प्रस्तावना
औद्योगीकरण और नगरीकरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव जनसंख्या के एकत्रीकरण (औद्योगिक क्षेत्रों) के रूप में पड़ा है जिसके परिणामस्वरूप मलिन बस्तियों का विकास हुआ है। आज भारत के सभी बड़े नगरों व औद्योगिक केन्द्रों में मलिन बस्तियाँ देखी जा सकती हैं।
मलिन बस्तियों का अर्थ एवं परिभाषाएँ
मलिन बस्ती नगर का निम्न निवास वाला क्षेत्र है जो अव्यवस्थित रूप से विकसित और सामान्यत: जनाधिक्य एवं भीड़-भाड़ से युक्त है। मलिन बस्तियों की प्रकृति एक वाद-विवाद का विषय है।
गिस्ट एवं हलबर्ट (Gist and Halbert) ने इन्हें विघटित क्षेत्रों का विशिष्ट स्वरूप तथा क्वीन एवं थॉमस (Queen and Thomas) ने रोगग्रस्त क्षेत्र कहा है। कुइन्न (Quinn) के अनुसार, “मलिन बस्तियों का रूप प्रारम्भ से ही विकृत हो जता है। अतः स्पष्ट है कि इनकी कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं दी जा सकती है। बर्गल (Bergel) के अनुसार, “मलिन बस्तियाँ नगरों में वे क्षेत्र हैं जिनमें घर निम्न स्तर के हों।" भारत सेवक समाज द्वारा प्रकाशित मलिन बस्तियों पर रिपोर्ट के अनुसार, “मलिन बस्तियाँ शहर के उन भागों को कहा जाता है जोकि मानव-विकास की दृष्टि से अनुपयुक्त हों, चाहे वे पुराने ढाँचे के परिणामस्वरूप हों या स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से, जहाँ सफाई की सुविधाएँ असम्भव हों।"
पूर्वोक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि मलिन बस्ती उन शहरी क्षेत्रों को माना गया है जिनमें मकान टूटे-फूटे होते हैं, निवास की दृष्टि से जनाधिक्य व भीड़-भाड़ अधिक होती है, स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण का अभाव पाया जाता है, जिनमें अत्यधिक गरीब या निम्न आय के लोग निवास करते हैं तथा जहाँ आवास की नागरिक सुविधाओं जैसे बिजली, पानी, पेशाबघर या शौचालयों का अभाव होता है।
भारत में मलिन बस्तियों का विकास
आज भारतीय नगरों में मलिन बस्तियाँ एक ज्वलन्त समस्या बनी हुई है। ज्यो-ज्यों नगरीकरण एवं औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज होती जा रही है इनका विकास भी तीव्रता से होता जा रहा है। भारत सेवक समाज द्वारा दी गई रिपोर्ट में इसकी कुछ संख्या 1787 व्यक्त की गई है। शहर के निम्नांकित तीन क्षेत्रों में मलिन बस्तियों का उद्भव होता है
- नगर के बीच में,
- औद्योगिक क्षेत्रों के समीप तथा
- नगर की सीमा पर।
भारतीय नगरों में उपर्युक्त तीनों ही प्रकार के क्षेत्रों में विकसित मलिन बस्तियाँ देखी जा सकती हैं। इनके दो प्रकार-एक, झोपड़ियाँ जोकि घास, टीन के टुकड़े, पॉलिथीन, कपड़े आदि से श्रमिक स्वयं निर्मित कर लेते हैं
और दूसरा, शहर के वे मकान, जो पुराने समय में बने थे, टूट-फूट गए हैं तथा जिनके सुधार के लिए प्रयास नहीं किए जाते और जिनमें बड़ी संख्या में गरीब लोग निवास करते हैं। कई बार नगरों में केवल किराया कमाने की दृष्टि से भी कुछ लोग इन बस्तियों का विकास श्रमिकों के लिए करते हैं। इन्हें भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। उदाहरणार्थ, मुम्बई की चालें, कोलकाता की बस्तियाँ, चेन्नई की चरियाँ, कानपुर के आहाते और दिल्ली के कटरा (Katras) आदि मलिन बस्तियाँ ही हैं।
कोलकाता में मलिन बस्तियों की संख्या के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। मुम्बई में 140 मलिन बस्तियाँ हैं जिनमें शहर की आधी जनसंख्या निवास करती है। मद्रास में 311 मलिन बस्तियाँ हैं जिनमें 56 शासकीय भूमि पर, 49 नगर निगम की भूमि पर और शेष 206 व्यक्तिगत भूमि पर आधारित स्थित हैं। इन मलिन बस्तियों में नगर की 1/9 जनसंख्या निवास करती है। दिल्ली में मलिन बस्तियों की संख्या (1956 ई० में) 902 थी जो कटरा और बस्ती कहलाते हैं। अब इनकी संख्या 1010 हो गई है जिनमें 999 कटरा, 407 घर एवं 51 बस्तियाँ हैं। इन्दौर नगर में दो मलिन बस्तियाँ हैं—भिण्डी खो और पाटनी पुरा, जबकि ग्वालियर में 34 हैं तथा इन्हें गोठे कहा जाता है। इनमें गेन्डे वाली रोड की बस्ती सबसे बड़ी है। इसी प्रकार, भारत के हर औद्योगिक शहर में इनका निरन्तर विकास होता जा रहा है।
