अभाषिक संप्रेषण किसे कहते हैं? | abhashik sampreshan kise kahate hain

अभाषिक संप्रेषण

संप्रेषण से जुड़ी विभिन्न अवधारणाओं एवं मॉडल से गुजरने के बाद यह समझना मुश्किल नहीं है कि वो तमाम माध्यम, गतिविधि एवं प्रक्रिया संप्रेषण है जिनसे किसी न किसी तरह का कोई अर्थ ध्वनित होता है, भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति होती है. ऐसे में संप्रेषण का मतलब महज लिखित, शाब्दिक या वाचिक अभिव्यक्ति नहीं.
abhashik sampreshan kise kahate hain
संप्रेषण का व्यापक अर्थ अभिव्यक्त होने या किए जाने और उसे प्रभाव पैदा होने से है. आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि कई बार आपसी बातचीत के दौरान हमलोग जब कुछ नहीं भी कहते हैं तो हमारे चेहरे के हावभाव से लोग समझ जाते हैं कि हम क्या व्यक्त करना चाह रहे हैं ? हिन्दी के मशहूर कवि अज्ञेय ने लिखा भी है-

“मौन भी अभिव्यंजना है
उतना ही कहो
जितना तुम्हारा सच है.”

अभाषिक संप्रेषण मतलब क्या?

अभाषिक संप्रेषण कहने से ऐसा लगता है कि संप्रेषण का ऐसा रूप जिसकी कोई भाषा नहीं होती. ऐसा संप्रेषण जिसके लिए किसी तरह की भाषा की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन सवाल है कि क्या बिना किसी भाषा के संप्रेषण या अभिव्यक्ति संभव है?
इन दोनों सवालों को समझने का आसाना तरीका है-
पहला तो यह कि भाषा विज्ञान के अन्तर्गत भाषा को जिस रूप में परिभाषित किया जाता है और बताया जाता है कि भाषा होने के लिए किसी भी अभिव्यक्ति रूप की लिपि और व्याकरण का होना अनिवार्य है, संप्रेषण के क्षेत्र में भाषा की वही परिभाषा नहीं हो सकती. यहां भाषा का अर्थ लिपि और व्याकरण तक केंद्रित नहीं है बल्कि इनके साथ और भी चीजें जुड़ी होती है-
संप्रेषण के अन्तर्गत संकेत, रंग, आकार, प्रकाश, परिवेश, वस्तु-व्यक्ति की उपस्थिति एवं उसके होने का स्थान आदि वो सब कुछ अर्थ एवं अभिव्यक्ति के कारक होते हैं जिन्हें कि जरूरी नहीं लिपिबद्ध किया जा सके. इस अर्थ में यहां अर्थ और अभिव्यक्ति प्रदान करनेवाले कारण भाषा के दायरे को विस्तार देने का काम करते हैं.
दूसरा कि संप्रेषण में खासतौर पर जनसंचार माध्यमों द्वारा किए गए संप्रेषण में तकनीक की बड़ी भूमिका होती है. तकनीक में भाषा का वही स्वरूप नहीं रह जाता जो कि लिखित या मौखिक भाषा की होती है.
ऐसे में यहां संप्रेषण की भाषा कहने का अर्थ वो तमाम कारक होते हैं जो लिखित या शाब्दिक रूप में हो चाहें न हों लेकिन उससे कोई न कोई अर्थ ध्वनित होता हो. उनकी उपस्थिति से संप्रेषण पर प्रभाव पड़ता हो.
इन बातों को शामिल करने के बाद अभाषिक संप्रेषण पर जब हम विचार करते हैं तो इसका अर्थ संप्रेषण के वो सारे रूप इसके अन्तर्गत शामिल हो जाते हैं जिन्हें कि लिखित या शाब्दिक रूप में न व्यक्त करके संकेत, चिन्ह, आकार, रंग, प्रकाश आदि के माध्यम से व्यक्त किया जाता है.
अभाषिक संप्रेषण और इसके रूप को हम संप्रेषण के निम्नलिखित प्रकार और बिन्दुओं के अन्तर्गत देख सकते हैं-

