निर्णय प्रक्रिया - अभिप्राय, परिभाषा एवं महत्व, प्रकार, भूमिका, कारक | nirnay prakriya

निर्णय प्रक्रिया का अभिप्राय

निर्णय प्रक्रिया गृह प्रबन्धन का आवश्यक अंग है। अपने दैनिक जीवन में विभिन्न लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की पूर्ति तथा कार्यों के सम्पादन हेतु मनुष्य को कई निर्णय लेने पड़ते हैं। प्रबन्धन के क्षेत्र में निर्णय प्रक्रिया का महत्व बहुत अधिक है। वास्तव में प्रबन्धन से निर्णय प्रक्रिया को पृथक नहीं किया जा सकता है। गृह प्रबन्धन की गुणवत्ता गृह प्रबन्धक द्वारा लिए गए निर्णयों पर निर्भर करती है। जब कभी व्यक्ति के समक्ष चुनाव की स्थिति उत्पन्न होती है तो किसी एक विकल्प के संदर्भ में निर्णय लेना आवश्यक हो जाता है।
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निर्णय लेना एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति किसी समस्या के समाधान हेतु विभिन्न उपलब्ध विकल्पों में से सर्वाधिक उत्तम विकल्प का चुनाव करता है। किसी भी उद्देश्य अथवा लक्ष्य की प्राप्ति हेतु व्यक्ति को कई निर्णय लेने पड़ते हैं।
कुछ समस्याओं के निर्णय छोटे होते हैं तथा इन्हें व्यक्ति लघु समय अन्तरालों पर लेते रहते हैं। परन्तु कुछ निर्णय बड़े होते हैं। निर्णय लेने से पूर्व समस्या के निदान हेतु उपलब्ध विभिन्न विकल्पों के संदर्भ में जानकारी एकत्रित करनी पड़ती है। इसके उपरान्त प्रबन्धक विभिन्न विकल्पों के लाभ एवं हानि पक्ष पर विचार करता है तथा अंत में सबसे उत्तम प्रतीत होने वाले विकल्प का चुनाव कर लेता है। निर्णयों के परिणामों का उत्तरदायित्व भी प्रबन्धन पर ही होता है। एक निर्णय ले लेने से परिवार दुविधा की स्थिति से निकल जाता है तथा लिए गए निर्णय की दिशा में कार्य करना आरम्भ कर देता है। कभी-कभी पूर्व में उत्तम समझे गए निर्णय को जब क्रियान्वित किया जाता है तो उसके परिणाम संतोषजनक प्राप्त नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में नए विकल्पों पर विचार एवं नवीन समाधान का चुनाव एवं क्रियान्वयन आवश्यक होता है।
  • ग्रॉस एवं क्रेण्डल के अनुसार - “प्रबन्धन प्रक्रिया के विभिन्न चरण यथार्थ में निर्णयों की एक श्रृंखला मात्र हैं, जिसमें प्रत्येक निर्णय अन्ततः लिए गए निर्णय पर आधारित होता है। लिए गए निर्णय के पूर्ण परिणामों को प्राप्त करने में समय लगता है"।
आइए, अब इस प्रक्रिया के महत्व एवं इसकी भूमिका के विषय में जानें।

निर्णय प्रक्रिया की परिभाषाएँ

निर्णय प्रक्रिया के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
  • ग्रॉस एवं क्रेण्डल के अनुसार - “निर्णय लेना अथवा विकल्प चुनाव कार्य के विभिन्न विकल्पों में से किसी एक विकल्प को चुनना या किसी भी विकल्प को न चुनने की प्रक्रिया है"।
  • निकिल एवं डार्सी के अनुसार - “समस्या को परिभाषित करना, खोजना, तुलना करना एवं एक कार्य विधि का चुनाव करना निर्णय प्रक्रिया के तथ्यों से सम्बन्धित है"।
  • राईट टेनिनबम के अनुसार - “मानव व्यवहार अचेतन अथवा चेतन प्रक्रियाओं का परिणाम है। जब प्रक्रियाएँ चेतन होती हैं, तब निर्णय लेने की प्रक्रिया सम्पन्न होती है।
  • वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार - “एक निर्णय विचार करने के उपरान्त किया गया निश्चय अथवा प्राप्त परिणाम है।

निर्णय प्रक्रिया का महत्व एवं भूमिका

प्रबन्धन प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए निर्णय प्रक्रिया अनिवार्य है। निर्णय लेने को प्रबन्धन प्रक्रिया के हृदय के रूप में माना गया है। गृह प्रबन्धक द्वारा लिए गए निर्णय पारिवारिक जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं, साथ ही परिवारिक जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं। निर्णयों के आधार पर परिवार वर्तमान समस्या का समाधान प्राप्त करते हैं। परिवार द्वारा लिए गए निर्णय उसके भविष्य को प्रभावित करते हैं। अधिकांशतः निर्णयकर्ता यह प्रयास एवं अपेक्षा करता है कि उसके द्वारा लिए गए निर्णय परिवार के हित में हों एवं उनसे उत्तम परिणाम प्राप्त हों।
प्रबन्धन में निर्णय प्रक्रिया कि यह भूमिका है कि इस चरण में समस्या के समाधान हेतु आवश्यक ज्ञान एवं सूचना का प्रयोग वास्तविक समस्या को हल करने के लिए किया जाता है। निर्णयकर्ता में स्थिति को समझने की योग्यता, समस्या के समाधान हेतु आवश्यक व्यवहारिक ज्ञान एवं विभिन्न परिस्थितियों में उचित सामंजस्य स्थापित करने की योग्यता होनी चाहिए। जीवन के बड़े लक्ष्यों से सम्बन्धित निर्णय जैसे स्थाई आवास एवं व्यवसाय, विवाह आदि से सम्बन्धित निर्णयों के परिणाम दूरगामी होते हैं। एक बार यदि इन विषयों के संदर्भ में निर्णय ले लिए जाते हैं तो उन्हें आसानी से बदला नहीं जा सकता है। यद्यपि कुछ निर्णय जो जीवन के बड़े लक्ष्यों से सम्बन्धित नहीं होते हैं उनमें आसानी से परिवर्तन संभव है। स्थिति के अनुरूप एवं उचित निर्णयों के माध्यम से व्यक्ति शीघ्र इच्छित लक्ष्यों एवं परिणामों को प्राप्त कर सकता है। वहीं गलत निर्णय के कारण व्यक्ति अथवा परिवार को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अतः यह कहा जा सकता है कि हमारे द्वारा लिए गए निर्णय हमारे जीवन के स्तर एवं लक्ष्यों को प्रभावित करते हैं।

आइए अब निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में चर्चा करें।

निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक

व्यक्ति अपने जीवन में कई प्रकार के निर्णय लेते हैं। कुछ निर्णय व्यक्तिगत होते हैं तथा कुछ निर्णय पारिवारिक होते हैं। व्यक्ति को समय-समय पर आर्थिक एवं व्यवसाय सम्बन्धी निर्णय भी लेने पड़ते हैं। कई बार स्थिति अनुसार निर्णय स्पष्ट एवं सरल होते हैं। व्यक्ति अपनी आदतों के कारण भी इन निर्णयों को शीघ्र ले लेते हैं। यद्यपि कुछ निर्णय जटिल होते हैं एवं इन्हें पूर्ण करने के लिए कई चरणों की आवश्यकता होती है। व्यक्ति के निर्णयों को कई कारक प्रभावित करते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण कारक जो निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, निम्नलिखित हैं:

