आर्थिक शब्दाबली भाग 1 |


प्रशासित मूल्य (Administered Prices) : जब किसी वस्तु के मूल्य का निर्धारण बाजार की माँग व पूर्ति की स्वतंत्र शक्तियों द्वारा न होकर किसी केन्द्रीय शक्ति द्वारा होता है, तो इस प्रकार का मूल्य प्रशासित मूल्य कहलाता है। किसी एकाधिकारी फर्म द्वारा एकपक्षीय तरीके से निर्धारित मूल्य या सरकार द्वारा किसी वस्तु का निर्धारित मूल्य आदि प्रशासित मूल्य के उदाहरण हैं

एमोर्टाइजेशन (Amortization) : किसी ऋण के मय ब्याज के पूर्ण भुगतान को एमोर्टाइजेशन कहते हैं।

काला बाजार (Black Market) : जमाखोरी द्वारा बाजार में कृत्रिम कमी पैदा करके वस्तुओं की कीमतें बढ़ाकर अधिक लाभ कमाने को काला बाजार कहते हैं।

काला धन (Black Money) : जिस धन का हिसाब–किताब कर अधीकारियों से छिपाकर रखा जाता है, उसे काला धन कहते हैं।

बजट (Budget) : किसी संस्था या सरकार के एक वर्ष की अनुमानित आय–व्यय का लेखा-जोखा बजट कहलाता है। सरकार का बजट अब केवल आय–व्यय का विवरण मात्र हसी नहीं होता, अपितु यह सरकार के क्रियाकलापों एवं नीतियों का विवरण भी है। यह आधुनिक काल में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का साधन भी बन गया है।

बफर स्टॉक (Buffer Stock) : आपात स्थिति में किसी वसतु की कमी को पूरा करने के लिए वस्तु का स्टॉक तैयार करना बफर स्टॉक कहलाता है।

तेजड़िया और मंदड़िया (Bulls and Bears) : यह स्टॉक एक्सचेंज के शब्द हैं, जो व्यक्ति स्टॉक की कीमतें बढ़ाना चाहता है, तेजड़िया कहलाता है, जो व्यक्ति स्टॉक की कीमतें गिरने की आशा करके किसी वस्तु को भविष्य में देने का वायदा करके बेचता है, वह मंदड़िया कहलाता है।

नेट एसेट वैल्यू (NAV) : म्यूचुअल फंड में निवेश करने वालों के लिए 'एन.ए.वी.' शब्दउ एक पहेली की तरह है। इसका पूरा नाम 'नेट एसेट वैल्यू' है। अगर फंड की कुल निवेश वैल्यू में कुल यूनिटों का भाग दे दिया जाए तो 'एसेट वैल्यू' निकलती है, मसलन् किसी फंड में 1 लाख रुपए जमा हुए। इसमें से फंड हाउस ने 90 हजार निवेश किए। इस निवेश की वैल्यू रोज निकाली जाती है। अब मान लें इसकी वैल्यू 1,80,000 रु. है। इसके अलावा 10 हजार रुपए फंड हाउस के पास नकट बचे हैं। यानि फंड की कुल वैल्यू हुई 1,90,000 रु. अब देखा जाता है कि इस योजना की कितनी यूनिटें जारी हुई हैं। अगर योजना में 10 लोगों ने 10-10 हजार रुपए लगाए तो कुल 10 हजार यूनिटें जारी हुईं। मानकर चलते हैं कि यूनिटों की संख्या नहीं बदलती है, तो अबू फंड की 'एनएवी 190000/10000 = 19 रुपए होगी।

ब्लूचिप कम्पनियाँ : वे कम्पनियाँ जो अपने क्षेत्र में काफी समय से काम कर रही हैं तथा अपने क्षेत्र की शीर्ष तीन कम्पनियों में शामिल हों, ब्लूचिप कम्पनियाँ कहलाती हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कम्पनियों में निवेश करना अधिक सुरक्षित रहता है। माना जाता है कि अगर इन कम्पनियों में लाँग टर्म निवेश किया जाए, तो पैसा डूबने की सम्भावना कम रहती है।

डी-मैट अकाउण्ट : यह एक प्रकार का बैंक खाता है। जिसमें रुपयों की जगह शेयर व बॉण्ड रखे जाते हैं। इस खाते में रुपए का लेन-देन नहीं होता है। अगर कोई व्यक्ति शेयर बाजार में निवेश करना चाहता है, तो उसे डी-मैट खाता खुलवाना जरूरी हैं 'सेबी के नियमों के मुताबिक अगर आपको शेयर बाजार में खरीद-फरोख्त करनी हो, तो वह 'डी-मैट खाते के जरिए ही हो सकती है। यही नहीं अगर किसी कम्पनी के आईपीओ में निवेश करना हो, तो भी डी-मैट खाता जरूरी है। डी-मैट खाता खुलवाने पर बैंक या ब्रोकर पैसा लेता है। यह खाता शेयर के न होने पर बन्द नहीं होता है। हाँ इसके लिए वार्षिक फीस चुकानी पड़ती है।

