स्थलीय पारितंत्र (Terrestrial Ecosystem) |

स्थलीय पारितंत्र (Terrestrial Ecosystem)

sthaliya-paritantra

  • (क) वन
  • (ख) घास के मैदान
  • (ग) मरुस्थल तथा
  • (घ) टुंड्रा स्थलीय पारितंत्र हैं।

(क) वन (Forest)

वन वह विशाल क्षेत्र है जहाँ वृक्षों की बहुतायत होती है। वृक्षों के प्रकार और जलवायु के आधार पर वनों के मुख्य प्रकार निम्नवत हैं:
  • (i) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन
  • (ii) शीतोष्ण पतझड़ वन
  • (iii) बोरियल या उत्तरी शंकुधारी वन

(i) उष्णकटिबंधीय वर्षा वन (Tropical rain forests)
  • वितरण: इस प्रकार के वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां अत्यधिक वर्षा होती है। यह भूमध्य रेखा के किसी एक ओर पाये जाते हैं। इस प्रकार के वन भारत के पश्चिमी तट में पाये जाते हैं और दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ भागों में फैले हुए हैं।
  • पादप और प्राणिजात (जीव प्रजातियां): उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां अत्यधिक तापमान और आर्द्रता होती है तथा यहां प्रतिवर्ष 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है। मृदा ह्यूमस से परिपूर्ण होती है। इन वनों में अत्यधिक जैव विविधता पायी जाती है। जैसे ब्राजील के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के 200 वर्ग किमी क्षेत्र में वृक्षों की 300 से भी अधिक प्रजातियां पायी जाती हैं। वृक्ष 50-60 मीटर तक लम्बे होते हैं। इन वनों में अधिपादप भी पाए जाते हैं जैसे लताऐं, क्रीपर, काष्ठ लताएँ तथा आर्किड इत्यादि। इन वनों में वृक्षों पर रहने वाले जन्तुओं का बाहुल्य होता है जैसे बन्दर, उड़ने वाली गिलहरियां, घोंघे, मिलीपीड, सेन्टीपीड तथा कीटों की कई प्रजातियां वन के धरातल पर सामान्यतः पायी जाती है।

(ii) शीतोष्ण पतझड़ वन (Temperate deciduous forests)

  • वितरण: ये वन अधिकतर उत्तर-पश्चिमी, मध्य तथा पूर्वी यूरोप उत्तर-पूर्व अमेरिका, उत्तरी चीन, कोरिया, जापान, सुदूर पूर्व रूस व आस्ट्रेलिया में पाये जाते हैं। शीतोष्ण पतझड़ वनों के वृक्ष पतझड़ ऋतु में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं तथा नयी पत्तियां बसन्त ऋतु में आती हैं।
  • जलवायुः ये वन सामान्य जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। जैसे तापक्रम 10°C से 20°C के मध्य रहता है तथा 6 मास तक सर्दी का मौसम रहता है। वार्षिक वर्षा 75 से 150 सेमी के बीच होती है। इन वनों में भरी मृदा पायी जाती है जो पोषक तत्वों से परिपूर्ण होती है।
  • पादप और प्राणिजात (जीव प्रजातियां): इन वनों में सामान्यतया बलूत, बीच, हीथ, चेस्टनट, भुर्ज और चीड़ के वृक्ष पाये जाते हैं। यह वन स्तरीकरण को भी प्रदर्शित करते हैं तथा इनमें पौंद, झाड़ियों और ऊंचे शाकीय पौधे कालीन की तरह पाये जाते हैं। पूरी तरह से घास पर निर्भर रहने वाले जन्तुओं में हिरन, बाइसन तथा रोडेन्ट प्रमुख हैं। इन वनों में रोडेन्ट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बीज, फल तथा वृक्षों की पत्तियां खाते हैं। शीतोष्ण वनों मे काला भालू, रैकून, जंगली बिल्ली, भेड़िए, लोमड़ी तथा स्कंक जैसे सर्वाहारी जन्तु पाये जाते हैं। शरद ऋतु के दौरान शीत निष्क्रियता या शीत निद्रा इन वनों में पाए जाने वाले जन्तुओं का सामान्य लक्षण है। अकशेरुकी जन्तुओं में हरी मक्खियां, एफिड, विशेष प्रकार के शलभ व तितलियां शामिल हैं।

(iii) बोरियल या उत्तरी शंकुधारी वन (Boreal or north coniferous forests)

