अपराध क्या है? व्याख्या, कारण, प्रकार, सुधार, उपाय | apradh kya hai

प्रस्तावना

समाज मानव संबंधों पर आधारित है तथा यह एक बहुत जटिल व्यवस्था है। प्रत्येक व्याक्ति का अपना हित तथा स्वार्थ सर्वोपरि रहता है। हालाँकि समय ने कुछ नियम कानून, आदर्श तथा व्यावहार प्रतिमानों को सामाजिक बनने हेतु प्रतिपारित किया है, ताकि मानव किसी दूसरे पर अपने स्वार्थ सिद्धी हेतु आक्रमण ना करे तथा संतुलित व्यतवहार ही करें।
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परन्तु हर एक समाज में प्राय: कुछ ऐसे व्यक्ति भी पाए जाते हैं, जो इन नियमों कानूनो को नहीं मानते और सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मनोवैज्ञानिक प्रभावों के कारण प्रतिकूल व्यवहार का भी प्रदर्शन करते रहते हैं।और इसी तरह से व्यवहार को 'समाज विरोधी' कहा जाता है तथा अपराध की ओर उन्मुख कहा जा सकता है।

उद्देश्य

इस लेख का मुख्य उद्देश्य आपको समाज में रहने हेतु नियम कानून से चलने हेतु कुछ समाज सेवी तथा समाज विरोधी मानव व्ययवहार को समझाना है। आप इस लेख ,द्वारा अपराध की रूपरेखा , स्वरूप तथा उसके पड़ने वाले दुस्प्रभावो को भी जान पाएगें। अपराध तथा सफेद पोश अपराध किसे कहते है इस अर्थ को भी आप करीब से महसूस कर पाएगें और यही एक पूरे लेख का उद्देश्य होगा एक विद्धार्थी के लिए।

अपराध की व्याख्या (कानूनी स्वरूप)

जब अपराध की विवेचना कानूनी दृष्टि से की जाती है तो उसमें निम्न दो गुणों को सम्मिलित किया जाता है जो निम्नलिखित है -:
  1. जान बूझ कर किया गया व्यवहार
  2. अपराधी नियत

कुछ वैद्यानिक परिभाषाएँ निम्न है -:
  • "कोई सार्वजनिक कानून जो किसी व्यनवहार के करने पर प्रतिबंध लगाता है या ऐसा करने की अवज्ञा देता है ,उसके उल्लंसघन स्वरूप किया गया व्यवहार अपराध है।" 'ब्लैकस्टोनन'
  • 'अपराध कानून का उल्लंघन है । "हैकरबाल'
  • 'अपराध वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बनन्धित है। कानून का उल्लंघघन करने वाला ही अपराधी व्यवहार है "-सदरलैण्ड"

अपराध की समाजशास्त्रीय व्याख्या

अपराध हेतु कौन जिम्मेदार है? इसका उत्तर सामान्य रूप से निम्न होगा - कि एक तो 'व्यक्ति' जिसने किया अपराध तथा दूसरा 'समाज' जिसके कारण यह घटित हुआ।
"अपराध की सामाजिक व्याख्या इस बात पर आधारित है कि समाज अपराध के लिए उत्तरदायी है।" महात्मा गाँधी के अनुसार "समाज का कर्तव्य है कि उन लोगो के प्रति जो निश्चित रीतियों और परम्पराओं के विरूद्ध काम कर बैठते है, हृदयहीन सौतेली माँ जैसा व्यवहार न करे। इस प्रकार के अपराध भिन्न प्रकार की बिमारियाँ हैं।"

समाजशास्री दृष्टिकोण से ऐसा कोई भी कार्य जो सामाजिक हित के विपरीत है अपराध के अन्तरगत आता है। कोई भी यदि समाज के विपरीत हो और कानून उसे अपराध न माने तो भी समाज शास्त्रीय दृष्टि से वह अपराध है।

