस विज्ञापन संस्था

पूर्ण-सेवा विज्ञापन संस्था
इस प्रकार की संस्थाएं विज्ञापन सम्बन्धित सभी प्रमुख सेवाएं उपलब्ध करवाती है। यह सेवाएं हैं: विज्ञापन सम्बन्धित नियोजन या एकाउंट प्लानिंग, विज्ञापन सम्बन्धित शोध, विज्ञापन सम्बन्धित रचनात्मक कार्य तथा विज्ञापन माध्यम चयन व प्रकाशन-प्रसारण। इन चार सेवाओं के अतिरिक्त पूर्ण-सेवा विज्ञापन संस्थाएं विज्ञापन निर्माण सम्बन्धित सेवाएं भी उपलब्ध करवाती हैं।
सभी पूर्ण-सेवा विज्ञापन संस्थाएं उपरोक्त पाँच सेवाओं के सन्दर्भ में सारा काम खुद से नहीं करते। शोध तथा निर्माण आदि के सन्दर्भ में अधिकतर कार्य बाहरी संस्थाओं से करवाया जाता है। किन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि चाहे काम खुद से करना हो या करवाना हो, सारा जिम्मा विज्ञापन संस्था का होता है। इस सन्दर्भ में विज्ञापक निश्चिन्त हो जाता है।
विज्ञापन विधा की प्रमुख सेवाओं के अतिरिक्त विज्ञापन संस्थाएं कई अन्य अतिरिक्त सेवाएं भी उपलब्ध करवाती है। विज्ञापन संस्थाएं विज्ञापनों से अतिरिक्त कई प्रकार की प्रचार-प्रसार सामग्रियाँ बनाती हैं। बिक्रि फौज के लिए सामग्रियों का नियोजन व निर्माण, बिक्रि फौज हेतू प्रशिक्षण, प्रदर्शनी नियोजन व आयोजन, ब्राँडों का नामकरण, वस्तु आदि की पैकेजिंग डिजाईनिंग आदि अनेक अतिरिक्त सेवाएं भी पूर्ण-सेवा विज्ञापन संस्थाओं द्वारा उपलब्ध करवाई जाती हैं।

निश्चित सेवा विज्ञापन संस्था
इस प्रकार की विज्ञापन संस्थाएं क्षेत्र सम्बन्धित किसी निश्चित सेवा ही उपलब्ध करवाती हैं। प्रायतः इस प्रकार की संस्थाएं आकार में छोटी होती हैं तथा मुख्य रूप से प्रतिलेखन व डिजाईनिंग जैसी रचनात्मक सेवाएं उपलब्ध करवाती हैं। इसी कारण इन्हें 'क्रिएटिव बुटिक' कहा जाता है। इस प्रकार की संस्थाएं विज्ञापन माध्यम चयन, विज्ञापन माध्यम सम्बन्धित नियोजन, विभिन्न माध्यमों में समय व स्थान उपलब्ध कराने का कार्य भी करती हैं।
कुछ 'क्रिएटिव बुटिक' निश्चित सेवा के बदले निश्चित क्षेत्र में काम करती हैं। इस प्रकार की कुछ संस्थाएं क्षेत्रीय विज्ञापन या सीनीय विज्ञापन बनाने का काम करती हैं। कुछ संस्थाएं वित्तीय विज्ञापन, नियुक्ति विज्ञापन, स्वास्थ्य सम्बन्धित विज्ञापन, सामाजिक विज्ञापन आदि निश्चित क्षेत्रों में ही कार्य करती हैं। ऐसी संस्थाएं भी आकार में छोटी होती हैं।

इन-हाउस विज्ञापन संस्था
इस प्रकार की विज्ञापन संस्था आकार व सेवाओं के सन्दर्भ में पूर्ण-सेवा विज्ञापन संस्थाओं की भांति होती हैं। किन्तु यह संस्थाएं स्वतन्त्र नहीं होती तथा किसी विज्ञापक संस्था की उपसंस्था होती है। प्रायतः यह संस्थाएं अपने मालिक संस्था के लिए ही विज्ञापन बनाती हैं। कुछ ही मात्र इन-हाउस एजेन्सी बाहरी कार्य लेती हैं। भारत में 'मुद्रा' विज्ञापन संस्था रिलायन्स कम्पनी की इन-हाउस एजेन्सी है।

विज्ञापन संस्था का संरचनात्मक ढांचा

विज्ञापन संस्थाओं में आकार व सेवाओं के सन्दर्भ में काफी विविधता पाई जाती है। विश्वभर में अधिकतर विज्ञापन संस्थाएं आकार में छोटी होती हैं। ऐसी संस्थाएं में एक से लेकर आठ-दस व्यक्ति ही होते हैं। कुछ संस्थाएं आकार में बहुत बड़ी होती हैं तथा इनमें सैंकडों, हजारों विशेषज्ञ काम करते हैं। जैसे हम चर्चा कर चुके हैं कि कुछ संस्थाएं निश्चित इलाकों में काम करती हैं तो कुछ संस्थाएं विज्ञापन सम्बन्धित निश्चित सेवाएं उपलब्ध करवाती हैं। हम इस अध्याय में पूर्ण-सेवा विज्ञापन संस्थाओं के संरचनात्मक ढांचे के बारे में चर्चा करेंगे।

विज्ञापन संस्थाओं का कार्य

विज्ञापन संस्थाओं का कार्य उनके द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाली सेवाओं के अनुरूप होता है। किसी विज्ञापन संस्था के निम्नलिखित कार्य होते हैं: एकाउंट प्रबन्धन व एकाउंट नियोजन, विज्ञापन शोध, रचनात्मक कार्य, विज्ञापन निर्माण, मीडिया चयन व स्थान, समय आरक्षण।

एकाउंट प्रबन्धन व एकाउंट नियोजन
विज्ञापन की भाषा में एकाउंट शब्द का अर्थ किसी भी क्लाईंट सम्बन्धित विज्ञापन का कार्य है। अतएव एकाउंट प्रबन्धन का अर्थ किसी क्लाईट का विज्ञापन सम्बन्धित कार्य का प्रबन्धन होता है।
एकाउंट प्रबन्धन विभाग सर्वप्रथम विज्ञापन संस्था की कार्यक्षमता के सन्दर्भ में क्लाईंट का विश्वास जीत कर विज्ञापन का काम अपने हाथ लेता है। एकाउंट प्रबन्धन विभाग में कार्यरत सभी अधिकारी जैसे एकाउंट प्रबन्धक, एकाउंट अधिकारी या ग्राहक सेवा अधिकारी आदि आमतौर पर ग्राहक के पास विज्ञापन संस्था के प्रतिनिधि तथा विज्ञापन संस्था के साथ ग्राहक के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं। वे सभी ग्राहक व विज्ञापन संस्था के बीच एक कडी का काम करते हैं। वे ग्राहक की सभी जरूरतों को तथा विज्ञापित ब्रांड के सन्दर्भ में सभी उपलब्ध सूचनाएं संस्था में सम्बन्धित विभागों तक पहुँचाते हैं। संस्था में उपलब्ध विभिन्न विशेषज्ञों व संसाधनों में समन्वय स्थापित कर उनसे प्रभावी काम निकलवाते हैं। विज्ञापन नियोजन, निर्माण व माध्यम चयन के सभी स्तरों पर एकाउंट प्रबन्धन विभाग के अधिकारी ग्राहक के सामने कार्यों की प्रस्तुति कर उनसे अनुमोदन व स्वीकृति लेते हैं।
इस विभाग में कार्यरत सभी अधिकारियों को विज्ञापित वस्तु, सेवा तथा ग्राहक के व्यवसाय की अच्छी समझ बनाने की जरूरत होती है। साथ ही उनको विज्ञापन की सभी उपविधाओं की भी अच्छी समझ होनी चाहिए।
एकाउंट प्रबन्धन विभाग में सफल होने के लिए आवश्यकताएं हैं-
  1. हरफनमौला मानसिकता
  2. सशक्त संचार कौशल
  3. विज्ञापन प्रक्रिया की समझ
  4. विज्ञापन व विपणन सम्बन्धित एकाधिक विधाओं पर पकड
  5. समयानुवर्तिता
  6. टीम स्पिरीट
  7. व्यवस्था सम्बन्धित कौशल
  8. छबाव में काम करने की क्षमता
  9. एक समय में एकाधिक काम करने की क्षमता