शॉर्ट टर्म तथा लोंग टर्म कैपिटल गेन : निवेश पर लोंग तथा शॉर्ट टर्म के हिसाब से कर लगता है। एक साल के बाद अगर यूनिट बेची जाती है तो उसे 'लोंग टर्म कैपिटल गेन' माना जाता है। ऐसे में कितना ही लाभ हो, उस पर आयकर नहीं लगता है। अगर निवेश एक साल के अन्दर निकाला जाता है तो उस पर 'शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन' माना जाता है। इस पर 15 फीसदी की दर से कर लगता है। मसलन 20 हजार का निवेश 6 महीने में बढ़कर 25 हजार हो गया और निवेशक उसे निकाल देता है तो उसे कुल 5 हजार का लाभ हुआ। इस 5 हजार पर उसे 15% यानि 750 रु. आयकर देना पड़ेगा।

ब्रोकर : ब्रोकर निवेशकों, ट्रेडरों तथा किसानों को ऑनलाइन ट्रेडिंग की सुविधा उपलब्ध कराते हैं और कारोबार की मात्रा के अनुसार शुल्क वसूलते हैं। ब्रोकर बनने के लिए व्यक्ति का नेटवर्थ काफी अधिक होना चाहिए।
कमोडिटी एक्सचेंज के सदस्य (ब्रोकर) अपने कारोबार के विस्तार के लिए सबब्रोकर नियुक्त करते हैं। कोई भी सक्षम व्यक्ति अथवा बड़ा किसान सीधे ब्रोकर से सम्पर्क कर सबब्रोकर बन सकता है। वह व्यक्ति या किसान अपने गाँव, कस्बे या शहर में टर्मिनल स्थापित कर कमोडिटी में वायदा करोबार की सुविधा प्राप्त कर सकता है। इंटरनेट कनेक्शन लेकर भी वायदा कारोबार में ट्रेडिंग की जा सकती है।

कॉस्पीकुअस कन्जम्पशन (Conspicuous Consumption) : जब किसी अर्द्धविकसित देश के नागरिक विलासिता की वस्तुओं का अधिकता से उपभाग करने लगते हैं, जो देश की समृद्धि तथा विकास के लिए हानिकारक होता है, ऐसे उपभाग को कॉस्पीकुआस कन्जम्पशन' कहते हैं। इससे उस देश के साधनों का हास होता है।

कस्टम्स ड्यूटी (Customs Duty) : इसे सीमा शुल्क कहते हैं। कस्टम्स ड्यूटी वह कर है, जो आयात व निर्यात की वस्तुओं पर लगाया जाता है।

एक्साइज ड्यूटी (Excise Duty) : उस कर को एक्साइज ड्यूटी कहते हैं, जो देश के अंदर निर्मित वस्तुओं पर उत्पादन बिन्दु पर ही लगाया जाता है। इसे 'उत्पादन शुल्क' कहते हैं।

डिवीडेन्ड (Dividend) : कम्पनियों से शेयरों पर प्राप्त लाभांश डिवीडेन्ड' कहलाता है।

अवमूल्यन (Devaluation) : यदि किसी मुद्रा का विनिमय मूल्य अन्य मुद्राओं की तुलना में जानबूझकर कम कर दिया जाता है, तो इसे उस मुद्रा का अवमूल्यन कहते हैं। यह अवमूल्यन परिस्थितियों के अनुसार सरकार स्वयं करती है।
विमुद्रीकरण (Demonetization) : जब काला धन बढ़ जाता है। और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है, तो इसे दूर करने के लिए विमुद्रीकरण की विधि अपनाई जाती है। इसके अन्तर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा चालू कर देती है जिनके पास काला धन होता है, वह । उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। ओर काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है।

मुद्रा संकुचन (Deflation) : जब बाजार में मुद्रा की कमी के कारण कीमतें गिर जाती हैं, उत्पादन व व्यापार गिर जाता है और बेरोजगार बढ़ती है, वह अवस्था ‘मुद्रा संकुचन' कहलाती है।

हीनार्थ प्रबन्धन (Deficit Financing) : जब सरकार का बजट घाटे का होता है अर्थात् आय कम होती है और व्यय अधिक होता है और व्यय के इस आधिक्य को केन्द्रीय बैंक से ऋण लेकर अथवा अतिरिक्त पत्र मुद्रा निर्गमित कर पूरा किया जाता है, तो यह व्यवस्था 'घाटे की वित्त व्यवस्था' अथवा 'हीनार्थ प्रबन्धन' कहलाती है। सीमित मात्रा में ही इसे उचित माना जाता है। हीनार्थ प्रबन्धन को एथायी नीति बना लेने के परिणाम अच्छे नहीं होते।

ऐस्टेट ड्यूटी (Estate Duty) : किसी व्यक्ति की मृत्यु के । पश्चात् उसकी सम्पत्ति के हस्तान्तरण के समय जो कर उस सम्पत्ति पर लगाया जाता है। उसे ‘ऐस्टेट ड्यूटी कहते हैं।

