जैविक संसाधन
इन संसाधनों में पर्यावरण के समस्त जीवित तत्व सम्मिलित हैं वन, वनोत्पाद, फसलें, पछी, वन्य जीव, मछलियां व अन्य समुद्री जीव जैव संसाधनों के उदाहरण हैं। ये संसाधन नवीकरणीय है क्योंकि ये स्वयं को पुनरूत्पादित व पुनर्जीवित कर सकते हैं कोयला और खनिज तेल भी जैविक संसाधन है, परंतु ये नवीकरणीय नहीं हैं।
जैव संसाधन ऐसे संसाधन जो जीवित हैं अथवा जो सांस ले सकते हैं अर्थात सजीव अवस्था में पाए जाने वाले संसाधनों को जल संसाधन का जाता है जैसे : मनुष्य, वनस्पति, मछलियां, पशु, पक्षी इत्यादि।
जैविक संसाधनों का वितरण
वन
भूगोल विषय में जब हम 'वितरण' शब्द का प्रयोग करते हैं तब इसका मुख्य तात्पर्य भौगोलिक परिघटनाओं/घटनाओं के भौगोलिक या स्थानिक वितरण से होता है। अन्यथा, एक समाजशास्त्री के लिए वितरण का अर्थ मुख्यतः समाज की विभिन्न सामाजिक श्रेणियों में वितरण से है।
पृथ्वी की परिघटनाओं का भौगोलिक अध्ययन करते समय एक भूगोलवेत्ता के दृष्टिकोण से प्रथम एवं महत्वपूर्ण कार्य, इन परिघटनाओं, (इस संदर्भ में वनों का वितरण), की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को समझना तथा इस हेतु उत्तरदाई कारणों का परीक्षण करना है। वर्तमान में भारत की 75.5 मिलियन हेक्टेयर भूमि वनाच्छादित है, जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 23% है। वनों के वितरण में लगभग 83% का अंतर पाया जाता है, जो कि अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में 87% है वहीं हरियाणा में केवल 4%। हमारी राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए, देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 33% भू-भाग को वनाच्छादित होना चाहिए। दुर्भाग्यवश, यह हमारी वन नीति में निर्धारित रिखाकित) मानदण्ड से नीचे है। भारत में पाई जाने वाली वनस्पतियों को छ: मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। ये हैंउष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन, कटीली झाड़ियाँ, ज्वारीय वन और पर्वतीय वन।
वन्य जीव
भारत में वन्य जीवों की बहुसंख्य प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ज्ञात विश्व में, जानवरों की पाई जाने वाली कुल 1.05 मिलियन प्रजातियों में से लगभग 75000 (7.46%) भारत में पाई जाती हैं।
भारत में पंछियों की 1200 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। स्तनपायी जीवों में, हमारे पास विशालकाय हाथी है, जो कि असम, केरल व कर्नाटक के वनों में पाया जाता है। ऊँट शुष्क क्षेत्रों में व जंगली गधे गुजरात के कच्छ के रन में पाये जाते हैं। गुजरात के गीर वनों में भारतीय सिंह मिलते हैं। एक सींगवाला गेंडा असम व पश्चिमी बंगाल के दलदली क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत में बंदरों व हिरणों की कई प्रजातियाँ हैं। यहाँ पाये जाने वाले कुछ सबसे सुन्दर जानवरों में चौसिंगा, कृष्ण मृग व चिंकारा शामिल हैं। हिरण की प्रजातियों में हाँगुल (कश्मीर मृग), स्वाम्प हिरण, चीतल, कस्तूरी मृग और पिसूरी सम्मिलित हैं। बिल्ली परिवार के अंतर्गत आने वाले जानवरों में तेंदुआ, क्लाउडेड तेंदुआ व हिम तेंदुआ है। हिमालय श्रेणियों में कई दिलचस्प जानवर जैसे कि जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, साकिन, छडूंदर और तापिर पाये जाते हैं।
हमारे देश में पंछियों का जीवन भी समान रूप से समृद्ध व रंगीन है। शानदार मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। वनों एवं नम भूमियों में फेजेण्ट, गीज, बतख, मैना, तोते, कबूतर, क्रेन (सारस), धनेश और सनबर्ड पाये जाते हैं। यहाँ कोयल व बलबल जैसे गाने वाले पंछी भी मिलते हैं।
