भारत की औद्योगिक नीतियाँ | industrial policy of india

भारत की औद्योगिक नीतियाँ

स्वतन्त्रता से लेकर आज तक औद्योगिक विकास के लिए भारत सरकार ने निम्नलिखित प्रमुख औद्योगिक नीतियाँ घोषित कीं।
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1948 की औद्योगिक नीति

इसे प्रस्तुत करने का श्रेय श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जाता है। इसी में मिश्रित अर्थवयवस्था की नीति अपनाई गई और उद्योगों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया प्रथम श्रेणी में 3 उद्योग रखे गए। द्वितीय श्रेणी में 6 उद्योग रखे गए। तृतीय श्रेणी में 18 उद्योगों को रखा गया।

1956 की औद्योगिक नीति

इसे प्रस्तुत करने का श्रेय जवाहर लाल नेहरू को जाता है। इसको 17 उद्योगों पर केन्द्र सरकार का पूर्ण नियन्त्रण था तथा शेष उद्योगों पर निजी उद्योगपतियों का नियन्त्रण था जो विशेषकर उपभोक्ता वस्तु के उत्पादक थे।

1977 की औद्योगिक नीति

इसे प्रस्तुत करने का श्रेय जॉर्ज फर्नाडीज को जाता है। इसमें विशेष रूप से लघु व कुटीर उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। लघु उद्योगों को 3 वर्गों में रखा गया।
  1. अति लघु (Tinny Sector) : क्षेत्र की नई अवधारणा लागू की गई इसमें निवेश 1 Lakh रु. तथा इसकी स्थापना 50 हजार से कम क्षेत्र में की गई।
  2. जिला उद्योग केन्द्र : लघु उद्योग को एक स्थान पर सभी सुविधा उपलब्ध कराना।
  3. संयुक्त क्षेत्र की अवधारणा अपनाई गई।

1980 की औद्योगिक नीति

इसका उद्देश्य भारतीय अर्थ व्यवस्था का आधुनिकीकरण विस्तार एवं पिछड़े क्षेत्रों का विकास करना था।

नई औद्योगिक नीति 24 जुलाई 1995
इसे राय मनमोहन नीति भी कहते हैं। इस औद्योगिक नीति में उदारीकरण नीतिकरण एवं भूमण्डलीकरण को अपनाया गया इसके लिए।

निम्नलिखित मुख्य कार्य किए गए।

औद्योगिक लाइसेन्सिग : जब यह नीति लागू की गई उस समय 18 उद्योगों पर लाइसेंसिंग की पॉलिसी अपनाई गई अर्थात् ये 18 उद्योग सुरक्षा, सामाजिक कारण, पर्यावरण तथा प्रदुषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे। वर्तमान में 5 उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेना अनिवार्य है।
  1. एल्कोहल युक्त पेय पदार्थ का आश्वन एवं निर्माण ।
  2. तम्बाकू के सीगार व सिगरेट तथा इससे बनी वस्तुएँ।
  3. इलेक्ट्रॉनिक एयरोस्पेस तथा रक्षा समान
  4. औद्योगिक विस्फोटक
  5. जोखिम वाले रसायन

सार्वजनिक क्षेत्र
सार्वजनिक क्षेत्र में 1998 तक 8 उद्योगों सार्वजनिक क्षे के लिए आरक्षित थे। 2001 में रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की 26% की छूट के बाद इसकी संख्या 4 से घटकर वर्तमान में 3 बची है।
  1. परमाणु ऊर्जा विभाग
  2. 15 मार्च, 1995 SO 212 के निर्गत
  3. रेल परिवहन् 

MRTP 1969 के स्थान पर CCI (Comptation Commission of India) 2002 : B.S. राघवन की अध्यक्षता में गठित समिति ने एकाधिकार के स्थान पर प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की स्थापना की सिफारिश की। इसकी स्थापना 22 मई, 2000 में की गई और प्रभावी 2002 से हुई।