पूर्व अनुभव
पूर्व में अथवा भूतकाल में हमारे द्वारा लिए गए निर्णय भविष्य में लिए जाने वाले निर्णयों को प्रभावित करते हैं। प्रायः यह देखा गया है कि अमुक स्थिति में यदि किसी निर्णय प्रक्रिया के उपरान्त सकारात्मक तथा अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हों तो व्यक्ति /प्रबन्धक उसी स्थिति विशेष में पुनः वही निर्णय प्रक्रिया को दोहराता है। यह भी सत्य है कि व्यक्ति अपनी गलतियों से सीखते हैं। वे प्रायः उन निर्णयों को नहीं दोहराते जिन के कारण उन्हें भूतकाल में हानि हुई थी। परन्तु यह आवश्यक नहीं की पूर्व अनुभवों पर आधारित निर्णय ही सर्वोतम निर्णय हो।

पूर्व धारणायें अथवा पूर्वाग्रह
हम जो प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं उसे हम शीघ्र स्वीकार कर लेते हैं। हमारे पूर्व ज्ञान, अवलोकन एवं अनुभवों के कारण हमारी पूर्वधारणायें निर्मित हो जाती हैं। यह पूर्व धारणायें हमारे निर्णयों को प्रभावित करती हैं। जो निर्णय पूर्व धारणाओं से प्रभावित होकर लिए जाते हैं वे अधिकतर त्रुटिपूर्ण अथवा अप्रभावशाली सिद्ध होते हैं। पूर्व धारणाओं के कारण व्यक्ति की संज्ञानात्मक प्रक्रिया तथा सोच प्रभावित होती है। पूर्वाग्रहों से प्रभावित होकर हम केवल उन्हीं तथ्यों को स्वीकार करते हैं जो हमारी मान्यताओं, अभिवृत्तियों एवं मूल्यों पर आधारित होते हैं। जिन निर्णयों में व्यक्ति को अधिक जोखिम नजर आता है, प्रायः व्यक्ति उन्हें नहीं लेते एवं अपनी पूर्व धारणाओं तथा अवलोकनों के आधार पर इस प्रकार के निर्णय को सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। ऐसे व्यक्ति स्वयं द्वारा पूर्व में अर्जित ज्ञान पर अत्यधिक विश्वास करते हैं। नए अवलोकनों एवं सूचनाओं को जिनके बारे में वे आश्वस्त न हों, वे शीघ्र ही अस्वीकार कर देते हैं। वे स्थिति को उसके सम्पूर्ण परिपेक्ष्य में नहीं देख पाते हैं। अतः उनके द्वारा लिए गए निर्णय दोषपूर्ण होते हैं। ऐसे निर्णयों के परिणाम अधिक लाभकारी नहीं होते हैं।

निर्णयकर्ता की आयु
शोध द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि व्यक्ति की आयु उसके द्वारा लिए गए निर्णयों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। विभिन्न आयु वर्गों द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों के प्रकार में भी अन्तर देखा गया है। उदाहरण के लिए प्रौढ़ व्यक्ति अपनी निर्णय लेने की क्षमता पर अधिक विश्वास करते हैं। वे स्वयं द्वारा लिए गए निर्णयों को ही उचित मानते हैं। उनका स्वयं के निर्णयों पर अति आत्मविश्वास कई बार उन्हें समस्या के निराकरण हेतु नवीन तकनीकों को उपयोग में लाने से रोकता है।

निर्णयकर्ता की बौद्धिक क्षमताएं
मानव की बुद्धि उसके विचारों, सोच, सृजनात्मकता एवं लिए गए निर्णयों का स्त्रोत है। प्रत्येक मनुष्य की बौद्धिक क्षमता दूसरे व्यक्ति से भिन्न होती है। सामान्य मानव बुद्धि की अपनी सीमाएं होती हैं। समस्या के समाधान हेतु उपलब्ध सभी विकल्पों का तुलनात्मक अध्ययन करना मानव मस्तिष्क के लिए कठिन कार्य है। मनोवैज्ञानिक रूप से भी निर्णय लेने की स्थिति में व्यक्ति दुविधा का अनुभव करता है।

प्रायः यह देखा गया है कि उच्च बौद्धिक क्षमताओं वाले व्यक्ति अधिक रूढ़िवादी निर्णय लेते हैं। यद्यपी ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो अपनी मानसिक क्षमताओं के आधार पर लिए जाने वाले निर्णय में अतर्निहित जोखिम की गणना करते हैं। यदि उन्हें प्रतीत होता है कि किसी योजना में सफलता एवं लाभ की अच्छी सम्भावना है तो वह उस योजना के पक्ष में निर्णय ले लेते हैं। निम्न बौद्धिक क्षमता वाले व्यक्ति से नवीन, उत्तम एवं योजनाबद्ध निर्णयों की अपेक्षा कम होती है।

मूल्य
प्रत्येक व्यक्ति द्वारा लिए गए निर्णय उसके व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक मूल्यों से प्रभावित होते हैं। मूल्य निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। ग्रॉस एवं क्रेण्डल के अनुसार “मूल्य निर्णय हेतु अभिप्रेरक की भाँति कार्य करते हैं। व्यक्ति के जीवन मूल्य प्रत्येक चरण में उसके द्वारा लिए गए निर्णयों को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए मेहनती व्यक्ति अपने कार्यों एवं निर्णयों में स्वयं के श्रम पर अधिक निर्भर रहता है। एक समर्पित माता अपने बच्चों का पालन-पोषण उत्तम प्रकार से करती है। वहीं एक उद्यमी व्यक्ति नौकरी करने की अपेक्षा स्वयं का उद्यम स्थापित करने अथवा कारोबार करने में अधिक रुचि लेता है।

समस्या के संदर्भ में ज्ञान एवं विदित सूचनाएँ
एक उत्तम निर्णय तभी लिया जा सकता है जब समस्या अथवा स्थिति विशेष के संदर्भ में समुचित ज्ञान एवं सूचनाएँ उपलब्ध हों। स्थिति/समस्या के विभिन्न आयामों का ज्ञान एवं उपलब्ध विकल्पों के संदर्भ में महत्वपूर्ण सूचनाओं की जानकारी उत्तम निर्णय लेने में सहायक सिद्ध होती है। ज्ञान एवं सूचनाओं के अभाव में लिए गए निर्णयों के परिणाम अपेक्षाओं से न्यून अथवा विपरीत हो सकते हैं। पारिवारिक जीवन में बच्चों के भविष्य को दृष्टिगत रखते हुए शिक्षा क्षेत्र के चुनाव में अभिभावक सम्बन्धित क्षेत्र के विषय में ज्ञान एवं सूचनाएं एकत्रित करते हैं ताकि उनके द्वारा लिए गए निर्णयों के परिणाम बच्चे के भविष्य हेतु उपयोगी हों।

बाजार में आज श्रम एवं शक्ति की बचत करने वाले विभिन्न ब्रांड, कीमतों एवं गुणवत्ता वाले उपकरण उपलब्ध हैं। कुशल गृह प्रबन्धक उनके क्रय से सम्बन्धित निर्णय लेने से पूर्व बाजार में उपलब्ध विकल्पों, उपकरणों की विशेषताओं तथा गुणवत्ता सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करते हैं। इन सूचनाओं एवं ज्ञान के अभाव में परिवार के बजट एवं आवश्यकता के अनुरूप उपकरण क्रय सम्बन्धी निर्णय उत्तम नहीं हो सकता है।

