संविधान सभा की कार्यप्रणाली।
संविधान सभा की कार्यप्रणाली
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई। मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिष्कार किया और अलग पाकिस्तान की मांग पर बल दिया। इसलिए बैठक में केवल 211 सदस्यों ने हिस्सा लिया। फ्रांस की तरह इस सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया।बाद में डा. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उसी प्रकार, डा. एच.सी. मुखर्जी तथा वी.टी. कृष्णामचारी सभा के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए। दूसरे शब्दों में संविधान सभा के दो उपाध्यक्ष थे।
उद्देश्य प्रस्ताव 13 दिसंबर, 1946 को पंडित नेहरू ने सभा में ऐतिहासिक उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया। इसमें संवैधानिक संरचना के ढांचे एवं दर्शन की झलक थी।
इसमें कहा गया:
इसमें कहा गया:
- यह संविधान सभा भारत को एक स्वतंत्र, संप्रभ गणराज्य - घोषित करती है तथा अपने भविष्य के प्रशासन को चलाने के लिये एक संविधान के निर्माण की घोषणा करती है।
- ब्रिटिश भारत में शामिल सभी क्षेत्र, भारतीय राज्यों में शामिल सभी क्षेत्र तथा भारत से बाहर के इस प्रकार के सभी क्षेत्र तथा वे अन्य क्षेत्र, जो इसमें शामिल होना चाहेंगे, भारतीय संघ का हिस्सा होगे।
- उक्त वर्णित सभी क्षेत्रों तथा उनकी सीमाओं का निर्धारण संविधान सभा द्वारा किया जायेगा तथा इसके लिये उपरांत के नियमों के अनुसार यदि वे चाहेंगे तो उनकी अवशिष्ट शक्तियां उनमें निहित रहेंगी तथा प्रशासन के संचालन के लिये भी वे सभी शक्तियां, केवल उनको छोड़कर, जो संघ में निहित होंगी, इन राज्यों को प्राप्त होंगी;
- संप्रभु स्वतंत्र भारत की सभी शक्तियां एवं प्राधिकार, इसके अभिन्न अंग तथा सरकार के अंग, सभी का स्रोत भारत की जनता होगी।
- भारत के सभी लोगों के लिये न्याय, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता एवं सुरक्षा, अवसर की समता, विधि के समक्ष समता, विचार एवं अभिव्यक्ति, विश्वास, भ्रमण, संगठन बनाने आदि की स्वतंत्रता तथा लोक नैतिकता की स्थापना सुनिश्चित की जायेगी;
- अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों तथा जनजातीय क्षेत्रों के लोगों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जायेगी;
- संघ की एकता को अक्षुण्ण बनाये रखा जायेगा तथा इसके भू-क्षेत्र, समुद्र एवं वायु क्षेत्र को सभ्य देश के न्याय एवं विधि के अनुरूप सुरक्षा प्रदान की जायेगी।
- इस प्राचीन भूमि को विश्व में उसका अधिकार एवं उचित स्थान दिलाया जायेगा तथा विश्व शांति एवं मानव कल्याण को बढ़ावा देने के निमित्त, उसके योगदान को सुनिश्चित किया जायेगा।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने सभा की स्थिति में निम्न तीन परिवर्तन किए:
संविधान के निर्माण और आम कानूनों को लागू करने के अलावा संविधान सभा ने निम्न कार्य भी किए:
24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई। इसके बाद सभा ने 26 जनवरी, 1950 से 1951-52 में हुए आम चुनावों के बाद बनने वाली नई संसद के निर्माण तक भारत की अंतरिम संसद के रूप में काम किया।
- सभा को पूरी तरह संप्रभु निकाय बनाया गया, जो स्वेच्छा से कोई भी संविधान बना सकती थी। इस अधिनियम ने सभा को ब्रिटिश संसद द्वारा भारत के संबंध में बनाए गए किसी भी कानून को समाप्त करने अथवा बदलने का अधिकार दे दिया।
- संविधान सभा एक विधायिका भी बन गई। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सभा को दो अलग-अलग काम सौंपे गए। इनमें से एक था-स्वतंत्र भारत के लिए संविधान बनाना और; दूसरा था, देश के लिए आम कानून लागू करना। इन दोनों कार्यों को अलग-अलग दिन करना था। इस प्रकार संविधान सभा स्वतंत्र भारत की पहली संसद बनी। जब भी सभा की बैठक संविधान सभा के रूप में होती, इसकी अध्यक्षता डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद करते और जब बैठक बतौर विधायिका होती तब इसकी अध्यक्षता जी.वी. मावलंकर करते थे। संविधान सभा 26 नवंबर, 1949 तक इन दोनों रूपों में कार्य करती रही। इस समय तक संविधान निर्माण का कार्य पूरा हो चुका था।
- मुस्लिम लीग के सदस्य (पाकिस्तान में शामिल हो चुके क्षेत्रों से सम्बद्ध) भारतीय संविधान सभा से अलग हो गए। इसकी वजह से सन 1946 में माउंटबेटन योजना के तहत तय की गई सदस्यों की कुल संख्या 389 सीटों की बजाय 299 तक आ गिरी। भारतीय प्रांतों (औपचारिक रूप से ब्रिटिश प्रांत) की संख्या 296 से 229 और देसी रियासतों की संख्या 93 से 70 कर दी गई। 31 दिसंबर, 1947 को राज्यवार सदस्यता को अध्याय के अंत में तालिका संख्या 2.4 में प्रस्तुत किया गया है।
संविधान के निर्माण और आम कानूनों को लागू करने के अलावा संविधान सभा ने निम्न कार्य भी किए:
- इसने मई 1949 में राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता का सत्यापन किया।
- इसने 22 जुलाई, 1947 को राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया।
- इसने 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गान को अपनाया।
- इसने 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गीत को अपनाया।
- इसने 24 जनवरी, 1950 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना।
24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई। इसके बाद सभा ने 26 जनवरी, 1950 से 1951-52 में हुए आम चुनावों के बाद बनने वाली नई संसद के निर्माण तक भारत की अंतरिम संसद के रूप में काम किया।