उपभोक्ता किसे कहते है - upbhokta kise kahate hain

उपभोक्ता किसे कहते है

आधुनिक बाजार का मुख्य आधार उपभोक्ता है जिसके चारों तरफ व्यापारिक गतिविधियाँ घूमती हैं। किसी भी व्यापारिक संस्था में उपभोक्ता को सर्वोपरि माना जाता है तथा व्यापारिक क्रियाओं के नियोजन में उपभोक्ता की माँग व आवश्यकताएं मुख्य केन्द्र बिन्दु होते हैं। अब आपके मस्तिष्क में प्रश्न उठेगा कि उपभोक्ता कौन है? मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग करता है, यह क्रिया उपभोग कहलाती है तथा वस्तु का प्रयोग करने वाला उपभोक्ता कहलाता है। उपभोक्ता कई प्रकार के होते हैं, जैसे घरेलू, व्यापारिक, वर्तमान, भावी, ग्रामीण, शहरी, धनी, निर्धन, मध्यवर्गीय, बाल, युवा, प्रौढ़, वृद्ध, पुरूष, स्त्री आदि। वर्तमान समय का उपभोक्ता कहीं भी, कभी भी अपने उपभोग की वस्तु खरीद सकता है। उपभोक्ता को पता है कि वे क्या खरीद रहे हैं तथा क्यों खरीद रहे हैं। आप कह सकते हैं कि आज का उपभोक्ता अधिक जागरुक है। परन्तु भोगवादी प्रवृति तथा नित्य प्रति बढ़ रही आवश्यकताओं की पूर्ति के कारण उपभोक्ता का शोषण भी हो रहा है।
upbhokta-kise-kahate-hain
विक्रेता द्वारा अधिक धन कमाने का लालच तथा बढ़ती स्पर्धा के कारण उपभोक्ता को अनेक समस्याओं जैसे मिलावट, कम नाप तोल, मिथ्या छाप (लेबल) आदि का सामना करना पड़ता है। उपभोक्ता इन समस्याओं से तभी बच सकते हैं जब वे शिक्षित और जागृत हों। इसके लिए उन्हें अपने दायित्वों और अधिकारों से परिचित होना आवश्यक है।
विगत कुछ वर्षों से उपभोक्ता को विभिन्न उत्पादों के बारे में जानकारी प्राप्त हो रही है, जिसका मुख्य कारण उपभोक्ता का सूचना पर्यावरण है। उपभोक्ता को जनसंपर्क माध्यमों और विज्ञापनों के द्वारा भी जानकारी प्राप्त होती है। एक तरफ जहाँ उपभोक्ता बिना किसी नुकसान के अच्छी प्रकार से सोच समझकर उत्पाद खरीदता है तो दसरी तरफ व्यापारी विक्रय सम्वर्द्धन जैसी क्रियाओं को अपनाता है जिससे उत्पाद के विक्रय में वृद्धि हो।

उपभोक्ता

साधारण शब्दों में उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु वस्तुओं एवं सेवाओं का उपयोग करता है। वस्तुएं उपभोगीय वस्तु जैसे आटा, नमक, दाल, फल आदि या टिकाऊ वस्तु जैसे टी.वी. फ्रिज, साइकिल, मिक्सी आदि होती है। जबकि सेवाओं से तात्पर्य बिजली, टेलीफोन, परिवहन साधन, सिनेमा आदि से है।
कानून की दृष्टि में दोनों प्रकार के व्यक्ति, जो मूल्य देकर वस्तु या सेवाएं खरीदते हैं तथा वह व्यक्ति जो विक्रेता की सहमति से वस्तु या सेवा का प्रयोग करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। जैसे जब आप स्वयं तथा अपने परिवार के लिए फल खरीदते हैं तो आप और आपके परिवारजन उपभोक्ता कहलाते हैं।
परंतु वह व्यक्ति जो वस्तुओं को खरीदकर पुनः बेचता है या उसका व्यवसायिक उपयोग करता है, वह उपभोक्ता नहीं कहलाता है क्योंकि वह व्यक्ति उस वस्तु का वास्तविक उपयोग नहीं कर रहा है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की परिभाषा के अनुसार “कोई भी व्यक्ति जो मूल्य देकर किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त कर उसका उपभोग करता है, वह उपभोक्ता की श्रेणी में आता है।