समय का प्रभाव
समय का प्रभाव प्रत्येक काल में लिए गए निर्णय पर दृष्टिगत होता है। प्रौढ़ व्यक्तियों के निर्णय उनके भूतकाल की स्थितियों एवं निर्णयों से स्पष्ट रूप से प्रभावित होते हैं। व्यक्ति भविष्य के संदर्भ में निर्णय लेते समय वर्तमान की स्थितियों को अनदेखा नहीं कर सकता है। यदि आज परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तो व्यक्ति परिवार के भविष्य के लिए बड़े भवन, महंगी शिक्षा, अथवा उच्च जीवन स्तर की दिशा में कार्य नहीं कर सकता है।

साथ ही यह भी सत्य है कि भविष्य भी वर्तमान निर्णयों को प्रभावित करता है। जैसे यदि गृह प्रबन्धक को यह आशा है कि उस के बच्चे व्यवसाय, नौकरी, शिक्षा आदि की दृष्टि से पैतिक स्थान छोड़कर अन्य शहरों में बसने की इच्छा रखते हैं तो वह अपने घर के कक्षों की संख्या में और विस्तार नहीं करेगा। भविष्य का प्रभाव वर्तमान निर्णयों पर इस प्रकार भी देखा जा सकता है कि व्यक्ति भविष्य में इच्छित वस्तुओं एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बचत करते हैं। भूतकाल में यदि किसी चयनित कार्य विधि के कारण गृह प्रबन्धक को हानि हुई हो तो भविष्य में पुनः उस कार्यविधि का चुनाव नहीं किया जाएगा। वर्तमान स्थितियां लिए गए निर्णयों को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं, जैसे मनुष्य वर्तमान आवश्यकताओं जैसे वस्त्रों का चुनाव फैशन के अनुरूप ही करता है।

निर्णय लेने में समय की महत्वपूर्ण भूमिका है। सही समय पर यदि सही निर्णय लिया जाए तो उस निर्णय से अधिकतम संतोष एवं लाभ प्राप्त होता है। कुछ समस्याओं को शीघ्रता से हल करने की आवश्यकता होती है तथा कुछ के विषय में निर्णय करना एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है। समय रहते यदि किसी समस्या पर निर्णय न लिया जाए तो कई नयी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं अथवा स्थितियों में परिवर्तन किया जा सकता है। निर्णय समय एवं आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तित हो जाते हैं। जो विकल्प भूतकाल में बहुत प्रभावी सिद्ध हुए, यह संभव है कि वे वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल न हों।

पारिवारिक साधन
निर्णय प्रक्रिया को उपलब्ध पारिवारिक साधन प्रभावित करते हैं। प्रत्येक परिवार में साधनों की मात्रा भिन्न होती है। कुछ परिवारों में अधिक कुशाग्र एवं शिक्षित व्यक्ति होते हैं तथा कुछ परिवारों में अधिक हृष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ व्यक्ति होते हैं। जो परिवार साधन समृद्ध होते हैं उन्हें निर्णय लेने में आसानी होती है। साधनहीन परिवारों को निर्णय लेने में अधिक कठिनाईयां आती हैं तथा लिए गए निर्णयों के जोखिम भी अधिक होते हैं। निम्न आय वाले परिवारों का अधिकांश बजट खाद्य पदार्थों पर ही व्यय होता है। मध्यम आय वर्ग के परिवार मकान, महंगी उच्च शिक्षा जैसे लक्ष्यों पर होने वाले व्यय को बहुत कठिनाईयों से वहन कर पाते हैं। जबकि उच्च आय वर्ग वाले व्यक्तियों के लिए इच्छित लक्ष्य को प्राप्त करना आसान होता है।

व्यक्ति अथवा परिवार के पास कितने साधन उपलब्ध हैं, यह तथ्य निर्णय को प्रभावित करता है। जैसे यदि गृह प्रबन्धक को समय का अभाव है तो वह आराम, मनोरंजन आदि में समय कम व्यतीत करेगा। धन के अभाव में परिवार कई कार्यों को स्वयं के श्रम द्वारा पूर्ण करते हैं जिससे धन की बचत हो सके। साधनों की सीमितता के कारण प्रबन्धक का यह उद्देश्य सदैव रहता है कि कम साधनों के उपयोग द्वारा अधिकतम संतोष प्राप्त हो सके। स्पष्ट रूप से साधनों की उपलब्धता चयनित विकल्प/निर्णय को प्रभावित करती है।

पारिवारिक विशेषताएं
पारिवारिक विशेषताएँ जैसे परिवार का आकार, पारिवारिक जीवन चक्र की अवस्था, परिवार का सामाजिक-आर्थिक स्तर, धर्म एवं संस्कृति, ग्रामीण अथवा शहरी परिवेश जैसी पारिवारिक विशेषताएँ निर्णयों को प्रभावित करती हैं। परिवार का आकार यदि बड़ा है तो उस परिवार के साधनों के व्यय सम्बन्धी निर्णय छोटे परिवारों की अपेक्षा भिन्न होंगे। पारिवारिक जीवन चक्र के प्रथम चरण वाले परिवारों की जीवन शैली तथा निर्णय विस्तृत एवं किशोरावस्था वाले बच्चों के परिवार से पृथक होंगे। प्रतिष्ठित एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवारों की जीवन शैली, व्यवसाय, परिवार के सदस्यों की रुचियाँ, साधन एवं इनके विषय में लिए जाने वाले निर्णय निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर वाले परिवारों से भिन्न होते हैं। ग्रामीण एवं शहरी परिवेश में निवास करने वाले परिवारों की स्थितियों अन्तर होने के कारण उनके द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों में भी पर्याप्त भिन्नता होती है। संस्कृतियों में भिन्नता होने के कारण भी परिस्थिति विशेष में निर्णयकर्ताओं के निर्णयों में अन्तर होता है।

परिवारिक लक्ष्य
कोई भी निर्णय परिवार द्वारा इच्छित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों पर निर्भर करता है। जैसे यदि परिवार में बच्चों की उत्तम शिक्षा को महत्वपूर्ण लक्ष्य माना गया है तो परिवारजन अन्य कार्यों की अपेक्षा बच्चों की शिक्षा पर अधिक ध्यान देंगे एवं इस दिशा में समय एवं अन्य साधनों को व्यय करेंगे।

पारिवारिक स्तर
किसी भी कार्य की गुणवत्ता हेतु स्तर निर्धारित होते हैं। इसी प्रकार परिवार भी स्वयं के लिए स्तर निर्धारित करता है। यदि चयनित विकल्प के कारण परिवार के स्तर प्रभावित होते हैं अथवा निर्धारित स्तर से परिणाम निम्न गुणवत्ता के प्राप्त होते हैं तो यह स्थिति परिवार के लिए असंतोषजनक होगी। निर्धारित स्तर से निम्न परिणाम देने वाले विकल्प परिवार आसानी से स्वीकार नहीं करते, अतः यह स्पष्ट है कि स्तर विकल्प चयन को प्रभावित करते हैं।

जोखिम
प्रत्येक निर्णय के साथ कुछ जोखिम सम्बद्ध होता है। प्रायः व्यक्ति अधिक जोखिम भरे निर्णय नहीं लेते हैं। निर्णय लेने से पूर्व सम्बद्ध जोखिम के विषय में विचार या निर्णय के हानि पक्ष पर विचार करना आवश्यक है।

सरल एवं कम प्रयत्नपूर्ण विकल्प
यदि चयनित विकल्प सरल पद्धति वाला है एवं उसे पूर्ण करने के लिए कम प्रयत्न आवश्यक है तो निर्णयकर्ता द्वारा उस विकल्प के चुनाव की सम्भावना अधिक होती है।