फेरा के स्थान पर फेमा FERA - FEMA (Foreign Exchange & Ragulatory Act) : 1973 के तहत विदेशी विनिमय का निर्धारित स्थिर दर पर कियाजाता था। इसका उद्देश्य विनिमय संसाधनों को बचाना ताकि इनका उचित प्रयोग हो सके। उदारीकरण के बाद इसके स्थान पर फेमा को जून, 2000 में लागू किया गया।

औद्योगिक रुग्णता (बिमारी) : ऐसे उद्योग जो वित्तीय संसाधनों के अभाव में बन्द पड़े हुए थे उनके पर्ननिर्माण के लिए मई 1987 में औद्योगिक एवं वित्तीय पुर्ननिर्माण बोर्ड (B.ILE.R.) की स्थापना की गई। वर्तमान में यह निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के रुग्ण कम्पनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
औद्योगिक रुग्णता पर दो समितियाँ गठित हो चुकी हैं।
  1. तिवारी समिति 1985
  2. ओमकार नाथ गोस्वामी समिति, 1993
31 अगस्त, 2000 में बालकृष्ण इराडी समिति ने B.I.A.R. को समाप्त करके राष्ट्रीय कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल (N.C.L.T) की स्थापना का सुझाव दिया था।
सुमाखरन की प्रसिद्ध पुस्तक Small is beautiful है। लघु उद्योगों पर प्रसिद्ध पुस्तकें 2006 के अधिनियम के अनुसार लघु उद्योगों को छोटे (Small) लघु (Micro) एवं मझोले (Midium) उद्यम के रूप में जाना जाता है। इसक्षेत्र में कुल 6 करोड़ लोगों का वर्तमान में रोजगार मिला है।
अति लघु क्षेत्रों के लिए निवेश की सीमा आबिद हुसैन समिति की सिफारिश पर 5 लाख से बढ़ाकर 25 लाख कर दिया गया है और लघु खेत्रों में निवेश की सीमा 2000-2001 में 3 करोड़ से घटाकर 1 करोड़ कर दिया गया है। हथकरघा क्षेत्र के विकास हेतु 21 जनवरी, 1997 में मीरा सेठ की अध्यक्षता में समिति गठित की गई।CAPART (कपार्ट) Council of people action and advancement of rural technology की स्थापना 1986 में की गई। यह ग्रामीण क्षेत्र के स्वैच्छिक संगठनों को तकनीकी विकास हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

भारत में औद्योगिक गणना

भारत में औद्योगिक आर्थिक गणना की शुरुआत 1977 में हुई इसमें गैर कृषि क्षेत्र के ऐसे उद्योग शामिल किए गए थे जिसमें कम से कम एक कर्मचारी नियमित रूप से रोजगार प्रापत करता हो। दूसरी, तीसरी क्रमशः 1980 तथा 90 में की गई। जिसमें कृषि तथा गैर कृषि दोनों क्षेत्र के उद्यम शामिल थे। चौथी आर्थिक गणना 1998 में तथा 5वीं 2005 में शुरू हुई और इसके अन्तिम परिणाम 12 जून, 2006 में प्रकाशित हुए।
इसके प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं :
  • 1. देश में कुल उद्यमों की संख्या 4212 करोड़ इसमें ग्रामीण क्षेत्र में 2.581 करोड़ (61.5%) शहरी क्षेत्र में 1.631 करोड़ (38-7%)।
  • 2. रोजगार में औसत वार्षिक वृद्धि दर 2.49% इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 3.33% शहरी क्षेत्रों में 1.68%
  • 3. सर्वाधिक उद्यम वाले पॉच राज्य, इन पॉच राज्यों में कुछ उद्योगों का 50% से अधिक हिस्सा आता है।
(i) पहले स्थान पर तमिलनाडु - 10.56%
(ii) दूसरे रथान पर महाराष्ट्र - 10.39%
(iii) तीसरे स्थान पर प. बंगाल - 10.77%
(iv) चौथे स्थान पर आन्ध्र प्रदेश - 9.55%
(v) उत्तर प्रदेश - 9.53
  • (4) सर्वाधिक उद्यम वाले केन्द्र शासित राज्य
(i) दिल्ली - 1.79%
(ii) चंडीगढ़ - 0.16%
(iii) पांडिचेरी - 0.12%
  • (5) सर्वाधिक रोजगार वाले 5 राज्य
(i) महाराष्ट्र - 11.95%
(ii) तमिलनाडु - 9.97%
(iii) प. बंगाल - 9.42%
(iv) आन्ध्रप्रदेश - 8.96%
(v) उत्तर प्रदेश - 8.63%