ग्रामीण बनाम शहरी उपभोक्ता

प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता होता है परंतु उनकी प्रकृति में अंतर होता है। स्थान के आधार पर उपभोक्ता दो प्रकार के होते हैं, ग्रामीण उपभोक्ता और शहरी उपभोक्ता। दोनों उपभोक्ताओं में अंतर निम्नलिखित हैं:-
ग्रामीण उपभोक्ता शहरी उपभोक्ता
उपभोक्ता गाँव में रहता है जहाँ औद्योगिकीकरण नहीं है। उपभोक्ता शहर में रहता है जहाँ शहरीकरण और औद्योगिकीकरण है।
उपभोक्ता कम शिक्षित या अशिक्षित होते हैं तथा उनमें तकनीकी बदलाव के बारे में जागरुकता और ज्ञान विकसित करने में कठिनाई होती है। उपभोक्ता शिक्षित या कम शिक्षित होते हैं तथा तकनीकी बदलाव के प्रति सजग रहते हैं।
उपभोक्ता का मुख्य व्यवसाय कृषि है। अतः इनकी आय मौसमी रहती है। उपभोक्ता का मुख्य व्यवसाय औद्योगिकी, प्रबंधन और व्यवसाय होता है।
संचार माध्यमों से संपर्क कम रहता है। अतः नए उत्पादों के बारे में जानकारी कम रहती है। संचार माध्यमों से संपर्क अधिक रहता है। अतः नए उत्पादों की प्रथम सूचना मिल जाती है।
गैर-भोज्य पदार्थों पर कम खर्च करते हैं। गैर-भोज्य पदार्थों पर अधिक खर्च करते हैं।
उपभोक्ता की क्रय क्षमता, रहन सहन का स्तर प्रति व्यक्ति आय, आर्थिक और सामाजिक स्थिति निम्न होती है। उपभोक्ता की क्रय क्षमता, रहन सहन का स्तर, प्रति व्यक्ति आय, आर्थिक और सामाजिक स्थिति अपेक्षाकृत उच्च होती है।
उपभोक्ता अपने रीति-रिवाजों और परम्पराओं का अधिक सम्मान करते हैं तथा उनको बदलना या तोड़ना पसंद नहीं करते। उपभोक्ता परिस्थिति अनुसार रीति-रिवाजों और परम्पराओं में परिवर्तन कर लेते हैं। इनमें सामाजिक एवं सांस्कृतिक बदलाव तीव्रता से आते हैं।
उपभोक्ता अपने परिवेश व आस-पास के लोगों का अनुकरण कर वस्तु क्रय करता है। उपभोक्ता अपनी आवश्यकता के अनुसार वस्तु क्रय करता है।
उपभोक्ता टिकाऊ वस्तु जैसे टी. वी., फ्रिज, गाड़ी आदि की खरीददारी का नियोजन काफी पहले से करते हैं। उपभोक्ता वस्तु क्रय करने से पूर्व अधिक नियोजन नहीं करता।
वस्तुओं को क्रय करने का निर्णय सामूहिक होता है जिसमें खरीददार, व्यस्क पुत्र, गाँव का सफल व्यक्ति और मैकेनिक आदि होते हैं। उपभोक्ता का वस्तु क्रय करने का निर्णय एकल होता है। परिवारजन वस्तु के रंग व आकार चुनने में मदद करते हैं।
उपभोक्ता सरपंच, कॉलेज में पढ़ने वाले युवा या शहरी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों से विचार विमर्श व सलाह लेता है। उपभोक्ता सिनेमा के कलाकारों, खिलाड़ियों या अधिक ख्याति प्राप्त लोगों से प्रभावित होकर क्रय करता है।

उपभोक्ता की विशेषताएँ

उपभोक्ता अपनी समस्त क्रियाएं स्वयं की आवश्यकताएं पूरा करने हेतु और अपना जीवन स्तर ऊँचा करने हेतु करता है। व्यक्ति के पास अपनी अनन्त आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु सीमित धन होता है। व्यक्ति को आवश्यकताओं की पूर्ति में संतुष्टि तभी प्राप्त हो सकती है जब वह विवेकपूर्ण व्यय करें। इसके लिए उपभोक्ता में कुछ विशेषताएं होनी चाहिए, जो निम्नलिखित हैं-

कोई भी व्यक्ति उपभोक्ता हो सकता है।
उपभोक्ता का सम्बन्ध व्यक्ति के अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, ग्रामीण-शहरी होने से नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति की कुछ आवश्यकताएं होती हैं जिन्हें पूरा करने के लिए वह वस्तु नकद या उधार क्रय करता है। अतः हर व्यक्ति उपभोक्ता है।

उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं के लिए मूल्य देता है।
एक भिखारी यदि भीख माँगकर बिना मूल्य दिए भोजन ले रहा है तो वह उपभोक्ता नहीं है परन्तु उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। उपभोक्ता वह है जो वस्तुओं और सेवाओं की कीमत चुका कर उन्हें क्रय करता है।

उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं दोनों का उपयोग करता है।
उपभोक्ता अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वस्तुएं क्रय करता है तथा धन देकर सेवाएं जैसे डॉक्टर की सेवाएं प्राप्त करता है। अतः वस्तु और सेवा दोनों उपभोक्ता के उपभोग क्षेत्र में आते हैं।

उपभोक्ता और क्रेता में अंतर होता है।
कोई व्यक्ति उपभोग हेतु वस्तु का क्रय करता है, तो वह उपभोक्ता है। यदि व्यक्ति वस्तु का क्रय करता है पर उपभोग नहीं करता तो वह उपभोक्ता नहीं क्रेता कहलाता है। उदाहरण के लिए यदि हमने अपने मित्र को जन्मदिन में देने के लिए उपहार खरीदा तो हम क्रेता कहलाएंगे, उपभोक्ता नहीं। अतः यह आवश्यक नहीं कि हर क्रेता उपभोक्ता हो।

उपभोक्ता द्वारा अंतिम उपभोग अनवार्य है।
क्रय की गई वस्तु का प्रयोग करना उपभोक्ता के लिए अनिवार्य है, अन्यथा वह क्रेता कहलाएगा।

उपभोक्ता क्रय से पूर्व वस्तुओं और सेवाओं की पूछताछ करता है।
एक समझदार उपभोक्ता किसी भी वस्तु या सेवा का क्रय करने से पूर्व उसकी जाँच-पड़ताल करता है। इसके लिए वह उनके बारे में पढ़ता है, दोस्तों और परिवार के विचार प्राप्त करता है, अलग-अलग स्टोरों/दुकानों में पूछताछ करता है तथा इंटरनेट में देखता है।

उपभोक्ता कभी भी खरीददारी कर सकता है।
आधुनिक उपभोक्ता की विशेषता यह है कि वह दिन के किसी भी समय वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग कर सकता है और विक्रेता पूरे दिन उन उपभोक्ताओं की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु तत्पर रहते हैं। यह इंटरनेट और ऑनलाइन खरीददारी से संभव हुआ है।

उपभोक्ता नियंत्रण में रहते हैं।
आज के युग का उपभोक्ता अपनी खरीददारी के अनुभवों के नियंत्रण में है और वह जानता है कि वह अपनी खरीददारी के अनुभवों को दूसरे उपभोक्ताओं के साथ साझा कर सकता है। उपभोक्ताओं के पास प्रत्येक क्रय निर्णयों के बारे में खोजने, अनुसंधान करने और बाँटने के माध्यम हैं। इसलिए विक्रेता को उनकी जिज्ञासाओं का तुरंत उत्तर देना चाहिए।

उपभोक्ता इच्छुक होते हैं।
उपभोक्ता इच्छुक प्रवृत्ति के होते हैं। उनमें कुछ ही समय में किसी वस्तु या सेवा के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की वृहद क्षमता होती है। उनके मस्तिक में यह स्पष्ट रहता है कि वे क्या और क्यों खरीद रहे हैं।

