भारत की स्थिति एवं विस्तार (India position and expansion)

भारत की स्थिति एवं विस्तार

भारत 8°4' उत्तरी अक्षांश से 37°6' उत्तरी अक्षांश तथा 68°7' पूर्वी देशान्तर से 97°25' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। उत्तर से दक्षिण इसकी लम्बाई 3,214 किमी तथा पूर्व से पश्चिम इसकी चौड़ाई 2,933 किमी है।
इसका क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है।

भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग

भारत एक विशाल देश है। यहाँ अनेक प्रकार के उच्चावच पाए जाते हैं। कहीं पर्वत-श्रेणियों का विस्तार है तो कहीं पठार एवं कहीं मैदान हैं तो कहीं घाटियाँ।
भू-आकृतिक संरचना के आधार पर भारत को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।
  1. उत्तर में विशाल पर्वतों की प्राचीर अथवा हिमालय पर्वतीय प्रदेश
  2. उत्तरी मैदान अथवा उत्तर का विशाल मैदान
  3. प्रायद्वीपीय भारत का विशाल पठार अथवा प्रायद्वीपीय पठार
  4. समुद्रतटीय मैदान और द्वीपसमूह।

1. उत्तर में विशाल पर्वतों की प्राचीर अथवा हिमालय पर्वतीय प्रदेश- भारत के उत्तर में लगभग 2,500 किमी की लम्बाई तथा 150 से 400 किमी की चौड़ाई में हिमालय पर्वतीय प्रदेश का विस्तार है। यह विशाल पर्वतों की प्राचीर पूर्व से पश्चिम दिशा में चाप के आकार में फैली हुई है। इस पर्वतीय प्रदेश का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में है।
यह वलित पर्वतमाला तीन समानान्तर श्रेणियों-
  1. विशाल हिमालय अथवा हिमाद्रि हिमालय
  2. लघु हिमालय या हिमांचल हिमालय तथा
  3. बाह्य हिमालय या शिवालिक हिमालय में विस्तृत है।

विशाल हिमालय की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से भी अधिक होने के कारण ये श्रेणियाँ सदैव हिमाच्छादित रहती हैं। माउण्ट एवरेस्ट (सागरमाथा) विश्व की सर्वोच्च पर्वतश्रेणी है (नेपाल में स्थित), जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई 8,848 मीटर है। भारत में इसकी सबसे ऊँची चोटी गॉडविन ऑस्टिन (के-2) है, जो 8,611 मीटर ऊँची है। भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी पूर्व की ओर कंचनजंघा (सिक्किम में) है, जिसकी ऊँचाई 8,598 मीटर है। हिमालय पर्वत उत्तर भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल तथा हरे-भरे वनों का भण्डार है।

2. उत्तरी मैदान अथवा उत्तर का विशाल मैदान- यह हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा दकन पठार के उत्तर में गंगा, सतलज, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों की काँप मिट्टी द्वारा निर्मित उपजाऊ एवं समतल मैदान है। इसका क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किमी है। इसे जलोढ़ मैदान के नाम से भी पुकारते हैं। इस मैदान की लम्बाई पूर्व-पश्चिम लगभग 2,414 किमी तथा चौड़ाई पूर्व में 145 किमी एवं पश्चिम में 480 किमी है। इस मैदान का ढाल बहुत ही मन्द है। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई कहीं भी 150 मीटर से अधिक नहीं है। सम्पूर्ण मैदान बाँगर तथा खादर भूमि द्वारा निर्मित है। इस मैदान की गणना विश्व के सबसे उपजाऊ कृषि प्रदेशों में की जाती है। यहाँ देश की 45% जनसंख्या निवास करती है। प्रतिवर्ष नदियाँ इस मैदान में उपजाऊ काँप मिट्टी लाकर बिछाती रहती हैं। आर्थिक दृष्टि से इस मैदान का महत्त्व निम्नलिखित है
(i) समतल एवं उपजाऊ मिट्टी से युक्त होने के कारण यह मैदान भारत का ही नहीं, विश्व का प्रमुख कृषि उत्पादक क्षेत्र है।
(ii) इस मैदान पर सघन बस्ती और विभिन्न प्रकार के यातायात के साधनों का विकास हुआ है।
(iii) यह मैदान औद्योगिक एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों के विकास हेतु उपयुक्त है।
(iv) सामान्यत: भारत के आर्थिक व सामाजिक विकास की दृष्टि से इस मैदान का व्यापक महत्त्व है।

