सागरीय पारितंत्र (Marine Ecosystem) |

सागरीय पारितंत्र (Marine Ecosystem)

सागर पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग घेरे हुए है और इसकी औसत गहराई लगभग 4000 मीटर है। अलवणजलीय नदियाँ अंत में सागर में गिरती हैं।


खुला समुद्र (Open Sea)
सागरीय पारितंत्र की कुछ विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं जो इसे स्थलीय पारितंत्र से अलग बनाती हैं। समुद्री पारितंत्र में आहार श्रृंखला सूर्य प्रकाश, ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड की सुलभता, लवणता, पोषक तत्वों की उपलब्धता आदि पर निर्भर करती है। ये सभी कारक सागर की ऊपरी सतह पर उपलब्ध हो पाते हैं। प्रकाश की तीव्रता गहराई में जाने पर कम होती जाती है जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि 200 मीटर तक के मंडल को प्रकाशित (Photic) तथा उससे नीचे के क्षेत्र को अप्रकाशित (Aphotic) क्षेत्र कहते हैं। प्रकाशित मंडल में प्राथमिक उत्पादक (फाइटोप्लैंकटन व हरे पौधे) प्रकाशसंश्लेषण द्वारा कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण करते हैं।

खुले समुद्रीय पारितंत्र के पादपजात और प्राणिजात

समुद्री जल का ताप परिवर्तन स्थल की अपेक्षा अत्यधिक न्यून होता है। जल स्तंभ (Water Column) के कारण द्रव स्थैतिक दाब समुद्र में गहराई के साथ-साथ बढ़ता जाता है। यह मान सतह पर 1 वायुमण्डलीय दाब के बराबर होता है तथा सर्वाधिक गहराई में यह लगभग 1000 वायुमण्डलीय दाब के बराबर होता है। अधिक गहराई में रहने वाले जीव उच्च दाब के प्रति अनुकूलित होते हैं। सागरीय जीवों को प्रमुख रूप से प्लैंकटन, नेक्टन तथा बेन्थस के रूप में विभाजित किया जाता है।

प्लैंक्टन समुदाय (Plankton Organism)
सागरीय बायोम के प्रकाशित क्षेत्र (Euphotic Zone) और सागर के ऊपरी इपिपेलैजिक मंडल (Epipelagic Zone) तथा सागर तल से 200 मीटर गहरे भाग में जल के ऊपरी भाग पर पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव-जन्तु, पादपों को प्लैंकटन कहते हैं। सूक्ष्म पादप जैसे शैवाल, सूक्ष्म जीव आदि प्लैंकटन समुदाय के जीव हैं। इस श्रेणी के पादपों को फाइटोप्लैकटन (Phytoplankton) तथा जंतुओं को जूप्लैकटन (Zooplankton) कहते हैं। फाइटोप्लैंकटन सूक्ष्म आकार के होते हैं तथा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से अपना भोजन तैयार करते हैं। जूप्लैंकटन फाइटोप्लैंकटन से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। फाइटोप्लैंकटन खाद्य श्रृंखला के प्राथमिक उत्पादक हैं। सागरीय जीव इन पर निर्भर करते हैं।

फाइटोप्लैकटन (Phaytoplankton)

फाइटोप्लैंकटन सूक्ष्म आकार के अत्यधिक जनन क्षमता वाले होते हैं। अत्यन्त कम समय में ये अत्यधिक संख्या में जनन कर देते हैं परन्तु उतनी ही संख्या में जूप्लैंकटन एवं अन्य समुद्री जीवों द्वारा इनका भक्षण हो जाता है। शैवाल तथा डायटम इनके प्रमुख उदाहरण हैं। ये सागरीय जल के ऊपरी भाग पर तैरने वाले हरे पादप हैं। इनका अधिक विकास ठंडे सागरीय क्षेत्रों में होता है और धारा के बहाव के साथ ये अन्य क्षेत्रों में फैल जाते हैं।
इनका विकास इतना तीव्र होता है कि ये बहुत जल्द ही सागरीय जल के आवरण को ढंक देते हैं। ये प्रायः स्वपोषी पादप होते हैं जो प्रकाश संश्लेषण के द्वारा अपना भोजन खुद बनाते हैं। 
गोंयालाक्स एवं जिमोनोडिम प्रजाति के पादपों में अत्यधिक तीव्रता के साथ संख्या में वृद्धि होती है जिससे लाल,भूरे रंग के पौधों का आधिक्य हो जाता है। इस प्रजाति का विकास गर्म समुद्री जलीय क्षेत्रों में होता है। पादप प्लैकटन प्रजाति में कुछ बैक्टीरिया प्रजातियाँ भी शामिल हैं जो गर्म एवं शीत दोनों ही जलीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। ये पादप बैक्टीरिया प्रायः प्रकाशित मण्डल (Euphotic Zone) में ही पाए जाते हैं क्योंकि ये अन्य जीवों पर आश्रित होते हैं। पादप बैक्टीरिया सागर तटीय क्षेत्रों में भी भारी मात्रा में पाए जाते हैं।

जूप्लैंकटन (Zooplankton)
जूप्लैंकटन सागरीय जंतुओं का जीवनरूप है। सागर में 1 मिमी. से लेकर कई मीटर तक के जीव पाए जाते हैं जो पोषण स्तर के आधार पर अलग-अलग होते हैं। इनमें से कुछ मांसाहारी, कुछ शाकाहारी तथा कुछ अवसादपोषित जंतु होते हैं। शाकाहारी जूप्लैंकटन पादपप्लैकटन पर निर्भर होते हैं। ये जूप्लैंकटन पादप प्लैंकटन द्वारा अपना पोषण प्राप्त करते हैं। इन सूक्ष्म जूप्लैंकटन को खाकर बडे मांसाहारी जंतु प्लैंकटन अपना पोषण करते हैं। कुछ जूप्लैंकटन अपने आरंभिक काल में सतह पर रहते हैं तथा बड़े होने पर ये जूप्लैंकटन नेक्टन एवं बेथस की श्रेणियों में आ जाते हैं। कोपपॉड एक प्रमुख जूप्लैंकटन है जो अत्यधिक संख्या में पाया जाता है।