"सदरलैण्ड" ने उचित ही कहा है कि अपराधी कानून को समाप्त कर देने से अपराधों के नाम और उनके करने पर दण्ड अवश्य ही बदल जाएगें परन्तु ऐसे कार्यों के विरूद्ध सामाजिक प्रतिक्रिया वास्तव में अपरिवर्तित ही रहेगी क्यों कि ऐसे कार्यों के द्वारा सामाजिक हितों को उतनी ही हानि पहुँचने की सम्भाधवना होगी। दूसरे शब्दों में सामाजिक जीवन में सदैव ही ऐसे कुछ व्यवहार होंगे जिन्हें करने की स्वीकृति समाज अपने किसी भी सदस्य को न देगा और अपने अस्तित्व के लिए हानिकारक समझेगा और इस कारण ऐसे कार्यों को करने वाले को दण्ड देने की व्यवस्था भी अपने ढंग से करेगा। निम्नलिखित परिभाषा से ये बात और भी स्पष्ट हो जाएगी।

"अपराध उन प्रचलित रीतियों को तोडना है जो दण्ड की अभिमति के अभ्यास को जन्म देती है" ब्राउन

"जब किसी व्यक्ति का आचरण असामाजिक ठहराया जाता है, तो उसका आचरण उस अन्य आचरण से, जो उस समूह के द्वारा उस स्थिति में निश्चित होता है, भिन्न होता है" इलियट तथा मैरिल

अपराध के कारण

अपराध के विषय में पहले जो धारणाएँ प्रचलति रही हो परन्तु अब सामान्य रूप से विद्वानोंका यह निष्कर्ष हुआ कि अपराध के लिए कोई एक विशेष कारण उत्तरदायी नहीं है। इसमें अनेक कारण सन्निहित हैं जैसे पर्यावरण, आर्थिक स्थिति, बेरोजगारी आदि।
अब यह मान्य हो गया है कि अपराधी जन्मजात नहीं होते हैं। आधुनकि विचारधारा के अनुसार अपराधी भी एक प्रकार का रोगी है और उसका भलिभांति उपचार किया जाय तो वो भी समाज में समायोजित होने के लायक हो सकता है।

भारत में अपराध के कारण
मुख्यत -: दो कारणों में बाँटा जा सकता है इन्हें -
  1. सामान्य - कारण
  2. विशिष्ट - कारण

सामान्य कारणों के अर्न्तगत दो कारण आते है जो सामान्यत हर एक देश में एक ही प्रकार के होते है जो कि निम्नलिखित हो सकते है-

सामान्य कारण
  1. सांस्कृतिक कारण
  2. शारीरिक कारण
  3. मानसिक कारण
  4. आर्थिक कारण
  5. सामाजिक कारण
  6. पारिवारिक कारण
  7. विविध कारण
  8. राजनैतिक कारण
  9. भौगोलिक कारण
  10. मनोरंजन के साधनों का प्रभाव

1 सांस्कृतिक कारण
प्राय एक संस्कृति के पालनहार दूसरी संस्कृति के रहन सहन के तरीके तथा विचारों का स्वयं सरीखा नहीं मानते उसे अपराध स्वपरूप ले बैठते हैं।
इसके अर्न्तगत 'धर्म' तथा 'सामाजिक प्रथा' आती है।

2 शारीरिक कारण
वशांनुक्रमण स्वेलोम्ब्रों, गैटोफैली, फैटी आदि प्रास्पवादी संप्रदाय (Typological School) को मानने वाले अपराधियों का मत है कि अपराधी जन्मो से ही ये गुण प्रवृत्ति लेके पैदा होता है। फिर शारीरिक बनावट भी इसके लिए कभी-कभी जिम्मेदार मानी जाती है, कहते है कि अपराधयिों की शक्ल सूरत कुछ विशेष प्रकार की होती है और उन्हे दूर से ही पहचाना जा सकता है परन्तु ये सिर्फ आक्रामक अपराधी ही हो सकते हैं।

3 मानसिक कारण
इसके अर्न्तगत कुछ विशेष प्रकार आते है जो निम्न है -:
मानसिक दुर्बलता तथा दोष ( बौद्धिक क्षमता कम होने से सही गलत का ज्ञान ना होने से अपराध हो जाते है।
चरितहीनता - यह एक आम बात है, हरेक समाज में ऐसे लोग पाए जाते हैं।
उद्वेगीय अस्थिरता तथा संघर्ष- इस तरह से व्यक्तियों के मानसिक संघर्ष के कारण भावना ग्रन्थियाँ निर्मित होना अपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ाती हैं।
मानसिक बिमारियों इस स्थिति में विचार शक्ति का क्षीण होना इसका कारण है।

