पादप आकारिकी (Plant Morphology)

पादप आकारिकी (Plant Morphology)

आकारिकी शब्द का अर्थ होता है बाह्य संरचना का अध्ययन। पादप आकारिकी का अर्थ है पादप की बाह्य संरचना का अध्ययन। अर्थात् इसके अंतर्गत पादप की सभी बाहर से दिखने वाली संरचनाओं का अध्ययन किया जाता है। एक पादप को बाहर से दिखने पर उसमें जड़ (Root), तना (Stem), पत्ते (Leaves), फूल (Flower), फल (Fruit), छाल (Bark) आदि दिखाई पड़ते हैं, पादप आकारिकी के अंदर इन्हीं संरचनाओं का अध्ययन किया जाता है।
आकारिकी जीव विज्ञान की वह शाखा होती है जो अंगों की कार्य पद्धति से अधिक महत्व उनके आकार, आकृति, रंग, रूप और रूप में रूपान्तरण, शरीर में उनके स्थान को देती है।
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पादप आकारिकी के अंतर्गत भी पादप के इन अंगों के कार्यों से अधिक बल इन्हीं बातों पर दिया जाता है। वैसे तो थैलोफाईटा से लेकर एन्जियोस्पर्म तक सभी को व्हिटेकर ने पादप जगत (Kingdom Plantee) में सम्मिलित किया है, किन्तु निम्न पादपों (थैलोफाईटा, ब्रायोफाईटा, टेरिडोफाईटा, एंव जिम्नोस्पर्म) में एक पादप को निरूपित करने वाले सभी अथवा कुछ अंगों का अभाव होता है, अतः अन्य पादपों की आकारिकी का संक्षिप्त परिचय देते हुए पादपों के आकारिकी का अध्ययन एक एन्जियोस्पर्म पादप को ध्यान में रखकर किया जाता है। क्योंकि एक आदर्श एन्जियोस्पर्म (Angiosperm plant) में उपर्युक्त अधिकांश अंग पाये जाते हैं।

पादपों की आकारिकी का तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study of Plant Anatomy)

थैलोफाईटा आदिम प्रकार के पादप होते हैं। इनका शरीर जड़ तना, पत्तो में विभेदित नहीं होता। इनका शरीर सुकाय (Thallus) कहलाता है। ब्रायोफाईटा का शरीर जड़, तना तथा पत्ती में विभेदित होता है परंतु इनमें फूल तथा फल नही पाये जाते हैं, इन पादपों का संपूर्ण शरीर प्रकाशसंश्लेषण योग्य होता है तथा इनकी भूमि से ऊँचाई अधिक नहीं होती अतः इन्हें जल तथा खनिज लवणों के वहन के लिए संवहन ऊतकों की आवश्यकता नहीं होती, अतः इनमें संवहन ऊतकों का अभाव होता है। टेरिडोफाईटा ब्रायोफाईटा की तुलना में थोड़े अधिक विकसित पादप होते हैं, प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया मुख्य रूप से पत्तियों में होती है, तथा इन पादप भूमि से अधिक ऊँचाई तक उठे होते हैं। इन पादपों में संवहन ऊतक उपस्थित होते हैं परंतु इनमें जनन अंग (पुष्प) अनुपस्थित होते हैं। जिम्नोस्पर्म पादपों की कुछ जातियों में पृथ्वी पर उपस्थित पादपों में सबसे ऊँचे पादप पाये जाते हैं।
ये पादप बहुवर्षीय तथा काष्ठीय होते हैं। इनकी शाखाएँ तथा पत्तियाँ कोन जैसी संरचना का निर्माण करते हैं अतः इनकों शंकुधारी वृक्ष (Coniferous trees) कहते हैं। ये वृक्ष काष्ठीय होते हैं तथा जनन अंग के रूप में इनमें पुष्प तो नहीं परंतु कोन पाये जाते हैं। इन पादपों में भी फलों का अभाव होता है।

एन्जियोस्पर्म पादप की आकारिकी (Morphology of Angiosperm)

एन्जियोस्पर्म पादप के पूरे शरीर को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) प्ररोह तंत्र (Shoot system) : यह भूमि के ऊपर रहने वाला भाग होता है। बीजों के अंकुरण के समय प्ररोह तंत्र का निर्माण प्लूमूल (Plumule) से होता है। प्ररोह तंत्र में मुख्य रूप से तना, शाखाएँ, पत्तियाँ, फूल, फल आदि सम्मिलित होते हैं। प्ररोह तंत्र का वृद्धि गुरूत्वाकर्षण के विपरीत एवं प्रकाश की ओर होता है।

(2) जड़ तंत्र (Root System) : यह भूमि के नीचे रहने वाला भाग है। मूसला जड़ों का निर्माण बीजों के अंकुरण के समय रेडिकल (Radicle) से होता है जबकि रेशेदार जड़ों के संदर्भ में रेडिकल नष्ट हो जाते हैं और यह प्ररोह की पर्वसंधयों से उत्पन्न होता है। जड़ तंत्र में प्राथमिक जड़ (Primary root) द्वितीयक जड़ (Secondary root) तथा मूल रोम (Root hairs) सम्मिलित होते हैं। पादप का यह भाग गुरूत्वाकर्षण की ओर तथा प्रकाश के विपरीत वृद्धि करता है।