उपभोक्ता वस्तु और सेवा से हमेशा जड़े रहते हैं।
फेसबुक, ट्विटर जैसी सामाजिक नेटवर्किंग साइट्स के कारण उपभोक्ता के जीवन में दिन-प्रतिदिन नए बदलाव आ रहे हैं। मोबाइल फोन व इंटरनेट के माध्यम से उपभोक्ता कहीं भी, कभी भी तथा कोई भी सूचना ऑनलाइन प्राप्त कर उस पर कार्यवाही कर सकता है। उपभोक्ता द्वारा किसी भी वस्तु या सेवा के बारे में कही गई अच्छी या बुरी बात उस वस्तु को बाजार में सफल या असफल बना सकती है। उपभोक्ता एक ही वस्तु के विभिन्न ब्रांडों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर सकता है।

उपभोक्ता की समस्याएं

आज के युग में व्यक्ति की भोगवादी प्रवृत्ति जैसे-जैसे बढ़ रही है वैसे-वैसे उपभोग की वस्तुओं एवं सेवाओं की सूची में निरन्तर वृद्धि हो रही है। सीमित साधनों में असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति करना मुश्किल कार्य है। उत्पादनकर्ता और विक्रेता द्वारा कम समय में अधिक लाभ कमाने की लालसा के कारण उपभोक्ता का शोषण होता है। उसका पारिवारिक बजट असंतुलित हो जाता है। सामान्यतः उपभोक्ता को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है:-

1. मिलावट

2. दोषयुक्त माप एवं भार

3. बाजार में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रकार
  • भ्रामक विज्ञापन
  • निम्न स्तरीय वस्तुएं
  • वस्तुओं की अपर्याप्त पूर्ति
  • करों में हेरा फेरी
  • गलत चिन्ह तथा लेबल का प्रयोग
  • अशिष्ट व्यवहार

4. मूल्य वृद्धि

5. प्रत्याभूति तथा आश्वस्ति

6. किश्तों में खरीददारी

आइये, प्रत्येक पर चर्चा करें।

1. मिलावट
आज के दौर में बाजार में शुद्ध वस्तुओं का मिलना एक चुनौती बन गया है। वस्तुओं में मिलावट करना आम बात हो गई है। सरसों के तेल में धतूरे या अलसी का तेल, मसालों में घास-फूस, अनाज में कंकड़-पत्थर, काली मिर्च में पपीते के बीज, ताजी चाय पत्ती में प्रयोग की गयी चायपत्ती को सुखाकर पुनः मिलाना, रंगीन मिठाइयों में न खाने वाले रंग, हल्दी में गेरू, दूध में पानी, अरारोट, सोडा, यूरिया आदि की मिलावट की जाती है। इन मिलावटों से भोज्य पदार्थों की पौष्टिकता खत्म हो जाती है। कभी-कभी मिलावट से विषाक्तता भी हो जाती है। इन मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से व्यक्ति बीमार और कमजोर हो जाते हैं। कभी-कभी व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है। मिलावट से उपभोक्ता को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक नुकसान भी पहुँचता है।

2. दोषयुक्त माप एवं भार
स्टैंडर्ड ऑफ वेट एक्ट बनने के बाद माप व भार हेतु मानकीकृत इकाईयों जैसे किलो-ग्राम, लीटर-मिलि लीटर, मीटर-सेंटीमीटर का प्रयोग होने लगा है, परन्तु व्यापारी वर्ग बड़ी चालाकी से उपभोक्ता को ठग लेते हैं। जैसे वस्तु को तोलते समय हाथ से तराजू का माप झुकाना जिससे वस्तु का वजन कम आता है, कपड़ा खींचकर नापने से 1-2 से0मी0 कम हो जाता है, तराजू के नीचे चुम्बक लगाना, कम भार का बाट न होने पर पत्थर इस्तेमाल करना, आकर्षक पैक में कम मात्रा में वस्तु डालकर अधिक मात्रा का लेबल लगाना आदि। इस प्रकार उपभोक्ता द्वारा पूरा पैसा देने पर भी सही वजन की वस्तु नहीं मिलती है।

3. बाजार में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रकार
आजकल बाजार में विभिन्न प्रकार की वस्तुएं उपलब्ध हैं। इन वस्तुओं को विक्रेता जल्द से जल्द बेचना चाहता है, जिसके लिए वह गलत तरीकों का प्रयोग कर उपभोक्ता का शोषण करता है। विक्रेता निम्न तरीकों से उपभोक्ता का शोषण कर सकता है

भ्रामक विज्ञापन
उत्पादनकर्ता अपनी वस्तुओं की सही जानकारी उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए विज्ञापन की सहायता लेते हैं। परन्तु विज्ञापनों को ऐसे मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है कि उपभोक्ता वस्तु के गुण-दोष न देखकर विज्ञापन के आकर्षण में उलझकर वस्तु क्रय करता है। विज्ञापन कई उत्पादों के बारे में भ्रामक जानकारी भी देते हैं। कम उम्र, अपरिपक्व व दिखावा करने वाले उपभोक्ता इन विज्ञापनों से अधिक प्रभावित होते हैं। विज्ञापन के द्वारा वस्तुओं के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर आकर्षक ढंग से जनता के सामने प्रस्तुत किया जाता है। निम्न एवं घटिया वस्तुओं को आकर्षक रूप से पैक करके जनता को दिखाया जाता है और इस तरह उपभोक्ता आसानी से ठगे जाते हैं।

निम्न  स्तरीय वस्तुएं
बाजार में जब कोई नई वस्तु प्रचलित हो जाती है तो उस वस्तु की जैसी दिखने वाली अनेक वस्तुएं बाजार में आ जाती हैं जो दिखने में उनसे अच्छी होती हैं मगर स्तर में काफी निम्न होती हैं। इन वास्तविक एवं निम्न स्तरीय वस्तुओं के मूल्य में कोई अंतर नही होता। दुकानदार अज्ञान व सीधे-साधे उपभोक्ताओं को घटिया वस्तु देकर लाभ कमाते हैं।