4 आर्थिक कारण
निर्धनता एक बहुत बड़ा कारण है अपराध का क्योंकि आर्थिक स्थिति से जूझते व्यक्ति की जरूरतों का पूरा न हो पाने पर यह स्थिति आ जाती है। धन का लालच भी ये अपराध कराता है खासकर श्वेत वसन अपराधी इसी तरह के होते है। कुछ लोग बिना परिश्रम के ही धन की लालसा करते हैं तो भी वो अपराध की ओर उन्मुख हो जाते हैं। डॉ. हैकरवाल ने ठीक ही लिखा है "क्षुधा और भूखमरी" उन्हे अपराध के सरल और कुटिल मार्ग पर चलने को प्रोत्साहित करती है।

5 सामाजिक कारण
सामान्य तौर पर सामाजिक धाराओ और मूल्यो मे संघर्ष होता है तो वह आपराधिक प्रवृत्ति का उन्म हो जाता है आधुनिक समाज मे मानव धन को अधिक महत्व देने लगा है और वो धन प्राप्ति हेतु हर प्रकार के प्रयास करता है और यह सोच समझ खो बैठता है कि वो सही है या गलत है इसी सम्बन्ध में सदरलैंण्ड का कहना है "अपराध अधिकांशतया सरलता से धन प्राप्त करने की इच्छा की उसी प्रकार की काल्पनिक अभिव्यक्ति है।"

6. पारिवारिक कारण
बाल्यकाल से ही घर मे माहौल का व्यक्ति का सर्वाधिक प्रभाव रहता है और नित्य प्रतिदिन जो वो अपने जीवन मे देखता सुनता है वही आत्मसात कर लेता है यदि व्यक्ति आपराधिक प्रवृत्ति का हो जाता है तो उसमे परिवार का भी बहुत बडा ( हिस्सा ) भूमिका है जैसे यदि परिवार टूटा हुआ है, विखरा हुआ है माता पिता का अभाव, या दुव्यवहार का शिकार है आदि तो भी इसका प्रभाव व्यक्ति के चरित्र तथा व्यक्तित्व पर पड़ता है।

7. राजनैतिक कारण
राजनैतिक भ्रष्टाचारों जैसे सत्ताधारी लोगो का अपना स्वार्थ पूरा करना, कानूनों में परिवर्तन करना, अपराध करने वालों की सहायता करना आदि विभिन्न प्रकार के अपराध होते हैं। जैसे "दलबन्दी " गटबाजी आदि। इसके अलावा यदि पुलिस विभाग में ही अनैतिकता हो तो कई तरह के अपराध आराम से फलते फूलते हैं। समाज में चूंकि अपराधियों को पता है कि कोई उन्हें रोकने टोकने के लिए है ही नही और वो बिन्दास अपराध करते हैं।

8. भौगोलिक कारण
भौगोलिक सम्प्रदाय के समर्थक अपराध शास्त्रियों का विचार है कि अपराध, आधारित होता है।जलवायु तथा मौसम ,भौगोलिक स्थिति उनका विचार है कि गर्म देशों में शरीर के विरूद्ध और ठण्डे देशों में सम्पत्ति के विरूद्ध अपराध होते हैं । "लेकेसन" नामक अपराधशास्त्री ने क्रिमिनल कैलेण्डर criminal colander के अनुसार जनवरी, फरवरी, मार्च और अप्रैल में शिशु हत्या, जुलाई में मानव हत्या तथा घातक आक्रमण, जनवरी व अक्टूबर में पितृ हत्या, मई, जुलाई, अगस्त में बच्चों के प्रति बलात्कार दिसम्बर में व फरवरी में सम्पत्ति के लिए सर्वाधिक अपराध होते हैं।