अन्तःवैयक्तिक संप्रेषण

अन्तः वैयक्तिक संप्रेषण, संप्रेषण का वह रूप या प्रकार है जिसमें कि व्यक्ति स्वयं से बातचीत या संवाद करता है. वह अपने अन्तर्मन में क्या बात कर रहा है, क्या सोच रहा है और उसके साथ क्या सवाल-जबाव कर रहा है, यह कुछ भी किसी दूसरे व्यक्ति को पता नहीं चल पाता. उसके सोचने में लिखित-शाब्दिक भाषा शामिल यदि होती भी है तो काल्पनिक रूप में, प्रत्यक्ष रूप में नहीं.
इसके साथ ही वह विभिन्न रंग, आकार, वस्तु, प्रकाश, स्थिति, परिवेश आदि की कल्पना करता है उसकी सहायता से अन्तर्मन में संवाद करता है. संवाद का यह रूप अन्तर्वैयक्तिक संप्रेषण कहलाता है। और यह अभाषिक संप्रेषण का महत्वपूर्ण उदाहरण है.

दृश्य माध्यम
दृश्य माध्यम जैसे कि टेलिविजन, सिनेमा, वीडियो आदि में आमतौर पर मौखिक अभिव्यक्ति होती है लेकिन यदि ये न भी हो तो भी संप्रेषण का कार्य सम्पन्न हो सकता है. कई ऐसी फिल्में और कार्यक्रम होते हैं जो कि मूक होते हैं यानि उनमें मौखिक भाषा का भी प्रयोग नहीं किया जाता. ऐसे में दर्शक उनसे जो अर्थ ग्रहण करता है वो सैद्धांतिक रूप से परिभाषित भाषा की सहायता से न करके उन संकेतों, रंगों, प्रकाशसंयोजन आदि की सहायता से कर पाता है जो सैद्धांतिक तौर पर भाषा के रूप में परिभाषित नहीं किए जाते.

प्रकाश एवं प्रकाश संकेत
रंग संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है. यह अलग बात है कि यह भाषिक रूप में व्यक्त न होकर अपनी मौजूदगी में अर्थ संप्रेषित करते हैं. अलग-अलग संदर्भ में इन रंगों का अलग-अलग अर्थ है. उदाहरण के तौर पर ट्रैफिक सिग्ननल के तौर पर लाल रंग का अर्थ रूक जाने के संकेत से है जबकि इसी लाल रंग का कहीं खतरे से होता है, कहीं उत्साह से और कहीं मांसाहार से.
रंग का संबंध मनोविज्ञान, रंगमंच, सिनेमा, बाजार, ब्रांड, प्रबंधन आदि से भी होता है और प्रत्येक क्षेत्र में इनके अर्थ निर्धारित किए जाते हैं. रंग के बदलने के साथ ही इसकी सामग्री के अर्थ बदल जाते हैं.

आकार-प्रकार
किसी वस्तु का आकार-प्रकार, बनावट एवं रूप-रेखा का संबंधा लिखित या मौखिक भाषा नहीं होता. सुविधा के लिए उन्हें बड़ा-छोटा-लंबा-पतला आदि कह दिया जाता है. लेकिन इसके बावजूद इससे पूरी तरह अर्थ ध्वनित नहीं होता. जैसे ही वो वस्तु या उसकी तस्वीर हमारे सामने होती है, हम उससे अलग अर्थ ग्रहण कर पाते हैं.
जनसंचार के अन्तर्गत कैमरे, उनसे जुड़े शॉट्स की अलग से पढ़ाई होती है. इसके अन्तर्गत यह विस्तार से बताया जाता है कि शॉट या एंगिल के बदल देने से कैसे किसी वस्तु या व्यक्ति की उपस्थिति का अर्थ बदल जाता है.

तकनीक एवं इसके प्रयोग
मौजूदा दौर में संप्रेषण के लिए तकनीक के इस्तेमाल की अधिकता होती चली गयी है. जनसंचार के संदर्भ में तो बिना तकनीक के संप्रेषण की कल्पना की ही नहीं जा सकती. तकनीक लिखित, मौखिक, सांकेतिक आदि भाषा रूपों का वाहक होता है. इसकी मदद से भाषा के विभिन्न रूपों का प्रसार होता है. किन्तु इसके अन्तर्गत बहुत ऐसे कारण शामिल होते हैं जिन्हें कि भाषा के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जा सकता किन्तु वे अर्थ संप्रेषण का कार्य करते हैं. उदाहरण के तौर पर गति. गति का संबंध भाषा से नहीं है किन्तु गति के बढ़ने-घटने से अभिव्यक्ति एवं संप्रेषण का रूप बदल जाता है. इंटरनेट एवं प्रसारण के संदर्भ में इसे विशेष रूप से देखा जा सकता है. इसी तरह सूचना एवं सामग्री के प्रसार में गति की भूमिका महत्वपूर्ण होती है.

