समय क्या है, समय किसे कहते हैं - samay kya hai

समय

एक संसाधन के रूप में समय एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है। समय की अवधि सबके लिए समान होती है। समय का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार करता है। समय व्यवस्थापन सफलता का मल मंत्र है। समय को धन की संज्ञा दी गई है परंत खोया हआ धन प्राप्त किया जा सकता है; पुनः कमाया जा सकता है लेकिन खोया हुआ समय किसी भी स्थिति में प्राप्त नहीं किया जा सकता।
samay kya hai
पारिवारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए गृह व्यवस्थापक ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को समय व्यवस्थापन का ज्ञान होना अनिवार्य है। समय की महत्ता सदैव से चली आ रही है। आनन्द एवं सुखमय जीवन के लिए यह आवश्यक है कि हम समय के साथ चलें और इसका अधिकतम उपयोग करें। समय से कार्य करने वाले मनुष्य थकान का अनुभव नहीं करते और स्वस्थ जीवन व्यतीत करते हैं। समय पर कार्य कर लेने से किए जाने वाले कार्य की गुणवत्ता श्रेष्ठ होती है और ऐसे व्यक्तियों की अपने कार्यक्षेत्र एवं समाज में प्रतिष्ठा बनी रहती है।

समय : अर्थ एवं प्रकार

समय एक अत्यधिक महत्वपूर्ण साधन है, इस तथ्य से हम सभी भली-भांति अवगत हैं। यदि आपसे समय का अर्थ पूछा जाए तो संभवतः आपके मन में घड़ी की सुइयों से चलने वाला समय ध्यान में आयेगा। समय का मापन सबसे आसान है परन्तु इसको समझना अत्यधिक कठिन। प्रायः देखा गया है कि व्यक्ति को समय का आभास उसके खो जाने पर होता है। समय के सदुपयोग से व्यक्ति पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को बिना किसी बाधा के प्राप्त करता है। यह तथ्य प्रत्येक व्यवस्थापक को याद रखना चाहिए । समय के विभिन्न प्रकार भी हो सकते हैं, आइए जानें।

गुणवत्ता समय
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में इस समय की सर्वाधिक मांग है। आजकल के व्यस्त जीवन में जहां स्त्री-पुरूष दोनों ही कामकाजी हैं, समय का दायरा सीमित होता जा रहा है। अब एक सीमित समय के भीतर बहुत से काम निपटाने होते हैं। ऐसे में घर, परिवार को समय देना मुश्किल होता जा रहा है। गुणवत्ता समय का तात्पर्य उस समय से है जो आप पूर्णतया अपने परिवार को देते हैं। उदाहरण के लिए सप्ताहंत में बच्चों को घुमाना, सिनेमा, पिकनिक आदि यह समय केवल मौज मस्ती का ही नहीं बल्कि भावनात्मक जुड़ाव एवं आपसी प्रेम एवं सौहार्द का भी प्रतीक है।

मनोवैज्ञानिक समय
इस समय को एक अनुभव की भांति लिया जाता है, जैसे यदि आप किसी परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं तो एक क्षण आपको एक घंटे के समान प्रतीत होता है। परन्तु अवकाश के क्षणों में अपने परिवार के समय बिताने पर समय बहुत जल्दी गुजरता हुआ प्रतीत होता है।

जैविक समय
जैविक समय का तात्पर्य जीवों के भीतर एक निश्चित समय पर होने वाली गतिविधि से है। जैसे प्रातः होने पर स्वयं नीद खुल जाती है, रात्रि होने एवं समय आने पर हमें नींद का अनुभव होने लगता है, खाने का समय होने पर हमें भूख लगने लगती है। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह समयानुसार परिणय सूत्र में बंधे एवं उसे संतान सुख की प्राप्ति हो। यह सब जैविक समय के कारण होता है।