9. मनोरंजन के साधनों का प्रभाव
इस वर्ग में लिखित धाराएँ आती है -:
  • समाचार पत्र - रोचक भाषा सभी को अपनी ओर खींचती है।
  • चलचित्र (सिनेमा) - नए-नए तरीकों का आभास होता है, उसे अपनाना या अभ्यास करने का जूनून अपराध करवाता है।
  • उपन्यास - जासूसी कहानियां पढ़ पढ कर लोगों का दिमाग उलझ जाता है।
  • रेडियो तथा टेलीफोन - इनका प्रयोग भी कई बार अपराधिक कार्यों हेतु किया जाता है।
  • क्लब तथा होटल - आधुनिक विश्व में पाशविक पवत्तियों को संतुष्ट करने के लिए क्लबों तथा होटलों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। प्राय: श्वेतधारी अपराधी इन्हीं क्लबों और होटलों की सहायता से अपराध करते हैं।

विविध कारण
कई और तरह के अपराध भी विभिन्न कारणों से समाज में होते रहते है।

अपराध के विशिष्ट कारण

भारत देश में सामाजिक प्रथाओं के नाम पर कई जगह कुप्रथाओं का जाल बिछा हुआ है और इसी कारण अपराधों को बढ़ावा मिलता है। जिसमें से कुछ निम्न हैं :-
  • दहेज प्रथा - ना केवल हिन्दू समाज में बल्कि पूर्ण राष्ट्र में यह प्रथा व्याप्त है। कई बार धनाभाव के कारण मॉ-बाप अपनी कन्या किसी भी नालायक अथवा चरित्रहीन या अधेड व्यक्ति को सौंप देते हैं और इससे समाज में अव्यवस्था व्याप्त होती है।
  • विधवा पुर्नविवाह निषेध प्रथा - हिन्दुओं में इस कारण भी उनका जीवन अति दुखमय, तिरस्कारपूर्ण, अमानुषिक, आर्थिक रूप से कमजोर हो जाता है, और यही एक कारण है कि फिर लडकियां घर से भाग जाती है अथवा अनुचित यौन संबंध रखना, वैश्यावत्ति, गर्भपात, अवैध संतान को जन्म देना आदि प्रकार के अपराधों का जन्म होता है।
  • बाल विवाह प्रथा - कई बार अपने पिता के उम्र के व्यक्ति से विवाह हो जाना भी कई अनैतिक व्यवहारों को जन्म देता है।
  • आर्थिक कारण - यह एक बहुत ही आम कारण है। जरूरतें बढ जाने पर अन्दाज ही नही रहता, कि क्या सही है और क्या नही? और इंसान अपराधी बन जाता है।
  • औद्योगीकरण/नगरीकरण - यह भी एक स्थान परिवर्तन होने के कारण मुख्य कारण के रूप में उभर गया। पलायन होने से स्थायीत्व ना होना इसका कारण बना।
  • धार्मिक कारण, अन्धविश्वास, जादू तथा सांप्रदायिकता - हमारे देश में अपराध के उत्तरदायी धर्म अंधविश्वास, जादू भी हैं। इस देश के कुछ प्रदेश जैसे आन्ध्रा तथा मैसूर में मानमती नामक काला जादू बहुत प्रसिद्ध है जो कि अनेक नृशंस अपराध के लिए उत्तरदायी है।

अपराध निरोध के उपचार

कुछ समाजशास्त्रियों का विचार है कि यदि अपराधियों का बंध्याकरण (STRILIZATION) कर देना चाहिए ताकि आने वाली पीढी अपराधी ना बन के आए, और इसका कारण वो वंशानुगत मानते हैं।
वैसे निम्न उपाय करके अपराधों में कुछ कमी तो की ही जा सकती है :-
  • शिक्षा का प्रसार - इसमें भौतिक तथा धार्मिक का स्थान मुख्य होना चाहिए, ताकि व्यक्ति अपने क़त्यों के जाल से बाहर आए तथा दिमाग से सही गलत का फैसला ले सके।
  • बुरी सामाजिक कुरितियों का निवारण - जिन रीतियों से समाज में बुराइयों को बढावा मिलता है, उन्हें कुछ सख्त कानून बना कर दूर करना चाहिए।
  • सस्ते मनोरंजन के साधनों की उपलब्धता - इस एक उपाय से लोगों को व्यस्त रखा जा सकता है, और लोगों का समय भी सस्ते मनोरंजन के साधनों में रच बस जाने से दिमागी खरापात कम होगी, जिससे अपराधों में कमी आयेगी।
  • पूर्ण नशा निषेध - ज्यादातर अपराध नशे की हालत में ही होते हैं। अतएव संपूर्ण रूप से नशाबंदी होना भी एक कारगर उपाय साबित हो सकता है। (सार्वजनिक रूप से)
  • भ्रष्टाचार का उन्मूलन - मंत्रीगणों, अधिकारियों, उद्योगपतियों, व्यापारियों में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना जरूरी है।
  • आर्थिक उनन्ति - हरेक प्रदेश की मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करना, प्रादेशिक उनन्ति ही इसका निवारण कर सकती है।

