भौतिक भूगोल - परिभाषा, शाखा, अर्थ, क्षेत्र | bhautik bhugol

भौतिक भूगोल

भौतिक भूगोल, भूगोल के एक प्रमुख शाखा है जो मानव और पृथ्वी के बीच संबंधित होती है। यह विज्ञान मानव और पृथ्वी के भौतिक तत्वों के अध्ययन पर आधारित होता है, जिनमें मानवीय आवास, पर्यावरण, जल, वायुमंडल, भूकंप, भूस्खलन, पहाड़ी विज्ञान, मृदा विज्ञान, मानवीय निर्माण, और प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन शामिल है।
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भौतिक भूगोल के कुछ मुख्य खंड निम्नलिखित हैं:
  • मानव आवास : इसमें मानवीय आवासों का अध्ययन शामिल है जिसमें शहरी विकास, आवासीय क्षेत्रों की योजना, नगरीय नक्शे, और जनसंख्या विज्ञान शामिल होता है।
  • पर्यावरण : यह भूगोलीय प्रभावों, जैव विविधता, जंगल, बांध, और जलवायु के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करता है। इसमें जलाशयों, नदियों, और जल विभाजन का अध्ययन भी शामिल होता है।
  • भूस्खलन और भूकंप : भूस्खलन और भूकंप का अध्ययन मानवीय जीवन और मानवीय निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें भूमिका, निदान, और प्रबंधन के बारे में जानकारी शामिल होती है।
  • वायुमंडल : यह वायुमंडल की विभिन्न परतों, जलवायु परिवर्तनों, हवाई मार्गों, और वायु गतिविधियों का अध्ययन करता है।
  • पहाड़ी विज्ञान : यह पहाड़ी श्रृंखलाओं, पहाड़ी नदियों, भूमिरोधी शिखरों, और पहाड़ों के गहराईयों का अध्ययन करता है।
  • मृदा विज्ञान : इसमें मृदा के गुणवत्ता, भूमि का उपयोग, और फसलों का विकास शामिल होता है।
  • प्राकृतिक संसाधन: यह प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और प्रबंधन करने के बारे में शिक्षा प्रदान करता है, जैसे कि जल, वन, खनिज, और ऊर्जा संसाधन।
भौतिक भूगोल मानव और पृथ्वी के इंटरैक्शन को समझने में मदद करता है और हमें पृथ्वी के संसाधनों का उचित उपयोग करने के लिए संकेत देता है।

भौतिक भूगोल का अर्थ एवं परिभाषा

भौतिक भूगोल (Physical Geography) वह विज्ञान है जो पृथ्वी की भौतिक विशेषताओं और पृथ्वी पर मौजूद मानव जीवन के इंटरैक्शन का अध्ययन करता है। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी के विभिन्न घटकों जैसे कि जल, जलवायु, भूमि, वन, पहाड़ी, नदियाँ, वायुमंडल, और प्राकृतिक संसाधनों की समझ को प्राप्त करना है।
भौतिक भूगोल के अध्ययन से हमें निम्नलिखित बातें समझ मिलती हैं:
  • पृथ्वी की विभिन्न परतों का अध्ययन, जैसे कि खगोलीय परत (वायुमंडल), जलवायु परत, भूमि परत, और मनुष्यी परत (मानवीय आवास और नगरीकरण)।
  • जलवायु परिवर्तन की समझ, जैसे कि मौसमी पदार्थों की गतिविधियों, बादल गतिविधि, मौसमी प्रक्रियाएं, और जलवायु प्रणालियों का अध्ययन।
  • जल के संगठन और प्रबंधन, जैसे कि नदियाँ, झीलें, बांध, जल प्रदूषण, और जल संसाधनों का उपयोग।
  • भूमि की विभिन्न प्रकारों की समझ, जैसे कि मृदा विज्ञान, जलवायु वाणिज्य, पाली उपक्रम, और पृथ्वी के निर्माणिक तत्वों का अध्ययन।
  • पहाड़ों, उच्चतम शिखरों, और इनके गहराई तक का अध्ययन, जिसमें पहाड़ी विज्ञान, पहाड़ी जीवन, और पहाड़ी नदियों की समझ शामिल होती है।
  • वायुमंडल की समझ, जैसे कि वायुमंडलीय प्रक्रियाएं, हवाई मार्ग, वायुमंडलीय घटनाएं, और जलवायु के प्रभाव।
  • प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन, जैसे कि जल, वन, खनिज, और ऊर्जा संसाधनों की सुरक्षा और उपयोगिता का अध्ययन।
इस प्रकार, भौतिक भूगोल हमें पृथ्वी के भौतिक माध्यमों, प्रक्रियाओं, और मानव जीवन के संबंध की समझ प्रदान करता है। इसके माध्यम से हम पृथ्वी के संसाधनों को उचित रूप से उपयोग करने और पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए नए तकनीकी और सामाजिक उपाय विकसित कर सकते हैं।