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एन्जियोस्पर्म पादप उनके आकार एवं शरीर की बनावट के आधार पर तीन प्रकारों में विभक्त किये जा सकते हैं-

(1) शाक (Herb) : ये छोटे आकार के पादप होते हैं, सामान्यतः ये पौधे एकवर्षीय होते हैं, इनके तने सदैव हरे एवं कोमल बने रहते हैं, इनमें कमजोर रेशेदार जड़ें (Fibrous root) पाई जाती हैं, जो भूमि पर के ऊपरी सतह तक ही विस्तृत रहती है, ये एकबीजपत्रीय पादप होते हैं, अर्थात् इनमें से अधिकांश के बीजों में मात्र एक बीजपत्र होता है, इनकी पत्तियों में समानान्तर शिरा विन्यास पायी जाती है।
उदाहरण-, धान, पालक, मेथी, धनिया आदि।

(2) झाड़ी (Shrub) : ये मध्यम ऊँचाई के पादप होते हैं। ये बहुवर्षीय पादप होते हैं और इनके तने पतले होने के बाद भी काष्ठीय होते हैं, ये अधिकांशः द्विबीजपत्रीय पादप होते हैं। इनमें मूसला जड़ें होती हैं, जो भूमि में अधिक गहराई तक जाती हैं। इनकी पत्तियों में जालीदार शिरा विन्यास आदि।
उदाहरण- गुड़हल, आक, गुलाब तुलसी आदि।

(3) वृक्ष (Tree) : ये अधिक ऊँचाई वाले बहुवर्षीय पादप होते हैं। इनके तने काष्ठीय एवं अपेक्षाकृत मोटे होते हैं, कुछ पेड़ों के तनों पर छाल का भी विकास होता है। इनमें मूसला जड़ें पायी जाती हैं। इनके पत्तियों में जालीदार शिरा विन्यास पाया जाता है।
उदाहरण- साल, सागौन, पीपल, नीम आदि।
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पादप के विभिन्न अंगों का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction of different parts of Plants)

तना (Stem)
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पौधे के प्ररोह तंत्र का वह भाग जो प्रारोह तंत्र के अन्य अंगों को आधार देता है. तथा जड़ से जुड़ा रहता है. तना कहलाता है। अलग-अलग आकार-प्रकार के पौधों के तनों में भिन्नता होती है, जैसे हर्ब के तने सदैव हरे बने रहते हैं,
जबकि वृक्षों के तने काष्ठीय हो जाते हैं और उनपर सख्त छाल का निर्माण हो जाता है। तने में प्रकाश की ओर वृद्धि करने की प्रवृत्ति होती है, एक अँधेरे कमरे में रखा पौधा खिड़की की ओर मुड़ जाता है, क्योंकि खिड़की से पौधे को प्रकाश मिलता रहता है।

तने की आकारिकी (Morphological Structure of Stem)
एक आदर्श तने में निम्न विशेषताएँ पायी जाती हैं-

(1) पर्वसंधि (node) की उपस्थिति : यह तनों पर पाई जाने वाली गाँठें होती हैं, जिनसे पत्तियाँ एवं शाखाएँ निकलती हैं। गन्ने में पर्व बहुत ही आसनी से दिखते हैं।

(2) पर्व (Internodes) की उपस्थिति : दो पर्वसंधियों के बीच के स्थान को पर्व कहा जाता है।

(3) गुरूत्वाकर्षण के विपरीत एवं प्रकाश की ओर वृद्धि

रूपान्तरित तने (Modefied Stems)

जनन के लिए : कुछ पौधों के तनों में कायिक जनन (Vegetative reproduction) के लिए तनों के आकार में रूपान्तरण होता है। ये तने सीधे (प्रकाश की दिशा में और गुरूत्वाकर्षण के विपरीत वृद्धि करने के बजाय जमीन के समांतर वृद्धि करने लगते हैं। इन पौधों को स्टोलन (Stolon) या रनर (Runner) कहते हैं। ये अधिकांशतः कम ऊंचाई के शाक या झाड़ियाँ होती हैं।
उदाहरण- घाँस (दूब घाँस) स्ट्रॉबेरी आदि।
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सहारा देने के लिए : विभिन्न प्रकार की लताओं के तने अत्यंत कमजोर होते हैं, तथा सीधे खड़े नहीं रह सकते। उनके तने स्प्रिंग जैसी संरचना में परिवर्तित हो जाते हैं, जिन्हें टैन्ड्रिल (Tendril) कहते हैं। ये टैन्ड्रिल आस-पास के किसी अन्य पादप, या अन्य सहारे को पकड़ कर पौधे को ऊपर उठने के लिए सहारा प्रदान करते हैं।
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उदाहरण- एन्टीगोनॉन, मटर, लौकी आदि।