विज्ञापन शोध
विज्ञापन हेतू नियोजन व निर्माण का मूलभूत आधार सूचना ही होता है। विज्ञापन बनाने हेतू संस्थाओं को अनेक प्रकार की सूचनाओं व तथ्यों की आवश्यकता होती है। इनमें प्रमुख हैं: विज्ञापित वस्तु, सेवा सन्दर्भ में सूचना, विज्ञापित ब्रांड के प्रतिनिधियों के सन्दर्भ में सूचना, विपणन क्षेत्र व विपणन प्रक्रिया सन्दर्भ में सूचना, प्रयोग में लाए जाने वाले विज्ञापन माध्यमों के सम्बन्धित सूचना। इन सूचनाओं के अलावा विज्ञापन निर्माण के दौरान, विज्ञापन प्रकाशित-प्रसारित होने के समय तथा विज्ञापन अभियान सम्पन्न होने के बाद उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया, ग्राह्यता आदि के सन्दर्भ में भी सूचनाएं एकत्रित की जाती हैं।
यह सभी प्रकार की सूचना विज्ञापन संस्थाएं शोध के जरिए एकत्रित करती हैं। कुछ ही विज्ञापन संस्थाएं अपने से शोध कार्य करती हैं। किन्तु प्रायः संस्थाएं आई.एम.आर.बी., ओ.आर.जी.-एम.ए.आर.जी. तथा निलसन जैसी स्वतन्त्र शोध संस्थाओं के जरिए आवश्यक शोध करवाती हैं।

रचनात्मक कार्य
विज्ञापन मूलरूप से एक अनुनयनकारी विधा है। सफल अनुनयन या परशुएशन कर पाने हेतू विज्ञापन निर्माण में रचनात्मकता की आवश्कता होती है। रचनात्मकता के जरिए शोध द्वारा एकत्रित संगत सूचनाओं को सकारात्मक अवधारणाओं में अर्थपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। इस दिशा में आइडिया निर्धारण, प्रति या स्क्रिप्ट लेखन, विजुअलाइजेशन, चित्र सामग्री निर्माण (स्थिर व चलमान) आदि कार्य रचनात्मक तरीके से किए जाते हैं।
विज्ञापन संस्थाओं में रचनात्मक कार्य करने हेतू प्रतिलेखक, स्क्रिप्टलेखक, विजुअलाइजर आदि होते हैं। इनके अतिरिक्त कार्यों हेतू स्वतन्त्र या फ्री लांसर संगीतकार, निर्देशक, फोटोग्राफर, विडियोग्राफर, संपादक आदि की सेवाएं ली जाती हैं।

विज्ञापन निर्माण
यह विज्ञापन क्षेत्र की अतिमहत्वपूर्ण विधा है। निर्माण के जरिए ही विज्ञापनों को अन्तिम स्वरूप दिया जाता है। किन्तु अधिकतर विज्ञापन संस्थाओं में सभी प्रकार की निर्माण सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती। विभिन्न प्रकार के विज्ञापनों के निर्माण हेतू कई प्रकार के उपकरण व अनेकों विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। अतएव निर्माण का कार्य स्वतन्त्र निर्माण संस्थाएं या निर्माण सम्बन्धित स्वतन्त्र विशेषज्ञों की मदद से किया जाता है।

मीडिया चयन व स्थान, समय आरक्षण
विज्ञापन के क्षेत्र में माध्यम सम्बन्धित सेवा या कार्य का अर्थ हैउपयुक्त माध्यमों का चयन, विज्ञापनों के प्रकाशन व प्रसारण की आवृति या फिकवेंसी का निर्धारण तथा चयनित माध्यमों में स्थान व समय का आरक्षण। यह सभी कार्य भी कुछ ही विज्ञापन संस्थाएं खुद करती हैं। अधिकतर संस्थाएं इस कार्य हेतू स्वतन्त्र माध्यम नियोजन संस्था या माध्यमों में स्थान-समय आरक्षण संस्थाओं की सहायता लेते हैं।

विज्ञापन संस्थाओं का मुआवजा

विज्ञापन संस्थाओं का मुआवजा के सन्दर्भ में भी काफी विविधता पाई जाती है। विज्ञापन संस्था कमीशन प्रणाली के तहत विज्ञापन संस्थाओं को प्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों से कोई मुआवजा नहीं मिलता। विज्ञापन संस्थाएं नियोजन और निर्माण के बाद विज्ञापनों को विभिन्न माध्यमों में प्रकाशित-प्रसारित करा देती हैं। यह माध्यम विज्ञापन संस्थाओं को प्रयुक्त स्थान या समय हेतू बिल देते हैं। यह बिल विज्ञापन संस्थाएं ग्राहक के पास भेज देती हैं। ग्राहक द्वारा भुगतान किए जाने के बाद विज्ञापन संस्था पूर्वनिर्धारित चुक्ति के अनुसार लगभग 15 प्रतिशत राशि अपने पास बतौर मुआवजा रखती है तथा शेष राशि माध्यम संस्थाओं को हस्तांतरित कर देती हैं।
इस कमीशन प्रणाली के अतिरिक्त कुछ विज्ञापन संस्थाएं 'कोस्ट प्लस' प्रणाली का भी अनुपालन करती हैं। इस प्रणाली के तहत विज्ञापन संस्थाएं नियोजन व निर्माण की प्रक्रिया में आये कुल खर्चे के साथ एक निश्चित कुल निर्धारित प्रतिशत जोड कर ग्राहक संस्था से पैसे लेती हैं। तीसरी बहुप्रचलित प्रणाली में विज्ञापन संस्थाएं अपने द्वारा किए जाने वाले सभी कामों के लिए एक पूर्व निर्धारित राशि या 'फी' की माँग रखती हैं।

विज्ञापन में रचनात्मकता
आन्तरिक व अन्तरंग भावों की स्वतःस्फुर्त अभिव्यक्ति है रचनात्मकता। लेखन, चित्रकला, वास्तुशिल्प आदि क्षेत्रों में रचनात्मकता का अर्थ प्रायतः आत्म-अभिव्यक्ति माना जाता है। किन्तु विज्ञापन के क्षेत्र में रचनात्मकता आत्म-अभिव्यक्ति नहीं है। यह एक सुनियोजित, सुव्यवस्थित व सुविन्तित संवार होता है। विज्ञापन के क्षेत्र में रचनात्मकता का प्रयोग अनुनयन या प्रोत्साहन के निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतू किया जाता है। यहाँ रचनात्मकता का अन्य प्रमुख लक्ष्य ग्राह्यता बढाते हए विज्ञापित ब्रांडों की बिक्रि बढाना होता है।
विज्ञापन के क्षेत्र में रचनात्मकता की बात की जाए तो प्रायतः चतुर शब्द संयोजन, आकर्षक चित्र सामग्री चयन, अच्छा संगीत आदि दिमाग में आते हैं। किन्तु विज्ञापन में रचनात्मकता का अर्थ प्रमुख रूप से सहजता, सरलता व प्रभावशीलता से है। अर्थात् विज्ञापन में सहज व सरल तथा प्रभावी संदेशों के निर्माण व संचार हेतू रचनात्मकता का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा विज्ञापन में रचनात्मकता का एक और पहलू है उपयुक्तता या संगतता।
विज्ञापन वितरक संस्था तथा उपभोक्ताओं के बीच में एक अन्तरंग कडी के रूप मे कार्य करता है। प्रभावी होने के लिए विज्ञापनों को उपयुक्त या संगत होने की आवश्यकता होती है। अतएव विज्ञापन में रचनात्मकता का प्रयोग विज्ञापित वस्तु या उपभोक्ताओं के बीच में एक 'अनोखा व संगत सम्बन्ध' बनाने हेतू किया जाता है। विज्ञापित वस्तुओं को एक किस्म से उपभोक्ताओं की निश्चित समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरणस्वरूप 'धो डालेंगे' या 'धो डाला' नारों के जरिए एक निश्चित शैम्पू ब्रांड को उपभोक्ताओं की रूसी सम्बन्धित समस्या के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
विज्ञापन के क्षेत्र में रचनात्मकता प्रतिलेखन से लेकर विज्ञापन निर्माण के सभी चरणों में पाई जाती है। इस अध्याय में हम प्रमुख रूप से प्रतिलेखन के बारे में ही चर्चा करेंगे।