भूगोलवेत्ता (Geographer) भूगोल के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्ति होता है, जो भौतिक भूगोल के अध्ययन करता है और उसकी विशेषताओं, प्रकृति तत्वों, प्रकृतिक प्रक्रियाओं और मानवीय विकास के बीच के संबंधों की समझ प्रदान करता है। भूगोलवेत्ताओं ने भौतिक भूगोल की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं, जो निम्नलिखित हैं:
  • कर्ल रिटर (Carl Ritter) : कर्ल रिटर, जर्मन भूगोलवेत्ता, ने भौतिक भूगोल को "पृथ्वी के अध्ययन" के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने इसे भूतिक और स्थायी प्रकृतिक प्रक्रियाओं के अध्ययन के रूप में देखा।
  • एल्यूविस वॉशबर्न (Eduard Suess) : एल्यूविस वॉशबर्न, एक ऑस्ट्रियाई भूगोलवेत्ता, ने भौतिक भूगोल को "पृथ्वी की शारीरिक संरचना और पृथ्वी के उपादानिक तत्वों का अध्ययन" के रूप में परिभाषित किया।
  • वीडा वालटोन (Vidal de La Blache) : वीडा वालटोन, फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता, ने भौतिक भूगोल को "पृथ्वी की निर्माणात्मक और पृथ्वी के विभिन्न भौतिक प्रकारों के अध्ययन" के रूप में परिभाषित किया।
  • वीलीम नॉर्डस्किल्द (Vilhelm Bjerknes) : वीलीम नॉर्डस्किल्द, नॉर्वेजियाई मौसमविज्ञानी और भूगोलवेत्ता, ने भौतिक भूगोल को "पृथ्वी की तापमान, जलवायु, वायुमंडल, और जल संसाधनों का अध्ययन" के रूप में परिभाषित किया।

कान्ट के अनुसार, जर्मन दार्शनिक और विज्ञानशास्त्री, ने भौतिक भूगोल के बारे में अपने दर्शनों में विचार व्यक्त किए हैं। उनके अनुसार, भौतिक भूगोल न केवल पृथ्वी की भौतिकी और विज्ञान का अध्ययन है, बल्कि इसका ध्यान मुख्य रूप से स्थान, मानवीय अवधारणाएं, और व्यक्ति के संबंधों पर होना चाहिए। कान्ट का मत था कि भौतिक भूगोल का उद्देश्य मानवीय अनुभव के साथ पृथ्वी की जगहों और उनके प्रभावों की समझ करना है।
कान्ट ने भौतिक भूगोल को अध्ययन करने के लिए "अवधारणात्मक भूगोल" का नाम दिया। उनकी दृष्टि में, भौतिक भूगोल का मुख्य उद्देश्य मानवीय विचार, समझ, और अनुभव के साथ स्थानों की अवधारणा करना है। वे मानव-भूगोलीय संबंधों को विशेष महत्व देते थे, जिसमें समाज, संस्कृति, और मानवीय निर्माण का अध्ययन शामिल था।
कान्ट का मत था कि भौतिक भूगोल का अध्ययन करने से हम मानवीय समाज के स्थानिक विकास, जीवन की जटिलताओं, और पर्यावरण के प्रभाव को समझ सकते हैं। इसके अलावा, कान्ट ने भौतिक भूगोल के माध्यम से मानव की जगहींसा के प्रश्नों को भी उठाया, जहां वे स्थान, संसाधनों, और सीमाओं के बारे में विचार करते हैं।
कान्ट के अनुसार, भौतिक भूगोल न केवल प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है, बल्कि मानव के साथ पृथ्वी की संबंधों की भी समझ प्रदान करता है। इस दृष्टि से, उनके विचार ने भौतिक भूगोल को एक मानव-मध्यस्थ और मानव-प्रभावित विज्ञान के रूप में परिभाषित किया।