समय सीमा
समय सीमा का अर्थ भिन्न-भिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है जैसे परीक्षा भवन में प्रश्न पत्र हल करने की समय सीमा 3 घंटे है, प्रायः आप देखते हैं किसी भुगतान को हमें तय समय सीमा के भीतर करना होता है। परन्तु एक गृहणी/ व्यवस्थापक के पास सभी दैनिक कार्यों की समय सीमा 24 घंटे मात्र ही है। यदि गृहणी कामकाजी है तो यह और भी कठिन हो जाता है क्योंकि इन्हीं 24 घंटों के भीतर उसे घर, बच्चों और अपने व्यवसाय /कार्यक्षेत्र के
उत्तरदायित्वों का निर्वाहन करना होता है।
आप सभी घर में सम्पन्न होने वाली क्रियाओं से भली-भांति अवगत हैं। आदर्श स्थितियों में गृहणी को अपने कार्यक्षेत्र के अतिरिक्त प्रतिदिन निम्न दायित्वों का निर्वाहन 24 घंटों की समय सीमा के भीतर ही करना पड़ता है।
  • घर की स्वच्छता एवं सजावट।
  • परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था।
  • परिवार के सदस्यों की देखभाल।
  • शैक्षिक विकास पर ध्यान देना।
  • पारिवारिक बजट / परिवार की आर्थिक स्थिति का ध्यान रखना।
  • निवेश पर ध्यान देना।
  • सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में प्रतिभागिता।
  • परिवार के सदस्यों को मार्गदर्शन देना।
  • पारिवारिक सदस्यों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना।
  • स्वयं की देखभाल।
आइए अब अगले भाग की ओर चले

पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में समय की मांग
पिछली इकाईयों में आपने पढ़ा कि पारिवारिक जीवन चक्र में संसाधनों की मांग कभी भी एक समान नहीं रहती है, विशेषकर घरेलू संसाधनों जैसे समय और शक्ति की मांग। आप जान चुके हैं कि समय, पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं से प्रभावित होने वाला कारक है। विभिन्न अध्ययनों से यह उजागर हुआ है कि समय व्यवस्थापन की कुछ समस्याएं पारिवारिक जीवन चक्र की संपूर्ण अवस्थाओं में प्रायः समान ही रहती हैं। ये समस्याएं निम्नवत हैं-
  • कार्य- मनोरंजन के समय में उपयुक्त संतुलन के महत्व का निर्धारण।
  • समय तथा गतिविधियों की योजना बनाते समय परिवार के सभी सदस्यों का ध्यान रखना।
  • वस्तुओं के चयन और योजना के क्रियान्वयन हेतु समय मूल्य का ध्यान रखना।
  • घरेलू क्रियाओं में समय मूल्य को कम करने का प्रयत्न करना।
  • यदि स्त्री कामकाजी है तो यह तय करना कि अधिक आवश्यक क्या है। बढते बच्चों के साथ समय बिताना या कैरियर में आगे बढ़ने (प्रोन्नति) हेतु उस समय का उपयोग करना। यह कामकाजी स्त्री जो कि एक गृहणी भी है के लिए सर्वाधिक दविधा का समय होता है क्योंकि एक ही समय के भीतर उसे उपयुक्त विकल्प का चयन करना होता है। यदि वह परिवार चुनती है तो कार्यक्षेत्र में उसकी उन्नति का मार्ग बन्द हो जाता है जो एक प्रकार से उसकी योग्यता तथा क्षमता का ह्रास है। यदि स्त्री उस विशेष समय को कैरियर हेतु समर्पित करना चाहती है तो उसे परिवार के साथ समय न बिता पाने का अपराध बोध सदैव सालता रहता है। यह एक ऐसी समस्या है जिनका स्थायी हल संभवतः बहुत कम कामकाजी महिलाओं के पास होता है। यहां पर पारिवारिक जीवन चक्र (जिसका अध्ययन हम आगे इस इकाई में करेंगे) की विभिन्न अवस्थाओं में गृहणी की समय की मांग को समझना इसलिए आवश्यक है क्योंकि पूरे दिन में समय की आपूर्ति निश्चित 24 घंटे ही है।
प्रथम अवस्था परिवार की आरम्भिक अवस्था होती है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में यदि परिवार को एकाकी और स्त्री को कामकाजी मान लिया जाए तो भी समय की खपत अधिक होती है। वे बहुत से कार्य जो संयुक्त परिवार में मिल बांट कर सम्पन्न किए जाते हैं, एकाकी परिवार में स्वयं अकेले ही करने पड़ते हैं जिससे समय की खपत बढ़ती है। 
द्वितीय अवस्था अर्थात शिशु आगमन की अवस्था में समय के उपयोग में अधिकतम उछाल आता है। विभिन्न अध्ययनों से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि घर में बच्चों के आने से समय की मांग सर्वाधिक प्रभावित होती है। ये अध्ययन बताते हैं कि-
  • एक वर्ष से छोटे बच्चे की देखभाल में प्रतिदिन औसतन 5 घण्टे 41 मिनट का समय लगता है। संदर्भ: Laura Brossard. “A Study of Time Spent in the Care of Babies' Jr. of Home Ec. p. 123-127.1920. 
  • धुलाई कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्यों में प्रतिदिन लगभग 2.8 घण्टे समय व्यतीत होता है। Jean Warren, “Use of Time in Its Rellation to Home management” June 1940..p 82.
  • दो वर्ष से छोटे बच्चे सहित परिवार के सदस्यों की देखभाल में प्रतिदिन 3.5 घण्टे खर्च होते हैं। संदर्भ: Marriane Muse “Time Expenditure on Home making Ativities)” June 1966 p. 62.
  • अन्य अध्ययन से ज्ञात हआ है कि दो वर्ष से छोटे बालक सहित परिवार के सदस्यों की देखभाल में प्रतिदिन 2-8 घण्टे व्यय होते हैं। संदर्भ: Elizabeth Wiegand “ Use of Time by Full Time & Part Time Home Makers in Relationtion to Home Mgt.
यहां पर यह बताना आवश्यक है कि उपरोक्त सभी आंकड़े पश्चिमी देशों पर हुए अध्ययनों पर आधारित हैं। संस्कृति और पालन पोषण के तौर तरीकों के कारण भारत जैसे देशों में बच्चों की देखभाल पर लगने वाले समय में वद्वि हो सकती है। इस प्रकार समय की मांग, संकचित परिवार की अवस्था (अर्थात आर्थिक स्थिरता एवं सेवानिवृति) आने तक उच्च से मध्यम रहती है। संकुचित अवस्था आने पर समय की मांग तुलनात्मक रूप से कम हो जाती है।

समय व्यवस्थापन प्रक्रिया
यह सर्वविदित है कि समय एक सीमित साधन है। समय अमूल्य है। एक अच्छे व्यवस्थापक को उचित समय प्रबन्ध का ज्ञान होना अति आवश्यक है। समय व्यवस्थापन से सभी कार्य समय पर समुचित तरीके से हो जाते हैं और इस उपलब्ध गुणवत्ता समय में परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे से जुड़ते हैं, संवाद के माध्यम से एक दूसरे का सुख-दुख बांटते हैं और पारिवारिक लक्ष्यों को किस प्रकार प्राप्त किया जाए इस पर चर्चा करते हैं। यह सब तभी संभव हो सकेगा जब गृह व्यवस्थापक अपने समय को सुनियोजित प्रकार से विभाजित करता है। यही समय व्यवस्थापन प्रक्रिया है। समय व्यवस्थापन प्रक्रिया को निम्न प्रकार से परिभषित किया गया है-
“परिवार में होने वाली विभिन्न क्रियाओं तथा उपलब्ध समय के बीच अनुकूलतम समायोजन तथा इसके लिए जो प्रक्रिया प्रयोग में लायी जाती है, उसे ही समय प्रबन्ध प्रक्रिया कहते हैं।
समय प्रबन्ध प्रक्रिया के तीन प्रमुख चरण निम्नवत हैं-
  1. समय आयोजन
  2. आयोजन प्रक्रिया का नियंत्रण
  3. मूल्यांकन
आइए अब प्रत्येक चरण के विषय में विस्तार पूर्वक समझें।

