वाक्य के भेद vakya ke bhed
(क) रचना की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद होते हैं—
- सरल वाक्य
- मिश्र वाक्य
- संयुक्त वाक्य
(ख) अर्थ की दृष्टि से वाक्य के आठ भेद होते हैं—
- विधिवाचक
- निषेधवाचक
- आज्ञावाचक
- प्रश्नवाचक
- विस्मयवाचक
- सन्देहवाचक
- इच्छावाचक
- संकेतवाचक
(ग) क्रिया की दृष्टि से भी वाक्य के भेद किए जाते हैं।
रचना की दृष्टि से वाक्य के भेद
(1) सरल वाक्य (Simple sentence)
सरल वाक्य वह जिसमें एक ही क्रिया होती है। इसमें एक उद्देश्य होता है और एक विधेय। जैसे- बादल बरसता है। राम खाता है।
इनमें एक-एक उद्देश्य अर्थात् कर्ता और विधेय अर्थात् क्रिया होती है। इसीलिए इन्हें सरल वाक्य कहा जाता है।
(2) मिश्र वाक्य (Complex sentence)
मिश्र वाक्य उसे कहते जिसमें एक सरल वाक्य के अतिरिक्त उसके अधीन कोई अन्य अंग वाक्य हो। जैसे- वह कौन-सा भारतीय है जिसने महात्मा गाँधी का नाम न सुना हो। इस वाक्य में 'वह कौन-सा भारतीय है' मुख्य वाक्य है।दूसरा अंग वाक्य है जो मुख्य वाक्य पर आश्रित है।
(3) संयुक्त वाक्य (Compound sentence)
संयुक्त वाक्य वह है जिसमें सरल या मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अव्ययों द्वारा होता हो । वस्तुतः इसमें दो या दो से अधिक सरल या मिश्र वाक्य अव्ययों द्वारा संयुक्त होते हैं।
जैसे- मैं स्कूल जा रहा था कि पानी बरसने लगा और पानी इतना तेज बरसा कि मुझे एक पेड़ के पास रुकना पड़ा। राम आया और श्याम चला गया।
इनमें पहला मिश्र वाक्यों तथा दूसरा सरल वाक्यों को मिलाकर संयुक्त वाक्य बना है। वस्तुतः संयुक्त वाक्य में प्रत्येक वाक्य की अपनी स्वतन्त्र सत्ता रहती है।
अर्थ की दृष्टि से वाक्य के भेद
(1) विधिवाचक वाक्य (Affirmative sentence)- इससे किसी बात के होने का बोध होता है।
जैसे
राम खा चुका।
मैंने कहानी पढ़ी और सो गया।
(2) निषेधवाचक वाक्य (Negative sentence)- इससे किसी बात के न होने का बोध होता है।
जैसे
मैंने पुस्तक नहीं पढ़ी!
राम बैंक नहीं गया और उसे रुपया नहीं मिला।
(3) आज्ञावाचक वाक्य (Imperative sentence)- जिस वाक्य से किसी तरह की आज्ञा का बोध हो उसे आज्ञावाचक कहते हैं।
जैसे
तुम काम करो?
तुम लिखो।
(4) प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative sentence)- जिस वाक्य से प्रश्न किया जाने का बोध हो उसे प्रश्नवाचक कहते हैं।
जैसे
तुम कहाँ जा रहे हो?
तुम क्या कर रहे हो?
(5) विस्मयवाचक वाक्य (Exclamatory sentence)- इससे आश्चर्य, दुख अथवा सुख का बोध होता है।
जैसे
हाय ! मैं लुट गया !
