बैंक क्या है? बैंक के प्रकार, कार्य, महत्व और उद्देश्य | Bank kya hai | Bank In Hindi

बैंक क्या है? Bank kya hai

बैंक (Bank) एक ऐसी संस्था है, जो लोगों से जमा (Deposits) स्वीकार करती है और इसके बदले साख निर्माण करके अग्रिम ऋण (Loans) देती है। अतः ऐसी संस्थाएँ जो किसी देश के वित्तीय व्यवहार में भागीदार होती है, बैंक कहलाती है।
Bank-kya-hai
बैंकिंग नियमन अधिनियम द्वारा बैंकिंग की परिभाषा है - "बैंकिंग से तात्पर्य जनसाधारण से ऋण उपलब्ध करवाने अथवा निवेश के लिए जमा के रूप में धन स्वीकार करना जिसका पुनः भुगतान मांग पर अथवा चैक या ड्राफ्ट इत्यादि द्वारा किया जाता है।" अतः जमा राशि स्वीकार करना तथा ऋण देना या निवेश करना बैंक के दो आवश्यक कार्य हैं जो जन साधारण के धन के लेन-देन में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं। साथ ही वह अन्य कई सेवाएँ भी उपलब्ध करवाते हैं जिनका वर्णन आगे इस पाठ में किया गया है। bank kya hota hai
इस प्रकार की संस्थाओं के कार्य निम्नलिखित हैं :
  • ये संस्थाएँ लोगों से जमा स्वीकार करती हैं तथा उन जमाओं पर व्याज (interest) देती हैं। 
  • ये संस्थाएँ लोगों को ऋण उपलब्ध कराती है तथा उन ऋणों पर ब्याज लेने का कार्य करती हैं। 
  • विदेशी व्यापार में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती हैं। 
ये कार्य संगठित क्षेत्र द्वारा भी किए जा सकते हैं और असंगठित क्षेत्र द्वारा भी।
अतः बैकिंग संरचना भी दो प्रकार की हो सकती है। 
  1. संगठित बैंकिंग संरचना
  2. असंगठित बैंक संरचना

संगठित बैंकिग संरचना
संगठित बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक तथा वाणिज्यिक बैंकों को रखा जा सकता है। सामान्यतः बैंकिंग शब्द का प्रयोग संगठित बैंकिंग के लिए ही किया जाता है।

असंगठित बैंकिंग संरचना
असंगठित बैंकिंग के अंतर्गत साहूकारों तथा महाजनों (Money Lenders) इत्यादि को रखा जा सकता है, जिन्हें देशी बैंकर भी कहा जाता है। इन पर भारतीय रिजर्व बैंक का कोई नियंत्रण नहीं होता है।

संगठित व असंगठित बैंकिंग में अंतर
संगठित बैंकिंग व्यवस्था में साख का निर्माण कानूनी तौर पर किया जाता है जबकि असंगठित बैंकिंग में साख का निर्माण आपसी विश्वास पर होता है।
संगठित बैंकिंग व्यवस्था सीधे भारतीय रिर्जव बैंक के नियंत्रण में कार्य करती है जबकि असंगठित बैंकिंग व्यवस्था भारतीय रिजर्व बैंक के नियंत्रण से मुक्त हैं।

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में बैंकिंग व्यवस्था को प्रोत्साहित करने के कारण
  1. लोकतांत्रिक समाजवादी आदर्श का पालन करना। 
  2. वित्तीय प्रणाली से सभी को जोड़ना। 
  3. ब्याज दरों में समानता लाना। 
  4. असंगठित बैंकिंग की अव्यवस्थाओं को दूर करना। 
  5. आर्थिक व सामाजिक शोषण को रोकना। 
  6. वित्तीय व्यवस्था को निजी नियंत्रण से मुक्त करना।
समग्र रूप से यह आर्थिक समाजवाद की दिशा में एक कदम था।

बैंकिंग प्रणाली का इतिहास (History of Banking System)

आधुनिक बैंकों का आरंभ सन् 1157 में इटली में बैंक ऑफ वेनिस की स्थापना के साथ माना जाता है। तत्पश्चात् 1401 ई. में बैंक ऑफ बार्सिलोना, 1407 ई. में बैंक ऑफ जेनेवा तथा 1694 ई. में बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना हुई।
18वीं शताब्दी में सार्वजनिक पूँजी वाली कंपनियों के प्रवेश के साथ ही बैंकिंग क्षेत्र के विकास में तेजी आई।

बैंकिंग का महत्व

  • (क) पूँजी निर्माण : बैंकों के द्वारा स्वीकार की गई जमा राशि को व्यावसायिक संगठनों व औद्योगिक इकाइयों को व्यापारिक क्रियायों के लिए ऋण एवं अग्रिम राशि के रूप में दिया जाता है। इस प्रकार से बैंक परोक्ष रूप से बचत को निवेश में परिवर्तित कर देते हैं जिसके परिणामस्वरूप पूँजी निर्माण एवं अर्थव्यवस्था का विकास होता है।
  • (ख) व्यवसाय की सेवा : बैंकिंग, विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान कर व्यवसाय की सहायता करता है। ये सेवाएं है दीर्घ एवं अल्प अवधि के लिए वित्त प्रदान करना, पैसे के हस्तान्तरण की व्यवस्था करना, चेक व बिल आदि का पैसा एकत्रित करना एवं पूँजी जुटाने में सहायता करना।
  • (ग) मुद्रा के उपयोग को कम करना : बैंक जमाकर्ताओं को चैक से भुगतान की सुविधा प्रदान करता है जो कि हस्तान्तरणीय भी होता है। इसके साथ साथ यात्री नकद राशि के स्थान पर बैंक द्वारा जारी यात्री चैक, क्रेडिट कार्ड आदि को ले जा सकते हैं। इस प्रकार से मुद्रा के प्रयोग में काफी कमी आती है।
  • (घ) बचत को गति प्रदान करना : बैंक बचत को विभिन्न प्रकार के खातों में जमा करने की सुविधा देते हैं जैसे चालू खाता, बचत जमा खाता, सावधि जमा खाता आदि। पैसा निकालने की सुविधा तथा जमा राशि पर ब्याज के भुगतान से लोगों में बचत करने एवं उसे बैंक में रखने की प्रवृति को प्रोत्साहन मिलता है।
  • (ङ) ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को लाभ : बैंकों की ग्रामीण शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में बचत को बढ़ावा देने तथा किसानों एवं काश्तकारों को रियायती दर पर ऋण उपलब्ध कराने में उपयोगी भूमिका निभाते हैं। इससे ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को बड़ी सहायता मिलती है।
  • (च) अर्थ व्यवस्था का संतुलित विकास : बैंक उन क्षेत्रों की पहचान करता है जहां औद्योगिक विकास के लिए विशेष सहायता की आवश्यकता होती है और इस तरह बैंक वहां आवश्यक सहायता प्रदान करता है। इसी प्रकार से वह पिछड़े क्षेत्रों की पहचान करता है तथा उन्हें उचित दर पर पर्याप्त धन प्रदान कर उनके आर्थिक विकास में सहायता करता है। इस प्रकार से बैंक पिछड़े क्षेत्रों में उदयोगों एवं संतुलित क्षेत्रीय विकास में सहायता करता है।
  • (छ) ऋण नीति का विकास : आर्थिक विकास के लिए ऋण नीति पहली आवश्यकता है। देश का केन्द्रीय बैंक उचित मुद्रा नीति विकसित करता है। इसके लिए यह अर्थ-व्यवस्था के व्यापक हित में तथा विकास की गति को बढ़ाने के लिए यह बैंक ब्याज दर का निर्धारण करता है एवं मुद्रा की आपूर्ति का नियमन भी करता है। bank ka mahatva

बैंक के प्रकार

ग्राहकों की विभिन्न वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देश में विभिन्न प्रकार के बैंक कार्यरत हैं। किसी को कम अवधि के लिए धन की आवश्यकता है तो दूसरों को दीर्घ अवधि के लिए। एक व्यवसायी को धन की आवश्यकता व्यापार करने के लिए हो सकती है तो दूसरे को एक बड़ी विनिर्माण इकाई को स्थापित करने के लिए। कभी-कभी सरकार को भी ऋण की आवश्यकता होती है।
अतः इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हमारे पास विभिन्न प्रकार के बैंकिंग संस्थान हैं जिनको उनके कार्यानुसार इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:-
  • (क) वाणिज्यिक बैंक
  • (ख) सहकारी बैंक
  • (ग) विकास बैंक
  • (घ) विशेष उद्देश्य बैंक
  • (ड) केन्द्रीय बैंक

आइये, इन सभी बैंकों के सम्बन्ध में जानें:

(क) वाणिज्यिक बैंक
वाणिज्यिक बैंक वे बैंकिंग संस्थाएं हैं जो जन साधारण से जमा-राशि स्वीकार करती हैं तथा अपने ग्राहकों को अल्प अवधि के ऋण देती हैं। आजकल वाणिज्यिक बैंकों ने व्यापार एवं औद्योगिक इकाइयों को भी मध्यम अवधि एवं दीर्घ अवधि ऋण देने प्रारम्भ कर दिये हैं।
वाणिज्यिक बैंकों के भी विभिन्न प्रकार है जैसे-
  • (i) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक
  • (ii) निजी क्षेत्र के बैंक, और
  • (iii) विदेशी बैंक।
  • (i) सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक : सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों में अधिकांश भागीदारी भारत सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक की होती है। इण्डियन बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, सिन्डीकेट बैंक, देना बैंक आदि इसके उदाहरण हैं।
  • (ii) निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक : निजी क्षेत्र वाणिज्यिक बैंकों में बैंकों के अधिकांश अंश पूँजी निजी हाथों में होती है। यह बैंक सार्वजनिक कम्पनी के रूप में पंजीकृत होते हैं। इस वर्ग के बैंकों के उदाहरण हैं आई सी आई सी आई बैंक लिमिटेड धनलक्ष्मी बैंक लिमिटेड, कोटक महिन्द्रा बैंक, एच.डी.एफ.सी बैंक लि. आदि।
  • (iii) विदेशी बैंक : ऐसे बैंक जिनकी स्थापना व समामेलन विदेशों में हुआ है लेकिन इनकी शाखाएं हमारे देश में कार्यरत हैं। इस वर्ग के बैंक हैं: हांगकांग एण्ड शंघाई बैंकिंग कार्पोरेशन (एच.एस.बी.सी.) अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक, स्टैन्डर्ड एण्ड चार्टर्ड बैंक, एबीएन ऐमरो बैंक इत्यादि।

(ख) सहकारी बैंक
जब एक सहकारी समिति बैंकिंग व्यवसाय करती है तो इसे सहकारी बैंक कहते हैं। सहकारी बैंक सामान्यतः उद्देश्यपूर्ण ऋण देते हैं। ब्याज सामान्यतः कम दर से लिया जाता है। इन बैंकों का नियन्त्रण एवं इनका निरीक्षण भी भारतीय रिजर्व बैंक करता है। हमारे देश में तीन प्रकार के सहकारी बैंक कार्य कर रहे हैं। ये हैं: (i) प्राथमिक साख समिति (ii) केन्द्रीय सहकारी बैंक एवं (iii) राज्य सहकारी बैंक।

(ग) विकास बैंक
विकास बैंक वह वित्तीय संस्थान हैं जो उद्योगों को मध्य अवधि एवं दीर्घ अवधि के लिए ऋण प्रदान करते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में उद्योग धन्धों का तेजी से विकास हुआ जिसमें भारी वित्तीय निवेश एवं अधिक प्रवर्तन की मांग हुई। इसके परिणामस्वरूप इन संस्थानों की स्थापना हुई। विकास बैंक उदयोग धन्धों के प्रवर्तन, विस्तार एवं आधुनिकीकरण में सहायता प्रदान करते हैं। मध्य अवधि एवं दीर्घ अवधि के लिए वित्त प्रदान करने के साथ-साथ यह बैंक औद्योगिक उपक्रमों में पूँजी भी लगाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर यह तकनीकी सलाह एवं सहायता भी देते हैं। भारत में विकास बैंक के उदाहरण हैं: भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, राज्य वित्त निगम एवं भारतीय औद्योगिक विकास बैंक।

(घ) विशेष उद्देश्य बैंक
कुछ ऐसे बैंक हैं जो किसी विशेष गतिविधि अथवा क्षेत्र विशेष में कार्य करते हैं। इसलिए इन्हें विशेष उद्देश्य बैंक कहते हैं। भारतीय आयात निर्यात बैंक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक आदि इस वर्ग के बैंकों के उदाहरण हैं।

(ड) केन्द्रीय बैंक
प्रत्येक देश में एक बैंक को बैंकिंग प्रणाली के मार्गदर्शन एवं नियमन का उतरदायित्व सौंपा जाता है। इसे केन्द्रीय बैंक कहते हैं। यह एक शीर्षस्थ बैंक होता है और इसे उच्चतम वित्तीय अधिकार प्राप्त होते हैं। भारत में केन्द्रीय बैंकिंग प्राधिकारी भारतीय रिजर्व बैंक है। यह जनमानस से सीधा लेन-देन नहीं करता। यह बैंकों का बैंक है। इसमें सभी बैंकों के जमा खाते होते हैं। यह बैंकों को आवश्यकता पड़ने पर अग्रिम राशि देता है। यह मुद्रा एवं साख की मात्रा का नियमन करता है एवं सभी बैंकों के मुद्रा संबंधी लेन-देनों का निरीक्षण एवं नियन्त्रण करता है।
रिजर्व बैंक सरकार के बैंकर की भूमिका भी निभाता है और सरकारी प्राप्तियों, भुगतानों एवं विभिन्न स्त्रोतों से लिए गए ऋणों का विवरण रखता है। यह सरकार को मौद्रिक एवं साख नीति के विषय में सलाह देने एवं बैंकों द्वारा स्वीकार किए जाने वाली जमा राशि और दिये जाने वाले ऋणों पर ब्याज की दर का निर्धारण भी करता है। यह देश में मुद्रा, विदेशी मुद्रा के भंडारों, सोना एवं अन्य प्रतिभूतियों के रखवाले का कार्य भी करता है। रिजर्व बैंक करेन्सी नोट जारी करने और मौद्रिक आपूर्ति के नियमन का कार्य भी करता है।

वाणिज्यिक बैंक के कार्य
वाणिज्यिक बैंकों के कार्यों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
  1. (क) मुख्य कार्य, एवं
  2. (ख) गौण कार्य।
आइए, इन कार्यों की प्रकृति एवं प्रकारों को समझें।

(क) मुख्य कार्य वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्यों में सम्मिलित हैं :-

1. जमा-राशि स्वीकार करना : वाणिज्यिक बैंक का मुख्य कार्य जन साधारण से जमा-राशि स्वीकार करना है। सामान्यतः जो लोग अपनी आय का कुछ भाग बचाते हैं वे अपनी बचत को बैंक में जमा कराना पसंद करते हैं। ग्राहकों की सुविधानुसार बैंक विभिन्न प्रकार के जमा खातों की सुविधा देता है जैसे कि सावधि जमा खाता, आवर्ती जमा खाता, चालू खाता, बचत बैंक खाता आदि, जिन पर अलग-अलग दर से ब्याज दिया जाता है। जनता को बैंक में जमा धनराशि की सुरक्षा का भी विश्वास दिलाया जाता है।

ऋण देना : वाणिज्यिक बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य जनता एवं व्यावसायिक इकाइयों को ऋण एवं अग्रिम उपलब्ध करवाना है। यह निर्धारित ब्याज की दर पर ऋण एवं अग्रिम देते हैं। ऋण एक निश्चित अवधि के लिए दिये जाते हैं। ऋण लेने वाले को पूरी राशि एक साथ या किस्तों में दी जाती है। ऋण एवं अग्रिम सामान्यतः किसी परिसम्पति की जमानत पर दिये जाते हैं। छोटी अवधि के लिए बैंक द्वारा दी जाने वाली उधार की सुविधाएं नकद साख, अधिविकर्ष या फिर बिलों के कटौती पर भूनाने के रूप में हैं, जैसे कि पहले कहा जा चुका है कि बैंक मध्य अवधि एवं दीर्घ अवधि के लिए भी ऋण देते हैं।

(ख) गौण कार्य 'उपर वर्णित मुख्य कार्यों के अतिरिक्त वाणिज्यिक बैंक कुछ सहायक सेवाएं भी प्रदान करते हैं। ये सेवाएं मुख्य सेवाओं की पूरक होती हैं तथा इन्हें वाणिज्यिक बैंक के गौण कार्य कहा जा सकता है।
ये सेवाएं वास्तव में गैर बैंकिंग होती हैं तथा ये प्रमुखतः दो प्रकार की होती हैं:-
  1. एजेन्सी सेवाएं
  2. सामान्य उपयोगी सेवाएं।

