हरित क्रांति के उद्देश्य
भारत में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य देश को खाद्यान्न मामले में आत्मनिर्भर बनाना था, लेकिन इस बात की आशंका किसी को नहीं थी कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल न सिर्फ खेतों में, बल्कि खेतों से बाहर मंडियों तक में होने लगेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग खाद्यान्न की गुणवत्ता के लिए सही नहीं है। लेकिन जिस रफ्तार से देश की आबादी बढ़ रही है, उसके मद्देनज़र फसलों की अधिक पैदावार ज़रूरी थी। समस्या सिर्फ रासायनिक खादों के प्रयोग की ही नहीं है।
देश के ज्यादातर किसान परंपरागत कृषि से दूर होते जा रहे हैं। दो दशक पहले तक हर किसान के यहाँ गाय, बैल और भैंस खूटों से बंधे मिलते थे। अब इन मवेशियों की जगह ट्रैक्टर-ट्रॉली ने ले ली है। परिणाम स्वरूप गोबर और घूरे की राख से बनी कंपोस्ट खाद खेतों में गिरनी बंद हो गई। पहले चेत-बैसाख में गूहँ कि फसल कटने के बाद किसान अपने खेतों में गोबर, राख और पत्तों से बनी जैविक खाद डालते थे।
इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा-शक्ति बरकरार रहती थी, बल्कि इससे किसानों को आर्थिक लाभ के अलावा बेहतर गुणवत्ता वाली फसल मिलती थी।
लघु अवधि के लिये
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत में भुखमरी की समस्या को दूर करने हेतु हरित क्रांति शुरू की गई थी।
दीर्घ अवधि के लिये
दीर्घकालिक उद्देश्यों में ग्रामीण विकास, औद्योगिक विकास पर आधारित समग्र कृषि का आधुनिकीकरण; बुनियादी ढाँचे का विकास, कच्चे माल की आपूर्ति आदि शामिल थे।
रोज़गार
कृषि और औद्योगिक दोनों क्षेत्र के श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करना।
वैज्ञानिक अध्ययन
स्वस्थ पौधों का उत्पादन करना, जो अनुकूल/विषम जलवायु और रोगों का सामना करने में सक्षम हो।
कृषि का वैश्वीकरण
गैर-औद्योगिक राष्ट्रों में प्रौद्योगिकी का प्रसार करना और प्रमुख कृषि क्षेत्रों में निगमों की स्थापना को प्रोत्साहित करना।