प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) | prakash sanshleshan

प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)

प्रकाशसंश्लेषण (Photosynthesis - Photo = प्रकाश; Synthesis = जुड़ना, निर्माण) पृथ्वी पर होने वाली एकमात्र वह प्रक्रिया है जिस पर मनुष्य तथा समस्त जीवधारियों का जीवन निर्भर है। इस प्रक्रिया द्वारा हरे पौधे, शैवाल तथा हरित लवक-धारी जीवाणु, अकार्बनिक अणुओं से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन (कार्बनिक पदार्थ) बनाते हैं।
prakash sanshleshan
असंख्य कार्बनिक अणुओं जिनसे मिलकर जीवित प्राणियों की रचना होती है प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाश-संश्लेषण द्वारा ही निर्मित होते हैं। कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण द्वारा संचित ऊर्जा का उपयोग प्राणी विभिन्न उपापचयी क्रियाओं के संचालन में करते हैं। यहाँ यह कहना महत्त्वपूर्ण है कि प्रकाश-संश्लेषण ही एकमात्र ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया है जो वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ती है तथा सभी जीवित प्राणी श्वसन हेतु इसी ऑक्सीजन पर निर्भर हैं। हरितलवकों में प्रकाशसंश्लेषण क्रिया सम्पन्न होती है अथवा अन्य शब्दों में हरितलवक सौर-बैटरी की तरह कार्य करके कार्बोहाइड्रेटों का निर्माण करते हैं।

प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया के महत्त्व के विषय में जानें -
महत्त्व -
  1. हरे पौधों में एक वर्णक जिसे हरितलवक कहते है, पाया जाता है। यह ऊर्जा को ग्रहण, परिवर्तित एवं स्थानांतरित करके इसे पृथ्वी पर सभी जीवों के लिए उपलब्ध करा सकता है।
  2. प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया में प्रकाश ऊर्जा का रूपांतरण रासायनिक ऊर्जा में होता है।
  3. हरे पौधो के अलावा कोई भी जीव सौर ऊर्जा का सीधा उपयोग नहीं कर सकता है अतः सभी प्राणी अपने जीवन निर्वाह हेतु हरे पौधों पर निर्भर रहते हैं।
  4. हरे पौधे अकार्बनिक पदार्थों से अपना कार्बनिक भोजन स्वयं बनाते हैं अतः उन्हें स्वपोषी कहते हैं जबकि अन्य जीव अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते अतः उन्हें विषमपोषी कहते हैं।
  5. प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया के दौरान वातावरण में ऑक्सीजन मुक्त होती हैं जिससे पर्यावरण अन्य जीवों के जीवित रहने लायक बन पाता है।
  6. प्रकाशसंश्लेषण द्वारा बने सरल कार्बोहाइड्रेट परिवर्तित होकर लिपिड, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल तथा अन्य कार्बनिक पदार्थों में बदल जाते हैं।
  7. हरे पौधे एवं इनके उत्पाद सभी जीवधरियो के मुख्य भोजन हैं।
  8. जीवाश्मीय ईंधन जैसे-कोयला गैस, तथा तेल इत्यादि भी प्राचीन भूगर्भीय काल के पेड़-पौधों के प्रकाशसंश्लेषण के ही उत्पाद है।

प्रकाशसंश्लेषण क्या है?

प्रकाशसंश्लेषण (Photo = प्रकाश; Synthesis = जोड़ना, संश्लेषण) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल एवं कार्बन डाईआक्साइड के संयोग से कार्बोहाइड्रेटों का निर्माण करते हैं तथा इस प्रक्रिया में उप-उत्पाद (By-product) के रूप में ऑक्सीजन निर्मुक्त होती है। प्रकाशसंश्लेषण के विषय में अद्यतन जानकारी पिछले 300 वर्षों की खोजो का नतीजा है।
इनमें से कुछ विशिष्ट प्रयोग नीचे बॉक्स में दिये गए हैं।

