संज्ञा किसे कहते हैं
संज्ञा के भेद
- जातिवाचक
- व्यक्तिवाचक
- गुणवाचक
- भाववाचक
- द्रव्यवाचक
व्यक्तिवाचक संज्ञा
- व्यक्तियों के नाम - श्याम, हरि, सुरेश।
- दिशाओं के नाम - उत्तर, पश्चिम, दक्षिण, पूर्व।
- देशों के नाम - भारत, जापान, अमेरिका, पाकिस्तान, बर्मा।
- राष्ट्रीय जातियों के नाम - भारतीय, रूसी, अमेरिकी।
- समुद्रों के नाम - काला सागर, भूमध्य सागर, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर।
- नदियों के नाम - गंगा, ब्रह्मपुत्र, वोल्गा, कृष्णा, कावेरी, सिंधु।
- पर्वतों के नाम - हिमालय, विंध्याचल, अलकनंदा, कराकोरम।
- नगरों, चौकों और सड़कों के नाम - वाराणसी, गया, चाँदनी चौक, हरिसन रोड, अशोक मार्ग।
- पुस्तकों तथा समाचारपत्रों के नाम - रामचरितमानस, ऋग्वेद, धर्मयुग, इण्डियन नेशन, आर्यावर्त।
- ऐतिहासिक युद्धों और घटनाओं के नाम - पानीपत की पहली लड़ाई, सिपाही-विद्रोह, अक्टूबर-क्रांति।
- दिनों व महीनों के नाम - मई, अक्टूबर, जुलाई, सोमवार, मंगलवार।
- त्योहारों व उत्सवों के नाम - होली, दीवाली, रक्षाबंधन, विजयादशमी।
जातिवाचक संज्ञा
- संबंधियों, व्यवसायों, पदों और कार्यों के नाम - बहन, मंत्री, जुलाहा, प्रोफेसर, ठग।
- पशु-पक्षियों के नाम - घोड़ा, गाय, कौआ, तोता, मैना।
- वस्तुओं के नाम - मकान, कुर्सी, घड़ी, पुस्तक, कलम, टेबल।
- प्राकृतिक तत्वों के नाम - तूफान, बिजली, वर्षा, भूकंप, ज्वालामुखी।
भाववाचक संज्ञा
- बूढा-बुढ़ापा
- लड़का-लड़कपन
- मित्र-मित्रता
- दास-दासत्व
- पंडित-पंडिताई
- गर्म-गर्मी
- सर्द-सर्दी
- कठोर-कठोरता
- मीठा-मिठास
- चतुर-चतुराई
- घबराना-घबराहट
- सजाना-सजावट
- चढ़ना-चढ़ाई
- बहना-बहाव
- मारना-मार
- दौड़ना-दौड़
- अपना- अपनापन, अपनाव
- मम-ममता, ममत्व
- निज-निजत्व
- दूर- दूरी
- परस्पर-पारस्पर्य
- समीप-सामीप्य
- निकट-नैकट्य
- शाबाश-शाबाशी
- वाहवाह-वाहवाही
समूहवाचक संज्ञा
द्रव्यवाचक संज्ञा
संज्ञाओं का प्रयोग
संज्ञा के रूपान्तर (लिंग, वचन और कारक में संबंध)
- नर खाता है - नारी खाती है।
- लड़का खाता है - लड़की खाती है।
- लड़का खाता है-लड़के खाते हैं।
- लड़की खाती है लड़कियाँ खाती हैं।
- लड़का खाना खाता है - लड़के ने खाना खाया।
- लड़की खाना खाती है - लड़कियों ने खाना खाया।
- लड़के खाना खाते हैं। (बहुवचन)
- लड़कियाँ खाना खाती हैं। (बहुवचन)
- लड़कों ने खाना खाया।
- लड़कियों ने खाना खाया।
- लड़कों से पूछो।
- लड़कियों से पूछो।
- पुरुष,
- स्त्री और
- जड़।
- मोटा-सा आदमी आया है। ('आदमी' पुल्लिग के अनुसार)
- यह बड़ा मकान है। ('मकान' पुल्लिग के अनुसार)
- यह बड़ी पुस्तक है। ('पुस्तक' स्त्रीलिंग के अनुसार)
- यह छोटा कमरा है। ('कमरा' पुल्लिग के अनुसार)
- यह छोटी लड़की है। ('लड़की' स्त्रीलिंग के अनुसार)
- आकारांत विशेषण स्त्रीलिंग में ईकारांत हो जाता है; जैसे-अच्छा-अच्छी, काला-काली, उजला-उजली, भला-भली, पीला-पीली।
