उत्तरी भारत का विशाल मैदान
स्थिति एवं विस्तार (उच्चावच या धरातलीयस्वरूप)
यह विशाल मैदान एक नवीनतम भू-खण्ड है, जो हिमालय पर्वत की उत्पत्ति के बाद निर्मित हुआ है। इस मैदान का निर्माण उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसाद के जमाव से हुआ है। सिन्धु की सहायक सतलज, झेलम, रावी, चिनाब एवं व्यास; गंगा व उसकी सहायक तथा ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसाद के जमा होते रहने से इस मैदान के निर्माण में विशेष योगदान मिला है। इसे 'जलोढ़ मैदान' के नाम से भी पुकारते हैं। इन नदियों द्वारा जमा किए गए निक्षेप काफी गहरे हैं जिनकी मोटाई के विषय में निश्चित मत नहीं हैं, परन्तु कुछ प्रयोगों के आधार पर इसकी औसत मोटाई 1,300 से 1,400 मीटर अनुमानित की गई है। यह विशाल मैदान विश्व का सबसे उपजाऊ एवं सघन जनसंख्या रखने वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में भारत की लगभग 45% जनसंख्या निवास करती है। इसका क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किमी है। इस मैदान की लम्बाई पूर्व से पश्चिम तक 2,414 किमी है, परन्तु चौड़ाई पूर्व से पश्चिम की ओर कम होती चली गई है। पश्चिम की ओर इसकी चौड़ाई 480 किमी है, जबकि पूर्व में यह चौड़ाई घटकर केवल 145 किमी रह गई है। इसका ढाल बहुत धीमा है।
इसका अधिकांश भाग समुद्र तल से 150 मीटर से अधिक ऊँचा नहीं है। यह मैदान उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा असम राज्यों में फैला हुआ है। पश्चिम की ओर यह राजस्थान में थार के मरुस्थल से मिल गया है। नदियाँ प्रतिवर्ष इस मैदान में उपजाऊ काँप मिट्टियाँ लाकर बिछाती रहती हैं। अत: इस मैदान में नदियों की निक्षेपण क्रिया आज भी निरन्तर चल रही है।
जल प्रवाह
उत्तरी मैदान को निम्नलिखित दो नदी-तन्त्रों में विभाजित किया जाता है-
- पश्चिम में सिन्धु तन्त्र
- पूर्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र तन्त्र।
सिन्धु नदी तिब्बत के पठार से निकलकर लगभग 2,880 किमी की दूरी तक बहती हुई, अरब सागर में मिल जाती है। भारत में यह नदी मात्र 709 किमी की दूरी तय करती है। इसकी मुख्य सहायक नदियाँ सतलज, व्यास, झेलम, चिनाब तथा रावी हैं। भारत-विभाजन के फलस्वरूप सिन्धु नदी तन्त्र के मुख्य भाग पाकिस्तान में चले गए। सिन्धु नदी की सहायक नदियों में सतलज नदी, भारत में सबसे अधिक जल प्रदान करती है।
सतलज नदी कैलास पर्वत से निकलकर लगभग 1,440 किमी की दूरी में प्रवाहित होती हुई, सिन्धु नदी में मिल जाती है। झेलम: कश्मीर राज्य की प्रमुख नदी है। पर्वतीय प्रदेश से मैदान की ओर मुड़ने पर इसका जल-प्रवाह धीमा हो जाता है। कश्मीर की प्रसिद्ध हरी-भरी सुखद घाटी, झेलम नदी के मोड़ के निकट स्थित है। नदियों ने इस मैदान को बहुत ही उपजाऊ बना दिया है। इस भाग में नहरी सिंचाई का सघन जाल पाया जाता है।
इस विशाल नदी-तन्त्र को निम्नलिखित उप-तन्त्रों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) गंगा नदी तन्त्र