प्रतिलेखन
विज्ञापन में, विशेषकर मुद्रित विज्ञापन व अन्य मुद्रित प्रचार-प्रसार सामग्रियों में प्रयुक्त शाब्दिक सामग्री को 'प्रति' कहा जाता है। रेडियो व टेलिविजन विज्ञापनों में प्रयुक्त शाब्दिक सामग्री को प्रायतः 'स्क्रिप्ट' कहा जाता है।
मुद्रित विज्ञापनों की प्रति के चार भाग होते हैं: शीर्षक, उपशीर्षक, मध्यभाग की प्रति तथा नारा या स्लोगन। विज्ञापन में प्रति के बारे में चर्चा करने से पहले विज्ञापन कैसे कार्य करता है इसके बारे में चर्चा करते हैं।
प्रायः विज्ञापनों में सन्देश की शुरूआत विज्ञापित ब्रांड से होने वाले ‘फायदे का वायदा' या 'प्रोमिश ऑफ बेनिफिट' से किया जाता है। इसके बाद इस वायदे का खुल्लासा या सम्बन्धित 'विस्तृत जानकारी' या 'एम्पलीफिकेशन' दी जाती है। इसके उपरान्त वायदे के सन्दर्भ में 'प्रमाण' या 'प्रूफ' दिया जाता है। अन्त में उपभोक्ता द्वारा प्रत्याशित 'क्रिया' या 'एक्शन' के सन्दर्भ में आह्वान किया जाता है। विज्ञापन क्षेत्र के विशेषज्ञ इसे प्रोमिश, एम्पलीफिकेशन, प्रूफ व एक्शन यानि पी.ए.पी.ए. फॉर्मूला का नाम देते हैं।
इस फॉर्मूले के तहत विज्ञापित ब्रांड सम्बन्धित ‘फायदे का वायदा' शीर्षक के जरिए दिया जाता है। विज्ञापन में यदि उपशीर्षक है तो उसका प्रमुख कार्य इस वायदे का खुल्लासा करना होता है। मध्यभाग की प्रति इस वायदे का अतिरिक्त खुल्लासा करने के साथ-साथ सम्बन्धित विस्तृत जानकारी प्रदान करती है। मध्यभाग की प्रति का अन्तिम हिस्सा उपभोक्ता हेतू क्रियाशीलता के सन्दर्भ मे आह्वान होता है। अन्त में नारे के जरिए विज्ञापन संदेश को एक रोचक, आकर्षक किन्तु संक्षिप्त स्वरूप में प्रस्तुत किया जाता है।
कुछ अन्य विशेषज्ञों के अनुसार विज्ञापन सर्वप्रथम 'ध्यानाकर्षण' या 'अटेन्शन-अट्रेक्शन' का काम करता है। इसके उपरान्त विज्ञापन उपभोक्ताओं में 'रूचि' या 'इन्ट्रेस्ट' पैदा करने का काम करता है। तदुपरान्त विज्ञापन उपभोक्ताओं में 'इच्छा' या 'डिजायर' पैदा कराता है। उसके बाद उपभोक्ताओं में 'विश्वास' या 'क्रेडिबिलिटि' जगाता है। अन्त में विज्ञापन प्रत्याशित 'क्रिया' या 'एक्शन' के सन्दर्भ में आह्वान करता है। इस फॉर्मूले को ए.आई.डी.सी.ए. फॉर्मूला कहा जाता है।
इस फॉर्मूले के तहत विज्ञापन में शामिल चित्र सामग्रियों के साथ मिलकर शीर्षक ध्यानाकर्षण का काम करता है। उपशीर्षक व मध्यभाग की प्रति रूचि पैदा कराना, इच्छा जागृत कराना तथा विश्वसनीयता बढाने का कार्य करते हैं। अन्त में विज्ञापन संदेश को एक रोचक, आकर्षक किन्तु संक्षिप्त स्वरूप में नारे के जरिए प्रस्तुत किया जाता है।

विज्ञापन में शीर्षक
शीर्षक अमूमन मुद्रित विज्ञापन का सबसे प्रमुख हिस्सा होता है। यह मुद्रित विज्ञापन का सबसे ज्यादा पढा जाने वाला हिस्सा भी है। सबसे ज्यादा पढा जाने वाला हिस्सा होने के कारण शीर्षक में विज्ञापित वस्तु सम्बन्धित अधिक से अधिक महत्वपूर्ण जानकारी रखे जाने की कोशिश की जाती है। मुद्रित विज्ञापन का सबसे प्रमुख हिस्सा होने के नाते शीर्षक विज्ञापन के प्रति भावी उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षण करने का कार्य भी करता है। इसी कारण शीर्षक को आकार, रंग, डिजाईन तथा प्रस्तुति के स्थान के सन्दर्भ में सबसे ज्यादा प्राथमिकता व प्राधान्य भी दिया जाता है।
शीर्षक प्रायतः विज्ञापित वस्तु का परिचय कराता है। यह कभी विज्ञापित वस्तु की खासियत बताता है तो कभी विज्ञापित वस्तु की खासियत के सन्दर्भ में कोई प्रश्न या कौतुहल जगाने वाले वाक्य के जरिए विज्ञापित वस्तु के प्रति ध्यानाकर्षण करने के साथ-साथ उसके प्रति उत्सुकता जगाता है।
मुद्रित विज्ञापनों में शीर्षक सर्वप्रथम अपने प्रति ध्यानाकर्षण कराता है साथ ही विज्ञापित वस्तु के प्रति भी ध्यान आकर्षित कराता है। उसके बाद शीर्षक उपभोक्ताओं की उत्सुकता बढाते हुए विज्ञापन सन्देश को आगे पढने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • मुद्रित विज्ञापनों में प्रयुक्त प्रमुख प्रकार के शीर्षक हैं
  • फायदों का वायदा करता शीर्षक
  • विज्ञापित वस्तु सन्दर्भ में सूचना देता समाचार शैली का शीर्षक
  • कौतुहल या उत्सुकता जगाता शीर्षक
  • निश्चित उपभोक्ता वर्ग के लिए शीर्षक
कुछ शीर्षकों के जरिए विज्ञापित वस्तु से होने वाले फायदों के बारे में प्रत्यक्ष तरीके से बात की जाती है। कुछ अन्य शीर्षकों में यह बताया जाता है कि विज्ञापित वस्तु में क्या नया है। इस प्रकार के शीर्षक प्रायः समाचार शीर्षक की शैली में होते हैं। कौतुहल या उत्सुकता जगाने हेतू कुद शीर्षक प्रश्न के रूप में होते हैं। ऐसे विज्ञापनों में शीर्षकों में उठाए गए प्रश्नों के उत्तर उपशीर्षक या मध्य भाग की प्रति में दिये जाते हैं। सभी विज्ञापन हर उपभोक्ता वर्ग के लिए नहीं होते। इसी कारण कभी-कभी कुछ विज्ञापन में शीर्षक में ही अपने निश्चित उपभोक्ता वर्ग को सम्बोधित किया जाता है। उदाहरणस्वरूप 'गृहणियों के लिए अच्छी खबर', 'सुन्दर वादियों में आशियाँ का सपना देखने वालों के लिए', आदि। 'क्या आप रूसी से परेशान हैं ?' शीर्षक प्रश्नवाची व सम्बोधनात्मक शैलियों का मिला-जुला स्वरूप है।

