पदसोपान
औपचारिक संगठन का सबसे महत्त्वपूर्ण तथा आधारभूत यदि कोई सिद्धान्त है तो वह है पद सोपान । यह ‘पदानुक्रम का सिद्धान्त', सीढ़ीनुमा प्रक्रिया, ‘पद श्रृंखला का सिद्धान्त' आदि नामों से भी जाना जाता हैं। प्रत्येक संगठन किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्थापित होता है। संगठन की स्थापना के साथ संगठन की सम्पूर्ण कार्यपालिका शक्ति उसके मुख्य कार्यकारी में निहित कर दी जाती है। चूंकि मुख्य कार्यपालिका एकल रूप में सभी कार्यों और उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं कर सकती इसलिए विशिष्टीकरण के आधार पर कई इकाइयों और उप–इकाइयों के बीच कार्य एवं उत्तरदायित्व का विभाजन करती है।
संगठन को व्यवस्थित रूप देने एवं सुगमतापूर्वक कार्य संचालन हेतु इन इकाइयों और उप–इकाईयों को उच्च अधीनस्थ पीनस्थ शृंखला में व्यवस्थित किया जाता है, जिसके कारण संगठन में आदेश देने एवं पालन करने के तथा उत्तरदायित्व के कई स्तर निर्मित हो जाते हैं, परिणामस्वरूप इन स्तरों पर कार्य करने वाले अधिकारियों के बीच उच्च–अधीनस्थ सम्बन्धों की एक श्रृंखला विकसित हो जाती है जिसे पदसोपान कहते हैं।
पदसोपान के कारण संगठन में शीर्ष पर कर्मचारियों की संख्या कम तथा तल पर कर्मचारियों की संख्या अधिक होती है, जिससे संगठन पिरामिड आकार का रूप ग्रहण कर लेता है। मूने एवं रैले इसे सीढ़ीनुमा प्रक्रिया (Scalar Process) की संज्ञा देते हैं।
पदसोपान का अर्थ एवं परिभाषा
पदसोपान अंग्रेजी के 'Hierarchy' का हिन्दी रूपान्तरण है। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, इसका शाब्दिक अर्थ है "निम्न पर उच्च का नियंत्रण या सत्तापद सोपान को अनेक विद्वानों ने व्यवस्थित रूप से परिभाषित करने का प्रयास किया है जो अग्रलिखित है-
एल.डी.व्हाइट
"पदसोपान संरचना में ऊपर से नीचे तक उत्तरदायित्वों के कई स्तरों के कारण उत्पन्न वरिष्ठ – अधीनस्थ का वह सम्बन्ध है, जो सब जगह लागू होता है।"
जे.डी.मिलेट
"पदसोपान एक ऐसी पद्धति है, जिससे विभिन्न लोगों के प्रयासों को आपस में जोड़ दिया जाता है।'
अर्ल लाथम
"यह ऊँचे और नीचे पदों की एक ऐसी सुनियोजित व्यवस्था है, जो नीचे से ऊपर तक फैली हुई है।"
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन में पदसोपान का अर्थ एक ऐसे बहुस्तरीय संगठन से है, जिसमें उच्च अधीनस्थ शृंखला में जुड़े हुए क्रमवार कई स्तर होते हैं।
पदसोपान की विशेषताएँ
पद सोपान संगठन के सभी क्रिया कलापों को विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन के आधार पर इकाइयों और उप इकाइयों में विभाजित करता है।
यह पद्धति संगठन को पिरामिडनुमा आधार प्रदान करती है, जिसमें संगठन का शीर्ष नुकीला और तल फैला हुआ होता है।
पद सोपान संगठन को बहुस्तरीय बनाता है।
ये संगठन के विभिन्न स्तरों पर कार्यरत सभी कार्मिकों को उच्च–अधीनस्थ शृंखला में जोड़ता है।
पदसोपान सुगम कार्य सम्पादन हेतु संगठन के प्रत्येक स्तर में पर्याप्त सत्ता निहित करता है।
यह सिद्धांत संगठन के प्रत्येक स्तर पर सत्ता एवं उत्तरदायित्व का समुचित तालमेल भी स्थापित करता है।
पद सोपान पर आधारित संगठन उचित माध्यम से कार्य सिद्धान्त का पालन करता है। सभी आदेश तथा सूचनाएं सभी स्तरों से क्रमवार रूप में गुजरती हैं और किसी भी स्तर की अनुल्लंघनीयता स्वीकार नहीं होती।
यह सिद्धान्त आदेश की एकता के सिद्धान्त को समाहित करता है।
पदसोपान प्रणाली
पुलिस विभाग में व्याप्त पद सोपान प्रणाली के उदाहरण के आधार पर इसे आसानी से समझा जा सकता है, जो इस प्रकार है-
पुलिस महानिदेशक
↓
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक
↓
पुलिस महानिरीक्षक
↓
पुलिस उपमहानिरीक्षक
↓
पुलिस अधीक्षक
↓
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक
↓
उप पुलिस अधीक्षक
↓
सहायक पुलिस अधीक्षक
↓
निरीक्षक
↓
सहायक उप निरीक्षक
↓
मुख्य आरक्षी
↓
आरक्षी
'प्रशिक्षु अथवा नवनियुक्त आई.पी.एस. इस पद पर कार्य करता है।
पद सोपान के आधार एवं प्रकार
संगठन को पदसोपानिक आधार पर व्यवस्थित करने के लिए निश्चित आधारों की आवश्कता होती है। विश्व में प्रचलित विभिन्न संगठनों के औपचारिक स्वरूप के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि संगठन को पद सोपानिक स्वरूप में व्यवस्थित करने के भिन्न-भिन्न आधार अपनाए जाते हैं। ये आधार सामान्यतः चार रूपों में मिलते हैं यथा-कार्य, कुशलता, प्रतिष्ठा और वेतन । व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो संगठन के किसी भी औपचारिक स्वरूप को किसी एक आधार पर व्यवस्थित न कर, एक से अधिक आधारों को अपनाया जाता है।
शायद इन्हीं आधारों को ध्यान में रखते हुए पिफनर और शेरवुड ने पद सोपान के चार प्रकार अथवा प्रणालियों की ओर इशारा किया है जो इस प्रकार हैं-
(1) कार्यात्मक पद सोपान (Task Hierarchy)
यह पद सोपान को व्यवस्थित करने की वह प्रणाली है, जिसमें कार्य को आधार बनाया जाता है। कार्य का सीधा सम्बन्ध अधिकार और उत्तरदायित्वों से भी होता है। इस प्रणाली में जो व्यक्ति अधिक महत्त्वपूर्ण एवं उत्तरदायी कार्य सम्पन्न करता है, उसके पद को उच्च स्तर पर तथा ज्यों-ज्यों कार्य की महत्ता और उत्तरदायित्व घटता जाता है, उसके अनुरूप उन्हें घटते हुए क्रम में व्यवस्थित किया जाता है।
(2) प्रतिष्ठा पद सोपान (Rank Hierarchy)
पद सोपान की इस प्रणाली में पदों की स्थिति, उनके कार्य तथा उत्तरदायित्व के आधार पर व्यवस्थित न किया जाकर , पदों को पूर्व निर्धारित, कुछ प्रतिष्ठाओं पर व्यवस्थित किया जाता है । यह प्रणाली मुख्यतः सैन्य संगठनों में अपनाई जाती है। आजकल इसका प्रचलन असैनिक संगठनों में भी हो रहा है। इस प्रणाली में पद स्थिति का सम्बन्ध कार्य एवं उत्तरदायित्व से न होकर पूर्व निर्धारित मान्यताओं पर आधारित होता है।
(3) कुशलता पद सोपान (Skill Hierarchy)
पद सोपान की इस प्रणाली में कर्मचारियों की योग्यता एवं दक्षता को आधार न बनाकर केवल कार्य कुशलता को ही पद अनुक्रम का आधार बनाया जाता है। इसमें अधिक कुशल कार्मिकों को उच्च स्तर पर तथा कम कार्य कुशल कर्मचारियों को निम्न स्तर पर व्यवस्थित किया जाता है।
(4) वेतन आधारित पद सोपान (Pay Hierarchy)
पद सोपान की इस प्रणाली में पद सोपानिक व्यवस्था का गठन वेतन के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार गठित होने वाले पद सोपान में उच्च वेतन पाने वाले कर्मचारियों को ऊँचे पदों पर तथा निम्न वेतन पाने वाले को निचले स्तरों पर व्यवस्थित किया जाता है।
पद सोपान के लाभ एवं महत्त्व
पद सोपान के सिद्धान्त की सार्वभौमिकता एवं महत्ता को स्पष्ट करते हुए मूने ने स्पष्ट किया कि जहाँ कहीं भी वरिष्ठ और अधीनस्थों के सम्बन्धों से बना लोगों का संगठन होगा वहीं सीढ़ीनुमा सिद्धान्त भी लागू होगा।
पद सोपान के लाभों एवं महत्त्व को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-
- यह सिद्धान्त संगठन की विभिन्न इकाइयों को एकीकृत कर संगठन को अविभाज्य बनाता है। प्रो० एम० पी० शर्मा ने ठीक ही कहा है कि पद सोपान, वह धागा है, जिसके द्वारा संगठन के विभिन्न अंगों को एक साथ पिरोया जाता है।
- उर्विक के अनुसार पद सोपान संगठनात्मक समन्वय एवं एकजुटता का माध्यम है। यह संगठन के ढाँचे से उसी तरह सम्बन्धित है, जिस प्रकार सीमेंट अथवा गारा किसी भवन के ढाँचे से सम्बन्धित होता है।