- अकारांत विशेषणों के रूप दोनों लिंगों में समान होते हैं; जैसे-मेरी टोपी गोल है। मेरा कोट सफेद है। उसकी पगड़ी लाल है। लड़की सुंदर है। उसका शरीर सुडौल है। यहाँ सुंदर, गोल आदि विशेषण हैं।
- मेरी पुस्तक अच्छी है। ('पुस्तक' स्त्रीलिंग के अनुसार)
- मेरा घर बड़ा है। ('घर' पुल्लिंग के अनुसार)
- उसकी कलम खो गयी है। ('कलम' स्त्रीलिंग के अनुसार)
- उसका स्कूल बंद है। ('स्कूल' पुल्लिंग के अनुसार)
- तुम्हारी जेब खाली है। ('जेब' स्त्रीलिंग के अनुसार)
- तुम्हारा कोट अच्छा है। ('कोट' पुल्लिग के अनुसार
- बुढ़ापा आ गया। ('बुढ़ापा' पुल्लिंग के अनुसार)
- सहायता मिली है। ('सहायता' स्त्रीलिंग के अनुसार)
- भात पका है। ('भात' पुल्लिग के अनुसार)
- दाल बनी है। ('दाल' स्त्रीलिंग के अनुसार)
- जिन संज्ञाओं के अंत में 'त्र' होता है। जैसे-चित्र, क्षेत्र, पात्र, नेत्र, चरित्र, शस्त्र इत्यादि।
- 'नांत' संज्ञाएँ। जैसे-पालन, पोषण, दमन, वचन, नयन, गमन, हरण इत्यादि। अपवाद–'पवन' उभयलिंग है।
- 'ज'-प्रत्ययांत संज्ञाएँ। जैसे-जलज, स्वेदज, पिंडज, सरोज इत्यादि।
- जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में त्व, त्य, व, य होता है। जैसे सतीत्व, बहूत्व, नृत्य, कृत्य, लाघव, गौरव, माधुर्य इत्यादि।
- जिन शब्दों के अंत में 'आर', 'आय', वा 'आस' हो। जैसे-विकार, विस्तार, संसार, अध्याय, उपाय, समुदाय, उल्लास, विकास, ह्रास इत्यादि। अपवाद-सहाय (उभयलिंग), आय (स्त्रीलिंग)।
- 'अ'-प्रत्ययांत संज्ञाएँ। जैसे-क्रोध, मोह, पाक, त्याग, दोष, स्पर्श इत्यादि। अपवाद-जय (स्त्रीलिंग), विनय (उभयलिंग) आदि।
- 'त'-प्रत्ययांत संज्ञाएँ। जैसे-चरित, गणित, फलित, मत, गीत, स्वागत इत्यादि।
- जिनके अंत में 'ख' होता है। जैसे-नख, मुख, सुख, दु:ख, लेख, मख, शंख इत्यादि।
- आकारांत संज्ञाएँ। जैसे-दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा इत्यादि।
- नाकारांत संज्ञाएँ। जैसे-प्रार्थना, वेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना इत्यादि।
- उकारांत संज्ञाएँ। जैसे-वायु, रेणु, रज्जु, जानु, मृत्यु, आयु, वस्तु, धातु, ऋतु इत्यादि। अपवाद-मधु, अश्रु, तालु, मेरु, हेतु, सेतु इत्यादि।
- जिनके अंत में 'ति' वा 'नि' हो। जैसे-गति, मति, रीति, हानि, ग्लानि, योनि, बुद्धि, ऋद्धि, सिद्धि (सिध् + ति = सिद्धि) इत्यादि।
- 'ता'-प्रत्ययांत भाववाचक संज्ञाएँ। जैसे-नम्रता, लघुता, सुंदरता, प्रभुता, जड़ता इत्यादि।
- इकारांत संज्ञाएँ। जैसे-निधि, विधि, परिधि, राशि, अग्नि, छवि, केलि, रुचि इत्यादि। अपवाद-वारि, जलधि, पाणि, गिरि, अद्रि, आदि, बलि इत्यादि।
- 'इमा'-प्रत्ययांत शब्द। जैसे-महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा इत्यादि।
- ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष आकारांत संज्ञाएँ। जैसे-कपड़ा, गन्ना, पैसा, पहिया, आटा, चमड़ा इत्यादि।
- जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में ना, आव, पन, वा, पा होता है। जैसे-आना, गाना, बहाव, चढ़ाव, बड़प्पन, बढ़ावा, बुढ़ापा इत्यादि।
