प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)
- हरे पौधों में एक वर्णक जिसे हरितलवक कहते है, पाया जाता है। यह ऊर्जा को ग्रहण, परिवर्तित एवं स्थानांतरित करके इसे पृथ्वी पर सभी जीवों के लिए उपलब्ध करा सकता है।
- प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया में प्रकाश ऊर्जा का रूपांतरण रासायनिक ऊर्जा में होता है।
- हरे पौधो के अलावा कोई भी जीव सौर ऊर्जा का सीधा उपयोग नहीं कर सकता है अतः सभी प्राणी अपने जीवन निर्वाह हेतु हरे पौधों पर निर्भर रहते हैं।
- हरे पौधे अकार्बनिक पदार्थों से अपना कार्बनिक भोजन स्वयं बनाते हैं अतः उन्हें स्वपोषी कहते हैं जबकि अन्य जीव अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते अतः उन्हें विषमपोषी कहते हैं।
- प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया के दौरान वातावरण में ऑक्सीजन मुक्त होती हैं जिससे पर्यावरण अन्य जीवों के जीवित रहने लायक बन पाता है।
- प्रकाशसंश्लेषण द्वारा बने सरल कार्बोहाइड्रेट परिवर्तित होकर लिपिड, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल तथा अन्य कार्बनिक पदार्थों में बदल जाते हैं।
- हरे पौधे एवं इनके उत्पाद सभी जीवधरियो के मुख्य भोजन हैं।
- जीवाश्मीय ईंधन जैसे-कोयला गैस, तथा तेल इत्यादि भी प्राचीन भूगर्भीय काल के पेड़-पौधों के प्रकाशसंश्लेषण के ही उत्पाद है।
प्रकाशसंश्लेषण क्या है?
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विश्लेषण का निरूपण निम्न रासायनिक समीकरण द्वारा किया जा सकता है-
प्रकाशसंश्लेषण में CO2 का स्थिरीकरण (अथवा अपचयन) कार्बोहाइड्रेटस (ग्लूकोज C6H12O6) में हो जाता है। पानी का सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में विखंडन (पानी का प्रकाश अपघटन) होकर ऑक्सीजन मुक्त होती है। याद रखें कि निकलने वाली ऑक्सीजन पानी के अणु से आती है CO2 से नहीं।
प्रकाशसंश्लेषण कहाँ होता है?
प्रकाशसंश्लेषण पौधो के हरे भाग मुख्यतः पत्तियाँ, कभी-कभी हरे तने एवं पुष्प कलिकाओं द्वारा भी होता है। पत्तियों की विशिष्टीकृत कोशिकाएँ जिन्हें मद्योतक कहते हैं, उनमें हरितलवक पाये जाते हैं। ये हरितलवक ही प्रकाशसंश्लेषण के वास्तविक कार्यशील केन्द्र हैं।प्रकाशसंश्लेषी वर्णक
हरितलवक के थायलोकॉयड में ऐसे वर्णक विद्यमान होते है जो भिन्न-भिन्न तरंगदैर्यों को अवशोषित करके प्रकाशसंश्लेषण की प्रकाशरासायनिक अभिक्रियाएं करते है। वर्णको का कार्य प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर उन्हें रासायनिक ऊर्जा में बदलना होता है। ये वर्णक हरितलवक झिल्लियों पर स्थित होते है और हरितलवक कोशिकाओं के भीतर इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं ताकि ये झिल्लियाँ प्रकाश स्रोत के साथ समकोण बनाती हुई रहे और अधिक-से-अधिक प्रकाश अवशोषण होता रहे। उच्च पादपों में प्रकाशसंश्लेषी वर्णको को दो भागों में बाँटा गया है-हरितलवक एवं कैरोटेनायड।हरितलवक प्रकाशसंश्लेषण क्रिया में भाग लेने वाला मुख्य संश्लेषी वर्णक हैं। यह एक बड़ा अणु है तथा यह बैंगनी नीला तथा दुश्य वर्णक्रम के लाल भाग में प्रकाश को अवशोषित करता है तथा हरे प्रकाश को परिवर्तित करता है इसलिए पत्तियाँ हरी दिखती है। कैरोटेनायड (कैरोटीन एवं जैन्थोफिल) वर्णक्रम के उस हिस्से के प्रकाश को अवशोषित करता है जो हरितलवक द्वारा अवशोषित नहीं होता।