  • वितरणः शंकुधारी वनों को टैगा वन भी कहते हैं। ये आर्कटिक टुण्डा के नीचे एक सतत बेल्ट के रूप में उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी यूरेशिया तक फैले हुए हैं। दक्षिणी गोलार्ध में इस प्रकार के वन नहीं पाये जाते हैं क्योंकि इस अक्षांश पर बिल्कुल भी भूमि नहीं हैं। जलवायु ठण्डी है, लम्बा व कठोर शीतकाल, माध्य वार्षिक तापमान 0°C से कम है। मृदा में पोषक तत्वों का अभाव है तथा उसकी प्रकृति अम्लीय है।
  • पादप और प्राणिजात (जीव प्रजातियां): सदाबहार, शुष्कतारोधी व काष्ठीय वृक्ष शंकुधारी वनों के विशिष्ट लक्षण हैं। शंकुवृक्ष (अनावृतबीजी) जैसे स्प्रूस, देवदार और चीड़ जिनमें शंकुओं के अंदर अनावृत बीज पाये जाते हैं। इन वनों में पाये जाने वाले जानवर लाल गिलहरी, हिरन, बकरी, खच्चर, मूस, बारहसिंगा आदि हैं। लकड़बग्घे, वन विडाल, भालू जैसे मांसाहारी जन्तु भी पाये जाते हैं। कुछ सामान्य पक्षी क्रासबिल, थ्रशेज़, बार्बलर्स, मक्खीमार, रॉबिन तथा गौरेया आदि इन वनों में पाये जाते हैं।
वनों का महत्त्व

कार्य

लाभ

उत्पादक कार्य

विभिन्न प्रकार की लकड़ी, फलों का उत्पादन तथा रेजिन, सुगंधित तेल, लेटेक्स और औषधीय तत्त्वों का उत्पादन करना।

रक्षात्मक कार्य

विभिन्न जीवों का पर्यावास, मृदा और जल का संरक्षण, सूखे से बचाव, हवा, सर्दी, शोर, विकिरण, तीव्र गंध से बचाव।

नियामक कार्य

गैसों (मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड), खनिज तत्त्वों और विकिरण ऊर्जा को सोखना, भंडारण करना और मुक्त करना। ये सब कार्य वायुमंडल और तापमान की स्थिति में सुधार लाते हैं और भूमि के आर्थिक और पर्यावरण संबंधी मूल्य में वृद्धि करते हैं। वन प्रभावी रूप से बाढ़ और सूखे को भी नियमित करते हैं। इस तरह वे जैव भू-रासायनिक चक्र के नियामक हैं।


(ख) घास के मैदान (Grass land)

वितरणः घास के मैदान वह क्षेत्र हैं जहां घास का बाहुल्य होता है। यह धरातल के लगभग 20% भाग को घेरे हुए हैं। यह उष्णकटिबंधीय व शीतोष्ण दोनों क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जहां वृक्षों की वृद्धि के लिए वर्षा की मात्रा पर्याप्त नहीं है। घास के मैदान विश्व के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न नाम से जाने जाते हैं।

स्थान

घास के मैदान का नाम

उत्तरी अमेरिका

प्रेयरी

यूरेशिया (यूरोप तथा एशिया)

स्टेपीज

अफ्रीका

सवाना

दक्षिणी अमेरिका

पम्पास

भारत

घास के मैदान, सवाना

ऑस्ट्रेलिया

डाउंस

न्यूज़ीलैंड

कैंटरबरी

हंगरी

पुस्टाज

ब्राजील

कैम्पोस


घास के मैदान उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां सुपरिभाषित उष्ण और शुष्क, गर्म व वर्षामय मौसम होता है।
उष्णकटिबंधीय घास के मैदानों को सामान्यतया सवाना कहते हैं। ये पूर्वी अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा भारत में पाये जाते हैं। सवाना एक जटिल पारितंत्र बनाते हैं जिसमें घास के साथ मध्यम ऊंचाई के वृक्ष भी होते हैं।
  • पादप और प्राणिजात (जीव प्रजातियां): उष्णकटिबंधीय घास के मैदानों में घासों का बाहुल्य होता है और कहीं कहीं शुष्कावरोधी कंटीले पादप पाये जाते हैं। बेजर्स लोमड़ी, गधा, जेबरा, चिंकारा घास के मैदानों में चरते हुए पाए जाते हैं। यह दुग्ध और चमड़ा उद्योग का आधार हैं। घास के मैदानों में कृन्तकों, सरीसृपों और कीटों की बहुत बड़ी आबादी पायी जाती है।

(ग) मरुस्थल (Desert)