निर्णय प्रक्रिया के चरण

किसी भी परिवार की दैनिक आवश्यकताओं अथवा विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु गृह प्रबन्धक को समय-समय पर निर्णय लेने पड़ते हैं। जब कभी परिवार के सम्मुख कोई समस्या उत्पन्न होती है अथवा चुनाव की स्थिति होती है, तब एक विकल्प या मार्ग के संदर्भ में निर्णय लेना पड़ता है। परिस्थितियों में परिवर्तन होने पर भी निर्णय लेने की आवश्यकता उत्पन्न होती है। निर्णय लेना एक मानसिक क्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति समस्या के निदान हेतु उपलब्ध विभिन्न विकल्पों के विषय में जानकारी प्राप्त करता है, उपलब्ध विकल्पों की तुलना करता है एवं अंततः सर्वाधिक उत्तम विकल्प का चुनाव करता है। ग्रॉस एवं क्रैण्डल के अनुसार निर्णय प्रक्रिया के निम्नलिखित चरण हैं:
  • समस्या को पारिभाषित करना।
  • वैकल्पिक हलों की खोज करना।
  • विकल्पों के संदर्भ में विचार करना।
  • एक विकल्प का चयन करना।
  • एक निर्णय के उत्तरदायित्व को स्वीकार करना।
आइए, हम प्रत्येक चरण के बारे में विस्तृत चर्चा करें।

समस्या को परिभाषित करना
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व वास्तविक समस्या के स्वरूप को भली प्रकार समझ लेना आवश्यक है। इस तथ्य को उसी प्रकार समझा जा सकता है जैसे कोई मैकेनिक गाड़ी ठीक करने से पूर्व यह जाँच ले कि गाड़ी के किस कल-पुर्जे या भाग में समस्या है। जब वह गाड़ी में आई खराबी के विषय में निरीक्षण कर जान जाता है कि समस्या क्या एवं कहाँ है तो गाड़ी शीघ्र ठीक करना संभव हो जाता है। इसी प्रकार कोई चिकित्सक रोग का इलाज करने से पूर्व विभिन्न प्रकार के शारीरिक परीक्षणों के माध्यम से रोग के लक्षणों के संदर्भ में भली प्रकार जाँच करता है। जाँच एवं निरीक्षण के परिणाम के आधार पर ही चिकित्सक आगे किए जाने वाले इलाज की दिशा निर्धारित करता है।

गृह प्रबन्धक के लिए भी समस्या का पूर्व विश्लेषण महत्वपूर्ण है। जैसे यदि घर के सदस्य बार-बार बीमार पड़ते हों, तो वास्तविक समस्या घर के गंदे पानी के कारण हो सकती है, न कि उचित देख-रेख के अभाव में। अथवा यदि बार-बार घर का बजट बिगड़ जाता है तो यह आवश्यक है कि गृह प्रबन्धक यह पता करे कि किन वस्तुओं पर व्यय अधिक अथवा व्यर्थ हो रहा है तथा कहाँ पर व्यय नियंत्रण की आवश्यकता है।

समस्या को उसके सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक है। वर्तमान परिस्थितियों से समस्या को पृथक नहीं किया जा सकता है। साथ ही समस्या को समझने के लिए उपलब्ध साधनों की मात्रा, गुणवत्ता, सीमितता आदि के विषय में जानकारी होना आवश्यक है। समस्या का केवल मोटे तौर पर निरीक्षण कर उत्तम निर्णय संभव नहीं है। यह भी संभव है कि समस्या को वास्तविक रूप मे समझे बिना लिए गए निर्णय द्वारा समस्या हल ही न हो।

अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि समस्या को उसके सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट रूप से समझा जाए तथा समस्या के निदान हेतु अनुरूप सूचना/विकल्प को अन्य कम महत्वपूर्ण सूचनाओं से पृथक किया जाए। निर्णय प्रक्रिया के अग्रिम चरण इस प्रथम चरण पर निर्भर करते हैं।

वैकल्पिक हलों की खोज करना
समस्या को स्पष्ट रूप से समझने के उपरान्त यह आवश्यक है कि समस्या के निदान हेतु उपलब्ध विभिन्न विकल्पों की खोज की जाए। किसी समस्या अथवा चुनाव के विषय में यदि सभी विकल्पों की जानकारी होगी तो उन विकल्पों के लाभ-हानि की तुलना करके उत्तम निर्णय करना संभव है। विकल्पों के अभाव में लिए गए निर्णयों के परिणाम उत्तम नहीं होते हैं। विभिन्न विकल्पों की खोज के लिए सूचना के विभिन्न माध्यमों, विज्ञापनों, बाजार सर्वेक्षणों आदि का प्रयोग किया जा सकता है। समस्या के समाधान हेतु उपलब्ध विकल्पों की जानकारी अनुभवी व्यक्तियों से वार्तालाप करके भी प्राप्त की जा सकती है। विकल्पों के खोज की क्षमता व्यक्ति विशेष की जागरुकता, बुद्धि, योग्यता, श्रम एवं साधन पूर्णता पर निर्भर करती है। सामान्य एवं दैनिक परिस्थितियों मे लिए जाने वाले निर्णयों के लिए विकल्पों की खोज बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। परन्तु नई अथवा विशेष समस्याओं का निराकरण करने हेतु विभिन्न विकल्पों की खोज आवश्यक है। जैसे फूड-प्रोसेसर खरीदते समय प्रायः गृहणी बाजार में उपलब्ध विभिन्न कम्पनियों के उत्पादों के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करती है। उनकी विशेषताओं, गुणवत्ता, गारन्टी, कीमत आदि के विषय में जानकारी एकत्रित करती है। साथ ही वह इस विषय पर अन्य गृहणियों से सुझाव लेती है। ऐसा करते समय वह विकल्पों की खोज करती है। विकल्पों की खोज के संदर्भ में यह आवश्यक है कि स्वयं की परिस्थितियों एवं उपलब्ध साधनों के विषय में सदैव ध्यान रहे। कई बार विकल्पों के सन्दर्भ में अत्यधिक जानकारी भ्रमित कर देती है। ऐसी स्थिति से बचाव हेतु अपनी समस्या एवं उसके उपयुक्त उपायों पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

