वायुमंडल किसे कहते है? | वायुमंडल की परतों के नाम | vayumandal kise kahate hain

वायुमंडल किसे कहते है?

पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त गैसों का विशाल आवरण (Giant Cover of Gases) जो पृथ्वी का अंग है और उसे चारों तरफ से घेरे हुए है, वायुमंडल (Atmosphere) कहलाता है। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण ही यह वायुमण्डल उसके साथ टिका हुआ है।
पृथ्वी की सतह पर विभिन्न प्रकार के जीवों का अस्तित्व इसी वायुमंडल के कारण संभव है। वायुमंडल सौर विकिरण की लघु तरंगों को पृथ्वी के धरातल तक आने देता है। परन्तु, पार्थिव विकिरण की दीर्घ तरंगों के लिए अवरोध बनता है।
vayumandal-kise-kahate-hain
इस प्रकार यह ऊष्मा को रोककर विशाल काँच घर (Glass House) की भाँति कार्य करता है, जिससे पृथ्वी पर औसतन 15°C तापमान बना रहता है। यह तापमान पृथ्वी पर जीवमंडल के विकास का आधार है।

वायुमंडल का संघटन

वायुमंडल अनेक गैसों का यांत्रिक सम्मिश्रण है, जिसमें ठोस और तरल पदार्थों के कण असमान मात्राओं में तैरते रहते हैं। शुद्ध हवा में 78% नाइट्रोजन तथा 21% ऑक्सीजन होती है। ये दोनों मिलकर 99% भाग निर्मित करते है। शेष 1% में आर्गन (0.93%), कार्बन डाइऑक्साइड (0.03%), हाइड्रोजन, ओजोन व अन्य गैसें शामिल हैं।
इसके अलावा जलवाष्प, धूल के कण तथा अन्य अशुद्धियाँ भी असमान मात्रा में वायुमंडल में पायी जाती हैं।

पृथ्वी की सतह पर शुष्क वायु का रासायनिक संघटन
गैसें (घटक) सूत्र द्रव्यमान (% में)
नाइट्रोजन N2 78.8
ऑक्सीजन O2 20.95
आर्गन Ar 0.93
कार्बन डाइऑक्साइड CO2 0.036
निऑन Ne 0.002
हीलियम He 0.0005
क्रिप्टॉन Kr 0.001
जेनॉन Xe 0.00009
हाइड्रोजन H2 0.00005

विश्व  की मौसमी दशाओं के लिए जलवाष्प, धूल के कण तथा ओजोन अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न गैसों का 99% भाग मात्र 32 किमी. की ऊँचाई तक सीमित है जबकि धूलकणों व जलवाष्प का 90% भाग अधिकतम 10 किमी. की ऊँचाई तक ही मिलता है।

नाइट्रोजन (78%)
यह वायुमंडलीय गैसों में सर्वप्रमुख है। वायुमंडल में नाइट्रोजन (N2) तीन चौथाई से भी अधिक (78.8%) है। नाइट्रोजन की उपस्थिति में वस्तुएँ तेजी से नहीं जल पाती हैं। यह गैस रंगहीन, स्वादहीन व गंधहीन होती है। इस गैस के कारण ही पेड़-पौधों में प्रोटीन अमीनों अम्लों का निर्माण होता है। यह गैस वायुदाब, पवन की तीव्रता तथा प्रकाश के परावर्तन को भी प्रभावित करती है।

ऑक्सीजन (21%)
यह मनुष्यों व जन्तुओं के लिए प्राणदायिनी गैस है। मानव तथा अन्य प्राणी वायुमंडल से ऑक्सीजन (O2) अपनी श्वास द्वारा लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बाहर निकालते हैं। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा इसे (ऑक्सीजन को) वायुमंडल में मुक्त करते हैं। ऑक्सीजन के बिना ईंधन का जलना असंभव है। अत: ऑक्सीजन ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। वायमुंडल में इस गैस की उपस्थिति 64 किमी. तक पायी जाती है।