फ्री पोर्ट (Free Port) : जिस–बंदरगाह पर पुनर्निर्यात होने । वाले समान पर कोई कर नहीं लगाया जाता है, उसे 'फ्री पोर्ट' कहते हैं।
फिड्यूसियरी इश्यू (Flduclary Issue) : बिना रिजर्व रखे कागजी मुद्रा का चलन में ले आना 'फिड्यूसियरी इश्यू' कहलाता है।

उपहार कर (Gift Tax) : किसी उपहार के देने पर जो कर लगाया जाता है वह 'उपहार कर' कहलाता है, यह एक प्रत्यक्ष कर है।

स्वर्णमान (Gold Standard) : जब किसी देश की प्रधान मुद्रा स्वर्ण में परिवर्तनशील होती है अग्विा मुद्रा का मूल्य सोने में मापा जाता है, तो इस मौद्रिक व्यवस्था को 'एवर्णमान' कहते हैं। अब किसी देश में स्वर्णमान नहीं है।

हार्ड करेन्सी (IHard Currency) : अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में, जिस मुद्रा की पूर्ति की तुलना में माँग लगातार अधिक होती है वह हार्ड करेनसी कहलाती है प्रायः विकसित देशों की मुद्रा हार्ड करेन्सी कही जाती है।

हायर परचेज (Hire Purchase) : जब कोई वस्तु मासिक या वार्षिक इन्स्टालमेंट के आधार पर खरीदी जाती है,तो इस विधि को 'हायर परचेज' कहते हैं। इसमें वसतु का स्वामित्व उसके मूल्य का पूरा भुगतान होने के बाद ही मिलता है।

हॉट मनी (Hot Money) : उस विदेशी मुद्रा को हॉट मनी कहते हैं, जिसमें शीघ्र पलायन कर जाने की प्रवृत्तिा होती है। जिस स्थान पर अधिक लाभ मिलने की सम्भावना होती है, वहीं यह स्थानान्तरित हो जाती है।

मुद्रास्फीति (Inflation) : मुद्रा प्रसार या मुद्रा स्फीति वह अवस्था हैं जिसमें मुद्रा का मूल्य गिर जाता हैं। और कीमतें बढ़ जाती हैं। आर्थिक दृष्टि से सीमित एवं नियंत्रित मुद्रास्फीति अल्पविकसित अर्थव्यवस्था हेतु लाभदायक होती है, क्योंकि इससे उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहन मिलता है, किन्तु एक सीमा से अधिक मुद्रास्फति हानिकारक है |

रिसेशन (Recession) : रिसेशन से तात्पर्य मन्दी की। अवस्था से है जब वस्तुओं की पूर्ति की तुलना में मॉग कम हो तो रिसेशन की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में धनाभाव के कारण लोगों की क्रय शक्ति कम होती है और उत्पादित वस्तुएं अनबिकी रह जाती हैं। इससे उद्योगों को बंद करने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती हैं बेरोजगारी बढ़त्र जाती है। 1930 के दशक में विश्वव्यापी रिसेशन की स्थिति उत्पन्न हुई थी। विश्व के सभी देशों पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था।

संयुक्त क्षेत्र (Joint Sector) : इस सेक्टर में लगाए गए। उद्योगों में सरकार व निजी क्षेत्र के उद्योगपतियों का संयुक्त स्वामित्व होता है।

विधिग्राह्य मुद्रा (Legal Tender Money) : जिस मुद्रा में भुगतान करने पर लेनदार कानूनी तौर पर स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता है, उसे विधिग्राह्य मुद्रा कहते हैं। भारत की विधिग्राह्य मुद्रा रुपया है।

प्राइमरी गोल्ड (Primary Gold) : 24 कैरेट के शुद्ध सोने को प्राइमरी गोल्ड कहते हैं।

रिपलेशन (Reflation) : रिसेशन अथवा मन्दी की अवस्था में अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसे कदम उठाए जाते हैं कि लोगों की क्रय शक्ति में वृद्धि हो और वस्तुओं की मॉग बढे. इसके परिणामस्वरूप मूल्य स्तर में जो वृद्धि होती है, उसे रिफ्लेशन कहते हैं।

सॉफ्ट करेन्सी (Soft Carrency) : जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में किसी मुद्रा की माँग की तुलना में पूर्ति अधिक होती है, तो ऐसी मुद्रा सॉफ्ट करेन्सी कहलाती है।

सॉफ्ट लोन (Soft Loan) : जिस ऋण को कम ब्याज और लम्बी भुगतान अवधि जैसी आसान शर्तों पर प्राप्त किया जाता है, उसे सॉफ्ट लोन कहते हैं।
सेमी बोम्बला (Semi Bombla) : किसी देश के अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार किया गया प्रपत्र, जिसके द्वारा काला धन, मुद्रा प्रसार कीमत वृद्धि आदि की समस्याओं को सुलझाने के लिए सुझाव देते हैं, सेमी बोम्बला कहलाता है।

विक्रेता बाजार (Sellers Market) : जब मॉग अधिक होती है और पूर्ति कम्, तब व्यापारी कमी का लाभ उठाकर वस्तुओं को मनमानी कीमतों पर बेचते हैं। ऐसे बाजार को विक्रेता बाजार कहते हैं।