वस्तुओं की अपर्याप्त पूर्ति
पूँजीपतियों द्वारा जमाखोरी, दोषपूर्ण उत्पादन एवं वितरण प्रणाली, परिवहन समस्या, प्राकृतिक आपदा, शासन की आयात-निर्यात नीति एवं कर प्रणाली के कारण बाजार में कभी-कभी कुछ वस्तुओं की पूर्ति अपर्याप्त हो जाती है जिससे उपभोक्ता को निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य देकर वस्तु को क्रय करना पड़ता है।

करों में हेरा फेरी
सरकार द्वारा उत्पादित वस्तु पर प्रत्यक्ष तथा अप्रयक्ष रूप से कर लगाया जाता है। प्रत्यक्ष कर उत्पादनकर्ता को स्वयं देना पड़ता है तथा अप्रत्यक्ष कर उपभोक्ता द्वारा दिए जाते हैं। परन्तु उत्पादनकर्ता अपना लाभ कम नहीं करना चाहता अतः वह अपने हिस्से का प्रत्यक्ष कर भी उपभोक्ता से लेता है। यह आर्थिक भार उपभोक्ता पर आता है।

गलत चिह्न तथा लेबल का प्रयोग
कुछ उत्पादनकर्ता एवं निर्माता असली वस्तुओं के चिह्नों एवं लेबलों में थोड़ा सा परिवर्तन कर उन्हें अपने नकली या घटिया वस्तुओं पर लगाकर उपभोक्ताओं को भ्रमित कर ठगते हैं। इन चिह्नों में मामूली सा अंतर होता है जिसे उपभोक्ता पहचान नहीं पाता तथा भ्रमित हो जाता है।

अशिष्ट व्यवहार
विक्रेताओं का उपभोक्ता के साथ अशिष्ट व्यवहार भी उपभोक्ता की एक समस्या है क्योंकि उपभोक्ता असंगठित रहते हैं और विक्रेता संगठित। उपभोक्ता द्वारा वस्तु की गुणवत्ता, मूल्य आदि के विषय में जानकारी माँगे जाने पर विक्रेता उन्हें गलत जानकारी देते हैं या उनके साथ अशिष्ट व्यवहार करते हैं।

4. मूल्य वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि, वस्तुओं का कम उत्पादन, जमाखोरी, दोषपूर्ण निर्यात नीति एवं वितरण प्रणाली, फैशन-विज्ञापन का प्रभाव, क्रेता-विक्रेता के बीच दलाल आदि कारणों से वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी होती है। मूल्य वृद्धि के कारण उपभोक्ता को अपनी सीमित आय का अधिकतर भाग दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यय करना पड़ता है। वह बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा का प्रबंध भी नहीं कर पाता। मूल्य वृद्धि के कारण उपभोक्ता का जीवन का स्तर गिरता जाता है।

5. प्रत्याभूति तथा आश्वस्ति
प्रत्याभूति तथा आश्वस्ति का अर्थ है गारंटी तथा वारंटी। यदि एक निश्चित समय अवधि में क्रय किए सामान में खराबी आती है तो उपभोक्ता को उसका पूरा पैसा वापस मिलता है। इस प्रत्याभूति या गारंटी कहते हैं। परंतु यदि पैसों से स्थान पर सामान की दूसरी इकाई या निःशुल्क मरम्मत होती है तो इसे आश्वस्ति या वारंटी कहते हैं। शिक्षा तथा जागरुकता के अभाव में उपभोक्ता इन सुविधाओं का समय पर लाभ नहीं उठा पाता है।

6. किश्तों में खरीददारी
उपभोक्ता की मानसिकता, उदासीनता, सोचने का ढंग, विज्ञापनों का प्रभाव, मानसिक तनाव तथा सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण उपभोक्ता शून्य प्रतिशत ब्याज पर किश्तों में खरीददारी करने लगे हैं। उपभोक्ता नहीं जानता कि किश्तों पर खरीदी हुई वस्तु की वह डेढ़ गुनी कीमत देता है और किश्तों के पूरा होने के पश्चात् ही वह उस वस्तु का मालिक कहलाएगा। इस तरह उपभोक्ता शोषित होता है।

वर्तमान युग में उपभोक्ता के अधिकार

अब तक आपने जाना कि बाजार में प्रतिस्पर्धा, भ्रामक विज्ञापन, निम्न स्तर की वस्तुओं की उपलब्धता आदि के कारण उपभोक्ताओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अतः उपभोक्ताओं का संरक्षण सरकार और प्राइवेट संस्थाओं के लिए एक गंभीर विषय बना हुआ है। उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों को मान्यता प्रदान की है। अन्य शब्दों में कह सकते हैं कि यदि उपभोक्ता को धोखाधड़ी और शोषित होने से बचाना है तो उन्हें कुछ अधिकार देने होंगे ताकि वह इस स्थिति में हो कि वह विक्रेता से मोल-भाव कर सके। भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत उपभोक्ताओं को कुछ अधिकार दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-

1. सुरक्षित सामग्री का अधिकार
उपभोक्ता को यह अधिकार है कि बाजार में बिकने वाली उन सामग्रियों से स्वयं को सुरक्षित रखें जो स्वास्थ्य और जीवन के लिए हानिकारक हैं। उपभोक्ता होने के नाते यदि आप यह अधिकार जानते हैं तो दुर्घटना को रोकने हेतु आप उचित सावधानियाँ लेंगे या सावधानी अपनाने के बावजूद यदि दुर्घटना हो जाती है तो आपका यह अधिकार है कि आप विक्रेता के खिलाफ शिकायत कर मुआवजा भी ले सकते हैं। उदाहरण कि लिए हाल ही में कोल्ड ड्रिंस में हानिकारक कीटनाशक की मात्रा, मैगी नूडल्स में सीसा व MSG की मात्रा मानक से अधिक होने पर इनका सामूहिक बहिष्कार किया गया।