  1. जोसेफ प्रीस्ट्ले तथा इसके पश्चात् जान इंजेनहॉज ने बताया कि पौधों में वायुमंडल से CO2 को ग्रहण करने एवं वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ने की क्षमता है।
  2. इंजेनहॉज ने यह भी बताया कि पौधो द्वारा ऑक्सीजन छोड़ने की प्रक्रिया सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति तथा पौधो के हरे भाग में ही होती हैं।
  3. रॉबर्ट हिल ने प्रदर्शित किया कि यदि पृथक्कृत हरितलवकों को इलेक्ट्रॉन ग्राही की उपस्थिति में प्रतिदीप्त किया जाए तो वह ऑक्सीजन मुक्त करते हैं तथा इलेक्ट्रॉन ग्राही अपचयित हो जाते हैं। इस अभिक्रिया को हिल प्रतिक्रिया कहते हैं। इसके द्वारा जल (प्रकाश अपघटन) को इलेक्ट्रॉन के स्रोत के रूप में प्रयोग करके कार्बन स्थिरीकरण द्वारा ऑक्सीजन एक उपोत्पाद के रूप में मुक्त होती है।


विश्लेषण का निरूपण निम्न रासायनिक समीकरण द्वारा किया जा सकता है-

prakash-sanshleshan

प्रकाशसंश्लेषण में CO2 का स्थिरीकरण (अथवा अपचयन) कार्बोहाइड्रेटस (ग्लूकोज C6H12O6) में हो जाता है। पानी का सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में विखंडन (पानी का प्रकाश अपघटन) होकर ऑक्सीजन मुक्त होती है। याद रखें कि निकलने वाली ऑक्सीजन पानी के अणु से आती है CO2 से नहीं।


प्रकाशसंश्लेषण कहाँ होता है?

प्रकाशसंश्लेषण पौधो के हरे भाग मुख्यतः पत्तियाँ, कभी-कभी हरे तने एवं पुष्प कलिकाओं द्वारा भी होता है। पत्तियों की विशिष्टीकृत कोशिकाएँ जिन्हें मद्योतक कहते हैं, उनमें हरितलवक पाये जाते हैं। ये हरितलवक ही प्रकाशसंश्लेषण के वास्तविक कार्यशील केन्द्र हैं।


प्रकाशसंश्लेषी वर्णक

हरितलवक के थायलोकॉयड में ऐसे वर्णक विद्यमान होते है जो भिन्न-भिन्न तरंगदैर्यों को अवशोषित करके प्रकाशसंश्लेषण की प्रकाशरासायनिक अभिक्रियाएं करते है। वर्णको का कार्य प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर उन्हें रासायनिक ऊर्जा में बदलना होता है। ये वर्णक हरितलवक झिल्लियों पर स्थित होते है और हरितलवक कोशिकाओं के भीतर इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं ताकि ये झिल्लियाँ प्रकाश स्रोत के साथ समकोण बनाती हुई रहे और अधिक-से-अधिक प्रकाश अवशोषण होता रहे। उच्च पादपों में प्रकाशसंश्लेषी वर्णको को दो भागों में बाँटा गया है-हरितलवक एवं कैरोटेनायड।

हरितलवक प्रकाशसंश्लेषण क्रिया में भाग लेने वाला मुख्य संश्लेषी वर्णक हैं। यह एक बड़ा अणु है तथा यह बैंगनी नीला तथा दुश्य वर्णक्रम के लाल भाग में प्रकाश को अवशोषित करता है तथा हरे प्रकाश को परिवर्तित करता है इसलिए पत्तियाँ हरी दिखती है। कैरोटेनायड (कैरोटीन एवं जैन्थोफिल) वर्णक्रम के उस हिस्से के प्रकाश को अवशोषित करता है जो हरितलवक द्वारा अवशोषित नहीं होता।

हरितलवक 'ए' (एक विशिष्ट प्रकार का हरितलवक) सौर ऊर्जा को विद्युत एवं रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाला प्रमुख वर्णक है। अतः इसे अभिक्रिया केंद्र कहते हैं।

