प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) project tiger in hindi

प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger)

भारत में बाघों की संख्या में लगातार गिरावट के कारण 1973 में भारत सरकार ने बाघों को संरक्षित करने के लिये प्रोजेक्ट टाइगर कार्यक्रम शुरू किया। भारत में बाघ संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक है, जिसकी कुल संख्या 2014 के आँकड़ों के हिसाब से 2,226 है। ताज़ा आँकड़ों के अनुसार इनकी कुल संख्या 2,500 से ऊपर जा चुकी है, जो संरक्षण प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया है। बाघों की संख्या में तेजी से गिरावट के कारण ही भारतीय वन्यजीव अधिनियम, 1972 द्वारा इनके संरक्षण के लिये कार्यक्रम शुरू किये गए और प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत टाइगर रिज़र्व की स्थापना की गई। अभी तक भारत में कुल 50 टाइगर रिज़र्व की स्थापना की जा चुकी है।
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प्रोजेक्ट टाइगर का उद्देश्य संकटग्रस्त प्रजातियों के साथ-साथ टाइगर रिजर्व के आस-पास रह रहे जनजातीय लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करना है। प्रोजेक्ट टाइगर केन्द्र सरकार द्वारा संचालित योजना है। भारत में बने 50 टाइगर रिज़र्व देश के 18 राज्यों में फैले हुए हैं। टाइगर रिज़र्व क्रोड और बफर संरक्षित रणनीति पर आधारित हैं। क्रोड क्षेत्र में राष्ट्रीय पार्क या अभयारण्य शामिल हैं जबकि बफर क्षेत्र में वन और गैर-वन भूमि शामिल हैं।

देश में टाइगर रिजर्व की सूची

राज्य

टाइगर रिजर्व

कर्नाटक

बांदीपुर, भद्र, दांडेली-अंशी, नागरहोल, बिलगिरि रंगनाथ मंदिर

मध्य प्रदेश

पन्ना, कान्हा, पेंच, बांधवगढ़, सतपुड़ा, संजय-दुबरी

महाराष्ट्र

मालघाट, तडोबा-अंधेरी, पेंच, सह्याद्रि, नवगाँव नगज़ीरा, बोर

तमिलनाडु

कलक्कड मुंडनथुरई, अन्नामलाई, मुदुमलाई, सत्यमंगलम

असम

मानस, नामेरी, काजीरंगा, ओरेंग

राजस्थान

रणथम्बोर, सरिस्का, मुकुन्द्रा हिल्स

उत्तराखण्ड

कॉर्बेट, राजाजी टाइगर रिजर्व

उत्तर प्रदेश

दुधवा, पीलीभीत

झारखण्ड

पलामू

ओडिशा

सिमलीपाल, सतकोसिया

पश्चिम बंगाल

सुंदरबन, बुक्सा

छत्तीसगढ़

इंद्रावती, उदन्ती-सीतानदी, अचानकमार

अरुणाचल प्रदेश

नामदफा, पाक्के, कमलांग

बिहार

वाल्मीकि

मिजोरम

दम्फा

केरल

पेरियार, पेराम्बिकुलम

तेलंगाना

कवाल, अमराबाद

आंध्र प्रदेश

नागार्जुन सागर-श्रीशैलम


प्रोजेक्ट टाइगर की प्रमुख सफलताएँ

  • 1973 में टाइगर रिजर्व की कुल संख्या 9 थी, जो आज बढ़कर 50 हो गई है। आज यह भारत के 18 राज्यों में फैला हुआ है। पिछले वर्षों से संरक्षण के अंतर्गत क्रोड-बफर-कॉरीडोर रणनीति (Core-Buffer-Corridor Strategy) का प्रयोग किया जा रहा है जिसमें कोड क्षेत्र वन्यजीव संरक्षण के लिये तथा बफर क्षेत्र का प्रयोग विविध उपयोगों के लिये किया जाता है।
  • बाघों की संख्या में वृद्धि दर्ज की जा रही है, 2014 में जहाँ इसकी कल संख्या 2,226 थी यह अब बढ़कर 2,500 के ऊपर पहुँच चुकी है।

राष्ट्रीय टाइगर संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority - NTCA)