2. उत्पादित वस्तु के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार
उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह वस्तुओं की मात्रा, गुणवत्ता, शुद्धता, मानकता और मूल्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है ताकि वह किसी वस्तु या सेवा को क्रय करने से पहले भली-भाँति चुन सके। साथ ही साथ, जहाँ आवश्यक हो उपभोक्ता सुरक्षा सावधानियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है ताकि उत्पाद का उपभोग करते समय नुकसान या दुर्घटना से बचा जा सके। जैसे गैस वितरक को उपभोक्ता को सूचित करना चाहिए कि जब खाना पकाने का कार्य न हो रहा हो तो गैस का रेग्यूलेटर बंद कर देना चाहिए।

3. विभिन्न मूल्यों और गुणवत्ता की वस्तुओं के चयन का अधिकार
इस अधिकार के अंतर्गत उपभोक्ता इस बात से आश्वासित रहता है कि प्रतिस्पर्धा के इस युग में वह विभिन्न मूल्यों एवं गुणवत्ता की वस्तुओं में से उपयुक्त मूल्य व सही गुणवत्ता की वस्तु का चुनाव करके क्रय कर सकता है। कभी-कभी व्यापारी और विक्रेता अपनी बातों से उपभोक्ता पर दबाव डालकर घटिया गुणवत्ता वाली वस्तुओं को बेचते हैं। कभी उपभोक्ता टेलीविजन में दिखाए गए विज्ञापनों के बहकावे में आ जाते हैं। यदि उपभोक्ता अपने इस अधिकार के प्रति सजग हैं तो इस तरह की सम्भावनाओं से बचा जा सकता है।

4. उपभोक्ता को शिकायत करने तथा उनकी सुनवाई का अधिकार
इस अधिकार के तीन स्पष्टीकरण हैं। मोटे तौर पर इस अधिकार का अर्थ है कि जब ऐसे निर्णय और नीतियाँ बनायी जाती हैं जो उपभोक्ता की रुचि को प्रभावित करती हैं तो उपभोक्ता को यह अधिकार है कि सरकार और जनप्रतिनिधियों द्वारा विचार-विमर्श किया जाए या उनकी राय ली जाए। उपभोक्ता को उत्पादन और विपणन के निर्णयों में निर्माणकर्ता, व्यापारी और विज्ञापनकर्ता द्वारा सुनने का अधिकार है। साथ ही उपभोक्ता की शिकायतों से संबंधित कचहरी में उपभोक्ता को कानूनी कार्यवाही की सुनवाई का भी अधिकार है।

5. हर्जाना या मुवाअजा माँगने का अधिकार
यदि खराब या मिलावटी उत्पाद के कारण उपभोक्ता को नुकसान या हानि पहुंचती है या अनुचित व्यापार कार्य प्रणालियों जैसे अधिक मूल्य लेना, घटिया या असुरक्षित सामान बेचना, सेवा प्रदान करने में अनियमितता आदि के कारण उपभोक्ता को यदि कष्ट होता है तो इसके लिए उसे उपाय या निवारण माँगने का अधिकार है। उपभोक्ता को यह अधिकार है कि उसे खराब वस्तु के बदले सही वस्तु मिले या उसकी उचित मरम्मत हो या उसका धन पुनः वापस मिले। इस अधिकार के अंतर्गत उपभोक्ता की वास्तविक हानि का उचित निपटारा होता है। इस समस्या के निवारण हेतु जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उचित तंत्र की व्यवस्था है।

6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
बाजार में अनुचित कार्य और उपभोक्ता को शोषित होने से बचाने के लिए उपभोक्ता को जागरुक और शिक्षित करना आवश्यक है। इस दिशा में उपभोक्ता संगठन, शिक्षण संस्थान और सरकारी नीति बनाने वाले संगठन उपभोक्ता को सूचित और शिक्षित करने का कार्य करते हैं। ये संगठन निम्न विषयों पर उपभोक्ता को जागरुक करते हैं:-
  • उन उचित नियमों, जो अनुचित व्यापार कार्य प्रणालियों को रोकते हैं, की जानकारी देते हैं।
  • ऐसे तरीकों और साधनों की जानकारी देते हैं जो बेईमान व्यापारी और उत्पादनकर्ता उपभोक्ता को ठगने और धोखा देने के लिए अपनाते हैं।
  • क्रय के समय बिल या रसीद की माँग पर जोर देना।
  • शिकायत करते समय उपभोक्ता द्वारा अपनायी जाने वाली विधियों की जानकारी देना।
प्रभावशाली उपभोक्ता शिक्षा से उपभोक्ता की जागरुकता बढ़ती है जिससे उनके अधिकारों को प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद मिलती है और उपभोक्ता स्वयं को धोखाधड़ी, बेईमानी और बहकाने वाले विज्ञापन, लेबल आदि से बचा सकते हैं।

उपभोक्ता के उत्तरदायित्व

उपभोक्ता के अधिकार जानने के बाद यह जानना भी जरूरी है कि जो अधिकार उपभोक्ताओं को दिए गए हैं, उन्हें प्राप्त करने के लिए उपभोक्ताओं के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए। उदाहरण के लिए यदि उपभोक्ता हर्जाना माँगने का अधिकार रखता है तो उसका यह दायित्व है कि वह अच्छी गुणवत्ता वाले सही मूल्य के सामान को खरीदे और इस्तेमाल करते समय सावधानी रखे ताकि दुर्घटना होने से बचा जा सके। उपभोक्ताओं के उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं-

1. स्वयं को जागरुक रखना
उपभोक्ता से यह उम्मीद की जाती है कि वह उत्पादों की जानकारी व उनके चुनाव के बारे में विक्रेता पर निर्भर न रहे। उपभोक्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो वस्तु वह क्रय कर रहा है उसका उचित मूल्य लिया जा रहा है या नहीं। विश्वसनीय विक्रेता कौन है और कौन-सी वस्तु किस स्थान पर उचित मूल्य पर उपलब्ध है।

2. विक्रेता से क्रय की रसीद माँगना
उपभोक्ता का यह दायित्व है कि वह क्रय से संबंधित वैध लिखित प्रमाण जैसे रसीद, बिल आदि विक्रेता से माँगे और उसे संभाल कर रखे। यह प्रमाण शिकायत दर्ज करने के समय काम आता है। टिकाऊ वस्तु जैसे टेलीविजन, फ्रिज आदि की खरीद के समय निर्माणकर्ता द्वारा गारंटी व वारटी कार्ड दिये जाते हैं। उपभोक्ता का दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि इन कार्डों पर विक्रेता के हस्ताक्षर, मोहर एवं क्रय की दिनांक हो। उपभोक्ता इन्हें अपने पास तब तक रखे जब तक गारंटी/वारंटी की अवधि समाप्त न हो जाए।

3. वास्तविक मुआवजे की माँग करना
उपभोक्ता होने के नाते यदि आप किसी वस्तु या सेवा से असंतुष्ट हैं तो आप अपने नुकसान का मुआवजा माँग सकते हैं। इसके लिए आप निर्माणकर्ता या कम्पनी से दावा कर सकते हैं। उनके द्वारा उत्तर न देने पर आप उपभोक्ता मंच जा सकते हैं। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि आप जो दावा करें वह वास्तविक नुकसान को दर्शाए और मुआवजे का दावा भी उचित हो। छोटे-से नुकसान के लिए बड़ी रकम की माँग नहीं करनी चाहिए। उपभोक्ता द्वारा काल्पनिक शिकायत करने पर वह स्वयं दंडित हो सकता है।

4. उत्पादों की गणवत्ता के प्रति सजग रहना
उत्पादनकर्ताओं और व्यापारियों द्वारा की जा रही मिलावट और भ्रष्ट क्रियाओं को रोकने के लिए उपभोक्ताओं का यह दायित्व है कि वे सजग होकर अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं या सेवाओं का क्रय करें। उन्हें क्रय करते समय वस्तु पर आई.एस.आई., एगमार्क, एफ.पी.ओ., ईकोमार्क, हॉलमार्क आदि गुणवत्ता प्रमाण वाले मानक चिह्नों को देखना चाहिए।

5. उत्पादों का उचित उपयोग करना
कुछ उपभोक्ता गारंटी अवधि में वस्तुओं का उपयोग लापरवाही से करते हैं। वह सोचते हैं कि इस अवधि में खराब हुई वस्तु को बदल कर नई वस्तु मिल सकती है, जो सही नहीं है और इस तरह के व्यवहार को रोका जाना चाहिए।

6. भ्रमित करने वाले विज्ञापनों से सावधान रहना
विज्ञापन किसी भी उत्पाद के बारे में बढ़ाचढ़ाकर बताते हैं। अतः उपभोक्ता को इन पर पूर्ण भरोसा नहीं करना चाहिए। यदि कोई भिन्नता नजर आती है तो उसे उसके प्रायोजक और उचित अधिकारी के संज्ञान में लाना चाहिए।

7. अपने अधिकार के प्रति सचेत रहना
उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहना चाहिए और खरीददारी करते समय उन अधिकारों का ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए यह उपभोक्ता का दायित्व है कि वह किसी वस्तु की गुणवत्ता के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने हेतु जोर डाले और स्वयं को इस बात से सुनिश्चित करे कि यह किसी भी प्रकार के दोष से मुक्त है।

8. खरीदने से पूर्व विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निरीक्षण करना
उपभोक्ता का यह उत्तरदायित्व है कि किसी भी वस्तु या सेवा को क्रय करने से पहले विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निरीक्षण करें। इसके लिए उसे वस्तुओं की गुणवत्ता, मूल्य, टिकाऊपन, क्रय के बाद सेवा आदि की तुलना करनी चाहिए। इस तरह से उपभोक्ता अपने सीमित साधनों में सबसे अच्छी वस्तु का चयन कर सकता है।

9. अन्य उत्तरदायित्व
ऊपर बताए गए उत्तरदायित्वों के अलावा उपभोक्ताओं का यह उत्तदायित्व भी है कि वह निर्माणकर्ता, व्यापारी और सेवा प्रदान करने वालों के साथ हुए क्रय समझौते को माने, उधार पर लिए सामान का जल्द-जल्द से भुगतान करें, शिकायतों के निराकरण में सक्रिय सहयोग दें, उपभोक्ता संगठनों एवं परिषदों के गठन में सहयोग करें, महँगाई, कालाबाजारी एवं ठगी के विरुद्ध एकजुट होकर आवाज उठाएं आदि।

उपभोक्ता का सूचना पर्यावरण और जनसंपर्क माध्यम

किसी उत्पाद के विज्ञापन की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि उपभोक्ता के पास उस उत्पाद की कितनी और किस प्रकार की जानकारी उपलब्ध है। उपभोक्ता के सूचना के क्षेत्र में विज्ञापन का कितना महत्वपूर्ण स्थान है? उत्पाद 'क' के लिए विज्ञापन की तुलना उत्पाद 'ख' के लिए कैसी है और कैसे दोनों उत्पादों की सूचना की किसी अन्य क्षेत्र से तुलना हो सकती है। इनमें से कुछ गैर-व्यवसायिक होते हैं जो उपभोक्ता के क्रय निर्णय को प्रभावित करते हैं। ज्यादातर उपभोक्ता विज्ञापनों, उत्पादों पर खर्च करने के अनुभवों की पृष्ठभूमि के कारण विज्ञापनों के संपर्क में आते हैं। एक सामान्य व्यस्क उपभोक्ता के पास जीवनपर्यन्त सूचनाओं का संसाधन रहता है। उपभोक्ता एक सूचना के पर्यावरण में प्रचालन करता है जिसमें निम्नलिखित संसाधन होते हैं-
उपभोक्ता की स्वयं की जानकारी जो उसे उत्पादों या संबंधित उत्पादों के बारे में स्वयं के अनुभवों से प्राप्त होती है। 
परिवार, दोस्तों और जान-पहचान के लोगों द्वारा उत्पाद या संबंधित उत्पादों के बारे में दी गई मौखिक जानकारियाँ। 
उपभोक्ता को उत्पाद से संबंधित सभी जानकारियाँ नहीं दी जाती हैं। ऐसी सूचनाएँ व्यवसायिक स्रोतों द्वारा ना तो खुल के दी जाती हैं और ना ही इन स्रोतों द्वारा उत्पन्न होती हैं। इनमें से कुछ सूचनाएं व्यापारिक कंपनियों के जनसंपर्क विभाग द्वारा बाजार में फैला दी जाती हैं। कुछ सूचनाएं सरकारी रिपोर्ट, उपभोक्ता समूह, पत्रकारों और अन्य गैर व्यवसायिक संस्थानों द्वारा स्वतंत्र रूप से उत्पन्न हो जाती हैं। जब कोई उत्पाद राजनीतिक टकराव या सामाजिक मुद्दा बन जाता है तो समाचार मीडिया उत्पाद के बारे में ढेरों जानकारियां प्रदान करता है। उत्पाद छापने योग्य बन जाता है। जब सामाचार मीडिया किसी वस्तु की आलोचना करता है तो उपभोक्ता को उस वस्तु के बारे में जानकारियां प्राप्त होती हैं। कुछ उपभोक्ता समाचार पत्रों और टेलीविजन में बताई गई आलोचनात्मक टिप्पणियों पर ध्यान नहीं देते जबकि कुछ उपभोक्ताओं के लिए यह जानकारियों का महत्वपूर्ण स्त्रोत होते हैं। 
उपभोक्ता शिक्षा के औपचारिक माध्यमों द्वारा सूचनाएं एवं जानकारियां प्राप्त होती हैं। कुछ विद्यालयों में उपभोक्ता शिक्षा शैक्षिक पाठ्यक्रम का हिस्सा होती है। विद्यार्थी पाठ्यक्रमों में यह जानकारी प्राप्त कर लेते हैं कि किस देश या राज्य में कौन-सी वस्तु प्रचुर मात्रा में होती है। कुछ कक्षाओं में विद्यार्थियों को उपभोक्ता कौशल प्रत्यक्ष रूप से बताया जाता है। विद्यार्थी गृह विज्ञान या शारीरिक शिक्षा की कक्षा में पोषण, विटामिन और संतुलित आहार के बारे में जानकारियां प्राप्त करते हैं और जान पाते हैं कि बाजार में मौजूद कौन-सा भोज्य पदार्थ उनके लिए स्वास्थ्यकर है। विद्यालयों में लगाये गए उत्पाद जैसे कम्प्यूटर, पंखे, वाटरकूलर आदि के द्वारा भी विद्यार्थी उन उत्पादों के बारे में प्रत्यक्ष जानकारियां प्राप्त करता है। इसके अलावा विद्यार्थियों को मीडिया में दिखाए जा रहे विज्ञापनों को कैसे समझना है, यह भी पढ़ाया जाता है।

विद्यालयी तंत्र के बाहर कुछ संस्थाएं जो उपभोक्ताओं की जानकारियों के लिए पत्रिकाएं बनाती हैं, विशेष तौर पर किसान जैसे विशिष्ट उपभोक्ताओं के कल्याण से जुड़ी सामाजिक संस्थाएं भी
औपचारिक रूप से उपभोक्ता शिक्षा प्रदान करती हैं। इसके अलावा कुछ पुस्तकें जैसे व्यवहारिक ज्ञान की पुस्तकें, आर्थिक नियोजन, स्वयं करें व सीखें गाइड, महिला मैग्जीन और समाचारपत्रों में छपे उपयोगी घरेलू सुझाव/लेख आदि के द्वारा भी उपभोक्ता को जानकारियां प्राप्त होती हैं।

विज्ञापन के लिए सूचना पर्यावरण का भाग अन्य उत्पादों के विज्ञापनों के चारों तरफ रहता है। उत्पादों की प्रचुरता के कारण किसी एक उत्पाद या ब्रांड की विशेषता को स्थापित करना मुश्किल होता है। बाजार में अनेक उत्पाद हैं और उनसे संबंधित अनेक संदेश भी हैं। इससे विज्ञापनों में अव्यवस्था हो जाती है। परिणामस्वरूप उपभोक्ता के लिए भी एक ही विज्ञापन पर ध्यान केन्द्रित करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में उपभोक्ता हर विज्ञापन की विश्वसनीयता को संशय की दृष्टि से देखता है।

विज्ञापन के माध्यम के बारे में संशयवाद उपभोक्ता को सूचनाएं प्रदान करता है। विभिन्न जनसंपर्क माध्यम उपभोक्ताओं में विभिन्न स्तर का आत्मविश्वास जगाते हैं। विज्ञापन इस बात को अच्छे से पहचानते हैं कि उनकी विश्वसनीयता का बढ़ना या घटना कुछ हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि विज्ञापन किस सन्दर्भ में है। ज्यादातर उपभोक्ता मानते हैं कि टी0वी0 पर दिखाए गए विज्ञापन ज्यादा भ्रामक होते हैं जबकि पत्रिकाओं में दिखाए गए विज्ञापनों पर ज्यादा विश्वसनीय। विश्वसनीयता का स्तर अलग-अलग माध्यमों में ही नहीं बल्कि एक ही माध्यम के बीच में भी होता है। कुछ विज्ञापनदाता मानते हैं कि समाचार पत्र, पत्रिकाओं आदि में अच्छे स्थान पर विज्ञापन देना लाभकारी होता है, जबकि कुछ जनसंपर्क माध्यम इस बात पर बल देते हैं कि वह विज्ञापन कितने लोगों तक पहुँचा या उस विज्ञापन के मूल्य की प्रभावशीलता कितनी रही। सूचना पर्यावरण को समझना केवल उपभोक्ता को प्रस्तुत की जाने वाली सूचनाओं के स्त्रोत को वगीकृत करना नहीं है

अपितु उन रास्तों को भी पहचानना है जिनके द्वारा विज्ञापन में दी गई गुणवत्तापूर्ण जानकारी परिस्थिति अनुसार बदल जाती है। कहने का अभिप्राय यह है कि एक विज्ञापन ध्यानाकर्षण के लिए सूचना के अन्य स्त्रोत से प्रतिस्पर्धा करता है और ठीक उसी समय अपनी स्थिति के अनुसार स्वयं सूचना की एक इकाई के रूप में बदल जाता है।