अन्य दूसरे वर्णक जैसे हरितलवक 'बी' एवं कैरोटेनॉयड को सहायी वर्णक कहते हैं क्योंकि ये वर्णक अवशोषित ऊर्जा को, हरितलवक 'ए' को स्थानांतरित कर देते हैं वर्णक, जैसे अभिक्रिया केंद्र (हरितलवक-ए) एवं सहायी वर्णक (हार्वेस्टिग केन्द्र) एक क्रियात्मक गुच्छों (समूहों) में एकत्र होते हैं इन्हें प्रकाश तंत्र कहते है। प्रकाश तंत्र दो प्रकार के होते हैं- PS I तथा PS II

एक प्रकाश तंत्र 250-400 वर्णक अणुओं से मिलकर बना होता है। दोनों प्रकाश तंत्रों के अभिक्रिया केंद्र में पर्णहरिम-ए की विभिन्न संरचनाएँ होती है। प्रकाश तंत्र I (PSI), में पर्णहरिम-ए का अभिक्रिया केंद्र 700mm (P700) तरंगदैर्ध्य किरणों का अवशोषण करता है तथा प्रकाश तंत्र II (PSII) में अभिक्रिया केंद्र 680mm (P680) का सर्वाधिक अवशोषण करता है। (P = वर्णक के लिए प्रयुक्त होता है) प्रकाश तंत्रों का प्राथमिक कार्य, आपस में प्रतिक्रिया करके सूर्य और सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा (ATP) में बदलता है।

दोनों प्रकाश तंत्रों में अंतर तालिका में दिये गए है :-

प्रकाशतंत्र-I तथा प्रकाशतंत्र II में अंतर

प्रकाशतंत्र I

प्रकाशतंत्र II

प्रकाशतंत्र I में पर्णहरिम-'' के अभिक्रिया केंद्र में 700 mm तरगदैर्ध्य का सर्वाधिक अवशोषण होता है। इस अभिक्रिया केंद्र को P700 भी कहते हैं।

प्रकाश तंत्र II में पर्णहरिम '' के अभिक्रिया केंद्र में 680 mm तरंगदैर्ध्य का सर्वाधिक अवशोषण होता है। इस अभिक्रिया केंद्र को P680 भी कहते हैं

प्राथमिक इलेक्ट्रॉनग्राही एक लौह-प्रोटीन (Fe-S प्रोटीन) होता है।

प्राथमिक इलेक्ट्रॉन ग्राही एक रंगहीन पर्णहरिम जिसमें मैग्नीशियम का अभाव होता है उसे फियोफिल-a भी कहते हैं।

इसमें इलेक्ट्रॉन वाहको का समूह : जैसे प्लास्टोसानिन, फैरिडॉक्सिन एवं साइटोक्रोम विद्यमान होते हैं।

इसमें इलेक्ट्रॉन वाहकों का समूह जैसे : फियोफाइटिन, प्लास्टोकुइनॉन, एवं साइटोक्रोम विद्यमान होते हैं।


प्रकाशसंश्लेषण में सूर्य के प्रकाश का कार्य -

सूर्य का प्रकाश ऊर्जा की छोटी-छोटी कणिकाओं अथवा सवेष्टनों का बना होता है जिन्हें "फोटोन" कहते हैं। एकल फोटोन को क्वांटम भी कहते हैं। पर्णहरिम का क्या कार्य है? पर्णहरिम प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करते हैं।

पर्णहरित अणु प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करके उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा बाहरी कक्ष में एक इलेक्ट्रॉन का त्याग कर देता है। कोई भी प्रदार्थ उत्तेजित अवस्था में अधिक देर तक नहीं रह सकता। अतः ऊर्जा युक्त एवं उत्तेजित पर्णहरित अणु, निम्न ऊर्जा स्तर अथवा तलीय अवस्था में आ जाता है तथा इस प्रक्रिया में यह अणु ऊर्जा निकलता है। यह ऊर्जा ताप, प्रतिदीप्ती अथवा कुछ कार्य करने में खर्च होती है। प्रकाशसंश्लेषण में यह ऊर्जा जल के विखंडन द्वारा H+ तथा OH-आयन बनाने में प्रयुक्त होती है।