हरितलवक 'ए' (एक विशिष्ट प्रकार का हरितलवक) सौर ऊर्जा को विद्युत एवं रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाला प्रमुख वर्णक है। अतः इसे अभिक्रिया केंद्र कहते हैं।
अन्य दूसरे वर्णक जैसे हरितलवक 'बी' एवं कैरोटेनॉयड को सहायी वर्णक कहते हैं क्योंकि ये वर्णक अवशोषित ऊर्जा को, हरितलवक 'ए' को स्थानांतरित कर देते हैं वर्णक, जैसे अभिक्रिया केंद्र (हरितलवक-ए) एवं सहायी वर्णक (हार्वेस्टिग केन्द्र) एक क्रियात्मक गुच्छों (समूहों) में एकत्र होते हैं इन्हें प्रकाश तंत्र कहते है। प्रकाश तंत्र दो प्रकार के होते हैं- PS I तथा PS II
एक प्रकाश तंत्र 250-400 वर्णक अणुओं से मिलकर बना होता है। दोनों प्रकाश तंत्रों के अभिक्रिया केंद्र में पर्णहरिम-ए की विभिन्न संरचनाएँ होती है। प्रकाश तंत्र I (PSI), में पर्णहरिम-ए का अभिक्रिया केंद्र 700mm (P700) तरंगदैर्ध्य किरणों का अवशोषण करता है तथा प्रकाश तंत्र II (PSII) में अभिक्रिया केंद्र 680mm (P680) का सर्वाधिक अवशोषण करता है। (P = वर्णक के लिए प्रयुक्त होता है) प्रकाश तंत्रों का प्राथमिक कार्य, आपस में प्रतिक्रिया करके सूर्य और सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा (ATP) में बदलता है।
दोनों प्रकाश तंत्रों में अंतर तालिका में दिये गए है :-
प्रकाशतंत्र-I तथा प्रकाशतंत्र II में अंतर |
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प्रकाशतंत्र I |
प्रकाशतंत्र II |
प्रकाशतंत्र
I में पर्णहरिम-'ए' के
अभिक्रिया केंद्र में 700 mm तरगदैर्ध्य का सर्वाधिक
अवशोषण होता है। इस अभिक्रिया केंद्र को P700 भी कहते हैं। |
प्रकाश
तंत्र II
में पर्णहरिम 'ए' के
अभिक्रिया केंद्र में 680 mm तरंगदैर्ध्य का सर्वाधिक
अवशोषण होता है। इस अभिक्रिया केंद्र को P680 भी कहते हैं |
प्राथमिक
इलेक्ट्रॉनग्राही एक लौह-प्रोटीन (Fe-S प्रोटीन) होता है। |
प्राथमिक
इलेक्ट्रॉन ग्राही एक रंगहीन पर्णहरिम जिसमें मैग्नीशियम का अभाव होता है उसे
फियोफिल-a
भी कहते हैं। |
इसमें
इलेक्ट्रॉन वाहको का समूह : जैसे प्लास्टोसानिन, फैरिडॉक्सिन एवं
साइटोक्रोम विद्यमान होते हैं। |
इसमें
इलेक्ट्रॉन वाहकों का समूह जैसे : फियोफाइटिन, प्लास्टोकुइनॉन,
एवं साइटोक्रोम विद्यमान होते हैं। |
सूर्य का प्रकाश ऊर्जा की छोटी-छोटी कणिकाओं अथवा सवेष्टनों का बना होता है जिन्हें "फोटोन" कहते हैं। एकल फोटोन को क्वांटम भी कहते हैं। पर्णहरिम का क्या कार्य है? पर्णहरिम प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करते हैं।