समय आयोजन

समय आयोजन के अन्तर्गत सभी गृहकार्यों को सुचारू रूप से करने के लिए समय योजना बनाई जाती है जिसका अर्थ है निश्चित समयावधि के भीतर किसी कार्य को पूर्ण करना। समय योजना बनाते समय निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है-
  • सभी महत्वपूर्ण कार्य एवं सामान्य कार्य प्राथमिकता के आधार पर किए जाने चाहिए। पहले सभी कार्यों की सूची बना लें और अति महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण एवं कम महत्वपूर्ण कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर सूची में वरीयता दें। 
  • सूची में कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर वरीयता देते समय परिवार के सदस्यों की कार्यक्षमता, रुचि, आवश्यकता, आदतें, विश्राम एवं स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
  • समय-प्रबन्धन योजना लचीली एवं व्यवहारिक होनी चाहिए ताकि परिस्थितियों के अनुसार उस कार्य में परिवर्तन कर उसे संपादित किया जा सके।
  • समय योजना बनाते समय परिवार के अन्य सदस्यों की समय उपलब्धता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। परिवार के सदस्य यदि उस समय विशेष में उपलब्ध हैं तो ऐसी स्थिति में गृह कार्यों में उनका सहयोग लेकर कार्य को सरलता एवं शीघ्रता से किया जा सकता है।
  • सभी संबंधित कार्यों को एक समूह में रखना चाहिए और यथासंभव यह प्रयास किया जाना चाहिए कि एक समय में दो-तीन कार्य एक साथ संपन्न किए जाएं। अंग्रेजी में इसे Multitasking कहा जाता है। यह एक कौशल है। अभ्यास एवं अनुभव द्वारा इसे सीखा और बेहतर किया जा सकता है। आधुनिक समय में मल्टिटास्किंग सफल समय प्रबन्धन की धुरी है।
  • समय प्रबन्ध का अर्थ यह कदापि नहीं है कि दिए गए कार्य को शीघ्रता से निपटा दिया जाए। ऐसा करने से कार्य की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। अतः समय योजना में प्रत्येक कार्य के लिए पर्याप्त समय दिया जाना आवश्यक है।
  • किए जाने वाले कार्य के स्वरूप और प्रकृति को जानना आवश्यक है। इससे उस कार्य में लगने वाले समय का आभास होता है और समय आयोजन में सहायता मिलती है।
  • जहाँ तक संभव हो योजना लिखित रूप में तैयार कर लेनी चाहिए। योजना साप्ताहिक, मासिक, विशिष्ट अवसरों हेतु एवं वार्षिक कार्य सूची के रूप में उपलब्ध हो तो कार्य करने में सरलता होती है।
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर देखा जाए तो कोई भी कार्य बोझ नहीं लगता है। यथासंभव सभी कार्य समय पर पूरा करने का प्रयत्न करें। इससे आपके आत्म विश्वास में वृद्धि होगी और आप संतुष्टि का अनुभव करेंगे।