विज्ञापनों में उपशीर्षक
आज के समय बहुत कम विज्ञापनों में उपशीर्षक का प्रयोग किया जाता है। ज्यादातर चित्र प्रधान विज्ञापनों में उपशीर्षक नहीं पाए जाते। किन्तु सूचनाप्रद व प्रतिप्रधान विज्ञापनों में उपशीर्षक पाए जाते हैं। उपशीर्षकों का प्रयोग उसी स्थिति में किया जाता है जब विज्ञापन के प्रारम्भ में ही अधिक से अधिक सूचना देनी हो। आकार व शब्द संख्या के सन्दर्भ में शीर्षक में संक्षिप्तता बरतने की आवश्यकता होती है। ऐसे में शीर्षक में दी गई सूचना से अतिरिक्त सूचना उपशीर्षक में प्रस्तुत की जाती है। प्रश्नवाची या कौतुहलपूर्ण शैली का शीर्षक होने के साथ भी उपशीर्षक का प्रयोग किया जाता है। यहाँ उपशीर्षक शीर्षक में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देता है।

विज्ञापनों में मध्यभाग की प्रति
आज के छवि प्रधान समय में कई विज्ञापन चित्र सामग्री प्रधान होते हैं। ऐसे विज्ञापनों में चित्र सामग्री तथा शीर्षक, उपशीर्षक व नारे के जरिए की सूचना आदि देने का कार्य सम्पन्न किया जाता है। किन्तु अधिकतर विज्ञापनों में मध्यभाग की प्रति एक प्रमुख भूमिका अदा करती है। विज्ञापन में मध्यभाग की प्रति विज्ञापित वस्तु के सन्दर्भ में विस्तृत सूचना देने का काम करती है। मध्यभाग की प्रति की शैली व संरचनात्मक ढांचा शीर्षक के प्रकार के ऊपर निर्भर करता है। ‘फायदे का वादा' वाले शीर्षक के साथ मध्यभाग की प्रति प्रमाण के रूप में विस्तृत सूचना देती है। प्रश्नवाची शीर्षक के साथ मध्यभाग की प्रति सम्बन्धित उत्तर देने का काम करती है। कौतुहल शैली के शीर्षक के साथ मध्यभाग की प्रति खुल्लासा करने का काम करती है।
मध्यभाग की प्रति में खुल्लासा, विस्तृत सूचना, प्रमाण आदि के साथ तथ्य, तर्क तथा सम्बन्धित उदाहरण आदि भी प्रस्तुत किये जाते हैं। विज्ञापित वस्तु की गुणवत्ता, कार्यक्षमता, टिकाऊपन आदि के सन्दर्भ में पुष्टि प्रस्तुत करने का कार्य भी मध्यभाग की प्रति के जरिए किया जाता है।
विज्ञापनों में प्रायतः क्रियाशीलता की कमी होती है। उपभोक्ताओं को क्रियाशील मानसिकता में लाने हेतू मध्यभाग की प्रति का अन्तिम हिस्सा प्रायतः 'क्रियाशीलता हेतू आह्वान' के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 'हमारे नजदीकी डीलर से अधिक सूचना पाइये', 'अपने नजदीकी शोरूम में जाकर टेस्ट ड्राइव कीजिए', 'अधिक सूचना हेतू निम्नलिखित पते पर सम्पर्क करें', 'विस्तृत जानकारी के लिए हमारी वेबसाईट विजिट करें', 'सूचना पुस्तिका हेतू दिए गया कूपन भर कर भेजें' आदि क्रियाशीलता हेतू आह्वान या 'कॉल फॉर एक्शन' के कुछ उदाहरण हैं।

विज्ञापनों में नारे
नारा या स्लोगन का मूल अर्थ है- युद्धघोष। विपणन के युद्धक्षेत्र में विज्ञापन एक सशक्त अस्त्र की भांति इस्तेमाल किया जाता है तथा स्लोगन का प्रयोग 'घोष' के रूप में किया जाता है। युद्धक्षेत्र में घोष का प्रयोग सेना में जोश भरने के लिए किया जाता है। वैसे ही विज्ञापन के क्षेत्र में स्लोगन का प्रयोग उपभोक्ताओं मे जोश भरने के लिए किया जाता है।
संक्षिप्तता, सरलता व शाब्दिक व अन्य आकर्षक तत्वों व शैलियों से परिपूर्ण स्लोगन को पढना, समझना, याद रखना तथा बार-बार दोहराना आसान होता है। जाहिर सी बात है कि लयात्मकता व आकर्षक तत्त्वों के कारण स्लोगन विज्ञापनों का सबसे ज्यादा याद रखा जाने वाला व दोहराया जाने वाला हिस्सा होता है।
कभी स्लोगन में वस्तु की खासियत के बारे में बताया जाता है। कुछ स्लोगनों में वस्तु की प्रयोग विधि बताई जाती है। कुछ स्लोगन तुलनात्मक शैली में प्रतिद्वंद्वियों के सन्दर्भ में विज्ञापित वस्तु की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं। जहाँ कुछ स्लोगन विज्ञापित वस्तु की छवि बनाते हैं वहीं कुछ विज्ञापन निर्माता-विपणक संस्था की छवि बनाने का काम करते हैं। कभी-कभी स्लोगन नकलची या नकली वस्तुओं के सन्दर्भ में उपभोक्ताओं को आगाह करते हैं।
विज्ञापन के स्लोगनों में पद्यात्मकता या लयात्मकता के साथ-साथ भावात्कता भी एक अहम हिस्सा होती है। प्रायः विज्ञापनों में स्लोगन सम्पूर्ण विज्ञापन संदेश को सार के रूप में आकर्षक शैली में प्रस्तुत करते हैं। विज्ञापनों में स्लोगन उपभोक्ताओं को वस्तु या सेवा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

विज्ञापन प्रति लेखन हेतू आवश्यकताएं (सफल विज्ञापन प्रति की विशेषताएं)
सहज व सरल भाव, आकर्षक अंदाज, हल्का मजाकिया भाव, थोडी बातूनी शैली, ढेर सारा दोस्ताना अंदाज, थोडी संवेदना, दिशा दिखाने वाला, उत्साहित व प्रोत्साहित करने वाला, ढेर सारी निष्ठा और थोडा लीक से हटा
हुआ.........
सफल व प्रभावी होने के लिए विज्ञापन में यह सब अंदाज व भाव होने की आवश्यकता है। तभी विज्ञापन उपभोक्ताओं को मना, बुझा व रिझा सकता है। विज्ञापन कभी हंसाता है, कभी गुदगुदाता है, कभी विज्ञापन चौंकाता है तो कभी सोचने पर मजबूर करता है। हाँ, विज्ञापन कभी-कभी हमें डराता भी है। आवश्यकतानुसार विज्ञापन नवरसों में से चुराकर हममें अलग-अलग भाव जगाता है। जब विज्ञापन में ये सारे तत्त्व या पहलू होते हैं तब ही विज्ञापन सफल होता है।
विज्ञापनों में रसों, भावों के साथ-साथ रंगों, नाटकीयता, संगीत, हास्य, व्यंग्य आदि होते हैं। किन्तु यह सब विज्ञापन में निहित संदेश को आकर्षक, रोचक तथा आसानी से समझ में आने वाली शैली में किया जाता है।
अधिकतर विज्ञापनों में एक सहज वार्तालापी शैली का भी प्रयोग किया जाता है। सहज, सरल शब्दों से शब्द व अनौपचारिक शैली का मिश्रण उपभोक्ताओं के साथ पहले विज्ञापन को और प्रकारान्त में विज्ञापित वस्तु को अन्तरंग रूप से जोडने का कार्य करता है। साथ ही विज्ञापनों में उपभोक्ताओं की परेशानियों के सन्दर्भ में संवेदनशीलता का भी निदर्शन मिलता है। यह संवेदना विज्ञापित वस्तु को उपभोक्ताओं की परेशानी के हल के रूप में प्रस्तुत करता है। धीरे-धीरे विज्ञापन उपभोक्ताओं के साथ-साथ नाता बनाते हुए निष्ठता बनाने की दिशा में कार्य करता है। विज्ञापन में नयापन भी एक अहम आवश्यकता है। विज्ञापनों में नई सूचनाओं के साथ-साथ नए अनुभव व नए भावों को भी प्रस्तुत किया जाता है। साथ ही विज्ञापन लेखन में सत्यता व निष्पक्षता को भी प्राथमिकता दी जाती है।
इस सन्दर्भ में प्रख्यात ब्रितानी विज्ञापन विशेषज्ञ डेविड बर्न स्टेन ने एक वी.आई.पी.एस. नाम का फॉर्मूला दिया
  • विजिबिलिटि या दृश्यात्मकता
  • आईडिंटिफिकेशन या अंतरंग लगाव
  • प्रोमिस या वायदा
  • सिम्प्लीसिटि या सरलता