एजेन्सी सेवाएं : ये वे सेवाएं हैं जिन्हें वाणिज्यिक बैंक ग्राहकों के एजेन्ट के रूप में प्रदान करते हैं। इनमें निम्नलिखित सेवाएं सम्मिलित हैं।
  • ग्राहकों के चैकों एवं बिलों की वसूली,
  • ग्राहकों के लिए लाभांश, ब्याज, किराये आदि की वसूली,
  • ग्राहकों के लिए प्रतिभूतियों (अंश, ऋणपत्रों, बांड आदि) का क्रय एवं विक्रय
  • ग्राहकों के लिए उनके किराये, ब्याज, बीमा प्रीमियम, चंदे आदि का भुगतान
  • न्यासी अथवा कार्यकारी की भूमिका निभाना
  • ग्राहकों के लिए देश व विदेश के अन्य बैंकों व वित्तीय संस्थानों के साथ एजेन्ट अथवा संवाददाता की भूमिका।

सामान्य उपयोगी सेवाएं : सामान्य उपयोगी सेवाएं वे सेवाएं हैं जिन्हें वाणिज्यिक बैंक न केवल अपने ग्राहकों को बल्कि जन साधारण को भी प्रदान करता है। ये जन साधारण को फीस के भुगतान पर उपलब्ध होती हैं। इनमें नीचे दी गई सेवाएं सम्मिलित हैं।
  • बैंक ड्राफ्ट, भुगतान आदेश (Pay order), बैंक का चैक या यात्री चैक जारी करना
  • साख पत्र जारी करना
  • लॉकरों में कीमती सामान को सुरक्षित करना
  • ए टी एम कार्ड, डेबिट कार्ड (Debit Card) एवं क्रेडिट कार्ड (Credit Card) की सुविधा उपलब्ध करवाना
  • इन्टरनेट बैंकिंग एवं फोन बैंकिंग
  • विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के विवरण-पत्रों एवं आवेदन पत्रों की बिक्री करना
  • टेलीफोन बिलों एवं बिजली बिलों का भुगतान स्वीकार करना
  • सरकार एवं सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा जारी ऋणों का अभिगोपन करना
  • ग्राहकों के लिए उपयोगी व्यावसायिक एवं सांख्यिकीय आंकड़े उपलब्ध कराना; और
  • ग्राहकों की वित्तीय स्थिति के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करना।

बैंक खातों के प्रकार

1. बचत जमा खाता : इस प्रकार के खातों का उद्देश्य लोगों में बचत की आदत को बढ़ावा देना है, बचत खाते छोटी राशि जैसे कि 100 रू. से खोले जा सकते हैं। इस खाते में कितनी भी बार राशि जमा की जा सकती है। लेकिन पैसा निकालने पर कुछ रोक है। प्रतिदिन के न्यूनतम शेष पर ब्याज दिया जाता है। ब्याज की दर सावधि जमा खाते पर व्याज की दर से कम होती है। खाता धारक को पासबुक भी दी जाती है, जो खाते में जमा की गई राशि, खाते से निकाली गई राशि तथा खाते में शेष राशि को दर्शाती है।

2. चालू जमा खाता : चालू जमा खाता उद्योगपतियों एवं व्यवसायियों को आवश्यकतानुसार जब चाहें पैसा जमा करने या आहरण की सुविध देता है। राशि कभी भी चैक के द्वारा निकाली जा सकती है। ऐसे खाते में जमा पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है। ऐसे खातों पर ब्याज नहीं दिया जाता। वैसे चालू खातों पर अधिविकर्ष की सुविधा दी जाती है। चालू जमा को मांग जमा भी कहते हैं, क्योंकि इसमें जमाकर्ता के मांगने पर राशि का भुगतान किया जाता है। खाता धारक को एक पास बुक भी दी जाती है।

3. सावधि जमा खाता : सावधि जमा खाता में एक निश्चित राशि एक निश्चित अवधि के लिए जमा कराई जाती है, जैसे कि एक वर्ष, तीन वर्ष, पाँच वर्ष आदि निश्चित अवधि की समाप्ति पर जमा राशि ब्याज सहित लौटाई जाती है। इनपर उच्च दर से ब्याज दिया जाता है। ब्याज की दर जमा अवधि के अनुसार अलग-अलग होती है। सावधि जमा को 'समय जमा' अथवा 'दीर्घ अवधि जमा' भी कहते हैं। बैंक सावधि जमा खाता पर पासबुक और चैक बुक की सुविधा प्रदान नहीं करते हैं। स्थाई जमा में ब्याज दर, बचत खाता पर देय ब्याज से अधिक होती है तथा यह जमा की अवधि पर निर्भर करती है।

4. आवर्ती जमा खाता : आवर्ती जमा खाता में, खाता धारक को एक निश्चित अवधि तक एक निर्धारित राशि प्रति माह जमा करानी होती है। यह अवधि पाँच वर्ष, सात वर्ष, दस वर्ष हो सकती है। समायावधि के अन्त में, कुल जमा राशि तथा उस पर अर्जित व्याज खातेदार को भुगतान कर दिया जाता है। इस प्रकार के खाते में जमाकर्ता को परिपक्वता से पूर्व आहरण की छूट नहीं है। तथा इसमें चैक बुक की सुविधा नहीं होती। आवर्ती जमा को संचयी जमा खाता भी कहते है। खाता धारक को पासबुक जारी की जाती है, जिसमें प्रतिमाह जमा राशि दर्शाई जाती है। आवर्ती जमा खाते का उपयोग छोटी बचत करने वाले करते हैं। इस पर देय ब्याज की दर बचत बैंक खाते पर देय ब्याज की दर से अधिक होती है।

बैंक सेवाएं

वाणिज्यिक बैंक जमा स्वीकार करने तथा ऋण देने के अतिरिक्त अन्य विभिन्न सेवाएं भी प्रदान करते हैं। इन सेवाओं का वर्णन नीचे किया गया है :-

1. बैंक ड्राफ्ट जारी करना : बैंक ड्राफ्ट एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने का सुविधाजनक एवं सुरक्षित तरीका है। यह बैंक द्वारा अपनी किसी अन्य शाखा को एक निश्चित राशि का भुगतान प्राप्तकर्ता अथवा आदेशित व्यक्ति को भुगतान का आदेश होता है। इसमें धन भेजने के लिए नीचे दी गई प्रक्रिया अपनाई जाती है।
  • (क) व्यक्ति एक फार्म भरता है तथा बैंक को ड्राफ्ट की राशि तथा निर्धारित कमीशन का भुगतान करता है।
  • (ख) बैंक उसे बैंक ड्राफ्ट दे देता है।
  • (ग) तत्पश्चात् वह बैंक ड्राफ्ट को भुगतान प्राप्तिकर्ता को कूरीयर अथवा डाक घर के माध्यम से भेज देता है।
  • (घ) भुगतान प्राप्तकर्ता ड्राफ्ट को प्राप्त कर लेने पर उसे अपने बैंक में जमा कर देता
  • (ड.) बैंक, ड्राफ्ट जारी करने वाले बैंक से भुगतान प्राप्त कर उसे भुगतान प्राप्तकर्ता के खाते में जमा कर देता है।
बैंक ड्राफ्ट की विशेषताएं
  • (क) इसके अनादृत होने की जोखिम नहीं होती।
  • (ख) जारीकर्ता बैंक ड्राफ्ट के लिए कुछ कमीशन लेता है।
  • (ग) बैंक ड्राफ्ट एक स्थान से दूसरे स्थान पर राशि हस्तान्तरण का सुविधाजनक एवं सुरक्षित माध्यम है।
  • (घ) बैंक ड्राफ्ट इसके जारी करने की तिथि से तीन महीने तक वैध होता है।
  • (ड.) यह प्राप्तकर्ता अथवा उसके आदेशित व्यक्ति को एक निश्चित राशि का भुगतान का आदेश होता है।

2. बैंकर चैक (भुगतान आदेश) : भुगतान आदेश, बैंक ड्राफ्ट के समान ही होता है, लेकिन इसका भुगतान जारी कर्ता शाखा पर होता है। इसीलिए इस का उपयोग उसी शहर में धन हस्तान्तरण के लिए होता है। इसको स्थानीय बैंक ड्राफ्ट भी कहते हैं। भुगतान आदेश पर लिया जाने वाला कमीशन बैंक ड्राफ्ट के कमीशन से कम होता है। बैंक ड्राफ्ट के समान भुगतान आदेश भी तीन माह तक वैध रहता है।

3. वास्तविक समय सकल निपटान (आर.टी.जी.एस.) : आर.टी.जी.एस. एक कोष हस्तान्तरण प्रणाली है। इस प्रणाली में कोष का हस्तान्तरण एक बैंक से दूसरे बैक को वास्तविक समय एवं सकल आधार पर होता है अर्थात भुगतान के लिए कोई प्रतीक्षा की अवधि नहीं होती। लेनदेन का निपटान इसके प्रक्रियण के साथ ही हो जाता है। सकल निपटान का अर्थ है लेनदेन का आमने सामने के आधार पर होना। यह किसी अन्य लेनदेन से नहीं जोड़ी जाती। प्राप्तकर्ता बैंक को कोष प्राप्ति के दो घंटे के अन्दर इसे ग्राहक के खाते में जमा करना होता है। इस लेनदने की न्यूनतम राशि 50,000 रूपये होती है। इसकी कोई अधिकतम सीमा नहीं है। इस पर वसूल की जाने वाले कमीशन की राशि अलग-अलग बैंकों में अलग-अलग होती है।

4. राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक कोष हस्तान्तरण (NEFT) : एन.ई.एफ.टी. एक कोष हस्तान्तरण पद्धति है। इसमें कोई व्यक्ति, फर्म अथवा कम्पनी इलैक्ट्रॉनिक पद्धति के द्वारा एक बैंक शाखा से किसी भी अन्य व्यक्ति फर्म या कम्पनी, जिसका खाता देश के किसी भी अन्य बैंक में है, को धन का हस्तान्तरण कर सकता है। धन का हस्तान्तरण अवधि विशेष पर होता है। सप्ताह में प्रतिदिन यह लेनदेन दिन में 6 बार होते हैं (प्रातः 6:30 बजे, प्रातः 10:30 बजे, दोपहर 12:00 बजे, दोपहर 1:00 बजे. सायं 3:00 बजे एवं सायं 4:00 बजे) शनिवार को यह दिन में तीन बार होता है (प्रातः 9:30 बजे, प्रातः 10:00 बजे एवं दोपहर 12:00 बजे)।

एन.ई.एपफ.टी. की विशेषताएं
  • (क) व्यक्ति, फर्म अथवा कम्पनी एन.ई.एफ.टी. का उपयोग बैंक में खाता खोले बिना भी कर सकती है। इसके लिए उसे बैंक की शाखा, जो एन.ई.एफ.टी. की सुविधा प्रदान कर रही है, में नकद राशि जमा करानी होगी।
  • (ख) एन.ई.एफ.टी. प्रणाली द्वारा धन राशि प्राप्त करने के लिए व्यक्ति, फर्म अथवा कम्पनी का इस सुविधा को प्रदान करने वाले बैंक में खाता होना अनिवार्य है।
  • (ग) एन.ई.एफ.टी. के लेनदेन अलग-अलग समूहों में हाते हैं।
  • (घ) यदि व्यक्ति का खाता बैंक में नहीं है तो वह एन.ई.एपफ.टी. पद्धति द्वारा अधिकतम 49,999 रूपए की राशि का हस्तान्तरण कर सकता है।
  • (ड.) यदि बैंक में खाता है तो एन.ई.एफ.टी. द्वारा राशि हस्तान्तरण की कोई न्यूनतम अथवा अधिकतम सीमा नहीं है।
  • (च) एन.ई.एफ.टी. का उपयोग विदेशों से धन हस्तान्तरण के लिए नहीं किया जा सकता।
  • (छ) धन प्रेषक को एन.ई.एफ.टी. के लिए कुछ शुल्क चुकाना होता है, जो कि भेजी जाने वाली राशि के अनुसार में अलग-अलग होता है।
  • (ज) धन प्राप्तकर्ता को कोई व्यय नहीं करना पड़ता।

5. बैंक अधिविकर्ष : चालू खाता धारक अपने खाते में जमा राशि से अधिक एक निर्धारित सीमा तक राशि चैक द्वारा निकाल सकता है। यह सुविधा कुछ व्यक्तियों की प्रत्याभूति पर दी जाती है। बैंक अधिविकर्ष पर उच्च दर से ब्याज लिया जाता है। चालू खाते से अतिरिक्त राशि के आहरण करने पर उसे निर्धारित अवधि में खाते में जमा कराना होता है।

6. नकद साख : नकद साख पद्धति में, व्यक्ति, फर्म या कम्पनी जिसका खाता बैंक में है, बैंक से राशि उधार ले सकता है। जिसकी एक सीमा निश्चित होती है। उधार लेने वाला आवश्यकता पड़ने पर कभी भी राशि का आहरण कर सकता है। उधार की राशि पर ब्याज लिया जाता है। नकद साख की सीमा का निर्धारण बैंक द्वारा, उधार लेने वाले की परिसम्पत्तियों एवं उसकी व्यक्तिगत साख के आधार पर किया जाता है।

7. एस.एम.एस. एलर्ट्स : यह एक प्रकार की ई-बैंकिंग सुविधा है। इस सेवा को प्राप्त करने के लिए ग्राहक को बैंक में अपना मोबाइल नम्बर पंजीकृत कराना होता है। बैंक ग्राहक के खाता विवरण में कम्प्यूटर में मोबाइल नम्बर का अभिलेखन कर लेता है। जब भी ग्राहक के खाते में कोई लेनदेन होता है तो उसके मोबाइल फोन पर एस.एम.एस. अलर्ट कर दिया जाता है। एस.एम.एस. अलर्ट द्वारा बैंक उसके खाते के वर्तमान शेष की
सूचना दे देता है।

भारत में बैंकिंग विकास (Development of Banking in India)

प्रथम चरण (सन् 1806 तक) 
भारत का प्रथम बैंक सन् 1770 में बैंक ऑफ हिन्दुस्तान के नाम से कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में स्थापित किया गया। पूर्णत: यूरोपीय बैंकिंग पद्धति पर आधारित इस बैंक की स्थापना एलेक्जेंडर एंड कंपनी द्वारा की गयी थी जिसे शीघ्र ही बंद कर दिया गया। 

द्वितीय चरण (सन् 1806-1860 तक) . 
ईस्ट इंडिया कंपनी के हितों को ध्यान में रखते हुए निजी अंशधारियों द्वारा भारत में तीन प्रेसीडेंसी बैंकों की स्थापना की गई। 1806 ई. में बैंक ऑफ बंगाल, 1840 ई. में बैंक ऑफ बॉम्बे तथा 1843 ई. में बैंक ऑफ मद्रास की स्थापना की गई। ये तीनों बैंक सरकार के नियंत्रण में थे और सन् 1862 तक इन्हें नोट निर्गमन (Issue) का अधिकार भी प्राप्त था। मूल रूप से ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए ही कार्य करने के कारण तीनों प्रेसीडेंसी बैंक असफल हो गये। सन् 1921 में इन तीनों बैंकों का आपस में विलय कर इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया (Imperial Bank of India) की स्थापना की गई।

तृतीय चरण (सन् 1860-1913 तक) 
सन् 1865 में इलाहाबाद बैंक, सन् 1881 में एलायंस बैंक ऑफ शिमला व अवध कॉमर्शियल बैंक, सन् 1894 में पंजाब नेशनल बैंक तथा सन् 1901 में पीपुल्स बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। 
सीमित देयता के आधार पर सन् 1881 में स्थापित अवध कॉमर्शियल बैंक भारतीयों द्वारा संचालित पहला बैंक था। . पूर्णरूपेण भारतीयों द्वारा स्थापित एवं संचालित पहला बैंक पंजाब नेशनल बैंक था। जिसकी स्थापना सन् 1894 में की गई थी। 
सन् 1906 में बैंक ऑफ इंडिया, सन् 1908 में बैंक ऑफ . बड़ौदा, सन् 1911 मे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया तथा सन् 1913 मे बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना की गई। 

चतुर्थ चरण (सन् 1913-1939 तक) 
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् भारत में बैंकिंग का विकास तीव्र हुआ। सन् 1921 में तीनों प्रेसीडेंसी बैंकों का आपस में विलय करके इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। 
सन् 1930 में केंद्रीय बैंकिंग जाँच समिति का गठन किया गया। समिति ने अपने प्रतिवेदन (Report) में सुझाव दिया कि, देश में एक सुदृढ़, सुव्यवस्थित एवं सुसंगठित बैंकिंग व्यवस्था की स्थापना के लिए एक केंद्रीय बैंक की स्थापना तथा व्यापक बैंकिंग अधिनियम बनाने पर बल दिया जाए। 
इस समिति के सुझावों के आधार पर सन् 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम पारित किया गया। परिणामस्वरूप, 1 अप्रैल, 1935 से भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कार्य करना आरम्भ कर दिया।

