कोशिका द्रव्य - कोशिका द्रव्य किसे कहते हैं? | cytoplasm in hindi

कोशिका द्रव्य (Cytoplasm in hindi)

कोशिका में कोशिका कला तथा केन्द्रक के मध्य उपस्थित पदार्थ को कोशिकाद्रव्य कहते हैं। कोशिकाद्रव्य में तरल पदार्थ में कई सजीव संरचनाएँ (कोशिकांग) तथा निर्जीव संरचनाएँ पायी जाती हैं। तरल पदार्थ में जल, ग्लाइकोजन, वसा व अन्य पदार्थ पाये जाते हैं।
कोशिका द्रव्य प्रत्येक कोशिका में होता है, ये पूर्ण रूप से कोशिका झिल्ली के भीतर और केन्द्रक झिल्ली के बाहर मौजूद होता है, इस छूने में रवेदार, जेलीनुमा, अर्धतरल पदार्थ होता है, ये स्वेत पारदर्शी और चिपचिपा पदार्थ होता है कोशिका द्रव्य कोशिका के 70% भाग की रचना में मुख्य रोल निभाता है. यदि इसकी रचना की बात की जाये तो इसकी रचना जल एवं कार्बनिक तथा अकार्बनिक ठोस पदार्थों द्वारा हुई होती है. कोशिका द्रव्य में अनेक रचनाएँ पायी जाती हैं और प्रकाश सूक्ष्मदर्शी द्वारा सभी कोशिकांगों को स्पष्ट रूप से नहीं देखा जा सकता है. इन्हे देखने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी जैसे सूक्ष्मदर्शी की जरूरत होती है
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जीव द्रव्य बनाम कोशिका द्रव्य
एक समय पर माना जाता था कि कोशिका में जीवन के गुण उसमें भरे तरल पदार्थ में निहित हैं। तब इसे प्रोटोप्लाज़्म (जीवद्रव्य) कहा गया। जब धीरे-धीरे स्पष्ट हुआ कि यह तरल पदार्थ तो मात्र एक माध्यम है जिसमें कई तरह के कण और रेशे बिखरे हुए हैं और कोशिका की क्रियाएँ इन उपांगों में सम्पन्न होती हैं तो समझ में आया कि जीवन के गुण इस पूरी व्यवस्था में हैं। खास तौर से केन्द्रक की खोज होने पर केन्द्रक के अन्दर का द्रव्य और बाहर का द्रव्य अलग-अलग पहचाने गए। तब जीवद्रव्य का पुनः नामकरण किया गया - सायटोप्लाज्म यानी कोशिका द्रव्य। केन्द्रक के अन्दर भरे पदार्थ को केन्द्रक द्रव्य या न्यूक्लियोप्लाज़्म कहा जाने लगा।

कोशिका में पाये जाने वाले कोशिकांग निम्न हैं-

माइटोकॉन्ड्रिया

माइटोकॉन्ड्रिया केवल यूकेरियोटिक कोशिकाओं में पाये जाते हैं तथा प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में नहीं पाये जाते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका के लिये आवश्यक शक्ति (ऊर्जा) उत्पन्न करने का कार्य करता है इसलिये इसे कोशिका का शक्ति गृह (Power house) भी कहा जाता है। एक ही जीव की विभिन्न कोशिकाओं में इनकी संख्या अलग-अलग होती है, जिन कोशिकाओं को ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है, उनमें माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या अधिक होती है। माइटकॉन्ड्रिया की खोज कोलीकर नामक वैज्ञानिक ने 1880 में की थी। इसे माइटोकॉन्ड्रिया नाम बेन्दा ने दिया।
माइटोकॉन्ड्रिया दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग हैं। बाह्य झिल्ली चिकनी व समतल होती है तथा आन्तरिक झिल्ली में इसकी गुहा की ओर अंगुली के समान वलन निकले रहते हैं। इन वलनों को क्रिस्टी कहते हैं। क्रिस्टी की सतह पर असंख्य सवृन्त कण लगे होते हैं। इन कणों को ऑक्सीसोम कहते हैं। क्रिस्टी के मध्य भाग को आधात्री या मेट्रिक्स (Matrix) कहते हैं।
मेट्रिक्स में 65-70 % प्रोटीन, 25 % फास्फोलिपिड तथा 0.5 % RNA पाया जाता है। इसके अतिरिक्त माइटोकॉन्ड्रिया में DNA व राइबोसोम भी होते है। माइटोकॉन्ड्रिया मे पाये जाने वाले एन्जाइम श्वसन में खाद्य पदार्थों का आक्सीकरण करते हैं।

लवक

लवक पादप कोशिकाओं में पाये जाते है। लवकों में विभिन्न प्रकार के वर्णक मिलने के कारण भिन्न-भिन्न रंग के दिखाई पड़ते हैं। विभिन्न प्रकार के वर्णकों की उपस्थिति के आधार पर लवक कई प्रकार के होते हैं, जैसे हरितलवक, वर्णीलवक व अवर्णीलवक। हरितलवक कोशिका का वह कोशिकांग है जहाँ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण होता है।
हरितलवक (Chloroplast) दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग हैं, इन झिल्लियों को क्रमशः बाह्यझिल्ली व अन्तः झिल्ली कहते हैं। अन्तः झिल्ली से घिरे हुए भीतर के स्थान को पीठिका या स्ट्रोमा (Stroma) कहते हैं। स्ट्रोमा में एक जटिल झिल्ली तंत्र होता है, जिसे थाइलेकोइड (Thylakoids) कहते हैं | थाइलेकोइड दो प्रकार से विन्यासित रहते है। तस्तरी समान थाइलेकोइड सिक्कों के चट्टे के रूप में व्यवस्थित रहते हैं, जिन्हें ग्रेना (grana) कहते हैं, तथा दो ग्रेना को जोडने वाली थाइलेकोइड इन्टर ग्रेनम (Inter granum) कहलाती है।
थाइलेकोइड की झिल्ली व पीठिका (Stroma) में प्रकाश संश्लेषण से सम्बन्धित एन्जाइम पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त स्ट्रोमा में DNA व राइबोसोम भी पाये जाते हैं।