समुद्री घास (Sea Grass)
समुद्री घास विशेष प्रकार की एंजियोस्पर्म (पष्प पादप) है जो घास की तरह प्रतीत होती है। समुद्री घास में विकसित पुष्प खिलते हैं। ये पूरी तरह पत्ती और तने में विभाजित होते हैं। ये समुद्र के शांत, हल्के तथा दलदली तटीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। लवणीय जल में रहने वाले पाद समूहों में ये एकमात्र समूह हैं। ये भारत के तमिलनाडु राज्य के दक्षिण-पूर्वी तटीय क्षेत्र लक्षद्वीप एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह क्षेत्रों में पाई जाती हैं। तमिलनाडु एवं लक्षद्वीप के तटीय क्षेत्रों में लवणता अधिक होने के कारण समुद्री घास की प्रचुरता है।
समुद्री घास भौतिक रूप से अत्यधिक लाभदायक होती है। ये धाराओं की गति तथा आवेग को कम करती है तथा जल से अवसादों को अलग कर देती है। ये तटीय क्षेत्रों पर अवसादों के स्थायित्व को भी बढाती है जिससे अपरदन कम होता है। प्रवाल भित्ति एवं एश्चुअरी क्षेत्रों में समुद्री घास पोषक तत्वों के सिंक (Sink) के रूप में कार्य करती है। यह रासायनिक अवसादों को पोषक तत्वों से अलग कर समुद्री पर्यावरण को स्वस्थ बनाती है। लवणता में वृद्धि, प्रकाश की कमी तथा समुद्री तटों पर इंजीनियरिंग संरचना के कारण समुद्री घास के अस्तित्व पर गंभीर खतरा है।


नेक्टन समुदाय (Nekton Community)
इसके अंतर्गत बड़े आकार वाले तथा शक्तिशाली जन्तु आते हैं। ये धाराओं के विपरीत तैरने में सक्षम होते हैं। इनमें अधिकांश जन्तु कशेरुकी होते हैं।
इस समूह की प्रमुख जन्तु मछली है जिसमें छोटी से लेकर बड़ी मछलियाँ तक शामिल हैं। हेरिंग, प्लेस, कॉड, स्क्विड्स प्रमुख मछलियाँ हैं। अन्य जन्तुओं में सील (प्रजनन स्थल पर लेकिन भोजन सागर में) टूथ व्हेल (Toothed Whales), परभक्षी, डॉल्फिन, सी कॉउ (Sea Cow) आदि शामिल हैं।


बेन्थिक समुदाय (benthic Community)
इस समूह में सागर के तल के समीप रहने वाले पादप व जन्तु आते हैं। इन जन्तुओं में अधिक विविधता पाई जाती है तथा इनकी कुल प्रजातियाँ सागरीय जन्तुओं की समस्त प्रजातियों का लगभग 16 प्रतिशत है।
इस वर्ग के प्रमुख पादपों में सीवीड्स (Seaweeds), बड़े शैवाल, जोस्टेरा (Zostera), टर्टल घास (Thalassia), घास व खरपतवार शामिल है। बेन्थस समूह में कडे खोल में रहने वाले जन्तु अधिक हैं। बाइवेल,मुजेल, ऑयस्टर, स्टारफिश, शार्क, ऑक्टोपस, टैगफिश आदि प्रमुख बेन्थस जन्तु हैं।

बैरियर द्वीप पारितंत्र (Barrier Island Ecosystem)
बैरियर द्वीप पारितंत्र जैव विविधता के प्रमुख स्रोत हैं। सागर में मृदा के अवसाद से इनका निर्माण होता है। बैरियर द्वीप का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है।
हिमयुग की समाप्ति के साथ ही इनके निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। बैरियर द्वीप तटीय क्षेत्र को तूफान (सुनामी) आदि से बचाते हैं। यह स्थल व जलीय पारितंत्र के बीच का एक तंत्र है जिसमें दोनों प्रकार की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इस क्षेत्र की सीमा परिवर्तित होती रहती है।


तट रेखा पारितंत्र (Shoreline Ecosystem)
इस पारितंत्र को अंतरज्वारीय पारितंत्र भी कहा जाता है। इसे पथरीले तथा रेतीले तट में बाँटा जाता है। यह अत्यधिक जैवविविधता वाला क्षेत्र होता है एवं निम्न ज्वार तथा उच्च ज्वार के क्षेत्र के बीच में पाया जाता है।
यह क्षेत्र जलधारा, लवणता, तापमान, आर्द्रता पर निर्भर करता है।


इस क्षेत्र को स्प्रे जोन (Spray Zone), उच्च टाइड जोन (High Tide Zone) मध्य टाइड जोन (Middle Tide Zone), निम्न टाइड जोन (Low Tide Zone) में विभाजित किया जाता है। इस पारितंत्र में बाइवेल्स (Bivalves), ब्रीटल स्टार (Brittle Star), क्लैम (Clam), केकड़ा, हरमिट क्रेब (Hermit Crab), लीमपेट (Limpet), ऑयस्टर (Oyster), सी स्टार, स्टारफिश, जन्तुप्लवक, घोंघा (Snail) आदि पाए जाते हैं।

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