आजाद भारत का पहला चुनाव
आजाद भारत का पहला चुनाव 1951 से 1952 के बीच हुआ था
- 1935 में अंग्रेजो ने भारत को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत चुनाव कराने का अधिकार दिया था। 1937 में पहली बार भारत में प्रांतीय सभाओं के चुनाव हुए। लेकिन ये चुनाव अंग्रेजो के अधीन हुए थे इसलिए लिए इसे भारत के पहले चुनाव के रूप में नहीं देखा जाता। 1937 में हुए चुनावों के 2 साल बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। भारतीय आवाम की मंजूरी के बिना ही ब्रिटिश सरकार ने भारत को युद्ध में धकेल दिया।
1945 द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था। तमाम आंदोलनों और दुश्वारियों के बाद भारत को आजादी मिलनी थी। लेकिन अंग्रेज अधिकारी भारत में को आजाद करने से पहले भारत में एक संविधान चाहते थे। ताकि भारत आजाद होने के बाद इसी आधार पर शासन करे।
- जुलाई 1946 ये वो तारीख है जब भारतीय संविधान सभा के लिए पहली बार चुनाव हुए। संविधान सभा के चुनाव के बाद 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई। सभा के सबसे उम्रदराज सदस्य रहे डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष बनाया गया। बाद में 11 दिसम्बर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उस वक्त मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया था और अपने लिए अलग से संविधान सभा की मांग की।
15 अगस्त 1947 देश विभाजन के बाद संविधान सभा का फिर से गठन हुआ। ये गठन 31 अक्टूबर 1947 को हुआ जिसमें संविधान सभा के लिए कुल 299 सदस्यों को चुना गया। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 को अपना सारा काम पूरा कर लिया था जिसके बाद
26 जनवरी 1950 से संविधान पूरे भारत भर में लागू हो गया। भारतीय संविधान में आर्टिकल 324 से 329 के बीच लगभग पूरी चुनाव प्रक्रिया का जिक्र है। आजादी मिलने के बाद भारत में संविधान के इन्हीं नियमों के मुताबिक चुनाव होते रहे हैं।
- उस वक्त भी संविधान के इन्हीं नियमों के मुताबिक चुनाव होने थे। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण भारत के इलाकों में चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं था। अशिक्षा और गरीबी जैसे हालात भारत को पीछे धकेल रहे थे। अंग्रेजों से आजादी मिलने के 5 साल बाद भी देश की तस्वीर में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया था। इसके अलावा भारत को जबरन द्वितीय विश्व में शामिल किए जाने का भी खामियाजा भुगतना पड़ा था। द्वितीय विश्व युद्ध के चलते भारत को भारी मात्रा में जान और माल का नुकसान सहना पड़ा था।
तथा 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद से ही लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव कराए जाने की कवायद शुरू हो गई थी। पंडित नेहरू समेत देश के कई अन्य वरिष्ठ राजनेता भी लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव कराने के पक्ष में थे। देश के राजनीतिक और सामाजिक हालातों को सुधारने के लिए भारत में चुनाव की सख्त जरूरत थी। लेकिन साल 1950 में बने चुनाव आयोग के लिए नियम कायदे तैयार करने की मुश्किलें बरकरार थी।
- संविधान बनने के बाद ही चुनाव आयोग का गठन हो गया था। हालांकि इसे चलाने के लिए नियम और कायदों की जरूरत थी। ऐसे में भारत के एक तेजतर्रार I.C.S अधिकारी रहे सुकुमार सेन को चुनाव करने की जिम्मेदारी दी गई। इस जिम्मेदारी के बाद सुकुमार सेन भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए। सुकुमार सेन के चुनाव की तैयारियों के लिए जी तोड़ मेहनत की। लोकसभा चुनाव के साथ-साथ कुछ राज्यों की विधानसभाओं में भी चुनाव चुनाव होने थे। उस वक्त भारत की आबादी करीब 36 करोड़ थी, जिसमें लगभग 17 करोड़ लोग वयस्क मतदाता थे।
चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने देश की जनसंख्या का आंकड़ा इकट्ठा किया और मतदाता सूची बनाई। चुनाव आयोग को आंकड़े जुटाने में काफी समस्याएं आई।
चुनाव अधिकारियों के मुताबिक बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मतदाता सूची बनाने में उन्हें सबसे ज्यादा मुश्किल मालूम हुई। दरअसल इन राज्यों की ग्रामीण महिलाएं किसी बाहरी व्यक्ति को अपना नाम बताने से कतराती थीं। इस वजह से इन राज्यों की करीब 28 लाख महिलाओं ने अपने नाम नहीं बताए और वो चुनाव में शामिल नहीं हो सकीं।
- भारत के पहले चुनाव के दौरान अशिक्षा सबसे बड़ी समस्या थी। करीब 15 फीसदी भारतीय ही उस दौर में शिक्षित थे। ज्यादातर मतदाता किसी उम्मीदवार का नाम पढ़ कर वोट देने में सक्षम नहीं थे। चुनाव आयोग के सामने ये सबसे गंभीर समस्या थी। हालाँकि चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने इस समस्या का भी हल ढूंढ लिया। चुनाव आयोग ने हर पार्टी और उम्मीदवार के लिए एक निर्धारित रंग की मतपेटी तैयार की। ताकि आम आदमी रंग और चुनाव चिन्ह के आधर पर उम्मीदवार की पहचान करले और वोट डाले। चुनाव आयोग ने मतदान के लिए लगभग दो करोड़ लोहे की मतपेटियां भी बनवाई थी। लोकसभा के पहले चुनाव में मताधिकार का अधिकार 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों को ही दिया गया।
आजाद भारत में पहली बार चुनाव होना था। दुनिया भर की निगाहें भारत के इस चुनाव पर टिकी हुई थी। साथ ही अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों के अधिकारी भी भर में मौजूद थे।
तमाम तैयारियों और 2 बार चुनावों को खारिज करने के बाद आखिरकार 25 अक्टूबर 1951 को मतदान शुरू हो गए। ये आजाद भारत का पहला चुनाव था।
- पहले लोकसभा चुनाव में करीब 4500 सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें लोकसभा की 489 सीटों के अलावा अन्य राज्यों की विधानसभा सीटें शामिल थी। पहले लोकसभा चुनाव के लिए लगभग 22 हजार से भी अधिक पोलिंग बूथ बनाये गए। चुनाव प्रक्रिया को समझाने और मतदान करने की जागरूकता के लिए चुनाव आयोग ने रेडियो और फिल्मों का सहारा लिया। चुनाव प्रक्रिया को समझने के लिए एक डॉक्यूमेंट्री भी बनवाई गई जिसे देश के करीब 3 हजार से अधिक थियेटरों में कई हफ्तों तक नि:शुल्क दिखाया गया।
25 अक्टूबर 1951 को शुरू हुआ मतदान फरवरी 1952 तक चला था। भारत में पहली बार लगभग 17 करोड़ पुरूषों और महिलाओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया गया था। 53 राजनीतिक दलों के करीब 1874 उम्मीदवारों ने पहली लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई। लोकसभा के पहले आम चुनाव में 14 राष्ट्रीय स्तर और बाकी क्षेत्रीय पार्टियां शामिल थी।
- लोकसभा के पहले आम चुनाव में रहीं मुख्य राजनीतिक पार्टियों में कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा किसान मजदूर प्रजा पार्टी शामिल थी। स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी 489 में से कुल 364 सीटें जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस को कुल वोटों में से क़रीब 45 फीसदी वोट मिला था। उस वक्त कांग्रेस की ओर से जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और गुलजारी लाल नंदा जैसे नेता कांग्रेस के चुनाव प्रचार में शामिल थे। जवाहरलाल नेहरू उत्तर प्रदेश की फूलपुर सीट से चुनाव लड़ा था और वो भारी मतों से विजयी होकर भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
1952 का चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। पहले लोकसभा चुनाव में 3 लाख से अधिक चुनाव अधिकारीयों और चुनाव कर्मियों को चुना गया। आजाद हिन्दुस्तान के पहले लोकसभा के देश के किसी भी कोने से हिंसा की खबर नहीं आई और चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गए।