राष्ट्र का अर्थ
'राष्ट्र' शब्द की उत्पत्ति चमकना अर्थ वाली 'राज्' धातु से हुई है, इसका अर्थ है 'राजते दीप्यते प्रकाशते शोभते इति राष्ट्रम्' अर्थात् जो स्वयं देदीप्यमान होने वाला है वह 'राष्ट्र कहलाता है अथवा विविध वैभव से सुशोभित देश 'राष्ट्र होता है।
संस्कृत के वृहत्कोष में 'राष्ट्र' शब्द का अर्थ 'जनपद' किया गया है तो दूसरे कोष में इसका अर्थ 'विषय' बताया गया है। शब्दकल्पद्रुम में इस अर्थ की पुष्टि के लिए कहा है कि'जो राजा तस्करों को नियंत्रित नहीं करता है और प्रजा से राजकर वसूलता रहता है, वह राष्ट्र बुरी तरह क्षुभित होता है और वह राजा भी स्वर्ग से वंचित हो जाता है। तात्पर्य है कि एक सुशासित राज्य को ही राष्ट्र संज्ञा दी जा सकती है।
मोनियर विलियम्स ने 'ए संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी' में 'राष्ट्र' शब्द के कई अर्थ दिए हैं- Kingdom, Empire, District, Country, People, Nation और Subject. इसी प्रकार वामन शिवराम आप्टे की 'संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी' में Kingdom, Empire, Country, Region, People site Nation.
मानक हिंदीकोष में 'राष्ट्र' शब्द का अर्थ राज्य, देश, किसी निश्चित और विशिष्ट क्षेत्र में रहने वाले लोग जिनकी एक भाषा, एक से रीती-रिवाज तथा एक सी विचारधारा होती है, तथा किसी एक शासन में रहने वाले सब लोगों का समूह किया गया है।
सामान्य रूप से 'राष्ट्र' शब्द इंग्लिश शब्द Nation का और 'राष्ट्रीयता' शब्द इंग्लिश शब्द Nationality का रूपांतर माना जाता है। प्राचीन साहित्य में 'राष्ट्र' शब्द का प्रयोग भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ वेद में देखने को मिलता है। ऋग्वेद संहिता में 'राष्ट्र क्षत्रियस्य', 'राजा राष्ट्रानाम्', 'राष्ट्र गुपितं क्षत्रियस्य' किया गया है।
'राष्ट्र' को जनसमूह राष्ट्रशक्ति कहा जाता है। राजा को 'राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित किया जाता था। राजा राष्ट्र की रक्षा करता था।
राष्ट्र की परिभाषाएं
वासुदेव शरण अग्रवाल - भूमि, भूमि पर बसने वाला जन और जन की संस्कृति, इन तीनों के सम्मिलन से राष्ट्र स्वरूप बनता है।
Oxford English Dictionary - एक पूर्वज की संतान, जिसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराएं एक हों, जो एक विशेष भूमिभाग में निवास करती हो तथा जो सुशासन द्वारा संचालित होती हो, राष्ट्र के अंतर्गत आती हैं।
सुधीन्द्र - भूमि, भूमिवासी जन और जन-संस्कृति तीनों के सम्मिलन से राष्ट्र का स्वरूप निर्मित होता है। भूमि अर्थात् भौगोलिक एकता, जन अर्थात् जनगण की राजनीतिक एकता, जन-संस्कृति अर्थात् सांस्कृतिक एकता तीनों के समुच्चय का नाम राष्ट्र है। राष्ट्र के स्वरूप में भौगोलिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक इकाइयां पुंजीभूत हैं।
नंददुलारे वाजपेयी - राष्ट्र केवल सीमाओं और जनसंख्या के समुच्चय का नाम नहीं है, उसके साथ परिस्थितियों के एक विशिष्ट आपात और एक विशिष्ट इतिहास का भी योग होता है। राष्ट्र एक व्यक्ति के सदृश्य ही है।
स्पष्ट है कि 'राष्ट्र' शब्द के सही अर्थ के बारे में विद्वान् एकमत नहीं हैं। उन्होंने राष्ट्र के किन्ही-किन्हीं विशेष तत्वों पर बल देते हुए अपने-अपने ढंग से उसे परिभाषित करने का प्रयत्न किया है।
राष्ट्र का स्वरूप
क्षेत्र, जाति, भाषा, धर्म, संस्कृति, इतिहास, सभ्यता, आध्यात्मिक भावना आदि की एकता अथवा सदृशता को राष्ट्र का स्वरूप बनाने वाले तत्वों में गिनाया गया है। राष्ट्र के स्वरूप में प्रमुख रूप से भौगोलिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक इकाइयां सम्मिलित होती हैं । इन तीन तत्वों के संकोच और विस्तार के अनुसार राष्ट्र का स्वरूप भी क्रमशः संकुचित और विस्तृत होता रहता है।
मुख्य रूप से पृथ्वी, उस पर बसने वाली जनता और उसकी संस्कृति इन तीनों तत्त्वों के मिलने से राष्ट्र का निर्माण होता है। राष्ट्र केवल पृथ्वी, मिट्टी, पर्वत, नदी आदि नहीं है। उनकी सत्ता तभी सार्थक है जब उस पर जनता का निवास हो और जनता की सत्ता तभी सार्थक होती है जब उसमें संस्कृति का अस्तित्व और विकास हो । संक्षिप्त में कह सकते हैं कि यह एक ऐसा जनसमुदाय, जो एक निश्चित भूभाग पर निवास करता हो, जिसकी अपनी सभ्यता और संस्कृति हो तथा जो एकात्मकता की प्रेम डोर से बंधा हो, 'राष्ट्र' कहलाता है।