(6) सन्देहवाचक वाक्य- इस वाक्य से किसी बात के सन्देह का बोध होता है।
जैसे
उसने देखा होगा।
मैंने कहा होगा ।
(7) इच्छावाचक वाक्य- इससे किसी प्रकार की इच्छा या शुभकामना का बोध होता है।
जैसे
तुम्हारा मंगल हो ।
(8) संकेतवाचक वाक्य- इसमें एक वाक्य दूसरे वाक्य की संभावना पर निर्भर करता है।
जैसे
यदि तुम चलो तो मैं भी चलूँ।
डाक्टर न आता तो वह मर जाता।
वाक्य रचना के सामान्य नियम
शुद्ध और सुन्दर वाक्य लिखने के लिए क्रम, अन्वय, और प्रयोग से सम्बन्धित नियमों की जानकारी आवश्यक है।
(क) क्रम (Order)
क्रम अथवा पदक्रम के अन्तर्गत किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखा जाता है। इसके सामान्य नियम नीचे प्रस्तुत हैं-
- वाक्य के शुरू, मध्य और अंत में क्रमशः कर्ता, कर्म और क्रिया होनी चाहिए। जैसे- 'राम ने रोटी खाई' में कर्ता, 'राम', 'कर्म ‘रोटी' और अंत में क्रिया 'खाई' है।
- उद्देश्य अर्थात् कर्ता के विस्तार को कर्ता के पहले और विधेय या क्रिया के विस्तार को क्रिया के पहले रखना चाहिए। जैसे- परिश्रमी एवं मेधावी लड़के धीरे-धीरे पर अच्छी तरह से पढ़ते हैं।
- कर्ता और कर्म के बीच अधिकरण, अपादान, सम्प्रदान एवं करण कारक क्रमशः आते हैं। जैसे- मैंने स्कूल में (अधिकरण) आलमारी से (अपादान) उस के लिए (सम्प्रदान) हाथ से (करण) पत्रिका निकाली।
- वाक्य के प्रारम्भ में सम्बोधन आता है। जैसे- हे ईश्वर, उस गरीब की रक्षा करो।
- वाक्य में विशेषण संज्ञा (विशेष्य) के पहले आता है। जैसे- उसकी सुन्दर कलम मेरे ही पास है।
- क्रियाविशेषण का प्रयोग क्रिया के पहले होता है। जैसे- रामसिंह तेज दौड़ता है।
- उसी संज्ञा के पहले प्रश्नवाचक पद रखा जाता है, जिसके बारे में कुछ पूछा जाय। जैसे- क्या राम पढ़ रहा है?
(ख) अन्वय (मेल) (Co-ordination)
अन्वय में लिंग, वचन, पुरुष एवं काल के अनुसार वाक्य के पदों का एक दूसरे से मेल अथवा सम्बन्ध दिखाया जाता है। वस्तुतः यह सम्बन्ध कर्त्ता-क्रिया का, कर्म - क्रिया का एवं संज्ञा-सर्वनाम का होता है।
कर्ता और क्रिया का मेल
- यदि वाक्य में कर्ता विभक्तिरहित है तो उसकी क्रिया के लिंग, वचन, पुरुष कर्ता के लिंग, वचन, पुरुष के अनुसार होंगे। जैसे- राम पुस्तक पढ़ता है। सोहन मिठाई खाता है। सीता स्कूल जाती है।
- यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन और पुरुष के अनेक विभक्तिरहित कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले 'और' संयोजक आया हो तो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी। जैसे- राम, श्याम और उर्मिला स्कूल जाती हैं।
- यदि वाक्य में दो भिन्न लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्व समास के अनुसार प्रयुक्त हों तो उनकी क्रिया पुल्लिंग बहुवचन में होगी। जैसे- माता-पिता गए। राजा-रानी सो गए। स्त्री-पुरुष आ रहे हैं।
- यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय 'या' अथवा 'वा' रहे तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होगी,। जैसे- मोहन की दस गायें या एक बैल बिकेगा। श्याम की एक तौलिया या पाँच कंबल बिकेंगे।
- यदि वाक्य में दो भिन्न लिंग विभक्ति रहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच 'और' संयोजक आए तो उनकी क्रिया पुल्लिंग और बहुवचन में होगी। जैसे- राम और सीता लीला करते हैं। बकरी और बाघ पानी पीते हैं।
- यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक कर्ता हों तो क्रिया बहुवचन में होगी एवं उसका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा। जैसे- एक लड़की, दो लड़के तथा अनेक बूढ़े पुरुष आ रहे हैं। एक भैंस, दो बैल तथा अनेक गायें घर रही हैं।
कर्म और क्रिया का मेल
- यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति चिह्नों से युक्त हों तो क्रिया सदा एकवचन, पुल्लिंग और अन्य पुरुष में होगी। जैसे- लड़कियों ने लड़कों को ध्यान से देखा। तुमने उसे देखा। मैंने राधा को बुलाया।
