महासागरीय लवणता | महासागरीय लवणता क्या है? mahasagariya lavanta

महासागरीय लवणता

महासागरों, आंशिक बन्द समुद्रों एवं स्थलबद्ध सागरों का जल खारा (लवणीय) होता है। इनमें अनेक प्रकार के खनिज पाये जाते हैं, जिनमें सोडियम क्लोराइड (Sodium Chloride) की अधिकता होती है। वस्तुत: जल की लवणता उसमें घोल रूप में पाये जाने वाले सभी प्रकार के लवणों का योग होता है। लवणता की मात्रा द्वारा जल का स्वभाव भी प्रभावित होता है, जैसे लवणता के कारण जल का हिमांक बिन्द बदल जाता है।

महासागरीय जल का संघटन

महासागरीय जल एक सक्रिय घोलक होता है, इसमें कई प्रकार के खनिज घुली अवस्था में पाये जाते हैं। प्रतिवर्ष नदियों द्वारा महासागरों में लवण लाया जाता है जिससे लवणता में निरन्तर वृद्धि हो रही है। जोली, मरे एवं क्लार्क नामक विद्वानों ने महासागरों में लवणता की मात्रा क्रमश: 50 अरब टन, 5 अरब टन एवं 2.7 अरब टन बतायी है।
सन् 1884 के चैलेन्जर अन्वेषण में डिटमार नामक वैज्ञानिक ने महासागरों के लवणों व समुद्रों के जल में 47 प्रकार के लवणों का पाया जाना निश्चित किया। इनमें सात प्रकार के लवण सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। इनमें सर्वाधिक मात्रा में साधारण नमक अर्थात सोडियम क्लोराइड होता है। इन लवणों के अतिरिक्त महासागरीय जल में ब्रोमाइन, कार्बन, बोरान, सिलिकॉन स्ट्रॉन्टियम तथा फ्लोरिन आदि भी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पाये जाते हैं। वायुमण्डलीय गैसों की थोड़ी मात्रा (आक्सीजन तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड) महासागरीय जल में घुली अवस्था में पायी जाती है। इन गैसों की उपस्थिति महासागरीय जीवों व वनस्पति में पाये जाने वाले विभिन्न जैविक प्रक्रमों के लिये विशेष महत्वपूर्ण होती है।
वैज्ञानिक ये मानते हैं कि पृथ्वी तल पर पाये जाने वाले सभी तत्व किसी न किसी रूप व मात्रा में सागर तल में भी पाये जाते हैं। सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, सीसा, निकिल, कोबाल्ट, मैंगनीज, एल्यूमीनियम, लोहा, सिलिकॉन आदि बहुत थोड़ी मात्रा में महासागरों के जल में घोल के रूप में हैं। वैज्ञानिक गणनानुसार प्रतिघन मील महासागरों के जल में 14 पौण्ड सोना तथा 500 पौण्ड सीसा घोल रूप में विदयमान है। जिस प्रकार महासागरों के जल से वर्तमान में सोडियम क्लोराइड (नमक) और मैगनीशियम निकाला जाता है, उसी प्रकार भविष्य में अन्य खनिजों का दोहन भी संभव हो जायेगा।
mahasagariya lavanta
विभिन्न महासागरों व समुद्रों में लवण की कुल मात्रा में अन्तर हो सकता है, परन्तु उसकी संरचना के अनुपात में सभी स्थानों पर समानता पायी जाती है। विभिन्न महासागरों व समुद्रों में लवण की मात्रा 330/00 से 370/00 (अर्थात 1000 ग्राम जल में 33 से 37 ग्राम लवण की मात्रा) के बीच पायी जाती है।
डिटमार (Dittmar) द्वारा दिया गया विभिन्न लवणों का भार एवं प्रतिशत निम्न सारणी द्वारा व्यक्त किया जा रहा है, जो चैलेन्जर अन्वेषण अभियान द्वारा प्राप्त आकड़ों पर आधारित है -

महासागरीय जल में विभिन्न लवणों का भार एवं प्रतिशत

लवण

मात्रा % (प्रति हजार ग्राम)