राष्ट्रीय टाइगर संरक्षण प्राधिकरण 'पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत गठित एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है जो वन्यजीव अधिनियम, 1972 (2006 में संशोधित) के तहत कार्य करता है। यह टाइगर रिज़र्व संबंधित राज्यों को केन्द्रीय सहायता प्रदान करता है। इसके निम्नलिखित कार्य हैं- 

  • यह राज्यों द्वारा टाइगर संरक्षण के लिये बनाई गई योजनाओं को मंजूरी प्रदान करता है।
  • यह भविष्य में संरक्षण के प्रयासों में गुणात्मक सुधार, आवास क्षेत्रों में सुधार आदि के लिये सूचनाएँ प्रदान करता है।
  • संरक्षण कार्यों में लगे हुए लोगों को अपने आपको सुरक्षित रखने के लिये प्रशिक्षण देता है एवं टाइगर रिज़र्व को बेहतर बनाने के लिये अधिकारियों के कौशल विकास के कार्यक्रम चलाता है।

  • भारत सरकार ने वर्ष 2010 में बाघों की निगरानी के लिये एक सॉफ्टवेयर आधारित प्रोग्राम M-STrPES (Monitoring System for Tigers Intensive Protection and Ecological Status) प्रारंभ किया। इस प्रणाली के ज़रिये वन्य कर्मचारियों की गश्त, वन क्षेत्र में अपराध से संबंधित आँकड़ों का संग्रह एवं विश्लेषण करना अत्यंत आसान हो गया है।
  • डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ के अनुसार 2022 तक इनकी कुल संख्या 6,400 होने के आसार हैं, जो एक बड़ी उपलब्धि होगी।

बाघों की गणना की विधि
बाघों की गणना दो प्रकार से की जाती है- पग मार्क विधि एवं कैमरा ट्रिप विधि। पगमार्क विधि अवैज्ञानिक विधि है जिसमें बाघ के पंजों के निशान की गणना की जाती है। कैमरा ट्रिप विधि एक वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा ज्यादा बेहतर गणना हो पाती है।

बाघों की संख्या में कमी के कारण
आवासों के विखण्डन, शिकार, खाद्य पदार्थों की होती कमी एवं उनको संरक्षित करते समय होने वाले परिवर्तन के कारण बाघों की प्रजातियाँ अत्यधिक प्रभावित हुई हैं जिसके कारण इनकी संख्या में कमी आ गई।

वैश्विक टाइगर/बाघ फोरम (Global Tiger Forum)
पूरी दुनिया में प्रत्येक वर्ष बाघों की घटती संख्या के कारण उनके विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है। कई देशों में बाघों के संरक्षण हेतु प्रयास किये जा रहे हैं। जहाँ विश्व में 1900 में बाघों की कुल संख्या 1,00,000 के करीब थी जो आज घटकर चार हज़ार के आस-पास हो गई है जिसमें आधे से ज्यादा बाघ भारत में ही हैं। स्थानिक प्रयासों की सफलता को देखते हुए 1993 में वैश्विक स्तर पर बाघों के संरक्षण के लिये दिल्ली में सम्मेलन हुआ, जिसमें वैश्विक टाइगर फोरम की स्थापना की गई। इसका मूल उद्देश्य विश्व के सभी देशों के आपस में सहयोग द्वारा बाघों की रक्षा एवं संरक्षण को सुनिश्चित करना है। यह बाघ संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत एक वैश्विक प्रयास है।

वैश्विक टाइगर फोरम द्वारा चलाए जा रहे प्रोजेक्ट
GTF बाघ संरक्षण के लिये निम्नलिखित कार्य करता है-
  • बाघों की निगरानी (Tiger watch) - प्रतिवर्ष भारत में टाइगर वाच के अंतर्गत रूस का एक फील्ड ऑफिसर भारत के बाघ रिज़र्व की स्थिति की जाँच के लिये भारत आता है।
  • ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम की मॉनीटरिंग - GTF इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत विश्व के सभी संबंधित राष्ट्रों को तकनीक एवं संस्थागत सहायता प्रदान करता है। यह सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं, जो टाइगर संरक्षण के लिये कार्यरत हैं, को तकनीकी वैज्ञानिक सहायता प्रदान करता है।

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