निवास मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है परन्तु नगरों एवं औद्योगिक केन्द्रों में आवास की समस्या एक गम्भीर
चुनौती है जिसके कारण अच्छे निवास के लिए 'मलिन बस्तियों का विकास होता है। इनकी निम्न दशा एवं मूलभूत सुविधाओं का अभाव अनेक समस्याओं को उत्पन्न करता है। इनमें सफाई एवं रोशनी का अभाव होता है। कूड़े-करकट के ढेर और गड्ढे अनेक स्थानों पर देखे जा सकते हैं। अनेक परिवारों के लिए सिर्फ एक ही प्रवेश द्वार होता है। गोपनीयता के लिए टाट के पर्दे या टीन की चद्दरें लगा दी जाती हैं। इन्हीं में श्रमिक पैदा होते हैं, जीते और मरते हैं।
महात्मा गांधी ने इनकी दशा की चर्चा करते हुए कहा था कि “अपनी आँखों से देखे बिना तुम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते कि संसार में मनुष्य के रहने के लिए भी ऐसे स्थान हो सकते हैं। इस बस्ती को देखने के बाद खाना-पीना तक अच्छा नहीं लगता, देखते ही उलटी आती है। वहाँ ऐसी गन्दगी थी कि उसके वर्णन के लिए मेरे पास शब्द तक नहीं हैं।'' इसी प्रकार, आर० के० मुकर्जी ने भी कहा है कि “औद्योगिक केन्द्रों में श्रम बस्तियों की दशा इतनी भयंकर है कि वहाँ मानवता का विध्वंस होता है, स्त्रियों के सतीत्व का नाश होता है और देश के भावी आधार-स्तम्भ शिशुओं का गला घुट जाता है।'
ब्राइस एवं खाँ ने स्पष्ट किया है कि मुख्यतः इनमें पाँच दशाओं में व्यक्ति रहता है-एक, निम्न श्रेणी के वे लोग है जो मध्यम वर्ग का किराया नहीं दे सकते और यहाँ निवास के लिए मजबूर हैं, दूसरे, औद्योगिक श्रमिक, तीसरे, आकस्मिक श्रमिक, चौथे, भिखारी, घुमक्कड़, निखटू लोग, पाँचवें, समाज विरोधी तत्त्व जैसे गुण्डे, गिरहकट आदि जो इन्हीं में समुचित आश्रय प्राप्त कर पाते हैं।"
मलिन बस्तियों की उत्पत्ति एवं विकास के कारण
मलिन बस्तियों का विकास विविध प्रकार के कारणों से होता है। कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
नगरीकरण और औद्योगीकरण
नगरीकरण और औद्योगीकरण इनके विकास के प्रमुख कारण हैं। उद्योगों के लिए अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए बड़े पैमाने पर इन केन्द्रों में मनुष्यों का एकत्रीकरण होता है परन्तु नगर विकास की सुविधा सीमित होने के कारण श्रमिक अनधिकृत भूमि पर अस्थायी निवास स्वयं निर्मित कर लेते हैं और यही मलिन बस्तियों में परिवर्तित हो जाते हैं। नगर के मध्य और सीमाओं पर इसी प्रकार से इनका विकास होता है।
भौगोलिक गतिशीलता
आवागमन एवं संचार साधनों में वृद्धि के कारण गतिशीलता में वृद्धि हुई है और अनेक ग्रामीण लोग नौकरी या व्यवसाय आदि की तलाश में नगरों की ओर आते हैं, परन्तु उनमें से अधिकांश लोगों को कोई बड़ी आर्थिक उपलब्धि नहीं होती और वे गरीबी में जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर हो जाते हैं तथा मलिन बस्तियों में, जहाँ सस्ते मकान होते हैं, निवास करने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इससे मलिन बस्तियों को प्रोत्साहन मिलता है।
प्रवर्जन
हमारे देश में प्रवर्जन समूहों में होता है। ये समूह एक ही जगह काम करने और एक ही स्थान पर निवास करना पसन्द करते हैं। मुम्बई और कोलकाता में क्रमश: उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग ही अधिकतर श्रमिक हैं। इसके परिणामस्वरूप भी मलिन बस्तियों का विकास होता है।