विकल्पों के संदर्भ में विचार करना
किसी भी समस्या के निदान हेतु उपलब्ध विकल्पों की खोज करने के उपरान्त उनके संदर्भ में विवेकपूर्ण रूप से विचार करना आवश्यक है। इस चरण में गृह प्रबन्धक विभिन्न विकल्पों की तुलना करता है। प्रत्येक विकल्प के लाभ-हानि पक्ष की विवेचना करता है। वह काल्पनिक तौर पर प्रत्येक विकल्प के संभव परिणामों के विषय में विचार करता है। जॉन डयूटी ने इस चरण को “नाटकीय पूर्वाभास” कहा है। विकल्पों के संदर्भ में विचार करना एक मानसिक प्रक्रिया है। इस चरण में निर्णयकर्ता विकल्पों के लघु अवधि एवं दूरगामी परिणामों पर भी विचार करता है।
विकल्पों की तुलना करने के लिए निश्चित मापदण्ड होने चाहिए। यह मापदण्ड प्रायः हमारे लक्ष्यों, मूल्यों, साधनों एवं परिस्थितियों द्वारा निधारित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि परिवार में कोई बीमार हो तथा यह समस्या उत्पन्न हो हई हो कि रोगी की देख-रेख हेतु परिवार का कौन सा सदस्य उसके साथ रात्रि में अस्पताल में रुकेगा। ऐसी स्थिति में परिवार के किसी वृद्ध व्यक्ति का रात में अस्पताल में रुकना संभव नहीं है क्योंकि उसे स्वयं स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या हो सकती है। बच्चों को सुरक्षा की दृष्टि से वहाँ नहीं छोड़ा जा सकता। अतः परिवार के व्यस्क पुरूष का रोगी की देखरेख हेतु रात्रि में अस्पताल में रुकना उत्तम निर्णय होगा।
समय एवं परिस्थितियों में परिवर्तन होने के साथ ही विकल्प भी परिवर्तित हो जाते हैं या अन्य विकल्प सामने आ जाते हैं। कई बार व्यक्ति अपनी सीमाओं के कारण किसी विकल्प के सभी दूरगामी परिणामों को देख नहीं पाता है। विकल्पों की तुलना एवं उनसे जुड़े परिणामों की विवेचना एवं आंकलन एक कठिन तथा अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है। परन्तु यदि एक बार व्यक्ति उपलब्ध विकल्पों पर विचार कर ले तो इस प्रक्रिया से निर्णय लेने में आसानी होती है। साथ ही निर्णय से जुड़े जोखिम कम किए जा सकते हैं अथवा पूर्व में ही ज्ञात किए जा सकते हैं।

एक विकल्प का चयन करना
सभी विकल्पों पर विचार करने के उपरान्त निर्णयकर्ता सबसे उत्तम विकल्प का चुनाव करता है। एक विकल्प का अन्तिम चुनाव ही निर्णय कहलाता है। चयनित विकल्प के संभावित परिणामों का पूर्व मे आंकलन भी महत्वपूर्ण है। चयनित विकल्प के परिणाम प्रभावपूर्ण हों एवं लक्ष्य प्रप्ति संभव हो, इसके लिए यह आवश्यक है कि निर्णय भली प्रकार सोच विचार कर लिया जाए। भविष्य की अनिश्चितता के कारण विवेकशील निर्णय का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

अपने निर्णय के उत्तरदायित्व को स्वीकारना
निर्णय प्रक्रिया का यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण चरण है। प्रत्येक निर्णयकर्ता के लिए यह आवश्यक है कि किसी भी दशा में वह स्वयं के द्वारा लिए गए निर्णयों के परिणामों के उत्तरदायित्व को स्वीकार करे। लिए गए निर्णयों द्वारा सफलता अथवा असफलता दोनों ही प्राप्त हो सकती है। स्वयं के निर्णय के उत्तरदायित्व को स्वीकार करने से प्रबन्धक में परिपक्वता विकसित होती है जो भविष्य में उपयोगी सिद्ध होती है। समय के साथ निर्णयकर्ता इस कार्य में और प्रखरता विकसित करता है तथा उसमें शीघ्र प्रभावपूर्ण निर्णय करने का गुण विकसित होता है।

निर्णयों के प्रकार

प्रबन्धन एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके प्रत्येक चरण में निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। प्रबन्धन प्रक्रिया में समय-समय पर नवीन परिस्थितियां एवं समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जो प्रबन्धक को समय अनुकूल निर्णय लेने के लिए बाध्य करती हैं। परिवार को भी समय-समय पर निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। निर्णय विभिन्न प्रकार के होते हैं।

व्यक्तिगत निर्णय
व्यक्तिगत निर्णय व्यक्ति विशेष पर निर्भर करते हैं। इस प्रकार के निर्णय केवल एक ही व्यक्ति द्वारा लिए जाते हैं। निर्णय के परिणामों का उत्तरदायित्व भी एक ही व्यक्ति का होता है। व्यक्ति कोई भी विकल्प चुनने के लिए स्वतंत्र होता है। यह आवश्यक नहीं की इस प्रकार का निर्णय लेने में व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के सुझाव अथवा मत को ध्यान में रखें। उदाहरण हेतु व्यस्क व्यक्ति को अपना व्यवसाय चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। वे अपनी योग्यता के आधार पर अपने व्यवसाय का चुनाव कर सकते हैं। वर्तमान समय में युवा अपनी रुचि के अनुरूप उच्च शिक्षा हेतु अध्ययन क्षेत्र का चुनाव करते हैं। गृहणी भी परिवार में बच्चों की आवश्यकता एवं देख-रेख को ध्यान में रखते हुए कई छोटे-छोटे व्यक्तिगत निर्णय लेती है। जब कोई लघु उद्योग एक ही उद्यमी द्वारा चलाया जाता है तो उद्योग सम्बन्धी महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए वह उद्यमी स्वतंत्र होता है। व्यक्तिगत निर्णय प्रायः अच्छे सिद्ध होते हैं क्योंकि व्यक्ति विकल्पों के चुनाव हेतु स्वतंत्र होता है, साथ ही वह नए विकल्पों का भी चुनाव कर सकता है। व्यक्तिगत निर्णय शीघ्र लिए जा सकते हैं क्योंकि ये केवल एक ही व्यक्ति पर निर्भर करते हैं। प्रायः व्यक्तिगत निर्णय निजी समस्याओं के सन्दर्भ में अधिक लिए जाते हैं। जैसे शहर में नौकरी हेतु अकेले रह रहे व्यक्ति द्वारा निवास स्थान के चुनाव के सन्दर्भ में अथवा व्यक्ति द्वारा दैनिक कार्यों एवं खान-पान से सम्बन्धित निर्णय आदि।

सामूहिक निर्णय
जब किसी समूह के विभिन्न सदस्य मिल कर कोई निर्णय लेते हैं तो उसे सामूहिक निर्णय कहते हैं। समूह के विभिन्न सदस्य साथ मिलकर विचार विमर्श करने के उपरान्त यह निर्णय लेते हैं। इस प्रकार के निर्णय व्यक्तिगत निर्णय की अपेक्षा अधिक जटिल होते हैं तथा इन्हें लेने में समय भी अधिक लगता है। सामूहिक निर्णय लेने में अनुभवी व्यक्तियों के सुझावों के द्वारा व्यर्थ के विकल्पों को पहले ही हटाया जा सकता है। विभिन्न व्यक्तियों के सुझाव एक उत्तम निर्णय लेने में सहायता करते हैं। यद्यपि यह भी सत्य है कि इस प्रकार का निर्णय लेने में संगठन के विभिन्न सदस्यों के विचारों में विरोध भी हो सकता है। समूह के प्रमुख सदस्य अपने मत को अधिक महत्व देते हैं, जो विरोध का कारण बन सकता है। सामूहिक निर्णय प्रायः किसी संस्था अथवा संगठन के प्रमुख सदस्यों द्वारा लिए जाते हैं। परिवार में भी कई विषयों पर परिवार के बड़े सदस्य मिलकर निर्णय लेते हैं जो सामूहिक निर्णय का उदाहरण है।