गंगा भारत की प्रसिद्ध एवं धार्मिक महत्त्व वाली नदी है जो हिमालय की गंगोत्री या गोमुख हिमानी से निकलती है। हरिद्वार से गंगा नदी की मैदानी यात्रा आरम्भ होती है तथा इसकी गति भी धीमी पड़ जाती है। मैदानी भाग में इसकी चौड़ाई अधिक है। प्रयाग (इलाहाबाद) में यमुना व अदृश्य सरस्वती नदियाँ इसमें आकर मिल जाती हैं तथा इससे आगे इसके ढाल में कमी आनी आरम्भ हो जाती है। डेल्टा के समीप गंगा नदी का ढाल बहुत ही धीमा हो जाता है। गंगा नदी का डेल्टा, विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है। गंगा भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है जिसकी लम्बाई 2,510 किमी है। इसके किनारों पर हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग (इलाहाबाद), वाराणसी, पटना एवं कोलकाता जैसे बड़े-बड़े धार्मिक एवं औद्योगिक नगर स्थित हैं। गंगा नदी का अपवाह क्षेत्र, भारत का सबसे बड़ा अपवाह क्षेत्र है। गोमती, सोन, घाघरा, गण्डक एवं कोसी इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
(ii) यमुना नदी तन्त्र
यमुना नदी हिमालय पर्वत की यमुनोत्री हिमानी से निकलकर गंगा नदी के समानान्तर प्रवाहित होती हुई प्रयाग में गंगा नदी से मिल जाती है। प्रयाग तक इसकी लम्बाई लगभग 1,375 किमी है। दिल्ली, मथुरा एवं आगरा यमुना नदी के किनारे स्थित महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक नगर हैं। काली सिन्ध, बेतवा, केन एवं चम्बल इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। ये सभी दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होती हुई यमुना नदी से मिल जाती हैं।
(iii) ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत में स्थित मानसरोवर झील के निकट कैलास पर्वत-श्रेणी से निकलती है। यह नदी दक्षिणी तिब्बत में बहती हुई पूर्वी हिमालय के नामचाबरवा शिखर के समीप अचानक दक्षिण की ओर मुड़कर भारत में प्रवेश करती है। तिब्बत में इसे साँपो नदी के नाम से जाना जाता है। असम में इसे दिबांग कहा जाता है। दिबांग तथा लोहित इसकी सहायक नदियाँ हैं जो विपरीत दिशाओं से आकर इसमें मिल जाती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी असम राज्य में प्रवाहित होती हुई गंगा नदी से मिल जाती है। बंगाल की खाड़ी से लेकर डिब्रूगढ़ तक इसमें नाव एवं जहाज चल सकते हैं। गोहाटी एवं डिब्रूगढ़; ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर स्थित प्रमुख नगर हैं। यह नदी अपनी भयंकर बाढ़ तथा प्रवाह-मार्ग में परिवर्तन के लिए कुख्यात है। इसकी भयंकर बाढ़ से प्रतिवर्ष धन-जन की अत्यधिक हानि होती है। ब्रह्मपुत्र नदी की लम्बाई लगभग 2,880 किमी है।
(iv) गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा
यह विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है। यहाँ पर्याप्त मात्रा में जल सुलभ होने के कारण यह सबसे उपजाऊ भी है। ब्रह्मपुत्र; गंगा में मिलने के बाद कई शाखाओं में बँट जाती है। ढाल के धीमा होने के फलस्वरूप इस नदी का वेग भी बहुत धीमा हो जाता है तथा धारा के बीच-बीच में जलोढ़ मिट्टी के छोटे-छोटे द्वीप निर्मित हो जाते हैं। मार्ग में आने वाले अवरोधों के कारण नदी अनेक धाराओं में विभाजित हो जाती है। इस डेल्टा का आकार निरन्तर बढ़ रहा है। डेल्टा के निचले भाग में दलदली क्षेत्र मिलता है, क्योंकि यहाँ ज्वार-भाटे के समय सागर का लवणयुक्त जल नदी के ताजे जल के साथ मिल जाता है। इसे सुन्दरवन का डेल्टा कहते हैं जो 75 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ 'सुन्दरी' नामक कठोर लकड़ी के वृक्ष उगते हैं जिनका उपयोग नाव बनाने में किया जाता है।
आर्थिक महत्त्व- उत्तर का विशाल मैदान आर्थिक दृष्टि से भारत का सर्वोत्तम भाग है। देश की लगभग 45% जनसंख्या यहाँ निवास करती है। यहाँ रेलमार्गों और राजमार्गों का जाल बिछा हुआ है। इस भाग में अनेक औद्योगिक एवं व्यापारिक केन्द्र स्थित हैं। राष्ट्रीय विकास एवं आर्थिक दृष्टि से यह अत्यन्त उपयोगी है।