आर्गन (0.93%)
यह एक अक्रिय गैस है, क्योंकि यह रासायनिक क्रिया नहीं करती। इसके अतिरिक्त वायुमंडल में हीलियम, निऑन, क्रिप्टॉन, जेनॉन जैसी अक्रिय गैसें भी अल्प मात्रा में पायी जाती हैं।

कार्बन-डाई-ऑक्साइड (0.03%)
यह एक भारी गैस है। यह सौर विकिरण के लिए पारगम्य है, किन्तु पार्थिव विकिरण के लिए अपारगम्य है। कम मात्रा में होते हुए भी यह (CO2) पृथ्वी व वायुमंडल के ताप का सन्तुलन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है। इस प्रकार यह वायुमंडल में ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करती है। इसकी बढ़ती मात्रा से वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। क्योटो प्रोटोकाल (1997 ई.) के द्वारा इसकी मात्रा में कमी किए जाने के बारे में वैश्विक सहमति बनी है।

ओजोन (O2)
यद्यपि वायुमंडल में इसकी मात्रा बहुत कम होती है परंतु यह वायुमंडल का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह एक छन्नी (Filter) की भाँति कार्य करती है और सूर्य की पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है। यदि ये किरणे सतह तक पहुँच जाएँ, तो तापमान में तीव्र वृद्धि व चर्म कैंसर का खतरा उत्पन्न हो सकता है। ओजोन गैस समताप मंडल के निचले भाग में 15 से 35 किमी. की ऊँचाई पर सघन मात्रा में पायी जाती है। जेट वायुयानों से निकलने वाली नाइट्रस ऑक्साइड, एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर आदि में प्रयुक्त व उत्सर्जित होने वाली क्लोरो-फ्लोरो कार्बन इसकी परत को नुकसान पहुँचाती है। एक अनुमान के अनुसार यदि 500 सुपरसॉनिक जेट का एक दल प्रतिदिन उड़ान भरे तो ओजोन परत में 12% तक ह्रास हो सकता है।
ओजोन परत को क्षरित होने से बचाने के लिए मॉण्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987 ई.) पर सहमति बनी है एवं इसके संरक्षण लिए निरंतर अंतर्राष्ट्रीय प्रयास हो रहे हैं।

जलवाष्प (Water Vapour)
वायुमंडल में प्रति इकाई आयतन में इसकी मात्रा 0 से 4% तक होती है। उष्णार्द्र क्षेत्रों में यह 4% तक एवं मरुस्थलीय व ध्रुवीय प्रदेशों में अधिकतम 1% तक पायी जाती है। ऊँचाई बढ़ने के साथ जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है। जलवाष्प की कुल मात्रा का आधा भाग 2,000 मी. की ऊँचाई तक मिलता है। विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है। कार्बन-डाई-ऑक्साइड की तरह ही जलवाष्प भी ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करती है व विकिरण ऊष्मा को सुरक्षित रखती है। यह ठोस, द्रव्य व गैस तीनों अवस्था में पायी जाती है।

अक्षांश जलवाष्प की मात्रा
उष्ण कटिबंध की धरातलीय वायु में 2.6%
50° अक्षांश पर 0.9%
70° अक्षांश पर 0.2%