पंचम चरण (सन् 1939-1946 तक)
इस अवधि को बैंकिंग विस्तार की अवधि कहा जाता है। सभी बैंकों के माँग निक्षेप की मात्रा में वृद्धि हुई। नये बैंकों की स्थापना के साथ पुराने बैंकों द्वारा नई शाखाएँ भी खोली गई।
इसी चरण में यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक तथा हिन्दुस्तान कॉमर्शियल बैंक (1943 ई.) की स्थापना हुई।

षष्टम चरण (सन् 1946-1991 तक) 
1 जनवरी, 1949 ई. को भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation) किया गया। मार्च 1949 ई. में भारतीय 
बैंकिग अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम अनुसूचित बैंकों का निरीक्षण करने के लिए भारतीय कि को व्यापक अधिकार प्रदान किए गए। 
1 जुलाई, 1955 को इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया तथा इसका नाम बदलकर भारतीय स्टेट बैंक (sbi) रख दिया गया। 
19 जुलाई, 1969 तथा 15 अप्रैल, 1980 को क्रमशः 14 तथा 6 बड़े व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया 
1975 ई. में क्षेत्रीय ग्रामीण विकास बैंक (Regional rural Development Bank) की स्थापना करने की प्रक्रिया प्रारम्भ की गई जिससे ग्रामीण क्षेत्र को अधिक मात्र में वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जा सके।

सप्तमचरण (सन् 1991 से अब तक)
1991 ई. में नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद वर्ष 1993-94 में निजी क्षेत्र को पुनः बैंक खोलने की अनुमति दे दी गयी। इसके साथ ही विदेशी बैंकों को भी भारत में अपना विस्तार करने तथा नई शाखाएं खोलने की अनुमति प्रदान कर दी गयी।

भारत में स्थापित बैंक
बैंक वर्ष
बैंक ऑफ हिंदुस्तान 1770
बैंक ऑफ बंगाल 1806
बैंक ऑफ बॉम्बे 1840
बैंक ऑफ मद्रास 1843
इलाहाबाद बैंक 1865
अवध कामर्शियल बैंक 1881
पंजाब नेशनल बैंक 1894
बैंक ऑफ इंडिया 1906
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 1911
इम्पीरियल बैंक 1921
बैंक ऑफ मैसूर 1931
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) 1955
आई.डी.बी.आई बैंक (IDBI) 1964
आई.सी.आई.सी.आई बैंक (ICICI) 1994
एच.डी.एफ.सी बैंक (HDFC) 1977
एक्सिस बैंक (Axis Bank) 1993

भारत में बैंकिंग संरचना

भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India)

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है। इसकी स्थापना रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1934 के अन्तर्गत 1 अप्रैल, 1935 को 5 करोड़ रुपए की अधिकृत पूँजी (Authorised Capital) के साथ हुई थी। यह पूंजी 100 रुपए मूल्य के 5 लाख अंशों (Shares) में विभाजित थी।
Bank-kya-hai
प्रारम्भ में लगभग समस्त अंश पूँजी (Share Capital) का स्वामित्व गैर-सरकारी अंशधारियों (Share Holder) के पास था, किन्तु अंशों को कुछ व्यक्तियों के पास केंद्रित होने से रोकने के लिए सरकार ने 1 जनवरी, 1949 को रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया।

भारतीय रिजर्व बैंक की संरचना (Structure of Reserve Bank of India)
भारतीय रिजर्व बैंक के सामान्य प्रबंधन एवं निर्देशन का कार्य 20 सदस्यों की एक केंद्रीय निदेशक मण्डल द्वारा किया जाता है। केंद्रीय निदेशक मण्डल में एक गवर्नर, 4 डिप्टी गवर्नर, एक वित्त मंत्रालय द्वारा नियुक्त सरकारी अधिकारी और भारत सरकार द्वारा नामित 10 ऐसे निदेशक होते हैं, जो देश के आर्थिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा 4 निदेशक स्थानीय बोर्डों (Local Boards) का प्रतिनिधित्व करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड के अतिरिक्त 4 स्थानीय बोर्ड भी हैं। जिनके कार्यालय मुम्बई, कोलकाता, चेनई और नई दिल्ली में हैं। स्थानीय बोर्डो में 5 सदस्य होते हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा 4 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किए जाते हैं। स्थानीय बोर्ड केंद्रीय निदेशक मण्डल के आदेशानुसार कार्य करते हैं तथा समय-समय पर केंद्रीय निदेशक मण्डल को महत्वपूर्ण विषयों पर परामर्श देते हैं। रिजर्व बैंक का मुख्यालय मुम्बई में है।

भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य (Functions of Reserve Bank of India)
सरकार के केंद्रीय बैंक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक के कार्य -

नोटों का निर्गमन (Isssue of Paper Currency Notes) 
  • रिजर्व बैंक एक रुपये के नोट तथा सिक्कों को छोड़कर भारत में अन्य सभी मूल्यों के नोटों तथा सिक्के को जारी करने वाली एक मात्र संस्था है। करेन्सी नोट जारी करने के लिए वर्तमान में रिजर्व बैंक नोट प्रचालन की न्यूनतम निधि पद्धति (Minimum Reserve System) को अपनाता है। 
  • भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के अनुसार एक वित्तीय वर्ष में RBI 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक नए नोट जारी नहीं कर सकता।

सरकारी बैंकर के रूप में कार्य करना (Banker to the Government)
रिजर्व बैंक केन्द्र तथा राज्य सरकार के बैंकर, एजेंट एवं उसके वित्तीय सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है। भारतीय रिजर्व बैंक सरकार की करों से होने वाली आय को जमा करता है तथा सरकारी आदेशानुसार उसका भुगतान भी करता है।

बैंको के बैंक के रूप में कार्य (Bankers Bank)
भारतीय रिजर्व बैंक देश में अन्य बैंकों के लिए वही कार्य करता है. जो कि अन्य बैंक अपने ग्राहकों के लिए करते है।

विदेशी विनिमय का नियंत्रण (Control of foreign Exchange) 
रिजर्व बैंक रुपये की तुलना में विदेशी मुद्रा की विनिमय दर को नियंत्रित करने का कार्य करता है। रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार के परिरक्षक (Custodian) के रूप में भी कार्य करता है। 

साख नियंत्रण (Credit Control)
रिजर्व बैंक वाणिज्यक बैंकों द्वारा निर्मित साख (Credit) की मात्रा तथा दिशा पर नियंत्रण रखता है। रिजर्व बैंक अपने साख नियंत्रण उपयों के माध्यम से तीन उद्देश्यों विनिमय स्थिरता, मूल्य स्थिरता तथा आर्थिक स्थिरता की पूर्ति करता है। 

आंकड़ों का संकलन तथा प्रकाशन (Collection and Publication of Data)
रिजर्व बैंक मुद्रा. साख बैंकिंग, विदेशी विनिमय, उत्पादन मूल्य, विदेशी व्यापार, भुगतान शेष अदि विषयों से सम्बंधित आंकड़ों का विश्लेषण तथा प्रकाशन करता है।

भारतीय रिजर्व बैंक संशोधन अधिनियम, 2006 (Reserve Bank of India Amendment Act, 2006)
वर्ष 2006 से लागू हुए इस संशोधन अधिनियम द्वारा आरबीआई अधिनियम-1934 में संशोधन कर भातीय रिजर्व बैंक को यह अधिकार दिया गया कि यह बिना किसी न्यूनतम या उच्चतर दर के वाणिज्यिक बैंको के लिए आरक्षित नगद अनुपात (Cash reserve Ratio :CRR) निर्धारित कर सकता है। इस अधिनियम के द्वारा नकदी आरक्षण को न्यूनतम 3 प्रतिशत की सीमा समाप्त हो गई।

भारतीय रिजर्व बैंक तथा साख नियंत्रण की विधियाँ (Reserve Bank of India and Credit Control Methods)
भारतीय रिजर्व बैंक अपने साख  नियंत्रण उपायों के अंतर्गत दो  विधिया प्रयोग करता  है ...
  1. परिमाणात्मक विधि
  2. गुणात्मक विधि

1. परिमाणात्मक विधि (Quanotative Measures)

बैंक दर, (Bank rate) 
बैंक दर वह दर होती है जिस पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंको को  ऋण देता है। कुछ वर्ष पहले तक रिजर्व बैंक के साख नियंत्रण उपायों में बैंक दर प्रमुख उपाय हुआ करता था रिजर्व बैंक, बैंक दर में वृद्धि अथवा कमी करके वाणिज्यिक बैंक द्वारा दिए जाने वाले ऋण की दर को नियंत्रित करता था परन्तु वर्तमान में भारतीय रिजर्व बैंक बैंक दर स्थान पर रेपो रेट का प्रयोग करने लगा है।

वैधानिक तरलता अनुपात (Satutory liquidity Ratio-SLR) 
व्यापारिक को (commercial Bank) को अपने कुल जमा का एक निश्चित अगुपात अपने पास नकद, स्वर्ण एवं अल्पकालीन अभारित सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में संरक्षित  रखा होता है कुल जमा के इस अनुपात को वैधानिक तरलता अनुपात कहते हैं। 
यह अनुपात भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किया जाता है तथा मौद्रिक नीति के एक उपकरण के रूप में इसमें समय-समय पर परिवर्तन किया जाता है। 

नगद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio-CRR)
नकद आरक्षित अनुपात यह राशि है, जिसे बैंकों के द्वारा अपनी कुल जमा का एक निश्चित भाग रिजर्व बैंक के पास रखा जाता है। रिजर्व बैंक इस अनुपात को इसलिए बनाए रखा है ताकि विपरीत परिस्थितियों में बैंकों को दिवालिया (Defaulter) होने में बचा जा सके।

रेपो दर (Repo rate)  
रेपो दर वह दर होती है जिसके आधार पर कोई वाणिज्यिक बैंक रिजर्व बैंक से अपनी सरकारी प्रतिभूतियों के बदले अल्पकालिक ऋण  (कुछ घंटो से लेकर 15 दिनों तक को अवधि) प्राप्त करता 
है  भारतीय रिजर्व  बैंक (Liquidity Managment) के अंतर्गत बाज़ार मै तरलता बड़ाने अथवा घटाने हेतु इस दर में कमी या वृधि करता है 

रिवर्स रेपो रेट (Reverse repo rate)
रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंको से उसके तरलता आधिक्य (जमा ) को स्वीकार करता है रिज़र्वे बैंक इसका उपयोग बाज़ार  से तरलता क्रम करने हेतु करता है 

प्राथमिक उधारी दर  (Prime Lending  Rate)
प्राथमिक उधारी दर  वह दर होती है जिसको आधार बनाकर  बैंको द्वारा अपनी व्याज  दर निर्धारित की जाती है। प्रथमिक उधारी दर की न्यूनतम सीमा रिजर्व बैंक के द्वारा निर्धारित की जाती है।
भारतीय अपने विश्वसनीय ग्राहकों को अधिक सुबिधा देने के लिए कभी-कभी PLR से भी कम दर पर ऋण दे देते थे इस व्यवस्था को यूरोपीय देशो में वेचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (PLR) कहा जाता है 

आधार दर प्रणाली (Base Rate System)
अधार दर प्रणाली को बेचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट लांडग रेह (Bench mark Prime-lending Rate) के स्थान पर लागू किया गया था वस्तुतः बीपीएलआर में पारदर्शिता की कमी थी। बैंक वाणिज्यिक ग्राहक को सस्ता ऋण देते थे, जबकि खुदरा उपभोक्ता से अधिक ब्याज वसूलते थे। इन कमियों को दूर करने के लिए आधार दर प्रणाली को लागू किया गया। आधार दर वह न्यूनतम दर है, जिस से कम दर पर बैंक ग्राहक को ऋण नहीं दे सकता है। एक आम ग्राहक के लिए यह उतना पारदर्शी नहीं है, जितना उसे होना चाहिए। 

सीमान्त स्थाई सुविधा (Marginal Standing Facility, MSF)
भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली बार वित्तीय वर्ष 2011-12 में वार्षिक मौद्रिक नीति समीक्षा में MSF की घोषणा की। यह प्रणाली मई, 2011 में प्रभावी हुई। इसमें सभी अनुचित वाणिज्यिक बैंक रिजर्व बैंक से एक रात के लिए अपनी कुल जमा के 1% तक लोन ले सकते हैं। बैंकों को यह सुविधा शनिवार को छोड़कर सभी कार्य दिवसों में मिलती है। MSF की दर रेपो रेट से 1% अधिक होती है।

खुले बाजार की क्रियाएँ (Open Market Operation)
खुले बाजार की क्रियाओं के अन्तर्गत रिजर्व बैंक खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों, ट्रेजरी बिलों तथा अन्य स्वीकृत पत्रों का क्रय-विक्रय करता है। 
साख नियंत्रण में खुले बाजार की क्रियाएँ बैंक नीति से भी श्रेष्ठ मानी जा रही है क्योंकि इस व्यवस्था में भारतीय रिजर्व बैंक बिना। दूसरे बैंकों पर निर्भर हुए अपनी नीति को सफलतापूर्वक लागू कर सकता है।

बैंक दर (Bank Rate) रेपो दर (Repo Rate)
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंको को बिना किसी जमानत (Collateral'sicurity) पर दिए जाने वाले ऋणों पर लिए जाने बाले दर को बैंक दर कहते है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को बिना जमानत के ऋण नहीं दिए जाते। इनके लिए बैंक प्रतिभूतियों को जमानत के रूप में RBI के पास रखा जाता है। ऐसे ऋणों पर ली जाने वाली दर को रेपो दर कहते हैं।
बैंक पर प्रतिभूतियों को पुनः खरीद की कोई सुविधा प्रधान नहीं करता बैंक दर मात्र एक बट्टा (Discount) दर है। रेपा दर, प्रतिभूतियों की पुनः खरीद की अनुमति देता है। प्रतिभूतियों के धारक उन्हें भविष्य में किसी भी समय पुनः खरीद सकते हैं। अतः रेपो दर को पुनः खरीद दर भी कहा जाता है।
बैंक दर का सम्बध वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अपनी नकदी को तुरन्त भरपाई करने हेतु उधार से है। रेपो दर से अभिप्राय वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अल्पकालीन ऋण लेना है।

2. गुणात्मक विधि (Qualitative Measures)

चयनात्मक साख नियंत्रण (Selective credit Control)
बनामक साख नियंत्रण से तात्पर्य अर्थव्यस्था के कुछ चयनात्मक क्षेत्रों से सम्बंधित केंद्रीय बैंक की एक भेदमूलक नीति से है। 
इसका प्रमुख उद्देश्य व्यापारिक बैंकों द्वारा अवांछित आर्थिक , क्रियाओं एवं गैर-प्राथमिक क्षेत्रों के लिये साख देने पर रोग लगाना या उन्हे हतोत्साहित करना तथा प्राथमिक क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों के स्तर को बडाने के लिये साख के प्रवाह को प्रोत्साहित करना है।
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मैद्रिक नीति के गुणात्मक उपकरणों या चयनात्मक साख नियंत्रण के अंतर्गत निम्नलिखित उपकरणों का प्रयोग किया जाता है 

सीमांत आवश्यकता (Margin Requirement)
वाणिज्यिक बैंक, ऋण लेने वालों को कुछ प्रतिभूतियों या संपत्तियों (अर्थात् जमानत) के बदले ऋण प्रदान करते हैं। सामान्यता इस जमानत का मूल्य स्वीकृत ऋण से अधिक होता है। बंधक रखी गई संपत्ति के मूल्य और उसके आधार पर दिये गए ऋण के बीच के अंतर को सीमांत आवश्यकता या ऋण मार्जिन कहा जाता है।

साख की राशनिंग (Rationing of Credit)
  • साख की राशनिंग के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण देने की अधिकतम सीमाएँ निर्धारित करता है अर्थात् वाणिज्यिक बैंक इस कोटे की सीमा से अधिक ऋण नहीं दे सकते। 
  • यह सीमा या तो किसी विशेष उपयोग के लिए या सामूहिक आधार पर तय की जाती है, जैसे- सभी वाणिज्यिक बैंकों को स्वयं द्वारा दिये जाने वाले कुल ऋण का 40% प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को देना आवश्यक है। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों में कुल ऋण का 18% ऋण कृषि क्षेत्र को दिया जाता है। 

नैतिक दबाव (Moral Suasion)
  • यह रिजर्व बैंक द्वारा अन्य वाणिज्यिक बैंकों से अपनी नीतियों का अनुपालन कराने की दृष्टि से जारी किये गए अनुदेशों और दबावों का आधार है। 
  • इसे विचार-विमर्श, पत्रों, अभिभाषणों तथा बैंकों को संकेतात्मक संदेशों के माध्यम से व्यावहारिक रूप दिया जाता है और रिजर्व बैंक समय-समय पर अपनी नीतिगत स्थिति की घोषणा करके बैंकों से उसके अनुरूप कार्य करने की अपेक्षा करता है।