पर्णहरित अणु प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करके उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा बाहरी कक्ष में एक इलेक्ट्रॉन का त्याग कर देता है। कोई भी प्रदार्थ उत्तेजित अवस्था में अधिक देर तक नहीं रह सकता। अतः ऊर्जा युक्त एवं उत्तेजित पर्णहरित अणु, निम्न ऊर्जा स्तर अथवा तलीय अवस्था में आ जाता है तथा इस प्रक्रिया में यह अणु ऊर्जा निकलता है। यह ऊर्जा ताप, प्रतिदीप्ती अथवा कुछ कार्य करने में खर्च होती है। प्रकाशसंश्लेषण में यह ऊर्जा जल के विखंडन द्वारा H+ तथा OH-आयन बनाने में प्रयुक्त होती है।
केरोटिन एक नारंगी एवं पीले रंग का वर्णक हैं। यह पर्णहरित के साथ थायलेकॉयड झिल्ली में पाया जाता है। यह अणु टूट कर विटामिन अणु बनाता है।
प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया, (जो प्रकाश से सक्रिय होती है) का अध्ययन करते समय यह महत्त्वपूर्ण है कि हम इस प्रक्रिया के लिए क्रिया-स्पेक्ट्रम निर्धारित कर ले और इसका उपयोग प्रक्रिया में अंतर्निहित वर्णको को पहचानने के लिए करें। क्रिया-स्पेक्ट्रम वह ग्राफ है जो प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया को उद्दीप्त करने में प्रकाश की विभिन्न तरंगदैर्ध्या (VIBGYOR) की प्रभाविता दर्शाता है। किसी वर्णक द्वारा विभिन्न तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश की आपेक्षिक अवशोषकता के ग्राफ को अवशोषण स्पेक्ट्रम कहते हैं। प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्रिया स्पेक्ट्रम को चित्र में दर्शाया गया है जिसमें साथ-साथ सभी प्रकाश संश्लेषी वर्णकों के लिए अवशोषण-स्पेक्ट्रम भी दिखाया गया है। इस ग्राफ में घनिष्ट समानता पर ध्यान दीजिए, जिससे यह संकेत मिलता है कि विभिन्न वर्णक, विशेषतः पर्णहरिम श्रेणी के वर्णक ही प्रकाशसंश्लेषण में प्रकाश के अवशोषण के लिए उत्तरदायी है। सभी तरंगदैर्यों का प्रकाश समान रूप से प्रकाशसंश्लेषण के लिए प्रभावी नहीं होता है। प्रकाशसंश्लेषण की दर पर कुछ तरंगदैर्यों में कम तथा कुछ में अधिक होती है।
प्रकाशसंश्लेषण हरे एवं पीले प्रकाश में बहुत कम होता है, क्योंकि ये किरणें पत्तियों से परावर्तित हो जाती है। प्रकाशसंश्लेषण नीले एवं लाल प्रकाश में सर्वाधिक होता है।जैवरासायनिक एवं जैवसंश्लेषणात्मक अवस्था-
- प्रकाशसंश्लेषण की संपूर्ण प्रक्रिया हरितलवक में संपन्न होती है। हरितलवक की संरचना इस प्रकार होती है कि प्रकाश पर निर्भर (प्रकाश अभिक्रिया) तथा प्रकाश की अनुपस्थिति (अदीप्त अथवा अप्रकाशी अभिक्रिया) हरितलवक के विभिन्न भागों में होती है।
- थायलेकायड में वर्णक तथा अन्य सहायक अवयव पाए जाते हैं जो प्रकाश को अवशोषित कर इलेक्ट्रॉन स्थानांतरण द्वारा प्रकाश अभिक्रिया अथवा इलेक्ट्रॉन परिवहनशृंखला प्रारंभ करते है।