भोजन के निर्माण के लिए : कुछ पौधों के तने प्रकाशसंश्लेषण करने के लिए चौड़े, हरे हो जाते हैं ताकि वे भोजन के निर्माण में सहयोग दे सकें। इस प्रकार के तनों को क्लेडोड (Cladode) और क्लैडोफिल्स (Cladophills) कहते हैं।
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वाष्पोत्सर्जन कम करने के लिए : कुछ पौधों के तने मॉसल हो जाते हैं और भोजन का संग्रह करते हैं। उनके रंध्र अंदर की ओर धंस जाते हैं, जिससे उनके द्वारा होने वाली जल की हानि कम हो जाती है। इस प्रकार का रूपान्तरण सामान्यतः मरूस्थलों में मिलने वाले पादपों में पाया जाता है। इस प्रकार के तनों को succulant stems कहा जाता है।
उदाहरण- नागफनी

सुरक्षा के लिए : कुछ पौधों के तनों के कुछ हिस्से कॉटों में परिवर्तित हो जाते हैं, या संपूर्ण तने पर ही कॉटे उग आते हैं। यह रूपान्तरण पौधों की सुरक्षा में सहायक होता है।
उदाहरण- बबूल, नागफनी आदि।

भोजन संग्रह के लिए : भोजन संग्रह के लिए पौधों के तनों में अनेक प्रकार के रूपान्तरण होते हैं।

(1) बल्ब (Bulb) - उदाहरण- प्याज, लीली आदि ।

(2) ट्यूबर (Tuber) - उदाहरण- आलू आदि।

(3) क्राउन (Crown) - उदाहरण- मकड़ी पादप (Spider plant)

(4) कोर्म (Corms) - उदाहरण- लहसून

आलू में तने का रूपान्तरण बहुत ही स्पष्ट दिखाई देता है। आलू मे जो छोटी गर्त या पतली दरार जैसी संरचना पाई जाती है, वह तने की पर्वसंधि (node) होती है, और दो पर्वसंधियों के बीच का भाग पर्व होता है, आलू को बोते समय जड़ एवं प्ररोह की उत्पत्ति इन्हीं पर्वसंधियों से होती है।

पत्तियाँ (Leaves)

पत्ते पादप के प्ररोह तंत्र के अंग होते हैं, एक पादप में इनकी संख्या अनिश्चित होती है। ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करके पौधों के लिए भोजन बनाने का कार्य करते हैं। क्लोरोफिल के अतिरिक्त भी कुछ पत्तियों में अनेक वर्णक पाये जाते हैं, जिन्हें क्रोमोप्लास्ट (Chromoplast) कहते हैं। वास्तव में क्लोरोप्लास्ट हरे रंग के क्रोमोप्लास्ट होते हैं। सामान्यतः पत्तियाँ चौडी, दो सतहों वाली (पृष्ठ और पार्श्व) चपटी संरचनाएँ होती हैं जिनमें शिराएँ फैली होती हैं।

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आकृति एवं आकार के आधार पर पत्तियों के प्रकार-

(1) गोलाकार पत्तियाँ, उदाहरण- शीशम

(2) लंबी शंक्वाकार पत्तियाँ, उदाहरण- नीलगिरी

(3) लंबी तर्कुरूप पत्तियाँ, उदाहरण- लीली

(4) बीच से दो भागों में विभक्त पत्तियाँ- कोयनार, सोनपत्र

(5) किनारों से कटी हुई पत्तियाँ उदाहरण- नील, गुलाब आदि।

(6) सुई की आकृति की पत्तियाँ- पाइनस आदि।

कई बार एक बड़ी पत्ति कुछ छोटी परित्यों में विभक्त हो जाती है, इन छोटी पत्तियों को पत्रक (Leaflet) कहते हैं। उदाहरण के तौर पर बेल की पत्तियाँ त्रिपत्रक (Trifoliate) होती है, इसी प्रकार सेमल की पत्तियाँ पंचपत्रकयुक्त (Pentafoliate) होती हैं।

रूपान्तरित पत्तियाँ (Modefied leaves)

भोजन संग्रह के लिए : इस प्रकार की पत्तियाँ मॉसल हो जाती हैं। उदाहरण- इलायची, ब्रायोफिलम आदि।

सुरक्षा के लिए : सुरक्षा के लिए कुछ पादपों की पत्तियों पर कॉटे उग आते हैं। उदाहरण- नागफनी आदि।

प्रजनन के लिए : ये कायिज जनन में सहायक होती हैं। उदाहरण- ब्रोयोफिलम (पत्थरचट्टा)

सहारे के लिए : कुछ पौधों की पत्तियाँ सहारे के लिए टैन्ड्रिल (Tendrill) में परिवर्तित हो जाती हैं।

नाइट्रोजन ग्रहण के लिए : कुछ पौधों की पत्तियाँ नाइट्रोजन ग्रहण करने के लिए अत्यधिक रूपान्तरित हो जाती हैं। उदाहरण- घटपर्णी आदि।

वाष्पोत्सर्जन कम करने के लिए : कुछ मरूस्थलीय पादपों के पत्ते मॉसल हो जाते हैं और उनके रंध्र अंदर धंस जाते हैं जिससे वास्पोत्सर्जन कम हो जाता है। उदाहरण- नागफनी।