आर्थर होम्स के अनुसार एक प्रमुख भौतिक भूगोलवेत्ता और ज्योलॉजिस्ट थे। वे ब्रिटेन के होम्स-आर्गाइल ग्रॉनविले में जन्मे थे और उन्होंने भौतिक भूगोल और भूविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किए हैं।
आर्थर होल्म्स के अनुसार, भौतिक भूगोल को "पृथ्वी की संरचना, विकास, और प्रक्रियाओं का अध्ययन" कहा जा सकता है। वे उस भौतिकी और ज्योलॉजी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों को विकसित करने में योगदान किए हैं। यहां कुछ प्रमुख प्रयोगशालाओं को उन्होंने विकसित किया था:
  • मेंटलोजी (Mantleology): होल्म्स ने प्रथम बार मेंटलोजी के सिद्धांत को विकसित किया, जो पृथ्वी के मानवीय लगभगी सभी भागों की गर्मी और विभाजन की समझ पर आधारित है।
  • सेक्वेंशियल वुल्कानिज्म (Sequential Volcanism): वे सेक्वेंशियल वुल्कानिज्म की सिद्धांत को विकसित करने में सफल रहे, जो विभिन्न क्षेत्रों में एकाधिक ज्वालामुखी के विकास को समझता है।
  • राडियोमेट्रिक डेटिंग (Radiometric Dating): होल्म्स ने राडियोमेट्रिक डेटिंग के उपयोग से पत्थरों और पत्थरीय उद्गार की उम्र का मापन करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह विधि उद्भव और अवनति की गतिविधियों को समझने में मदद करती है और पृथ्वी के विभिन्न युगों की तारीख का पता लगाने में मदद करती है।
आर्थर होल्म्स ने भौतिक भूगोल के क्षेत्र में विभिन्न महत्वपूर्ण सिद्धांतों और तकनीकियों का विकास किया है, जिनके माध्यम से हम पृथ्वी के भौतिकी, ज्योलॉजी, और भूविज्ञान के बारे में और बेहतर रूप से समझ सकते हैं।

केन के अनुसार - “भौतिक वातावरण का अध्ययन ही भौतिक भूगोल है।"
"The study of the physical environment is called Physical Geography."H.R.Cain

हैमण्ड व हॉर्न के अनुसार - “भौतिक भूगोल प्राकृतिक घटनाओं के अध्ययन से सम्बंधित है।
"The study of physical Geography deals with natural phenomena." Hammond & Horn.

भौतिक भूगोल की प्रकृति एवम् अध्ययन क्षेत्र

भूतल, भौतिक भूगोल के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु है। भौतिक भूगोल का प्रारम्भिक ज्ञान भूगोल की किसी भी शाखा के अध्ययन से अधिक आवश्यक है। भौतिक वातावरण से न केवल मानव का प्रत्येक क्रिया-कलाप अपितु पृथ्वी का कोई भी घटक अप्रभावित नहीं है। वायु, जल तथा स्थल तीनों भागों में भौतिक तथ्यों का समावेश मिलता है तथा तीनों परस्पर में सम्बंधित है।
भौतिक वातावरण का प्रमुख गुण परिवर्तन है, अतः भौतिक परिस्थितियों के वितरण के ज्ञान के साथ ही परिवर्तनशीलता का भी अध्ययन भौतिक भूगोल में समाहित है। इस परिवर्तनशीलता के समायोजन से ही विभिन्न भौतिक परिस्थितियों की उत्पत्ति होती है। भौतिक भूगोल के अन्तर्गत निम्न चार प्रमुख अंगों यथा स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल एवम् जैवमण्डल का विशद् अध्ययन किया जाता है।

स्थलमण्डल (Lithosphere)

