ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution)
किसी वस्तु से उत्पन्न होने वाली सामान्य आवाज़ को ध्वनि (Sound) कहा जाता है। जब ध्वनि की तीव्रता अधिक हो तथा सुनने वाले के लिये रुचिकर न हो तो उसे शोर (Noise) कहा जाता है। उच्च तीव्रता वाली ध्वनि अर्थात् अवांछित शोर के कारण मानव वर्ग में उत्पन्न अशांति एवं बेचैनी की दशा को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं, जैसे-उद्योगों का शोर, पत्थरों को काटना, तेज चिल्लाना, वाहनों का शोर आदि।
ध्वनि की तीव्रता को मापने के लिये डेसीबल (dB) इकाई निर्धारित की गई है। डेसीबल मापक शून्य से प्रारम्भ होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ध्वनि की उच्चता का स्तर दिन में 45dB तथा रात्रि में 35dB निश्चित किया है।
ध्वनि प्रदूषण के स्रोत
ध्वनि प्रदूषण की समस्या निरन्तर बढ़ने वाली समस्या है। सभी मानव गतिविधियाँ भिन्न भिन्न स्तरों पर ध्वनि-प्रदूषण को बढ़ावा देती हैं। ध्वनि प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं जो घर के अन्दर और बाहर दोनों ही जगह हैं।
भीतरी स्रोत (इनडोर स्रोत)
इसमें रेडियो, टेलीविजन, जनरेटर, बिजली के पंखे, एयर कूलर, एयरकंडीशनर, विभिन्न घरेलू उपकरण और पारिवारिक विवाद से उत्पन्न शोर निहित हैं। शहरों में ध्वनि प्रदूषण अधिक है क्योंकि शहरों में आबादी घनी है, उद्योग अधिक है और यातायात जैसी गतिविधियाँ अधिक हैं। अन्य प्रदूषकों की भाँति शोर भी औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और आधुनिक सभ्यता का एक उप-उत्पाद (By-product) है।
बाह्य स्रोत
लाउडस्पीकरों का विवेकहीन प्रयोग, औद्योगिक गतिविधियाँ, मोटरगाड़ियाँ, रेल-यातायात, हवाई जहाज और बाजार, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की गतिविधियाँ, खेलकूद और राजनैतिक रैलियाँ ध्वनि प्रदूषण के बाह्य स्रोत हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती में काम आने वाली मशीनें, पम्प सेट ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत होते हैं। त्योहारों, शादियों और अन्य अनेक अवसरों पर आतिशबाजी का प्रयोग भी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देता है।
ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
स्रोत पर नियंत्रण
- ऑटोमोबाइल का उचित रख-रखाव
- मशीन का रखरखाव
- घरेलू सेक्टर से ध्वनि स्तर में कमी करके
- धीरे बात करना
- स्नेहक का प्रयोग
- शोर अवरोधक पदार्थ का प्रयोग
संचार मार्ग पर नियंत्रण
- अवरोधक का प्रयोग
- पौधे लगाकर
- पैनलों और बाड़ों का प्रयोग
- छोटी सड़क पर बड़े वाहनों का प्रवेश निषेध
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अधिक प्रयोग
रिसीवर पर नियंत्रण
- मफ्लर, हेलमेट का प्रयोग
- ट्रैफिक इंस्पेक्टर के कानों में ध्वनि अवरोधक यंत्रों का प्रयोग
- शांत क्षेत्र से दूर बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशनों का निर्माण
अन्य उपाय
- सड़कों के किनारे, अस्पताल, शिक्षा संस्थान में अधिकाधिक पेड़ लगाना
- ध्वनि प्रदूषण करने वालों पर कार्यवाही (लाउड स्पीकर, हॉर्न आदि के गलत प्रयोग पर रोक)
- नगर-नियोजन का उचित प्रबंध
- ध्वनि अवशोषक, इन्सुलेशन एवं वाइब्रेशन डंपिंग (Vibration Dumping)
- समुद्री ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण
- जागरूकता व शिक्षा
ध्वनि प्रदूषण से होने वाले रोग
- सुनने की क्षमता में कमी - 70dB से कम आवाज़ स्तर मनुष्य के लिये बहुत हानिकारक नहीं है परन्तु 85dB से अधिक आवाज़ को यदि 8 घंटे तक सुना जाए तो श्रवण क्षमता में कमी हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 100dB की आवाज़ (जैकहैमर व स्नोमोबाइल) मनुष्य के लिये ज्यादा समय तक सुनना नुकसानदायक होता है।
- कार्यक्षमता में कमी - ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य की कार्यक्षमता में कमी हो जाती है।
- एकाग्रता में कमी - तीव्र ध्वनि के कारण एकाग्रता में कमी आती है जिससे व्यक्ति ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाता है।
ध्वनि प्रदूषण से व्यक्ति पाचन एवं हृदय संबंधी रोग, मानसिक बीमारी, गर्भपात एवं असामान्य व्यवहार से ग्रसित हो जाता है।
भारत में ध्वनि के संबंध में परिवेशी वायु क्वालिटी मानक
क्षेत्र/परिक्षेत्र का प्रवर्ग | dB दिन के समय | dB रात के समय |
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औद्योगिक क्षेत्र | 75 | 70 |
वाणिज्यिक क्षेत्र | 65 | 55 |
आवासीय क्षेत्र | 55 | 45 |
शांत परिक्षेत्र | 50 | 40 |
दिन का समय सुबह 6 से रात्रि 10 बजे तक है तथा रात्रि का समय 10 बजे से सुबह 6 बजे तक निश्चित किया गया है।
शांत क्षेत्र में अस्पताल, शिक्षा संस्थान, न्यायालय आदि के चारों तरफ 100 मी. तक का क्षेत्र सम्मिलित है।
"Real Time Continuous Ambient Noise Monitoring" 9 शहरों (दिल्ली, मुम्बई, नवी मुम्बई, थाणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, बंगलुरु, हैदराबाद) के 35 स्थानों पर ध्वनि प्रदूषण को मापने की व्यवस्था की। ध्वनि स्तर की सीमा का सबसे ज्यादा उल्लंघन मुम्बई, लखनऊ, हैदराबाद, दिल्ली में हुआ।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
अवांछनीय ध्वनि के रूप में ध्वनि प्रदूषण शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकता है। ध्वनि प्रदूषण चिड़न तथा आक्रामकता, उच्च रक्तचाप, उच्च तनाव स्तर, बहरापन, नींद में बाधा तथा अन्य हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। दीर्धकाल तक ध्वनि का अपावरण ध्वनि-प्रेरित बहरापन उत्पन्न कर सकता है। वे लोग जो अधिक व्यवसायिक ध्वनि के संपर्क में रहते हैं, ध्वनि के संपर्क में न रहने वालों की तुलना में, श्रवण संवेदनशीलता में अधिक कमी प्रदर्शित करते हैं। उच्च तथा मध्यम श्रेणी की उच्च ध्वनि स्तर हृदय की रक्त वाहिनियों पर प्रभाव, रक्तचाप तथा तनाव में वृद्धि कर सकती है और इस प्रकार लोगों का शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
जन्तु व पर्यावरण पर प्रभाव
- तीव्र ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं जिससे मृत अवशेषों के अपघटन में बाधा पहुँचती है।
- तीव्र ध्वनि से जन्तुओं के हृदय, मस्तिष्क एवं यकृत को भी हानि पहुँचती है। इससे उनका तंत्रिका तंत्र खराब हो जाता है और वे खतरनाक बन जाते हैं।
- समुद्री ध्वनि प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव समुद्री व्हेल पर पड़ता है।
- ध्वनि प्रदूषण के कारण उनके आवास की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जेब्रा फिंच ध्वनि प्रदूषण के कारण अपने सहयोगी से संचार नहीं कर पाता है।
- वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव पादपों व वनस्पति पर भी पड़ता है।
- ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव बिल्डिंग इत्यादि पर भी पड़ता है।