केरोटिन एक नारंगी एवं पीले रंग का वर्णक हैं। यह पर्णहरित के साथ थायलेकॉयड झिल्ली में पाया जाता है। यह अणु टूट कर विटामिन अणु बनाता है।


अवशोषण एवं क्रिया-वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम)

प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया, (जो प्रकाश से सक्रिय होती है) का अध्ययन करते समय यह महत्त्वपूर्ण है कि हम इस प्रक्रिया के लिए क्रिया-स्पेक्ट्रम निर्धारित कर ले और इसका उपयोग प्रक्रिया में अंतर्निहित वर्णको को पहचानने के लिए करें। क्रिया-स्पेक्ट्रम वह ग्राफ है जो प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया को उद्दीप्त करने में प्रकाश की विभिन्न तरंगदैर्ध्या (VIBGYOR) की प्रभाविता दर्शाता है। किसी वर्णक द्वारा विभिन्न तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश की आपेक्षिक अवशोषकता के ग्राफ को अवशोषण स्पेक्ट्रम कहते हैं। प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्रिया स्पेक्ट्रम को चित्र में दर्शाया गया है जिसमें साथ-साथ सभी प्रकाश संश्लेषी वर्णकों के लिए अवशोषण-स्पेक्ट्रम भी दिखाया गया है। इस ग्राफ में घनिष्ट समानता पर ध्यान दीजिए, जिससे यह संकेत मिलता है कि विभिन्न वर्णक, विशेषतः पर्णहरिम श्रेणी के वर्णक ही प्रकाशसंश्लेषण में प्रकाश के अवशोषण के लिए उत्तरदायी है। सभी तरंगदैर्यों का प्रकाश समान रूप से प्रकाशसंश्लेषण के लिए प्रभावी नहीं होता है। प्रकाशसंश्लेषण की दर पर कुछ तरंगदैर्यों में कम तथा कुछ में अधिक होती है।

प्रकाशसंश्लेषण हरे एवं पीले प्रकाश में बहुत कम होता है, क्योंकि ये किरणें पत्तियों से परावर्तित हो जाती है। प्रकाशसंश्लेषण नीले एवं लाल प्रकाश में सर्वाधिक होता है।


जैवरासायनिक एवं जैवसंश्लेषणात्मक अवस्था-

  1. प्रकाशसंश्लेषण की संपूर्ण प्रक्रिया हरितलवक में संपन्न होती है। हरितलवक की संरचना इस प्रकार होती है कि प्रकाश पर निर्भर (प्रकाश अभिक्रिया) तथा प्रकाश की अनुपस्थिति (अदीप्त अथवा अप्रकाशी अभिक्रिया) हरितलवक के विभिन्न भागों में होती है।
  2. थायलेकायड में वर्णक तथा अन्य सहायक अवयव पाए जाते हैं जो प्रकाश को अवशोषित कर इलेक्ट्रॉन स्थानांतरण द्वारा प्रकाश अभिक्रिया अथवा इलेक्ट्रॉन परिवहनशृंखला प्रारंभ करते है।
  3. इलेक्ट्रॉन परिवहनशृंखला में प्रकाश तंत्र I तथा प्रकाश तंत्र II में प्रकाश अवशोषण द्वारा इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर में जाते हैं अर्थात् इलेक्ट्रॉन उत्तेजना-ऊर्जा उपार्जित कर लेता है। जैसे ही इलेक्ट्रॉन ऊर्जा ग्रहण करता है तो वह इलेक्ट्रॉन ग्राही द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तथा उसका अपचयन हो जाता है तथा इस प्रकार PSI700 तथा PSII680 के अभिक्रिया केंद्र ऑक्सीकृत अवस्था में आ जाते हैं।
  4. यह प्रकाश ऊर्जा के रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन को व्यक्त करता है। अब इलेक्ट्रॉन नीचे-नीचे की तरफ यात्रा करता हुआ, ऊर्जा की भाषा में कहें तो ऑक्सीकरण-अपचयन अभिक्रयाओं की एकशृंखला में एक इलेक्ट्रॉन ग्राही से दूसरे इलेक्ट्रॉन ग्राही तक बढ़ता जाता है। यह इलेक्ट्रॉन प्रवाह ATP के निर्माण के साथ जुड़ा होता है। इसके NADH भी NADH2 में अपचयित होता है। प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद जिनमें अपचायक क्षमता (NADPH2 + ATP) होती है। थायलेकायड से निकलकर स्ट्रोमा में आ जाते हैं।
  5. स्ट्रोमा में द्वितीय चरण (अदीप्त अथवा अप्रकाशी अभिक्रिया अथवा जैव संश्लेषणात्मक पथ) जिसमें कार्बन डाईऑक्साइड, प्रथम चरण में बने अपचायक पदार्थों द्वारा कार्बोहाइड्रेटों में अपचयित हो जाती है।


