इंग्लिश बीपी | बीपी (BP) Meaning In English | इंग्लिश बीपी पिक्चर | BP in English | Meaning of BP |

BP in English इंग्लिश बीपी

बीपी (BP) = Blood pressure

BP (Blood pressure) का अर्थ = रक्तचाप
इंग्लिश बीपी
इंग्लिश पिक्चर

BP in English

Blood pressure is the force put on the walls of the blood vessels with each heartbeat. Blood pressure helps move blood through your body.

रक्तचाप (BP = Blood pressure) क्या होता है?

रक्तचाप वह बल है, जो हृदय की प्रत्येक धड़कन के साथ रक्त वाहिकाओं की दीवारों पर पड़ता है। रक्तचाप से आपके पूरे शरीर में रक्त भेजने में सहायता मिलती है।

बीपी क्या है ?(BP Kya Hai)

बीपी का अर्थ जाने तो BP एक बीमारी है जो जादातर बूढ़े लोगो कों होती है. बीपी के बारे में जाने तो बीपी कों ब्लडप्रेशर से नाम से जान जाता है.
यह एक बोहत की गंभीर बीमारी है. High BP ज्यादातर बुजुर्ग लोगो में पाया जाता है. लेकिन आजकल इसे युवको में पाया गया है इसलिए आज के दिनो में यह एक परेशानी बन गई है. कोई भी द्रव ऊँचाई से निचाई की ओर प्रवाहित होता है।
जहाँ तक हमारे शरीर के रक्त प्रवाह का सवाल है इसके लिए एक भीतर प्रेशर ( दबाव ) बनता है। जब हृदय का चौथा कक्ष, पहले से भरी धमनियों में रक्त प्रवाहित करता है तो उससे एक दबाव - सा बनता है । यही रक्त को निचले हिस्सों तक ले जाता है पर तभी वैंट्रीकल संकुचित होता है और एक दूसरा रक्त प्रवाह आ जाता है । इस प्रकार पूरे शरीर में रक्त का निरंतर प्रवाह होता रहता है।
रक्त प्रवाह बनाए गए दबाव की मात्रा रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) कहलाती है ताकि शरीर के सभी अंगों में रक्त पहुंच सके।
शरीर की मुख्य ट्यूबों में दबाव मर्करी का 120 मिमी. होता है ( mmHg) इसे सिस्टोलिक प्रेशर कहते हैं। जब यह प्रेशर रक्त को हृदय से छोटी धमनियों की ओर धकेलता है तो यह 80 mmHg तक ले जाता है। इसे डायस्टोलिक प्रेशर कहते हैं। तब तक लेफरवैंट्रीकल और रक्त भेज देता है जिससे रक्त का दबाव ऊंचा हो जाता है इसलिए यह 120 से 80 के बीच रहता है जो कि हृदय के संकुचन तथा फैलाव से जुड़ा है। आप कलाई की नब्ज़ से इसे महसूस कर सकते हैं। यही प्रेशर पूरे शरीर में रक्त को संचालित करता है । यही शरीर की मांसपेशियों को भोजन पहुंचाता है तथा अशुद्ध रक्त को हृदय तक पहुंचाता है । हमारी धमनियों व शिराओं में एक बार में 5 लीटर खून होता है तथा प्रत्येक संकुचन पर बाएं कक्ष 120 mmHg के तेज दबाव से 70 मि.ली. रक्त फेंकता है। अगले ही पल इसे फिर से 70 मि.ली. रक्त मिल जाता है ताकि इसे धकेला जा सके। यही प्रक्रिया लगातार चलती रहती है । इस प्रेशर के बिना रक्त का प्रवाह न हो पाता और हम मर जाते।

बीपी लो होने के नुकसान क्या होते है ?

इस स्थिति में शरीर के अंगों में रक्त की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती है जिसके कारण स्ट्रोक, दिल का दौरा और किडनी फेल हो सकती है।
यदि बीपी बहुत कम है, तो व्यक्ति बेहोश हो सकता है, जिससे सिर में गंभीर चोट लग सकती है। ऐसे कई मामलों में ब्रेन हैमरेज के मामले भी सामने आए हैं।

ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने वाले अंग
पाँच प्रमुख अंग रक्तचाप को नियंत्रित रखते हैं - हृदय, गुर्दे, धमनियां, स्नायु तंत्र व हार्मोन