पुष्प (Flower)
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पुष्प पौधे के जनन अंग होते हैं । पुष्प मात्र एन्जियोस्पर्म पादपों में ही पाये जाते हैं। एक आदर्श फूल चार भागों से मिलकर बना होता है-

(1) बाह्यदल (कैलिक्स) (Calyx) इसकी एक इकाई सेपल (Sepal) कहलाती है।

(2) दल (करोला) (Corolla) इसकी इकाई पेटल (Petal) कहलाती है।

(3) पुंकेसर (Androecium) इसकी इकाई स्टेमिन (Stemen) कहलाती है। (नर जननांग)

(4) स्त्रीकेसर (Gyenoecium) इसकी इकाई पिस्टिल (Pistil) कहलाती है। (मादा जननांग)

पुष्प भी पौधों के तनों एवं शाखाओं के पर्वसंधियों से उगते हैं, पुष्प वास्तव में अत्यधिक रूपान्तरित पत्तियाँ ही होती हैं, जो जनन कार्य के लिए रूपान्तरित हो जाती हैं। फूल जिस छोटी शाखा के द्वारा पौधे से जुड़ी होती है (डंडी जो पुष्प के थैलेमस से निकलती है) उसे रैकिस कहा जाता है। रैकिस में कई बार मात्र एक ही पुष्प होता है, कई बार इसमें अनेक पुष्प होते हैं, रैकिस में पुष्पों के खिलने का क्रम एवं व्यवस्था को पुष्पविन्यास (Infloresence) कहलाता है।

Infloresence के प्रकार

(1) एकल पुष्प (Solitary Flower) : एक रैकिस पर एक ही पुष्प लगा होता है। उदाहरण- लीली, पीली कॅटेली (Argimon maxicana), गुलाब आदि।

(2) रेसिमोज पुष्प विन्यास (Racimose Infloresence) : रैकिस पर सबसे बड़ा और प्रौढ़ पुष्प आधार पर होता है, और ऊपर की ओर छोटे फूल होते हैं, इसकी विशेषता है कि ऊपर की कलियाँ अधिकांशतः खिल नहीं पाती। उदाहरण- रजनीगंधा, गुलमोहर आदि।

(3) साइमोज पुष्प विन्यास (Cymose Infloresence) : रैकिस पर सबसे प्रौढ़ फूल ऊपर होता है, और छोटे फूल तथा कलियाँ क्रमशः आधार की ओर होती हैं।

(4) अम्बल (Umble) : इसमें रैकिस से अनेक शाखाएँ निकलती हैं, इन सभी शाखाओं के शीर्ष पर फूल खिलते हैं, और एक छाते जैसी संरचना बनाते हैं, जिस कारण इसे अम्बल कहते हैं। उदाहरण- सौंफ, जीरा आदि।

(5) स्पाइक (Spike) : इसमें रैकिस पर सेसाइल फूल (Sessile flower) (बिना डंडा के फूल) लगे होते हैं। अर्थात् फूल रैकिस पर चिपके हुए दिखते हैं। उदाहरण- गेहूँ, लटजीरा आदि।

(6) कम्पोजिट या हेड (Composit and Head) : इसमें लंबाई में छोटा और चौड़ाई में अधिक हो जाता है जिससे विन्यास के सभी फूल एक गुच्छे में दिखते हैं। उदाहरण- गेंदा, सूर्यमुखी आदि।

(7) हाइपेन्थोडियम (Hyponthedium) : इस विन्यास में सभी फुल एक गोलाई लिये हुए मॉसल संरचना के अंदर रहते हैं, इसमें नर और मादा पुष्प एक ही पौधे में पाये जाते हैं और इसके शीर्ष पर छोटा सा छेद होता है. जिससे कीड़े इनमें प्रवेश करके परागण की क्रिया करते हैं। ये कीड़े इनसे बाहर नहीं निकल पाते। उदाहरण- गूलर, अंजीर आदि।

(8) पेनिकल (Penicle) : इसमें रैकिस अत्यधिक रूप से बँटा हुआ होता है, और प्रत्येक शाखा में फूल खिलते हैं। उदाहरण- नीम, आदि।

कुछ विशिष्ट फूलों के उदाहरण-

महुआ, जो फलोरेसेन्ट पीले रंग होता है (जिससे शराब बनती है), वह फूल है।
  • लौंग अधखिली कलियाँ होती हैं। जिन्हें इनके खिल कर फूल बनने से ठीक पहले तोड़ लिया जाता है।
  • रेफलिशिया दुनिया का सबसे बड़ा फूल है, जिसका व्यास लगभग एक मीटर होता है, इससे सड़े मॉस जैसी बदबू आती है।
  • वोल्फिया विश्व का सबसे छोटा पुष्प है।
  • कागज के फूल (बोगेनवीलिया) में जो चटक रंग दिखता है, वह उसका वास्तविक फूल नहीं होता, वह पेटियोल (Petiole) का रूपान्तरण होता है। वास्तविक फूल छोटा एवं सफेद रंग का होता है जो इस रूपान्तरित पेटियोल के अंदर स्थित होता है।
  • केसर में खाने योग्य भाग इसका लंबा स्टिगमा होता है जो इसके स्त्रीकेसर का भाग है।
  • ट्यूलिप फूल में प्रारंभ से ही एक वायरस का संक्रमण हो जाता है, जिसके कारण यह खिल नहीं पाता।
  • कच्चा गूलर (डूमर) फूल होता है, क्योंकि तब तक इसमें निषेचन नहीं होता, बाद में कीड़े इसमें प्रवेश करके परागण की क्रिया करते हैं, और निषेचन के बाद यह फल बनकर पकता है। वास्तविक फूल मात्र एन्जियोस्पर्म पादप में पाये जाते हैं, अन्य निम्न वर्ग के पौधों में फूलों का अभाव होता है।
  • जिम्नोस्पर्म में नर तथा मादा जननांग कोन (Cones) के रूप में रहते हैं, इनकी संरचना किसी काष्ठीय पुष्प के समान प्रतीत होती है किन्तु ये पुष्प नहीं होते हैं।


फल (Fruit)
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फल पौधों के मॉसल अंग होते हैं, जो संचित खाद्य पदार्थों के कारण विभिन्न आकृति एवं आकारों में फूल जाते हैं। फलों का निर्माण फूलों से होता है। फलों और सब्जिायों में यही मुख्य अंतर होता है, कि फल निषेचित या अनिषेचित फूलों के अण्डाशय होते हैं, जबकि सब्जियाँ पौधे के अन्य भाग (जैसे- जड़, तना, पत्तियाँ आदि) होती हैं। इसलिए टमाटर, खीरा, बैंगन, शिमला मिर्च, मिर्च, सेम आदि फल होते हैं, जिनका हम सब्जियों के रूप में प्रयोग करते हैं।

फलों का निर्माण -
फलों का निर्माण दो प्रक्रियाओं के द्वारा होता है

(1) निषेचन (Fertilization) के द्वारा : यह फलों के बनने की सामान्य प्रक्रिया होती है। एक प्रौढ़ (mature) फूल जिसमें विकसित स्त्रीकेसर होकर होता है, परागकण द्वारा निषेचित होकर फल का निर्माण करती है। इन फलों की विशेषता होती है कि इनमें बीज उपस्थित होते हैं, ये बीज ही युग्मनज (अण्डप (ovule) और परागकण (Pollen grain) के संयुग्मन से बना होता है) होता है जो फल से आच्छादित होता है।

(2) पार्थिनोकॉर्पी (Parthenocarpy) के द्वारा : इस प्रकार के फल अनिषेचित फूलों के द्वारा बनते हैं। इन फलों में बीजों का अभाव होता है। कुछ ही पौधों में प्राकृतिक रूप से इस प्रकार के फल बनते हैं, परंतु कृत्रिम रूप से इस प्रकार के फलों को पादप विज्ञानियों द्वारा अधिकता में बनाया जाता है।
उदाहरण- केले के फल पार्थिनोकॉपी के द्वारा बनते हैं।

फलों के स्तर (Layers of Fruits) -
फल तीन स्तरों से बना होता है-
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(1) एपीकार्प (Epicarp) : यह फलों का बाह्यतम भाग होता है। उदाहरण के तौर पर आम का छिलका एपीकार्प का बना होता है।

(2) मीसोकार्प (Mesocarp) : यह बीच का आवरण होता है, अधिकांश फलों में यही भोजन का संचय करके मॉसल हो जाता है और खाने योग्य भाग होता है। उदाहरण के तौर पर आम का गुदा वाला भाग मीसोकार्प का बना होता है।

(3) एण्डोकार्प (Endocarp) : यह फलों का सबसे अंदर का आवरण होता है जो बीजों को सीधे आच्छादित करता है। उदाहरण के तौर पर आम की गुठली एण्डोकार्प की बनी होती है जो इसके अंदर के बीज (भ्रूण) को सुरक्षित रखती है।

फलों का खाने योग्य भाग -

फल

खाने योग्य भाग

आम

मीजोकार्प

सेब

मांसल पुष्पासन (Swollen Thalamus)

नाशपानी

मांसल पुष्पासन

नारियल

बीज (नारियल का पानी इसका तरल एण्डोस्पर्म होता है)

लीची

एरिल

शहतूत

मॉसल बाह्यदल

अंगूर

पेरीकार्प एवं प्लेसेण्टा

अनार

बीजचोल (एरिल) एवं बीज

कटहल

सहपत्र, परिदल पुंज तथा बीज

बादाम

बीजपत्र

मक्का

भ्रूणपोष

गेहूं

भ्रूण पोष

काजू

पुष्पावली वृन्त (रैकिस) तथा बीजपत्र

खजूर

एपीकार्प और मीसोकार्प

अमरूद

पेरीकार्प (एण्डो मीजो और एपीकार्प तीनों) और पुष्पासन

केला

मीजोकार्प और एण्डोकार्प


जटिलता के आधार पर फलों के प्रकार -

(1) सामान्य फल (Simple Fruit) : मात्र एक अण्डाशय से बने होते हैं।
बीजों की संख्या एक या एक से अधिक
ये मॉसल ये सूखे हो सकते हैं।
उदाहरण- बादाम, आम आदि।

(2) संयुक्त फल (Aggregat Fruit) : यह संयुक्त फूलों से बने फल होते हैं, अर्थात् ये एक से अधिक अण्डाशय से बने होते हैं।

(3) बहु फल (Multiple fruits) : यह बहुत से फूलों के अण्डाशयों के मिल जाने से बनते हैं।
उदाहरण- शहतूत, अनानाश (Pinapple)

इनके अंतर्गत भी फलों को अनेक प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है। कुछ प्रकार एवं उनके उदाहरण निम्न हैं-
(1) ऐकीन (Achene) उदाहरण स्ट्रॉबेरी

(2) कैप्सुल (Capsule) उदाहरण- कपास, नीलगिरि आदि।

(3) कैरियोपसिस (Caryopsis) उदाहरण- मक्का, गेंहू आदि

(4) सिप्सेला (Cypsela) उदाहरण- डेन्डेलियॉन

(5) रेशेदार डूप (fibrous drupe) उदाहरण- नारियल और अखरोट

(6) फलियाँ (Legume) उदाहरण- मटर, सेम, मूंगफली आदि।

फलों से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
  • मात्र एन्जियोस्पर्म पादपों में ही फल बनते हैं।
  • लीची में खाने योग्य भाग ऐरिल होता है जो कि हाइलम (Hvlem) के अतरिक्त रूप से बड़े और मॉसल होने के कारण बनता है। यह हाइलम बीजों के जुड़ने के अण्डाशय से जड़ने का स्थान होता है।
  • अनार बेरी (Berry) प्रकार का फल होता है। इसमें बीज एवं एरिल खाने योग्य भाग होते हैं।
  • सेब में जो भाग खाया जाता है, वह वास्तविक फल न होकर मिथ्या फल (Pseudo fruit) होता है, जो फूल के पुष्पासन की दीवार के फूल जाने के कारण बनता है, वास्तविक फल इसके अंदर का बीज वाला भाग होता है।
  • टमाटर, बैंगन सोलेनेसी कुल के फल हैं।
  • लौकी, कद्दू, करेला, टिंडे , खीरे, ककड़ी आदि कुकुरबिटेसी कुल के फल है और इनके बीजों में पेराईटल (Perital) विन्यास पाया जाता है।
  • मूंगफली एक अंतर्भोमिक (Underground) फल है।
  • फलों में फल शर्करा (Sucrose) पायी जाती है जिसके कारण ये फूल जाते हैं इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के फल विभिन्न प्रकार के विटामिन एवं खनिज तत्व संचित किये रहते हैं। (संतरे, मौसबी, नींबू आदि एक ही परिवार सिट्रस (Citrus) के सदस्य होते हैं। इनमें सिट्रिक एसिड पाया जाता है जिसके कारण इनके स्वाद में खट्टापन होता है और ये विटामिन सी के अच्छे स्त्रोत होते हैं।
  • नारियल का पानी, इसका तरल भ्रूणपोष (Liquid endosperm) होता है।

जड़ (Root)

यह पौधों का इकलौता भूमि के अंदर रहने वाला भाग है, यह गुरुत्वाकर्षण की ओर एवं प्रकाश के विपरीत वृद्धि करता है। यह पौधों को जमीन पर खड़ा रहने में मदद करती है एवं भूमि से पानी एवं खनिजलवण का अवशोषण करती है, जो पादपों में भोजन बनाने एवं वृद्धि करने के लिए आवश्यक होते हैं।

जड़ों के प्रकार- (Types of roots) -
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(1) रेशेदार जड़ें (Fibrous roots)
  • ये जड़े रेडिकल के समाप्त हो जाने के बाद तने के नोड से उत्पन्न अपस्थानिक जड़ों (Adventitious roots) के विकास से बनता है।
  • ये जड़ें सामान्यतः एकबीजपत्रीय (Monocots) पादपों में पाई जाती हैं।
  • ये भूमि में अधिक गहराई तक नहीं गई होतीं।
  • ये अपने आधार से ही अनेक छोटी-छोटी शाखाओं के रूप में होती हैं, इनसे अन्य शाखाएँ नहीं निकलती।
  • ये पौधे को अत्यधिक मजबूती नहीं प्रदान कर सकती क्योंकि इनका विकास सतही स्तर पर ही होता है।
  • उदाहरण- धान, गेंहूँ, पालक, घास आदि की जड़ें।

(2) मूसला जड़ें (Tap Root)
  • ये जड़े रेडिकल के विकास से बनती हैं।
  • ये जड़ें सामान्यतः द्विबीजपत्रीय (Dicot) बड़े पादपों में पाई जाती हैं।
  • ये भूमि में अत्यधिक गहराई तक चली जाती हैं।
  • इनके आधार से एक मोटी मुख्य बड़ी जड़ निकलती है जिसे प्राथमिक जड़ (Primary root) कहते हैं, इस मुख्य जड़ से शाखाएँ निकलती हैं, जिन्हें द्वितीयक जड़ें(Secondary root) कहते हैं, कुछ पादपों में इन द्वितीयक जड़ों से भी शाखाएँ निकलती हैं जिन्हें तृतीयक जड़ें (Tertiary root) कहते हैं।
  • इन जड़ों पर छोटे-छोटे मूल रोम (Root hair) उगे होते हैं, जो जल के अवशोषण का कार्य करते हैं।

जड़ों में रूपान्तरण (Modification in Roots)
भोजन संग्रह के लिए : उदाहरण- गाजर, मूली, अदरक, शकरकंद, चुकंदर, शलजम आदि।

पादप को सहारा देने के लिए : उदाहरण-1 - बरगद का पेड़ की शाखाओं से जड़ें निकलती हैं जिन्हें प्रॉप जड़ें (Prop roots) कहते हैं। ये बरगद के पेड़ को खड़े रहने में सहायता देती हैं।
उदाहरण-2 - कुछ बड़े वृक्षों की द्वितीयक जड़ें जमीन के समानान्तर विकास करती हैं और कई बार जमीन से बाहर भी आकर विकास करने लगती है, इनको root buttresses कहते हैं। उदाहरण- महुआ, बरगद आदि। इनका क्षैतिज विस्तार इन विशाल पादपों को सहारा देता है।

(3) भोजन प्राप्ति के लिए : उदाहरण- अमरबेल में पत्ते नहीं होते अर्थात् यह प्रकाश संश्लेषण नहीं कर सकते, इस अवस्था में इसकी जड़ों में चूषण क्षमता आ जाती है और ये दूसरे पादप (Host plant) के ऊतकों से भोजन को चूस कर अपना पोषण करते हैं। यह प्रवृत्ति परजीविता (Parasitism) कहलाती है।

(4) जल के अवशोषण के लिए : उदाहरण- आर्किड्स के पौधे एपीफाइट (Epiphyte) होते हैं, अर्थात् ये दूसरे पौधों के तनों पर निवास करते हैं। ये पौधे दूसरे पौधों पर रहते जरूर हैं, परंतु ये उनसे कुछ लेते नहीं। ये पौध प्रकाश संश्लेषण करके अपना भोजन बनाते हैं,परंतु इनकी जड़ें भूमि पर नहीं होती जिससे भूमिगत जल का अवशोषण नहीं कर पाते इसलिए इनमें वास्तविक जड़ों के साथ वायुवीय जड़ें (Aerial roots) भी होती हैं जो वातावरणिक नमी को अवशोषित करने के लिए अत्यधिक रूपान्तरित होती है।

(5) नाइट्रोजन अवशोषण के लिए : दलदली भूमि में नाइट्रोजन का अभाव होता है। इन दलदली भूमियों पर पाई जाने वाले वाले मैंग्रूव की द्वितीयक जड़ें अपनी वृद्धि की दिशा के विपरीत वृद्धि करते हुए जमीन के बाहर निकल आती हैं और वातावरणीय नाइट्रोजन अवशोषित करती हैं। इन रूपान्तरित जड़ों को न्यूमेटोफोर (Pneumatophore) कहते हैं।

(6) तैरने के लिए : कुछ जलीय पादपों के जड़ स्पंजी हो जाते हैं और उन्हें पानी की सतर पर तैरने में सहायता देते हैं। उदाहरण जलकुंभी

(7) चिपकने वाली जड़ें : कुछ पादपों के तने कमजोर होते हैं और सीधे खडे नहीं हो सकते. इन पौधों के पर्वसंधियों से चिपकने वाली जड़ें विकसित हो जाती हैं, जो इन्हें दूसरे पादपों पर चिपक कर सीधे खड़े रहने में सहायता देती हैं।
उदाहरण- मिर्च की कुछ जातियों में इस प्रकार की जड़ें पाई जाती हैं आदि।