3. प्रायद्वीपीय भारत का विशाल पठार अथवा प्रायद्वीपीय पठार- भारत के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से निर्मित दकन का पठार त्रिभुजाकार आकृति में विस्तृत है, जिसे प्रायद्वीपीय पठार कहते हैं। इसके पश्चिमी भाग में ज्वालामुखी द्वारा निक्षेपित लावे से निर्मित काली मिट्टी के उपजाऊ क्षेत्र हैं। इस पठारी क्षेत्र में अधिकांश नदियों ने गहरी घाटियाँ बना ली हैं जो जल-विद्युत उत्पादन के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ रखती हैं। इस पठार की औसत ऊँचाई 600 मीटर है। इसका धरातल अत्यन्त विषम है। इस पठारी भाग का क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किमी है। इस पठार पर बहुमूल्य मानसूनी वन-सम्पदा पाई जाती है। सागौन एवं चन्दन की बहुमूल्य लकड़ी इसी पठारी भाग में मिलती है। यह कृषि उपजों में धनी, खनिज पदार्थों का विशाल भण्डार तथा उद्योग-धन्धों का प्रमुख क्षेत्र भी है।

4. समद्रतटीय मैदान और द्वीपसमह- इनका वर्णन निम्नलिखित है-
(अ) समुद्रतटीय मैदान- प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं।
इस मैदानी क्षेत्र को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है-
  • (i) पूर्वी तटीय मैदान- बंगाल की खाड़ी के सहारे- सहारे पूर्वी तटीय मैदान; उड़ीसा राज्य से कुमारी अन्तरीप तक फैला हआ है। यह पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक चौड़ा (160 से 480 किमी) है। यहाँ महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों ने डेल्टाओं का निर्माण किया है। यह सम्पूर्ण तट-कारोमण्डल तट तथा उत्कल तट में विभाजित है।
  • (ii) पश्चिमी तटीय मैदान- यह मैदान अरब सागर के सहारे-सहारे कच्छ की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक विस्तृत है। यह मैदान सँकरा है, जिसकी औसत चौड़ाई 64 किमी है। नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के मुहानों के निकट इसकी सर्वाधिक चौड़ाई 80 किमी है। इस तटीय मैदान में बहने वाली नदियाँ छोटी हैं तथा इनमें जल का बहाव बहुत तेज है। इसके उत्तरी भाग को कोंकण तथा दक्षिणी भाग को मालाबार तट के नाम से जाना जाता है।

(ब) द्वीपसमूह- भारत में कुल 247 द्वीप हैं, जिनमें से 204 द्वीप बंगाल की खाड़ी में तथा शेष अरब सागर में स्थित हैं। अरब सागरीय द्वीप प्राचीन भू-खण्ड के अवशिष्ट भाग हैं तथा प्रवाल-भित्तियों द्वारा निर्मित हुए हैं। बंगाल की खाड़ी के द्वीप टरशियरी काल की पर्वत-निर्माणकारी धरातलीय विशेषता रखने वाले हैं, जो समुद्र तल से 750 मीटर की ऊँचाई तक स्थित हैं।
इन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है-
  • अरब सागर के द्वीप- अरब सागर में 43 द्वीप हैं, जिनमें लक्षद्वीप समूह प्रमुख है। इन्हें पहले लक्कदीव, मिनीकॉय एवं अमीनीदीवी नामों से पुकारा जाता था। इनका क्षेत्रफल 32 वर्ग किमी है। इनकी आकृति घोड़े की नाल या अँगूठी के समान है। इन द्वीपों पर नारियल के वृक्ष अधिक उगते हैं।
  • बंगाल की खाड़ी के द्वीप- बंगाल की खाड़ी में 204 द्वीप हैं। ये मुख्य भूमि से 220 किमी की दूरी पर स्थित हैं। ये द्वीप 590 किमी की लम्बाई तथा अधिकतम 50 किमी की चौड़ाई में, अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में विस्तृत हैं। यहाँ द्वीप; समूह के रूप में पाए जाते हैं, जो एक-दूसरे से संकीर्ण खाड़ी द्वारा पृथक् हैं। अण्डमान एवं निकोबार यहाँ के दो प्रमुख द्वीपसमूह हैं। ये बंगाल की खाड़ी में जल में डूबी हुई पहाड़ियों की श्रृंखला पर स्थित हैं। इनमें से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी उद्गार से हुई है। देश का सुदूरतम दक्षिणी बिन्दु; ग्रेट निकोबार द्वीप में स्थित 'इन्दिरा प्वॉइण्ट' है। भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी इन्हीं द्वीपों पर स्थित है।
इस प्रकार भारत की भू-आकृतिक संरचना में उच्च पर्वतों से लेकर द्वीपसमूह तक सम्मिलित हैं।

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