पृथ्वीतल पर स्थित समस्त स्थलखण्डों तथा उनके विभिन्न स्वरूपों का अध्ययन मुख्य रूप से स्थलमण्डल के अन्तर्गत किया जाता है। जिन अवस्थाओं एवम् प्रक्रियाओं के फलस्वरूप भूतल वर्तमान दशा में पहुँचा है उस पर भी विचार करके अध्ययन किया जाता है।
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इस प्रकार के अध्ययन में मुख्यतः पृथ्वी का भू-वैज्ञानिक इतिहास, भूगर्भ की रचना शैलों के प्रकार, ढाल, अन्तर्जात एवम् बर्हिजात बल, संरचना, प्रक्रम, अवस्था आदि सम्मिलित है। भूआकृति-विज्ञान (Geomorphology) के अन्तर्गत स्थलमण्डल की विभिन्न आकृतियों का अध्ययन किया जाता है। स्थलमण्डल के अन्तर्गत जिस भाग पर हम विचरण करते हैं तथा जिस गहराई तक हम इसका उपयोग करते हैं, सम्मिलित है। पृथ्वी का धरातल सर्वत्र समतल नहीं होकर अत्यन्त असमान है। इस धरातल पर कहीं विशाल मैदान है, तो कहीं पर गहरी-गहरी घाटियाँ, या विशाल पर्वत शिखर अथवा कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे द्वीप स्थित है। विभिन्न भूगर्भिक शक्तियों व प्रक्रियाओं का महाद्वीपों के निर्माण से लेकर धरातल के विभिन्न स्वरूपों के निर्माण में योगदान रहा है। विभिन्न प्रकार की शैलों का निर्माण इन्हीं भूगर्भिक शक्तियों के परिणामस्वरूप ही होता है। अतः ये सभी तथ्य स्थल मण्डल के अंग है।

वायुमण्डल (Atmosphere)

वायु के आवरण द्वारा धरातल चारों ओर से घिरा हुआ है। धरातल पर समस्त वायुमण्डलीय दशाओं तथा जीवधारियों के लिए यही वायुमण्डल आवश्यक है। जलवायु विज्ञान के अन्तर्गत इसका अध्ययन किया जाता है। वायुमण्डल की गैसें हमारे लिए महत्वपूर्ण, अद्भूत एवम् आधारभूत संसाधन है।
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वायुमण्डल भी भौतिक भूगोल के अन्य घटकों की भांति अत्यन्त परिवर्तनशील घटक है। मौसम के अन्तर्गत वायुमण्डलीय अल्पकालिक परिस्थितियों को तथा जलवायु के अन्तर्गत दीर्घकालिक परिस्थितियों को सम्मिलित किया जाता है। इन वायुमण्डलीय परिघटनाओं के अन्तर्गत वायुमण्डल की संरचना, संगठन, ऊँचाई, तापमान, वायुदाब, पवनों की गति, दिशा, उत्पत्ति एवम् प्रकार, आर्द्रता के रूप, वायुराशियाँ एवम् विक्षोभ, विश्व की जलवायु, मेघाच्छादन, वृष्टि आदि सम्मिलित है।

जलमण्डल (Hydrosphere)

पृथ्वी का दो-तिहाई से अधिक क्षेत्र जल द्वारा घिरा है। जलमण्डल में पृथ्वीतल पर विस्तृत समुद्रों एवम् महासागरों से सम्बंध रखने वाले विभिन्न तथ्यों का अध्ययन होता है। जल का संघटन छोटे अथवा बड़े जलाशयों में भिन्न-भिन्न पाया जाता है। गहराई के साथ भी जल में व्यापक भिन्नताएँ पाई जाती है।
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जलमण्डल में सागरों एवम् महासागरों की उत्पत्ति एवम् वितरण, समुद्री नितल, जल के भौतिक एवम् रसायनिक गुण एवम् संरचना, जल संचार, महासागरीय निक्षेप, महासागरों में तापमान, लवणता, घनत्व, ज्वारभाटा, प्रवाल-भित्तियाँ, लहरें, धाराएँ आदि का अध्ययन किया जाता है। जल मण्डल में विभिन्न प्रकार की गतियाँ पाई जाती है। जैविक एवम् अजैविक संसाधनों का अतुल भण्डार भी जलमण्डल में पाया जाता है। उपरोक्त सभी तथ्यों का अध्ययन जल मण्डल के अंग के रूप में किया जाता है।

जैवमण्डल (Biosphere)