कार्य योजना निर्माण के विभिन्न प्रकार हैं
  • साधारण कार्य योजना : यह एक अत्यन्त सरल और साधारण कार्य योजना है। इसमें छोटे बड़े कार्यों की सूची बना ली जाती है। प्रायः इसे एक कागज पर लिखकर किसी ऐसी जगह चिपका दिया जाता है जहां से यह योजना आसानी से दिख सके और उस अनुसार इसे क्रियान्वित करने का प्रयास किया जाता है।
  • विस्तृत योजना : विस्तृत योजना साधारण कार्य योजना की अपेक्षा सुनियोजित होती है एवं इसमें अधिक विवरण डाले जाते हैं। इस योजना में समय निर्धारण नहीं किया जाता है परन्तु योजना संबंधी सहायक तथ्यों को एकत्रित कर अंकित किया जाता है।
  • समय अनुसूची : यह समय योजना उपरोक्त दोनों प्रकारों से अधिक स्पष्ट, विस्तृत एवं सुनियोजित होती है। इसमें समय का क्रम, कार्य की वरीयता और अनुमानित समय भी सम्मिलित किया जाता है।

समय आयोजन के चरण

  • कार्य सूची बनाकर समूहों में बाँटना
  • अनुमानित समय का निर्धारण करना
  • समय क्रम निर्धारित करना
  • व्यय समय का उपलब्ध समय के साथ समन्वय स्थापित करना
  • योजना का लेखन
  • योजना के समन्वय पर काम करना
आइए इस पर विस्तृत रूप से जानकारी लें।

समय आयोजन
  • प्रथम चरण : समय योजना के प्रथम चरण में सभी कार्यों की सूची बनाई जाती है। वे कार्य जो एक साथ किए जा सकते हैं, उन्हें समूहीकृत किया जाता है। जटिल कार्यों को विभिन्न भागों में विभाजित करने से उन कार्यों को करने में आसानी होती है।
  • द्वितीय चरण : द्वितीय चरण में व्यय होने वाले समय का अनुमान लगाया जाता है।
  • तृतीय चरण : तृतीय चरण में समय संबंधी आवश्यकताओं को एकरूपता प्रदान की जाती है।
  • चतुर्थ चरण : चतुर्थ चरण में समय क्रम का निर्धारण किया जाता है। क्रम के साथ-साथ अनुमानित समय भी लिख दिया जाता है। जहां तक संभव हो पहले भारी कार्यों को निपटायें तत्पश्चात हल्के कार्यों को। इससे मनोवैज्ञानिक रूप से आप मजबूत बनेंगे और जटिल कार्य पूर्ण कर लेने से आप उत्साहित अनुभव करेंगे। समय बचत संबंधी साधनों एवं उपकरणों का अवश्य प्रयोग किया जाना चाहिए। प्रत्येक कार्य को समय से पहले निपटने से पूर्व यह अवश्य देख लें कि ऐसा करने से कहीं कार्य की गुणवत्ता तो प्रभावित नहीं हो रही है। यदि हां, तो आपको एक बार पुनः नए सिरे से योजना बनाने की और कार्य के प्रत्येक चरण को पूर्ण करने के लिए पर्याप्त समय दिए जाने की आवश्यकता है।
  • पंचम चरण : अन्तिम चरण में योजना को लिखा जाता है।
एक दैनिक समय कार्य योजना नीचे दी गई तालिका में प्रस्तुत है। इसी प्रकार पाक्षिक, मासिक एवं वार्षिक कार्य योजना भी बनाई जा सकती है।

दैनिक कार्य योजना
समय क्रियाएँ
सुबह 5.00 - 6.00 सुबह उठना, नित्यकर्म से निवृत होना, पूजा करना, नाश्ते की तैयारी करना।
6.00 - 7.00 सुबह का नाश्ता तैयार करना।
7.00 - 7.45 नाश्ता परोसना।
7.45 - 9.30 टेबल साफ करना, बर्तन धोना तथा अन्य रसोई कार्य, दोपहर के खाने की तैयारी, बिस्तर ठीक करना, घर के सभी कमरों को व्यवस्थित करना।
9.30 - 10.00 विश्राम।
10.00 - 11.00 साप्ताहिक कार्य (दिन)
सोमवार-धुलाई
मंगलवार- प्रेस करना
बुधवार- सामान लाना (राशन एवं अन्य)
गुरूवार- सिलाई रचनात्मक
शुक्रवार- साप्ताहिक सफाई
शनिवार- बाजार
रविवार- चर्च, मन्दिर, संबंधियों से मिलना जलना आदि।
11.00 - 12.00 दोपहर का खाना तैयार करना।
दोपहर 12.00 -1.00 दोपहर का खाना परोसना, टेबल साफ करना, बर्तन धोना तथा अन्य रसोई कार्य आदि।
1.00 - 2.00 विश्राम करना।
2.00 - 3.00 बच्चों की स्कूल से वापसी।
3.00 - 5.00 चाय की तैयारी, साप्ताहिक कार्य निपटाना।
सायं 6.00 - 8.00 बच्चों का गृहकार्य, पढ़ाई कराना।
8.00 - 10.00 रात के खाने की तैयारी, खाना तैयार करना, परोसना, टेबल साफ करना, बर्तन आदि धोना, अगली सुबह के नाश्ते की तैयारी करना।
रात्रि 10.00 सोने की तैयारी।

समय आयोजन प्रक्रिया पर नियंत्रण

समय योजना बना लेने या लिखित रूप से सूची बना लेने मात्र से ही प्रबन्धन किया जाना संभव नहीं है। योजना की सफलता कार्य योजना के नियंत्रण पर निर्भर करती है। समय योजना में अनुमानित समय को अंकित करने का कारण यही है कि बाद में कार्य योजना पर नियंत्रण किया जा सके। यह पता लग सके कि कार्य अनुमानित समय में पूरा हुआ है या नहीं? नियंत्रण यहीं से आरम्भ होता है।
नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है कि समय योजना स्पष्ट, व्यवहारिक, तर्कसंगत और लचीली हो। ऐसी योजनाओं का न केवल क्रियान्वयन, अपितु नियंत्रण भी सरल हो जाता है। योजना बनाते समय कार्य में आने वाली कठिनाईयों/बाधाओं के पूर्वानुमान एवं पूर्व समाधान पर विचार करने से जटिल से जटिल कार्य भी सरल हो जाते हैं। मानसिक रूप से बाधाओं एवं कठिनाईयों हेतु तैयार रहना चाहिए तथा अपना नियंत्रण नहीं खोना चाहिए, यही एक व्यवस्थापक का सबसे बड़ा गुण है।
  • योजना में अवरोध आने पर उन्हें निम्न प्रकार से दर किया जा सकता है
  • अति महत्वपूर्ण कार्य को पहले समाप्त करके कार्य की गति बढ़ाना।
  • परिवार के अन्य सदस्यों, मित्रों और सहायकों की मदद लेना।
  • कार्य के पूर्ण न हो पाने की स्थिति में अपने विश्राम के खाली समय में उस कार्य को पूर्ण करना।
अब हम समय प्रबन्ध प्रक्रिया के तृतीय चरण के बारे में जानेंगे।

समय आयोजन का मूल्यांकन

प्रबन्ध प्रक्रिया का अन्तिम चरण मूल्यांकन है। मूल्यांकन से किसी योजना की सही वस्तु स्थिति पता चलती है। जैसे कार्य योजनानुसार सफल हुआ या नहीं, व्यक्ति के लक्ष्यों की पूर्ति हुई या नहीं। यदि नहीं. तो वे कौन-कौन से कारण हैं जिनके कारण योजना असफल रही। मूल्यांकन द्वारा इन अवरोधों का विश्लेषण किया जाता है।
कार्य का क्रियान्वयन करते समय निरीक्षण करते रहना आवश्यक है ताकि आवश्यकता पड़ने पर योजना में आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें। मूल्यांकन के दौरान निम्न बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है-
  • क्या योजना व्यवहारिक थी?
  • क्या बनाई गई योजना से परिवार के प्रत्येक सदस्य संतुष्ट हैं?
  • क्या कार्य योजना ने परिवार के सदस्यों की नींद, विश्राम और स्वास्थ्य को प्रभावित किया? यदि हाँ, तो कैसे?
  • जो कार्य पूर्ण नहीं हो सके उनके लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी हैं?
  • समग्र रूप से योजना में क्या संतोषजनक बिन्द तथ्य है?
  • समग्र रूप से योजना यदि दोषपूर्ण तथ्य है तो उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?

