कॉलेजियम प्रणाली collegium system in hindi
कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और हस्तान्तरण की व्यवस्था है, जो न तो संसद के अधिनियम और न ही संविधान के प्रावधान के द्वारा बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से विकसित हुई है। वर्ष 1993 से लागू इस प्रणाली के द्वारा ही देश में न्यायाधीशों के ट्रांसफर, पोस्टिंग और प्रोमोशन का निर्णय होता है। यह पाँच लोगों का समूह है, जिसमें भारत के मुख्य नयायाधीश सहित सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्शयाधीश सदस्य होते हैं।
कार्यप्रणाली
- सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश करते हैं और शीर्ष न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश भी इसमें शामिल होते हैं। जबकि हाई कोर्ट कॉलेजियम इसके मुख्य न्यायाधीश और उसके चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों का नेतृत्व करता है।
- हाई कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिए अनुशंसित नाम भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) और सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा अनुमोदन के बाद ही सरकार तक पहुँचते हैं।
- उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों को केवल कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से नियक्त किया जाता है, और कॉलेजियम द्वारा नामों का निर्णय लेने के बाद ही सरकार की भूमिका शुरू होती है।
कैसे विकसित हई यह प्रणाली?
- भारत में कॉलेजियम प्रणाली की उत्पत्ति निर्णमों की एक श्रृंखला से हुई जिसे न्यायाधीश मामले (Judges Cases) कहा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायाधीश मामलों में प्रासंगिक संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या के माध्यम से कॉलेजियम प्रणाली अस्तित्व में आई।
- प्रथम न्यायाधीश मामला एसपी गुप्ता बनाम भारतीय संघ, 1981 में, बहुमत के निर्णय से सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की प्राथमिकता की अवधारणा वास्तव में संविधान में नहीं मिली थी।
- द्वितीय न्यायाधीश मामला सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारतीय संघ, 1993 वाद में, नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एसपी गुप्ता वाद में निर्णय को खारिज कर दिया और उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और हस्तान्तरण के लिए कॉलेजियम प्रणाली नामक एक विशिष्ट प्रक्रिया तैयार की।
- तृतीय न्यायाधीश मामला वर्ष 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायण द्वारा संविधान (सलाहकार क्षेत्राधिकार) के अनुच्छेद-143 के तहत ‘परामर्श' शब्द के अर्थ पर सर्वोच्च न्यायालय को राष्ट्रपति का सन्दर्भ जारी किया गया। प्रश्न यह था कि क्या 'परामर्श' को सीजेआई की राय बनाने में कई न्यायाधीशों के साथ परामर्श की आवश्यकता है या क्या सीजेआई की एकमात्र राय स्वयं ही परामर्श है।
- इससे यह राय बनी कि सिफारिशें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) और दो के बजाय चार वरिष्ठतम सहयोगियों द्वारा की जानी चाहिए।
- इसके अलावा यह भी माना गया कि यदि दो न्यायाधीशों द्वारा प्रतिकूल राय की गई तो सीजेआई को सरकार को सिफारिश नहीं भेजनी चाहिए।
कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना
आलोचकों द्वारा तर्क दिया गया कि यह प्रणाली गैर-पारदर्शी है, क्योंकि इसमें कोई आधिकारिक तन्त्र या सचिवालय शामिल नहीं है। इसे पात्रता मानदण्डों या यहाँ तक कि चयन प्रक्रिया के सम्बन्ध में निर्धारित मानदण्डों के साथ क्लोज्ड-डोर के रूप में देखा जाता है। इसके बारे में कोई सार्वजनिक ज्ञान नहीं है कि कैसे और कब एक कॉलेजियम मिलता है, और यह कैसे निर्णय लेता है। अधिवक्ता भी आमतौर पर अन्धेरे में होते हैं कि उनके नाम न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नति के लिए विचार किए गए हैं या नहीं।
सरकार द्वारा किए गए प्रयास
- एनडीए सरकार द्वारा कॉलेजियम प्रणाली को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के साथ बदलने के लिए दो बार असफल प्रयास किया गया है।
- वर्ष 1998-2003 की भाजपा की अगुवाई वाली सरकार द्वारा क्या कॉलेजियम प्रणाली को बदलने की जरूरत है या नहीं यह तय करने के लिए न्यायमूर्ति एनएन वेंकटचलैया आयोग नियुक्त किया गया था।
- आयोग ने इस परिवर्तन का पक्ष लिया और 15 अगस्त, 2014 को कॉलेजियम प्रणाली की जगह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का गठन हुआ, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 16 अक्टूबर, 2015 को एनजेएसी कानून को असंवैधानिक करार दे दिया गया।
- जनवरी, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कॉलेजियम प्रणाली फिर से बहाल कर दी गई है।
संविधान में क्या है व्यवस्था?
भारतीय संविधान में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अनुच्छेद124(2) और अनुच्छेद-217 के तहत राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाने की व्यवस्था है।
- अनुच्छेद-124 (2) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा और सर्वोच्च न्यायालय और राज्यों में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के परामर्श के बाद उनके नाम पर मुहर लगाई जाएगी।
- अनुच्छेद-217 के अनुसार, उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश, राज्य के राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में वारण्ट द्वारा उसके नाम पर मुहर लगाई जाएगी।