प्रमुख बैंकिग दरें (7 फरवरी, 2018)
दर प्रतिशत
बैंक दर (BR) 6.25%
नकद आरक्षण अनुपात (CRR) 4.00%
सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) 19.5%
रेपो दर (RR) 6.00%
रिवर्स रेपो दर (RRR) 5.75%
सीमान्त स्थाई सुविधा दर (MSFR) 6.25%
आधार दर (BR) 8.65-9.45%
बचत जमा दर (SDR) 3.5-4%
सावधि जमा दर (1 वर्ष) 6.25-6.90%

स्विफ्ट (SWIFT) 
(Society for Worldwide Interbank financial Telecommunication) 
  • इस व्यवस्था के माध्यम से क्रेडिट लेन-देन का संदेश विदेशी बैकों को दिया जाता है। यह एक महत्त्वपूर्ण जानकारी होती है, जिससे धन के लेन-देन को लेकर बैंक की सहमति और गारण्टी होती है।
  • स्विफ्ट जारी करने के लिए किसी अधिकारी को सिस्टम लॉग इन कर उसमें खाता संख्या और SWIFT कोड जैसी गोपनीय जानकारी दर्ज करानी होती है।

मर्चेट डिस्काउंट रेट (MDR)
  • बैंक डेबिट व क्रेडिट कार्ड सेवाएँ उपलब्ध कराने के (व्यापारिक इकाई) से मर्चेट डिस्काउंट रेट (MDR)
  • शुल्क बैंकों, पीओएस (Point of Sale) लगाने वाली कम्पनिया और वीजा-मास्टर कार्ड गेटवे में बाँटा जाता है। व्यापारियों को पीओएस के जरिये भुगतान ग्रहण करने पर MDR की अदायगी व्यापारी द्वारा बैंक को की जाती है लेकिन कई व्यापारी , MDR शुल्क वसूलते हैं। 
  • सरकार ने विमुद्रीकरण के बाद रतन पी वतल कमेटी का गठन किया जिसने MDR दर को कम करने की सिफारिश की। सरकार ने जनवरी 2018 में यह फैसला लिया है कि दो हजार कर की नकदीरहीत खरीददारी पर उपभोक्ता को कोई शल चुकाना होगा।

भारत में वाणिज्यिक बैंक

वाणिज्यिक बैंकिंग के प्रकार
  • अनुसूचित बैंक (Scheduled Banks)
  • गैर-अनुसूचित बैंक (Non-Scheduled Banks)

अनुसूचित बैंक (Scheduled Banks)
  • अनुसूचित बैंक ऐसे बैंक हैं, जिन्हें भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की द्वितीय अनुसूची में सम्मिलित किया गया है।
  • इस अनुसूची में उन्हीं बैंकों को सम्मिलित किया जाता है जो कि निम्नलिखित शर्तों की पूर्ति करते हैं-
  1. बैंक की प्रदत्त पूँजी और संचित कोष 25 लाख रुपए से कम न हो।
  2. भारतीय रिजर्व बैंक को इस बात का विश्वास हो कि बैंक का कोई भी कार्य जमाकर्ताओं के लिए अहितकारी नहीं होगा। 
अनुसूचित बैंकों में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के बैंक दोनों शामिल हैं।

गैर-अनुसूचित बैंक (Non-Scheduled Bank) 
जो बैंक रिजर्व बैंक अधिनियम-1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल नहीं है, वे गैर-अनुसूचित बैंक कहलाते हैं। इस प्रकार के बैंकों की संख्या में अब निरंतर कमी हो रही है। इन बैंकों को भी सांविधिक नकद कोष शर्तों को मानना पड़ता है परन्तु ये बैंक इस कोष को रिजर्व बैंक के पास रखने को बाध्य नही है  ये बैंक इस राशि को अपने पास ही रख सकते हैं। 
ये बैक सामान्य कार्य उद्देश्यों हेतु रिजर्व बैंक से ऋण लेने के लिए अधिक्रत नही होते , किन्तु असामान्य परिस्थितियों में ये बैंक रिजर्व बैंक से संपर्क करके ऋण प्राप्त कर सकते हैं।

वाणिज्यक बैंको के कार्य

1. जमा स्वीकार करना (Accepting Deposits)
यह बैंक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। आजकल बैंक अपने ग्राहकों से तीन प्रकार की जमाएँ स्वीकार करते हैं
  1. बचत जमा 
  2. माँग जमा 
  3. सावधिक जमा।

1. बचत जमा (Saving Deposit)
इस जमा पर बैंक की ब्याज दर कम है। इसका कारण यह है कि इसमें अपनी बचत जमा करने वाले सामान्यतः छोटी बचतें ही करते हैं। जमाकर्ता सप्ताह या वर्ष के दौरान एक सीमा तक अपनी राशि चेक के माध्यम से निकाल सकते हैं।

2. माँग जमा, (Demand Deposite)
व्यवसायी अपनी जमा चालू खाते (Current Account) में करते हैं। वे अपने खाते में जमा कितनी भी राशि को बिना किसी पूर्व सूचना (नोटिस) के चेक द्वारा निकाल सकते हैं। बैंक ऐसे खातों पर कोई ब्याज नहीं देता है, बल्कि अपने ग्राहकों को प्रदान की गई सेवाओं के बदले कुछ राशि बतौर प्रभार ग्रहण करता है।
चालू खातों को माँग जमा के रूप में जाना जाता है। 

3. सावधिक जमा : बैंक जमा को सावधिक या मियादी जमा के रूप में भी स्वीकार करता है। वे बचतकर्ता, जिन्हें संचित राशि की आवश्यकता नहीं होती, वे आजकल उसे 30 दिन की अवधि से अधिक समय के लिए बैंक के सावधिक (मियादी) जमा (Time Deposit) खाते में रख सकते हैं। ऐसी राशि पर बैंक जमाकर्ताओं को अधिक व्याज (Interest) देता है।

प्राथमिक जमाएँ (Primary Deposits) 
यह लोगों द्वारा वाणिज्यिक बैंकों में की गई नकद जमा है। ये बैंकों की कुल माँग जमाओं का एक भाग है।

गौण या द्वितीयक जमाएँ (Secondary Deposits) 
यह उन जमाओं (Deposits) को कहते हैं, जिनकी उत्पत्ति तब होती है। जब बैंकों द्वारा लोगों को ऋण दिया जाता है। ये भी बैंकों की कुल माँग जमाओं का एक भाग है।

2. अग्रिम ऋण देना (Advance Loan)
वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्यों में से एक अपने ग्राहकों को अग्रिम ऋण देना है। बैंक अपनी जमा राशि का कुछ प्रतिशत ऋण के रूप में प्रदान करता है।
ऋण ब्याज दर अपनी जमा पर देने वाले ब्याज दर की अपेक्षा अधिक होती है।

3. साख निर्माण (Credit Creation)
साख निर्माण वाणिज्यिक बैंकों के कार्यों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। अन्य वित्तीय संस्थाओं की तरह इनका उदेश्य भी लाभ कमाना होता है। 
इस उद्देश्य के लिए बैंक दिन-प्रतिदिन विनिमय हेतु कुछ नकदी रिजर्व में रख कर जमा स्वीकार करता है और अग्रिम ऋण देता है। जब बैंक अग्रिम ऋण देता है तो ग्राहक के नाम पर एक खाता खोल दिया जाता है तथा उसे दिए गए ऋण का भुगतान नकद रूप से न करके उसकी आवश्यकताओं के अनुसार चेक द्वारा किया जाता है। ऋण मंजूर करके बैंक साख या जमा का सृजन करता है।

4. विभिन्न सेवाएँ (Miscellaneous Services) 
उपर्युक्त सेवाओं के अतिरिक्त, वाणिज्यिक बैंक अन्य अनेक सेवाएँ प्रदान करता है। बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर्स की सुविधा देकर उनकी मूल्यवान वस्तुओं के अभिरक्षक (Custodian) के रूप में भी कार्य करता है। इन लॉकर्स में ग्राहक अपने आभूषण और मूल्यवान दस्तावेज रख सकते हैं।
बैंक चेक, ड्राफ्ट, यात्री-चेक इत्यादि के रूप में विभिन्न प्रकार के साख-साधन भी जारी करता है जिससे विनिमय आसान हो जाता है। बैंक ATM सुविधा भी प्रदान करते हैं, जिसके अनुसार बैंक के ग्राहक किसी भी समय अपने डेबिट कार्ड से एक निश्चित राशि निकाल और जमा करा सकते हैं।

बैंकों के लिए 4डी अवधारणा
केन्द्रीय वित्त मंत्रालय ने 27 फरवरी 2015 ई. को आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करते हुए बैंकिंग क्षेत्र के विकास के लिए 4डी अवधारणा (4D Concept) को आवश्यक बताया।
1. विनियंत्रण (Deregulate)
2. भिन्नता (Differentiate)
3. वैविध्यता (Diversify)
4. पुनः फोकस वरना (Disinter)

बैंकों का राष्ट्रीयकरण

भारत सरकार द्वारा देश में बैंकों का सामाजिक उत्तरदायि (social permeability) सुनिस्ति करने हेतु बैंको कस रास्ट्रीयकरण करने का निश्चय किया गया इससे पूर्व वाणिज्यिक बैंक दूसरी निजी संस्थाओ की तरह अपने अधिकतम लाभ की प्रेरणा से ही व्यवसाय कर रहे थे जिससे एकाधिकारी प्रवृतियों को प्रोत्साहन मिल रहा था व आर्थिक शक्ति का केन्द्रीयकरण हो रहा था। 
इस प्रक्रिया का दुष्परिणाम यह हुआ कि, प्राथमिक क्षेत्र को उपेक्षा का शिकार होना पड़ा तथा उसे समुचति मात्रा में ऋण नहीं मिला, जिससे वे विकास की दौड़ में पीछे छूट गये।
उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1968 में बैंकों के लिए भारत सरकार द्वारा दो व्यवस्थाएँ की गयीं
  • बैंकिंग अधिनियम का निर्माण 
  • राष्ट्रीय साख परिषद् (National Credit Council) की स्थापना 1 जुलाई, 1955 को इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया का आंशिक राष्ट्रीयकरण कर दिया गया तथा इसका नाम स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया (SBI) कर दिया गया। इसके साथ 8 अन्य बैंकों को इसके सहायक बैंक के रूप में बदल दिया गया, जिन्हें स्टेट बैंक समूह कहा जाता है।
सामाजिक नियंत्रण की इस नीति का प्रभाव बहुत की अल्पकालिक सिद्ध हुआ। अत: 19 जुलाई, 1969 ई. को उन 14 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation) कर दिया गया जिनकी जमा राशि 50 करोड़ या उसके अधिक थी। पुनः अप्रैल, 1980 में 6 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिसकी जमा राशि 200 करोड़ या उससे अधिक थी। जो इस प्रकार हैं
  • आन्ध्रा बैंक
  • कॉर्पोरेशन बैंक 
  • पंजाब एण्ड सिन्ध बैंक 
  • ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स 
  • विजया बैंक 
  • न्यू बैंक ऑफ इण्डिया
4 सितम्बर 1993 ई. को न्यू बैंक ऑफ इण्डिया का विलय पंजाब नेशनल बैंक (PNB) में किया गया, जिससे राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या 19 हो गई।

बैंकों का आपस में विलय

  • रिजर्व बैंक ने यह प्रावधान किया है, कि यदि दो बैंक चाहें तो आपस में विलय कर सकते हैं। बैंकों के आपसी विलय के दिशा निर्देश गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के बैंकों में विलय के लिए जारी किए गये थे, जो निजी क्षेत्र (Private Sector) के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector) के बैंकों के लिए भी थे। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार बैंकों के स्वैच्छिक विलय के लिए इन दोनों बैंकों (विलय करने तथा विलय होने वाली) के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की दो तिहाई सदस्यों की सहमति को अनिवार्य बनाया गया है। 
  • बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के साथ शेयर धारकों के दो-तिहाई बहुमत को भी अनिवार्य बनाया गया है।
  • ऐसा प्रावधान किया गया है कि, विलय के प्रस्ताव पर विचार करते समय बैंकों के प्रबंधक मंडल को विलय किए जाने वाले बैंकों की परिसंपत्तियों, दायित्वों तथा आरक्षित कोषों की स्थिति पर विचार करना होगा
  • साथ ही यह भी देखना होगा कि, विलय के लिए प्रस्तावित स्वैप रेशियो (शेयरों का विनिमय अनुपात) का निर्धारण किसी स्वतंत्र मूल्यांकन एजेंसी द्वारा किया गया है। 
  • यदि कोई शेयरधारक विलय पर सहमत नहीं है तो बैंकों के विलय के पश्चात् उसके शेयर के मूल्य वापस कर दिए जाएंगे।
  • विलय हेतु अंतिम सहमति भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्त होगी।
  • विगत वर्षों में अनेक अवसरों पर वित्तीय संकट में फंसे निजी क्षेत्र के बैंकों के कारोबार पर प्रतिबंध लगाकर इनका विलय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में किया गया है।

बैंकों में सरकार की शेयरधारिता (अप्रैल, 2017 की स्थिति)
बैंक सरकार की शेयरधारिता (% में)
ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स 58.0
देना बैंक 58.2
आंध्रा बैंक 58.0
आई.डी. बी. आई लिमिटेड 71.7
बैंक ऑफ बड़ौदा 55.4
विजया बैंक 55.0
इलाहाबाद बैंक 52.2
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 57.9
कॉपोरेशन बैंक 59.8
पंजाब नेशनल बैंक 57.9
भारतीय स्टेट बैंक 62.3
इंडियन ओवरसीज बैंक 73.8
बैंक ऑफ इंडिया 64.1
सिंडिकेट बैंक 66.2
केनरा बैंक 67.7
यूको बैंक 69.3
बैंक ऑफ महाराष्ट्र 81.2
इंडियन बैंक 80.0
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 85.3
पंजाब एंड सिंध बैंक 59.9
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया 82.2

भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) 

इम्पीरियल बैंक के विलय के निर्णय के पश्चात् 1 जुलाई 1955 ई. को भारतीय स्टेट बैंक समूह का गठन हुआ। State Bank of India भारतीय स्टेट बैंक के 6 सहायक बैंक थे और ये सभी मिलकर स्टेट बैंक समूह का निर्माण करते थे तथा एक ही लोगो (Logo) का प्रयोग करते थे। स्टेट बैंक समूह के साथ छः सम्बद्ध सहायक बैंक वस्तुतः पहले रजवाड़ों के अधीन बैंकिंग सेवा प्रदान करते थे। बाद में सरकार ने प्रिवी पर्स (Privy Purse) की समाप्ति के पश्चात् इसका अधिग्रहण कर लिया (अक्टूबर 1959 से मई, 1960 के मध्य)। भारत सरकार SBI में सभी सहायक बैंकों का विलय करके इसे एक मेगा बैंक (Mega bank) के रूप में बदलना चाहती है। इस दिशा में पहला कदम 13 अगस्त, 2008 को उठाया गया। जब स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र का विलय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कर दिया गया।
 पुनः 19 जून 2009 को भारत सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का भारतीय स्टेट बैंक में विलय की संस्तुति कर दी। इस बैंक में भारतीय रिजर्व बैंक की शेयरधारिता पहले से ही 98.3% थी। 1 अप्रैल, 2017 को भारतीय स्टेट बैंक के पाँच सहयोगी बैंक और भारतीय महिला बैंक का विलय कर दिया गया है। विलय के पश्चात् भारतीय स्टेट बैंक की शाखाओं की संख्या 24,000 हो गई हैं।
भारतीय स्टेट बैंक में विलय होने वाले पाँचो बैंक निम्नलिखित हैं
  1. स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद 
  2. स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर 
  3. स्टेट बैंक ऑफ मैसूर
  4. स्टेट बैंक ऑफ पटियाला
  5. स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर
स्टेट बैंक देश का पहला वाणिज्यिक बैंक है जिसे नाबार्ड ने स्वयं सहायता प्रोन्नयन, संस्थान का दर्जा दिया है। SBI ने स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों के लिए सहयोग निवास नामक योजना चलाई है।
SBI द्वारा ग्रीन चैनल काउंटर (Green Channel Counter) का प्रारम्भ- स्टेट बैंक ने 1 जुलाई, 2010 से अपनी चुनिंदा शाखाओं में ग्रीन बैंकिंग चैनल नामक कई सेवाओं को प्रारम्भ किया है। ग्रीन चैनल काउंटर पर ग्राहक धन जमा करने तथा निकालने हेतु डेबिट कार्ड (Debit Card) का प्रयोग कर सकेंगे। यहाँ पर किसी कागज का प्रयोग नहीं होगा।

R.B.1. से ऋण प्राप्ति के लिए शर्ते
कृषि क्षेत्र को दिया जाने वाला ऋण बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (BPLR) से ऊपर नहीं हो सकता परन्तु इसे कम किया जा सकता है।
कुल ऋण का 18% भाग कृषि क्षेत्र में दिया जाना चाहिए। 
निर्यात के लिए दिया गया ऋण भी BPLR से ऊपर नहीं हो सकता।
बैंको को बचत खाते में धन जमा करने पर निर्धारित ब्याज देना जिसका निर्धारण R.B.I. द्वारा होगा। वर्तमान ब्याज की दर 3.5% वार्षिक है। सावधिक जमा की ब्याज दर, निर्धारित करने के
लिए बैंकों को पूर्ण स्वतंत्रता है।
बैंकों के जोखिम को परखने की क्षमता बैंकों में स्वयं होनी चाहिए। ऐसे उपकरण विकसित किये जायें जिससे बैंकों का जोखिम जाँचा-परखा जा सके तथा उसे कम किया जा सके जिससे उसका नियंत्रण संभव हो। 
बैंकों का कार्य पेशागत (Professional) होना चाहिए, जिससे इसके संचालन में लाभ हो सके। 
बैंकों को ऐसे कर्मियों को सम्मिलित करना चाहिए जो बैंकिंग प्रणाली से अवगत हों, जिससे बैंकिंग प्रणाली में कार्य-कुशलता लायी जा सके। 
बैंकिंग क्रिया-कलापों का पूर्ण विवरण उपलब्ध होना चाहिए ताकि लोगों को समझने में आसानी हो।
बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता का समावेशन करना चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोग इस प्रणाली से जुड़ सकें।

बैंकिंग क्षेत्र में सुधार (Reforms in Banking Sector)

नसिंहम समिति - 1 
भारतीय अर्थव्यस्था में सन् 1991 के आर्थिक संकट के पश्चात् बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के उद्देश्य से जून, 1991 में एम.नरसिंहम की अध्यक्षता में वित्तीय प्रणाली पर समिति (Committee on Financial System-CFS) की स्थापना की गयी, जिसने अपनी संस्तुतियाँ दिसम्बर 1991 में प्रस्तुत की।
नरसिंहम समिति-1 ने बैंकों की आर्थिक कार्यकुशलता और प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि के लिए बैंकों में जमा पूँजी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए निम्न अनुशंसाएँ की
बैंको को स्वायत्तता देते हुए रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की दाहरी नियंत्रण व्यवस्था को समाप्त किया जाए।
बैंको तथा वित्तीय संस्थाओं पर निगरानी या निरीक्षणात्मक कार्यों की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक के द्वारा गठित एक अर्द्ध-स्वायत्त सस्था को सौंप देनी चाहिए। 
8% पूजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio) को करने का लक्ष्य होना चाहिए। यह काम विभिन्न चरणों में सम्पन्न किया जा सकता है।
लाइसेंस नीति (Licencing Policy) को समाप्त कर देना चाहिए 
वर्ष 1991-92 से वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) में क्रमबद्ध रूप से कमी की जानी चाहिए। 
बैंकों के आधुनिकीकरण के द्वारा ग्राहक सेवा को कुशल बनाया जाए। 
इस समिति ने चार स्तरीय बैंकिंग संरचना (अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय) की अनुशंसा की।

नरसिंहम समिति - ॥ (1997 ई.)
नरसिंहम समिति - ॥ ने पूँजीगत खातों के संदर्भ में रुपये की पूर्ण परिवर्तनीयता को लागू करने के पूर्व भारतीय वित्तीय तंत्र को अधिक सक्षम और प्रभावशाली बनाने के लिए कई अनुशंसाएँ की। इनका उद्देश्य बैंकों की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में सुधार करते हुए, बैंकों में जमा धन के जोखिमों को कम करना था। ये
अनुशंसाएँ निम्नलिखित हैं-
  1. बैंकों के विलय और अधिग्रहण को अनुमति दी जाए। 
  2. कमजोर बैंकों की पुनर्स्थापना हेतु लघु-बैंकों की अवधारणा को अपनाया जाए। 
  3. सार्वजनिक बैंकों में सरकार की इक्विवटी शेयर को 33 प्रतिशत के नीचे लाया जाए।
  4. रिजर्व बैंक की नियामक और प्रशासन सम्बंधी क्रियाओं को पृथक् करने के लिए वित्तीय पर्यवेक्षण बोर्ड को स्वायत्तता प्रदान की जाए। 
  5. बैंकों के कम्प्यूटरीकरण पर बल देते हुए सक्षम बैंकों को सार्वभौम बैंकिंग (Universal Banking) की संकल्पना के अंतर्गत लाया जाए। 
  6. गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) की समय-सीमा को 180 दिन से कम करके 90 दिन करने की अनुशंसा की गई। 
  7. बैंकों को साख-सम्बंधी स्वायत्तता प्रदान की जाए। 
  8. खराब ऋणों की वसूली के लिए एसेट रिकन्सट्रक्शन कंपनी (ARC) की स्थापना की जाए और बैंकों के प्रूडेंशियल नार्स को आसान बनाया जाए।

गोइपोरिया समिति (1990 ई.) 
बैंकों में ग्राहक सुविधा सुधारने के लिए सन् 1990 में एम.एन. गोइपोरिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसने 1991 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति के सुझावों पर ध्यान देते हुए 15 जून 1995 को बैंकिंग लोकपाल योजना (Banking Ombud's Scheme) का प्रारम्भ किया गया।

वर्मा समिति (वर्ष 1998) 
कमजोर बैंकों की पुनर्सरचना को ध्यान में रखते हुए सन् 1998 में एम.एस. वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इसने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1999 में प्रस्तुत की। समिति ने यूको बैंक, इंडियन बैंक तथा यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को कमजोर घोषित किया तथा इनके पुनः पूंजीकरण (Recapitalization) की सिफारिश की। 

दामोदरन समिति (वर्ष 2011)
सेबी (SEBI) के पूर्व अध्यक्ष एम. दामोदरन की अध्यक्षता में इस समिति का गत वर्ष 2011 में किया गया, जिसने अपनी रिपोर्ट अगस्त 2011 में प्रस्तुत की। 
समिति ने बैंकिंग सेवाओं में सुधार हेतु अनेक महत्वपूर्ण अनुशंसाएँ की। समिति की रिपोर्ट पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आम जनता की टिप्पणियाँ भी आमन्त्रित की गई थीं। 
बैंकिंग सेवाओं के सन्दर्भ में समिति द्वारा न्यूनतम बैलेंस की आवधारणा को समाप्त करने का सुझाव दिया गया है और आवश्यक सेवाओं को निःशुल्क बनाने की भी सिफारिश की गई है।

बैंकिंग क्षेत्र में सुधार हेतु गठित समितियाँ
समिति वर्ष विषय
गोइपोरिया समिति 1991 ग्राहक सेवा में सुधार हेतु
घोष समिति 1993 बैंकों में भ्रष्टाचार व जाल साजीरोकने हेतु
नायक समिति 1993 लघु एव माध्यम उधोगो को ऋण उपलव्ध करने हेतु
आर के गुप्ता समिति 1997 कृषि के लिए ऋण प्रणाली में सुधार
तारापोर समिति 1998 विदेशी विनिमय में पूंजी खाता परीवर्तिनीयता हेतु
खान समिति 1998 युनिवर्सल बैंको के कोरम पूर्ती हेतु
वर्मा समिति 1999 कमजोर बैंको की समस्याये के समाधान के उपाय हेतु
रेड्डी समिति 2001 छोटी बचतों से जुडी व्यवस्था में सुधार हेतु
खन्ना समिति 2001 गैर- निष्पादन अस्तियो की रूपरेखा में परिवर्तन हेतु
दीपक पारेख समिति 2007 बेंकिंग आधारिक संरचना के वित्तीय मामले में सुझाव देने हेतु
डी. सुब्बाराव समिति 2009 मौद्रिक निति पर तकनीकी सलाह हेतु

रिजर्व बैंक द्वारा गठित प्रमुख समितियाँ

विमल जालान समिति
सितम्बर, 2013 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया इस समिति का कार्य नए बैंकों की स्थापना हेतु लाइसेंस दिए जाने की समीक्षा करना था। समिति ने 25 फरवरी, 2014 को अपनी रिपोर्ट भारतीय रिजर्व बैंक को सौंप दी। 

उर्जित पटेल समिति
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के ढाँचे का विश्लेषण करने और इसको सशक्त बनाने के लिए उर्जित पटेल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित अनुशंसाएँ की→ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित दर को मौद्रिक नीति के केन्द्र में रखा जाना चाहिए। नीतिगत दरें भारतीय रिजर्व बैंक और बाहरी सदस्यों वाली समिति तय करें।
खुदरा महँगाई दर (WPI) को अगले दो वर्षों में 6% पर लाया जाए, और फिर 4% का लक्ष्य तय किया जाए।
विभिन्न वस्तुओं के आधिकारिक मूल्य तय करने की परम्परा समाप्त की जाए।
सरकार विभिन्न बैंकों को उनके क्रियाकलापों से सम्बंधित निर्देश न दें और भारतीय रिजर्व बैंक ही ब्याज की दरें तय करे कृषि ऋण पर ब्याज सब्सिडी समाप्त की जाए  तथा राजकोषीय घाटे को वर्ष 2016-17 तक जीडीपी के 3%
तक लाया जाए। 

नचिकेत मोर समिति
भारतीय रिजर्व बैंक की नचिकेत मोर समिति ने 7 जनवरी, 2014 को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। देश के प्रत्येक नागरिक को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने के लिए इस समिति का गठन 22 सितम्बर, 2013 को किया गया था। इस समिति की सिफारिशें निम्नलिखित हैं- 
एक जनवरी, 2016 तक सभी वयस्क नागरिक का बैंक खाता हो। 
किसी भी स्थान से केवल 15 मिनट की पैदल दूरी पर बैंक शाखा स्थित हो। 
हर गरीब को उसकी सुविधा से ऋण देने की व्यवस्था हो।
गरीब परिवार को कम प्रीमियम पर हर प्रकार की बीमा सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ। 
आधार नम्बर के साथ बैंक खाता जोड़ने की व्यवस्था हो।
गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों (NBFCs) को बैंकों के एजेण्ट के रूप में काम करने की अनुमति मिले।  
गरीबों व छोटे उद्यमियों को ऋण देने के लिए नये पेमेंट बैंक (Payment Bank) खोले जाए 

मालेगाम समिति
भारतीय रिजर्व बैंक ने केन्द्रीय बोर्ड के पूर्व सदस्य श्री वाई.एच. मालेगाम की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है।
परिसंपत्ति वर्गीकरण और बैंकों के क्रेडित पोर्टफोलियो के विनियमन में देखे गए बड़े विचलन तथा भारतीय बैंकिंग प्रणाली में धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए इस समिति का गठन किया गया है।

बैंकिंग लोकपाल योजना

बैंकों में ग्राहकों को होने वाली समस्याओं के समाधान हेतु तथा बैंकों को और अधिक ग्राहकोन्मुख बनाने हेतु रिजर्व बैंक द्वारा 14 जून, 1995 को बैंकिग लोकपाल योजना प्रारम्भ की गई थी। यह योजना रिजर्व बैंक के अन्तर्गत संचालित होती है। विवादों को शीघ्र तथा कम खर्च में निपटाने की कानूनी शक्तियों के साथ यह एक स्वतंत्र संस्था है। रिजर्व बैंक द्वारा पूरे देश में 15 बैंकिंग ऑम्बुड्समैन (लोकपाल) स्थापित किए गए हैं। यदि किसी ग्राहक को बैंकिंग सेवा में त्रुटि मिले अथवा वायदे के अनुरूप सेवा प्राप्त न हो तो वह अपनी शिकायत के साथ बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के पास जा सकता है। 3 फरवरी, 2009 को रिजर्व बैंक द्वारा ऑम्बुड्समैन संशोधन प्रस्ताव लाकर इस व्यवस्था को और अधिक प्रभावी तथा जनोन्मुख बनाने के लिए इसमें शिकायतों का दायरा बढ़ा दिया गया है।

बैंकिंग ऑम्बुड्समैन के अधीन आने वाली शिकायतें 
बैंक के प्रतिनिधियों द्वारा सीधे बेची गई सुविधाओं सहित वायदे के अनुसार सेवाएँ प्राप्त न होने से सम्बंधित शिकायतें। किसी बैंक द्वारा अपनाए गए उचित व्यवहार कोड का पालन न करने वाली शिकायतें। चेक, ड्राफ्ट, बिलों आदि का भुगतान न करना अथवा चेकों के भुगतान अथवा कलेक्शन में अनुचित देरी। अन्य पार्टियों द्वारा हस्तांतरित धन का भुगतान न करना या देर से भुगतान करना। ड्राफ्ट्स, बैंकर्स चेक अथवा पे आर्डर जारी न करना अथवा देर से जारी करना। निर्धारित कार्य में समय का पालन न करना।
ग्राहक को बिना पूर्व सूचना दिए बैंक प्रभार लगाना व वसूलना। 
भारत में खाताधारी एनआरआई की विदेशों से हस्तांतरित धन, जमाओं तथा बैंकिंग से सम्बंधित अन्य शिकायतें। 
पेंशन (Pension) से संबंधित शिकायतें।
क्रेडिट काईस (Credit Cards) से सम्बंधित शिकायतें। 
बैंकों द्वारा रिकवरी एजेंट की नियुक्ति में मानक निर्देशों का पालन नहीं करना। 
अन्य सेवा शर्ते जिसमें बैंक के अनुदेशों का उल्लंघन हुआ हो।

इंद्रधनुष योजना (Rainbow Plan) 
देश के सरकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए सरकार ने सात सूत्री इंद्रधनुष योजना बनायी है। इंद्रधनुष के 7 सूत्र इस प्रकार हैं:
  • नियुक्तियां
  • बैंक बोर्ड ब्यूरो
  • पूंजीकरण
  • प्रशासनिक सुधार
  • सशक्तिकरण
  • जवाबदेही की योजना बनाना
  • सार्वजानिक क्षेत्र के बैंको पर दवाब हटाना
इंद्रधनुष नाम की इस रणनीति का उद्देश्य चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना, फँसे ऋण की मात्रा कम करना और बैंकों का प्रदर्शन सुधारना है। 
सरकार सार्वजनिक बैंकों के कर्मचारियों के लिए शेयर विकल्प लाने के विषय में विचार कर रही है ताकि उनको बैंकों के प्रबंधन में सहभागी बनाया जा सके।
इंद्रधनुष के अंतर्गत नियुक्तियों को ठीक किया जाएगा, सरकारी बैंकों के प्रमुख नियुक्त करने आदि के लिए बैंक बोर्ड ब्यूरो की स्थापना की जाएगी, पुनः पूँजीकरण के उपाय किए जाएंगे और बैंको के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का बोझ कम करने में सहायता की जाएगी, जिससे अधिक ऋण देकर आर्थिक वृद्धि तीव्र करने का सरकार का उद्देश्य पूरा होगा।

बेसल मानक (Basel Norms)
1974 ई. में जर्मन बैंक ऑफ स्टेट के विफल होने के पश्चात् _G-10 देशों ( बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैण्ड्स, स्वीडन, स्विट्जरलैण्ड, ब्रिटेन तथा अमेरिका) ने पूँजीगत बैंकों तथा गैर बैंकिंग मानकीकृत नियमों के मुद्दे पर एक नए दिशा निर्देश हेतु प्रयास किया। इसी क्रम में इन देशों ने लक्जेमबर्ग के साथ मिलकर वर्ष 1974 में बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट (BIS) के तत्वाधान में बेसल कमेटी ऑन बैंकिंग सुपरविजन (BCBS) का गठन किया इसे ही बेसल मानक कहा जाता है। इस समिति ने बैंकिग सुधारों के अब तक तीन सेट को तैयार किया है

बेसल-1 (Basel-1)
  • 1988 ई. में बेसल समिति ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय बैंकों के लिए पूँजी के सुरक्षित न्यूनतम स्तर को प्रारंभ करने के उद्देश्य से यह अनुशंसा की। 
  • बेसल-1 मानदंड के अन्तर्गत बैंकों को अपने जोखिम भारित ऋण पर कम से कम 8% की पूँजी बनाए रखना अनिवार्य होगा। 
  • इस सिफारिश में विभिन्न वर्गों के लिए जोखिम का भार अलग-अलग रखा गया है। उदाहरण के लिए सरकारी प्रतिभूतियों अथवा बांडों के लिए जोखिम भार 0% तथा कॉर्पोरेट ऋण के लिए जोखिम भार 100% निर्धारित किया गया है। 
  • बेसल-1 रिपोर्ट में बैंकों की पूँजी को टीयर-। तथा टीयर-॥ में विभाजित किया। बेसल-1 को विश्व के सभी बैंकों द्वारा अपनाया जा चुका है। भारत ने बेसेल-1 मानक को वर्ष 1999 में लागू किया। भारत के संदर्भ में बैंकों के लिए रिजर्व बैंक ने उच्च पूँजी जोखिम भारित आस्ति अनुपात (Capital Risk Weighted Assets Ratio CRAC) को 9% बनाए रखने का प्रावधान किया है।