विजिबिलिटि या दृश्यात्मकता
कोई भी अच्छा विज्ञापन सबसे पहले अपने उपभोक्ताओं का ध्यानाकर्षण कराया है। भाग-दौड की इस दुनिया में विज्ञापनों की भीड में से उभरने के लिए किसी भी विज्ञापन में दृश्यात्मकता होने की आवश्यकता होती है। इसके लिए शाब्दिक सामग्री को सर्वप्रथम संगत तथा तदुपरान्त रोचक व आकर्षक होने की आवश्यकता है। साथ ही ले-आउट या पृष्ठ-सज्जा, डिजाईन, रंग-सज्जा व उपलब्ध स्थान के सही उपयोग से विज्ञापन की शाब्दिक सामग्री को दृश्यात्मकता दी जाती है।
शाब्दिक सामग्री की दृश्यात्मकता के महत्व के संदर्भ में विख्यात विज्ञापन गुरू अल्बर्ट लस्कर ने कहा था, 'यदि उपभोक्ता विज्ञापन की प्रति नहीं पढते हैं तो वो उसे न समझेंगे न याद रखेंगे। यदि उपभोक्ता विज्ञापन की प्रति को याद नहीं रखते तो उस पर अमल नहीं कर पाएंगे।' विज्ञापन प्रति लिखते समय इस सरल समीकरण को याद रखने की आवश्यकता है।

आईडिंटिफिकेशन या अंतरंग लगाव
विज्ञापन में शाब्दिक व अन्य सामग्री की दृश्यत्मकता उपभोक्ताओं के ध्यानाकर्षण हेतू इसके बाद विज्ञापन को उपभोक्ताओं के साथ एक अन्तरंग नाता बनाने की आवश्यकता होती है। इसी कारण विज्ञापित वस्तु के संदर्भ में संगत रसों, भावों व रंगों के प्रयोग से उपभोक्ताओं की उमंगों को जगाने का प्रयास किया जाता है। ऐसे ही धीरे-धीरे विज्ञापित वस्तु वर्ग के लिए उपभोक्ताओं जहन में निष्ठा का भाव पैदा किया जाता है।

प्रोमिस या वायदा
विज्ञापन के क्षेत्र में एक कहावत है कि लोग साबुन नहीं खरीदते हैं, वे सुन्दरता की उम्मीद खरीदते हैं। इस कहावत का अर्थ है कि उपभोक्ता वस्तु या सेवा ही खरीद नहीं रहा होता, वह उस वस्तु या सेवा से होने वाले फायदे की उम्मीद को खरीद रहा होता है। उदाहरणस्वरूप लिपस्टिक खरीदते समय उपभोक्ता सुन्दर व आकर्षक होठों की उम्मीद करता है। शैम्पू खरीदते समय वह काले, लम्बे, घने, बिना दो मुंह वाले, बिना रूसी वाले केशों की उम्मीद खरीद रहा होता है।
इसलिए जरूरी है कि विज्ञापनों में विज्ञापित वस्तु, सेवा से होने वाले फायदे के वायदे शामिल हों। वायदों का मतलब बडे-बडे दावों या अतिशयोक्ति से नहीं होता। विज्ञापनों में वायदे सबसे पहले संगत तथा साथ ही विश्वसनीय होना जरूरी है।

सिम्प्लीसिटि या सरलता
सरल बातें समझने में आसान होती हैं। सरल चीजें आमतौर पर संक्षिप्त होती हैं। साथ ही सरल चीजें प्रायतः रूचिकर भी होती हैं। इन्हीं कारणों से विज्ञापनों में सरल व प्रचलित शब्द, सरल संयोजन व संरचना, सरल किन्तु आकर्षक शैली तथा संक्षिप्त वाक्यों व परिच्छेदों का प्रयोग किया जाता है। शीर्षक, उपशीर्षक तथा स्लोगन के सन्दर्भ में सरलता अति आवश्यक तत्त्व माना जाता है।

विज्ञापन प्रति कैसे लिखें
विज्ञापन प्रतिलेखन अन्य रचनात्मक लेखन की भांति आत्म अभिव्यक्ति नहीं होता। विज्ञापन हेतू प्रतिलेखन का कार्य अनुनयन का साधारण लक्ष्य तथा सूचना सम्प्रेषण, ब्रांड का नाम दर्ज कराना, ब्रांड को प्रतिद्वंद्वियों से अलग दर्शाना, ब्रांड की श्रेष्ठता जताना, ब्रांड का छवि निर्माण, निर्माता, निर्देशक संस्था का छवि निर्माण आदि निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतू किया जाता है।
साथ ही विज्ञापन के लिए प्रति लिखते समय कई सारी पाबंदियां व कई सारे दिशा निर्देशों का अनुपालन भी आवश्यक होता है। निश्चित समय सीमा तक प्रतिलेखन कर पाना इस क्षेत्र की सबसे बडी पाबंदी है। विज्ञापन शैली, विज्ञापन माध्यम की संरचना व शैली सम्बन्धित आवश्यकताएं, सहजता, सरलता, संक्षिप्तता तथा बोधगम्यता भी विज्ञापन प्रतिलेखन हेतू प्रमुख दिशा-निर्देश हैं।
इन पाबंदियों तथा दिशा-निर्देशों का अनुपालन करते हुए प्रतिलेखक जब लिखने बैठता है तो सामने रखे कोरे कागज की भांति अक्सर उसका दिमाग भी कोरा हो जाता है। ब्लैंक पेपर एंजाइटि या कोरा कागज-कोरा दिमाग़ की स्थिति का शिकार प्रायः सभी प्रतिलेखक होते हैं।
इस परेशानी का सहज हल है कि लेखक लेखन प्रक्रिया के तीनों स्तर- लेखन पूर्व तैयारी, लेखन तथा पुनःलेखन- का अनुपालन करें। इस दिशा में सर्वप्रथम लेखक को विज्ञापित वस्तु से जुड़े सभी पहलूओं को अच्छे से आत्मसात् करने की आवश्यकता होती है। उसके बाद प्रयास कर दिमाग में जो भी आता है उसे कागज पर उतारना होता है। शैली, संरचना तथा अन्य सभी आवश्यकताओं को बाद में, यानि पुनःलेखन के दौरान सुधारा जा सकता है।
अब सवाल उठता है कि कागज पर उतारें तो क्या उतारें? एक सरल तरीका यह भी है कि लेखक खुद से ही विज्ञापित वस्तु के सन्दर्भ में कुछ सवाल पूछे तथा उनका उत्तर कागज पर उतार ले। उपभोक्ताओं के मन में संभावित शंकाओं का पता लगाकर उनके उत्तरों से प्रतिलेखन की शुरूआत की जा सकती है। एक संतुष्ट उपभोक्ता की प्रतिक्रियाओं को भी कभी-कभी प्रभावी प्रति का रूप दिया जा सकता है। वैसे ही एक भावी उपभोक्ता तथा एक संतुष्ट उपभोक्ता या एक दुकानदार व एक भावी उपभोक्ता के वार्तालाप को भी प्रति का स्वरूप दिया जाता है।
विज्ञापित वस्तु या सेवा से अगर कोई ठोस बात न निकलती हो तो उस वस्तु या सेवा के प्रतिद्वंद्वियों के बारे में भी सोचा जा सकता है। कभी तुलनात्मक शैली को अपनाते हुए विज्ञापित वस्तु या सेवा की श्रेष्ठता को प्रतिपादित किया जा सकता है तो कभी प्रतिद्वंद्वियों को थोडा-बहुत मजाक भी उडाया जा सकता है।
यह तरीका भी काम न करे तो विज्ञापित वस्तु या सेवा के सन्दर्भ में सम्बन्धित क्षेत्र के विशेषज्ञों के मतों को या सम्बन्धित शोध संस्थाओं के द्वारा जारी रिपोर्ताज आदि को प्रति के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
विज्ञापन की प्रति लिखते समय यह बात समझने की आवश्यकता है कि प्रतिलेखन कविता या कहानी जैसा स्वतःस्फुर्त लेखन नहीं होता। यहाँ कोई जरूरी नहीं है कि शब्द खुद-ब-खुद सरल धारा प्रवाह में कागज पर उतर आएं। विज्ञापन प्रति लेखन में सूचना, तथ्य, अवधारणाएं, मतों, उदाहरण, तर्क आदि को मोती के रूप में लेते हुए विज्ञापन सन्देश रूपी माला पिरोना होता है। यह कार्य करते समय ध्यान रखना जरूरी है कि अच्छा लेखन सोने को कुन्दन बनाने जैसा काम होता है। ज्यादा से ज्यादा तैयारी के बाद लिखी गई सामग्री को बार-बार पुनःलेखन के जरिए निखारा जाने की आवश्यकता है। विज्ञापन में प्रयोग में लाए जाने वाली शैली तथा व्याकरण, वर्तनी आदि संरचनात्मक आवश्कताओं के संदर्भ में सुधार लाने का कार्य पुनःलेखन के जरिए किया जा सकता है। इसीलिए जरूरी है कि विज्ञापन प्रतिलेखन का कार्य करते समय लेखक इन सभी पाबंदियों व दिशा-निर्देशों से भारमुक्त होकर स्वच्छंद रूप से लेखन का कार्य करे।

