प्रकाश क्या है | prakash kya hai

प्रकाश क्या है?

प्रकाश ऊर्जा का ही एक रूप है, जिसके द्वारा हमें वस्तुओं को देखने की अनुभूति होती है, वास्तव में प्रकाश विद्युत चुम्बकीय अनुप्रस्थ तरंग है। विज्ञान की वह शाखा जिसमें हम इसके गुणधर्मों का अध्ययन करते हैं, प्रकाशिकी कहलाती है।
प्रकाश (Light) हमारी आँखों पर एक दृश्य संवेदना पैदा करता है, जो ऊर्जा का एक रूप है। यह सरल रेखा में गमन करता है। भिन्न-भिन्न माध्यमों में प्रकाश की चाल भिन्न-भिन्न होती है। निर्वात् में प्रकाश की चाल 3x108 मी/से होती है। सूर्य के पृथ्वी तक आने में लगभग 499 सेकण्ड या 8 मिनट 19 सेकण्ड लगते हैं। चन्द्रमा से परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 सेकण्ड का समय लगता है।

प्रकाश के स्रोत

प्रकाश के प्राकृतिक स्रोत (Source)

सूर्य एवं तारे हैं। इन तारों के अन्दर हाइड्रोजन परमाणु लगातार हीलियम परमाणु में बदलते रहते हैं। इस प्रकार की प्रक्रिया में अपार ऊर्जा की प्राप्ति होती है तथा इस ऊर्जा का एक भाग पृथ्वी को प्रकाश के रूप में प्राप्त होता है। जो प्रकाश जीव-जन्तुओं से प्राप्त होता है, उसे जैव प्रकाश (Bioluminescence) कहते हैं। जैसे-जुगनू से प्राप्त प्रकाश। इसके अतिरिक्त प्रकाश के कुछ कृत्रिम स्रोत भी हैं, जैसे-विद्युत बल्ब, माचिस, मोमबत्ती आदि। प्रकाश के आधार पर वस्तुओं को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है

प्रदीप्त वस्तुएँ (Luminous Bodies)
वे वस्तुएँ जो अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होती हैं, प्रदीप्त वस्तुएँ कहलाती हैं।
जैसे- सूर्य, बल्ब इत्यादि।

अप्रदीप्त वस्तुएँ (Non-luminous Bodies)
वे वस्तुएँ जिनका अपना स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता, लेकिन उन पर प्रकाश डालने पर वे दिखाई देने लगती हैं, अप्रदीप्त वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे- किताब, कुर्सी इत्यादि।

पारदर्शक वस्तुएँ (Transparent Bodies)
वे वस्तुएँ जिनसे होकर प्रकाश किरणें निकल जाती हैं, पारदर्शक वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे- काँच।

अपारदर्शक वस्तुएँ (Opaque Bodies)
वे वस्तुएँ जिनसे होकर प्रकाश की किरणें बाहर नहीं निकल पाती हैं, अपारदर्शक वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे- धातुएँ।

अर्द्धपारदर्शक वस्तुएँ (Translucent Bodies)
वे वस्तुएँ, जिन पर प्रकाश की किरणें पड़ने से उनका कुछ भाग तो अवशोषित हो जाता है तथा कुछ बाहर निकल जाता है, अर्द्धपारदर्शक वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे- तेल लगा हुआ कागज।

प्रकाश की प्रकृति

दैनिक जीवन में हम जिन वस्तुओं को देखते हैं उनकी अनुभूति हमें प्रकाश द्वारा होती है। अँधेरे में हम किसी वस्तु को देखने में असमर्थ हैं लेकिन सूर्य के प्रकाश या किसी अन्य कृत्रिम प्रकाश के माध्यम से हम वस्तुओं को देख सकते हैं। जब कोई वस्तु अपने पर पड़ने वाले प्रकाश को परावर्तित (Reflect) कर देती है और यह परावर्तित प्रकाश हमारी आँखों पर पड़ता है तो हमें वह वस्तु दिखाई देती है अर्थात् प्रकाशीय ऊर्जा के कारण ही हम किसी वस्तु को देख पाते हैं अर्थात् हम किसी वस्तु को देख पाएँ इसके लिये यह आवश्यक है कि किसी स्रोत से निकलने वाला प्रकाश उस वस्तु पर पड़े और उससे टकराकर हमारी आँखों तक पहुँचे।
लेकिन हम यह भी जानते हैं कि प्रत्येक वस्तु अपने ऊपर आपतित (पड़ने वाले) प्रकाश का कुछ हिस्सा अवशोषित कर लेती है। चूँकि सूर्य के प्रकाश या श्वेत प्रकाश में विभिन्न रंगों के प्रकाश समाहित रहते हैं। अतः जब यह प्रकाश किसी रंगीन वस्तु पर पड़ता है तो वह वस्तु केवल एक रंग के प्रकाश को परावर्तित करती है और बाकी रंगों के प्रकाश को अवशोषित कर लेती है। उसके द्वारा परावर्तित प्रकाश का रंग ही हमें उस वस्तु के रंग के रूप में दिखाई देता है। जैसे कोई नीले रंग की वस्तु श्वेत प्रकाश में से नीले प्रकाश को परावर्तित करती है और बाकी रंगों के प्रकाश को अवशोषित कर लेती है।
इसी प्रकार चूँकि श्वेत वस्तु संपूर्ण प्रकाश को परावर्तित करती है कुछ भी अवशोषित नहीं करती। अतः हमारी आँखों तक श्वेत प्रकाश ही पहुँचता है और वस्तु हमें श्वेत दिखाई देती है। इसी प्रकार जो वस्तु संपूर्ण प्रकाश को अवशोषित कर लेती है, उसका रंग हमें काला दिखाई देता है। रंगीन प्रकाश का मिश्रण एवं वर्ण त्रिभुज लाल, हरे व नीले रंग के प्रकाश के मिश्रण से श्वेत प्रकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में किसी भी रंग को इन तीन रंगों के समुचित मिश्रण से बनाया जा सकता है। अतः ये तीन रंग- लाल, हरा व नीला प्राथमिक रंग या मूल रंग कहलाते हैं। अन्य रंगों को गौण रंग (अथवा द्वितीयक रंग) कहते हैं।