बेसल-2 (Basel-2)
  • बेसल समिति ने बेसल-2 मानक जून 2004 में प्रस्तुत किया। इस मानक के अन्तर्गत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय जोखिमों से निपटने के  लिए बैंकों व वित्तीय संस्थानों को एक निश्चित मात्रा में धनराशि को अपने पास सुरक्षित रखने के मानक निर्धारित किए गए हैं। यह मानक पूँजीगत आवश्यकता, पर्यवेक्षण, समीक्षा तथा बाजार अनुशासन के तीन स्तंभों पर आधारित हैं। 
  • बेसल-2 टीयर -1॥ के सृजन की ओर इंगित करता है। टीयर-III पूँजी के अंतर्गत अल्पकालिक अधीनस्थ ऋणों को रखा जाता है जिसका प्रमुख उद्देश्य बाजार जोखिम की पूँजी आवश्यकताओं के कुछ अंश को पूरा करना है। 
  • बेसल-2 के अन्तर्गत ऐसे भारतीय बैंक जो भारत के बाहर कार्यरत हैं तथा ऐसे विदेशी बैंक जो भारत में कार्यरत हैं उनके लिए 31 मार्च, 2008 तक बेसल-2 मानक के अनुपालन को अनिवार्य बनाया गया है। इस संदर्भ में भारत के सभी बैंकों ने बेसल- ॥ के मानक को प्राप्त कर लिया है। 
  • बेसल-2 मानक के अन्तर्गत अनुसूचित व्यापारिक बैंकों के लिए जो CRAR मार्च-2009 के अंत तक 14 प्रतिशत था वह मार्च 2010 के अंत तक बढ़कर 14.5 प्रतिशत हो चुका है।

बेसल-3 (Basel-3) 
बैंकिग व्यवस्था में वर्ष 2008 के पश्चात आए आर्थिक संकट/मंदी के कारण जो समस्याएँ उत्पन्न हुई उसको देखते हुए बैंकों की साख को सुरक्षित रखने हेतु बेसल-3 मानक को सितंबर, 2010 में प्रस्तुत किया गया। बेसल-3 मानक के अन्तर्गत बैंको के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं:
  1. बेसल-3 मानक में निर्धारित किया गया है कि बैंकों को उच्च गुणवत्ता वाली पूँजी को बनाए रखना होगा तथा अपनी परिसंपत्तियों की कम से कम 4.5 प्रतिशत की इक्विटी रखनी होगी। अतः बैंकों को उच्च गुणवत्ता वाली पूँजी का कुल 7 प्रतिशत आरक्षित रखना होगा जिसके पश्चात् ही बैंक लाभांश आदि का भुगतान कर सकता है।
  2. बेसल-3 के मानक के अनुसार CRAR को न्यूनतम 9 प्रतिशत के स्तर तक बनाए रखना होगा।
  3. बेसल-3 में लिवेरेज अनुपात को सम्मिलित किया गया है। लिवेरेज अनुपात बैंकों का ऋण संपत्ति अनुपात प्रदर्शित करता है। यह अनुपात जितना अधिक होगा बैंकों की ब्याज देयता उतनी ही अधिक होगी।
  4. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव के अनुसार 30 जून, 2010 तक भारतीय बैंकों में पूँजी पर्याप्तता अनुपात बेसल-III मानक से बेहतर अनुपात में था। उदाहरण के लिए 30 जून 2010 तक बैसल- III गणना के अनुसार भारतीय बैंकों की CRAR-11.7 प्रतिशत (बैसल-III में 7%), टीयर-पूँजी-9 प्रतिशत, सामान्य इक्विटी 7.4 प्रतिशत थी।

मुद्रा बैंक योजना एवं मुद्रा बैंक

युवाओं में कौशल विकास को। बढ़ावा देने, उनमें कारोबार व रोजगार की भावना विकसित करने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए 8 अप्रैल, 2015 को 20 हजार करोड़ रूपये के कोष के साथ पूँजीगत विकास सहयोग की एक योजना का शुभारंभ किया गया है। 
इस योजना का नाम मुद्रा बैंक योजना है। इस योजना के माध्यम से सरकार ने वित्तीय समस्या से ग्रसित असंगठित क्षेत्र के व्यवसायों और लघु व्यवसायों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाने के साथ ही कोई नया व्यवसाय प्रारंभ करने के इच्छुक युवाओं को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखा है।

योजना के उद्देश्य
ऋण के रूप में सूक्ष्म वित्त (Micro Finance) उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं और उसकी वित्त प्रणाली का नियमन तथा उसकी सक्रिय भागीदारी को मजबूत बनाने के साथ उसे स्थिरता प्रदान करना। 
सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं (Micro Financial Institutions) सहित अन्य एजेंसियों को वित्त व ऋण गतिविधियों में सहयोग करना। जो छोटे कारोबारियों, दुकानदारों, स्वयं-सहायता समूहों आदि को ऋण उपलब्ध करवाते हैं। 
मौजूद सभी सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं (MFI) को पंजीकृत करना और उनके प्रदर्शन के आधार पर उनकी श्रेष्ठता सूची बनाना। इस सूची से संस्था के रिकॉर्ड का आकलन किया जा सकेगा और ऋण लेने वालों को श्रेष्ठ सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं चुनने में मदद मिल सकेगी। दूसरी ओर श्रेष्ठता सूची बनने से संस्थाओं के मध्य प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिससे वे सभी बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित होंगे अंततः इसका लाभ ऋण लेने वालों को मिलेगा। मुद्रा बैंक ऋण लेने वालों को कारोबार के सम्बंध में उचित दिशा-निर्देश भी उपलब्ध कराएगा जिससे कारोबार को संकट से उबारने में सहायता मिल सकेगी। साथ ही डिफॉल्ट (बकाये की स्थित) की स्थिति में पैसे की वसूली के लिए किसी प्रक्रिया का पालन किया जाए, उसे निर्धारण में भी मुद्रा बैंक सहयोग करेगा।
छोटी व्यावसायिक इकाइयों को दिए जाने वाले ऋण की गारंटी के लिए मुद्रा बैंक क्रेडिट गारंटी स्कीम बनाएगा। 
मुद्रा बैंक ऋण देने वाली संस्थाओं को प्रभावी तकनीक उपलब्ध कराएगा जिससे ऋण लेने और देने की प्रक्रिया में आसानी होगी। मुद्रा बैंक एक उपयुक्त ढाँचा तैयार करेगा जिससे व्यवसायिक इकाइयों को छोटे ऋण उपलब्ध करवाने के लिए एक प्रभावी पहल की जा सके।

राष्ट्रीय आवास बैंक

राष्ट्रीय आवास बैंक (NHB) की स्थापना रिजर्व बैंक की सहायक संस्था के रूप में जुलाई 1988 में की गई थी। इस बैंक का मुख्य कार्य देश में आवास सम्बंधी आवश्यकताओं का वित्तीयन करना था। इस सम्बंध में यह देश का शीर्षस्थ बैंक है। राष्ट्रीय आवास बैंक बॉण्डों तथा ऋण पत्रों को जारी कर अपने संसाधन जुटा सकता है।
  • 1 जुलाई, 1989 से NHB ने जमाराशि स्वीकार करने की एक योजना प्रारंभ की जिसे गृह ऋण खाते की योजना कहा जाता है। 
  • NHB द्वारा उपभोक्ताओं को आवासीय ऋण सुगम कराने के लिए आवास वित्त निगमों को 400 करोड़ रूपये का एक विशेष नकदी पैकेज उपलब्ध कराया गया है तथा ग्रामीण आवास कोष नामक एक जमा कोष स्थापित किया गया है। अपनी प्राथमिक क्षेत्र ऋण देयताओं में कमी वाले बैंकों द्वारा इस कोष में 1760 करोड़ रूपये का योगदान किया गया है।
  • 30 जून, 2009 को NHB की अधिकृत पूँजी 50 करोड़ रूपये तथा 1692 करोड़ रुपये रिजर्व के रूप में थी। NHB ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए रिवर्स मॉर्टगेज की व्यवस्था प्रारम्भ की है जिसके अंतर्गत वे अपने मकान को गिरवी रखकर उसके स्वामी बने रहकर जीवन भर उसी मकान में रहते हुए ऋण की अदायगी किए बिना मासिक आय प्राप्त कर सकते हैं।
  • NHB ने वर्ष 2009-10 के दौरान 3.88 लाख आवास इकाइयों को वित्तीय सहायता प्रदान की।

भारतीय महिला बैंक 

  • उद्घाटन- 19 नवम्बर, 2013
  • प्रारंभिक पूँजी- 1000 करोड़ 
  • स्थापना- मुम्बई
  • मुख्यालय - नई दिल्ली 
स्वरूप - समाज में महिलाओं को समान अवसर देने और उनके सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने भारत में प्रथम बैंक की नींव रखी। 
उद्देश्य- सभी वर्गों की महिलाओं के लिए वित्तीय सुविधाओं को सुगम बनाना, महिलाओं का सशक्तीकरण और वित्तीय समावेशन। आर्थिक सशक्तीकरण के लिए महिलाओं को आर्थिक संस्थाओं और परिसंपत्तियों पर नियंत्रण की समान सुविधाएँ प्रदान करना।
  • पाकिस्तान और तंजानिया के पश्चात् भारत ऐसा तीसरा देश है। जिसने महिलाओं के लिए विशेष बैंक स्थापित किया है। 
  • 31 मार्च, 2017 को भारतीय महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक में विलय कर दिया गया है।

भारत में विदेशी बैंक
भारत में विदेशी बैंकों की 44 इकाइयाँ कार्यरत हैं। वस्तुतः विश्व व्यापार संगठन (WTO) के साथ किए गए समझौतों के अनुरूप देश में विदेशी बैंकिंग इकाइयों को लाइसेंस देना आवश्यक है। इसके अनुसार वर्ष में कम से कम 12 विदेशी बैंकों की शाखाओं को स्थापित किया जाएगा। 
नये प्रावधानों के अनुरूप, विदेशी बैंकों को भारत में अपनी प्रथम शाखा खोलते समय मात्र 10 मिलियन डॉलर पूँजी की आवश्यकता होगी जबकि दूसरी और तीसरी शाखा के विस्तार के लिए अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता क्रमशः 10 मिलियन तथा 5 मिलियन डॉलर की होगी। 
भारत में स्टैंडर्ड एवं चार्टर्ड बैंक ( Standard and Charterd Bank) ब्रिटेन, की सर्वाधिक 100 शाखाएँ कार्यरत हैं। इसके पश्चात् हॉन्ग कॉन्ग एण्ड शंघाई बैंक कॉरपोरेशन (HSBC) की 50 शाखाएँ भारत में कार्यरत हैं। भारत में सिटी बैंक (City Bank) की भी 43 शाखाएँ कार्यरत हैं।
क़तर के प्रमुख बैंक दोहा बैंक को भारत में काम करने का लाइसेंस दिया गया है।
भारत में इस समय 44 विदेशी बैंक कार्यरत है।

विदेशों में भारतीय बैंक
  • मार्च, 2016 के आँकड़ों के अनुसार, 52 देशों में सार्वजनिक क्षेत्र के 12 तथा निजी क्षेत्र के 3 बैंक कार्यरत थे। संयुक्त रूप से इन बैंकों के 172 शाखा कार्यालय तथा 55 प्रतिनिधि कार्यालय थे। विदेशों में भारतीय स्टेट बैंक की सर्वाधिक 52 शाखाएँ कार्यरत हैं। जबकि दूसरे स्थान पर बैंक ऑफ बड़ौदा की 51 शाखाएँ कार्यरत हैं इन दोनों बैंकों के अतिरिक्त बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, इंडियन बैंक, यूको बैंक तथा सिंडीकेट बैंक की शाखाएँ विदशों में कार्यरत हैं। 
  • भारतीय बैंकों की ब्रिटेन में सर्वाधिक शाखाएँ (30) कार्यरत हैं। इसके बाद हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर, यूएई और श्रीलंका में क्रमशः 19,17,13 तथा 10 शाखाएँ कार्यरत हैं। 
  • विदेशी बैंकिंग इकाइयाँ महत्वपूर्ण विदेशी वित्तीय केन्द्रों जैसे-बहरीन, (Bahrain) मॉरिशस, (Mauritius) कैमन द्वीपसमूह , (Cayman islands) और बहामास (Bahamas) में स्थित है।

भारत में बैंकों की स्थिति
स्टेट बैंक समूह के बैंक 06
सार्वजनिक क्षेत्र के नए बैंक 21
निजी क्षेत्र के बैंक 07
निजी क्षेत्र के पुराने बैंक 13
विदेशी बैंक 44
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक 86
स्थानीय बैंक 04
शहरी सहकारी बैंक 1.71
राज्य सहकारी बैंक 31
जिला केंद्रीय सहकारी बैंक 371

विदेशों में भारतीय बैंकों की शाखाएँ 2016-17 में 36.5 प्रतिशत बढ़ीं, जबकि भारत में विदेशी बैंकों की शाखाओं में 20.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

प्राथमिक क्षेत्र उधार (Priority secter Lending)
भारतीय रिजर्व बैंक ने अधिसूचना जारी कर प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को ऋण देने सम्बंधी प्रावधानों में महत्वपूर्ण बदलाव किया है।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार 20 या उससे अधिक शाखाओ वाले विदेशी बैंकों को वित्तीय वर्ष 2018-19 से छोटे और सीमांत किसानों और सूक्ष्म उद्यमों को ऋण देने के उप-लक्ष्यों का अनुपालन करना होगा। यह निर्णय विदेशी बैंकों की PSL प्रोफाइल की समीक्षा करने के बाद लिया गया है। 
आरबीआई इन बैंकों के लिए वित्तीय वर्ष 2018-19 से समायोजित निवल बैंक उधारियों का 8% या ऑफ-बैलेंस शीट एक्सपोजर की समतुल्य राशि में जो भी अधिक हो, उप-लक्ष्य लागू होगा।

बैंकिग क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का विकास
ऑनलाइन ट्रांजेक्शन प्रारूप (Online Transaction) 
कम नकदी अर्थव्यवस्था (Less Cash Economy) बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने आनॅलाइन। ट्रांजेक्शन को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक उपायों की घोषणा की है। इसके तहत अत्यधिक इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन करने वाले उपभोक्ताओं एवं व्यवसायियों को कर छूट कार्ड भुगतान पर सेवा कर में छूट भी प्रदान की जाएगी। यह छूट ई-टिकट बुकिंग, पेट्रोल पंप पर कार्ड भुगतान जैसे इलेक्ट्रॉनिक भुगतान पर भी उपलब्ध होगा।
इस प्रारूप में एक निश्चित सीमा से उच्च मूल्य के ट्रांजेक्शन (1 लाख रूपये) के लिए ऑनलाइन भुगतान को भी अनिवार्य करने का प्रावधान है। यह भुगतान डेबिट या क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी किया जा सकता है।
प्रारूप में सेवा प्रदाताओं को भी कहा गया है कि यदि कोई उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक (ऑनलाइन) माध्यम से बिल या अन्य भुगतान करता है, तो उसे छूट (डिस्काउंट) प्रदान करें। 
सरकारी स्तर पर उपर्युक्त उपायों के पश्चात् आयकर विभाग (Income Tax Department) विभिन्न कारोबारों के लिए ऑडिट ट्रॉयल स्थापित कर सकता है  जिससे समानांतर अर्थव्यवस्था पर नजर रखी जा सके। 
वैश्विक भुगतान कंपनी मास्टर कार्ड के अनुसार भारत, विश्व की सर्वाधिक नकद गहनता (Cash Intensive) वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।
भारत में कैश-जीडीपी अनुपात 12% है जो कि ब्राजील, चीन एवं दक्षिण अफ्रीका जैसी ब्रिक्स (BRICS) अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में चार गुना अधिक है।
भारत में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से 5% से भी कम भुगतान किए जाते हैं। इसके दो प्रमुख कारण हैं- 1. इलेट्रॉनिक बैंकिंग सेवाओं की सीमित पहुँच 2. लोगों में जागरूकता तथा रुचि की कमी।

एटीएम (Automated Teller Machine)
भारतीय बैंकिंग में एटीएम का पदार्पण 1990 के दशक में हुआ और धीरे-धीरे यह बैंकिंग उद्योग का सबसे महत्वपूर्ण तकनीकी आयाम बन गया।
एटीएम द्वारा प्रारंभ में केवल राशि आहरित करने अथवा अपने बैंक खाते में बैलेंस जानने का काम किया जाता था, किन्तु वर्तमान में चेक कलेक्शन, मनी ट्रान्सफर, यूटिलिटी बिल पेमेंट, मोबाइल रिचार्ज इत्यादि अनेक सेवाएँ दी जा रही हैं।

ह्वाइट लेबल ए.टी.एम. 
ए.टी.एम. अधिकांशत बैंकों के स्वामित्व में होते हैं तथा उनके ही | अनुवीक्षण में प्रचालित होते हैं पर जब ए.टी.एम. गैर बैंकिंग | कम्पनियों के स्वामित्व में हों तथा उनके द्वारा प्रचालित हों तो उन्हें हाइट लेबल ए.टी.एम. कहते हैं। 
ए.टी.एम. सुविधा को अधिक तीव्रता तथा व्यापक रूप से विस्तृत | करने के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बैंको में, रिजर्व बैंक ने गैर बैंकिंग कम्पनियों को ए.टी.एम. परिचालित करने की अनुमति दी है।