सफेदपोश या अभिजात अपराध

प्रत्येक समाज में ऐसे लोग पाए जाते हैं जो बडे साधन संपन्न, धनी, प्रतिष्ठित तथा उंचे पदों पर आसीन होते हैं और ऐसे कार्यो में संलग्न होते हैं, जिन्हें कानून अपनाध की परिभाषा देता है , परन्तु इन सभी की अपनी पहुँच तथा शक्ति के कारण अपराधों का पता नही चल पाता अथवा पता चल कर के भी वो कानून की गिरफत से बच जाते हैं। और इसी वर्ग को हम श्वतेवसन, सफेदपोश अपराधी कहकर पुकारते हैं । सर्वप्रथम "सदरलैण्ड" ने ही "श्वेतवसन अपराध" शब्द का प्रयोग किया था।
1939 में "सदरलैण्ड" ने "White Collar Criminality" नामक लेख में अपराधियों की दो श्रेणियां बताई -
  1. प्रथम- निम्न वर्ग के अपराधी
  2. द्वितीय - अभिजात अपराधी

निम्नवर्गीय वो है जो आर्थिक रूप से कमजोर तथा गैर कानूनी कार्य कर के पकडे जाने पर सजा काटते हैं तथा अभिजात वर्गीय वो है जो उच्च प्रतिष्ठा वाले होते हैं, धनी होते हैं और वो कानून का उल्लघंन करके भी धन के जोर से बच जाते हैं और स्वार्थसिद्धि हेतु सरकार के उददेश्यों को विक़त कर देते हैं।

इनकी परिभाषा के रूप में हम कह सकते है :-
  • "अभिजात अपराध एक ऐसा अपराध है जिसे कि सुप्रतिष्ठित एवं उच्च सामाजिक पद वाला एक व्यक्ति अपने पेशे के दौरान करता है।" सदरलैण्ड
  • "श्वेतवसन अपराध प्राथमिक रूप से उस कानून का उल्लघंन है जो व्यवसायी पेशेवर लोग और राजनीतिज्ञों आदि जैसे समूहों द्वारा अपनी व्यवसाय के सम्बन्ध में किया जाता है।" क्लिनार्ड

श्वेतवसन अपराध के लक्षण
  • उच्च सामाजिक वर्ग का सदस्य होना।
  • कानून भंग करने पर भी उनकी प्रतिष्ठा कम न होना
  • अपने अनुकूल कानूनों के निर्माण पर प्रभाव डालना
  • श्वेतवसन अपराध भी अन्य अपराधों की तरह समाज विरोधी या कानून विरोधी व्यवहार है तथा दण्डनीय है।
  • सदरलैण्ड के अनुसार "श्वेतवसन अपराध विश्वासघात पर आधारित है तथा इनकी प्रक़ति आर्थिक होती है।"
  • अदालतों तथा न्यायाधीशों को पैसे के बल पर अपने अनुसार ढाल लेना
  • एक विघटित समाजी नही बल्कि सामान्य आधारभूत मूल्यों वाला समाज तथा विविध मूल्यों "उपसमूह" (Sub-group) अभिजात अपराध को जन्म देते हैं।

अभिजात अपराध के स्वरूप
  • व्यवसाय में धोखेबाजी।
  • रिश्वतखोरी
  • विज्ञापनों द्वारा भ्रम पैदा कर मुनाफा कमाना
  • पूंजी का गबन व जालसाजी
  • नाप तोल में धोखेबाजी
  • वस्तुओं को श्रेणीबद्ध करने में बेईमानी
  • दिवालिया होने की घटनाओं में पंजी का गलत प्रयोग