धूलकण (Dust Particles)
इसमें मुख्यतः समुद्री नमक, सूक्ष्म मिट्टी, धुएँ की कालिख, राख, पराग, धूल तथा उल्कापिंडो के कण शामिल होते हैं। ये मुख्यतः वायुमंडल के निचले स्तर अर्थात् क्षोभमंडल में पाए जाते हैं। ध्रुवीय और विषुवतीय प्रदेशों की अपेक्षा उपोष्ण तथा शीतोष्ण क्षेत्रों में धूल के कणों की मात्रा अधिक मिलती है। ये धूलकण आर्द्रताग्राही नाभिक या संघनन केन्द्र के रूप में कार्य करते हैं जहाँ ये वायुमंडलीय जलवाष्प के संघनित होकर वर्षण के विभिन्न रूपों की उत्पत्ति का कारण बनते हैं। धूल के कण सूर्यातप को रोकने और उसे परावर्तित करने का कार्य भी करते हैं। ये सूर्योदय और सूर्यास्त के समय प्रकाश के प्रकीर्णन द्वारा आकाश में लाल व नारंगी रंग के दृश्यों का भी निर्माण करते हैं। धूलयुक्त कुहरा भी धूलकणों की उपस्थिति में बना घना धुंध ही है।

वायुमंडल का रासायनिक संघटन

रासायनिक संघटन की दृष्टि से वायुमंडल को दो परतों में बाँटा गया है-
  1. सममंडल (Homosphere)
  2. विषममंडल (Heterosphere)

सममंडल (Homosphere)
सममंडल की रचना 'मुख्य रूप से ऑक्सीजन (20.95%), कार्बन डाइऑक्साइड (0.36%), निऑन, हीलियम, क्रिप्टॉन, जेनॉन, हाइड्रोजन आदि गैसों से हुई है। सममंडल की ऊँचाई सागर तल से 90 किमी. तक बतायी जाती है।

तापक्रम के आधार पर सममंडल में तीन उपखंड

  1. क्षोभमंडल (Troposphere)
  2. समताप मंडल (Stratosphere)
  3. मध्यमंडल (Mesosphere)

रासायनिक दृष्टिकोण से इन सभी भागों को सममंडल इसलिए कहा जाता है कि इनमें गैसों के अनुपात लगभग स्थिर बना रहता है।


विषम मंडल (Heterosphere)
इस मंडल की ऊँचाई 90 से 10,000 किमी. तक बतायी जाती है। इसमें गैस की विभिन्न चार परतें पायी जाती हैं-
vayumandal-kise-kahate-hain
  1. आण्विक नाइट्रोजन परत : इसमें मुख्य रूप से नाइट्रोजन (N) के अणु पाये जाते हैं। इसकी ऊँचाई 90 से 200 किमी. तक है।
  2. आण्विक ऑक्सीजन परत : इसमें ऑक्सीजन के (O) अणु पाये जाते हैं तथा ऊँचाई 200 से 1100 किमी. तक है।
  3. हीलियम परत: इसमें हीलियम के अणु (He) पाये जाते हैं तथा इस परत का विस्तार 1100 से 3500 किमी. के बीच पाया जाता है।
  4. आण्विक हाइड्रोजन परत : इस परत में हाइड्रोजन (H) के अणु मिलते हैं तथा इसकी ऊपरी सीमा की निश्चित ऊँचाई नहीं बतायी जा सकती। परन्तु सामान्यतया इसका विस्तार 10,000 किमी. तक माना जाता है।

वायुमंडल की संरचना

यद्यपि वायुमंडल का विस्तार लगभग 10,000 किमी. की ऊँचाई तक मिलता है, परंतु वायुमंडल का 99% भाग सिर्फ 32 किमी. तक ही सीमित है।
vayumandal-kise-kahate-hain
वायुमंडल को 5 विभिन्न संस्तरों में बाँटा जा सकता है।

वायुमंडल की परतों के नाम Layers of Atmosphere in Hindi
  • क्षोभमंडल
  • समताप मंडल
  • मध्यमंडल
  • आयनमंडल
  • बाह्यमंडल

वायुमंडल की परतों का विभाजन

  1. क्षोभमंडल (Troposphere)
  2. समताप मंडल (Stratoshere)
  3. मध्यमंडल (Mesosphere)
  4. आयनमंडल (lonosphere)
  5. बाह्यमंडल (Exosphere)

क्षोभमंडल (Troposphere)