पशुधन
विश्व की लगभग 57 प्रतिशत भैंसें व लगभग 15 प्रतिशत गाय-बैल भारत में पाये जाते हैं। भारत के दो तिहाई से ज्यादा मवेशी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखण्ड, झारखण्ड, महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक व राजस्थान राज्यों में हैं। भारत की कुल भेड़ों का एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा राजस्थान में है जबकि भारत की आधे से ज्यादा बकरियां, बिहार, झारखण्ड, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल व उत्तर प्रदेश में पायी जाती हैं।
कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले पशु जैसे कि बैल, भैंस, गाय आदि भारत में कृषक समुदाय के मित्र हैं। ये विभिन्न कृषि कार्यों यथा जुताई, बुवाई, गहाई और कृषि उत्पादों के परिवहन में प्रयुक्त किये जाते हैं। इसके बाद भी कृषि के मशीनीकरण के साथ विशेषकर उत्तर-पश्चिमी भारत, तटीय आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु व कुछ अन्य क्षेत्रों में कृषि कार्यों में पशु शक्ति का महत्व कम हो रहा है। गाय व भैंस द्वारा दूध और भेड़ से ऊन, मांस व चमड़े की प्राप्ति होती है। बकरियों से दूध, माँस, बाल व चमड़ा मिलता है। अंडे व पंखों के लिए चूजे, बतखें, गीज़ व टर्की पाली जाती हैं।
मात्स्यिकी
लगभग 20 लाख वर्ग किलोमीटर के विशाल महाद्वीपीय आकार, बड़ी झीलों व नदियों में मछलियों के भोजन की पर्याप्त उपलब्धता, सागरीय धाराओं और कुशल मछुआरों के कारण देश में मात्स्यिकी के विकास के प्रचुर अवसर हैं। यहाँ सागरों व महासागरों में सागरीय मात्स्यिकी तथा झीलों, नदियों व जलाशयों में अंतःस्थलीय मात्स्यिकी की जाती है।
भारत में विभिन्न प्रकार की मछलियों की 1800 से भी ज्यादा प्रजातियाँ विद्यमान हैं। भारत में चार प्रकार की मात्स्यिकी, जैसे- सागरीय मात्स्यिकी, स्वच्छ जल या अन्तःस्थलीय मात्स्यिकी,एस्चुरी मात्स्यिकी एवं पेरल मत्स्यिकी पायी जाती हैं। वार्षिक मत्स्य उत्पादन में सागरीय मात्स्यिकी का हिस्सा लगभग 63 प्रतिशत है। यहां की प्रमुख मछलियाँ सैरडाइन्स, मैकेरल, प्रॉन, क्लूपिओइड्स और सिल्वर बेलीज़ हैं। देश के कुल मत्स्य उत्पादन का लगभग 37 प्रतिशत भाग अंतःस्थलीय मात्स्यिकी से आता है। प्रमुख मछलियाँ कतला, रोहिता, काला बासिल, मुंगल और कार्प हैं। देश की सागरीय मछलियों के कुल उत्पादन का 97 प्रतिशत से ज्यादा भाग व अंतःस्थलीय मछलियों का 77 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं गुजरात से आता है। यहाँ ध्यान देने योग्य है, कि ये सभी तटीय राज्य हैं।
- भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 23 प्रतिशत भाग वनाच्छादित है, जो कि पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय वन नीति में दिए गए आँकड़े से काफी कम है।
- राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए देश के कुल क्षेत्र का 33 प्रतिशत भाग वनों के अंतर्गत होना चाहिए।
- भारत में पशुओं की लगभग 75,000 प्रजातियाँ और पक्षियों की 1200 से भी ज्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- विश्व की कुल भैंसों का 57 प्रतिशत व मवेशियों की कुल संख्या का 15 प्रतिशत हिस्सा भारत में पाया जाता है।
- भारत में मात्स्यिकी के चार प्रकार जैसे कि सागरीय, स्वच्छ जल, एस्चुअरी व पेरल मत्स्यिकी पाए जाते हैं।