श्वेतवसन अपराध के कारण
  1. लोगो में लापरवाही :- जैसे- खरीददारी के वक्त चौकन्ना ना होना
  2. व्यापारिक विज्ञापन :- जैसे- छोटे-छोटे अक्षरों में नियम कानून बनाकर छपवाना ताकि कोई भी पढे बिना ही कागजों पर हस्ताक्षर कर दे व ठगा जाय।
  3. कानून की अनभिज्ञता :- बार-बार परिवर्तन आते रहने से लोगों के बीच जागरूकता आएगी और लोग शिक्षित होने पर अपने अधिकार जानेगें पर ये होता नही और वही घिसा पिटा कानून, स्थितियों के बदलने के बावजूद नही बदलता तो ऐसी स्थिति में अपराध होते हैं बढते हैं
  4. बडे व्यापारिक निगम :- औद्योगीकरण के जमाने में निगमों की स्थापना (Corporation) बन रहे हैं तथा लोग उनके अधिकारियों को नही जानते या पहचानते हैं तो ठगी का काम आसान हो जाता है। पहले छोटे स्तर पर सभी व्यापारी एक-दसरे को व्यक्तिगत रूप से जानते थे तो अपराध की प्रवत्ति भी नही होती थी।
  5. व्यापार सम्बन्धी नैतिकता :- नैतिकता के स्तर में गिरावट भी इसकी वजह है।
  6. उच्च अधिकारियों, मंत्रियों की मिली भगत भी इसे जन्म देती है।
  7. धन का बढता हुआ महत्व भी इसका मुख्य आधार है।

भारत में अभिजात अपराध करने वाले कुछ प्रमुख वर्ग
  • उद्योगपति वर्ग
  • प्रतिष्ठित व्यापारी वर्ग
  • प्रबन्धक वर्ग
  • ठेकेदार वर्ग
  • वकील तथा डॉक्टर वर्ग
  • सरकारी अधिकारी वर्ग
और इन सबका परिणाम आर्थिक तथा नैतिक हानि ही होती है।

अपराधियों का सुधार

कुछ व्यवसायिक अपराधों को छोड़ दिया जाय तो बाकी सभी अपराधों के पीछे व्यक्ति की विवशता अथवा मानसिक दुर्बलता छिपी हुयी होती है । इसीलिए यदि अपराधी की परिस्थितियों में यदि सुधार लाया जाय तो, उसके जीवन यापन को सुगम बनाया जाय तो अपराधी के व्यवहार में परिवर्तन आएगा और समाज का उसके प्रति दृष्टिकोण भी बदला जा सकेगा।
अपराध सुधार को व्यवहारिक रूप देने के लिए अनेक प्रकार की व्यवस्थाओं की ओर ध्यान देना आवश्यक है , और इस पूर्ण प्रक्रिया में न्यायालय, पुलिस सुधार संस्थाएं, कारागार आदि का स्थान अत्यधिक महत्वूपर्ण है।

न्यायालय तथा पुलिस
अपराध नियंत्रण में न्यायालय तथा पुलिस का विशेष योग होता है। अपराधी को बंदी बनाना इसमें प्रथम चरण है। अपराधी को गिरफतारी द्वारा समाज से पृथक कर दिया जाता है और न्यायिक क्रिया से गुजारा जाता है। इस प्रक्रिया में वादी, प्रतिवादी, वकील, न्यायिक सलाहकार सभी आते हैं, और अपराध सिद्ध होने पर सजा का प्रावधान है।

परिवीक्षा
परिवीक्षा अपराधी अधिनियम 1958 के अंर्तगत 21 वर्ष से कम आयु के युवा अपराधियों पर एक परिवीक्षा अधिकारी ही रिपोर्ट बनाता है। अन्यथा परिवीक्षा में अपराधी को निम्न बातों पर अमल करना अनिवार्य होता है :-
  • परिवीक्षा पर छूटा अपराधी अपने आचरण को ठीक करेगा।
  • अपना संग साथ सुधारेगा
  • नशा/मादक द्रव्य का सेवना नही करेगा।
  • इस अवधि में ना शादी करेगा और ना ही तलाक देगा
  • अनावश्यक ऋण नही लेगा
  • बिना अनुमति के एक स्थान को छोडकर दूसरी जगह नही जाएगा