सारांश

  • थैलोफाईटा का शरीर जड, तना पत्ति में विभक्त नहीं होता, इसके शरीर को थैलस कहा जाता है।
  • भूमि के ऊपर रहने वाला भाग प्ररोह तंत्र (Shoot system) कहलाता है।
  • भूमि के नीचे रहने वाला भाग जड़ तंत्र (Root System) कहलाता है।
  • एन्जियोस्पर्म पादपों को आकार एवं शरीर की बनावट के हिसाब से तीन प्रकारों में विभक्त किया जाता है- शाक, झाड़ी और वृक्षा
  • तनें विभिन्न कारणों के रूपान्तरित हो जाते हैं जिनमें से मुख्य है- भोजन का संग्रह एवं निर्माण, वाष्पोत्सर्जन कम करना, जनन सुरक्षा आदि।
  • कुछ पौधों के तनों में कायिक जनन (Vegetative reproduction) के लिए तनों के आकार में रूपान्तरण होता है। उदाहरण- घाँस (दूब घाँस) स्ट्रॉबेरी आदि।
  • भोजन संग्रह के लिए पौधों के तनों में अनेक प्रकार के रूपान्तरण होते हैं- (1) बल्ब (Bulb) - उदाहरण- प्याज (2) ट्यूबर (Tuber) -उदाहरण- आलू (3) क्राउन (Crown) - उदाहरण- मकड़ी पादप (Spider plant) (4) कोर्म (Corms) - उदाहरण- लहसून
  • क्लोरोफिल के अतिरिक्त भी कुछ पत्तियों में अनेक वर्णक क्रोमोप्लास्ट (Chromoplast) पाये जाते हैं।
  • घटपर्णी पादप की पत्तियाँ कीट भक्षण के लिए अत्यधिक रूपान्तरित होकर कलश की आकृति ले लेती हैं।
  • फूल पौधे का जनन अंग होता है।
  • फूल मुख्य रूप चार मुख्य भागों में विभक्त होता है- (1) कैलिक्स (Calyx) इसकी एक इकाई सेपल (Sepal) कहलाती है। (2) करोला (Corolla) इसकी इकाई पेटल (Petal) कहलाती है। (3) पुंकेसर (Androecium) इसकी इकाई स्टेमिन (Stemen) कहलाती है। (नर जननांग (4) स्त्रीकेसर (Gyenoecium) इसकी इकाई पिस्टिल (Pistil) कहलाती है। (मादा जननांग) अक्ष (Axis) पर फूलों के खिलने के क्रम को पुष्पविन्यास (Infloresence) कहते हैं। यह अक्ष रैकिस (Rachis) कहलाता है। पुष्पविन्यास विभिन्न पादपों में भिन्न प्रकार का होता हैं।
  • गोभी का फूल, सूरजमुखी का फूल तथा गेंदे का फूल एकल फूल न होकर पुष्पविन्यास होता है।
  • लौंग अधखिली कलियाँ होती हैं। जिन्हें इनके खिल कर फूल बनने से ठीक पहले तोड़ लिया जाता है।
  • रेफलिशिया दुनिया का सबसे बड़ा फूल है, जिसका व्यास लगभग एक मीटर होता है, इससे सड़े मॉस जैसी बदबू आती है।
  • वोल्फिया विश्व का सबसे छोटा पुष्प है।
  • केसर में खाने योग्य भाग इसका लंबा स्टिगमा होता है जो इसके स्त्रीकेसर का भाग है।
  • वास्तविक फूल मात्र एन्जियोस्पर्म पादप में पाये जाते हैं, अन्य निम्न वर्ग के पौधों में फूलों का अभाव होता है।
  • फलों का निर्माण दो प्रक्रियाओं के द्वारा होता है-(1) निषेचन (Fertilization) के द्वारा (2) पार्थिनोकॉर्पो (Parthenocarpy) के द्वारा
  • अनिषेचित फूलों से बने फलों में बीजों का अभाव होता है। उदाहरण- केले के फल पार्थिनोकॉपी के द्वारा बनते है
  • फलों की उनकी संरचना की जटिलता के आधार पर तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) सामान्य फल (Simple Fruit) (2) संयुक्त फल (Aggregat Fruit) (3) बहु फल (Multiple fruits) मात्र एन्जियोस्पर्म पादपों में ही फल बनते हैं।
  • लीची में खाने योग्य भाग ऐरिल होता है जो कि हाइलम (Hylem) के अतरिक्त रूप से बड़े और मॉसल होने के कारण बनता है। यह हाइलम बीजों के जुड़ने के अण्डाशय से जुड़ने का स्थान होता है।
  • सेब में जो भाग खाया जाता है, वह वास्तविक फल न होकर मिथ्या फल (Pseudo fruit) होता है, जो फूल के अण्डाशय की दीवार के फूल जाने के कारण बनता है, वास्तविक फल इसके अंदर का बीज वाला भाग होता
  • मूंगफली एक अंतभौमिक (Underground) फल है।
  • नारियल का पानी इसका तरल भ्रूणपोष (Liquid endosperm) होता है।
  • मूसला जड़ें सामान्यतः द्विबीजपत्रीय (Dicot) बड़े पादपों में पाई जाती हैं। ये भूमि में अत्यधिक गहराई तक चली जाती हैं। इनमें प्राथमिक जड़ (Primary root) द्वितीयक जड़ें (Secondary root) तृतीयक जड़ें (Tertiary root) कहते हैं।
  • भोजन संग्रह के लिए जड़ें रूपान्तरित होकर विभिन्न आकारें में वृद्धि करने लगती है उदाहरण- गाजर, मूली, अदरक, शकरकंद, चुकंदर, शलजम आदि जड़ों के भोजन संग्रह के लिए रूपान्तरण ही हैं।
  • अमरबेल की जड़ों में चूषण क्षमता आ जाती है और ये दूसरे पादप (Host plant) के ऊतकों से भोजन को चूस कर अपना पोषण करते हैं। यह प्रवृत्ति परजीविता (Parasitism) कहलाती है।
  • दलदली भूमि में पाई जाने वाले वाले मैंग्रूव की द्वितीयक जड़ें जमीन के बाहर निकल आती हैं और वातावरणीय नाइट्रोजन अवशोषित करती हैं। इन रूपान्तरित जड़ों को न्यूमेटोफोर (Pneumatophore) कहते हैं।

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