कुल लवणों का प्रतिशत

सोडियम क्लोराइड

27.213

77.8

मैगनीशियम क्लोराइड

3.807

10.9

मैगनीशियम सल्फेट

1.658

4.7

कैल्शियम सल्फेट

1.260

3.6

पोटेशियम सल्फेट

0.863

2.5

कैल्शियम कार्बोनेट

0.123

0.3

मैगनीशयम ब्रोमाइड

0.076

35.000

0.02

100.0


महासागरीय लवणता के स्रोत

महासागर जल के विशाल स्रोत हैं। किन्तु इस जल का उपयोग पीने के लिए नहीं किया जाता है क्योंकि इसमें लवणता अधिक पायी जाती है। महासागरों में यह लवणता कहां से आयी? इस प्रश्न पर विभिन्न मत दिये गये हैं। वर्षा के जल में घुलकर लवणता महाद्वीपों से ही पहुंची है। लवणता खनिजों एवं रसायनों का ही स्वरूप है जिसे नदियों द्वारा महासागरों में पहुँचाया गया है। महाद्वीपों की शैलों में अनेक प्रकार के रसायन एवं लवण पाये जाते हैं, जिन्हें नदियां बहाकर महासागरों में ले जाती हैं।
महासागरीय जल में वाष्पीकरण क्रिया द्वारा भी लवणता की मात्रा में वृद्धि होती है। लवण की जो मात्रा नदियों द्वारा महासागरों में पहुंचायी जाती है, वह महासागरों में उपस्थित कुल लवण पदार्थों का सूक्ष्म अंश होता है। किन्तु महासागरों में वाष्पीकरण क्रिया के फलस्वरूप स्वच्छ या मीठा जल, जल वाष्प में परिवर्तित होकर वायुमण्डल में मिल जाता है तथा इसके फलस्वरूप महासागरों के जल में धीरे-धीरे लवणता की मात्रा बढ़ती जाती है। कुछ विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी की उत्पत्ति पश्चात् उसकी प्रथम ठोस पपड़ी में लवणता की मात्रा अधिक थी। इस प्रथम अपरदन के कारकों द्वारा भारी मात्रा में लवण पदार्थ महासागरों में पहुंचाये गये, जिस कारण महासागरीय जल की लवणता में वृद्धि होती चली गयी। नदियां इस प्रक्रिया में लवण पहुंचाने वाले कारकों में सर्व प्रमुख थी। नदियों के अतिरिक्त पवनों, ज्वालामुखी उदगारों द्वारा भी महासागरों में लवणता वृद्धि की गयी है।

खुले महासागरों में लवणता का वितरण
महासागरों में लवणता सर्वत्र एक समान नहीं पायी जाती है। लवणता के वितरण में असमानता मुख्य रूप से तीन कारकों - (i) वर्षा व नदियों द्वारा ताजे पानी की आपूर्ति (ii) वाष्पीकरण की दर (iii) महासागरों के जल में मिश्रण से उत्पन्न होती है।
लवणता का वितरण मानचित्र पर प्रदर्शित करने के लिए समलवण रेखाओं (Isohaline Lines) की सहायता ली जाती है। समलवण रेखाएं समान लवणता वाले स्थानों को मिलाकर खींची जाती हैं। इन रेखाओं द्वारा केवल सतही जल की लवणता का प्रदर्शन होता है। सतह से नीचे जाने पर लवणता में भिन्नता आती जाती है। महासागरों का क्षैतिज एव लम्बवत लवणता का वितरण सदैव भिन्न होता है। महासागरों की औसत लवणता में भिन्नता 35% है। 

लवणता का क्षैतिज वितरण (Horizontal distribution of Salinity)
लवणता के क्षैतिज वितरण में मुख्य रूप से अक्षांशीय रख प्रदेशिक वितरण पर ध्यान दिया जाता है। प्रादेशिक वितरण के अन्तर्गत खुले महासागरों की लवणता का अलग-अलग वितरण प्रस्तुत किया जाता है। महासागरों के साथ-साथ सीमान्त सागरों, खुले, आशिक बन्द रख स्थलबद्ध समुद्रों की लवणता वितरण का भी अवलोकन किया जाता है।