भारत में नवरत्न, महारत्न तथा मिनिरत्न

भारत में नवरत्न की अवधारणा जुलाई 1797 में प्रारम्भ हुई। जो उद्यम ग्लोबल कम्पनी की सम्भावना रखते हों तथा पिछले 3 वर्ष से लाभ कमा रहे हो। 97 में 9 केन्द्रीय उपक्रमों को नवरत्न का दर्जा दिया गया था। 2008 में पुनः 9 म्पनियों को और वर्तमान में अप्रैल, 2010 तक इनकी संख्या बढ़कर 20 हो गई है। 20वीं कम्पनी Oil है। 19वीं कम्पनी RINL है।
महारत्न की कम्पनियाँ 3 से बढ़कर वर्तमान में 4 हो गई हैं। इन कम्पनियों पर सरकार का हस्तक्षेप नगण्य होता है।
1. राष्ट्रीय तापीय विद्युत निगम (NTPC- National Thermal Power Corporation)
2. तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC - Oil and Natural gas Corporation)
3. SAIL (Steel Authority of India Limited)
4. Oil (Oil India Limited)
वर्तमान में मिनिरत्नों की संख्या 52 है। इनमें लार्सन एवं टर्बो (L & T), महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा, TATA जैसी कम्पनियाँ शामिल हैं।

मिनी रत्न का दर्जा प्राप्त सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम
हाल ही में केन्द्रीय सरकारी क्षेत्र के आठ उद्यमों नामतः भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, बाडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स ऑल इण्डिया लिच, कोचीन शिपयार्ड लि. हिन्दुस्तान कॉपर लि. इंडियन रेलवे केटरिंग और पर्यटन निगम लि. मिश्र धातु निगम लि., नेशनल हाइड्रोइलेक्टिक पॉवर कॉर्पोरेशन लि. और सतलुज जल विद्युत् निगम लि. को मिनी रत्न का दर्जा प्रदान किया गया है जिससे मिनी रत्न प्राप्त केन्द्रीय सरकारी क्षेत्र के उद्यमों की संख्या बढ़कर 55 हो गई है। राष्ट्रीय इस्पात निगम लि. को अभी तक निजीकरण का दर्जा प्राप्त था जिसे मार्च 2010 में नवरत्न का दर्जा प्रदान करने की स्वीकृति दी गई।

नवरत्न व मिनी रत्न कम्पनियों को म्यूचुअल फण्डों में निवेश की अनुमति
वैश्विक मंदी के प्रभावस्वरूप शिथिल हो रहे शेयर बाजार और म्यूचुअल फण्डों में जान फेंकने के लिए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न और मिनी रत्न कम्पनियों को अपने अतिरिक्त नकद शेष का 30% म्यूचुअल फण्ड में निवेश करने की मंजूरी प्रदान की है। सार्वजनिक क्षेत्र के म्यूचुअल फण्डों के माध्यम से ही इन कम्पनियों को निवेश की अनुमति होगी। इस आशय का फैसला आर्थिक मामलों को मंत्रिमण्डलीय समिति (CCEA) ने 26 दिसम्बर, 2008 को किया। नवरत्न व मिनी रवरत्न कम्पनियों को ऐसे निवेश की अनुमति पहले भी अगस्त, 2007 में प्रदान की गई थी, किन्तु यह केवल एक वर्ष के लिए ही थी। जिसकी समय सीमा 1 अगस्त, 2008 को समाप्त हो गई थी।

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