- मनुष्य के कान 20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज तक सुन सकते हैं, इसे मनुष्य का श्रव्य परास (Audible Range) कहते हैं। श्रव्य परास से अधिक आवृत्ति की तरंगों को पराश्रव्य तरंग (Ultrasonic) कहते हैं। श्रव्य परास से कम आवृत्ति की तरंगों को अवश्रव्य (Infrasonic) तरंगें कहते हैं।
ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम और नियन्त्रण
निम्न बातों को अपनाने से ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित या फिर कम किया जा सकता है
- गाड़ियों के उचित रखरखाव और अच्छी बनावट से सड़क यातायात के शोर को कम किया जा सकता है।
- ध्वनि कम करने के उपायों में ध्वनि टीलों का निर्माण, ध्वनि को क्षीण करने वाली दीवारों का निर्माण और सड़कों का उचित रखरखाव और सीधी सपाट सतह होना आवश्यक है।
- रेल इंजनों की रीट्रोफिटिंग (Retrofitting), रेल की पटरियों की नियमित वैल्डिंग, और बिजली से चलने वाली रेलगाड़ियों का प्रयोग, या कम शोर करने वाले पहियों का प्रयोग बढ़ाने से रेलगाड़ियों द्वारा उत्पन्न शोर में भारी कमी आयेगी।
- हवाई यातायात के ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए वायुयानों के उड़ने और उतरने के समय उचित ध्वनि रोधक लगाने और ध्वनि नियमों को लागू करने की आवश्यक है।
- औद्योगिक ध्वनियों को रोकने के लिये भी ऐसे स्थानों पर जहां जेनरेटर हों या ऐसे क्षेत्र जहां पर बहुत शोर वाली मशीनें हों, ध्वनिसह उपकरण लगाने चाहिये।
- बिजली के औजार, बहुत तेज संगीत और लैण्डमूवर्स, सार्वजनिक कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर का प्रयोग आदि रात्रि में नहीं करना चाहिये। हार्न का प्रयोग, अलार्म और ठंडा करने वाले मशीनों का प्रयोग सीमित होना चाहिये। ऐसी आतिशबाजी जो शोर करती है और प्रदूषण फैलाती है उनका प्रयोग सीमित करना चाहिये जिससे शोर और वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
- घने पेड़ों की हरियाली (ग्रीन बैल्ट) भी ध्वनि प्रदूषण को कम करने में सहायक होती हैं।
ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून (Laws to Control Noise Pollution)
भारत में ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के लिये पृथक् अधिनियम का प्रावधान नहीं है। भारत में ध्वनि प्रदूषण को वायु प्रदूषण में ही शामिल किया गया है। वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 में सन् 1987 में संशोधन करते हुए इसमें ' ध्वनि प्रदूषकों' को भी 'वायु प्रदूषकों' की परिभाषा के अंतर्गत शामिल किया गया है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 6 के अधीन भी ध्वनि प्रदूषकों सहित वायु तथा जल प्रदूषकों की अधिकता को रोकने के लिये कानून बनाने का प्रावधान है। इसका प्रयोग करते हुए ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000 पारित किया गया है । इसके तहत विभिन्न क्षेत्रों के लिये ध्वनि के संबंध में वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित किये गए हैं। विद्यमान राष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत भी ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण का प्रावधान है। ध्वनि प्रदूषकों को आपराधिक श्रेणी में मानते हुए इसके नियंत्रण के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 268 तथा धारा 290 का प्रयोग किया जा सकता है। पुलिस अधिनियम, 1861 के अंतर्गत पुलिस अधीक्षक को अधिकृत किया गया है कि वह त्योहारों और उत्सवों पर गलियों में बजने वाले संगीत की तीव्रता के स्तर को नियंत्रित कर सकता है।