ब्राउन लेवल एटीएम (Brown Label ATM) 
इसका संचालन थर्ड पार्टी (गैर-बैंकिंग कंपनी) करती है। सम्बंधित बैंक सिर्फ नकद की व्यवस्था और बैंक-एंड सर्वर कनेक्टिविटी को संभालते हैं। बैंक अपने लोगो का उपयोग करते हैं लेकिन सेवा आउटसोर्स होती है।

Micro ATM (Point of Sale) 
ये व्यपारियों द्वारा दूकानों, स्टोर्स आदि में ग्राहकों से नकदीरहित भुगतान लेने के लिए प्रयोग की जाती है। ग्राहक अपना डेविट/क्रेडिट कार्ड स्वाइप करके भुगतान करता है। 
इससे अधिकतम 1000 रूपये की निकासी किसी दुकान जा सकती है।

ई-बैंकिंग (E-Banking) 

  • ई-बैकिंग से अभिप्रायः इंटरनेट पर बैंक की वेबसाइट के माध्यम से बैंक खाते का संचालन करना है। पिछले एक दशक से ई-बैंकिंग का प्रचलन युवा बैंक ग्राहकों के मध्य तीव्रता से बढ़ रहा है। इसी तरह औद्योगिक समूहों द्वारा भी बड़े पैमाने पर ई-बैंकिंग का प्रयोग किया जा रहा है। 
  • यह आवश्यक है कि ई-बैंकिंग को बैंक या बैंकिंग प्रतिनिधि इत्यादि के माध्यम से देश की ग्रामीण जनता तक पहुंचाया जाए. ताकि बैंकिंग के क्षेत्र में उत्पन्न हुए तकनीकी विभेद (Digital Divide) को दूर किया जा सके।

मोबाइल वॉलेट प्रौद्योगिकी (Mobile wallet Technology)
मोबाइल वॉलेट अनिवार्य रूप से किसी भी व्यक्ति के साथ जुड़े रहने वाले पारम्परिक जेब का डिजिटल संस्करण है। यह डिजिटल वॉलेट स्मार्ट फोन पर काम करता है तथा बिना डेबिट या क्रेडिट कार्ड के भुगतान की अनुमति देता है। मोबाइल वॉलेट में किसी भी बैंक के डेबिट या क्रेडिट कार्ड से धन हस्तांतरित डाला जा सकता है, तथा वहीं से सीधे भुगतान किया जा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मोबाइल वॉलेट में पैसे रखने एवं खर्च करले के लिए एक मासिक सीमा निर्धारित की है। कोई भी व्यक्ति अपने मोबाइल वॉलेट में न तो 20,000 रूपए से ज्यादा रख सकता है और न ही इससे अधिक की खरीददारी कर सकता है। 
कुछ शतों के अधीन खाते की सीमा एक लाख रूपए तक की जा सकती है, परन्तु उसके लिए खाते को केवाईसी (KYC) की प्रक्रिया के अन्तर्गत सत्यापित कराना आवश्यक हो जाता है।

रुपे कार्ड (RuPay Card) 
यह दो शब्दों Ru+pay यानी रुपया तथा पेमेंट (Payment) यानी भुगतान से मिलकर बना है। यह भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा शुरू की गई एक नई कार्ड आधारित भुगतान योजना है 
इस योजना के तहत् सभी भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों को भारत में इलेक्ट्रॉनिक भुगतान की इस प्रणाली में भाग लेने की अनुमति होगी।

भारत में महत्वपूर्ण मोबाइल वॉलेट कंपनियाँ

भीम एप (Bharat Interface for Money- BHIM)
वित्तीय लेन-देन हेतु भारत सरकार के उपक्रम भारतीय  राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI BHARAT INTERFACE FOR MONEY - National Payment Corportation of India) द्वारा आरम्भ किया गया एक मोबाइल एप्लीकेशन है। इस एप का इंटरनेट बिना के भी प्रयोग किया जा सकता है। 
भीम एप को 30 दिसंबर, 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा डिजिधन मेला, के अवसर पर दिल्ली में जारी किया गया। भीम एप लगभग सभी भारतीय बैंक खातों के द्वारा प्रयोग किया जा सकता है।

पेटीएम (Paytm) 
Paytm भी एक प्रकार का ऑनलाइन वालेट है। पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा हैं। पेटीएम एक फाइनेंशियल सपोर्ट सिस्टम है जो कार्ड के माध्यम से यूटिलिटी कॉस्ट फ्री पेमेंट की सुविधा देता है। पेटीएम सभी प्रमुख मोबाइल फोन ऑपरेटर्स, डीटीएच प्लेयर्स, गैस एंड इलेक्ट्रिसिटी प्रोवाइडर आदि सपोर्ट करता है। 
इसके साथ ही Paytm भारत के सभी बड़े बैंकों के साथ भी जुड़ा हुआ है। भारतीय रिजर्व बैंक ने Paytm को भुगतान बैंक (Payment Bank) का लाइसेंस भी दिया है।

पेटीएम पेमेंट बैंक 

डिजिटल भुगतान प्लेटफार्म पेटीएम ने 23 मई, 2017 को पेटीएम पेमेंट्स बैंक (Paytm Payments Bank) की शुरुआत की। 
पेटीएम ने अपने पेमेंट बैंक के ग्राहकों के लिए बैंक जमा राशि पर कैश बैक की सुविधा प्रदान की है, और ऐसा करने वाला यह भारत का पहला बैंक है। 
पेटीएम भुगतान बैंक ग्राहकों को खाते में 25,000 रु. जमा करने पर 250 रूपए कैश बैक का विकल्प होगा। 
इसमें ग्राहकों को आईएमपीएस (IMPS), एनईएफटी (NEFT) और आरटीजीएस (RTGS) द्वारा किये जाने वाले सभी ऑनलाइन लेन-देन की निःशुल्क सुविधा प्रदान की गई है। इसके अतिरिक्त बचत खातों (Saving Account) में किसी भी प्रकार की न्यूनतम शेष (Minimum Balance) राशि की आवश्यकता नहीं होगी।

ऑक्सिजन वॉलेट (Oxigen wallet)
ऑक्सिजन वॉलेट की स्थापना वर्ष 2004 में प्रमोद सक्सेना ने दक्षिण अफ्रीकी कंपनी ब्लू लेवल टेलीकॉम की साझेदारी में की थी। वर्तमान में यह देश की प्रमुख डिजिटल वॉलेट सेवा कंपनी है।
ऑक्सिजन वॉलेट देश की प्रथम डिजिटल वॉलेट कंपनी है जिसे राष्ट्रीय भुगतान निगम (Natonal Payments Corporation of India) द्वारा मान्यता प्रदान की गई है।

टैप एंड पे सेवा (Tap and Pay Service) 
देश के सबसे बड़े निजी क्षेत्र के बैंक आईसीआईसीआई ने नीयर फील्ड कम्युनिकेशंस (NFO) प्रौद्योगिकी आधारित नई भुगतान सेवा टैप एंड पे (Tap and Pay) की शुरुआत की है। बैंक ने इस सेवा को टेक महिंद्रा के सहयोग से शुरू किया है। इस सेवा का प्रयोग दुकानों में भुगतान के लिए किया जा सकेगा। इसके लिए एनफसी तकनीक वाले मोबाइल फोन या टैग की आवश्यकता होगी।

आईएमटी भुगतान प्रणाली (Instant Money Transfer)
आईएमटी भुगतान प्रणाली एक बहु बैंक मोबाइल ट्रांसफर सॉल्युशन है और यह बैंक की पहुँच से दूर लोगों के लिए मोबाइल फोन एवं एटीएम को जोड़ने का काम करता है जिससे यह भारत में मुद्रा के हस्तांतरण, भुगतान और वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

एक रुपए के नोट पुनः जारी 
  • केन्द्र सरकार ने 20 वर्षों के लम्बे अंतराल के पश्चात एक रूपए के नोट पुनः जारी किए हैं। यह नोट केन्द्रीय वित्त सचिव राजीव महर्षि के हस्ताक्षर के साथ मार्च 2015 में जारी किए गए हैं।
  • नए जारी किए गए एक रुपए के ये नोट मुख्यतः हरे एवं गुलाबी रंग में हैं, जिन्हें पुराने सूती कपड़ों की सामग्री से बनाया गया है। 
  • छपाई पर आने वाले व्यय के अधिक होने के कारण सरकार ने एक रूपए के नोटों की छपाई नवंबर 1994 में बन्द कर दी थी।

फ्री-बैंकिंग (Free Banking) 
यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें नोट निर्गमन का एकाधिकार केन्द्रीय बैंक के पास नहीं होता बल्कि सभी बैंकों को प्राप्त होता है।

मोबाइल बैंकिंग (Mobile Banking {M-Banking}) 
  • मोबाइल बैंकिंग, वह प्रणाली है जिसमें मोबाइल फोन या किसी अन्य मोबाइल उपकरण को किसी ग्राहक के खाते के साथ जोड़कर वित्तीय व्यवहार करते हैं। 
  • वित्तीय सेवाओं के सन्दर्भ में यह अद्यतन युक्तियों में से एक है। जिसमें आर.सी.टी. (Rational Choice Theory) के माध्यम स वित्तीय सेवाएँ सरल बनायी जाती हैं।
  • यह विकासशील तथा अल्पविकसित देशों में मोबाइल फोन के व्यापक प्रयोग के कारण सम्भव हो सका है। मोबाइल बैंकिंग सेवाएँ, एस.एम.एस. चैनल के माध्यम से अत्यन्त ही अल्प लागत
  • पर की जा सकती हैं। 

कोर बैंकिंग (Core Banking)
कोर बैंकिंग का आशय बैंकिंग नेटवर्क से जुड़ी बैंक शाखाओं द्वारा बैंकिंग सेवाओं से है। कोर बैंकिंग का प्रयोग उन सेवाओं को व्यक्त करने के लिए करते हैं जो बैंकों की शाखाओं को एक दूसरे के साथ नेटवर्क से जुड़ने के कारण प्राप्त होती है। यदि बैंकों के मध्य नेटवर्क हो तो ग्राहक का फण्ड चाहे किसी भी बैंक में हो वह किसी भी बैंक की शाखा में व्यवहार कर सकता है। 
हाल के वर्षों में कोर बैंकिंग सेवाएँ (CBS) तीव्र गति से बढ़ी हैं। इसके अन्तर्गत अनेक सेवाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं, जैसे एनीह्वेयर बैंकिंग (कहीं भी बैंकिंग), प्रत्येक जगह से बैंकों तक पहुँच तथा साधनों का तीव्रता से हस्तान्तरण। 
इस प्रकार इन्टरनेट बैंकिंग या ई-बैंकिंग एक ही बैंक की विभिन्न शाखाओं के मध्य में न होकर अलग-अलग बैंकों के मध्य हो तो इसे कोर बैंकिंग कहते हैं।

लेस-कैश उपनगर (Less-cash Townships) 
14 अप्रैल, 2017 को प्रधानमंत्री ने नागपुर से देश के 12 राज्यों  में 81 लेस कैश उपनगरों (Less-Cash Townships) की परियोजना का शुभारंभ किया। 
लेसकैश उपनगर भारत में विमुद्रीकरण के बाद गुजरात नर्मदा वैली फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड द्वारा भरूच (गुजरात) में विकसित देश की पहली लेस-कैश टाउनशिप हैं।

कियोस्क बैंकिग (Kiosk Banking) 
कियोस्क बैंकिंग एक प्रकार की बूथ स्टेंड या कांउटर आधारित बैंकिंग व्यवस्था है जहाँ एक ऑनलाइन सेंटर होता है और इस सेंटर से बैंकिंग संबंधी मुख्य कार्य आसानी से किए जा सकते हैं।
यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा गांवों या अन्य दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए शुरू की गई एक पहल है और यह वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम हैं, जैसे-जमा (Deposits), भुगतान (Withdrawlas), प्रेषण (Remittances)

भारत में प्रतिभूति मुद्रण एवं सिक्कों का उत्पादन

छापेखाने (Printing Press)

इण्डिया सिक्योरिटी प्रेस, नासिक (महाराष्ट्र) 
नासिक स्थित भारत प्रतिभूति मुद्रणालय (India Security Press) में डाक सम्बन्धी लेखन सामग्री, डाक एवं डाक-भिन्न टिकटों, अदालती एवं गैर-अदालती स्टाम्पों, बैंकों (RBI तथा ser) के चेकों, बॉण्ड्स, राष्ट्रीय बचत पत्रों, पोस्टल ऑर्डर, पासपोर्ट, इन्दिरा विकास पत्रों, किसान विकास पत्रों आदि के अतिरिक्त राज्य सरकारों, सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों, वित्तीय निगमों आदि के लिए प्रतिभूति पत्रों की छपाई की जाती है। 

सिक्योरिटी प्रिन्टिंग प्रेस, हैदराबाद 
सिक्योरिटी प्रिन्टिंग प्रेस, हैदराबाद की स्थापना दक्षिणी भारतीय राज्यों की डाक लेखन सामग्री की मांगों को पूरा करने व पूरे देश की केंद्रीय उत्पादन शुल्क स्टाम्प की माँग को पूरा करने के लिए सन् 1982 में की गई थी, जिससे भारत प्रतिभूति मुद्रणालय, नासिक रोड के उत्पादन की पूर्ति की जा सके। 

करेंसी प्रेस नोट, नासिक (महाराष्ट्र) 
नासिक रोड स्थित करेंसी नोट प्रेस रुपये 10, 50, 100, 500, 1,000 तथा 2,000 रुपये के बैंक नोट छापती है और उनकी आपूर्ति करती है।

बैंक नोट प्रेस, देवास (मध्य प्रदेश)
देवास स्थित बैंक नोट प्रेस 20 रुपये, 50 रुपये के नोट छापती है। बैंक नोट प्रेस की स्याही का कारखाना प्रतिभूति पत्रों की स्याही का निर्माण भी करता है।

बैंक नोट प्रेस, देवास (मध्यप्रदेश)
देवास स्थित बैंक नोट प्रेस 20 रूपये, 50 रूपये के नोट छपती है बैंक नोट प्रेस की स्याही का कारखाना प्रतिभूत पत्रों की स्याही का निर्माण भी करता है 
देवास तथा नासिक रोड स्थित करेंसी नोट प्रेसों में प्रतिवर्ष 6,000 मिलियन करेंसी नोटों का मुद्रण होता है। 

साल्बोनी (पश्चिम बंगाल) तथा मैसूर (कर्नाटक) 
दो नए एवं अत्याधुनिक करेंसी नोट प्रेस मैसूर (कर्नाटक) तथा साल्बोनी (पश्चिम बंगाल) में स्थापित किए गए हैं। यहाँ भारतीय रिजर्व बैंक के नियंत्रण में करेन्सी नोट छापे जाते हैं। 

सिक्योरिटी पेपर मिल, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)
बैंक और करेंसी नोट कागज तथा नॉन-ज्यूडिशियल स्टाम्प पेपर की छपाई में प्रयोग होने वाले कागज का उत्पादन करने के लिए सिक्योरिटी पेपर मिल, होशंगाबाद में सन् 1967-68 में स्थापित की गई थी।

टकसाल (Mints)
  • सिक्कों का उत्पादन करने, सोने और चाँदी की परख करने एवं तमगों का उत्पादन करने के लिए भारत सरकार की चार टकसालें मुम्बई, कोलकाता, हैदराबाद तथा नोएडा में स्थित हैं। 
  • मुम्बई, हैदराबाद और कोलकाता की टकसाले क्रमशः वर्ष 1830, 1903 और 1950 में स्थापित की गई थीं, तथा नोएडा की टकसाल सन् 1989 में स्थापित की गई थी।
  • मुम्बई तथा कोलकाता को टकसालों में सिक्कों के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के परकों (मेडल) का भी निर्माण किया जाता है।

स्विस बैंकों में जमा राशि में भारत का 88वाँ स्थान 
स्विस बैंकिग प्रणाली में विदेशी नागरिको धारा जमा राशि का ब्यौरा 2 जुलाई 2017 को स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) द्वारा जारी किया गया। रिपोर्ट के अनुसार स्विस बैंकों में जमा धन राशि के आधार पर भारत में स्थान पर है। इस इस सूची में ब्रिटेन शीर्ष स्थान पर है।

गैर-निष्पादनकारी सम्पत्तियाँ (Non Performing Assets-NPA) 
बैंकों द्वारा दिये गये अग्रिम आण की किस्तों के भुगतान में जब 90 दिनों 1 से अधिक का विलम्ब हो जाता है, तो ऐसी सम्पत्ति को NPA कहते हैं।

