क्या था Y2K संकट
- साल 2000 की शुरुआत हो रही थी। ये वो दौर था जब दुनिया 20वीं सदी से 21वीं सदी में जा रही थी। लेकिन इन सब के बीच एक ऐसी दिक्कत की नयी शताब्दी की खुशी कहीं उड़ गयी । वजह थी ‘वाई 2के' बग, जो ये मानने को तैयार नहीं था कि 20वीं सदी अब खत्म हो चुकी है। इसने पूरी दुनिया के कंप्यूटर नेटवर्क को इसी गलतफहमी का शिकार बनाए रखा।दुनियाभर के कम्प्यूटर सिस्टम 31 दिसंबर, 1999 से आगे का साल बदल पाने में सक्षम नहीं थे। यह समस्या केवल तब तक रही, जब तक भारतीय कम्प्यूटर इंजीनियर्स ने ऐसे कम्प्यूटरों को 21वीं सदी का बनाकर नहीं छोड़ा।
- ‘वाई 2के' में वाई साल (ईयर) को दिखाता है, तो वहीं 2के का मतलब है 2000 । साल 1999 खत्म होकर साल 2000 शुरू होने वाला था, लेकिन दुनियाभर के कंप्यूटर सिस्टम 31 दिसंबर, 1999 से आगे का साल बदल पाने के काबिल नहीं थे।
- अमेरिका और यूरोप में कंप्यूटरों को इस तरह बनाया गया था कि उनमें साल 2000 और उससे आगे के सालों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। मसलन अमेरिका में तमाम कंप्यूटर गिनतियाँ महीना-दिन-साल (MM-DD-YY) की तर्ज पर बनायी गयी थी। साल केवल दो अंकों में था, इसलिए 1999 के बाद जब सन 2000 आया जहाँ भारत के ही हुनरमंद युवा ताकत थी जिसने पूरी दुनिया को Y2K संकट से उबारा ।
- बैंकिंग सेवाएं इससे पूरी तरह बंद होने वाली थीं,पावर ग्रिड फेल हो जाते और उनसे जुडी सभी सेवाएं बाधित हो सकती थीं, जैसे रेल, पानी आपूर्ति आदि। इसके अलावा कंप्यूटर आधारित सैटेलाइट्स , अंतरिक्ष कार्यक्रम भी इससे बुरी तरह प्रभावित होने की कगार पर थे। इस तरह कंप्यूटर प्रणाली से जुडी सभी गतिविधियां बाधित होने वाली थी।
भारत ने सुलझाई समस्या
- रोजमर्रा के कामों का पटरी से उतरता देख यूरोप-अमेरिकी कंपनियों में हाहाकार मच गया। इन सभी दिक्कतों को दूर करने के लिए सारे कंप्यूटर को नए सिरे से बदलने की जरुरत थी जिसके लिए बड़ी तादाद में कंप्यूटर इंजीनियरों की जरूरत थी। उस समय तक भारत में इंफोसिस, विप्रो जैसी आईटी कंपनियों की शुरूआत हो चुकी थी। भारत में उस समय सस्ता मानव संसाधन किसी भी देश के मुकाबले पर्याप्त था। इसके अलावा भारत के पास हुनरमंद इंजीनियर की भी कमी नहीं थी।
- यही वजह थी कि ऐसे वक्त में अमेरिका और यूरोप की कंपनियों का ध्यान भारत की ओर गया। भारत के हुनरमंद युवाओं ने भी इनको निराश नहीं किया और दुनिया भर में अपनी ताकत का लोहा मनवाया।
- हालांकि इस समस्या को ठीक करने में काफी धन खर्च हुआ। किसी ने इस समस्या को सुधारने के लगभग 5 साल के दौरान 200 से 300 बिलियन यूएस। डॉलर के खर्चे का अनुमान लगाया गया। वहीं एक अन्य अनुमान के मुताबिक वाई 2के बग को सही करने के लिए विश्व भर को 600 से 1,600 बिलियन यूएस डॉलर खर्च करने पड़े।
- इंफोसिस की तरह से ही आईआईएस इन्फोटेक उन 100 से ज्यादा भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक थी, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के वाई 2के बग को ठीक करने के काम में जुटी हुई थी। इसके बाद तो भारत की सॉफ्टवेयर कंपनियों ने ऐसी उड़ान भरी कि उसको रोक पाना नामुमकिन सा लगने लगा। 1999 से शुरू हुआ भारत का आईटी और सेवा निर्यात 2010 तक तमाम भविष्यवाणियों को तोड़ते हुए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया। वहीं, उस समय भारतीय तकनीकी कंपनियों के कुल राजस्व का लगभग 40 प्रतिशत विदेशी कंपनियों से वाई 2के बग को दुरुस्त करने को मिले कॉन्ट्रैक्ट्स से आता था।
- आईआईएस ने सॉफ्टवेयर को वाई 2के अनुरूप बनाने के लिए कोड को फिर से लिखा। आईआईएस इन्फोटेक ने अपने विदेशी ग्राहकों की एक ब्ल्यू चिप सूची बनाई, जिसमें सिटीबैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस, जी.ई. और पुडेंशियल जैसी बड़ी अमेरिकन कंपनियां शामिल थीं।
- अधिकांश उन्नत देशों में 20वीं सदी से 21वीं सदी के बदलते दौर और ‘वाई 2के' बग समस्या को ठीक करने के लिए भारतीय नागरिक अहम भूमिका निभाते है।
- शायद यही बड़ा कारण था कि माइक्रोसॉफ्ट और आईबीएम जैसी कई अन्य कंपनियों ने भी भारतीय कंपनियों को इस काम के लिए आउटसोर्सिंग सौप दी।