धरातल एवम् वायुमण्डल के मध्य मिट्टी, वनस्पति एवम् जीव-जन्तुओं की परत के रूप में विस्तृत एक संकीर्ण पेटी जैवमण्डल कहलाती है। जैवमण्डल के अन्तर्गत समस्त प्रकार के जीवों, जिसमें मानव, जन्तु एवम् वनस्पति सम्मिलित है, की उत्पत्ति, विकास, वितरण, आवास, जीवन चक्र को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्व, सजीवों तथा पर्यावरण के मध्य पारस्परिक सम्बंध आदि विविध पक्षों का अध्ययन किया जाता है।
भूमंडल (भू-आकृतियाँ, प्रवाह, उच्चावच), वायुमंडल (इसकी बनावट, संरचना, तत्त्व एवं मौसम तथा जलवायु, तापक्रम, वायुदाब, वायु, वर्षा, जलवायु के प्रकार इत्यादि) जलमंडल (समुद्र, सागर, झीलें तथा जल परिमंडल से संबद्ध तत्त्व) जैव मंडल (जीव के स्वरूप-मानव तथा वृहद् जीव एवं उनके पोषक प्रक्रम, जैसे- खाद्य श्रृंखला, पारिस्थैतिक प्राचल (Ecological parametres) एवं पारिस्थैतिक संतुलन) का अध्ययन सम्मिलित होता है। मिट्टियाँ मृदा-निर्माण प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित होती है तथा वे मूल चट्टान, जलवायु, जैविक प्रक्रिया एवं कालावधि पर निर्भर करती है। कालावधि मिट्टियों को परिपक्वता प्रदान करती है तथा मृदा पार्श्विका (Profile) के विकास में सहायक होती है। मानव के लिए प्रत्येक तत्त्व महत्वपूर्ण है। भू-आकृतियाँ आधार प्रस्तुत करती है जिस पर मानव क्रियाएँ संपन्न होती हैं। मैदानों का प्रयोग कृषि कार्य के लिए किया जाता है, जबकि पठारों पर वन तथा खनिज संपदा की प्रचुरता होती है। पर्वत, चरागाहों, वनों, पर्यटक स्थलों के आधार तथा निम्न क्षेत्रों को जल प्रदान करने वाली नदियों के स्रोत होते हैं। जलवायु हमारे घरों के प्रकार, वस्त्र, भोजन को प्रभावित करती है। जलवायु का वनस्पति, शस्य प्रतिरूप, पशुपालन एवं (कुछ) उद्योगों आदि पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
भौतिक भूगोल प्राकृतिक संसाधनों के मूल्यांकन एवं प्रबंधन से संबंधित विषय के रूप में विकसित हो रहा है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भौतिक पर्यावरण एवं मानव के मध्य संबंधों को समझना आवश्यक है। भौतिक पर्यावरण संसाधन प्रदान करता है एवं मानव इन संसाधनों का उपयोग करते हुए अपना आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास सुनिश्चित करता है, तकनीकी सहायता से संसाधनों के बढ़ते उपयोग ने विश्व में पारिस्थैतिक असंतुलन उत्पन्न कर दिया है। अतएव सतत् विकास (Sustainable development) के लिए भौतिक वातावरण का ज्ञान नितांत आवश्यक है जो भौतिक भूगोल के महत्व को रेखांकित करता है।

महत्वपूर्ण बिन्दु
  • भूगोल विषय की मुख्य शाखा भौतिक भूगोल है। भूगोल के दो मुख्य पक्ष-भौतिक अथवा प्राकृतिक वातावरण तथा मानव।
  • जीव और उसके भौतिक वातावरण के सम्बंधों का अध्ययन भूगोल की विषय-वस्तु तथा भौतिक वातावरण का अध्ययन भौतिक भूगोल। भौतिक भूगोल से सम्बंधित कुछ परिभाषाओं में केवल भौतिक वातावरण के अध्ययन तो कुछ अन्य में जैविक वातावरण को भी सम्मिलित करने पर बल। इसकी विषय-वस्तु के मुख्य अंग-स्थलमण्डल, जल मण्डल, वायुमण्डल, जैवमण्डल, नवमण्डल सम्पर्क क्षेत्र या अन्तरापृष्ठ। भौतिक भूगोल के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु भूतल या पृथ्वी तल है।
  • भूगोल के अध्ययन में विशिष्टीकरण बढ़ने के साथ भौतिक भूगोल से बहुत सी शाखाएँ प्रस्फुटित हुई। भौतिक भूगोल की मुख्य शाखाएँ-भू-आकृति विज्ञान, खगोलीय भूगोल, जलवायु विज्ञान, मौसम विज्ञान, मृदा भूगोल, समुद्र विज्ञान, जल विज्ञान, हिमानी विज्ञान, भूगणित, भूभौतिकी, पारिस्थितिकी, जैव भूगोल आदि।

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