समय व्यवस्थापन के निर्धारक तत्त्व

अब तक आपने एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में समय का अर्थ, प्रकार एवं उसके प्रबन्धन के विषय में समझा। समय संबंधी हमारी योजना तय कार्यक्रमानुसार चले, यह सदैव संभव नहीं हो पाता है। हमारी समय व्यवस्था निम्न तत्त्वों द्वारा निर्धारित होती है

समय मूल्य
जैसा कि हम जानते हैं कि सबके पास एक दिन में केवल 24 घंटे का समय ही होता है। इसी सीमित अवधि में सबको अपने कार्य निपटाने होते हैं। परन्तु रोजमर्रा के जीवन में हमें किसी कार्य के लिए समय मूल्य को पहचानना आवश्यक है। यह समय मूल्य विभिन्न गतिविधियों के लिए भिन्न होता है परन्तु इसका प्रभाव पूर्णत: समय प्रबन्धन प्रक्रिया पर पड़ता है। उदाहरण के लिए यदि आप अपने कार्यस्थल बस से जाते हैं और बस के स्टॉप पर आने का समय निश्चित है। यदि आप इस समय मूल्य को नहीं पहचानते हैं तो आपकी बस छूट जाएगी और आप कार्य स्थल पर देरी से पहुँचेंगे या यह भी संभव है कि आप उस दिन कार्यस्थल पर जा ही ना पाएँ जिससे आपकी पूरी समय योजना प्रभावित होगी। इसके विपरीत यदि आप समय मूल्य पहचानते हैं तो आप समय पर बस स्टॉप जाकर बस पकड़ पाएंगे और इस एक कार्य को समय पर पूर्ण कर पाने से आप सूची में अंकित अन्य दूसरे कार्यों को करने के लिए प्रेरित होंगे। कोई भी कार्य यदि समय पर पूर्ण हो तो ही उसका समय मूल्य मिल पाता है और यह आपके समय प्रबन्धन को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से निर्धारित करते हैं।

समय मानक
‘समय मानक' अथवा 'मानक समय’ का अर्थ किसी कार्य को कुशलतापूर्वक सम्पादित करने में लगने वाले समय से है। घरेलू कार्यों के लिए गृहणी को मानक स्वयं स्थापित करने होते हैं। ज्ञान, अभ्यास, संवाद और आदान-प्रदान द्वारा मानकों में निरन्तर सुधार किया जा सकता है। मानकों के बेहतर होने का सीधा प्रभाव आपकी समय प्रबन्धन प्रक्रिया पर पड़ता है।
समय मानक से अभिप्राय उस समय से है जो कि एक क्रिया को पूरा करने में लगता है अर्थात एक कार्य को पूर्ण करने में कितना समय व्यय होगा, यह निश्चित करना ही समय मानक है।

समय-क्रम
एक दिन में किए जाने वाले समस्त कार्यों की समय के परिप्रेक्ष्य में क्रम व्यवस्था ही समय क्रम कहलाती है। यदि व्यवस्थापक द्वारा क्रम निर्धारित किया गया है तो इससे कार्य सरलता एवं कुशलतापूर्वक संपन्न हो जाता है। इस प्रकार शारीरिक और मानसिक थकान नहीं होती है। समय क्रम का अर्थ है दैनिक कार्यों (घरेलू कार्यों) को क्रम से सम्पादित करना अर्थात कार्यों को ऐसा क्रम देना ताकि सभी कार्य निर्धारित समय पर बिना थके संपन्न हो जाएँ।
समय क्रम निम्न बिन्दुओं पर निर्भर करता है।
  • घरेलू क्रियाओं का आपसी संबंध
  • व्यक्ति की कार्यों के प्रति रुचि