टैरिफ (Tariff) : किसी देश द्वारा आयातों पर लगाए गए कर को ही प्रायः टैरिफ' कहा जाता है।

सम्पत्ति कर (Wealth Tax) : किसी व्यक्ति द्वारा संचित सम्पत्ति के आधार पर लगने वाले कर को सम्पत्ति कर कहते हैं। यह एक प्रत्यक्ष कर है।

अधिविकर्ष (overdraft) : बैंकों से जमाकर्ता द्वारा अपनी जमा रकम के अतिरिक्त धन निकालना ‘अधिविकर्ष कहलाता है।

विनिमय दर (Exchange Rate) : जिस दर पर एक देश की मुद्रा दूसरे देश की मुद्रा में बदल जाती है, उसे विनिमय दर कहते हैं।

ग्रेशम का नियम : ग्रेशम के अनुसार यदि किसी समय अर्थव्यवस्था में अच्छी व इी मुदा एक साथ प्रचलन में हों, तो बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर देती है। इसे ही ग्रेशम के नियम के रूप में जाना जाता हैं।
तालाबन्दी (Lock out) : जब सेवा नियोजकों द्वारा किसी फैक्ट्री में तालाबंदी कर दी जाए, ताकि कर्मचारियों से उनके द्वारा निर्धारित शतों को मनवाया जा सके, यही लॉक आउट कहलाता है।

ले ऑफ (Lay Off) : किसी औद्योगिक संस्थान में उत्पादन कम हो जाने या उस वस्तु की माँग कम हो जाने पर कर्मचारियों को नौकरी से पृथक् करना ‘ले ऑफ' कहलाता है।

एङ–वेलोरम (Ad-Valorem) : वस्तुओं पर लगाए गए जो कर (tax) उनकी मात्रा के आधार पर न लगाकर मूलयानुसार लगाए जाते हैं, 'एड–वेलोरम' कहलाते हैं।

एफ्लुएंट सोसाइटी (Alfluent Society) : इस शब्द का प्रयोग समाज के उस वर्ग के लिए किया जाता है, जो अति सम्पन्न है तथा अपनी तमाम मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के उपरानत भी इन लोगों के पास इतनी आय बची रहती है कि ये विभिन्न प्रकार के विलासितापूर्ण उपभोग करने लगते हैं। प्रो. जी के गालबेथ ने इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम पश्चिमी यूरोप व अमरीका के सन्दर्भ में किया था।

एन्युटी (Annuity) : किसी पूर्व निर्धारित योजना के अन्तर्गत प्रतिवर्ष एक या अधिक किश्तों में प्राप्त होने वाला भुगतान 'एन्युटी' कहलाता है जैसे- सरकारी ऋणपत्रों पर ब्याज का भुगतान 'एन्युटी के रूप में हो सकता है।
आर्बिट्रेज (Arbitrage) : इस शब्द का प्रयोग सामान्यतः विदेशी विनिमय के सन्दर्भ में किया जाता है। स्वतन्त्र विदेशी मुद्रा बाजारों में यदि किसी स्थान पर कोई मुद्रा कम मूल्य पर खरीदी जाए तथा तुरन्त ही अन्यत्र किसी स्थान पर ऊँचे मूल्य पर बेच दी जाए तो इस क्रिया को ‘आर्बिट्रेज' कहा जाता है।
अधिकृत पूँजी (Authorised Capital) : पूँजी की वह अधिकतम मात्रा जिस सीमा तक कोई कम्पनी अपने शेयर जारी कर सकती है। यह आवश्यक नहीं कि कम्पनी द्वारा जारी किए गए शेयरों का मूल्य अधिकृत पूँजी बराबर ही हो यह अधिकृत पूँजी के बराबर या उससे कम हो सकता है, किन्तु अधिक नहीं।

वैड डेप्ट (Bad Debt) : वह ऋण जिसकी वसूली संदिग्ध हो अथवा सम्भव न हो।

जन्म-दर (Birth Rate) : किसी क्षेत्र में किसी वर्ष प्रति हजार जनसंख्या पर जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या जन्म–दुर कहलाती है।

ब्लू चिप (Blue Chip) : यह शब्द प्रायः उन कम्पनियों के शेयरों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो अत्यन्त सुदृढ़ हैं। तथा जिनका प्रबन्ध इत्यादि अति कुशल है। ऐसे शेयरों को खरीदने में हानि की सम्भावना बहुत कम होती है तथा जब चाहे, उचित मूल्य पर इन्हें बाजार में बेचा जा सकता है।

मिश्रित माँग (Composite Demand) : जब कोई वस्तु एक से अधिक उपयोगों में प्रयोग की जाती है, तो एकसी वसतु की कुल मॉग उसकी विविध उपयोगों हेतु माँग का योग होती है। यह मिश्रित माँग कहलाती है।

लागत प्रेरित मुद्रास्फीति (Cost Push Inflation) : जब वस्तुओं की उत्पादन लागत में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप मूलयों में वृद्धि होती है एवं मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है, तो ऐसी मुद्रास्फीति लागत प्रेरित कही जाती है। श्रमिक संघों के दबाव में मजदूरी के स्तर में अनावश्यक वृद्धि से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

स्टेगफ्लेशन (Stagflation) : स्टेगफ्लेशन से तात्पर्य | ‘स्फीतियुक्त गतिहीनता से है। स्टेगफ्लेशन एक ऐसी विरोधाभासी स्थिति है जिसमें अर्थवयवस्था में मुद्रास्फीति के साथ-साथ गतिहीनता भी विद्यमान रहती है। इस स्थिति में अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में एक ओर ऊँचे मूल्य तथा अधिपूर्ण रोजगार की स्थिति दृष्टिगोचर होती है, तो दूसरी ओर के क्षेत्रों में गतिहीनता की स्थिति अर्थात् औद्योगिक तथा कृषि उत्पादन में कमी, अत्यधिक मात्रा में बेरोजगारी इत्यादि दृष्टिगोचर होती है।

बौद्धिक सम्पत्ति (Intellectual Property): बौद्धिक सम्पत्ति (Intellectual Property) मानव की वह सम्पत्ति कहलाती है, जो उसकी स्वयं की बौद्धिक क्षमता एवं परिश्रम द्वारा तैयार की जाती है। कलात्मक रचनाएं, वैज्ञानिक आविष्कार, साहित्यिक और संगीतात्मक रचनाएं. नवीन सिद्धान्त, सूत्र, उपकरण आदि सभी सृजन करने वाले व्यक्ति की बौद्धिक सम्पत्ति है। इस बौद्धिक सम्पत्ति को अन्य व्यक्ति चुराकर स्वयं प्रयोग न करे इसके लिए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट एवं समान रूप से अन्य कानून बनाए गए हैं। विश्व व्यापार संगठन (WTO) तथा विश्व बौद्धिक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बौद्धिक सम्पत्ति की सुरक्षा में सहायक होते हैं।

माइक्रो क्रेडिट (Micro Credit) : माइक्रो क्रेडिट या माइक्रो फाइनेंस या सूक्ष्म वित्त छोटी-सी कर्ज राशि होती है, जोकि काफी गरीब लोगों को दी जाती है, ताकि वे अपनी जीविका चलाने के लिए छोटा-मोटा काम शुरू कर सकें सामान्य रूप से इनमें वे लोग शामिल होते हैं, जिनके पास बैंकों से ऋण पाने के बदले गिरवी रखने के लिए कुछ भी नहीं होता। वर्ष 2008 का नोबेल शान्ति पुरस्कार बांग्लादेश में माइक्रो क्रेडिट को बढ़ावा देने वाले मुहम्मद युनूस और उनके ग्रामीण बैंक को प्रदान किया गया है।

चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment) : व्यापार चक्र की मन्दी के समय उत्पन्न बेरोजगारी चक्रीय बेरोजगारी कहलाती है।

मृत्यु कर (Death Duty) : यह एक प्रत्यक्ष कर है, जो मरने वाले व्यक्ति की सम्पत्ति के हस्तांतरण से पूर्व उत्तराधिकारी को चुकाना होता है।

मूल्य माँग (Price Demand) : किसी निश्चित मूल्य पर किसी समय में किसी वस्तु की मॉगी जाने वाली मात्रा उस मूल्य पर वस्तु की मॉग कहलाती है। इसे ही प्रायः मॉग कहा जाता है।

प्रच्छन्न बेरोजगारी अथवा अदृश्य बेरोजगारी (Disgulsed Unemployment) : यह इस प्रकार की बेरोजगारी है। जिसमें व्यक्ति स्पष्ट रूप से बेरोजगार प्रतीत नहीं होते। वे काम पर तो लगे हुए होत हैं, किन्तु उस काम में उनकी सीमान्त उत्पादकता शून्य होती है। ऐसे लोगों को यदि काम से हटा दिया जाए, तो कुल उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। भारत में कृषि क्षेत्र में पर्याप्त प्रच्छन्न बेरोजगारी पाई जाती है।

मुद्रा अपस्फीति अथवा विस्फीति (Disinflation) : मृदास्पफीति पर नियंत्रण लाने हेतु जो प्रयास किए जाते हैं। (जैसे साख-नियंत्रण आदि), उनके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति की दर घटने लगती है, कीमतों में गिरावट आती है तथा रोजगार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं यह स्थिति मुद्रा अपस्फीति अथवा विस्फीति की स्थिति कहलाती है। इस स्थिति में यद्यपि मूल्य-स्तर गिरता है, तथापि यह सामान्य मूल्य स्तर से ऊपर ही रहता है।
श्रम विभाजन (Division of Labour) : किसी कार्य की सम्पूर्ण प्रक्रिया को एक ही व्यक्ति द्वारा न कराकर विभिन्न चरणों को भिन्न-भिन्न लोगों से पूरा कराने की प्रक्रिया ही श्रम विभाजन कहलाती है। श्रम विभाजन में विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।

राशिपतन (Dumping) : किसी वस्तु के अति उत्पादन की स्थिति में बाजार में वसतु के मूल्य को एक न्यूनतम स्तर से नीचे गिरने से रोकने के लिए वसतु के अतिरिक्त भण्डार को विदेशी बाजार में बहुत कम मूल्य पर बेचने और यहाँ तक कि नष्ट तक कर देने की प्रक्रिया राशिपतन कहलाती है। उत्पादकों के हितों की सुरक्षा के लिए कभी-कभी ऐसा करना पड़ता है, ताकि अतिरिक्त उत्पादन को बाजार से दूर करके वस्तु के मूल्य को गिरने से रोका जा सके।

आर्थिक नियोजन (Economic Planning) : आर्थिक संसाधनों का पूर्व मूल्यांकन करके, पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को निश्चत समय में प्राप्त करने हेतु संसाधनों का योजनाबद्ध उपयोग करना आर्थिक नियोजन कहलाता है। आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत प्राथमिकताओं का निर्धारण कर लिया जाता है तथा साधनों का आबंटन उसी के अनुसार किया जाता है।
एंजिल का नियम (Engel's Law) : इस नियम के अनुसार कम आय वाले उपभोक्ता अपनी आय का अधिक भाग भोजन आदि पर व्यय करते हैं। आय में जैसे-जैसे वृद्धि होती है, कुल आय का कम भाग भोजन पर व्यय होता है।

विनिमय नियंत्रण (Exchange Control) : यह उस व्यवस्था का नाम है जिसके अन्तर्गत कोई देश विदेशी मुद्राओं के स्वतन्त्र बाजार पर नियन्त्रण करके अपनी मुद्रा की विनिमय दर को उस दर से भिन्न रखने का प्रयास करता है, जो स्वतन्त्र बाजार में निर्धारित होती हैं।

गिफिन वस्तुएं (Giffin Goods) : गिफिन वस्तुएं कुछ घटिया किस्म की ऐसी वस्तुएं होती हैं जिन पर उपभोक्ता अपनी आय का बड़ा भाग व्यय करता है। इन वस्तुओं पर मॉग का नियम लागू नहीं होता, बल्कि मूल्य में वृद्धि से इनकी माँग बढ़ जाती है तथा मूल्य में कमी से मॉग भी कम हो जाती हैं। इस विरोधाभास को गिफिन का विरोधाभास (Giffin's Paradox) कहा जाता है।

कराघात (Impact of Tax) : सरकार द्वारा लगाए गए कर का मौद्रिक भार, जिस व्यक्ति पर सबसे पहले पड़ता है। अर्थात् सरकार जिससे कर वसूल करती है, उस पर कराघात होता है। यदि वह व्यक्ति कर के मौद्रिक भार को किसी अन्य व्यक्ति पर टालने में सफल हो जाता है, तो कराघात तो प्रथम व्यक्ति पर ही रहता है, किन्तु करापात (Incidence) उस व्यक्ति पर रहता है, जो अन्तिम | रूप से कर के मौद्रिक भार को वहन करता है।

करापात (Incidence of Tax): जैसा कि ऊपर बताया गया है। कि यह आवश्यक नहीं कि सरकार द्वारा कोई कर जिस व्यक्ति पर लगाया गया है, वही कर के भार को अन्तिम रूप से वहन करे। यदि प्रथम करदाता कर की धनराशि को किसी अन्य व्यक्ति पर माना जाता है, जो कर के भार को अन्तिम रूप से वहन करता है, जैसे—उत्पादन शुल्क सरकार द्वारा उत्पादन से वसूल किया जाता है, किन्तु उत्पादक कर की राशि को वस्तु के मूल्य में शामिल कर देता है जिससे करापात उपभोक्ता पर आता है।

अल्पाघिकार (Oligopoly) : यदि किसी वस्तु के बाजार में विक्रेताओं की संख्या बहुत कम (किन्तु दो से अधिक होती है जिनके मध्य आपस में कोई समझौता सम्भव हो सकता हो, तो ऐसा बाजार अल्पाधिकार कहलाता है। इस प्रकार के बाजार में वसतु एकसी भी हो सकती हैं तथा वस्तु में विभेद भी हो सकता है।

शाखा बैंकिंग (Branch Banking) : शाखा बैंकिंग प्रणाली के अन्तर्गत किसी बैंक के एक प्रधान कार्यालय के अतिरिक्त उसकी अनेक शाखाएं देशभर में फैली होती हैं। और कभी-कभी कुछ शाखाएं देश के बाहर भी होती हैं।

इकाई बैंकिंग Unit Banking) : इसके अन्तर्गत एक बैंक का कार्य साधारणतया एक ही कार्यालय तक सीमित रहता है, यद्यपि एक सीमित क्षेत्र में ये बैंक अपनी कुछ शाखाएं भी स्थापित कर लेते हैं। इकाई बैंकिंग प्रणाली अमरीका में अधीक लोकप्रिय रही है।