अक्षांशीय वितरण
जॉन्स्टन द्वारा दिया गया लवणता का अक्षांशीय वितरण

अक्षांश मण्डल

लवणता %

50°-70° उत्तर

30 - 31

40-50° उत्तर

33 - 34

15°-40° उत्तर

35 - 36

15° उत्तर - 10° दक्षिण

34.5 - 35

10°-30° दक्षिण

35 - 36

30°-50° दक्षिण

34 - 35

50° -70° दक्षिण

33 - 34


उपरोक्त सारणी एवं समलवण रेखाओं (Isohalines) द्वारा बने मानचित्र का अध्ययन करने के पश्चात् यह ज्ञात होता है कि उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में लवणता अधिक पायी जाती है। इसका मुख्य कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थलीय विस्तार का कम पाया जाना है, जिसके फलस्वरूप जल का मिश्रण विभिन्न अक्षांशों में बिना किसी अवरोध के होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलीय भाग अधिक पाये जाने के कारण इसमें बाधा उत्पन्न होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में 34%0 एवं दक्षिण गोलार्द्ध में 35%0 औसत लवणता पायी जाती है।
महासागरों में सर्वाधिक लवणता उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के निकट पायी जाती है। इन क्षेत्रों में कम वर्षा तथा अधिक वाष्पीकरण अधिक लवणता पाये जाने के मुख्य कारण हैं। इसके अतिरिक्त नदियों द्वारा लाये गये जल की मात्रा भी इन क्षेत्रों में बहुत कम होती है। मेघ रहित स्वच्छ आकाश, प्रतिचक्रवाती अवस्था एवं सूर्यताप अधिक पाया जाता है।
भूमध्यरेखीय पेटी में अधिक वर्षा, कम वाष्पीकरण तथा नदियों द्वारा बहाकर लाये गये जल की मात्रा अधिक होती है, जिसके फलस्वरूप कर्क एवं मकर रेखाओं से भूमध्य रेखा की ओर जाने पर लवणता में कमी आती जाती है। यहां वर्षा अधिक होने के कारण मीठे या लवणता रहित जल का मिश्रण होता रहता है।
ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान वाष्पन कम होने तथा गर्मी में बर्फ पिघलने से पानी की अधिकता हो जाने से लवणता न्यूनतम पायी जाती है।
मध्य अंक्षाशीय प्रदेशों में तापमान एवं वाष्पीकरण की दर अधिक होने से महासागरों में लवणता अधिक पायी जाती है।
नदियों के मुहानों पर लावणता कम पायी जाती है, क्योंकि वहां नदियों का मीठा जल सागरों में आकर गिरता है।
महासागरों और अधखुले सागरों के जल में भली प्रकार से सम्मिश्रण न होने के कारण लवणता में अंतर पाया जाता है। भूमध्य सागर में जिब्राल्टर जल डमरूमध्य के पास लवणता 36.5%o मिलती है। यह लवणता पूर्व की तरफ जाने पर बढ़ती चली जाती है, सीरिया तट के पास आते-आते 39%o तक पहुँच जाती है। इसी प्रकार लाल सागर में दक्षिण की ओर लवणता 36.5%o पायी जाती है, जो उत्तर की ओर बढ़ती जाती है। लाल सागर में एक भी नदी आकर नहीं मिलती है। काला सागर में एक भाग ओजोव सागर में कई नदियों के मिलने के कारण लवणता कम पायी जाती है। बाल्टिक सगर में लवणता का कम पाया जाना उसकी उच्च अंक्षाशों में स्थिति, कम वाष्पन एवं हिम का पिघला जल प्राप्त होने के कारण है।
बन्द सागरों या झीलों में लवणता का वितरण अलग पाया जाता है। जिन सागरों में नदियां गिरती हैं एवं जल का निकास है, वहां लवणता कम पायी जाती है क्योंकि इनमें लवणता एकत्रित नहीं हो पाती। पूर्णत: बन्द सागरों व झीलों में नदियां आकर गिरती तो हैं लेकिन उनका निकास नहीं होने के कारण इनमें लवणता बहुत अधिक पायी जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका के यूटाह (Utah) राज्य में स्थित 'ग्रेट सॉल्ट लेक (Great Salt Lake) के जल की लवणता 220%o है, इसी प्रकार टर्की में पायी जाने वाली वान झील (Van lake) में लवणता 3305%o एवं मृत सागर (Dead Sea) में 237.5%o लवणता पायी जाती है। कैस्पियन सागर के उत्तरी भागों में वॉल्गा एवं यूराल नदियों द्वारा मीठा जल प्राप्त होने के कारण लवणता 130%o तथा दक्षिणी भागों में विशेष कर दक्षिण पूर्व में स्थित कारा बोगाज की खाड़ी (Gulf of Kara Bogaz) में लवणता 170%o पायी जाती है। ये झीलें अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में स्थित हैं जिससे इनमें वाष्पन की दर तीव्र पायी जाती है। इन झीलों में सोडियम क्लोराइड की मात्रा खुले महासागरों की अपेक्षा अधिक पायी जाती है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर महासागरों में लवणता के चार मण्डल बताये गये हैं -
  • (1) भूमध्य रेखीय क्षेत्र का अपेक्षाकृत कम लवणता का मण्डल
  • (2) अयनवर्ती अधिकतम लवणता का मण्डल
  • (3) शीतोष्ण कटिबंधीय मध्यम लवणता का मण्डल एवं
  • (4) ध्रुवीय तथा उपध्रुवीय न्यूनतम लवणता का मण्डल।

प्रादेशिक वितरण
प्रादेशिक वितरण से तात्पर्य विभिन्न महासागरों में लवणता के वितरण से है। लवणता के प्रादेशिक वितरण को समझने के लिए दो प्रकार की विधियां प्रयोग में लायी जाती हैं। प्रथम विधि के अनुसार अलग-अलग महासागरों में लवणता के वितरण की विवेचना की जाती है।
दूसरी विधि में जेनकिन्स (Jenkins) ने महासागरों व सागरों में पायी जाने वाली लवणतानुसार तीन वर्ग निश्चित किये हैं -
  • (1) सामान्य से अधिक लवणता वाले सागर (37%o से 41%o)
  • (2) सामान्य लवणता वाले सागर (35%o से 36%o) तथा
  • (3) तीसरा वर्ग सामान्य से कम लवणता वाले सागर (20%o से 35%o) से संबंधित हैं।
लेकिन प्रथम विधि द्वारा सुगम एवं सर्वमान्य है। इसलिए यहाँ विभिन्न महासागरों में पाये जाने वाली लवणता का विवेचन महासागरानुसार किया गया है।

(i) अटलाण्टिक महासागर : 20° से 30° उत्तरी अक्षांशों के मध्य (उत्तरी अटलाण्टिक) लवणता का स्तर 37%o है जो अन्य महासागरों की तुलना में सबसे अधिक है। अटलाण्टिक महासागर के उत्तर में सतही जल की औसत लवणता 35.5%o है, जबकि दक्षिण अटलाण्टिक की औसत लवणता 34.5%o है। उत्तरी व दक्षिणी भागों में पायी जाने वाली इस लवणता के अन्तर का मुख्य कारण महासागरीय जल में मिश्रण की मात्रा का भिन्न-भिन्न होना है। भूमध्य सागर का अधिक खारीपन का कारण तीव्र वाष्पीकरण है। भूमध्य सागर का अधिक खारा जल जिब्राल्टर जलडमरुमध्य से होता हुआ उत्तरी अटलाण्टिक के सतही जल में मिलता है, जिससे यहां की लवणता खुले महासागरों की तुलना में सर्वाधिक होती है। इस महासागर के भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में वाष्पन की तुलना में वर्षा द्वारा स्वच्छ जल की आपूर्ति अधिक होती है, यहाँ सतही जल की औसत लवणता 35%o रहती है। इसके विपरीत 20° - 25° उत्तरी तथा 20° दक्षिणी अक्षांशों के निकट वर्षा की अपेक्षा वाष्पन अधिक होता है, जिससे इन क्षेत्रों में लवणता 37%o पायी जाती है। अयनवर्ती क्षेत्रों से धुवों की ओर जाने पर वाष्पन की अपेक्षा वर्षा अधिक होने से सतही लवणता धीरे-धीरे कम होती जाती है, इन क्षेत्रों में लवणता 35%o पायी जाती है।