विज्ञापन माध्यम चयन
विज्ञापक के दृष्टिकोण से, विशेषकर विज्ञापन के क्षेत्र में होने वाले लागत के संदर्भ में, विज्ञापन माध्यम सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। विज्ञापित वस्तु के बारे में संदेशक को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए यह माध्यम अहम भूमिका निभाते हैं। इन माध्यमों की भौगोलिक पहुँच के साथ-साथ उनकी प्रतिष्ठा, विश्वसनीयता तथा लोकप्रियता विज्ञापन संदेश को ज्यादा प्रभावी बनाने में कारगर साबित होती हैं। साथ ही विज्ञापन के क्षेत्र में होने वाला अधिकतर खर्च विज्ञापन माध्यमों पर ही किया जाता है।
विज्ञापन माध्यम चयन प्रक्रिया या विज्ञापन माध्यम नियोजन प्रक्रिया में उपभोक्ताओं की भौगोलिक, जनसंख्या सम्बन्धित स्थिति तथा विज्ञापन माध्यमों सम्बन्धित रूचि के अनुरूप उपलब्ध माध्यमों के भौगोलिक पहुँच, प्रतिष्ठा व लोकप्रियता आदि के आधार पर माध्यमों का चयन किया जाता है।
इस संदर्भ में निम्नलिखित बिन्दुओं का ख्याल रखा जाता है-
  • लक्षित उपभोक्ता वर्ग
  • लक्षित उपभोक्ता वर्ग की भौगोलिक स्थिति
  • लक्षित उपभोक्ता वर्ग की माध्यम सम्बन्धित रूचियां
  • विज्ञापन अभियान की संचार सम्बन्धित लक्ष्य व आवश्यकताएं
  • रचनात्मक पहलू
  • माध्यम सम्बन्धित विकल्पों की प्रभावशीलता
  • प्रतिद्वंद्वियों के विज्ञापन की मात्रा व शैली
  • उपलब्ध बजट
  • विज्ञापन माध्यम नियोजन प्रक्रिया में कुछ मूलभूत निर्णय लिए जाते हैं: कौन-कौन से माध्यमों का प्रयोग किया जाना चाहिए, कौन-से माध्यम विकल्पों का इस्तेमाल करना चाहिए, विज्ञापन कहां करना चाहिए, विज्ञापन कब करना चाहिए, विज्ञापन की आवृति कैसी होनी चाहिए?

विज्ञापन माध्यम चयन में विपणन का विज्ञान तथा विज्ञापन की कला का अनोखा संगम देखने को मिलता है।

विज्ञापन माध्यम प्रकार, माध्यम वाहन तथा माध्यम विकल्पों का निर्धारण
लक्षित उपभोक्ता वर्ग के पास विज्ञापन संदेश पहुँचाने के लिए अनेक माध्यम या साधनों का प्रयोग किया जाता है। इनमें समाचार पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, टेलिविजन, सिनेमा व इन्टरनेट आदि सभी जनमाध्यम प्रमुख हैं। इन विज्ञापन माध्यम प्रकारों के अलावा अन्य प्रकार के विज्ञापन माध्यम हैं: बाहरी विज्ञापन माध्यम तथा परिवहन विज्ञापन माध्यम।
विज्ञापन माध्यम चयन के दौरान सबसे पहला निर्णय यह लिया जाता है कि कौन-से विज्ञापन माध्यमों का प्रयोग किया जाएगा। यह निर्णय विपणन प्रक्रिया की आवश्यकता के अनुरूप किया जाता है। अर्थात् वस्तु के प्रकार, वस्तु का ग्राह्यता स्तर व लोकप्रियता, विपणन क्षेत्र तथा लक्षित उपभोक्ता वर्गों से सम्बन्धित विभिन्न पहलूओं के सन्दर्भ में लिया जाता है।
सभी विज्ञापन माध्यम प्रकार के अन्तर्गत अनेक विज्ञापन वाहन उपलब्ध होते हैं।
जब समाचारपत्रों को भी विज्ञापन माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, हमारे सामने भाषा तथा प्रसार क्षेत्र के आधार पर हजारों विकल्प उपलब्ध होते हैं। वैसे ही पत्रिकाओं के सन्दर्भ में भी भाषा, विषय क्षेत्र तथा प्रसार क्षेत्र के सन्दर्भ में हजारों विकल्प उपलब्ध होते हैं। टेलिविजन के क्षेत्र में भारतवर्ष में तीन सौ से ऊपर टेलिविजन चैनल उपलब्ध हैं। हमारे देश में आकाशवाणी के तीन सौ से ज्यादा राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व स्थानीय केन्द्रों तथा सौ से अधिक एफ.एम. चैनलों के साथ-साथ लगभग साढे तीन सौ स्थानीय व क्षेत्रीय केन्द्रों के साथ डेढ दर्जन निजी एफ.एम. चैनल कार्यरत हैं। इन्टरनेट की अगर बात करें तो पोर्टल, वोटल तथा विभिन्न प्रकार की साइटों के साथ बेशुमार विकल्प उपलब्ध हैं।
लीफलेट, पोस्टर, बैनर, होर्डिंग, दिवारीय लेखन, साईन बोर्ड, नियॉनसाईन, ग्लोसाईन, आकाशीय लेखन आदि साधनों को बाहरी विज्ञापन माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है।
हर विज्ञापन माध्यम के साथ दर्जनों से लेकर हजारों लाखों वाहन या साधन उपलब्ध हैं। वैसे ही हर एक वाहन के साथ प्रकाशन व प्रसारण के सन्दर्भ में अनेक विकल्प उपलब्ध हैं। उदाहरणस्वरूप समाचारपत्र विज्ञापन माध्यम हैं तो दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून आदि समाचारपत्र उसके वाहन हैं। प्रत्येक समाचारपत्र रूपी वाहन के साथ सप्ताह के दिन, मुख्य संस्करण तथा परिशिष्ट, विभिन्न पृष्ठ, रंगीन या श्याम-श्वेत एवं आकार के सन्दर्भ में विभिन्न विकल्प उपलब्ध होते हैं। वैसे ही बाकी विज्ञापन माध्यमों के वाहनों के साथ भी प्रकाशन, प्रसारण के सन्दर्भ में अनेक विकल्प होते हैं।
विज्ञापन माध्यम चयन प्रक्रिया में विज्ञापन माध्यम व उनके वाहन निर्धारण करने के साथ-साथ उनके सन्दर्भ में प्रयोग में लाए जाने वाले विकल्पों के सन्दर्भ में भी निर्णय लिए जाते हैं। यह सभी निर्णय उन विज्ञापन वाहनों व विकल्पों की पहुंच व लोकप्रियता तथा लक्षित उपभोक्ता वर्गों के उपभोक्ताओं के भौगोलिक विस्तार व रूचियों में तालमेल बिठाते हुए किया जाता है। साथ ही इन वाहनों में विज्ञापन प्रकाशन, प्रसारण हेतू स्थान व समय के मूल्य का भी ख्याल रखा जाता है।