- कृदंत की आनांत संज्ञाएँ। जैसे-लगान, मिलान, खान, पान, नहान, उठान इत्यादि। अपवाद-उड़ान, चट्टान इत्यादि।
- ईकारांत संज्ञाएँ। जैसे-नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी इत्यादि। अपवाद-घी, जी, मोती, दही इत्यादि।
- ऊनवाचक याकारांत संज्ञाएँ। जैसे-गुड़िया, खटिया, टिबिया, पुड़िया, ठिलिया इत्यादि।
- तकारांत संज्ञाएँ। जैसे-रात, बात, लात, छत, भीत, पत इत्यादि। अपवाद-भात, खेत, सूत, गात, दाँत इत्यादि।
- ऊकारांत संज्ञाएँ। जैसे-बालू, लू, दारू, ब्यालू, झाडू इत्यादि। अपवाद-आँसू, आलू, रतालू, टेसू इत्यादि।
- अनुस्वारांत संज्ञाएँ। जैसे-सरसों, खडाऊँ, भौं, चूँ, नूँ इत्यादि। अपवाद-गेहूँ।
- सकारांत संज्ञाएँ। जैसे-प्यास, मिठास, निंदास, रास (लगाम), बाँस, साँस इत्यादि। अपवाद-निकास, काँस, रास (नृत्य)।
- कृदंत नकारांत संज्ञाएँ, जिनका उपांत्य वर्ण अकारांत हो अथवा जिनकी धातु नकारांत हो। जैसे-रहन, सूजन, जलन, उलझन, पहचान इत्यादि। अपवाद-चलन आदि।
- कृदंत की अकारांत संज्ञाएँ। जैसे-लूट, मार, समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकार इत्यादि। अपवाद-नाच, मेल, बिगाड़, बोल, उतार इत्यादि।
- जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में ट, वट, हट होता है। जैसे-सजावट, घबराहट, चिकनाहट, आहट, झंझट इत्यादि। जिन संज्ञाओं के अंत में 'ख' होता है। जैसे-ईख, भूख, राख, चीख, काँख, कोख, साख, देखरेख इत्यादि। अपवाद-पंख, रूख।
प्रत्यय | पद | तद्धित पद |
---|---|---|
इया | मुख | मुखिया (पुल्लिग) |
खाट | खटिया (ऊनवाचक) (स्त्रीलिंग) | |
इ | डोर | डोरी (स्त्रीलिंग) |
एर | मूँड | मुंडेरा (स्त्रीलिंग) |
अंध | अंधेर (पुल्लिग) | |
एल | फूल | फुलेल (पुल्लिग) |
नाक | नकेल (स्त्रीलिंग) | |
क | पंच | पंचक (पुल्लिग) |
ठण्ड | ठंडक (स्त्रीलिंग) |
- राम के चार भवन हैं। पुल्लिग (अविकृत)
- राम की चार इमारतें हैं।-स्त्रीलिंग (विकृत)
- राम की बातें हुईं।-स्त्रीलिंग (विकृत)
- राम के वचन सुने हैं। पुल्लिग (अविकृत)
- श्याम के चार पुत्र हैं। पुल्लिग (अविकृत)
- मैंने कोशिशें की।-स्त्रीलिंग (विकृत)
- कमरे में चार खिड़कियाँ हैं। स्त्रीलिंग (विकृत)
आकारांत संज्ञाएँ
- आकारांत भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे-माया, लज्जा, दया, कृपा, छाया, करुणा, आभा, क्षमा इत्यादि।
- यदि बहुवचन बनाने पर संज्ञाओं का अंत्य 'आ', 'ए' हो जाए, तो ये संज्ञाएँ पुल्लिग होती हैं। जैसे-ताला-ताले, पहिया-पहिये, कपड़ा-कपड़े, गला-गले, छाता-छाते, जूता-जूते, कुत्ता-कुत्ते इत्यादि।
- द्रव्यवाचक संज्ञाएँ पुल्लिग होती हैं। जैसे-दही, मोती, पानी इत्यादि।
- क्रियार्थक संज्ञाएँ पुल्लिग होती हैं। जिस शब्द के अंत में 'ना' लगा हो, वे पल्लिग होते हैं। जैसे-लिखना. पढ़ना, टहलना, गिरना, उठाना इत्यादि।
- द्वंद्व समास के शब्द पुल्लिग होते हैं। जैसे-सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, दाल-भात, लोटा-डोरी, __नर-नारी, राजा-रानी, माँ-बाप इत्यादि।
- आकारांत शब्द