- इलेक्ट्रॉन परिवहनशृंखला में प्रकाश तंत्र I तथा प्रकाश तंत्र II में प्रकाश अवशोषण द्वारा इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर में जाते हैं अर्थात् इलेक्ट्रॉन उत्तेजना-ऊर्जा उपार्जित कर लेता है। जैसे ही इलेक्ट्रॉन ऊर्जा ग्रहण करता है तो वह इलेक्ट्रॉन ग्राही द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तथा उसका अपचयन हो जाता है तथा इस प्रकार PSI700 तथा PSII680 के अभिक्रिया केंद्र ऑक्सीकृत अवस्था में आ जाते हैं।
- यह प्रकाश ऊर्जा के रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन को व्यक्त करता है। अब इलेक्ट्रॉन नीचे-नीचे की तरफ यात्रा करता हुआ, ऊर्जा की भाषा में कहें तो ऑक्सीकरण-अपचयन अभिक्रयाओं की एकशृंखला में एक इलेक्ट्रॉन ग्राही से दूसरे इलेक्ट्रॉन ग्राही तक बढ़ता जाता है। यह इलेक्ट्रॉन प्रवाह ATP के निर्माण के साथ जुड़ा होता है। इसके NADH भी NADH2 में अपचयित होता है। प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद जिनमें अपचायक क्षमता (NADPH2 + ATP) होती है। थायलेकायड से निकलकर स्ट्रोमा में आ जाते हैं।
- स्ट्रोमा में द्वितीय चरण (अदीप्त अथवा अप्रकाशी अभिक्रिया अथवा जैव संश्लेषणात्मक पथ) जिसमें कार्बन डाईऑक्साइड, प्रथम चरण में बने अपचायक पदार्थों द्वारा कार्बोहाइड्रेटों में अपचयित हो जाती है।
प्रकाशसंश्लेषण में इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला
चक्रीय तथा
अचक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण की तुलना |
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चक्रीय
फास्फोरिलीकरण |
अचक्रीय
फास्फोरिलीकरण |
1.
केवल PSI सक्रिय होता है। |
(i)
PSI तथा PSII दोनों सक्रिय होते हैं। |
2.
इलेक्ट्रॉन पर्णहरित अणु से आते हैं तथा वापिस पर्णहरत अणु पर आ
जाते हैं। |
2.
इलेक्ट्रॉन का स्रोत जल है तथा NADP इलेक्ट्रॉन
अंतिम ग्राही है। इलेक्ट्रॉन तंत्र के बाहर चले जाते हैं। |
3.
अपचयित NADP (NADPH2) का निर्माण नहीं
होता है। |
3.
अपचयित NADP अर्थात् NADPH2 का निर्माण होता है जिसका उपयोग CO2 को
कार्बोहाइड्रेट में अपचयित करने में होता है। |
4.
ऑक्सीजन मुक्त नहीं होती है। |
4.
ऑक्सीजन उपोपत्पाद के रूप में मुक्त होती है। |
5.
यह प्रक्रिया मुख्यतः प्रकाशसंश्लेषी जीवाणुओं में होती है। |
5.
यह मुख्यतः हरे पौधों में होती है। |
जैवसंश्लेषणात्मक पथ (अदीप्त अभिक्रिया)
C3 चक्र -
- दूसरे चरण में PGA का 3-कार्बन कार्बोहाइड्रेट जिसे ट्रायोस फास्फेट कहते हैं में NADPH2 एवं ATP की सहायता से अपचयन हो जाता है। (प्रकाश अभिक्रिया में NADPH2 एवं ATP प्राप्त होते है)। इनमें से अधिकांश अणु C3 चक्र से निकल जाते हैं तथा उनका अन्य कार्बोहाइड्रेट जैसे ग्लूकोज एवं सूक्रोज के संश्लेषण में इस्तेमाल होता है।
- चक्र को पूरा करने के लिए, प्रारंभिक 5 कार्बन ग्राही अणु, (RUBP) का पुनरूत्पादन ट्रायोज फास्फेट से ATP अणु के द्वारा होता है तथा पुन: C3 चक्र प्रारंम्भ हो जाता है।
C4 चक्र (हैच एवं स्लैक चक्र)
- ऐसे पौधे जल की अल्पमात्रा, उच्च ताप एवं उच्च प्रकाश में भी तीव्रता से उग सकते हैं-गन्ना, मक्का, ज्वार कुछ ऐसे पौधे है।