विश्व: लवणता का क्षैतिज वितरण (समलवणता रेखाओं द्वारा)
गल्फ स्ट्रीम अपने साथ 35%o लवणता वाली जल राशि को बहाकर अटलाण्टिक महासागर के उत्तर-पूर्वी भाग में 78° उत्तरी अक्षांश पर स्थित स्पिट्ज़बर्गेन तक ले जाती है, जिससे वहां पर लवणता बढ़ जाती है। इसी जल धारा के प्रभाव स्वरूप उत्तरी सागर, नॉर्वे के तटवर्ती सागर आदि क्षेत्रों में लवणता अधिक पायी जाती है। इसी प्रकार आर्कटिक सागर का 34%o लवणता वाला जल ठण्डी जलधाराओं के माध्यम से 45° उत्तर अक्षांश तक पहुंचा दिया जाता है। ध्रुवीय क्षेत्रों में लवणता की मात्रा 30%o से 33%o तक पायी जाती है। अटलाण्टिक महासागर के पश्चिमी किनारे पर लेब्रेडोर धारा के कारण लवणता कम पायी जाती है। अफ्रीका के किनारे गिनी की खाड़ी में लवणता कम होती है, क्योंकि यहां व्यापारिक पवनों द्वारा सतही जल हटा दिया जाता है, जिससे आंतरिक कम लवणता वाला जल उभर आता है। इस क्रिया को उत्प्रवाह (Upwelling) कहते हैं।
अटलाण्टिक महासागर के तटवर्ती क्षेत्रों तथा छिछले लैगूनों में लवणता 34%o से कम होती है। न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट सतही लवणता 34%0 से भी कम पायी जाती है। अटलाण्टिक महासागर के मध्य में 25° उत्तरी अक्षांश के निकट स्थित सारगोसा सागर में ग्रीष्मकालीन लवणता 57%o से भी अधिक पायी जाती है।
दक्षिणी अटलाण्टिक महासागर के पूर्वी भाग की अपेक्षा पश्चिमी भाग में अधिक लवणता पाई जाती है। विशेष रूप से ऐसा 10° से 30° दक्षिणी अक्षांश के मध्य देखा जाता है। इन्हीं अक्षांशों के पूर्वी तट के पास महासागर की गहराइयों से शीतल और कम खारे जल का उत्प्रवाह होता है जिससे पूर्वी भागों में खारापन कम पाया जाता है। इस महासागर में गिरने वाली नदियों के महानों के निकट सतही लवणता कम पायी जाती है। अमेजन (15%o), काँगो (34%o), नाइजर (20%o) एवं सेनेगल (34%o) प्रतिशत नदियों के महानों के निकट लवणता कम पायी जाती है।

(ii) प्रशान्त महासागर : प्रशान्त महासागर के भूध्यरेखीय क्षेत्रों में लवणता कम पायी जाती है। यहां लवणता 34%o पायी जाती है। 15° उत्तरी व दक्षिणी अंक्षाशों के निकट लवणता की मात्रा बढ़कर 34%o से 35%o तक हो जाती है। इस महासागर में अधिकतम लवणता की मात्रा 36%o दक्षिण पूर्वी भाग में पायी जाती है। उत्तरी प्रशान्त महासागर में व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में लवणता की मात्रा 36%o से अधिक नहीं पायी जाती है। प्रशान्त महासागर के उत्तरी -पश्चिमी भाग में 15°से 30° उत्तरी अक्षांशों के मध्य लवणता की मात्रा 35.55%o पायी जाती है।
दक्षिणी प्रशान्त महासागर में लवणता की मात्रा 36%o प्रतिशत तक पायी जाती है। अण्टार्कटिका के समीप सतही लवणता 34%o से भी कम पायी जाती है। इसी प्रकार प्रशान्त महासागर के बिलकुल उत्तरी क्षेत्र में लवणता 32%0 से भी कम अंकित की जाती है। इस महासागर के पश्चिमी भाग में भारी वर्षा व मानसून प्रणाली के फलस्वरूप लवणता की मात्रा घट कर 31%o के लगभग आ जाती है। पूर्वी एवं पश्चिमी प्रशान्त की लवणता में अन्तर मुख्य रूप से धाराओं की प्रकृति रख मौसमी परिवर्तन होता है। उत्तरी चीन के तट के पास क्यूराइल ठण्डी धारा के कारण लवणता केवल 31%0 पायी जाती है, परन्तु क्यूरोसीवो गर्म जलधारा के कारण पूर्वी भाग पर लवणता अपेक्षाकृत अधिक पायी जाती है। कैलिफोर्निया के तट के पास उत्तर दिशा से कैलिफोर्निया धारा द्वारा हिम का पिघला जल लाने से लवणता कम होती है। कोलम्बिया और पीरू के तट के समीप लवणता क्रमश: 28%o और 33%o अंकित की जाती है। यहाँ ठण्डी चिली जल धारा का प्रभाव भी देखने को मिलता है। नदियों के मुहानों पर लवणता कम पायी जाती है जैसे ह्वांगहों के मुहाने पर 30%०/०० के यांगटिसी क्यांग के मुहाने पर 33%o लवणता अंकित की जाती है।