हृदय
यह एक मांसपेशीय अंग है। जब मांसपेशियाँ सिकुड़ती हैं तो दबाव से रक्त महाधमनी (आओटी) तक पहुँचता है। ये मांसपेशियाँ जितनी कड़ी होंगी, इन्हें उतनी ही मेहनत अधिक करनी पड़ेगी।
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धमनियां
ये हृदय से विभिन्न अंगों तक रक्त पहुंचाती हैं। छोटी धमनियां 'आर्टेटिओलस' तथा 'कैपीलरीस' कहलाती है। इनमें नरम मांसपेशियाँ होती हैं, जो रक्त प्रवाहित होते समय संकुचन तथा फैलाव में सहायक होती हैं। वे जितनी लचीली होंगी, उन्हें उतना ही कम बल लगाना पड़ेगा।
बीपी पिक्चर
जब वे कड़ी या संकरी हो जाती हैं तो रक्त में प्रवाहित करने के लिए अतिरिक्त बल लगाना पड़ता। सिम्पेथेटिक स्नायु तंत्र से भी इनकी आपूर्ति होती ये स्नायु धमनियों कड़ा करते हैं जिससे उच्चरक्तचाप होता है।

गुर्दे
ये शरीर में जल की मात्रा व सोडियम की मात्रा का स्तर बनाए रखते हैं। जल सोडियम की मात्रा का स्तर बनाए रखता है। जल सोडियम पर निर्भर है। यदि सोडियम अधिक हुआ तो शरीर में जल की मात्रा भी बढ़ेगी। ये अतिरिक्त द्रव रक्त निकायों पर बोझ बढ़ाएगा जिससे रक्तचाप बढ़ेगा।
इंग्लिश पिक्चर
गुर्दे कुछ रसायन भी स्राव करते हैं जो उच्चरक्तचाप नियंत्रण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं; जैसे - एंजियोटेन्सिनोजन। ए. सी. ई. एन्जाइन इनके निर्माण में सहायक होते हैं।

स्नायु तंत्र
स्नायु तंत्र को मस्तिष्क नियंत्रित करता है तथा सिम्पेथेटिक स्नायु तंत्र उच्चरक्तचाप से गहरा संबंध है। स्नायु तंत्र न्यूरोट्रांसलीटर भेजता है जो हाइपोथैलमस को उत्तेजित करते हैं। यही भावनात्मक मस्तिष्क को नियंत्रित रखता है। हाइपोथैलमस के उत्तेजित होते ही कई हार्मोन रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं जिससे धमनियों के रक्त प्रवाह में बाधा आती है तथा उच्चरक्तचाप होता है। स्नायु हृदय को उत्तेजित करने वाले अल्फा तथा बीटा रिसेप्टर्स को भी नियंत्रित करता है - इससे संकुचन तथा हृदय गति में वृद्धि होती है तथा उच्चरक्तचाप हो जाता है।
इंग्लिश पिक्चर बीपी
सारे तनाव व दबाव का मस्तिष्क व स्नायु तंत्र से संबंध है । इस प्रकार यह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से- स्नायु तत्र के माध्यम से उच्चरक्तचाप में बदल जाता है।

हार्मोन
हार्मोन भी हृदय धमनियों व स्नायु के माध्यम से बी.पी. को नियंत्रित करते हैं। इनमें तनाव हार्मोन ऐड्रिनलिन प्रमुख है। इसके स्राव से हृदय गति व संकुचन बढ़ता है तथा धमनियां सिकुड़ती हैं। तनाव मिटते ही बी.पी. भी नीचे आ जाता है। कोर्टीसोल ए. सी. टी. एच. एल्फोस्टीटोन, थाईरोक्साइन आदि हार्मोन बी. पी. नियंत्रण में खास भूमिका निभाते हैं। हाल ही में मेडिकल विज्ञान ने कई नए व न्यूरो हार्मोन खोज निकाले हैं जो रक्तचाप पर विविध प्रकार से प्रभाव डालते हैं।

Blood Pressure कैसे पता किया जाता है

आजके दिनों में बीपी कों चेक करना बोहत हि आसान है.ब्लडप्रेशर चेक करने के लिए आप डॉ की मदत ले सकते है. तो आपको आपका बीपी के बारे सभी जानकारी दे देगे. इसके लिए आपको सिर्फ आपके नजदीकी हॉस्पिटल में जाना है. और आपका BP चेक करना है.
तो अब जानते है की High Blood Pressure और Low Blood Pressure कैसे चेक करे और Normal Blood Presser कब होता है.

High Blood Pressure कब होता है?

BP चेक करने वाली मशीन में अगर किसीभी व्यक्ति का BP Reading 120/80 mmHg से अधिक है तो उसे High Blood Pressure माना जायेगा.

Low Blood Pressure कब होता है?

BP चेक करने वाली मशीन में अगर किसीभी व्यक्ति का BP Reading 90/60 mmHg से कम है तो उसे Low Blood Pressure माना जायेगा.

Normal Blood Pressure कब होता है?

BP चेक करने वाली मशीन में अगर किसीभी व्यक्ति का BP Reading 90/60 mmHg से 120/80 mmHg बिच में है तो उसे Normal Blood Pressure माना जायेगा.

क्‍यों बढता है बीपी, कैसे करें कंट्रोल

वॉक एंड एक्‍सरसाइज
रोजाना 30 मिनट तक वॉक की जाए तो ब्लड प्रेशर में 5 से 8 प्वाइंट तक कमी आती है। पैदल चलना लगातार जारी रखना चाहिए, नहीं तो ब्लड प्रेशर फिर से बढ़ सकता है। जॉगिंग, साइकिलिंग भी ब्लड प्रेशर में फायदेमंद हैं।

स्‍मोकिंग
रिपोर्ट के मुताबि‍क स्मोकिंग करने से करीब 20 मिनट तक बढ़ा रहता है बीपी। एक सिगरेट पीने के बाद दिल की धड़कनों को सामान्य होने में 20 मिनट का समय लगता है।

सॉल्ट
दिनभर के भोजन में 5 ग्राम से कम नमक होना चाहिए। एक छोटे चम्मच के बराबर नमक में लगभग 2,300 मिग्रा सोडियम होता है। खाने में सोडियम की इस मात्रा को कम करके 5 से 6 प्वाइंट बीपी कम किया जाता सकता है।

ओवरवेट
मोटापे से परेशान लोग अगर एक किलो वजन कम करते हैं तो ब्लड प्रेशर 1 मिमी एचजी तक कम हो जाता है। इसका संबंध कमर से भी है। यदि पुरुष की कमर 40 और महिला की कमर 35 इंच से ज्यादा है तो इसका खतरा अधिक है।

बीपी के कारण
उच्चरक्तचाप किसी एक कारण से नहीं होता । अनेक कारण मिलकर इसके लिए उत्तरदायी होते हैं। यही इसके 'रिस्क फैक्टर्स' कहलाते हैं। इन्हें हम दो समूहों में बांट सकते हैं।
(1) परिवर्तनीय (2) अपरिवर्तनीय। अपरिवर्तनीय कारणों को बदल नहीं सकते, किंतु परिवर्तनीय कारणों को अपने प्रयासों से बदला जा सकता है।

अपरिवर्तनीय कारक
इन्हें आप बदल नहीं सकते। इन्हें नियंत्रित करने के लिए कोई दवा नहीं बनी। ये निम्न हैं:
  • आयु : आयु के साथ-साथ महिला व पुरुषों का रक्तचाप बढ़ता है।
  • जेनेटिक कारक : उच्चरक्तचाप में जेनेटिक कारक भी काफी महत्त्व रखते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि यदि माता-पिता को उच्चरक्तचाप न हो तो उनके बच्चों में इसके विकास की संभावना 3% होती है। यदि माता-पिता दोनों उच्चरक्तचाप के रोगी हों तो बच्चों में इनकी संभावना 45% तक पहुँच जाती है।

परिवर्तनीय कारक :
ये वो कारक हैं, जिन्हें आप बदल सकते है:
  • मोटापा : उच्चरक्तचाप का प्रमुख कारण है। वजन बढ़ने से रक्तचाप का खतरा भी बढ़ता है। अध्ययनों से पता चला है कि वजन घटाने से रक्तचाप भी घट जाता है।
  • वसा : कॉलेस्ट्रॉल तथा ट्राईग्लिसराइड से उच्चरक्तचाप बढ़ सकता है। इन क्षेत्रों के बड़े हुए स्तर से 'आथेरोसम्लेरोसिस' हो सकता है, जो कि रक्तचाप बढ़ा देता है।
  • मदिरापान : अधिक मदिरापान से भी उच्चरक्तचाप का खतरा बढ़ता है। अध्ययनों से पता चला है कि उच्च सिस्टोलिक बी.पी., उच्च डायस्टोलिक बी. पी. की तुलना में अधिक खतरनाक होता है। ऐसा लगता है कि मदिरापान से सिस्टोलिक प्रेशर में वृद्धि होती है।
  • शारीरिक निष्क्रियता : शरीर का वजन बढ़ने व अन्य दूसरे कारणों से रक्तचाप बढ़ जाता है।
  • मनोवैज्ञानिक तनाव : तनावग्रस्त व्यक्ति की सिम्पेथेटिक स्नायु तंत्र के लिए अि प्रतिक्रिया होने लगती है। शरीर में ऐड्रिनलिन का स्राव बढ़ता है जिससे उच्चरक्तचाप भी बढ़ता है।
  • नमक की मात्रा : सबूतों से पता चला है कि नमक की अधिक मात्रा से भी रक्तचाप बढ़ता है। जापान में उच्चरक्तचाप के रोगी अधिक हैं क्योंकि वहां नमक का अधिक सेवन होता है। धूम्रपान धूम्रपान व तंबाकू को भी उच्चरक्तचाप के लिए खतरा माना जाता है।
  • अन्य कारक : गर्भ निरोधक गोलियाँ, शोर, कंपन व तापमान आदि कारकों से भी रक्तचाप बढ़ सकता है।

क्या तनाव या दबाव से हाइपरटेंशन होता है ?
क्या आप ऑफिस में काफी तनाव में रहते हैं? क्या ट्रैफिक में फंसने पर गुस्से से उबलते हैं? उन छोटी बातों से भी गुस्सा खा जाते हैं जिन्हें लोग नजरअंदाज कर देते हैं तो जान लें कि आप भी तनाव जनित हाइपरटेंशन से ग्रस्त हैं।

तनाव की प्रक्रिया
आप तनाव में होते हैं तो शरीर तनाव के लिए प्रतिक्रिया देने लगता है। इससे ऐड्रिनलिन का स्तर बढ़ता है, जिससे रक्तचाप, रक्त शर्करा व हृदय गति बढ़ जाते हैं। इससे मांसपेशियों का टोन भी बढ़ जाता है, पर रक्तचाप धीरे-धीरे घटता है। यदि ऐसा बार-बार होने लगे तो शरीर में रक्तचाप का उच्च स्तर बना रहने लगता है।

तनाव तथा उच्चरक्तचाप
दीर्घकालीन तनावग्रस्त व्यक्ति प्रायः दीर्घकालीन हाइपरटेंशन के शिकार होते हैं। आप कैसे जानेंगे कि आप भी इसी रोग से ग्रस्त हैं। बहुत आसान है, यदि तनाव महसूस करते हैं तो आप रोगी हैं। जो लोग बहुत जल्दी उखड़ जाते हैं, उन्हें तनाव जनित हाइपरटेंशन होने की संभावना अधिक होती है। अनुमानतः तनाव 50% तक उच्चरक्तचाप के लिए उत्तरदायी होता है।

ऐड्रिनलिन की शक्ति
ऐसा सबके साथ होता है। यह तब शुरू होता है जब आप काफी भयभीत या क्रोधित होते हैं। आपका दिल तेजी से धड़कता है, सांस उखड़ती है और पसीना बहने लगता है | आपकी अं सिकुड़ जाती हैं । आप घबरा कर तनावग्रस्त होते हैं, तथा खतरे की प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार हो जाते हैं। इन सभी बदलावों के लिए 'ऐड्रिनलिन' उत्तरदायी है यह हार्मोन आपके शरीर में बनता है ताकि आप खतरे से सचेत हो जाएँ व उससे लड़ने को तत्पर हो पाएँ। यह 'फाइट और फ्लाइट' प्रतिक्रिया तब के लिए आदर्श थी जब मनुष्य को शारीरिक खतरों का अधिक सामना करना पड़ता था। 
लोग लड़कर या भागकर अपनी समस्या सुलझा लेते थे तथा हार्मोन से उत्पन्न - तनाव भी दूर हो जाता था चाहे आप ट्रैफिक में फंसे हों, किसी काम की डेडलाइन में फंसे हों, या किसी पारिवारिक सदस्य से क्लेश हो या फिर कोई सकारात्मक तनाव हो, जैसे तरक्की या भावी विवाह, ये सभी आपको प्रभावित करते हैं। बदकिस्मती से आप अधिकतर तनाव से भागकर या लड़कर मुक्ति नहीं पा सकते।
तनाव का क्या कर सकते हैं यदि आप भी तनाव जनित हाइपरटेंशन के शिकार हैं, तो हिम्मत न हारें। तनाव प्रबंधन के कार्यक्रम आपको तनाव से छुटकारा पाने व विश्रामावस्था में जाने की तकनीकें सिखा सकते हैं। गहरी श्वास मांसपेशियों की शिथिलता व नियमित व्यायाम भी तनाव भगाने में सहायक हो सकता है।
अपने रक्तचाप की जांच कराएँ। यदि यह उच्च है या आप काफी तनाव में हैं, तो डॉक्टर से पूछें कि तनाव प्रबंधन कार्यक्रम के लिए क्या करना होगा। आपके ऑफिस में भी इसकी सुविधा हो सकती है। गहरी सांस लें व काम पर लग जाएं।

विश्व में उच्चरक्तचाप से जुड़ी प्रामाणिक एजेंसी है ज्वाइंट नेशनल कमेटी (JNL)। उसकी 1997 में जारी की गई छठी रिपोर्ट के अनुसार उच्चरक्तचाप का वर्गीकरण-
अवस्था सिस्टोलिक दबाव mmHg डायस्टोलिक दबाव
श्रेष्ठ 120 से कम 80 से कम
सामान्य 130 से कम 85 से कम
उच्च सामान्य 130-139 85-99
अवस्था I 140-159 90-99
अवस्था II 160-179 100-109
अवस्था III 180-209 110-119
अवस्था IV 210 व ऊपर 120 व ऊपर

बीपी की सामान्य जानकारी

सामान्य रक्तचाप या उच्चरक्तचाप किसे कहते हैं ?
सामान्य बी.पी. रक्त के दबाव की वह मात्रा है जो शरीर में रक्त को विभिन्न अंगों तक पहुँचाने में सहायक होती है। बी पी. हमेशा 120/80 mmHg से कम होना चाहिए।
फ्रेमिंघम हृदय स्टडी से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि दिल का एक दौरा पड़ चुके 50% रोगी तथा दो तिहाई रोगी; जिन्हें पक्षाघात हो चुका है, उनका रक्तचाप 160/95 mmHg से अधिक था।
निम्न मध्यम वर्ग में हाइपरटेंशन का अनुमान नहीं लगाया जा सका क्योंकि ये लोग इसकी मेडिकल चिकित्सा पर ध्यान नहीं देते।
यदि इलाज न हो तो रक्तचाप वर्षों तक बढ़ता रहता है तथा हृदय लगातार बोझ उठाते-उठाते
क्षतिग्रस्त हो जाता है। इलाज न होने पर उच्चरक्तचाप कई दूसरे अंगों की क्षति के लिए भी उत्तरदायी होता है।

हाइपरटेंशन के प्रकार
हाइपरटेंशन कई प्रकार के हो सकते हैं; जैसे- प्राइमरी, सैकंडरी, रीनोवास्कुलर व लेबाइल आदि। वर्ष 2000 तक ये सभी प्रकार, रोगियों के डायस्टोलिक रक्तचाप से जाने जाते थे। दूसरे शब्दों में उच्चरक्तचाप के रोगी को डायस्टोलिक हाइपरटेंशन होता था। हालांकि यू. एस. ए. के नेशनल हार्ट लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट की अनुशंसा है कि स्वास्थ्य व्यवसायियों को न केवल सिस्टोलिक ब्लडप्रेशर बल्कि डायस्टोलिक प्रेशर भी जांचना चाहिए। आजकल सिस्टोलिक रक्तचाप को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
अधिकतर उच्चरक्तचाप रोगी प्राइमरी हाइपरटेंशन से ग्रस्त होते हैं, यानी शोधकर्ता सिर्फ अवस्था के खतरों को जान पाए हैं, वे रोग की जड़ तक नहीं पहुँचे। इन लोगों को तनाव प्रबंधन तकनीकों से काफी राहत मिलती है।

प्राइमरी (एसेंशियल हाइपरटेंशन)
हालांकि अधिक तनाव, अधिक वजन तथा व्यायाम का अभाव ही उच्चरक्तचाप के कारक हैं। हमारा मेडिकल विज्ञान 90-95% मामलों को प्राइमरी हाइपरटेंशन की श्रेणी में रखता है। अगले 5-10% मामलों को सैकंडरी हाइपरटेंशन कहा जाता है क्योंकि वहां कारण पता होता है जैसे (गुर्दे के रोग या दवाओं से ) । निम्नलिखित कारक प्राइमरी हाइपरटेंशन से जुड़े हैं अवस्था बिगड़ भी सकती है:
  • नींद
  • हाइपरटेंशन का पारिवारिक इतिहास
  • मोटापा
  • नियमित व्यायाम का अभाव
  • धूम्रपान
  • बढ़ती उम्र
  • कैफीन की अधिक मात्रा
  • तेल तथा वसा युक्त भोजन
  • उच्च कॉलेस्ट्रॉल स्तर
शरीर के एंजियोटेनसिन - रेनिन तंत्र में आनुवांशिक समस्याएं, ये रक्तचाप नियंत्रित करने वाले सभी कारकों को प्रभावित करती हैं:
रक्त नलिकाओं का सिकुड़ना, हृदय कोशिका विकास, सोडियम तथा जल संतुलन व 'नमक ; जो कि नमक व हाइपरटेंशन के संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शरीर के सिम्पेथेटिक स्नायु तंत्र में अनुवांशिक समस्याएँ, जो कि हृदय गति, रक्तचाप व रक्त नलिकाओं की चौड़ाई को भी नियंत्रित करती है।

बीपी की जांच कैसे हो ?
उच्चरक्तचाप जांच करते समय डॉक्टर रोगी का पूरा मेडिकल इतिहास पूछते हैं। उदाहरण के लिए डॉक्टर पूछेंगे कि परिवार में किसी को उच्चरक्तचाप है या नमक से जुड़ी खानपान की आदतें क्या हैं। रोगी की पूरी मेडिकल जांच के बाद दोनों बाजुओं में रक्तचाप लिया जाएगा, यह
खड़ी तथा लेटी दोनों मुद्राओं में होगा। कई बार घर से भी बी. पी. जांच कर रिकार्ड लाने को कहा जाता है।
इस तरह पता चलेगा कि रोगी के रक्तचाप का ढाँचा क्या है या उसे व्हाइट कोट हाइपरटेंशन (केवल डॉक्टर के पास रक्तचाप बढ़ना) तो नहीं है।
रोग का पता लगने के बाद तथा गंभीर रोगों की छानबीन के बाद चिकित्सा शुरू हो सकती है। उच्चरक्तचाप गंभीर हो तो रीनल डॉपलर सोनोग्राम या स्कैन की मदद से यह भी पता लगाया जाएगा कि कहीं रोगी को 'रीनोवास्कुलर हाइपरटेंशन' तो नहीं है। 24 घंटे की मूत्र जांच से एंडोक्राइन अव्यवस्था का पता लगाया जाएगा जैसे कुशिंग रोग या फियोक्रोमोसाइटोसिस।
हाइपरटेंशन वयस्कों के अलावा बच्चों में भी हो सकता है। कई रोगी निम्न रक्तचाप से भी ग्रस्त हो सकते हैं। यदि खतरे की बात न हो तो हाइपरटेंशन रोगियों को दवा की आवश्यकता नहीं होती। उच्चरक्तचाप के गंभीर मामलों में दवाओं के साथ दीर्घकालीन चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

बीपी के लक्षण क्या हैं?
अधिकतर रोगी हल्के से गंभीर हाइपरटेंशन में भी लक्षण नहीं बता पाते । एक-तिहाई रोगियों को तो हाइपरटेंशन होने का पता तक नहीं चलता। वैसे उन्हें एन्जाइना, सांस लेने में तकलीफ या हृदय रोग से जुड़े दूसरे लक्षणों का एहसास हो सकता है। यदि आपको निम्नलिखित में से कोई भी परेशानी हो तो आपको रक्तचाप की जांच करानी चाहिए।

लक्षण
  • थकान
  • भ्रम
  • जी मिचलाना, पेट की गड़बड़ी 4. नजर कमजोर होना
  • अधिक पसीना आना
  • त्वचा पीली या लाल पड़ना
  • नाक से खून बहना
  • उद्वेग या घबराहट
  • हृदय गति अनियमितता
  • कानों से सीटी का स्वर सुनना
  • नपुंसकता
  • सिरदर्द
  • सिर चकराना
हाई बी. पी. का एहसास होते ही निम्नलिखित जांच कराएं ताकि पता चल जाए कि उससे क्या-क्या नुकसान हो चुका है


English BP Hindi Dictionary:(इंग्लिश बीपी)
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