अग्रणी बैंक अथवा लीड बैंक योजना (Lead Bank Scheme) : यह योजना जिलों की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए 1989 में प्रारम्भ की गई थी। इसके अन्तर्गत प्रत्येक जिले के लिए एक बैंक को लीड बैंक घोषित कर दिया जाता है। जिस बैंक को लीड बैंक घोषित किया जाता है. वह जिला स्तर पर ऋणों की योजना बनाने, विशिष्ट कार्यक्रमों में अन्य बैंकों का सहयोग लेने तथा निश्चित कार्यक्रमों में अन्य बैंकों का सहयोग लेने तथा निश्चित कार्यक्रमों के लिए ऋण जुटाने में सभी वित्तीय संस्थाओं में समन्वय कायम करने का प्रयास करता है।

चेक (Cheque) : चेक एक प्रकार से विनिमय हुण्डी (Bill of Exchange) होती है, जो एक निर्दिष्ट (विशिष्ट) बैंक के ऊपर आहरित होती है तथा माँग पर ही, जिसका भुगतान किया जाता है।
चेक में तीन पक्ष होते हैं :
(i) भुगतान का आदेश देने वाला, आहत (Drawer)
(ii) जिसको आदेश दिया जाता है (Drawee) अर्थात् बैंक तथा
(iii) जो भुगतान प्राप्त करता है अर्थात चेक का धारक (Payee)।

विनिमय पत्र अथवा विनिमय हुण्डी (Bill of Exchange) : यह एक एकसा लिखित विपत्र हैं, जिसमें उसका लेखक अपने हस्ताक्षर कर किसी व्यक्ति को यह शर्तरहित आज्ञा देता है कि वह एक निश्चित धनराशि किसी व्यक्ति विशेष या उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को या उस विपत्र के वाहक को भुगतान कर दें। विनिमय हुण्डी केवल मुद्रा के रूप में लिखी जाती है अर्थात् इसका भुगतान केवल मुद्रा के रूप में ही होता है, किसी वस्तु जैसे कपड़ा, अनाज, सोना, चाँदी आदि के रूप में नहीं।

सामान्य हुण्डी एवं चेक (Hundi and Cheque) : चेक और हुण्डी में मुख्य अन्तर यह होता है कि चेक सदैव मॉग पर ही देय होता है, जबकि कुछ हुण्डियाँ (दर्शनी) माँग पर देय होती हैं और कुछ निश्चित समय या अवधि के बाद

साधारण या धारक चेक (Bearer Cheque) : जब तक संदेह करने के लिए कोई विशेष कारण न हो, धारक चेक का भुगतान चेक प्रस्तुत करने वाले किसी भी व्यक्ति को किया जा सकता है, भले ही वह चेक उसके नाम में हो अथवा नहीं। ऐसे चेक के भुगतान के लिए चेक जारी करने वाले (Drawer) के ऐसे ही निर्देश होते हैं कि भुगतान चेक के धारक को ही दे दिया जाए।

आदिष्ट चेक (Order Cheque) : जब किसी धारक चेक में से धारक (Bearer) शब्द को काट दिया जाए अथवा उस चेक पर Order लिख दिया जाए, तो वह चेक आदिष्ट चेक बन जाता है। इस चेक का भुगतान करने के लिए बैंक भुगतान लेने वाले व्यक्ति की पहचान करती है। इस औपचारिकता के बाद ही उस चेक का भुगतान किया जाता है।

रेखांकित चेक (Crossed Cheque) : जब चेक के ऊपर प्रायः बाई ओर दो समानान्तर रेखाएं बना दी जाती हैं, तो वह चेक रेखांकित चेक बन जाता है। इस रेखांकित चेक का भुगतान बैंक काउंटर पर नकद प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसका भुगतान किसी खाते में उसे जमा करा कर ही प्राप्त किया जा सकता है।

पावक खाता चेक (Account Payee Cheque) : जब किसी चेक के प्रायः बाई ओर ऊपर कोने में दो समानान्तर रेखाओं के मध्य 'Account Payee Only' लिख दिया जाता है, तो उस चेक को पावक खाता चेक कहते हैं। इस चेक का भुगतान केवल उसी व्यक्ति या प्रतिष्ठान अथवा संस्थान के खाते में जमा करके किया जाता है, जिसके नाम वह चेक लिखा होता। है अर्थात् इस प्रकार के चेक का अन्य किसी व्यक्ति के पक्ष में हस्तांतरण नहीं किया जा सकता।
जब चेक के मुखपृष्ठ पर दो समानान्तर रेखाओं के मध्य कसी बैंक का नाम लिख दिया जाता है, तो यह चेक विशिष्ट रेखांकित चेक बन जाता है तथा ऐसी स्थिति में उस चेक का भुगतान केवल उसी बैंक के माध्यम से । सम्बन्धित व्यक्ति के खाते में जमा करके ही प्राप्त किया जा सकता है।