लाइसोसोम

लाइसोसोम की खोज डी. ड्यूवे ने की थी। लाइसोसोम एकल झिल्ली युक्त, थैलीनुमा कोशिकांग हैं। इसमें कणीय द्रव्य भरा होता है, जिसमें कई जल अपघटनी एन्जाइम पाये जाते हैं, जो शर्करा, वसा, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल का अपघटन कर सरल अणुओं में तोड़ देते हैं। लाइसोसोम क्षतिग्रस्त व मृत कोशिकांगों व कोशिकाओं के अपघटन का कार्य करते हैं। लाइसोसोम की झिल्ली के फटने पर एन्जाइम उस कोशिका का पाचन कर देते हैं, जिसमें लाइसोसोम स्थित था, इस कारण इन्हें आत्मघाती थैलियाँ (Suicidal bags) भी कहा जाता है।

अंतर्द्रव्यी जालिका

कोशिका के केन्द्रक तथा कोशिका कला के मध्य सूक्ष्मनलिकाओं की जालिका को अन्तर्द्रव्यी जालिका कहते हैं। इसकी भित्ति एक झिल्ली की होती है। अन्तर्द्रव्यी जालिका दो प्रकार की होती हैं। खुरदरी अन्तर्द्रव्यी जालिका की सतह पर राइबोसोम पाये जाते है, तथा यह प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं। चिकनी अन्तर्द्रव्यी जालिका की सतह पर राइबोसोम का अभाव होता हैं तथा यह वसा व लिपिड अणुओं के संश्लेषण का कार्य करती है।
अन्तर्द्रव्यी जालिका कोशिकाद्रव्य के विभिन्न क्षेत्रों तथा कोशिका द्रव्य व केन्द्रक के मध्य पदार्थों के परिवहन का कार्य करती है. इसके अतिरिक्त यह गॉल्जीकाय का निर्माण करती है।

राइबोसोम

इसकी खोज क्लाड ने की थी तथा पैलेड ने इनको राइबोसोम का नाम दिया। राइबोसोम कोशिकाद्रव्य में स्वतन्त्र रूप में तथा खुरदरी अन्तर्द्रव्यी जालिका पर दाने के रूप में पाये जाते हैं। राइबोसोम के चारों ओर झिल्ली नहीं पायी जाती है। ये RNA व प्रोटीन के बने होते हैं। यूकेरियोटिक कोशिकाओं मे 80S तथा प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में 70S प्रकार के राइबोसोम पाये जाते हैं। राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं।

गॉल्जीकाय

इसकी खोज केमिलो गॉल्जी (Camilo Golgi, 1898) द्वारा की गई थी। यह कोशिका के केन्द्रक के पास चपटी नलिकाओं के रूप में पायी जाती है। गाल्जीकाय में आशय, रिक्तिकायें व कुण्डिकायें तीन प्रकार की संरचनाएँ पायी जाती है। यह कोशिका मे शर्करा, प्रोटीन व पेक्टिन के संश्लेषण व स्रवण का कार्य करती हैं।

तारककाय

यह मुख्य रूप से जन्तु कोशिकाओं में केन्द्रक के निकट तारे समान आकृति में पायी जाती है। प्रत्येक तारककाय में दो तारककेन्द्र (Centrioles) होते है, तथा दोनों तारककेन्द्र एक-दूसरे के लम्बवत रहते हैं। तारककाय की खोज वॉन बेन्डेन ने की थी।
तारककाय जन्तु कोशिकाओं में कोशिका विभाजन के समय तर्कु तन्तुओं का निर्माण करती है। यह शुक्राणु की पूँछ का निर्माण करती है। तथा सूक्ष्म जीवों में पाये जाने वाले गमन अंगों जैसे कशाभिका (Flagella) व पक्ष्माभ (Cilia) का आधार बिन्दू बनाती है।

रिक्तिका

कोशिका के कोशिकाद्रव्य में सूक्ष्म अथवा बड़ी बुलबुले समान संरचनाएँ रिक्तिकायें कहलाती हैं। रिक्तिका एक झिल्ली द्वारा आवृत होती है, जिसे टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं। रिक्तिका में उपस्थित द्रव को कोशिका रस (Cell sap) कहते हैं। कोशिका रस में जल, उत्सर्जी पदार्थ व अन्य अनुपयोगी उत्पाद पाये जाते हैं। रिक्तिका कोशिका को स्फीत (Turgid) बनाये रखती है तथा जल व अन्य अनुपयोगी पदार्थों का संग्रह करती है। पादप कोशिका में रिक्तिका बड़ी होती है।
उपरोक्त कोशिकागों के अतिरिक्त कोशिका में सूक्ष्मकाय (Microbodies), परआक्सीसोम (Peroxysomes) भी पाये जाते हैं।

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