कार्य भार
प्रत्येक दिन एक समय ऐसा आता है जब गृहणी पर सर्वाधिक कार्यभार आ पड़ता है। अधिकतम कार्यभार वाले समय को 'शिखर समय' (Peak Time) भी कहते हैं। इस समय पर एक के बाद एक क्रम से अनेकों कार्य निपटाने पड़ते हैं। यह कार्यभार परिवार के सदस्यों की संख्या, आयु, रहन-सहन स्तर, व्यवसाय एवं जीवन शैली पर निर्भर करता है।
एक अध्यापक के लिए मार्च-अप्रैल माह का समय अत्यधिक कार्यभार वाला है। इसी प्रकार एक कामकाजी स्त्री के लिए सुबह का समय 'शिखर समय' है।
अधिकतम कार्यभार से पूर्णतया बचा तो नहीं जा सकता परन्तु कुछ उपायों द्वारा इसे अपेक्षाकृत कम किया जा सकता है। जैसे, सरल काम को थोड़ा-थोड़ा निपटा कर, उपकरणों की सहायता लेकर, पूर्व तैयारी कर तथा परिवार के सदस्यों के सहयोग द्वारा आदि।

कार्य वक्र
कार्य वक्र एक प्रकार का यंत्र है जो मूलतः उद्योगों में उपयोग में लाया जाता है। कार्य का वक्र एक निर्धारित समय में कार्य के उत्पादन में परिवर्तन को दर्शाता है। कार्यकर्ता द्वारा किए गए कार्य की इकाई की मात्रा दिए हुए समय में गिनी जाती है और इस प्राप्ति की संख्या को वक्र के रूप में दर्शाया जाता है। उत्पादन कब-कब प्रभावित होता है, इसका निरीक्षण किया जाता है।
कई अध्ययनों से यह ज्ञात होता है कि सुबह के समय कार्यक्षमता अधिक होती है क्योंकि शरीर में नई स्फूर्ति और ताजगी भरी रहती है। सुबह समस्त कार्य तीव्र गति से होते हैं, दोपहर तक कार्य करने की गति मन्द होती जाती है। एक समय ऐसा आता है जब विश्राम की आवश्यकता अनुभव होने पर कई व्यक्ति अल्प विश्राम करते हैं और विश्राम उपरान्त उनकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है। इसके विपरीत कई व्यक्ति सुबह से सायंकाल तक बिना थके कार्य करते हैं और फिर शाम के समय थकान महसूस करते हैं।
कार्य वक्र किस प्रकार समय प्रबन्धन में सहायक है यह जानना आवश्यक है। इस वक्र की सहायता से व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक क्षमता तथा कार्य सम्पादन एवं समय के मध्य संबंध का पता चलता है। इस प्रकार कार्य का उचित प्रकार से विभाजन करके गृहणी निश्चित समय में अधिकतम कार्य कर सकती है।

जीवन चक्र
परिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में भी कार्य वक्र भिन्न-भिन्न होता है। इस संबंध में हम पिछली इकाई में पढ़ चुके हैं। आइए इसको वक्र के माध्यम से समझने का प्रयास करें।
  1. प्रारम्भिक अवस्था
  2. विस्तार अवस्था
  3. संकुचित अवस्था
  4. सेवानिवृति अवस्था
विश्राम काल : निरन्तर कार्य करने के बाद शारीरिक और मानसिक थकान होना स्वाभाविक है। थकान दूर करने के बाद पनः नई स्फूर्ति से कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए। विश्राम काल का हमारी कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

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