ध्रुवों पर यह 8 किमी. तथा विषुवत रेखा पर 18 किमी. की ऊँचाई तक पायी जाती है। इस मंडल में सामान्यतः प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1°C तापमान घटता है तथा प्रत्येक किमी. की ऊँचाई पर तापमान में औसतन 6.5°C की कमी आती है। इसे ही सामान्य ताप पतन दर (Normal Lapse Rate) कहा जाता है। वायुमंडल में होने वाली समस्त मौसमी गतिविधियाँ क्षोभ मंडल में ही पायी जाती हैं। क्षोभसीमा के निकट चलने वाली अत्यधिक तीव्र गति के पवनों को जेट पवनें (Jet Streams) कहा जाता है।

समताप मंडल (Stratosphere)

इस मंडल की औसत ऊँचाई 18-20 किमी. होती है। इस मंडल में प्रारम्भ में तापमान स्थिर होता है. परन्त 20 किमी. की ऊँचाई के बाद तापमान में अचानक वृद्धि होने लगता है। ऐसा इस स्तर ओजोन गैसों की उपस्थिति के कारण होता है, जो कि पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर तापमान बढ़ा देता है। यह मंडल मौसमी वायुमण्डलीय हलचलों से मुक्त होता है, इसलिए वायुयान चालक यहाँ विमान उड़ाना पसंद करते हैं।

मध्यमंडल (Mesosphere)

इस मंडल की ऊँचाई 50 से 80 किमी. तक होती है। इसमें तापमान में अचानक गिरावट आ जाती है। मध्य मंडल सीमा पर तापमान गिरकर -100°C तक पहुँच जाता है, जो वायुमंडल का न्यूनतम तापमान है।

आयन मंडल (lonosphere)

इसकी औसत ऊँचाई 80-64 किमी. के मध्य है। इसमें विद्युत आवेशित कणों की अधिकता होती है एवं ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ने लगता है।
वायुमंडल की इसी परत से विभिन्न आवृत्ति की रेडियो तरंगें परावर्तित होती हैं। आयनमंडल कई परतों में बँटा हुआ है।
ये निम्न हैं:
  • D-Layer : इसमें उच्च तरंग-दैर्ध्य अर्थात् निम्न आवृति की रेडियो तरंगें परावर्तित होती हैं।
  • E-Layer : इसे केनेली-हीविसाइड (Kennely-heaviside) परत भी कहा जाता है। इससे मध्यम व लघु तरंग-दैर्ध्य अर्थात् मध्यम व उच्च आवृत्ति की रेडियो तरंगें परावर्तित होती हैं। यहाँ ध्रुवीय प्रकाश (Aurora light) की उपस्थिति होती है, जो उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) एवं दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Australis) के रूप में मिलती हैं।
  • F-Layer : इसे एप्पलेटन (Appleton) परत भी कहा जाता है। इससे मध्यम व लघु तरंग-दैर्ध्य अर्थात् मध्यम व उच्च आवृति की रेडियो तरंगें परिवर्तित होती हैं।
  • G-Layer : इससे लघु, मध्यम व दीर्घ सभी तरंग-दैर्ध्य वाली निम्न, मध्यम एवं दीर्घ सभी आवृत्ति की रेडियो तरंगें परावर्तित होती हैं।

बाह्य मंडल (Exosphere)

इसकी ऊँचाई 640-1,000 किमी. के मध्य है। इसमें भी विद्युत आवेशित कणों की प्रधानता होती है एवं यहाँ क्रमशः नाइट्रोजन (N2), ऑक्सीजन (O2), हीलियम (He2), हाइड्रोजन (H2) आदि गैसों की अलग-अलग परतें होती हैं। इस मंडल में 1000 किमी. के बाद वायुमंडल बहुत ही विरल हो जाता है और अंतत: 10,000 किमी. की ऊँचाई के बाद यह क्रमशः अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है। 

إرسال تعليق

أحدث أقدم