प्रकाशन व प्रसारण की तिथि एवं समय तालिका या मीडिया शैड्यूलिंग
विज्ञापन माध्यम, सम्बन्धित वाहन व विकल्पों से सम्बन्धित निर्णय लेते समय हम विज्ञापन सम्बन्धित एक प्रमुख प्रश्न का उत्तर ढूंढ रहे होते हैं- उपभोक्ताओं के पास कैसे और कहां पहुंचा जाए। इसके बाद यह सवाल उठता है कि उपभोक्ताओं के पास कब बल्कि कब-कब पहुंचा जाए ? साथ ही एक और प्रश्न का भी उत्तर ढूंढना होता है कि विज्ञापन कब तक चलाया जाए ? इन प्रश्नों के उत्तर के सन्दर्भ में विज्ञापन प्रकाशन, प्रसारण की तिथि व समय आदि निर्धारित किया जाते हैं। इसे मीडिया शैड्यूलिंग कहा जाता है।
मीडिया शैड्यूलिंग का एक प्रमुख पहलू है विज्ञापन के प्रकाशन या प्रसारण की आवृति से विज्ञापन संदेश हेतू दीर्घकालीन प्रभाव बनता है। अधिक आवृति के कारण उपभोक्ता के मन में निश्चित विज्ञापन को बार-बार देखते हैं तथा उसके सन्दर्भ में एक निश्चित व सुस्पष्ट छवि बनना आसान हो जाता है।
इस सन्दर्भ में एक और महत्तवपूर्ण निर्णय यह होता है कि विज्ञापन किस समय किया जाए ? निश्चित समय में चलने वाले वस्तु आदि के लिए उसी समयावधि में विज्ञापन करना आवश्यक होता है। जैसे गर्मियों के आने से पहले व गर्मियों के दौरान कूलर, फ्रीज, शीतल पेय आदि का विज्ञापन किया जाता है। वैसे ही ऊनी कपडों, वाटर हीटर, रूम हीटर आदि वस्तुओं का विज्ञापन सर्दी के दौरान किया जाता है। वैसे ही कुछ निश्चित वस्तु व सेवाओं का विज्ञापन दशहरा, दिवाली या नए साल के दौरान किया जाता है। ऐसी सीजनल वस्तुओं के अतिरिक्त ज्यादातर वस्तुएं पूरे साल चलने वाली होती हैं। इन वस्तुओं के विज्ञापन करते समय निरन्तरता का ख्याल रखा जाता है। कुछ विज्ञापक पूरे साल विज्ञापन करते हैं तो कुछ विज्ञापक एक बार में मात्राधिक विज्ञापन से छवि बनाते हुए फिर एक अन्तराल के बाद विज्ञापन करते हैं।

विज्ञापन माध्यम के रूप में समाचार पत्र
पिछले दो-एक दशकों में टेलिविजन प्रमुखतम विज्ञापन माध्यम के रूप में उभरा है। किन्तु आज भी समाचारपत्र एक प्रमुख विज्ञापन माध्यम है। तथा विश्व के कई देशों में समाचारपत्रों के विज्ञापनों में टेलिविजन विज्ञापन से अधिक खर्चा किया जाता है। विज्ञापन माध्यम के रूप में समाचारपत्रों की सबसे बड़ी खासियत है, विश्वसनीयता। टेलिविजन पर्दे पर दिखने वाले टिमटिमाती चित्र सामग्री की तुलना में समाचारपत्रों में मुद्रित सामग्री के स्थायित्व के कारण इस विश्वसनीयता में बढोतरी होती है।
समाचारपत्रों में भाषा, प्रसार क्षेत्र व संस्करणों की विविधता को लेकर अनेकों विकल्प उपलब्ध हैं। दैनिक व साप्ताहिक विकल्पों से लेकर पूरे आकार की ब्रॉडशीट व आधे आकार के टैब्लॉयड से लेकर अन्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व स्थानीय समाचारपत्र तक विज्ञापकों के पास अनेकों विकल्प उपलब्ध हैं। समाचारपत्रों में मुख्य संस्करण के साथ-साथ नियमित रूप से या भिन्न-भिन्न दिन स्वतन्त्र व विशेष पृष्ठ व परिशिष्ट आते हैं।
आज के दिन उपलब्ध उन्नत व अत्याधुनिक मुद्रण प्रणालियों के कारण चित्र सामग्री व रंगों की गुणवत्ता में आशातीत सुधार व आज के समय अधिकांश समाचारपत्र रंगीन मुद्रण प्रणाली अपना चुके हैं। साथ ही विशेषकर सप्ताहांत में बढिया कागज पर सम्पूर्ण रंगीन परिशिष्ट होते हैं।

विज्ञापन माध्यम के रूप में समाचारपत्रों की खुबियां
  • समाज के हर पढ़े-लिखे वर्ग तक पहुंचने वाला जनमाध्यम
  • राष्ट्रीय से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय पहुंच वाला जनमाध्यम
  • अनेक विषयों का समाहार तथा अनेक रूचियों की आपूर्ति
  • अन्य विज्ञापन माध्यमों की तुलना में अधिक विश्वसनीयता
  • पृष्ठ संख्या, आकार, प्रकाशन स्थान, रंगों का प्रयोग आदि के संदर्भ में रचनात्मक छूट
  • सविस्तृत सूचना तथा गहन सूचना दे पाने का अवसर
  • पृष्ठों व परिशिष्टों के संदर्भ में विविधता

विज्ञापन माध्यम के रूप में समाचारपत्रों की खामियां
  • निश्चित आर्थिक व सामाजिक वर्गों तक ना पहुंच पाना
  • समाचारपत्रों का जल्दी बासी हो जाना
  • पुस्तक व पत्रिकाओं की तुलना में लम्बे समय तथा तक बार-बार न पढा जाना
  • मुद्रण व रंगों की गुणवत्ता में कमी
  • एक ही पृष्ठ पर अनेक सम्पादकीय सामग्री व विज्ञापनों के समाहार में विज्ञापनों के खो जाने का या न उभर पाने का डर
  • विज्ञापन में उपलब्ध निश्चित पृष्ठ या स्थान के ऊपर विज्ञापक का नियन्त्रण ना होना
  • पूरे देश या राज्य के सन्दर्भ में प्रसार क्षेत्र न होना

विज्ञापन माध्यम के रूप में पत्रिकाएं
विज्ञापन माध्यम के नाते समाचारपत्र व पत्रिकाओं मे काफी समानताएं पाई जाती हैं। इन दोनों माध्यमों में प्रमुख अन्तर है कि पत्रिकाओं में रंगों व चित्र सामग्री की अधिक गुणवत्ता पाई जाती है। लगभग सभी प्रकार की रूचियों की आपूर्ति हेतू पत्रिकाओं की उपलब्धता हेतू विज्ञापकों को भिन्न-भिन्न उपभोक्ता वर्गों तक पहुंचने के लिए अधिक व निश्चित विकल्प मिलते हैं। पत्रिकाओं में विषयों को लेकर भी अनेक विकल्प उपलब्ध हैं। साधारण समाचार पत्रिकाओं से लेकर फिल्मी, व्यापारिक विषयों तक, गाडियों के रख-रखाव, बागवानी, कम्प्यूटर सम्बन्धित पत्रिकाओं से लेकर निश्चित पाठ्य विषय से सम्बन्धित जर्नल आदि इस विविधता के विभिन्न पहलू हैं।
अधिक प्रसार संख्या वाली पत्रिकाएं विभिन्न प्रकार की आम वस्तुओं के विज्ञापन के लिए इस्तेमाल में लाई जाती हैं। कम प्रसार संख्या वाली निश्चित रुचि सम्बन्धित पत्रिकाओं का प्रयोग निश्चित उपभोक्ता वर्ग द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले वस्तुओं के विज्ञापन हेतू किया जाता है। इन सबसे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समाचारपत्रों की तुलना में पत्रिकाओं को लम्बे समय तक रखा जाता है तथा बार-बार पढा जाता है। इस कारण पत्रिकाओं में छपे विज्ञापन उपभोक्ताओं तक पहुंचने के साथ-साथ उनको बार-बार याद दिलाने का तथा एक अन्तरंग सम्बन्ध बनाने का काम करते हैं।