- लड़का-लड़की
- गधा-गधी
- नाना-नानी
- साला-साली
- गूंगा-गूंगी
- नाला-नाली
- मोटा-मोटी
- काला-काली
- देव-देवी
- पुत्र-पुत्री
- गोप-गोपी
- मेढक-मेढकी
- नर-नारी
- हिरन-हिरनी
- बंदर-बंदरी
- ब्राह्मण-ब्राह्मणी
- कुत्ता-कुतिया
- बूढा-बुढ़िया
- बाछा-बछिया
इन | |
माली - मालिन | कुंजड़ा – कुंजडिन |
कुँजड़ा - कुँजड़िन | बाघ-बाघिन |
तेली – तेलिन | साँप-साँपिन |
आइन | |
चौबे – चौबाइन | हलवाई – हल्वाइन |
लाला - ललाइन | बनिया - बनियाइन |
पंडा - पंडाइन | मिसिर-मिसिराइन |
- ठाकुर-ठकुरानी
- चौधरी-चौधरानी
- जेठ-जेठानी
- सेठ-सेठानी
- पंडित-पंडितानी
- देवर-देवरानी
- मेहतर-मेहतरानी
- खत्री-खत्रानी
- स्यार-स्यारनी
- हिंदू-हिंदुनी
- ऊँट-ऊँटनी
- हाथी-हथिनी
- माँ-बाप
- राजा-रानी
- गाय-बैल
- साहब-मेम
- मर्द-औरत
- भाई-बहन
- वर-वधू
- माता-पिता
- पुत्र-कन्या
- पुरुष-स्त्री
- बेटी-दामाद
- बेटा-पुतोहू
- बुद्धिमान्-बुद्धिमती
- आयुष्मान्–आयुष्मती
- पुत्रवान-पुत्रवती
- बलवान-बलवती
- श्रीमान्–श्रीमती
- भगवान्-भगवती
- भाग्यवान्–भाग्यवती
- धनवान्-धनवती
- तनुज-तनुजा
- प्रिय-प्रिया
- कांत-कांता
- अबल-अबला
- चंचल-चंचला
- अनुज-अनुजा
- प्रियतम-प्रियतमा
- पंडित-पंडिता
- आत्मज-आत्मजा
- पूज्य-पूज्या
- तनय-तनया
- श्याम-श्यामा
- सुत-सुता
- पालित–पालिता
- पीत-पीता
- सेवक-सेविका
- बालक-बालिका
- भक्षक-भक्षिका
- नायक-नायिका
- पालक-पालिका
- संरक्षक-संरक्षिका
- लेखक-लेखिका
- पाठक-पाठिका
शब्द | पुल्लिंग रूप | स्त्रीलिंग रूप |
---|---|---|
कर्तृ | कर्ता | कर्त्री |
धातृ | धाता | धात्री |
दातृ | दाता | दात्री |
कवयितृ | कवयिता | कवयित्री |
नेतृ | नेता | नेत्री |
स्त्रीप्रत्यय | धातु या शब्द | कृत्-तद्धित-प्रत्यय | कृदंत-तद्धितात-रूप | स्त्रीप्रत्यय-रूप |
ई - | घटना | आ (कृत्) | घट | घटी |
| फेरना | आ (कृत्) | फेरा | फेरी |
| सुहाना | आवना (कृत्) | सुहावना | सुहावनी |
| चुकाना | औता (कृत्) | चुकौता | चुकौती |
| ढलना | वाँ (कृत्) | ढलवाँ | ढलवीं |
| आधा | एला (कृत्) | अधेला | अधेली |
| बिल्ली | औटा (कृत्) | बिलौटा | बिलोटी |
| चाम | ओटा (कृत्) | चमोटा | चमोटी |
| लंग | ओट (कृत्) | लँगोट | लँगोटी |
ई - | चोर | टा (तद्धित) | चोट्टा | चोट्टी |
| चाम | ड़ा (तद्धित) | चमड़ा | चमड़ी |
| टोपी | वाला (तद्धित) | टोपीवाला | टोपीवाली |
| एक | हरा (तद्धित) | एकहरा | एकहरी |
इन - | पीना | अक्कड़ (कृत्) | पियक्कड़ | पियक्कड़िन |
| तैरना | आक (कृत्) | तैराक | तैराकिन |
| लड़ना | ऐत (कृत्) | लडैत | लडैतिन |
| हँसना | ओड़ (कृत्) | हँसोड़ | हँसोडिन |
| जानना | हार (कृत्) | जाननहार | जाननहारिन |
| सोना | आर (तद्धित) | सुनार | सुनारिन |
| लोहा | आर (तद्धित) | लोहार | लोहारिन |
| खेल | आड़ी (तद्धित) | खिलाड़ी | खिलाड़िन |
| हत्या | आरा (तद्धित) | हत्यारा | हत्यारिन |
| माछ | उआ (तद्धित) | मछुआ | मछुइन |
| साँप | एरा (तद्धित) | सँपेरा | सँपेरिन |
| गाँजा | एड़ी (तद्धित) | गँजेड़ी | गँजेडिन |
नी - | घटना | अ (कृत्) | घट | घटनी |
| भागना | ओड़ा (कृत्) | भगोड़ा | भगोड़नी |
| चूड़ी | हारा (कृत्) | चूड़िहारा | चुड़िहारनी |
आइन - | बूझना | अक्कड़ (कृत्) | बुझक्कड़ | बुझक्कड़ाइन |
| धुनना | इया (कृत्) | धुनिया | धुनियाइन |
- एकवचन, और
- बहुवचन।
एकवचन | बहुवचन |
लड़का | लड़के |
गधा | गधे |
पहिया | पहिये |
घोड़ा | घोड़े |
कपड़ा | कपड़े |
बच्चा | बच्चे |
- एकवचन- हरि तुम्हारे मामा हैं। (बहुवचन-प्रेम और हरि तुम्हारे मामा हैं।)
- एकवचन- मैं तुम्हारा नाना हूँ। (बहुवचन-श्याम और हरि के नाना आए हैं।)
- एकवचन- राम एक योद्धा है। (बहुवचन-लड़ाई में बड़े-बड़े योद्धा खेत आए।)
- एकवचन- किशोर एक दाता है। (बहुवचन-स्कूल के अनेक दाता हैं।)
एकवचन | बहुवचन |
बालक पढ़ता है। | बालक पढ़ते हैं। |
हाथी आता है। | हाथी आते हैं। |
साधु आया है। | साधु आये हैं। |
पति है। | पति हैं। |
दयालु आया। | दयालु आए। |
उल्लू बैठा है। | उल्लू बैठे हैं। |
एकवचन | बहुवचन |
शाखा | शाखाएँ |
कथा | कथाएँ |
लता | लताएँ |
कामना | कामनाएँ |
वार्ता | वार्ताएँ |
अध्यापिका | अध्यापिकाएँ |
एकवचन | बहुवचन |
गाय | गायें |
बात | बातें |
बहन | बहनें |
रात | रातें |
सड़क | सड़कें |
आदत | आदतें |
एकवचन | बहुवचन |
तिथि | तिथियाँ |
रीति | रीतियाँ |
नीति | नीतियाँ |
नारी | नारियाँ |
एकवचन | बहुवचन |
डिबिया | डिबियाँ |
चिड़िया | चिड़ियाँ |
गुडिया | गुड़ियाँ |
एकवचन | बहुवचन |
पाठक | पाठकगण |
स्त्री | स्त्रीजन |
नारी | नारिबंद |
अधिकारी | अधिकारीवर्ग |
आप | आपलोग |
एकवचन | बहुवचन | विभक्तिचिह्न के साथ प्रयोग |
लड़का | लड़कों | लड़कों ने कहा। |
घर | घरों | घरों का घेरा। |
गधा | गधों | गधों की तरह। |
घोड़ा | घोड़ों | घोड़ों पर चढ़ो। |
चोर | चोरों | चोरों को पकड़ो। |
एकवचन | बहुवचन | विभक्तिचिह्न के साथ प्रयोग |
लता | लताओं | लताओं को देखो। |
साधू | साधुओं | यह साधुओं का समाज है। |
वधु | वधुओं | वधुओं से पूछो। |
घर | घरों | घरों में जाओ। |
जौ | जौओं | जौओं को काटो। |
एकवचन | बहुवचन | विभक्तिचिह्न के साथ प्रयोग |
मुनि | मुनियों | मुनियों की यज्ञशाला। |
गली | गलियों | गलियों में गए। |
नदी | नदियों | नदियों का प्रवाह। |
साड़ी | साड़ियों | साड़ियों के दाम दीजिए। |
श्रीमती | श्रीमतियों | श्रीमतियों का मिलन हुआ। |
- 'प्रत्येक' तथा 'हरएक' का प्रयोग सदा एकवचन में होता है। जैसे - प्रत्येक व्यक्ति यही कहेगा; हरएक कुआँ मीठे जल का नहीं होता।
- दूसरी भाषाओं के तत्सम या तद्भव शब्दों का प्रयोग हिंदी व्याकरण के अनुसार होना चाहिए। उदाहरणार्थ, अंग्रेजी के 'फुट' (foot) का बहुवचन 'फीट' (feet) होता है, किंतु हिंदी में इसका प्रयोग इस प्रकार होगा-दो फुट लंबी दीवार है; न कि 'दो फीट लंबी दीवार है।' फारसी से आये 'मकान' या 'कागज' का बहुवचन हिंदी में फारसी के ही अनुसार 'मकानात' या 'कागजात' नहीं होगा। फारसी से आये 'वकील' शब्द का बहुवचन 'वकला' हिंदी में नहीं चलेगा। हमलोग हिंदी में लिखेंगे. 'वकीलों की राय लीजिए।' इसी प्रकार, अंग्रेजी के 'स्कूल' शब्द का बहुवचन अंग्रेजी की ही तरह 'स्कूल्स' बनाना अनुचित है। हिंदी में 'स्कूल' का बहुवचन 'स्कूलों' होगा।
- भाववाचक और गुणवाचक संज्ञाओं का प्रयोग एकवचन में होता है। जैसे-मैं उनकी सज्जनता पर मुग्ध हूँ। लेकिन, जहाँ संख्या या प्रकार का बोध हो, वहाँ गुणवाचक और भाववाचक संज्ञाएँ बहुवचन में भी प्रयुक्त हो सकती हैं। जैसे-इस ग्रंथ की अनेक विशेषताएँ या खूबियाँ हैं; मैं उनकी अनेक विवशताओं को जानता हूँ।
- प्राण, लोग, दर्शन, आँसू, ओठ, दाम, अक्षत इत्यादि शब्दों का प्रयोग हिंदी में बहुवचन में होता है। जैसे - आपके ओठ खुले कि प्राण तृप्त हुए, आपलोग आये, आशीर्वाद के अक्षत बरसे, दर्शन हुए।
- द्रव्यवाचक संज्ञाओं का प्रयोग एकवचन में होता है। जैसे-उनके पास बहुत सोना है; उनका बहुत-सा धन बरबाद हुआ; न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। किंतु, यदि द्रव्य के भिन्न-भिन्न प्रकारों का बोध हो, तो द्रव्यवाचक संज्ञा बहुवचन में प्रयुक्त होगी। जैसे-यहाँ बहुत तरह के लोहे मिलते हैं। चमेली, गुलाब, तिल इत्यादि के तेल अच्छे होते हैं।
कारक | विभक्तियाँ |
कर्ता (Nominative) | ०, ने |
कर्म (Objective) | ०, को |
करण (Instrumental) | से |
संप्रदान (Dative) | को, के लिए |
अपादान (Ablative) | से |
संबंध (Genitive) | का, के की; रा, रे, री |
अधिकरण (Locative) | में, पर |
संबोधन (Addressive) | ०, हे, अजी, अहो, अरे इत्यादि। |
- सामान्यतः विभक्तियाँ स्वतंत्र हैं। इनका अस्तित्व स्वतंत्र है। चूंकि इनका काम शब्दों का संबंध दिखाना है, इसलिए इनका अर्थ नहीं होता है। जैसे-ने, से आदि।
- हिंदी की विभक्तियाँ विशेष रूप से सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होने पर प्रायः विकार उत्पन्न कर उनसे मिल जाती हैं। जैसे-मेरा, हमारा, उसे, उन्हें।
- विभक्तियाँ प्रायः संज्ञाओं या सर्वनामों के साथ आती हैं। जैसे-मोहन की दुकान से यह चीज आयी है।
- सामान्यभूत-राम ने रोटी खायी।
- आसन्नभूत-राम ने रोटी खायी है।
- पूर्णभूत-राम ने रोटी खायी थी।
- संदिग्धभूत-राम ने रोटी खायी होगी।
- हेतुहेतुमद्भूत-राम ने पुस्तक पढ़ी होती, तो उत्तर ठीक होता।
- श्याम ने उत्तर कह दिया।
- किशोर ने खा लिया।
- उसने थूका।
- राम ने छीका।
- उसने खाँसा।
- उसने नहाया।
- उसने टेढ़ी चाल चली।
- उसने लड़ाई लड़ी।
- मैंने उसे पढ़ाया।
- उसने एक रुपया दिलवाया।
- सकर्मक क्रियाओं के कर्ता के साथ भविष्यत्काल में 'ने' का प्रयोग बिलकुल नहीं होता।
- बकना, बोलना, भूलना-ये क्रियाएँ यद्यपि सकर्मक हैं, तथापि अपवादस्वरूप सामान्य, आसन्न, पूर्ण और संदिग्ध भूतकालों में कर्ता के 'ने' चिह्न का व्यवहार नहीं होता। यथा-वह बका; मैं बोला; वह भूला; मैं भूला! हाँ, 'बोलना' क्रिया में कहीं-कहीं 'ने' आता है। जैसे-उसने बोलियाँ बोलीं। 'वह बोलियाँ बोला'-ऐसा भी लिखा या कहा जा सकता है।
- यदि संयुक्त क्रिया का अंतिम खंड अकर्मक हो, तो उसमें 'ने' का प्रयोग नहीं होता। जैसे- मैं खा चुका हूँगा। वह पुस्तक ले आया। उसे रेडियो ले जाना है।
- जिन वाक्यों में लगना, जाना, सकना तथा चुकना सहायक क्रियाएँ आती हैं उनमें 'ने' को प्रयोग नहीं होता। जैसे - वह खाना चुका। मैं पानी पीने लगा। उसे पटना जाना है।
- मैंने हरि को बुलाया।
- माँ ने बच्चे को सुलाया।
- शीला ने सावित्री को जी भर कोसा
- पिता ने पुत्र को पुकारा।
- हमने उसे (उसको) खूब सबेरे जगाया।
- लोगों ने शोरगुल करके डाकुओं को भगाया।
- लोगों ने चोर को मारा।
- पर-शिकारी ने बाघ मारा।
- हरि ने बैल को मारा।
- पर-मछुए ने मछली मारी।
- बहुधा कर्ता में विशेष कर्तृत्वशक्ति जताने के लिए कर्म सप्रत्यय रखा जाता है। जैसे-मैंने यह तालाब खुदवाया है, मैंने इस तालाब को खुदवाया है। दोनों वाक्यों में अर्थ का अंतर ध्यान देने योग्य है। पहले वाक्य के कर्म से कर्ता में साधारण कर्तृत्वशक्ति का और दूसरे वाक्य में कर्म से कर्ता में विशेष कर्तृत्वशक्ति का बोध होता है। इस तरह के अन्य वाक्य हैं-बाघ बकरी को खा गया, हरि ने ही पेड़ को काटा है, लड़के ने फलों को तोड़ लिया इत्यादि। जहाँ कर्ता में विशेष कर्तृत्वशक्ति का बोध कराने की आवश्यकता न हो, वहाँ सभी स्थानों पर कर्म को सप्रत्यय नहीं रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जब कर्म निर्जीव वस्तु हो, तब 'को' का प्रयोग नहीं होना चाहिए। जैसे–'राम ने रोटी को खाया' की अपेक्षा 'राम ने रोटी खायी ज्यादा अच्छा है। मैं कॉलेज को जा रहा हूँ। मैं आम को खा रहा हूँ; में कोट को पहन रहा हूँ-इन उदाहरणों में 'को' का प्रयोग भद्दा है। प्रायः चेतन पदार्थों के साथ 'को' चिह्न का प्रयोग होता है और अचेतन के साथ नहीं। पर, यह अंतर वाक्य-प्रयोग पर निर्भर करता है।
- कर्म सप्रत्यय रहने पर क्रिया रादा पुल्लिग होगी, किंतु अप्रत्यय रहने पर कर्म के अनुसार। जैसे - राम ने रोटी को खाया (सप्रत्यय), राम ने रोटी खायी (अप्रत्यय)।
- यदि विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हों, तो कर्म में 'को' अवश्य लगता है। जैसे-बड़ों को पहले आदर दो, छोटों को प्यार करो।
- मुझसे यह काम न सधेगा।
- तीर से बाघ मार दिया गया।
- उसके द्वारा यह कथा सुनी थी।
- मेरे द्वारा मकान ढहाया गया था।
- आपके जरिये ही घर का पता चला।
वह भूख से बेचैन है; | वह भूखों बेचैन है। |
लड़का प्यास से मर रहा है। | लड़का प्यासों मर रहा है। |
स्त्री जाड़े से काँप रही है; | स्त्री जाड़ों काँप रही है। |
मैंने अपनी आँख से यह घटना देखी; | मैंने अपनी आँखों यह घटना देखी। |
कान से सुनी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए; | कानों सुनी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए। |
लड़का अब अपने पाँव से चलता है; | लड़का अब अपने पाँवों चलता है। |
- कर्म-हरि मोहन को मारता है।
- संप्रदान-हरि मोहन को रुपये देता है।
- कर्म-उसके लड़के को बुलाया।
- संप्रदान-उसने लड़के को मिठाइयाँ दीं।