- यदि कर्ता 'को' प्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आये तो क्रिया सदा एकवचन, पुल्लिंग और अन्य पुरुष में होगी। जैसे- उसे (उसको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता। तुम्हें (तुमको) बात करना नहीं आता। सीता को रसोई बनाना नहीं आता।
- यदि वाक्य में कर्ता 'ने' विभक्ति से युक्त हो और कर्म की 'को' विभक्ति न हो तो उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होगी। जैसे- विमला ने किताब पढ़ी। मैंने लड़ाई जीती। राम ने रोटी खाई। उसने क्षमा माँगी।
- यदि एक ही लिंगवचन के अनेक प्राणि-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयें तो क्रिया भी एकवचन में होगी। जैसे- उसने एक बैल और एक गाय खरीदी। राम ने एक किताब और एक पेन खरीदी।
- यदि एक ही लिंग और वचन के अनेक प्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ आयें तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन में होगी। जैसे- राम ने गाय और भैंस मोल ली।
- यदि वाक्य में भिन्न-भिन्न लिंग के अनेक अप्रत्यय कर्म आयें और वे 'और' से जुड़े हों तो क्रिया अन्तिम कर्म के लिंग और वचन में होगी। जैसे- उसने पापड़ और रोटी खायी। सीता ने रोटी और आम खाया।
संज्ञा और सर्वनाम का मेल
- वाक्य में लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार सर्वनाम उस संज्ञा का अनुसरण करता है जिसके बदले उसका प्रयोग होता है। जैसे- महिलायें वे ही हैं। गायें भी ये ही थीं।
- यदि अनेक संज्ञाओं के स्थान पर एक ही सर्वनाम आए, तो वह पुल्लिंग बहुवचन में होगा। जैसे- राम, श्याम और मोहन यहाँ आ गए हैं, लेकिन वे कल ही चले जायेंगे।
(ग) वाक्यगत प्रयोग (Use)
वाक्यगत प्रयोग सम्बन्धी कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं :-
- एक वाक्य से ही भाव प्रकट होना चाहिए।
- शब्दों के प्रयोग में व्याकरण के नियमों का पालन होना चाहिए।
- वाक्य की योजना स्पष्ट हो तथा शैली के अनुकूल शब्दों का प्रयोग हो।
- अधूरे वाक्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- वाक्य में सभी शब्दों का प्रयोग एक काल, एक स्थान एवं एक ही साथ करना चाहिए।
- व्यर्थ शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- वाक्य में यत्र-तत्र मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग अच्छा होता है।
- ध्वनि और अर्थ की संगति पर ध्यान देना चाहिए।
- वाक्य में एक ही व्यक्ति अथवा वस्तु के लिए कहीं 'यह' एवं कहीं 'वह', कहीं 'आप' और कहीं 'तुम', कहीं 'इसे' और कहीं 'इन्हें', कहीं 'उसे' और कहीं 'उन्हें', कहीं 'उसका' और कहीं 'उनका' आदि का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
- अप्रचलित शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- पुनरुक्तिदोष से वाक्य को मुक्त रखना चाहिए।
- हिन्दी में परोक्ष कथन (Indirect narration) का प्रयोग नहीं होता है। जैसे- उसने कहा कि उसे कोई आपत्ति नहीं है। यह उदाहरण हिन्दी की प्रकृति के अनुकूल नहीं। अतः इसका रूप इस प्रकार होगा- 'उसने कहा कि मुझे कोई आपत्ति नहीं है।'
कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रयोग नीचे दिए जा रहे हैं :-
- 'बाद' और 'पीछे' का प्रयोग- काल का अन्तर बतलाने के लिए 'बाद' का प्रयोग होता है तथा स्थान का अन्तर सूचित करने के लिए “पीछे' का प्रयोग होता है। जैसे- राम के बाद श्याम आया-काल का अन्तर। राम के बाद मेरा नम्बर है- काल का अन्तर। श्याम का घर पीछे छूट गया- स्थान का अन्तर।
- 'पर' और 'ऊपर' का प्रयोग- दोनों का प्रयोग व्यक्ति और वस्तु के लिए होता है। लेकिन सामान्य ऊँचाई के लिए 'पर' और विशेष ऊँचाई के लिए 'ऊपर' का प्रयोग होता है। यों हिन्दी में 'ऊपर' की अपेक्षा 'पर' का प्रयोग ही अधिक होता है। जैसे- इस पहाड़ के ऊपर एक मन्दिर है। टेबुल पर पुस्तक रखी हुई है। सभी लोग छत पर सोये हुए हैं।