विज्ञापन माध्यम के रूप में पत्रिकाओं की खुबियां
  • उपभोक्ता वर्गों तक पहुंचने के सन्दर्भ में नियन्त्रण
  • लम्बे समय तक सुरक्षित रखना तथा बार-बार पढा जाना
  • समाचारपत्रों की तुलना में रंगों व चित्र सामग्री के सन्दर्भ में अधिक गुणवत्ता
  • समाचारपत्रों की तुलना में अधिक विश्वसनीयता
  • निश्चित रूचि के उपभोक्ता वर्गों तक पहुंच
  • अधिक आकर्षक तत्त्व व ग्लैमर

विज्ञापन माध्यम के रूप में पत्रिकाओं की कमियां
  • समाचारपत्रों के विज्ञापन की तुलना में अधिक खर्चीला
  • पत्रिकाओं के विज्ञापन की तैयारी तथा प्रकाशन में अधिक समय लगना
  • पत्रिकाओं में विज्ञापनों की बहुतायता

विज्ञापन माध्यम के रूप में रेडियो
रेडियो एक निजि माध्यम है। टेलिविजन देखने के विपरित लोग प्रायः अकेले की रेडियो सुनते हैं। रेडियो कहीं भी ले जाया जा सकता है तथा कई अलग-अलग काम करते समय रेडियो सुना जा सकता है। आज बहुत बड़ी संख्या में लोग घर पर या दुकानों पर कोई काम करते समय, यहाँ तक कि गाडी चलाते समय भी रेडियो सुनते हैं।
आज से कुछ वर्ष पहले अधिकतर लोग यही मानते थे कि जनमाध्यम के रूप में रेडियो मानो खत्म हो गया है। एफ.एम. प्रसारण तथा कार व मोबाईल रेडियो के प्रचलन के कारण जनमाध्यम के रूप में रेडियो ने वापसी की है। साथ ही विज्ञापन माध्यम के रूप में भी इसकी वापसी हुई है।
जनमाध्यम के रूप में रेडियो की सबसे बड़ी दो खासीयतें हैं: सर्वविद्ता व तात्कालीकता। साथ ही रेडियो विज्ञापन की तैयारी में बहुत कम खर्चा आता है तथा रेडियो प्रसारण राशी भी बहुत कम होती है। टेलिविजन की भांति रेडियो एक प्रमुख जनमाध्यम नहीं है। किन्तु एक सहायक विज्ञापन माध्यम के रूप में रेडियो का कोई सानी नहीं है।

विज्ञापन माध्यम के रूप में रेडियो की खुबियां
  • निजि माध्यम होने के कारण श्रोताओं के साथ अन्तरंग सम्बन्ध
  • समाचार, विश्लेषण, चर्चा, संगीत व अन्य मनोरंजन की उपलब्धता के कारण विभिन्न वर्गों तक पहुंच
  • अन्तराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व स्थानीय रेडियो सेवा व केन्द्रों की उपलब्धता
  • विज्ञापन निर्माण व प्रसारण के सन्दर्भ में कम खर्चीला

विज्ञापन माध्यम के रूप में रेडियो की कमियां
  • निश्चित रूचि के श्रोताओं तक पहुंच ना होना
  • चित्र सामग्री का न होना
  • वस्तु या सेवाओं के विभिन्न पहलूओं को प्रदर्शित न कर पाना
  • ग्लैमर व प्रतिष्ठा की कमी
  • सूचनाओं के ठोस प्रस्तुतिकरण के सन्दर्भ में कमी
  • रेडियो सुनते समय श्रोताओं का ध्यान केन्द्रित न होना

विज्ञापन माध्यम के रूप में टेलिविजन
वैसे तो टेलिविजन को बुद्धबक्सा कहा जाता है। किन्तु यह सबसे सम्पूर्ण व ठोस जनमाध्यम है। दृश्य व श्रव्य सामग्री के साथ-साथ जीवन्त गतिशीलता व चलमानता के कारण दर्शक टेलिविजन को पूरा ध्यान देकर देखते हैं। एक सशक्त जनमाध्यम होने के साथ-साथ टेलिविजन एक प्रभावी व प्रमुख अनुनयनकारी माध्यम है। सूचना व मनोरंजन देने वाले जनमाध्यम तथा प्रभावी अनुनयन करने वाले विज्ञापन माध्यम के रूप में टेलिविजन हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है।
महज एक जनमाध्यम से आगे बढ़ते हुए टेलिविजन आज विश्व के कई देशों की संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। विश्व के हर कोने में पहुंचने वाला यह सर्वव्यापी जनमाध्यम एक अति शक्तिशाली विज्ञापन माध्यम ही है।

विज्ञापन माध्यम के रूप में टेलिविजन की खुबियां
  • अधिक प्रभाव
  • चित्र सामग्री की बहुतायता तथा विभिन्न पहलूओं को प्रदर्शित करने की सुविधा
  • संदेश की सम्पूर्णता
  • ग्लैमर व प्रतिष्ठा में सर्वोपरि
  • दीर्घकालीन खर्च स्वल्पता

विज्ञापन माध्यम के रूप में टेलिविजन की कमियां
  • विज्ञापन निर्माण तथा प्रसारण में अत्यधिक लागत
  • टेलिविजन चैनलों पर विज्ञापनों की भरमार तथा इस भीड में खो जाने का भय

सारांश

  • विज्ञापन में वस्तु-सेवा सम्बन्धित सूचनाओं को सकारात्मक अवधारणाओं या मूल्यों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विज्ञापन संचार प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए आमतौर पर वस्तु-सेवा सम्बन्धित सूचनाओं को कहानी के जरिए प्रस्तुत किया जाता है। विज्ञापन के जरिए वस्तु व सेवाओं हेतू एक सकारात्मक छवि बनाई जाती है। यह कार्य सकारात्मक मूल्यों के जरिए किया जाता है।
  • विज्ञापन संस्थाएं रचनात्मक, प्रबन्धन व अन्य सम्बन्धित क्षेत्रों के विशेषज्ञों की स्वतन्त्र संस्था होती है। विज्ञापन व अन्य प्रचार-प्रसार सामग्रियों का निर्माण इन संस्थाओं का प्रमुख कार्य है। विज्ञापन संस्थाएं विज्ञापक व उपभोक्ताओं के बीच में एक कडी के रूप में कार्य करती हैं।
  • प्रायः विज्ञापन संस्थाएं अपना खुद का विज्ञापन नहीं बनाती। विज्ञापन संस्थाओं को उनके काम और सफलता के आधार पर बनी प्रतिष्ठा के कारण ही आगे काम मिलता है। जाहिर है कि विज्ञापन संस्थाएं वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता तथा व्यवसायिक मानसिकता के साथ काम करती हैं। और वस्तुनिष्ठता व व्यवसायिक मानसिकता के कारण ही उनकी प्रतिष्ठा बनती है।
  • विज्ञापन संस्थाओं में आकार व सेवाओं के सन्दर्भ में काफी विविधता पाई जाती है। विश्वभर में अधिकतर विज्ञापन संस्थाएं आकार में छोटी होती हैं। ऐसी संस्थाएं में एक से लेकर आठ-दस व्यक्ति ही होते हैं। कुछ संस्थाएं आकार में बहुत बड़ी होती हैं तथा इनमें सैंकडों, हजारों विशेषज्ञ काम करते हैं। जैसे हम चर्चा कर चुके हैं कि कुछ संस्थाएं निश्चित इलाकों में काम करती हैं तो कुछ संस्थाएं विज्ञापन सम्बन्धित निश्चित सेवाएं उपलब्ध करवाती हैं।

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