पेरोल
परिवीक्षा की भांति ही पेरोल भी एक सुधारात्मक प्रक्रिया है, परन्तु अन्तर सिर्फ इतना है कि इसमें दण्ड का भी समावेश होता है। कुछ समय अपराधी को कारागार में व्यतीत करना पड़ता है और शेष समय समाज में स्वतंत्र वातावरण में।
निम्न शर्तो पर पेरोल की प्रक्रिया संपूर्ण होती है-
  • बिना सूचना अपराधी एक स्थान से हिल नही सकता।
  • जुआ आदि पर बाध्यता
  • नशा व मादक द्रव्य सेवन निषेध ।
  • रोजगार नही छोडना तथा ना ही बदलना
  • ना शादी ना तलाक
  • भीख नही मांग सकता
  • आचरण सुधार कर परिवार के प्रति सम्मानित व्यवहार करना आदि।

बाल न्यायालय
इसका मुख्य उददेश्य बाल अपराधियों को सजा ना देकर उन्हें सुधारना होता है। परिवीक्षा अधिकारी बाल-अपराधी के चरित्र, पूर्वकार्य, सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक स्थिति के विषय में जांच पडताल कर अपना प्रतिवेदन (Report) और संतुष्टि बाल-न्यायालय में प्रस्तुत करता है। प्रमुखत: 1 से 14 वर्ष की उम्र तक के अपराधी इसके अर्न्तगत आते हैं।

नजरबंदी गृह
कई अपराधियों को, अन्यों पर और बुरा प्रभाव ना पडे इसलिए अलग-अलग बंदीगृह में रखा जाता है और सुधार का मौका दिया जाता है।

कारागार सुधार
कारागार सुधार के अन्तर्गत वे सभी बातें आ जाती हैं जो कारागार के स्वरूप, कैदियों की स्थिति, पर्यावरण, कारागार अधिकारियों के व्यवहार तथा कारागार के नियमों से संबंधित है। पहले कारागार में काम करा के सिर्फ बन्दी बनाकर कैदियों को रखते थे, परन्तु अब काम शिविर, शिक्षण, प्रशिक्षण का कार्यक्रम भी चलाया जाता है, जिससे कि वो बंदी रहकर भी कुछ पैसे कमा कर के तथा अपने गुजरते वक्त का सदुपयोग कर सकें। कारागारों में निम्नलिखित सुविधाएं उपलब्ध हैं :
  • परिवार से मिलने की सुविधा।
  • शिक्षण प्रशिक्षण (vocational training) की सुविधा
  • भोजन व्यवस्था में सुधार ।
  • कैदियों की चिकित्सा व्यवस्था में सुधार
  • अपराधों की प्रकृति के आधार स्वरूप अलग श्रेणियों में रखे जाने की सुविधा
  • स्वस्थ तथा बिमारों को अलग रखना
  • मनोरंजनात्मक (Recreational) सुविधाओं का प्रसार/वृद्धि ।
इन सभी के स्वरूप में लगातार विस्तार तथा सुधार हो रहा है और उम्मीद है आगे हालात और बेहतर होते जाएंगें।

सारांश

अतएव हम कह सकते हैं कि अपराध मानव व्यवहार का एक बिगडा हुआ स्वरूप है और सामाजिक मूल्यों के विरूद्ध जाने वाला व्यवहार है। हर समाज में अपराध तथा अपराधी पाये जाते हैं चाहे वों शिक्षित हैं या अशिक्षित, आधुनिक या आदिम । इसके कारण भी विभिन्न परिस्थितियों पर आधारित होते हैं। उन अपराधियों का स्वरूप, अपराध का विभत्स स्वरूप तथा उसका उन्मूलन या सुधार आदि सभी प्रकार की प्रक्रियाएं समाज में है और किस प्रकार फलीभूत हो रही है, इस अध्याय को पढाकर आप जान पाएगें।

पारिभाषिक शब्दावली
  • अपराध (Crime) - समाज द्वारा बाधित, आचार संहिता के विरूद्ध किया गया व्यवहार
  • श्वेतवसन अपराध (White Collar Crime) - कुलीन वर्ग द्वारा किया गया कुकर्म तथा समाज के प्रति अन्यायिक कार्य करना।

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