- कर्म-माँ ने बच्चे को खेलते देखा।
- संप्रदान-माँ ने बच्चे को खिलौने खरीदे।
- राम के हित लक्ष्मण वन गये थे।
- तुलसी के वास्ते ही जैसे राम ने अवतार लिया।
- मेरे निमित्त ही ईश्वर की कोई कृपा नहीं।
- हिमालय से गंगा निकलती है।
- वह घर से बाहर आया।
- मोहन ने घड़े से पानी ढाला।
- बिल्ली छत से कूद पड़ी।
- लड़का पेड़ से गिरा।
- चूहा बिल से बाहर निकला।
- अधिकार-राम की किताब, श्याम का घर।
- कर्तृत्व-प्रेमचंद के उपन्यास, भारतेंदु के नाटक।
- कार्य-कारण-चाँदी की थाली. सोने का गहना।
- मोल-भाव-एक रुपए का चावल, पाँच रुपए का घी।
- परिमाण-चार भर का हार, सौ मील की दूरी, पाँच हाथ की लाठी।
- दिन के दिन, महीने के महीने, होली की होली, दीवाली की दीवाली, रात की रात, दोपहर के दोपहर इत्यादि।
- कान का कच्चा, बात का पक्का, आँख का अंधा, गाँठ का पूरा, बात का धनी, दिल का सच्चा इत्यादि।
- वह अब आने का नहीं, मैं अब जाने का नहीं, वह टिकने का नहीं इत्यादि।
- तुम्हारे घर पर चार आदमी हैं-घर में।
- दूकान पर कोई नहीं था-दूकान में।
- नाव जल में तैरती है-जल पर।
- इन दिनों वह पटने है।
- वह संध्या समय गंगा-किनारे जाता है।
- वह द्वार-द्वार भीख माँगता चलता है।
- जिस समय वह आया था, उस समय मैं नहीं था।
- उस जगह एक सभा होने जा रही है।
संज्ञा का पद-परिचय
सारांश (Summary)
- 'संज्ञा' उस विकारी शब्द को कहते हैं, जिससे किसी विशेष वस्त. भाव और जीव के नाम का बोध हो। वस्तु के अंतर्गत प्राणी, पदार्थ और धर्म आते हैं। इन्हीं के आधार पर संज्ञा के भेद किये गये हैं।
- हिंदी व्याकरण में संज्ञा के मुख्यतः पाँच भेद हैं-(1) व्यक्तिवाचक, (2) जातिवाचक, (3) भाववाचक, (4) समूहवाचक और (5) द्रव्यवाचक। पं. गुरु के अनुसार, “समूहवाचक का समावेश व्यक्तिवाचक तथा जातिवाचक में और द्रव्यवाचक का समावेश जातिवाचक में हो जाता है।"
- संज्ञा विकारी शब्द है। विकार शब्दरूपों को परिवर्तित अथवा रूपांतरित करता है। संज्ञा के रूप लिंग, वचन और कारक चिह्नों (परसर्ग) के कारण बदलते हैं।
- शब्द की जाति को लिंग कहते हैं। संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की गर या मादा जाति का बोध हो, उसे व्याकरण में 'लिंग' कहते हैं। 'लिंग' संस्कृत भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'चिह्न' या 'निशान'।
- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के जिस रूप से संख्या का बोध हो, उसे 'वचन' कहते हैं। 'वचन' का शाब्दिक अर्थ है-'संख्यावचन'।
- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) संबंध सूचित हो, उसे (उस रूप को) 'कारक' कहते हैं। हिंदी में कारक आठ हैं और कारकों के बोध के लिए संज्ञा या सर्वनाम के आगे जो प्रत्यय (चिह्न) लगाये जाते हैं, उन्हें व्याकरण में 'विभक्तियाँ' कहते हैं।
- शब्द और पद-वाक्य से अलग रहने वाले शब्दों को 'शब्द' कहते हैं, किंतु जब किसी वाक्य में पिरो दिये जाते हैं, तब 'पद' कहलाते हैं। 'शब्द' सार्थक और निरर्थक दोनों हो सकते हैं।