  • वितरणः मरुस्थल उष्ण और कम वर्षा वाले क्षेत्र हैं यहां पानी का अभाव होता है तथा तेज हवायें चलती हैं। यहां तापमान अपनी चरम सीमा पर होता है। ये पृथ्वी की सतह का लगभग 1/7 वां भाग घेरे हुए हैं।
  • पादप और प्राणिजात (जीव प्रजातियां): नागफनी, बबूल, यूर्फीबिया तथा कांटेदार नागफनी मरुस्थलीय पादपों के सामान्य उदाहरण हैं। मरुस्थलीय जन्तुओं में छछूंदर, लोमड़ी, चूहा, खरगोश, ऊंट और बकरियां शामिल हैं। सरीसृप, बिल बनाने वाले रोडेन्ट तथा कीट अन्य प्रख्यात मरुस्थलीय जन्तु हैं।
  • अनुकूलनः मरुस्थलीय पौधे उष्ण और शुष्क परिस्थितियों में उगते हैं।
(i) ये पौधे निम्नलिखित विधियों द्वारा जल का संरक्षण करते हैं:
  • ये अधिकतर झाड़ियां हैं।
  • पत्तियां नहीं होती हैं या फिर बहुत छोटी होती हैं।
  • पत्तियां तथा तने गूदेदार होते हैं और जल को संचित रखते हैं।
  • कुछ पौधों के तनों में प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्लोरोफिल पाया जाता है।
  • जड़तन्त्र सुविकसित और बड़े क्षेत्र में फैला रहता है।

(ii) जन्तु शारीरिकी और व्यवहारिक रूप से मरुस्थलीय परिस्थितियों के अनुकूलित होते हैं।
  • यह तेज दौड़ने वाले जीव हैं।
  • यह रात्रिचर स्वभाव के होने के कारण तथा दिन के समय सूरज की गर्मी से दूर रहते हैं।
  • यह गाढ़े (सान्द्र) मूत्र का उत्सर्जन करके जल को संरक्षित रखते हैं।
  • जन्तु और पक्षी सामान्यतया लम्बी टांगों वाले होते हैं जिससे उनका शरीर गरम धरातल से दूर रहता है।
  • छिपकलियां अधिकतर कीटभक्षी होती हैं और कई दिनों तक बिना पानी के जीवित रह सकती हैं
  • शाकाहारी जन्तु उन बीजों से पर्याप्त जल प्राप्त कर लेते हैं जिन्हें वह खाते हैं।
  • ऊंट को मरुस्थल का जहाज कहा जाता है क्योंकि यह कई दिनों तक बिना पानी के लम्बी यात्रा कर सकता है।

(घ) टुण्ड्रा (Tundra)

टुण्ड्रा शब्द का अर्थ है "बंजर भूमि"। ये संसार के उन भागों में पाये जाते हैं जहां पर्यावरणीय दशाएँ अत्यधिक कठिन होती हैं। टुण्ड्रा के दो प्रकार हैं: आर्कटिक टुण्ड्रा (Arctic tundra) और एल्पाइन टुण्ड्रा (Alpine tundra)।
  • वितरणः आर्कटिक टुण्ड्रा उत्तरी गोलार्ध में वृक्ष सीमा के ऊपर ध्रुवीय हिम आवरण के नीचे एक सतत पट्टी के रूप में फैला हुआ है। यह उत्तरी कनाडा, अलास्का, यूरोपीय रूस, साइबेरिया व आर्कटिक महासागर के द्वीप समूहों में फैला हुआ है। दूसरी तरफ दक्षिणी ध्रुव पर अंटार्कटिका टुण्ड्रा बहुत छोटा है क्योंकि इसका अधिकांश भाग समुद्र से ढका हुआ है।
  • एल्पाईन टुण्ड्रा वृक्ष सीमा के ऊपर पर्वतों पर अवस्थित है। चूंकि पर्वत सभी अक्षांशों पर पाए जाते हैं अतः एल्पाईन टुण्ड्रा दिन व रात्रि के ताप-परिवर्तन को दर्शाते हैं।
  • पादप और प्राणिजात (जीव प्रजातियां): आर्कटिक टुण्ड्रा की प्रारूपिक वनस्पति कपास घास, नरकट, बौनी हीथ, विलोबिर्च तथा लाइकेन है। टुण्ड्रा प्रदेश के जन्तु बारहसिंगा, कस्तूरी बैल, आर्कटिक खरगोश, कैरीबोस, लेमिंग व गिलहरी हैं।
इनमें से अधिकतर का जीवन काल लंबा होता है जैसे सेलिक्स आर्कटिका (जो एक आर्कटिक विलो है) का जीवन काल 150 से 300 वर्ष तक होता है। सर्दी से बचने के लिए इनके शरीर पर मोटी उपत्वचा और एपीडर्मल रोम पाये जाते हैं। टुण्ड्रा के स्तनधारियों के शरीर का आकार बहुत बड़ा होता है और पूंछ तथा कर्ण का आकार छोटा होता है। ताकि सतह से ऊष्मा की हानि को रोका जा सके। तापरोधन के लिए उनका शरीर फर से ढका रहता है। कीटों का जीवन चक्र अल्प होता है जो कि वर्ष के अनुकूल अवधि में पूर्ण होता है।
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