- प्रत्येक संगठन उद्देश्य की एकरूपता पर आधारित होता है, जिसकी प्राप्ति पदसोपानिक व्यवस्था से ही सम्भव है।
- पद सोपान सत्ता के प्रत्यायोजन एवं विकेन्द्रीकरण को सम्भव बनाता है।
- यह सिद्धान्त संगठन में सम्प्रेषण की व्यवस्थित प्रणाली स्थापित करता है।
- यह सिद्धान्त कार्य प्रक्रियाओं के कठोर अनुपालन को आश्वस्त करता है, तथा मध्यस्थ सम्पर्कों की अवहेलना कर लघु कार्य प्रणाली को रोकता है।
- पद सोपान का सिद्धान्त संगठन के शीर्ष पर स्थित मुख्य कार्यपालिका के कार्यभार को कम कर विकेन्द्रीकृत निर्णय-निर्माण प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है। पद सोपान संगठन के प्रत्येक स्तर एवं पद में उत्तरदायित्व निश्चित कर उन्हें जवाबदेय बनाता है।
- पद सोपान व्यवस्था संगठन में प्रत्यायोजन को सुविधाजनक बनाता है।
- पद सोपान संगठन में आदेश की एकता के सिद्धान्त को क्रियान्वित करने की राह आसान बनाता है।
- यह सिद्धान्त उचित प्रक्रिया के माध्यम से कार्य के सिद्धान्त के आधार पर कार्य निष्पादन की व्यवस्थित प्रणाली स्थापित करता है, जो संगठन में सम्प्रेषण की एक व्यवस्थित प्रणाली को प्रोन्नत करता है।
- यह सिद्धान्त कार्मिकों के मध्य संगठन के प्रति अपनत्व की भावना विकसित करने में भी सहायक है।
पद सोपान के दोष
पद सोपान सिद्धान्त की अनेक विद्वानों ने आलोचना की है। पद सोपान के दोषों की ओर संकेत करते हुए अर्ललाथम ने संकेत दिया, कि इस प्रणाली के कारण उच्चाधिकारी बिना सोचे-समझे अधिकारों का प्रयोग करते हैं। वहीं नीग्रो ने स्पष्ट किया कि पद सोपान, संगठन में औपचारिक सम्बन्धों को महत्त्व देता है एवं अनौपचारिक सम्बन्धों की अवहेलना करता है। पद सोपान सिद्धान्त के अन्य आलोचकों में हेनरी फेयोल, एम० पी० फोलेट, टेलर, उर्विक आदि प्रमुख हैं।
पद सोपान सिद्धान्त में निम्नलिखित दोष हैं-
- यह सिद्धान्त संगठन में अनावश्यक कठोरता लाता है तथा गत्यात्मक मानवीय सम्बन्धों की अवहेलना करता है।
- पद सोपान का सबसे गम्भीर दोष यह है, कि यह कार्य निष्पादन में अनावश्यक देरी लाता है।
- पद सोपान का सिद्धान्त संगठनों में लालफीताशाही को प्रोत्साहित करता है, जिसकी परिणति भ्रष्टाचार में होती है।
- यह सिद्धान्त संगठन को यांत्रिक स्वरूप प्रदान करता है तथा मानवीय संवेगों, इच्छाओं, भावनाओं और बाध्यताओं के लिए कोई स्थान नहीं रखता।
- यह सिद्धान्त संगठन में रूढ़िवादिता, कठोर नियमबद्धता को प्रोत्साहित करता है, जिससे पहल न करने की भावना जन्म लेती है।
- यह सिद्धान्त सांगठनिक व्यवस्था में कार्यरत कार्मिकों के बीच उच्च-निम्न का भेद उत्पन्न करता है, जिससे असहयोग एवं अलगाववादी प्रवृत्तियाँ विकसित होती हैं।
- यह प्रणाली आकस्मिक एवं अत्यावश्यक कार्यों के लिए अनुपयुक्त है।
स्पष्ट है कि पद सोपान प्रणाली के कारण संगठन अनेक दोषों एवं बुराइयों से ग्रसित हो जाता है जो संगठन की कार्यकुशलता, मितव्ययता एवं उद्देश्य प्राप्ति में बाधक है।
इन सभी उपर्युक्त दोषों के उपरान्त भी पदसोपान के सिद्धान्त का संगठन में अपना महत्त्व है। कोई भी औपचारिक संगठन इस सिद्धान्त की शायद ही उपेक्षा कर सके। आवश्यकता केवल इस सिद्धान्त को सही रूप में क्रियाशील बनाने की है। इस दृष्टि से उर्विक का यह कथन प्रासंगिक प्रतीत होता है, कि प्रत्येक संगठन में पदसोपान व्यवस्था ठीक उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार घर में नाली, परन्तु इस माध्यम को संचार के एक मात्र माध्यम के रूप में प्रयोग में लाना, उसी प्रकार अनावश्यक है, जिस प्रकार नाली में समय व्यतीत करना।