प्रकाशसंश्लेषण में इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला

इस प्रक्रिया का प्रारंभ प्रकाशतंत्र II (PS II) द्वारा प्रकाश ऊर्जा अवशोषित कर उसे अपने अभिक्रिया केंद्र, P680 को पहुँचाने से होता है। जब P680 प्रकाश अवशोषित करता है तो यह उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा इसके इलेक्ट्रॉन, एक इलेक्ट्रॉन ग्राही द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं तथा यह स्वयं तलीय अवस्था (निम्न ऊर्जा स्तर) में आ जाता है परंतु P680 इलेक्ट्रॉन त्याग कर ऑक्सीकृत हो जाता है तथा जिसके फलस्वरूप ये जल विखंडन द्वारा ऑक्सीजन के अणु मुक्त करता है। इस प्रकाश निर्भर जल विखंडन की क्रिया को प्रकाश अपघटन अथवा प्रकाश लयन कहते हैं। जल के विखंडन से इलेक्ट्रॉनों का निर्माण होता है, जो इलेक्ट्रॉन P680 पर चले जाते हैं P680 जिन्होंने पहले अपने स्थानांतरित किए थे, इस प्रकार ऑक्सीकृत P680 पुनः अपने खोए हुए इलेक्ट्रॉनों को जल अपघटन द्वारा त्यागे इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण कर लेता है।
प्राथमिक ग्राही अपने इलेक्ट्रॉन अपने से नीचे इलेक्ट्रॉन परिवहनश्रृंखला में त्याग देता है। इलेक्ट्रॉन अंत में प्रकाश तंत्र (PSI) I के अभिक्रिया केंद्र P700 में पहुँचाए जाते हैं। इस प्रक्रिया में ऊर्जा मुक्त होती है जो ATP में संचित हो जाती है।
इसी प्रकार, प्रकाशतंत्र I (PSL) भी जब प्रकाश ऊर्जा अवशोषित करता है तो उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा PSI का अभिक्रिया केंद्र P700 अपने इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉनग्राही को देकर ऑक्सीकृत हो जाता है। ऑक्सीकृत P700 अपने इलेक्ट्रॉन, प्रकाश तंत्र II (PSII) से ग्रहण करता है जबकि प्रकाश तंत्र I (PSI) के प्राथमिक ग्राही अणु अपने इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण एक अन्य इलेक्ट्रॉनवाहक NADP द्वारा NADPH2 बनाने हेतु करते हैं जो कि एक प्रबल अपचायक है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जल के अणुओं से इलेक्ट्रॉनों का सतत प्रवाह PSII से PSI तथा अंत में NADP अणु तक होता है जो अपचयित होकर NADPH2 बनाता है? NADPH2 का उपयोग जैवसंश्लेषणात्मक पथ में CO2 को कार्बोहाइड्रेटों में अपचयित करने में होता है।

CO2 के कार्बोहाइड्रेट में अपचयन के लिए ATP की आवश्यकता होती है जिनका उत्पादन इलेक्ट्रॉन परिवहनशृंखला द्वारा होता है। जब उच्च ऊर्जा युक्त इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र में निम्न स्तर पर जाते हैं तो वे ऊर्जा मुक्त करते हैं यह ऊर्जा अकार्बनिक फास्फेट (Pi) को ADP से जुड़कर ATP बनाती है तथा यह प्रक्रिया फास्फोराइलेशन कहलाती है। क्योंकि यह प्रकाश की उपस्थिति में होती है अतः इसे प्रकाश-फास्फोरिलीकरण कहते हैं। यह पर्णहरिम में दो प्रकार से होती है। (a) अचक्रीय-प्रकाश-फास्फोराइलेशन : इसमें इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह जल अणुओं से प्रकाश तंत्र II (PS II) उसके पश्चात् प्रकाश तंत्र I (PSI) तथा अंत में NADP को NADPH2 में अपचयित करते हुए होता है। क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह दिशाहीन होता है अतः इसे अचक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण कहते हैं। (b) प्रकाश फास्फोरिलीकरण : कुछ परिस्थितियों में जब अचक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण रुक जाता है, चक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण होता है तथा यह केवल प्रकाश तंत्र I (PSI) में होता है। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉन प्रवाह PSI से NADP की तरफ नहीं होता है, अपितु इलेक्ट्रॉन ऑक्सीकृत P700 अभिक्रिया केंद्र पर वापस आ जाते हैं। इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों के निम्न ऊर्जा स्तर स्थानांतरण से ATP निर्माण होता है तथा इसे चक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण कहते हैं।

चक्रीय तथा अचक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण की तुलना

चक्रीय फास्फोरिलीकरण

अचक्रीय फास्फोरिलीकरण

1. केवल PSI सक्रिय होता है।

(i) PSI तथा PSII दोनों सक्रिय होते हैं।

2. इलेक्ट्रॉन पर्णहरित अणु से आते हैं तथा वापिस पर्णहरत अणु पर आ जाते हैं।

2. इलेक्ट्रॉन का स्रोत जल है तथा NADP इलेक्ट्रॉन अंतिम ग्राही है। इलेक्ट्रॉन तंत्र के बाहर चले जाते हैं।

3. अपचयित NADP (NADPH2) का निर्माण

नहीं होता है।

3. अपचयित NADP अर्थात् NADPH2 का निर्माण होता है जिसका उपयोग CO2 को कार्बोहाइड्रेट में अपचयित करने में होता है।

4. ऑक्सीजन मुक्त नहीं होती है।

4. ऑक्सीजन उपोपत्पाद के रूप में मुक्त होती है।

5. यह प्रक्रिया मुख्यतः प्रकाशसंश्लेषी जीवाणुओं में होती है।

5. यह मुख्यतः हरे पौधों में होती है।


चक्रीय फास्फोरिलीकरण द्वारा अतिरिक्त ATP भी बनाए जा सकते हैं। प्रकाश अभिक्रिया की ऊर्जा परिवर्तन दक्षता अधिक होती है तथा इसका अनुमानित मान लगभग 39% होता है।

जैवसंश्लेषणात्मक पथ (अदीप्त अभिक्रिया)

प्रकाश अभिक्रिया के दौरान बने NADPH2 एवं ATP कार्बोहाइड्रेट के संश्लेषण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
अभिक्रियाओं की शृंखला जो CO2 का कार्बोहाइड्रेटों में अपचय उत्प्रेरित करती है पर्णहरिम के स्ट्रोमा में होती है। इसे कार्बन डाइऑक्साइड का स्थिरीकरण भी कहते हैं।
ये अभिक्रियाएं प्रकाश पर निर्भर नहीं होती है अतः इनके लिए प्रकाश आवश्यक नहीं होता है लेकिन ये प्रकाश की उपस्थिति में भी हो सकती है अतः इन्हें अदीप्त अभिक्रिया या अप्रकाशी अभिक्रिया कहते हैं।
कार्बन स्थिरीकरण अभिक्रियाओं द्वारा पत्तियों में शर्करा का निर्माण होता है जहाँ से पौधे के अन्य भागों में कार्बनिक अणुओं एवं ऊर्जा के रूप में अन्य भागों में स्थानांतरण कर दिया जाता है जो पौधों की वृद्धि एवं उपापचय के लिए आवश्यक है।
CO2 स्थिरीकरण (अदीप्त अभिक्रिया) मुख्यतः दो प्रकार से सम्पन्न होती है।

C3 चक्र -

(इसे खोजकर्ता, मेल्विन केल्विन के नाम पर केल्विन चक्र भी कहते हैं)
इस चक्र में, आरंभ में वायुमंडलीय CO2,5 कार्बन शर्करा (रिब्यूलोज बाई फास्फेट) के द्वारा ग्रहण की जाती है तथा 3 कार्बन यौगिक के दो अणु, 3-फास्फोग्लिसरिक अम्ल (PGA) बनते हैं। यह तीन कार्बन युक्त अणु इस पथ का प्रथम स्थायी उत्पाद है अतः इसे C3-चक्र कहते हैं। PGA के निर्माण की प्रक्रिया को कार्बोक्सिलीकरण कहते हैं। यह अभिक्रिया एंजाइम रिबूलोज बाइफास्फास्फेट कार्बोक्सिलेज (Rubisco) द्वारा उत्प्रेरित होती है यह एंजाइम पृथ्वी पर संभवतया सबसे अधिक पाया जाने वाला प्रोटीन है।

  • दूसरे चरण में PGA का 3-कार्बन कार्बोहाइड्रेट जिसे ट्रायोस फास्फेट कहते हैं में NADPH2 एवं ATP की सहायता से अपचयन हो जाता है। (प्रकाश अभिक्रिया में NADPH2 एवं ATP प्राप्त होते है)। इनमें से अधिकांश अणु C3 चक्र से निकल जाते हैं तथा उनका अन्य कार्बोहाइड्रेट जैसे ग्लूकोज एवं सूक्रोज के संश्लेषण में इस्तेमाल होता है।
  • चक्र को पूरा करने के लिए, प्रारंभिक 5 कार्बन ग्राही अणु, (RUBP) का पुनरूत्पादन ट्रायोज फास्फेट से ATP अणु के द्वारा होता है तथा पुन: C3 चक्र प्रारंम्भ हो जाता है।

C4 चक्र (हैच एवं स्लैक चक्र)

C4 चक्र ऐसे पौधों के लिए जो शुष्क एवं गर्म वातावरण में उगते हैं, एक अनुकूलन प्रतीत होता है। ऐसे पौधे कार्बन डाइऑक्साइड की अति अल्प मात्रा एवं स्टोमेटा छिद्रों के आंशिक रूप से बंद होने पर भी प्रकाशसंश्लेषण कर सकते हैं।
  • ऐसे पौधे जल की अल्पमात्रा, उच्च ताप एवं उच्च प्रकाश में भी तीव्रता से उग सकते हैं-गन्ना, मक्का, ज्वार कुछ ऐसे पौधे है।
  • प्रकाश-श्वसन (RUBP का ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऑक्सीकरण) इन पौधों में अनुपस्थित होता है। अतः इनमें प्रकाशसंश्लेषण की दर उच्च होती है।
  • C4 पौधों की पत्तियों में एक विशेष प्रकार की संरचना होती है जिसे क्रैन्ज आकारिकी (Kranz anatomy) कहते हैं।
C4 पौधों की पत्तियों की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
  1. पत्तियों में प्रत्येक संवहनी बंडल के चारों तरफ मृदूतक कोशिकाओं का एक आच्छद होता है जिसे बंडल आच्छद कहते हैं जिसके कारण इसे क्रैन्ज आकारिकी भी कहते हैं। (क्रैन्ज अर्थात् आच्छद) (b) पत्तियों में दो प्रकार के हरितलवक (द्विरूपक हरितलवक) होते हैं।
  2. पत्ती की मीसोफिल कोशिकाओं में अपेक्षाकृत छोटे हरितलवक होते हैं, उनमें सुविकसित ग्रैना भी होते हैं परंतु इनमें स्टॉर्च एकत्रित नहीं होता।
  3. बंडल आच्छदकी कोशिकाओं के भीतर हरितलवक अपेक्षाकत बड़े आकार के होते हैं और उनमें ग्रैना नहीं होते बल्कि उनमें असंख्य स्टार्च कण होते हैं।
  • C4 पौधों में CO2 का प्राथमिक ग्राही 3 कार्बन अणुयुक्त, फास्फोइनाल पायरूबिक अम्ल अथवा PEP होता है। यह फास्फोइनाल पायरूवेट कार्बोक्सेलेज (PEPCase) एन्जाइम की उपस्थिति में CO2 के साथ मिलकर एक चार कार्बनयुक्त अम्ल, आक्सेलोएसिटिक अम्ल (OAA) बनाता है। CO2 का यह स्थिरीकरण मीजोफिल कोशिका के कोशिका द्रव्य (Cytosol) में होता है। OAA इस चक्र का प्रथम चार कार्बन युक्त उत्पाद है अतः इसे C4 पथ भी कहते हैं।
OAA मीजोफिल कोशिका से बंडल आच्छद के हरितलवक की ओर जाता है जहाँ पर ये CO2 को छोड़ता है। इन कोशिकाओं में C3 चक्र चलाता है तथा CO2 तुरन्त RUBP से जुड़कर C3 चक्र द्वारा शर्करा का निर्माण करती है।
  • अतः अप्रकाशी अभिक्रिया के C4 चक्र चलता है तथा CO2 तुरंत RUBP से जुड़कर C3 चक्र द्वारा शर्करा का निर्माण करती है।
  • अतः अप्रकाशी अभिक्रिया के C4 चक्र में दो कार्बोक्सिलोज एंजाइम होते है।
(i) PEPCase जो मीजोफिल कोशिकाओं में पाया जाता है तथा Rubisco जो बंडल आच्छद कोशिका में पाया जाता है।

C3 एवं C4 पौधों में अंतर

 

C3 पौधे

C4 पौधे

CO2 का स्थिरीकरण

एक बार होता है

दो बार होता हैं, प्रथम बार मीजोफिल कोशिकाओं में तथा दूसरी बार बंडल आच्छद कोशिकाओं में।

CO2 ग्राही

RuBP, एक 5 कार्बन यौगिक

मीजोफिल कोशिकाओं में PEP (फास्फोइनाल-पायरूविक अम्ल), एक 5-कार्बन यौगिक तथा बंडल आच्छद कोशिकाओं में -RuBP

CO2 स्थिरीकरण एन्जाइम

RuBP कार्बोक्सिलेज, इसकी दक्षता कम होती है।

PEP कार्बोक्सिलेज की दक्षता अधिक होती है क्योंकि CO2 की मात्रा अधिक होती है।

प्रकाश-संश्लेषण का प्रथम उत्पाद

एक C3 अम्ल, PGA

एक C4 अम्ल जैसे ऑक्सेलोएसिटिक अम्ल

पत्ती संरचना

केवल एक प्रकार का हरित लवक होता है।

'क्रेन्ज आकारिकी' अर्थात् दो प्रकर की कोशिकाएँ जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग हरितलवक होता है।

प्रकाश-श्वसन

होता है; ऑक्सीजन प्रकाश-संश्लेषण के लिए सद्मंदक का कार्य करती है।

अधिक CO2 मात्रा के द्वारा सदमंदित रहता है इसलिए वायुमंडलीय ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण को सदमंदित नहीं करती है।

दक्षता

C4 पौधों की अपेक्षा प्रकाश संश्लेषण की दक्षता कम होती है। उपज प्राय कम होती है।

C3 पौधों की तुलना में प्रकाशसंश्लेषण दक्षता अधिक होती है तथा उत्पाद अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में

Post a Comment

Newer Older