सूर्यग्रहण
अपनी कक्षा में परिभ्रमण करते समय जब चन्द्रमा पृथ्वी एवं सूर्य के बीच आ जाता है, तो सूर्य का कुछ अंश चन्द्रमा से ढक जाने के कारण पृथ्वी से नहीं दिखाई पड़ता है, इसी स्थिति को सूर्यग्रहण (Solar Eclipse) कहते हैं।

चन्द्रग्रहण
जब पृथ्वी सूर्य एवं चन्द्रमा के बीच आ जाती है, तो सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा पर नहीं पड़ता है और इस स्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी से दिखाई नहीं पड़ता है। इसी स्थिति को चन्द्रग्रहण (Lunar Eclipse) कहते हैं।

विभिन्न माध्यमों में प्रकाश की चाल

माध्यम

प्रकाश की चाल (मी/से)

निर्वात्

3X108

पानी

2.25X108

तारपीन का तेल

2.04X108

काँच

2X108

राक सॉल्ट

1.96X108

नाइलॉन

1.96X108


प्राथमिक रंगों के किस मिश्रण से कौन-सा रंग प्राप्त होगा यह हमें वर्ण-त्रिभुज की सहायता से पता चलता है,
जैसे:-
  • नीला + हरा = स्यान नीला + लाल = मैजेंटा
  • लाल + हरा = पीला
  • पीला + नीला = हरा + मैजेंटा = लाल + स्यान = श्वेत
  • नीला + हरा + लाल = श्वेत
उन दो रंगों को जिनके मिश्रण से श्वेत रंग प्राप्त होता है, उन्हें पूरक रंग कहते हैं जैसे: नीला व पीला रंग, हरा व मैजेंटा रंग तथा लाल एवं स्यान रंग।

हम वर्ण त्रिभुज के तीनों मूल रंगों को विभिन्न मात्रा में मिलाकर किसी भी रंग को उत्पन्न कर सकते हैं। अतः इन रंगों को एडिटिव प्राथमिक रंग भी कहते हैं। ये रंग भी दो अन्य रंगों के मिलाने से प्राप्त किये जा सकते हैं,
जैसे:
मैजेंटा + पीला = लाल
स्यान + पीला = हरा
स्यान + मैजेंटा = नीला

कुछ घटनाओं जैसे परावर्तन, अपवर्तन, विवर्तन, व्यतिकरण व ध्रुवण आदि घटनाओं में प्रकाश को तरंग माना जाता है। प्रकाश का विद्युत प्रभाव तथा कॉम्पटन प्रभाव आदि की व्याख्या प्रकाश के फोटॉन सिद्धान्त द्वारा की जाती है। समांग माध्यमों में प्रकाश की किरणें सरल रेखाओं में चलती हैं, यह प्रकाश का सरल रेखीय गमन (Rectilinear Propagation of Light) कहलाता है। छाया का बनना, सूची छिद्र कैमरे में उल्टे चित्र का बनना, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, प्रकाश के रेखीय गमन के द्वारा ही सम्भव है।
जब प्रकाश किरणों के मार्ग में कोई अपारदर्शी वस्तु आ जाती है, तो प्रकाश किरणें आगे नहीं बढ़ पाती हैं, तब आगे प्रकाशित भाग के बीच में वस्तु के आकार का काला भाग दिखाई देता है, जिसे छाया (Bro) कहते हैं। यदि छाया का भाग पूरी तरह अन्धकारमय होता है, तो इसे प्रच्छाया (Umbro) कहा जाता है। यदि छाया का भाग आंशिक रूप से अन्धकारमय होता है, तो इसे उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं।

प्रकाश तरंगें (Light waves)

प्रकाशीय तरंगें एक प्रकार की विद्युत चुंबकीय तरंगें (Electro magnetic waves) होती हैं, जो निर्वात में 3x108 मी.से. की गति से गमन करती हैं। जब प्रकाश किसी माध्यम में प्रवेश करता है तो उसका वेग बदलता है। सामान्यतः काँच में प्रकाश की चाल कम, जल में उससे ज़्यादा, वायु में उससे ज़्यादा और निर्वात में सर्वाधिक होती है। विभिन्न वैज्ञानिकों ने यह मत दिया है कि प्रकाश की प्रकृति द्वैत (Dual) होती है अर्थात् प्रकाश तरंगों की भाँति भी व्यवहार करता है तथा कणों (Particle) जैसे गुण भी रखता है।

प्रकाश की तरंग प्रकृति (Wave nature of light): सर्वप्रथम हाइगेंस नामक वैज्ञानिक ने बताया कि प्रकाश तरंगों की भाँति भी व्यवहार करता है। अपने तरंग सिद्धांत के आधार पर इन्होंने प्रकाश का विवर्तन, परावर्तन व अपवर्तन (Diffraction, reflection and refraction of light) आदि घटनाओं को समझाया, किंतु प्रकाश के कुछ गुण जैसे प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photoelectric effect), कॉम्पटन प्रभाव (Compton's effect) का सिद्धांत नहीं समझा सके।

प्रकाश की कण प्रकृति (Particle nature of light): प्रकाश के 'कणिका सिद्धांत' (Corpuscular theory) के अनुसार प्रकाश छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना है। बाद में आइंस्टीन ने बताया कि प्रकाश का संचरण छोटे-छोटे बंडलों या पैकेटों (Packets) के रूप में होता है, जिन्हें फोटॉन (Photon) कहा जाता है।

प्रकाश का परावर्तन

प्रकाश के किसी वस्तु से टकराकर लौटने की घटना प्रकाश का परावर्तन (Reflection of light) कहलाती है। समतल दर्पण प्रकाश का एक अच्छा परावर्तक है।

परावर्तन के नियम
आपतित किरण, परावर्तित किरण और आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब तीनों एक ही समतल में होते हैं।
आपतन कोण, परावर्तन कोण के बराबर होता है।

प्रकाश का अपवर्तन

जब प्रकाश की किरणें एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में प्रवेश करती हैं, तो किरणें दोनों माध्यमों को अलग करने वाले तल पर अभिलम्बवत् आपतित होने पर बिना मुड़े सीधे निकल जाती हैं, परन्तु तिरछी आपतित होने पर वे अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाती हैं। इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of light) कहते हैं।

अपवर्तन के नियम
आपतित किरण (Incident Ray), अभिलम्ब तथा अपवर्तित किरण (Refracted Ray) तीनों एक ही समतल में स्थित होते हैं। किन्हीं दो माध्यमों के लिए आपतन कोण की ज्या (sine) तथा अपवर्तन कोण की ज्या (sine) का अनुपात एक नियतांक होता है।

अपवर्तन के कुछ उदाहरण

तारों का टिमटिमाना वायुमण्डल की असमानता के कारण होता है। पृथ्वी का वायुमण्डल कभी शांत नहीं होता, गर्म तथा ठण्डी हवा की धाराएँ सदैव बहती रहती हैं। ठण्डी हवा की अपेक्षा गर्म हवा का घनत्व कम होता है। तारों से किरणें जितने समय में प्रेक्षक तक पहुँचती हैं उतने ही समय में ये किरणें वायुमण्डल के अपवर्तनांक में होने वाले परिवर्तनों के कारण अगल-बगल मुड़ जाती हैं। कभी-कभी मध्यवर्ती वायुमण्डल में एकाएक परिवर्तन होने के कारण किरणें एक ओर विचलित हो जाती हैं, जिससे प्रकाश प्रेक्षक से बहुत थोड़े समय के लिए अंशत: कट जाता है। इसी कारण तारे टिमटिमाते दिखाई पड़ते हैं।
पानी में छड़ी का मुड़ना एवं पानी से भरी बाल्टी की गहराई का कम मालूम पड़ना भी अपवर्तन के कारण ही होता है।
किसी बिम्ब-बिन्दु से आ रही प्रकाश-किरणें परावर्तन या अपवर्तन के बाद जिस बिन्दु पर कटती हैं या कटती हुई प्रतीत होती हैं, उस बिन्दु को प्रतिबिम्ब (Image) कहते हैं। वास्तविक प्रतिबिम्ब से आ रही किरणें परस्पर कटती हुई मालूम पड़ती हैं, उन्हें पीछे की ओर पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है, जबकि काल्पनिक प्रतिबिम्ब सीधा होता है और पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

prakash-kya-hai

Post a Comment

Newer Older