विज्ञापन के बारे में संशयवाद भी उपभोक्ता को सूचनाएं प्रदान करता है। उपभोक्ता का सूचना या जानकारियों का पर्यावरण केवल विभिन्न प्रकार की सूचनाओं से निर्मित नहीं है बल्कि उस बल से है जो उपभोक्ता सूचना के विभिन्न स्रोतों पर डालता है। उदाहरण के लिए किसी उत्पाद के बारे में व्यक्तिगत अनुभव या मित्रों या पड़ोसियों द्वारा प्रदान की गई सूचनाओं का महत्व सबसे अधिक होता है। इससे विज्ञापन प्रणाली कम हो सकती है क्योंकि लोग दोस्तों की सलाह और विज्ञापनकर्ताओं की मंशाओं में अंतर पहचानते हैं। मनोवैज्ञानिक तौर जब उपभोक्ता परेशान हो जाता है तो वह वस्तु की नकारात्मक जानकारियों/सूचनाओं पर अधिक बल देता है। कुछ उपभोक्ता विज्ञापन की सच्चाई से चिंताशील रहते हैं जबकि कुछ उपभोक्ताओं का मानना है कि विज्ञापन उन्हें उन वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं जिनकी उन्हें वास्तविक जीवन में कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। दूसरी तरफ कुछ लोग मानते हैं कि विज्ञापन आवश्यक होते हैं और सामान्यतः ये उत्पाद का सही चित्रण प्रस्तुत करते हैं। व्यस्कों की तुलना में बच्चे विज्ञापनों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।

विज्ञापन का महत्व एक उत्पाद से दूसरे उत्पाद तक परिवर्तित होता रहता है। कुछ गैर-विज्ञापन रणनीतियां विज्ञापनकर्ता के हाथ में होती हैं, जैसे प्रोन्नति। जबकि अन्य फुटकर दुकानों और विक्रेता के हाथ में होती हैं। उपभोक्ता के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि न केवल वस्तुओं की बल्कि दकानों और विक्रेता की भी अपनी प्रतिष्ठा है जिसे वे बनाए रखना चाहते हैं तथा इसलिए वह उपभोक्ता पर भरोसा करते हैं।
उपभोक्ता इस साधारण तथ्य से बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर लेता है कि उनका भरोसेमंद स्थानीय विक्रेता एक विशिष्ट ब्रांड के उत्पाद रखता है या नहीं। दुकानों में विक्रेता उत्पादों की तुलनात्मक सूचना से विमुक्त रहते हैं। दुकानदार अपने ग्राहकों के साथ दीर्घ अवधि संबंधों द्वारा लाभ प्राप्त करता है। फुटकर व्यापारी अपने ग्राहक को उत्पादकर्ता के विज्ञापनों की अपेक्षा अधिक जानकारियां प्रदान करता है।

उपभोक्ता किसी भी उत्पाद के बारे में जो सबसे महत्वपूर्ण बात जानता है, वह है उस उत्पाद का मूल्य। मूल्य उत्पाद का आंतरिक गुण नहीं है। यह माँग और पूर्ति के संबंध का सूचक है। वस्तु के मूल्य को कैसे भी निर्धारित किया जाए, उपभोक्ता वस्तु को क्रय करने या न क्रय करने के अपने निर्णय में मूल्य को एक महत्वपूर्ण जानकारी मानता है। ऐसा दो कारणों से होता है; पहला उपभोक्ता के पास सीमित मात्रा में धन होता है। यदि किसी वस्तु का मूल्य उसके बजट बहुत अधिक होता है तो उसे खरीदने के लिए वह किसी विज्ञापन या सूचना के किसी अन्य स्रोत द्वारा प्रभावित नहीं होगा। ऐसे में विक्रेता उत्पाद को उधार या किश्तों में खरीदने पर जोर देते हैं परंतु उपभोक्ता के मस्तिष्क में उस वस्तु की अधिकतम मूल्य सीमा तय होती है। उपभोक्ता की जानकारियों के स्त्रोत में वस्तुओं के मूल्य की प्राथमिकता सबसे अधिक है। इसके प्रभाव से निर्णय प्रक्रिया के अन्य संभावित स्रोतों की उपेक्षा की जा सकती है। इससे यह संकेत मिलता है कि उपभोक्ता के सूचना पर्यावरण में उपलब्ध उत्पाद के बारे में जानकारी सर्वाधिक महत्वपूर्ण नहीं है अपितु उपभोक्ता स्वयं की क्रय करने की क्षमता के बारे में कितना जागरुक है, वह महत्वपूर्ण है।

दूसरा कारण यह है कि मूल्य वस्तु की गुणवत्ता का संकेत भी है। लोगों का अनुमान होता है कि जिस वस्तु की कीमत जितनी अधिक हो, उसकी गुणवत्ता भी उतनी अधिक होगी। मगर यह अनुमान हमेशा उपयुक्त नहीं होता है। कभी-कभी मूल्य और गुणवत्ता में नकारात्मक संबंध पाए जाते हैं, विशेष तौर पर टिकाऊ रहित उत्पादों पर, जैसे उपहार में दी जाने वाली वस्तुएं अधिक मूल्य पर बिकती हैं। यदि ब्रांडों की गुणवत्ता में अधिक अंतर होगा तो उपभोक्ता अधिक दाम के उत्पाद खरीदेंगे। विज्ञापन के अनुसार यदि उत्पाद उच्च गुणवत्ता का है मगर उसकी कीमत कम है तो उपभोक्ता को उसकी गुणवत्ता में संशय होगा परंतु उपभोक्ता उसे फिर भी क्रय करना चाहेगा क्योंकि वह विज्ञापन से नहीं बल्कि उस उत्पाद की कीमत से आकर्षित होता है।

इस तरह आपने देखा कि उपभोक्ता के सूचना पर्यावरण में आंकड़ों और तथ्यों के साथ-साथ दोस्तों या पड़ोसियों की भावानात्मक या सामाजिक सहमति भी निहित होती है।

Post a Comment

Newer Older