(iii) हिन्द महासागर : हिन्द महासागर में लवणता का वितरण अलग प्रकार का पाया जाता है। यहाँ भूमध्य रेखा और 10° उत्तरी अक्षांशों के बीच लवणता 25%o पायी जाती है। बंगाल की खाड़ी में लवणता घटती जाती है तथा गंगा के मुहाने पर यह 30%o ही रह जाती है, इसी प्रकार गोदावरी, कृष्णा रख कावेरी नदियों के मुहानों पर भी लवणता कम पायी जाती है। अरब सागर की ओर लवणता बढ़ती जाती है। लाल सागर के मुहाने पर लवणता की मात्रा 36.5%o एवं फारस की खाड़ी के मुहाने पर यह बढ़ कर 37%o हो जाती है। लाल सागर में स्वेज नहर के पास यह बढ़कर 41%o और फारस की खाड़ी के आन्तरिक भाग में लवणता बढ़कर 40%o हो जाती है। दजला एवं फरात नदियों के मुहानों पर लवणता मात्र 35%o ही पायी जाती है। इस महासागर के पूर्वोतर भाग में लवणता की मात्रा 32%o से 34%o प्रतिशत तक पायी जाती है जो उत्तरी पश्चिमी भागों में पायी जाने वाली लवणता 32%o से 37%o की अपेक्षाकृत कम है। उत्तरी-पूर्वी भागों में कम लवणता यहाँ होने वाली भारी वर्षा एवं बड़ी संख्या में नदियों द्वारा मुहाने बनाने के कारण पायी जाती है।
इस महासागर में 40° दक्षिणी अक्षांश से अण्टार्कटिका महाद्वीप के किनारों तक लवणता घटती जाती है। इन क्षेत्रों में लवणता की मात्रा 35%o से घटकर 33.5%o तक पहुंच जाती है। इसका मुख्य कारण अण्टार्कटिका में फैली हिम चादरों एवं हिम खण्डों के पिघलने से प्राप्त स्वच्छ जल है। ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के पश्चिमी तट के निकट जलवायु शुष्क होने से वाष्पन अधिक होता है जिसके कारण यहाँ लवणता अधिक पायी जाती है।

लवणता का लम्बवत (ऊर्ध्वाधर) वितरण (Vertical distribution of Salinity)
महासागरों में उपस्थित विभिन्न जलराशियों की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं के कारण सतह के नीचे अलग-अलग गहराइयों में लवणता एवं तापमान आदि के वितरण में अत्यधिक जटिलतायें पायी जाती हैं | लवणता के वितरण रख गहराई में कोई विशेष नियम नहीं होता है। 40° उत्तर से 50° दक्षिण अक्षांशों के मध्य लवणता (लम्बवत) में तेजी से गिरावट आती है। 800 मीटर की गहराई पर लवणता 34.3%oसे 34.9%o. तक पायी जाती है। इसी प्रकार 1600 से 2000 मीटर की गहराई पर लवणता 34.8%o से 34.9%o तक बढ़ती है। इसके पश्चात् लवणता धीरे-धीरे कम होती जाती है। दक्षिण अटलाण्टिक महासागर में सतही लवणता 330000 पायी जाती है। यह 400 मीटर (200 फैदम) की गहराई में बढ़कर 34.5% हो जाती है तथा 1200 मीटर (600 फैदम) पर 34.75%o हो जाती है। परन्तु 20° दक्षिण अक्षांश पर सतही लवणता 37% है जो तली में घटकर 35%o/oo हो जाती है। इसके ठीक विपरीत भूमध्य रेखा पर सतही लवणता 34%o पायी जाती है जो गहराई में बढ़कर 35%o हो जाती है।
हिन्द रख प्रशांत महासागर में लवणता के लम्बवत वितरण में समानता पायी जाती है। लवणता में 2000 मीटर तक वृद्धि होती है, उसके बाद धीरे-धीरे कम होती जाती है। सामान्यत: यह पाया गया है कि उच्च अक्षांशों में सतही लवणता कम तथा गहराई में बढ़ती जाती है। मध्य अक्षांशों में 400 मीटर तक लवणता में वृद्धि तथा उसके पश्चात् कम होती जाती है। भूमध्य रेखा पर सतही लवणता कम, गहराई में अधिक तथा तली में पुन: कम होती है।

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