गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) क्या है? | gupt ushma

गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) क्या है ?

गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) क्या है ?
स्थिर ताप पर किसी पदार्थ के अवस्था परिवर्तन के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा प्रति एकांक द्रव्यमान को उस पदार्थ की गुप्त ऊष्मा (Latent heat) कहते हैं।

गुप्त ऊष्मा दो प्रकार की होती है

(i) गलन की गुप्त ऊष्मा (latent heat of Melting)

यह ऊष्मा की वह मात्रा है जो बिना ताप बदले एकांक द्रव्यमान के ठोस को द्रव में बदलने के लिए आवश्यक होती
या
जब हम किसी ठोस को गरम करते हैं तो इसका ताप बढ़ता है और एक विशिष्ट ताप पर यह गलने लगता है। इस ताप को ठोस का गलनांक कहते हैं। अवस्था परिवर्तन की अवधि में हम लगातार ऊष्मा देते हैं लेकिन ताप में वृद्धि नहीं होती है। एकांक द्रव्यमान के ठोस को पूर्णतया इसकी संगत द्रव अवस्था में परिवर्तित करने वे लिये आवश्यक ऊष्मा को गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।
इसका मात्रक कैलोरी/ग्राम या किलो कैलोरी/ग्राम अथवा जूल/किग्रा) है।

(II) वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (Latent heat of Vaporisation)

यह ऊष्मा की वह मात्रा है जो एकांक द्रव्यमान के द्रव को सम्पूर्ण रूप से बिना ताप परिवर्तन के वाष्प अवस्था में बदलने के लिए। आवश्यक है। इसका मात्रक कैलोरी/ग्राम या किलो | कैलोरी/किलोग्राम अथवा जूल/किग्रा. है।
या
एक द्रव को गरम करने पर इसके क्वथनांक तक ताप बढ़ता है। क्वथनांक पर दी गयी ऊष्मा इसे गैसीय अवस्था में परिवर्तन करने में प्रयुक्त होती है। किसी द्रव के एकांक द्रव्यमान को एक नियत ताप पर गैसीय अवस्था में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक ऊष्मा उस द्रव के वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा कहलाती है।

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पदार्थ

गलनांक (°C)

क्वथनांक (°C)

ऐथिल ऐल्कोहॉल

-114

78

सोना

1063

2660

लैड

328

1744

पारा

-39

357

नाइट्रोजन

-210

-196

ऑक्सीजन

-219

-183

जल

0

100


ऊष्मा का संचरण : ऊष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान जाने को ऊष्मा का संचरण कहते हैं। इसकी तीन विधियों है- (1) चालन्, (ii) संवहन और (iii) विकिरण

चालन (Conduction) : चालन के द्वारा ऊष्मा पदार्थ में एक स्थान से दूसरे स्थान तक, पदार्थ के कणों को अपने स्थान का परिवर्तन किए बिना पहुँचती है।
ठोस में ऊमा का संचरण चालन विधि द्वारा ही होता है। ठोस तथा पारे में ऊष्मा का संचरा केवल चालन द्वारा होता है।

पदार्थों का वर्गीकरण 3 प्रकार से होता है 
(i) चालक : सभी धातु, अम्लीय पदार्थ, मानव।
(ii) कुचालक : लकड़ी
(iii) उष्मारोधी : एबोनाइट, ऐस्बेस्टमस

संवहन (Convection) : इस विधि में ऊष्मा का संचरण पदार्थ के कणों के स्थानान्तरण के द्वारा होता है। इस प्रकार पदार्थ के कणों के स्थानान्तरण से धाराएँ बहती है, जिन्हें संवहन धाराएँ कहते हैं।
गैसों एवं द्रवों में ऊष्मा का संचरण संवहन द्वारा ही होता है
वायुमंडल संवहन विधि के द्वारा ही गरम होता है।
केवल गैसों और द्रवों में संवहन होता है। गैस के अण गर्म होने पर हल्के हो जाते हैं और ऊपर उठने लगते हैं।

विकिरण (Radiation) : इस विधि में ऊष्मा, गरम वस्तु से ठण्डी वस्तु की ओर बिना किसी माध्यम की सहायता के तथा बिना माध्यम को गरम किए प्रकाश की चाल से सीधी रेखा में संचरित होती है। ऊष्मा के संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। इसके द्वारा ऊष्मा का संचरण निर्वात में भी होता है। पृथ्वी तक सूर्य की ऊष्मा विकिरण द्वारा पहुँचती है।

किरचौफ का नियम (Krichhoff's Law) : इसके अनुसार अच्छे अवशोषक ही अच्छे उत्सर्जक होते हैं। अंधेरे कमरे में यदि एक काली ओर एक सफेद वस्तु को समान ताप पर गरम करके रखा जाए तो काली वस्तु अधिक विकिरण उत्सर्जित करेगी। अतः काली वस्तु अंधेरे में अधिक चमकेगी।

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