- 'सब' और 'लोग' का प्रयोग- प्रायः दोनों का बहुवचन में प्रयोग होता है। कभी-कभी 'सब' का समुच्चय-रूप में और एकवचन में प्रयोग होता है। जैसे- आपका 'सब' काम गलत होता है। हिन्दी में 'सब' समुच्चय और संख्या दोनों का बोध कराता है, जब कि 'लोग' सदा बहुवचन में प्रयुक्त होता है। जैसे- लोग आ रहे हैं। लोग ठीक ही कहते हैं। कभी-कभी 'सब लोग' का प्रयोग बहुवचन में होता है। जैसे- 'सब लोग' उनका आदेश मानते हैं।
- 'प्रत्येक', 'कोई', 'किसी' का प्रयोग- इनका प्रयोग सर्वदा एकवचन में होता है, बहुवचन में प्रयोग करना अशुद्ध है। जैसे- प्रत्येक आदमी पहले रोटी चाहता है। मेरा कोई काम रुकता नहीं। यहाँ किसी का वश नहीं चलता। किसी ने कहा था। कोई आ रहा है। ध्यान देने की बात है कि 'कोई' और 'किसी' के साथ 'भी' का प्रयोग नहीं होता है ।
- द्वारा का प्रयोग- जब किसी व्यक्ति के माध्यम से कोई काम होता है तो संज्ञा के बाद 'द्वारा' का प्रयोग होता है, लेकिन वस्तु (संज्ञा) के बाद 'से' लगता है। जैसे- राम द्वारा यह कार्य पूर्ण हुआ। युद्ध से देश बर्बाद हो जाता है।
- व्यक्तिवाचक संज्ञा और क्रिया का मेल- यदि व्यक्तिवाचक संज्ञा कर्ता है तो उसके लिंग और वचन के अनुसार क्रिया के लिंग और वचन होंगे। जैसे- काशी हमारी संस्कृति का केन्द्र मानी जाती है। (कर्ता स्त्रीलिंग है)। पहले कलकत्ता भारत की राजधानी था - यहाँ कर्ता पुल्लिंग है।
- समयसूचक समुच्चय का प्रयोग– ये वाक्य शुद्ध हैं- 'चार बजा है', 'दस बजा है'। इनमें चार और दस बजने का बोध समुच्चय में हुआ है। अतः ये वाक्य अशुद्ध हैं- चार बजे हैं। दस बजे हैं।
- नए, नये, नई, नयी का शुद्ध प्रयोग जिस मूल शब्द का अन्तिम वर्ण 'या' है। उसका बहुवचन 'ये' होगा। अतः 'नया' का बहुवचन 'नये' और स्त्रीलिंग 'नयी' होगा। नए और नई अशुद्ध हैं।
- गए, गई, गये का शुद्ध प्रयोग- यहाँ भी गए, गई अशुद्ध शब्द है। वस्तुतः 'नया' के समान 'गया' मूल शब्द है। इसका बहुवचन ‘गये' और स्त्रीलिंग 'गयी' होंगे।
- हुए, हुये, हुयी, हुई का शुद्ध प्रयोग- एकवचन में मूल शब्द 'हुआ' है। इसका बहुवचन हुए, होगा, 'हुये' नहीं। 'हुए' का स्त्रीलिंग 'हुई' होगा, 'हुयी' नहीं। अतः शुद्ध रूप 'हुए' और 'हुई है।
- किए, किये का शुद्ध प्रयोग– यहाँ ‘क्रिया' मूल शब्द है जिसका बहुवचन ‘किये' होगा, 'किए' नहीं।
- चाहिए, चाहिये का प्रयोग- अव्यय विकृत नहीं होता और 'चाहिए' अव्यय है। अतः 'चाहिए' शुद्ध रूप है।
- इसलिए, इसलिये- 'इसलिए' भी अव्यय है। अतः यही शुद्ध रूप है.- 'इसलिए'। 'इसलिये' अशुद्ध है।
- लिए, लिये का शुद्ध प्रयोग- ये दोनों शुद्ध रूप हैं। जहाँ अव्यय के रूप में प्रयोग होगा वहाँ 'लिए' आयेगा, जैसे- उसने मेरे लिए कठिन परिश्रम किया । लेकिन क्रिया के अर्थ में 'लिये' ही आयेगा, क्योंकि इसका मूल शुद्ध 'लिया' है।
- 'न', 'नहीं', 'मत' का प्रयोग- जब दो या दो से अधिक बातों, वस्तुओं या व्यक्तियों में निषेध करना हो तो 'न' का प्रयोग होता है। उदाहरण- मेरे पास न लोटा है, न थाली, वहाँ न राम था, न रहीम, न कुछ कहा, न सुना, न खाया, न पिया, यों ही चला गया ।
'न' का प्रयोग प्रश्नवाचक अव्यय, विधि क्रिया और संभाव्य भविष्य में भी होता है। जैसे- तुम कल आये थे न? तुमने पैसा दे दिया न? - प्रश्नवाचक अव्यय।
दूसरे का धन न लो, न लो; न दो- विधि क्रिया। ऐसा न हो कि वह चला जाय - संभाव्य भविष्य ।
'न' सामान्य निषेध का सूचक है, जबकि 'नहीं' निश्चित निषेध को सूचित करता है। जैसे- वह नहीं आयेगा। मैं नहीं जाऊँगा।
सामान्य रूप में 'नहीं' का प्रयोग सामान्य वर्तमान, तात्कालिक वर्तमान, आसन- भूत और किसी प्रश्न के उत्तर में होता है।
वह नहीं जाता। राम नहीं आ रहा है। उसने इस वर्ष होली नहीं मनायी। मैंने रुपये नहीं दिये।
'मत' का प्रयोग विधि, आज्ञा, प्रार्थना, अनुमति आदि के अर्थ में होता है। जैसे- झूठ मत बोलो। यहाँ मत आना। उस तरह का काम मत करो। यहाँ मत आओ।