बैंकिग क्षेत्र में एन पी.ए. की पहचान
भारत में बैंकिंग क्षेत्र के सम्बंध में एन.पी.ए. की पहचान के लिए 31 मार्च, 2014 से 90 दिनों के विलम्ब के मानक को स्वीकार किया गया है। जिसके अनुसार यह माना गया कि, जिन सामान्य अग्रिमों के सम्बंध में । वर्ष में एक तिमाही या 90 दिनों से अधिक का व्याज तथा मूलधन की किश्त का भुगतान प्राप्त न हुआ हो तो उस ऋण को एन.पी.ए. की श्रेणी में रखा जाता है। 

कृषि क्षेत्र में एन.पी.ए. की पहचान
कृषि ऋणों के संदर्भ में यह मानक भिन्न है। कृषि ऋणों को तब एन.पी.ए. घोषित किया जाता है, जब ब्याज या मूलधन की किश्त का भुगतान निर्धारित तिथि के बाद दो फसलों के आने तक नहीं किया जा सके।

गैर-निष्पादनकारी सम्पत्ति अनुपात (Non Performing Assets Ratio)
किसी बैंक की कल निष्पादनकारी सम्पत्तियों के प्रतिशत के रूप में गैर-निष्पादनकारी सम्पत्तियों का भाग ही गैर निष्पादनकारी सम्पत्ति अनुपात कहलाता है। 

गैर निष्पादनकारी सम्पत्ति अनुपात के दो रूप सम्भव हैं-
  1. सकल गैर-निष्पादनकारी सम्पत्ति अनुपात (Gross Non Performing Assets Ratio-GNPAR) 
  2. निवल गैर-निष्पादनकारी सम्पत्ति अनुपात (Net Non Performing Assets Ratio - NNPAR) 
1. सकल गैर निष्पादनकारी सम्पत्ति अनुपात (GNPA Ratio) 
GNPA ऐसा ऋण है, जो वसूली योग्य नहीं रह गया है, बैंक ने जिसके लिए अपनी पुस्तकों में व्यवस्था या प्रावधान किया है परन्तु जिसे बैंक की लेखा पुस्तकों में अब भी दिखाया जा रहा है। 

2. निवल गैर निष्पादनकारी सम्पत्ति अनुपात (NNPA Ratio)
ऐसे ऋण जिनके कुछ भाग की वसूली हो चुकी हो परन्तु उनके अग्रिम ऋण में बैंक की पुस्तकों में समायोजन नहीं हुआ हो। GNPA में इनका समायोजन करने के बाद जो बचता है उसे NNPA कहते हैं।

NNPA = ब्याजसंदेही खाते का शेष + DICGC/ECGC से प्राप्त क्लेम जिसका समायोजन नहीं हुआ तथा आशिक रूप से प्राप्त राशि जिसका समायोजन नहीं हो सका + बैंक द्वारा इस सम्बंध में की गयी व्यवस्था  
  • DICGC : Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation
  • ECGC : Export Credit Guarantee Corporation of India

गैर निष्पादनकारी सम्पत्ति की वृद्धि के प्रमुख कारण 
  • ऋण प्राप्त करने के लिए गिरवी रखी गयी परिसम्पत्ति की गुणवत्ता तथा कीमत में कमी आना। 
  • एनपीए की पहचान के सम्बंध में स्पष्ट मूल्यांकन प्रणाली का अभाव। 
  • आर्थिक स्थिति, वृद्धि दर तथा निर्यात वृद्धि दर में गिरावट आना। 
  • परियोजना के पूरा होने में विलम्ब के कारण ब्याज तथा मूलधन की किस्तों के भुगतान में विलम्ब होना। 
  • व्याज की दरों में वृद्धि होने के कारण किश्त भुगतान में समस्या।
  • निर्यातक इकाइयों को दिए गए ऋणों के भुगतान के सम्बंध में विदेशों में आर्थिक मन्दी के कारण उत्पन्न समस्या। 
  • सार्वजनिक बैंकों द्वारा NPA की गणना के सम्बंध में पहले से चली आ रही विधि के स्थान पर सिस्टम आधारित पहचान पद्धति को अपनाने के कारण भी NPA में वृद्धि हुई है। 
  • प्राथमिकता ऋण के अन्तर्गत दिये गये ऋणों के सम्बंध में अधिक जोखिम की स्थिति का होना। 
  • आधारिक संरचना (Infrastructure) क्षेत्र को दिए गये ऋणों में, अधिकांश की अदायगी न हो पाना।
बढ़ते हुए NPA की समस्या के समाधान के सम्बंध में सरकार तथा रिजर्व बैंक ने अनेक कदम उठाये हैं जो इस प्रकार हैं-

1. SAREAESI अधिनियम, 2002
Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act-2002 का उद्देश्य जान-बूझकर ऋणों का भुगतान न करने वालों को प्रभावी रूप से नियन्त्रित करना है। 

2. ऋण वसूली अधिकरण (Debt Recovery Tribunal-DRT) की स्थापना सन् 1993 में सरकार द्वारा की गयी। 

3. एसैट रिकान्सट्रक्शन कम्पनी (ARC) 
एक निजी कम्पनी के रूप में ARC की स्थापना की गई। इसकी न्यूनतम पूँजी को, 7 अप्रैल 2007 को 2 करोड़ से बढ़ाकर 100 करोड़ रूपये कर दिया गया। 

4. एस 4 ए
दावित संपदा की सतत संरचना स्कीम एस 4 ए (Scheme for Sutainable Structuring of Stressed Assets - S4A) भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वर्ष 2016 में आरम्भ की गई है। यह स्कीम,जो कि वैकल्पिक फ्रेमवर्क है, इसके अंतर्गत संघर्षरत कंपनी के ऋण को सतत् व असतत् हिस्सों में बाँटा जाता है।

सार्वजनिक क्षेत्रक संपदा पुनर्निवेशन एजेंसी (PARA)
आर्थिक समीक्षा 2016-2017 में अशोधित ऋण (Bad Loan) या एनपीए समस्या के लिए पीएआरए (PARA) के रूप में एक और समाधान प्रस्तुत किया गया है। पीएआरए या पारा का अर्थ है सार्वजनिक क्षेत्रक संपदा पुनर्निवेशन एजेंसी (Public Sector Asset Rehabilation Agenecy-PARA) इसे बैड बैंक भी कहा जाता है। यह एजेंसी एक स्वतंत्र इकाई होगी जो बैंकों के सबसे बड़े एनपीए खातों की पहचान करेगी और बैंकों से उन्हें खरीद लेगी। 
बैंकों के समस्याग्रस्त खातों को जमाकर यह दो प्रकार की समस्याओं का समाधान करेगी। 
उधार लेने वाले से त्वरित गति से समझौता करने का प्रयास करेगी। 
सबसे बड़े उधारदाता के रूप में यह उधार लेने वालों से बेहतर सौदेबाजी करेगी और उनके खिलाफ कड़ी प्रवर्तनीय कार्रवाई करेगी।

बैंकिग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश-2017
05 मई, 2017 को राष्ट्रपति ने एन. पी. ए. (गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ) से प्रभावी रूप से समाधान के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को सशक्त बनाने से संबंधित एक अध्यादेश को मंजूरी दी। 
यह अध्यादेश भारतीय रिजर्व बैंक को प्रत्यक्ष रूप से एक ऋण डिफॉल्ट के मामले में दिवालिया प्रक्रिया प्रारम्भ करने के लिए निर्देशित करता है। 
अब भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों के एनपीए से उचित तरीके से निपटाने के लिए पैनलों की नियुक्ति कर सकता है।

गैर-निष्पादनीय परिसम्पत्तियाँ (Non-Performing Assets) 
बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं द्वारा वितरित वे ऋण, जिनके मूलधन एवं उस पर देय ब्याज की वापसी या तो होती ही नहीं है अथवा निश्चित समयावधि के भीतर नहीं होती, गैर-निष्पादनीय परिसम्पत्तियोंकी श्रेणी में आते हैं। 

मैग्नेटिक इंक करेक्टर रिकॉग्नीशन कोड (माइकर कोड) 
बैंकों के चेकों के नीचे मुद्रित 9 अंकों के कोड को मैग्नेटिक इंक करेक्टर रिकॉग्नीशन कोड (माइकर कोड), कहा जाता है। इस अंकीय कोड के प्रथम तीन अंक बैंक की शाखा के शहर के नाम, आगे के तीन अंक बैंक के नाम एवं अंतिम तीन अंक बैंक की शाखा की पहचान से सम्बंधित होते हैं।

इंडियन फाइनेंशियल सिस्टम कोड (IFSC) 
यह कोड 11 अंकों का होता है। प्रत्येक बैंक इसे अपने चेक पर मुद्रित करवाता है। इस 11 अंकीय कोड के प्रथम 4 अंक बैंक के नाम से संबंधित होते हैं। बीच के एक शून्य के बाद के 6 अंकों का संबंध बैंक की शाखा के विवरण से होता है।

FCNR UTGT (Foreign Currency Non-Resident Account) 
यह एक सावधि जमा (Term Deposit) खाता है जो अनिवासी भारतीयों (NRIS, PIO, OCIS) को विदेशी में मुद्रा के रूप निवेश करने की सुविधा प्रदान करता है। इस खाते में अनुमति प्राप्त विदेशी मुद्राओं के रूप में निवेश किया जा सकता है।
इस खाते पर मिलने वाले ब्याज पर खाताधारक को कोई कर नहीं चुकाना पड़ता है। 

अनिवासी बाह्य खाता (Non-Resident External Account) 
अनिवासी भारतीयों के द्वारा यह खाता बचत खाता चालू खाता एवं सावधि जमाओं के रूप में खोला जा सकता है। इस खाते के अन्तर्गत NRI'S द्वारा विदेशों में अर्जित आय को ही जमा किया जा सकता है भारत में अर्जित आय को नहीं। 
NRE खाते के अन्तर्गत जमाओं (Deposits) अथवा प्राप्त ब्याज (Intesest) पर कोई कर नहीं चुकाना पड़ता है। 
NRE खाता विदेशी मुद्राओं में पूर्णतः परिवर्तनीय (Reportriable) होता है।

NRO CIGT (Non-Resident Ordinary Account) 
यह खाता भी NRI's के द्वारा सावधि जमा चालू खाता अथवा बचत  खाते के रूप में खोला जा सकता है। परन्तु इसके अन्तर्गत भारत में अर्जित आय को जमा किया जाता है। 
FCNR खातों के विपरीत NRO खाते से प्राप्त ब्याज पर 30% कर देना होता है।

नेफ्ट (NEFT) प्रणाली 
इस प्रणाली के तहत इंटरनेट के जरिए नेशनल इलेक्ट्रानिक फंड ट्रांसफर के द्वारा लिखित चेक के स्थान पर एक लाख रुपये से कम धनराशि को एक बैंक से उसी बैंक तथा अन्य बैंक के खाते में। खाताधारक द्वारा स्वयं ही स्थानान्तरित किया जा सकता है।

रीयल टाइम ग्रॉस सेटेलमेंट (RTGS) 
इस प्रणाली के द्वारा एक लाख से अधिक की धनराशि को खाताधारक द्वारा खुद ही इंटरनेट के माध्यम से किसी भी खाता धारक के किसी भी बैंक के खाते में त्वरित रूप से भेजा जा सकता है।

चेक टूकेशन प्रणाली (Cheque Truncation System-CTS) 
इस नई प्रणाली के तहत् किसी व्यक्ति फर्म या संस्थान द्वारा जारी किए गए किसी चेक के भुगतान हेतु उसे उसकी मूल शाखा या बैंक के पास भौतिक रूप में न भेजकर उसकी स्कैनिंग करके उस चेक को एक गोपनीय पट्टी पर अंकित सूचनाओं के सत्यापन से ही चेक का भुगतान चेक जमा करने वाला शाखा में प्राप्त किया जा सकता है।

सरकारी बैंकों का पुनपूंजीकरण 

  • सरकारी बैंकों के पुनपूंजीकरण का अर्थ है कि सरकारी बैंकों के पूंजी को बढ़ना। भारतीय सरकारी क्षेत्र गैर निष्पादन अस्ति (NPA) उधार वापसी और दिवालियापन (Insolvency) की समस्या को देखते हुए पुनपूंजीकरण की आवश्यकता पर सरकार ने ध्यान दिया है।
  • केन्द्र सरकार ने बैंकिग क्षेत्र में एक श्रेणीगत सुधार लाने हेत अक्टूबर 2017 में 2.11 लाख करोड़ रूपये के पैकेज की घोषणा की। जिसके अंतर्गत अगले 2 वर्षों के लिए सरकारी क्षेत्रों के बैठा तथा वरीयता प्राप्त सूक्ष्म छोटे एवं मध्यम उद्यमों (MSME) के औद्योगिक संकुल (Industrial Clusture) में वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी।
पेमेंट बैंक (Payment Bank) लघु वित्त बैंक (small finance bank)
न्यूनतम 100 करोड़ पूँजी न्यूनतम 100 करोड़ पूंजी
न्यूनत नचिकेत मोर कमेटी नचिकेत मोर और उषाथोराट कमेटी
केवल जमा, उधार नहीं जमा और उधार दोनों
जमा 40% हिस्सा प्रमोटर का अगले पाँच वर्षों में बनाये रखना हिस्सा प्रमोटर का जिसे अगले 12 वर्षों में कम करके 26% रखेगा
केवल डेबिट कार्ड जारी करेगा डेविड और क्रेडिट कार्ड दोनों जारी करेगा
एक दिन में 1 लाख से ज्यादा जमा नहीं जमा और ऋण दोनों कार्य तथा एक दिन में जमा कोई सीमा नहीं

सर्वव्यापी बैंकिंग (Universal Banking)
सर्वव्यापी बैंकिंग वित्तीय सेवाओं के विस्तारण से जुड़ी एक व्यापक अवधारणा है। इस में सभी बैंकिग सेवाएँ निवेश, विकास बैकिंग, बीमा एवं अन्य वित्तीय उत्पादों को सम्मिलित किया जाता है अर्थात् सभी वित्तीय उत्पाद एवं सेवाएँ एक साथ ही एक स्थान पर उपलबध कराए जाते हैं।

कोर बैंक (Centralised Online Real Time Exchange-CORE)
एक नेटवर्क से जुड़े सभी बैंक शाखाओं द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली बैकिंग सेवाएँ है। कोर बैकिंग का प्रयोग उन सेवाओं को व्यक्त करने के लिए करते हैं जो बैंकों की शाखाओं को एक-दूसरे के साथ नेटवर्क से जुड़ने के कारण प्राप्त होती है।

बैड बैंक (Bed Bank)
सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंको की बढ़ती हुई गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (NPS) की समस्या को समाप्त करने के लिये बैड बैंक की शुरूआत की गई है। यह एक ऐसा बैंक होगा जो सभी संस्थाओं के डूबते ऋण एवं जोखिमपूर्ण ऋण को अच्छे से प्रबंधित करेगा।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ हेतु वित्तीय लोकपाल की नियुक्ति

भारतीय रिजर्व बैंक ने भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-आईए के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक में पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों (NBFC) के विरुद्ध ग्राहकों शिकायतों के समाधान के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के लिए लोकपाल योजना शुरू की है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ 
कम्पनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत वे सभी कम्पनियों जिनका मुख्य कार्य ऋण उपलब्ध कराना, विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों, बीमा कारोबार, शेयर, डिबेंचर, बॉण्ड्स, चिट फंड सम्बंधी कारोबार आदि में निवेश करना तथा विभिन्न प्रकार से जमाएँ स्वीकार करना हो, गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ कहलाती है।

नाबार्ड (संशोधन) विधेयक
2 जनवरी, 2018 को राज्यसभा की मंजूरी के बाद संसद ने नाबार्ड (संशोधन) विधेयक, 2018 को पारित किया। यह विधेयक नाबार्ड अधिनियम, 1981 में संशोधन के द्वारा नाबार्ड को अधिक सशक्त बनाने का प्रयास करता है। 
नाबार्ड अधिनियम, 1981 के तहत अधिकृत पूंजी 100 करोड़ रुपये तक हो सकती थी जिसे केन्द्र सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक की सलाह से 5000 करोड़ रुपये तक बढ़ाया जा सकता था। वर्तमान में इस पूंजी को 30,000 करोड़ रुपये करने का प्रावधान है जिसे केन्द्र सरकार द्वारा आरबीआई की सलाह से बढ़ाया भी जा सकता है। 
इस अधिनियम के अनुसार नाबार्ड में केन्द्र सरकार एवं रिजर्व बैंक की संयुक्त हिस्सेदारी को न्यूनतम 51% रखने का प्रावधान था। 
नाबार्ड में भारत सरकार की हिस्सेदारी 99.6 प्रतिशत है अधिग्रहण के पश्चात् यह पूर्णतया केन्द्र सरकार के स्वामित्व वाल संस्था होगी।
वर्ष 1981 के प्रावधानों के तहत नाबार्ड केवल लघु उद्यमों (small Scale Industries) कुटीर एवं ग्रामोद्योग (Cottage and village Industries) के लिए ही ऋण उपलब्ध कराता है।

Post a Comment

Newer Older