यात्री चेक (Traveller's Cheque) : यात्री चेक किसी बैंक द्वारा जारी किया गया ऐसा चेक होता है, जिसे जारी करते समय चेक के मुखपृष्ठ पर आवेदक (चेक प्राप्त करने वाला) के हस्ताक्षर कराए जाते हैं। इस चेक का भुगतान देशभर में सम्बन्धित बैंक की किसी भी शाखा से प्राप्त किया जा सकता है। चेक का भुगतान करने वाली शाखा भुगतान के समय पुनः चेक के मुखपृष्ठ पर धारक के हस्ताक्षर कराती है। दोनों हस्ताक्षर मिलने पर ही यात्री चेक का भुगतान होता है। बैंक द्वारा अधिकृत प्रमुख वाणिज्यिक संस्थान भी यात्री चेक नकद मुद्रा की भाँति स्वीकार कर लेते हैं। इस प्रकार के चेक यात्रियों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं, क्योंकि चेक खो जाने पर आवश्यक शर्ते पूरी करके डुप्लीकेट चेक प्राप्त किए जा सकते हैं।

पूर्व दिनांकित चेक (Ante-dated Cheque) : यदि आहरणकर्ता चेक लिखने की तारीख से पहले की कोई तारीख चेक पर लिखता है, तो ऐसे चेक को पूर्व दिनांकित (Ante-dated) चेक कहा जाता है।

उत्तर दिनांकित चेक (Post-dated Cheque) : यदि किसी चेक का आहरणकर्ता चेक लिखते समय उस पर कोई आगामी तारीख लिख देता है, तो ऐसे चेक को उत्तर दिनांकित (Post-dated) चेक कहा जाता है। ऐसा चेक विधि-अमान्य तो नहीं होता, अपितु उस तारीख से प्रभावी होता है, जो उसमें लिखी गई है।

ड्राफ्ट (Draft) : यह एक ऐसा साख प्रपत्र है, जिसमें किसी बैंक द्वारा अपनी किसी अन्य शाखा को पावक (Payee) के आदेशानुसार ड्राफ्ट में उल्लिखित धनराशि माँग पर भुगतान करने का आदेश होता है। ड्राफ्ट किसी बैंक द्वारा पहले से भुगतान प्राप्त करके जारी किया जाता है तथा जिस व्यक्ति अथवा संस्था के नाम ड्राफ्ट बनाया जाता है, उसकी पहचान करने के बाद इसका भुगतान कर दिया जाता है। ड्राफ्ट भी चैक की भॉति रेखांकित अथवा अरेखांकित हो सकता है।

समाशोधन गृह अथवा क्लीयरिंग हाउस (Clearing House) : समाशोधन गृह अथवा क्लीयरिंग हाउस प्रायः प्रत्येक ऐसे शहर में होता है, जहाँ 3-4 अथवा उसके अधिक बैंकें होती हैं। क्लीयरिंग हाउस वह स्थान है जहाँ विभिन्न बैंकों के प्रतिनिधि प्रतिदिन एकत्र होते हैं। इस स्थान पर उन प्रतिनिधियों के मध्य चेकों का आदान-प्रदान तथा जमा-खर्च | होता है। इस प्रकार यहाँ हजारों चेकों का लेन-देन बहुत ही सरलता से तथा थोड़े समय में ही सम्पन्न हो जाता है। इस प्रक्रिया को समाशोधन (Clearing) कहते हैं। भारत में जिन शहरों में रिजर्व बैंक की शाखा है, वहाँ रिजर्व बैंक की शाखा | नहीं है, वहाँ स्टेट बैंक की मुख्य शाखा में समाशोधन गृह होता है।

चेक कलेक्शन (Cheque Collection) : जब चेक शहर के बाहर किसी अन्य स्थान पर भुगतान के लिए भेजा जाता है, तो इसे ही कलेक्शन कहते हैं। ऐसे चेक का भुगतान प्राप्त करने के लिए बैंक ग्राहक से डाक–व्यय एवं कमीशन लेती है।

बॉण्ड (Bond) अथवा डिबेन्चर (Debenture) : बॉण्ड एवं डिबेन्चर का अर्थ ऋणपत्रों से होता है, जिन्हें केन्द्रीय सरकार राज्य सरकार अथवा किसी संस्थान द्वारा ऋण लेकर जारी किया जाता है। संयुक्त पूँजी कम्पनियाँ ऋण प्राप्त करने के लिए अपने डिबेन्चर जारी करती हैं। इन बॉण्डों को हस्तान्तरित भी किया जा सकता है, जो संस्था इन्हें जारी करती हैं। वे इन पर धारक को एक निश्चित दर से ब्याज भी देती हैं।

धारक बॉण्ड (Bearer Bond) : धारक बॉण्ड वे ऋणपत्र हैं, जिनका भुगतान परिपक्वता पर कोई भी प्राप्त कर सकता है। इन पर न तो खरीददार का नाम लिखा होता है और न ही हस्तान्तरित करते समय इनकी पीठ पर हस्ताक्षर ही करने होते हैं। प्रायः इनका उपयोग काले धन को सफेद धन में बदलने के लिए किया जाता है।

सस्ती मुद्रा (Cheap Money) : वह मुद्रा जिसे नीची व्याज दर (Low interest rate) पर प्राप्त किया जा सकता है, सस्ती मुद्रा कहलाती है।

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