ध्वनि व्यवस्था
रोजमर्रा के जीवन में ऐसी कई आवाज़ हैं जिनके माध्यम से हम संप्रेषण एवं अर्थ ग्रहण का काम करते हैं. उदाहरण के तौर पर दरवाजे के आगे लगी घंटी के बजते ही हम समझ जाते हैं कि कोई आया है ? इतना ही बजाने के तरीके से हम अंदाज़ा लगा लेते हैं कि कौन आया है ? सड़क पर अलग-अलग तरह के हार्न से हम समझ पाते हैं कि किस तरह के वाहन गुज़र रहे हैं. एम्बुलेंस, अग्निशामक आदि के गुजरने का अर्थ हम इसी आधार पर लगा पाते हैं.
श्रव्य माध्यम के साथ-साथ दृश्य माध्यम भी इसी ध्वनि व्यवस्था के तहत अर्थ संप्रेषण का कार्य करते हैं. आप ध्यान देंगे तो किसी फिल्म में शोक, खुशी, आशंका आदि को व्यक्त करने के लिए ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है. जरूरी नहीं कि वे मौखिक अभिव्यक्ति हों.
इस क्रम में मैं आपको एक सुझाव देना चाहूंगा. एमटीवी पर स्नेहा खनवलकर का एक शो आता रहा है- साउंड ट्रिपन. यह खास किस्म का कार्यक्रम है जिसकी वीडियो यूट्यूब पर मौजूद है. स्नेहा खनवलकर इस शो में आसपास की अलग-अलग ध्वनियों को रिकार्ड किया करतीं और अंत में उससे कोई धुन या संगीत में परिवर्तित कर देती. इस धुन या संगीत से गुज़रने के बाद आप एक खास किस्म का अर्थ ग्रहण कर पाएंगे.

वस्तुस्थित एवं परिवेश
आप टेलिविजन पर प्रसारित विज्ञापन पर गौर करते होंगे और पाते होंगे कि उस पर जिन वस्तुओं का विज्ञापन किया जाता है, उसके साथ-साथ उसमें एक खास तरह का परिवेश शामिल किया जाता है. उदाहरण के तौर पर यदि आप किसी कार का विज्ञापन देखेंगे तो पाएंगे कि सड़कें एकदम खाली है, समुद्र का किनारा है, अगल-बगल कोई दूसरी गाड़ी या वाहन नहीं है. इससे पूरे विज्ञापन में आप सिर्फ और सिर्फ उस विज्ञापित गाड़ी को देख पाते हैं.
इसी तरह सभी फिल्मों, टीवी कार्यक्रमों में एक खास किस्म का परिवेश निर्मित किया जाता है और उनसे गुजरते ही आप अर्थ ग्रहण कर लेते हैं कि यह शादी का दृश्य है. यह अस्पताल से जुड़ा दृश्य है. ये खुशी का माहौल है आदि.

हाव-भाव/ भाव-भंगिमा
कई बार आप भी इस अनुभव से गुज़रते होंगे कि आप अपने सामने मौजूद व्यक्ति से कुछ बात तो नहीं करते लेकिन वो आपसे एकदम से पूछ लेते हैं- आपकी तबियत ठीक नहीं है क्या? आप उदास किस बात को लेकर हैं?
ऐसा वो आपके चेहरे या चलने-बैठने के अंदाज से अनुमान लगा लेते हैं और कई बार आप वो अनुमान सही होता है. ये सब आपके हाव-भाव होते हैं जिनका प्रयोग सिनेमा और रंगमंच में अभिनय के तौर पर किया जाता है. ये भी अभाषिक संप्रेषण के रूप हैं.
अभाषिक संप्रेषण पर बातचीत करने के क्रम में उपर्युक्त हमने जिन कारकों को शामिल किया, उनके अलावा भी कई दूसरे कारक हो सकते हैं. आप चाहें तो क्रम से उन्हें भी शामिल कर सकते हैं. यह आप तब कर पाएंगे जबकि आप अभाषिक संप्रेषण को सैद्धांतिक तौर पर ठीक-ठीक समझ पाते हैं.
अभाषिक संप्रेषण का अर्थ किसी भाषा के बिना संप्रेषण से न होकर उन कारकों द्वारा संप्रेषण किए जाने से है जिन्हें कि सैद्धांतिक तौर पर भाषा के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जाता.

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