नियमित रूप से लिए जाने वाले निर्णय (नैत्यिक निर्णय)
दैनिक रूप से उत्पन्न होने वाली समस्याओं हेतु व्यक्ति नियमित निर्णय लेते रहते हैं। नियमित निर्णय लेने के लिए व्यक्ति को किसी विशेष कार्य प्रणाली अथवा योजना पर कार्य करने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार के निर्णय दैनिक कार्यों के समाधान हेतु पुनः लिए जाते हैं। व्यक्ति को एक नियमित कार्य प्रणाली के अन्तर्गत इस प्रकार के निर्णय लेने की आदत होती है तथा इनके लिए विशेष बौद्विक कौशल अथवा परामर्श की आवश्यकता नहीं होती है। परिवार के सदस्य रोज कई प्रकार के निर्णय लेते हैं, जैसे दैनिक उपभोग की वस्तुएँ कौन क्रय करेगा, आज ऑफिस क्या पहन कर जाएंगे, दफ्तर जाने के लिए किस माध्यम का प्रयोग करेंगे, परिवार का कौन व्यक्ति स्कूल से बच्चों को घर लायेगा आदि, इन सभी विषयों पर निर्णय लेने का व्यक्ति अभ्यस्त हो जाता है तथा यह उसकी दैनिक दिनचर्या का अंग होते हैं।

आधारभूत अथवा केन्द्रीय निर्णय
आधारभूत निर्णय महत्वपूर्ण गम्भीर विषयों के संदर्भ में लिए जाते हैं। इस प्रकार के निर्णय जटिल समस्याओं पर आधारित होते हैं एवं इनके विषय में निर्णय करने के लिए काफी सोच विचार की आवश्यकता होती है। एक बार अन्तिम निर्णय हो जाने पर बार-बार उसमें परिवर्तन संभव नहीं होता है। आधारभूत निर्णय को पूर्ण करने के लिए अन्य छोटे-छोटे निर्णय सहायक होते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि आधारभुत निर्णय केन्द्रीय निर्णय के समान होते हैं तथा अन्य छोटे सहायक निर्णय इसकी सफलता की दिशा में किए गए प्रयास हैं। जैसे यदि परिवार का मुखिया कोई नया व्यवसाय स्थापित करता है तो परिवार में तदपरान्त अन्य निर्णय उद्यम की सफलता की दिशा में लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए परिवार अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करता है, जैसे गृहणी द्वारा सुबह जल्दी उठकर नित्य कार्यों एवं नाश्ते की तैयारी, कार्य स्थल तक पहुँचने के लिए उचित यातायात के माध्यमों का प्रयोग करना, परिवार के अन्य सदस्यों का उद्यम को सफल बनाने में योगदान आदि। आधारभूत निर्णय के अन्य उदाहरण हैं, परिवार द्वारा स्थाई आवास क्रय करना, विवाह का निर्णय, युवाओं द्वारा शिक्षा क्षेत्र एवं व्यवसाय का चुनाव आदि।

तकनीकी निर्णय
किसी भी समस्या के समाधान हेतु कार्य प्रणाली क्या होगी, इस विषय में तकनीकी निर्णय लिए जाते हैं। यह निर्णय विशिष्ट होते हैं एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु अपनायी जाने वाली कार्य-विधि के संदर्भ में जानकारी देते हैं। यह निर्णय इस प्रश्न का उत्तर देते हैं कि कार्य कैसे किया जाए। इस प्रकार के निर्णय द्वारा प्रायः एक समय पर एक उद्देश्य की पूर्ति संभव है। किसी फैक्ट्री में कोई वस्तु के निर्माण की क्या प्रक्रिया होगी अथवा किसी कुटीर उद्योग में छोटी वस्तुओं जैसे, काँच के बर्तन, पर्स, खिलौने आदि बनाने में कौन-सी तकनीक एवं कार्य विधि का प्रयोग किया जाएगा, इस बात का निश्चय करना तकनीकी निर्णय के अन्तर्गत आता है। तकनीकी निर्णय लेते समय निर्णयकर्ता के समक्ष यह चुनौती होती है कि वह साधनों की सीमितता को ध्यान में रखते हुए उनका उचित संयोजन करे जिससे उत्तम परिणाम संभव हो।

आर्थिक निर्णय
आर्थिक निर्णय साधनों के उपयोग के संदर्भ में लिए जाते हैं। साधनों का आवंटन तथा एक साधन का अन्य साधनों द्वारा प्रतिस्थापन सम्बन्धी निर्णय आर्थिक निर्णय के अन्तर्गत आते हैं। परिवार के विभिन्न लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं के मध्य साधनों की सीमितता सदैव बनी रहती है। विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साधनों को किस मात्रा में एवं कैसे आवंटित किया जाए, यह निश्चय करना आर्थिक निर्णय के अन्तर्गत आता है। आर्थिक निर्णय दो महत्वपूर्ण तथ्यों में विभाजित होता है; कई लक्ष्यों की पूर्ति तथा सीमित मात्रा में उपलब्ध साधन। आर्थिक निर्णयों में यह निश्चित किया जाता है कि लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कौन-से साधनों की आवश्यकता होगी तथा इनका उपयोग किस मात्रा अथवा अनुपात में होगा। धन की आवश्यकता की पूर्ति हेतु उचित आवंटन आर्थिक निर्णयों का उदाहरण है। परिवार में आवश्यकताएं सदैव बनी रहती हैं परन्तु साधन सीमित होते हैं। निर्णयकर्ता अथवा परिवार महत्व के आधार पर अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करते हैं तथा साधनों का आवंटन करते हैं। आर्थिक निर्णय केवल धन के आवंटन के संदर्भ में नहीं लिए जाते अपित यह निर्णय अन्य साधन जैसे समय, शक्ति, कौशल आदि के उचित आवंटन एवं प्रयोग सम्बन्धी होते हैं। साथ ही यह भी सत्य है कि एक साधन का अन्य साधनों द्वारा प्रतिस्थापन संभव है। इस विषय में लिए गए निर्णय भी आर्थिक निर्णयों के अन्तर्गत आते हैं।

सामाजिक निर्णय
मनुष्य जिस समाज में रहता है वह उसके निर्णयों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। सामाजिक निर्णय व्यक्ति के मूल्य, लक्ष्य एवं स्तर को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। व्यक्ति के शिक्षा क्षेत्र का चुनाव, विवाह, परिवार में बच्चों की संख्या, तलाक आदि सम्बन्धित निर्णय सामाजिक निर्णयों के अन्तर्गत आते हैं। यह निर्णय लेते समय व्यक्ति अपने परिवार, मित्र, रिश्तेदारों आदि के साथ विचार विमर्श करता है। सामाजिक निर्णय में इनके विचार एवं सुझाव निर्णयकर्ता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। सामाजिक एवं आर्थिक निर्णयों में पर्याप्त अन्तर होता है। एक सामाजिक निर्णय के कुछ सामाजिक परिणाम होते हैं। सामाजिक निर्णयों के कारण व्यक्ति समाज में उच्च अथवा निम्न स्थान प्राप्त करता है। सामाजिक स्वीकृति या अस्वीकृति भी सामाजिक निर्णयों पर निर्भर करती है। आर्थिक निर्णयों के सामाजिक परिणाम नहीं होते हैं। जैसे व्यक्ति के द्वारा क्रय की गई दैनिक उपभोग की वस्तुओं से उसके मित्रगण एवं रिश्तेदार विशेष प्रभावित नही होंगे और न ही इसके कोई सामाजिक परिणाम होंगे। व्यक्ति द्वारा लिए गए सामाजिक निर्णय उसके रिश्तेदारों तथा मित्रों को भी प्रभावित करते हैं। जैसे व्यक्ति की महत्वाकांक्षा, मनोवृत्ति एवं उसके द्वारा अपनायी गई प्रथाएं, किसी समुदाय विशेष के प्रति दृष्टिकोण एवं भेद-भाव आदि निर्णयों के सामाजिक परिणाम होते हैं। साथ ही यह निर्णय व्यक्ति की एक सामाजिक पहचान भी बनाते हैं।

कानूनी निर्णय
यह निर्णय नियमानुसार लिए जाते हैं। प्रत्येक राष्ट्र द्वारा उसके नागरिकों के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं। समाज में कई कार्य एवं गतिविधियां प्रतिबन्धित अथवा गैरकानूनी होती हैं। समाज में रहते हुए व्यक्ति का नियमानुसार कार्य करना अपेक्षित है। नियमानुसार कार्य न करने पर व्यक्ति को दण्ड भोगना पड़ता है। सरकारी अथवा गैर-सरकारी संस्थान में कार्य करने के भी अपने नियम होते हैं जिनका पालन न करने पर व्यक्ति को नौकरी से निकाला जा सकता है। परिवार सम्बन्धी कई कार्यों के भी कानूनी पक्ष होते हैं, जैसे स्वीकृत मापदण्डों के अनुसार भवन निर्माण, परिवार में वसीयत सम्बन्धी निर्णय आदि। सरकार द्वारा परिवारों के हितों को ध्यान में रखते हुए विवाह, दहेज उत्पीड़न आदि के संदर्भ में भी कई नियम एवं कानून बनाए गए हैं। साथ ही समाज द्वारा यह अपेक्षा की जाती है कि परिवार इन नियमों का पालन करें।

राजनैतिक निर्णय
राजनैतिक निर्णय संस्था के प्रभावशाली सदस्यों द्वारा लिए जाते हैं। नेतृत्व की क्षमता रखने वाले यह व्यक्ति एक साथ मिल-जुलकर यह निर्णय लेते हैं। राजनैतिक निर्णयों में निर्णय लेने की प्रक्रिया का तथ्य अधिक महत्वपूर्ण होता है। विभिन्न पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के समूह संगठित होकर इस प्रकार के निर्णय लेते हैं।

कार्यक्रमानुसार लिए गए निर्णय
कार्यक्रमानुसार निर्णय परिचित अथवा ज्ञात परिस्थितियों में लिए जाते हैं। इस प्रकार के निर्णयों द्वारा निर्णयकर्ता के विचार, समस्या एवं उनके हल के संदर्भ में स्पष्ट होते हैं। इस परिस्थिति में प्रबन्धक क्या निर्णय लेगा इसकी घोषणा पूर्व में ही की जा सकती है। स्थिति विशेष के लिए किस प्रकार निर्णय लिए जाएं, इस संदर्भ में पूर्व में ही नियम व प्रक्रिया स्पष्ट होते हैं। यह वे निर्णय होते हैं जो संगठन द्वारा बार-बार दोहराये जाते हैं। निर्णयकर्ता एक सुनियोजित, स्थापित कार्य विधि के अनुरूप ही समस्या समाधान के लिए निर्णय लेता है। परिवार में भी प्रत्येक वर्ष होने वाले पर्व अथवा बच्चों के नामकरण संस्कार, विवाह आदि के विषय में रीति रिवाज पूर्व में ही निर्धारित होते हैं। प्रत्येक परिवार अपने धर्म के अनुरूप इनका पालन करता है।

अकार्यक्रमानुसार निर्णय
अकार्यक्रमानुसार निर्णय नई परिस्थितियों में लिए जाते हैं। कभी-कभी निर्णयकर्ता को नवीन परिस्थितियों के संदर्भ में कुछ भी ज्ञात नहीं होता है। समस्या का पूर्ण स्वरूप स्पष्ट नहीं होता है। लिए गए निर्णय के परिणामों के विषय में भी निर्णयकर्ता को पूर्व में अधिक जानकारी नहीं होती है। समस्या के संदर्भ में निर्णय लेने के लिए प्रबन्धन को काफी सोच विचार करना पड़ता है तथा एक नई योजना बनानी पड़ती है। अकार्यक्रमानुसार निर्णय नवीन स्थितियों में लिए जाने वाले महत्वपूर्ण निर्णय होते हैं। कई बार परिस्थितियाँ जटिल होती हैं तथा निर्णयकर्ता को उचित समाधान के लिए काफी खोजबीन एवं विचार विमर्श की आवश्यकता होती है। परिवार में इस प्रकार के निर्णय लेने की स्थिति तब आती है जब परिवार कोई नया उद्यम शुरु करता है अथवा एक परिचित शहर को छोड़कर नए स्थान पर बसने का निर्णय लेता है। अब तक आप निर्णयों के वर्गीकरण एवं विभिन्न प्रकार के निर्णयों से परिचित हो चुके हैं। अब हम मुख्य निर्णय शैलियों के विषय में जानेंगे।

निर्णय शैलियाँ

प्रत्येक प्रबन्धक की अपनी एक विशिष्ट निर्णय शैली होती है। वास्तव में निर्णय शैली प्रबन्धक की अभिवृत्ति पर निर्भर करती है। कुछ प्रबन्धक अथवा निर्णयकर्ता अन्य व्यक्तियों के सुझावों को सुनने एवं उन पर विचार करने को तैयार होते हैं। इसके विपरीत कुछ व्यक्ति दूसरे के मतों एवं सुझावों को अधिक महत्व नहीं देते हैं। कई व्यक्ति अधिक सोच विचार एवं सूचना के अभाव में भी निर्णय ले लेते हैं। निर्णयकर्ता की प्रवृतियाँ एवं अभिवृत्ति निर्णय शैली को प्रभावित करती है।
मुख्य निर्णय शैलियाँ निम्नलिखित हैं-
  • निर्णय शैलियाँ
  • निर्देशात्मक
  • विश्लेषणात्मक 
  • तथ्यात्मक
  • व्यवहारिक
आइए इनके बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करें।

निर्देशात्मक शैली
निर्देशात्मक शैली में एक निर्णयकर्ता द्वारा ही निर्णय लिया जाता है। निर्णयकर्ता विभिन्न निर्णय केवल स्वयं के ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर लेता है। यह मान लिया जाता है कि संस्था अथवा परिवार में निर्णयकर्ता इतना सक्षम है कि वह सभी निर्णय सफलतापूर्वक ले सकता है।
इस शैली के अन्तर्गत निर्णयकर्ता अन्य व्यक्तियों के सुझावों अथवा मत के आधार पर कार्य नहीं करता। ऐसे व्यक्ति प्रायः सीमित सूचना एवं सीमित विकल्पों के आधार पर निर्णय ले लेते हैं। निर्देशात्मक निर्णयकर्ता प्रायः शीघ्र प्रभावशाली निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। निर्णय लेने में वह अपनी तर्क शक्ति पर अधिक निर्भर रहते हैं।

विश्लेषणात्मक शैली
विश्लेषणात्मक निर्णयकर्ता अन्य व्यक्तियों के सुझाव आमंत्रित करते हैं एवं उनसे प्राप्त सुझावों पर विचार करते हैं। इस प्रकार के निर्णयकर्ता निर्णय लेने से पूर्व समस्या के संदर्भ में अधिक से अधिक सूचना प्राप्त करते हैं तथा साथ ही कई विकल्पों के विषय में तार्किक विचार करते हैं। यह निर्णयकर्ता सावधानी पूर्वक निर्णय लेते हैं तथा वास्तविक सूचना के आधार पर कार्य करते हैं। प्रायः नवीन परिस्थितियों अथवा समस्याओं का समाधान इस प्रकार के निर्णयकर्ता उत्तम विधि से करते हैं।

तथ्यात्मक निर्णय
तथ्यात्मक शैली का प्रयोग करने वाले निर्णयकर्ता समूह/संगठन के सभी व्यक्तियों को समस्या से अवगत करा देते हैं। वे संगठन के सभी व्यक्तियों के सुझावों पर ध्यान देते हैं तथा उन पर विचार करते हैं। तथ्यात्मक निर्णयकर्ता निर्णय के दूरगामी परिणामों के परिप्रेक्ष्य में विचार करते हैं। वे सुझावों को महत्व देते हैं तथा जटिल समस्याओं के लिए रचनात्मक निर्णय लेने में सक्षम सिद्ध होते हैं। प्रायः तथ्यात्मक निर्णयों द्वारा दीर्घकाल में संगठन को लाभ प्राप्त होता है।

व्यवहारिक निर्णय
व्यवहारिक निर्णय लेने से पूर्व संगठन/परिवार का नेता स्थिति को अन्य सदस्यों अथवा सहयोगियों के समक्ष स्पष्ट कर देता है। कई बार स्थिति परिवार/संगठन में दो पक्षों के संदर्भ में होती है। संगठन के नेता एवं सहयोगी साथ मिलकर विचार विमर्श के उपरान्त समस्या को हल करने का प्रयत्न करते हैं। वे वार्तालाप के उपरान्त ऐसे समाधान अथवा निर्णय का चुनाव करते हैं जो सभी पक्षों को मान्य हो। इस प्रकार के निर्णयकर्ता विवादपूर्ण निर्णय से बचना चाहते हैं। इस निर्णय शैली के अंतर्गत सम्बन्धित सभी पक्षों को मान्य निर्णय ही अन्तिम निर्णय माना जाता है।

अब तक आप मुख्य चार प्रकार की निर्णय शैलियों से परिचित हो चुके हैं। निर्णय एक चुनाव की स्थिति है। परिवार में कई बार लिए गए निर्णय से मतभेद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि उचित समय में विवाद का निदान किया जाए। इस इकाई के अन्तिम खण्ड में हम निर्णय तथा विवाद स्थिति के निदान के विषय में पढ़ेंगे।

निर्णय तथा विवाद

परिवार अथवा संगठन में कई बार किसी निर्णय के संदर्भ में विवाद/मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं। विवाद को जन्म देने में कई कारक उत्तरदायी हो सकते हैं। यह आवश्यक है कि समय रहते विवाद/मतभेद के मुख्य कारणों की पहचान की जाए तथा विवाद को दूर किया जाए। गृह प्रबन्धक के लिए यह आश्वयक है कि वह विवाद/मतभेद के निदान में उपयोगी सिद्ध होने वाली विधियों से परिचित हो।
  • परिवार में मतभेद की स्थिति प्रायः निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है-
  • व्यक्ति की प्रतिष्ठा अथवा भूमिका पर ठेस के कारण।
  • मूल्यों अथवा अभिवृत्तियों में मतभेद के कारण।
  • स्वयं की निर्णय प्रक्रिया के कारण।
  • पूर्व अनसुलझे विवादों के कारण।
  • संचार की कमी अथवा भ्रामक संचार के कारण।
  • व्यक्तियों की महत्वाकांक्षा/आवश्यकता न पूर्ण होने की दशा में।

"मैरी पारकर फॉलेट” ने अपने लेख (Constructive Conflict, 1925) में मतभेद/विवाद के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किए। उनका मत है कि “विवाद को किसी नैतिक पूर्वाग्रह अथवा अच्छे या बुरे द्वारा परिभाषित करके न देखा जाए। विवाद को एक युद्ध के रूप में न देखकर केवल विचारों तथा रुचियों के मतभेद के रूप मे देखा जाना चाहिए। उनके अनुसार विवाद एक स्थिति है जिसका त्याग हम नहीं कर सकते हैं। हमें इसकी निन्दा करने की अपेक्षा इसका उपयोग करना चाहिए । विवाद अथवा मतभेद को सकारात्मक बदलाव के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।
इनके अनुसार मतभेद के प्रति प्रतिक्रिया करने की तीन प्रमुख विधियाँ हैं-
  1. प्रभुत्व
  2. समझौता
  3. एकीकरण/युग्मन

प्रभुत्व
प्रभुत्व का अर्थ है एक पक्ष की दूसरे पक्ष पर विजय। यह विवाद का सरलतम हल है परन्तु दीर्घकाल के लिए यह एक अनुपयोगी विधि है। परिवार में भी बड़ों के प्रभाव के कारण कई विवाद कुछ समय के लिए टल जाते हैं। जैसे सम्पत्ति से जुड़े विवाद, परन्तु भविष्य में पुनः ऐसे विवादों के प्रारम्भ हो जाने की प्रबल संभावना होती है।

समझौता
समझौता दो पक्षों के मध्य होता है। इसमें प्रत्येक पक्ष को कुछ त्याग करना पड़ता है। दोनों पक्षों द्वारा त्याग किए जाने के कारण उनमें असंतोष की भावना बनी रहती है। समझौते से भी समस्या के पुनः उठने की संभावना रहती है।

एकीकरण/युग्मन
मैरी पारकर फॉलेट एकीकरण के मत की पक्षधर हैं। उनका मत है कि इसके द्वारा मतभेद को सफलता पूर्वक सुलझाया जा सकता है। एकीकरण में दोनों पक्षों की इच्छाओं एवं रुचियों का समायोजन किया जाता है। किसी भी पक्ष को त्याग नहीं करना पड़ता है। उदाहरण के लिए यदि दो बहनें एक ही कक्ष में रह रही हैं और दोनों ही कक्ष की सफाई नहीं करना चाहती हैं (जो कि विवाद का कारण है), तो अन्य किसी व्यक्ति द्वारा कक्ष की सफाई कराने से विवाद टल सकता है।

सारांश

गृह प्रबंधन में निर्णय प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। निर्णय प्रक्रिया में विभिन्न विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चुनाव करना पड़ता है। गृह प्रबन्धक द्वारा लिए गए निर्णय पारिवारिक जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। निर्णय प्रक्रिया को कई कारक प्रभावित करते हैं, जैसे पूर्व अनुभव, पूर्वाग्रह, निर्णयकर्ता की बौद्धिक क्षमताएं, आयु, मूल्य, समस्या के सन्दर्भ में विदित सूचनाएँ आदि। निर्णय प्रक्रिया के पाँच महत्वपूर्ण चरण होते हैं; समस्या को पारिभाषित करना, वैकल्पिक हलों की खोज, विकल्पों पर विचार, एक विकल्प का चयन तथा निर्णय का उत्तरदायित्व स्वीकार करना। निर्णयों के प्रकार भी भिन्न होते हैं। इस इकाई में हमने निर्णयों के विभिन्न प्रकारों के विषय में चर्चा की। प्रत्येक प्रबन्धक की अपनी निर्णय शैली होती है जो उसकी अभिवृत्ति पर निर्भर करती है। निर्णय की चार प्रमुख शैलियाँ हैं; निर्देशात्मक, विश्लेषणात्मक, तथ्यात्मक एवं व्यवहारिक। कई बार लिया गया निर्णय विवाद का कारण बन सकता है। विवाद की स्थिति के निदान के लिए मैरी पारकर फॉलेट ने तीन प्रमुख विधियाँ; प्रभुत्व, समझौता एवं एकीकरण बतायी हैं।

पारिभाषिक शब्दावली
  • निर्णय : समस्या के निदान हेतु उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चुनाव।
  • विकल्प : समस्या के दो या दो से अधिक उपलब्ध समाधान।
  • उत्तरदायित्व : निर्णय लेने की विशेष विधि जो निर्णयकर्ता की अभिवृत्ति पर निर्भर करती है।
  • विवाद : विरोध करना।

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