- प्रकाश-श्वसन (RUBP का ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऑक्सीकरण) इन पौधों में अनुपस्थित होता है। अतः इनमें प्रकाशसंश्लेषण की दर उच्च होती है।
- C4 पौधों की पत्तियों में एक विशेष प्रकार की संरचना होती है जिसे क्रैन्ज आकारिकी (Kranz anatomy) कहते हैं।
- पत्तियों में प्रत्येक संवहनी बंडल के चारों तरफ मृदूतक कोशिकाओं का एक आच्छद होता है जिसे बंडल आच्छद कहते हैं जिसके कारण इसे क्रैन्ज आकारिकी भी कहते हैं। (क्रैन्ज अर्थात् आच्छद) (b) पत्तियों में दो प्रकार के हरितलवक (द्विरूपक हरितलवक) होते हैं।
- पत्ती की मीसोफिल कोशिकाओं में अपेक्षाकृत छोटे हरितलवक होते हैं, उनमें सुविकसित ग्रैना भी होते हैं परंतु इनमें स्टॉर्च एकत्रित नहीं होता।
- बंडल आच्छदकी कोशिकाओं के भीतर हरितलवक अपेक्षाकत बड़े आकार के होते हैं और उनमें ग्रैना नहीं होते बल्कि उनमें असंख्य स्टार्च कण होते हैं।
- C4 पौधों में CO2 का प्राथमिक ग्राही 3 कार्बन अणुयुक्त, फास्फोइनाल पायरूबिक अम्ल अथवा PEP होता है। यह फास्फोइनाल पायरूवेट कार्बोक्सेलेज (PEPCase) एन्जाइम की उपस्थिति में CO2 के साथ मिलकर एक चार कार्बनयुक्त अम्ल, आक्सेलोएसिटिक अम्ल (OAA) बनाता है। CO2 का यह स्थिरीकरण मीजोफिल कोशिका के कोशिका द्रव्य (Cytosol) में होता है। OAA इस चक्र का प्रथम चार कार्बन युक्त उत्पाद है अतः इसे C4 पथ भी कहते हैं।
- अतः अप्रकाशी अभिक्रिया के C4 चक्र चलता है तथा CO2 तुरंत RUBP से जुड़कर C3 चक्र द्वारा शर्करा का निर्माण करती है।
- अतः अप्रकाशी अभिक्रिया के C4 चक्र में दो कार्बोक्सिलोज एंजाइम होते है।
C3 एवं C4 पौधों में अंतर |
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C3 पौधे |
C4 पौधे |
CO2
का स्थिरीकरण |
एक
बार होता है |
दो
बार होता हैं,
प्रथम बार मीजोफिल कोशिकाओं में तथा दूसरी बार बंडल आच्छद
कोशिकाओं में। |
CO2
ग्राही |
RuBP,
एक 5 कार्बन यौगिक |
मीजोफिल
कोशिकाओं में PEP
(फास्फोइनाल-पायरूविक अम्ल), एक 5-कार्बन यौगिक तथा बंडल आच्छद कोशिकाओं में -RuBP |
CO2
स्थिरीकरण एन्जाइम |
RuBP
कार्बोक्सिलेज, इसकी दक्षता कम होती है। |
PEP
कार्बोक्सिलेज की दक्षता अधिक होती है क्योंकि CO2 की मात्रा अधिक होती है। |
प्रकाश-संश्लेषण
का प्रथम उत्पाद |
एक
C3 अम्ल, PGA |
एक
C4 अम्ल जैसे ऑक्सेलोएसिटिक अम्ल |
पत्ती
संरचना |
केवल
एक प्रकार का हरित लवक होता है। |
'क्रेन्ज आकारिकी' अर्थात् दो प्रकर की कोशिकाएँ
जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग हरितलवक होता है। |
प्रकाश-श्वसन |
होता
है;
ऑक्सीजन प्रकाश-संश्लेषण के लिए सद्मंदक का कार्य करती है। |
अधिक
CO2 मात्रा के द्वारा सदमंदित रहता है इसलिए वायुमंडलीय ऑक्सीजन प्रकाश
संश्लेषण को सदमंदित नहीं करती है। |
दक्षता |
C4 पौधों की अपेक्षा प्रकाश संश्लेषण की दक्षता कम होती है। उपज प्राय कम
होती है। |
C3
पौधों की तुलना में प्रकाशसंश्लेषण दक्षता अधिक होती है तथा
उत्पाद अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में |