जनसंख्या में वृद्धि
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है और यह अनेक ग्रामीणों को शहर की ओर ही आने के लिए प्रेरित करती है क्योंकि यहाँ रोजी-रोटी कमाने के ज्यादा अवसर उपलब्ध हैं। नगरों में स्थान सीमित होता है और पहले से ही आवास समस्या पाई जाती है। अत: इस वृद्धि के कारण मलिन बस्तियों का विकास होना स्वाभाविक ही है।
नगरीय आकर्षण
नगरीय विकास का एक अन्य कारण नगरों का आकर्षण है। वैज्ञानिक प्रगति ने नगरों में अनेक प्रकार की चमक-दमक पैदा कर दी है और यातायात के साधनों ने इन आकर्षणों (सिनेमा, कैबरे हाल, शिक्षा आदि) को ज्यादा सुलभ बना दिया है। नगरीय आकर्षण से नगरीय जनसंख्या में वृद्धि होती है, आवास समस्या और अधिक गम्भीर होती जाती है तथा मलिन बस्तियों के विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
प्राकृतिक प्रकोप
मनुष्य प्रकृति का दास है। समय-समय पर आने वाले प्राकृतिक प्रकोपों जैसे बाढ़, अकाल, संक्रामक रोग, भूचाल आदि के कारण व्यक्ति ग्राम छोड़कर नगरों की ओर ही जाता है। इससे शहरों की जनसंख्या निरन्तर बढ़ती जाती है, परन्तु निवास की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाती जिसके परिणामस्वरूप मलिन बस्तियाँ विकसित होती हैं।
निम्न वर्गों की अधिकता
नगरों में निम्न वर्ग के लोगों की ही अधिकता होती है। निम्न आय के लोगों को कम से कम सुविधाओं में अपना जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ता है और कम से कम सुविधाएँ भी मलिन बस्तियों को उत्पन्न करने में सहयोग देती हैं। साथ ही, श्रमिक अपने कार्य-स्थान के नजदीक रहना चाहता है जिसके कारण औद्योगिक क्षेत्रों में मलिन बस्तियों का विकास होता है।
मलिन बस्तियों का दृष्टिकोण
मलिन बस्तियों के विकास में निम्न दशाओं में रहने का दृष्टिकोण भी सहायक है। इस दृष्टिकोण के कारण लोगों का झुकाव इनके प्रति अधिक हो जाता है और वे इन्हें छोड़ना नहीं चाहते। गाँवों से आने वाले लोगों के दृष्टिकोण और मलिन बस्तियों के दृष्टिकोण में सरलता से सामंजस्य हो जाता है जो मलिन बस्तियों के विकास को प्रोत्साहन देता है।
निर्धनता
हमारे देश में मलिन बस्तियों के विकास का महत्त्वपूर्ण कारण गरीबी है जिसके कारण लोगों को इन्ही मलिन जगहों और बस्तियों में रहने को बाध्य होना पड़ता है और इससे इनका उत्तरोत्तर विकास होता है। अगर व्यक्ति कहीं अच्छी जगह मकान लेना चाहता है तो किराया इतना अधिक होता है कि वह उसके बारे में कभी सोच भी नहीं सकता।
मलिन बस्तियाँ के प्रभाव
मलिन बस्तियाँ केवल दूषित वातावरण से ही युक्त नहीं होतीं परन्तु इनका प्रभाव व्यक्ति, उसके परिवार एवं बच्चों पर अत्यधिक पड़ता है। डी० एच० मेहता के अनुसार, मलिन बस्तियों के निवासी अनेक प्रकार की भौतिक, मानसिक और सामाजिक त्रुटियों के शिकार होते हैं और उनके कारण मस्तिष्क चिन्ता एवं असुरक्षा से भयभीत रहते हैं। इनका वातावरण अनेक समाज विरोधी व्यवहारों को प्रोत्साहन देता है। मलिन बस्तियों के प्रमुख परिणाम निम्नांकित हैं-
- ये क्षेत्र स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़े हानिकारक होती हैं। अस्वस्थ एवं दूषित वातावरण के कारण यहाँ अनेक प्रकार की बीमारियाँ फैलती हैं और मृत्य-दर अत्यधिक होती है।
- मेहता ने वेश्यावृत्ति, जुआखोरी, गिरोहबन्दी, स्मगलिंग, पतित और शिथिल यौवन, प्रयास एवं परिश्रम की अकुशलता आदि जैसे अपराधों को मलिन बस्तियों का प्रमुख लक्षण माना है।
- मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मलिन बस्तियाँ निवासियों के मस्तिष्क में इनमें रहने की मानसिकता (Slum mentality) पैदा कर देती हैं। इससे वे निष्क्रिय हो जाते हैं, उनकी कार्य करने की इच्छा समाप्त हो जाती है, उनके मन में जीवन के प्रति भय भरा रहता है और हीनता व बुजदिली की भावनाएँ पैदा हो जाती है।
- मलिन बस्तियाँ मानवीय गुणों, क्षमताओं तथा योग्यताओं का विनाश करती हैं और इस प्रकार सुयोग्य नागरिकों की राष्ट्र में कमी होती रहती है।
- इन बस्तियों का वातावरण वैयक्तिक और पारिवारिक अस्थिरता को जन्म देने वाला होता है क्योंकि लोगों को सफाई आदि के प्रति कोई लगाव नहीं रहता।
- मलिन बस्तियाँ बाल अपराधों को जन्म देती हैं। बच्चे अपने बड़ों को अनुचित, भौतिक और समाज-विरोधी व्यवहार करते हुए देखते हैं। अत: इनका गन्दा वातावरण बच्चों में समाज-विरोधी व्यवहार और अनुशासनहीनता फैलाने में बहुत सहायक है।
मलिन बस्तियों का सुधार एवं उन्मूलन
नगरीय विकास योजनाओं में मलिन बस्तियों के सुधार के लिए अनेक योजनाएँ बनाई जाती हैं। इनकी सफाई की सुधार योजना प्रथम बार 1956 ई० में चालू की गई। ऐसे निवासी, जिनकी मासिक आय 350 रुपये से अधिक नहीं है, उन्हें स्वच्छ क्षेत्रों में मकान देने के लिए राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है। 9 अप्रैल, 1969 ई० में यह योजना राज्य सरकारों को सौंप दी गई है। आज विभिन्न राज्यों में सरकारी आवास एवं विकास परिषदें कार्यरत हैं जो निम्न वर्ग के लोगों की आवास समस्या के समाधान के लिए कम कीमत के मकान बनाकर बहुत कम मासिक किस्तों पर उन्हें देती हैं। मलिन बस्तियों के पर्यावरण को सुधारने के लिए मलिन बस्ती पर्यावरण सुधार योजना कार्यक्रम 1972 ई० में 10 शहरों अहमदाबाद, मुम्बई, बंगलौर, दिल्ली, हैदराबाद, कानपुर, लखनऊ, चेन्नई, नागपुर और पूणे में शुरू किया गया। 1973-74 ई० में 10 और नगरों को परियोजनाओं को स्वीकृति मिल चुकी है जो मलिन बस्तियों में सुधार का कार्य करती थीं। फिर भी, इस दिशा में काई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इसका प्रमुख कारण जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि है।
मलिन बस्तियों के उन्मूलन के लिए निम्नलिखित सुझाव उपयोगी हो सकते हैं-
- नगरीय आवास कार्यक्रमों में तेजी लाई जाए, जिससे इस समस्या का शीघ्र उन्मूलन हो सके। जो मलिन बस्तियाँ नियमित कर दी जाती हैं उनमें सफाई, रोशनी, निकास व जल की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
- नगरों में मलिन बस्तियों को समाप्त कर शासन के सहयोग से इनमें रहने वाले लोगों को सुविधाजनक मकान निर्मित कर आसान किस्तों में किराये पर दिए जा सकते हैं।
- मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों के बीच ही ऐसी समितियाँ बनाई जाएँ जिससे कि वे स्वयं भी अपने निवास की अवस्था में सुधार के लिए प्रयत्नशील हों।
- मकान मालिकों को इनकी दशाओं को सुधारने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए तथा साथ ही किराये पर भी नियन्त्रण किया जाना आवश्यक है।
- भविष्य में नगरों एवं औद्योगिक केन्द्रों का विकास व्यवस्थित रूप से होना चाहिए।
- प्रवर्जन की प्रक्रिया पर भी अंकुश लगाना चाहिए। यदि बड़े पैमाने पर शहरों में जनसंख्या की वृद्धि प्रवर्जन के कारण नहीं हो तो यह समस्या काफी सीमा तक सुलझ जाएगी।
- उद्योगों का विकेन्द्रीकरण भी आवश्यक है। ऐसे बड़े-बड़े शहरों, जहाँ पहले ही आवास समस्या विकराल रूप लिए हुए है, में नए उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए।
- मलिन बस्तियों का विकास न होने देने के लिए केन्द्रीय स्तर पर कानून बनाया जाना चाहिए जिससे कि उनका विकास पूर्णतया रोका जा सके। इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों को अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए।