प्रवाल भित्ति (Coral Reefs) | praval bhitti

प्रवाल भित्ति (Coral Reefs)

प्रवाल एक चूना प्रधान जीव है जो मुख्यतः कठोर रचना वाले खोल होते हैं जिसमें मुलायम जीव रहते हैं। प्रवाल मख्य रूप से उष्णकटिबधाय सागरों (30°N से 30°S) में पाए जाते हैं. क्योंकि इनके जीवित रहने के लिये 20°C से 21°C तापमान उपयुक्त होता है। प्रवाल कम गहराई पर पाए जाते हैं क्योंकि अधिक गहराई पर सूर्य के प्रकाश व ऑक्सीजन की कमी होती है। प्रवालों के विकास के लिये जल को अवसाद रहित होना चाहिये क्योंकि अवसादों के कारण प्रवाल का मुख बंद हो जाता है एवं वे मर जाते हैं। प्रवाल विशेष रंगों के होते हैं। जब कोई प्रवाल मरता है तो दूसरा उसी के शरीर पर कड़ी के रूप में विकसित हो जाता है। इसकी आकृति टहनियों की तरह अथवा शाखाओं की तरह हो जाती है। इस प्रकार प्रवाल जीव मरने के उपरांत एक विशिष्ट प्रकार की रचना करते हैं जो दीवार की भाँति होती है। इस दीवार की भाँति रचना को ही प्रवाल भित्ति कहा जाता है।
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प्रवाल भित्ति के प्रकार

  • तटीय प्रवाल भित्ति (Fringing Reef) - महाद्वीपीय या द्वीपीय तट से लगे प्रवाल भित्तियों को तटीय प्रवाल भित्ति कहा जाता है। हालाँकि ये भित्तियाँ तट से सटी रहती हैं परन्तु कभी-कभी इनके एवं स्थल भाग के बीच अंतराल हो जाने के कारण उनमें छोटे लैगून का निर्माण हो जाता है, जिसे बोट चैनल कहा जाता है। वितरण: यह दक्षिणी फ्लोरिडा, अंडमान एवं निकोबार, मन्नार की खाड़ी के निकट रामेश्वरम्, सोसाइटी द्वीपसमूह आदि स्थानों पर दिखाई देती हैं।
  • अवरोधक प्रवाल भित्ति (Barrier Reef) - यह प्रवाल भित्ति अन्य दोनों प्रकार की प्रवाल भित्तियों की तुलना में विशालतम होती है। इनका विकास तट के समानांतर होता है। विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी तट पर स्थित ग्रेट-बैरियर रीफ है।
  • वलयाकार प्रवाल भित्ति (Atoll) - ये अँगूठी या घोड़े के नाल की आकृति वाली होती हैं। इनके केन्द्र में लैगून होता है। इनके बीच-बीच में खुले भाग पाए जाते हैं जिस कारण खुले सागर और लैगून का संपर्क बना रहता है। वलयाकार प्रवाल भित्ति के प्रमुख उदाहरण फिजी एटॉल तथा एलिस द्वीप में फुनाफुटी एटॉल हैं। लक्षद्वीप समूह में भी अनेक एटॉल पाए जाते हैं।
प्रवाल (Coral) एक जीवित प्राणी है। कोरल, जूजैथिली के साथ सहोपकारिता (Symbiotic) में रहता है इसमें जूजैथिली उसे भोजन तथा कोरल उसे आवास की सुविधा प्रदान करता है। प्रवाल भित्तियों को विश्व के सागरीय जैव विविधता का उष्णस्थल (Hotspot) माना जाता है तथा इसे 'समद्र का वर्षावन' भी कहा जाता है क्योंकि इनके संरक्षण में अनेक सागरीय जीव-जन्तुओं को आश्रय के साथ-साथ अन्य सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। प्रवाल में रंग जूजैथिली (Zooxanthellae) के कारण होता है।

प्रवाल भित्ति को खतरा  (Threat to the Coral Reef)

प्रवाल भित्ति पर खतरे के मुख्य कारक (Major Threats To Coral Reefs)
  • प्राकृतिक (Natural)
  • मानवीय (Man made)

प्राकृतिक (Natural)
  • एल निनो (EI Nino)
  • हरिकेन (Hurricanes)
  • सागरीय अम्लीकरण (Oceanic Acidification)
  • प्रवाल भित्ति को खाने वाले समुदाय (Coral eating Organisms)
  • रोग (Diseases)

मानवीय (Man made)
  • मछली पकड़ने की गलत तथा क्षतिकारी पद्धति
  • तटीय विकास (Coastal Development)
  • वैश्विक तापन में वृद्धि (Rising Global Temperature)  
  • पर्यटन 
  • समुद्री प्रदूषण
  • तलछट/अवसादों में वृद्धि
  • कोरल खनन
  • जहाजों की धुलाई
  • परमाणु परीक्षण
  • आभूषण निर्माण हेतु प्रवाल संचय
पिछले दो दशकों में विश्व की 20% कोरल रीफ समाप्त हो चुकी है। वर्तमान में केवल 30% कोरल रीफ ही किसी संकट से बाहर हैं। प्रवाल भित्ति के खतरे के प्रमुख कारण प्राकृतिक व मानवीय दोनों हैं।
विश्व की 26 प्रतिशत कोरल रीफ अतिसंकटग्रस्त हैं। 35 मिलियन एकड़ कोरल रीफ जो कि 93 देशों में फैली हैं, विनाश के करीब हैं।
पिछले दो दशकों में विश्व की 20% कोरल रीफ समाप्त हो चुकी है। वर्तमान में केवल 30% कोरल रीफ ही किसी संकट से बाहर हैं। प्रवाल भित्ति के खतरे के प्रमुख कारण प्राकृतिक व मानवीय दोनों हैं।

प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching)

प्रवाल पर निर्भर रहने वाले रंगीन जूजैथिली शैवाल जब पर्यावरणीय घटकों के नकारात्मक प्रभाव के कारण उनके ऊपर से हट जाते हैं तो प्रवाल अपने वास्तविक सफेद रंग में आ जाते हैं। इसे ही प्रवाल विरंजन कहते हैं। यह प्रक्रिया कुछ इस प्रकार से होती है-
प्रकाश की तीव्रता बढ़ने से अर्थात् ग्लोबल वार्मिंग से जूजैथिली प्रकाशसंश्लेषण की अपनी दर को अत्यधिक तीव्र कर देते हैं जिससे प्रवाल के ऊतकों में ऑक्सीजन खतरनाक स्तर तक बढ़ जाती है। इसे प्रतिसंतुलित करने के लिये या तो प्रवाल जूजैथिली को अपने शरीर से निकाल देते हैं या जूजैथिली खुद अपने रंगीन क्लोरोफिल की मात्रा को कम कर देते हैं। दोनों ही स्थितियों में प्रवालों के पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है और वे अपने वास्तविक रंग यानी सफेद में दिखने लगते हैं। इसे ही प्रवाल विरंजन कहा जाता है। प्रवालों का इस तरह से बड़ी संख्या में मरने से उन पर आश्रित अनेक जीव-जन्तुओं का जीवन खतरे में आ जाता है और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है क्योंकि समुद्री पारितंत्र में प्रवाल एक कीस्टोन प्रजाति मानी जाती है। प्रवाल विरंजन के अन्य कारणों में कोरल खनन, मछली पकड़ने की अवैज्ञानिक पद्धति, अवसादों में वृद्धि, एल निनो, भारी वर्षा एवं बाढ़, विवर्तनिकी उत्थान आदि प्रमुख हैं।

भारत में प्रवाल भित्तियाँ 

भारत में प्रवाल भित्ति मुख्यतः 4 क्षेत्रों में पाई जाती हैं-
  1. अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह (सर्वाधिक)
  2. कच्छ की खाड़ी (सबसे कम)
  3. मन्नार की खाड़ी
  4. लक्षद्वीप
इन क्षेत्रों के अलावा तरकरली, अंग्रिया (Angria Bank) विजयदुर्ग (महाराष्ट्र), नेटरानी द्वीप (कर्नाटक) आदि में पाई जाती हैं।

प्रवाल भित्ति का संरक्षण (Conservation of Coral Reef) 

  • ग्लोबल कोरल रीफ मॉनिटरिंग नेटवर्क (Global Coral Reef Monitoring Network — GCRMN) : GCRMN, ICRI (International Coral Reef Initiative) को सहायता प्रदान करता है। यह ICRI को विभिन्न वैज्ञानिक खोज एवं समन्वय द्वारा कोरल पारितंत्र की सूचना साझा करता है एवं उसके संरक्षण एवं प्रबंधन में सहायता उपलब्ध करवाता है।
  • भारत सरकार द्वारा प्रयास : भारत में अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, मन्नार की खाड़ी एवं कच्छ की खाड़ी में प्रवाल भित्तियों का अच्छा प्रसार है। प्रवाल भित्ति समुद्री पारितंत्र की जीवन रेखा है। अंडमान-निकोबार के समुद्री पारितंत्र को WWF द्वारा वैश्विक पर्यावरणीय स्थान के रूप में चयनित किया गया है। अंडमान-निकोबार सर्वाधिक प्रवाल भित्ति वाला स्थान है। इस द्वीप पर तटीय प्रवाल भित्ति (Fringing Reef) पाई जाती है। प्रवालों के संरक्षण के लिये भारतीय जूलॉजिकल सर्वे द्वारा पोर्ट ब्लेयर में नेशनल कोरल रीफ रिसर्च इंस्टीट्यूट खोला गया। भारत सरकार द्वारा ऑस्ट्रेलिया की मदद से प्रशिक्षण प्रोजेक्ट चलाया गया, जिसमें प्रवाल भित्ति के संरक्षण के उपाय बताए गए।
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